अखाड़ों के बीच विवाद का इतिहास पुराना है। इसमें 7 नवंबर को एक और अध्याय जुड़ गया। प्रयागराज में जनवरी 2025 में होने वाले महाकुंभ को लेकर मेला प्राधिकरण के दफ्तर में एक बैठक हुई। इसमें अखाड़ों के बीच जमीन आवंटन को लेकर बात होनी थी। बैठक में अलग-अलग अखाड़ों के प्रतिनिधि साधु-संत थे। अभी बातचीत शुरू ही हुई थी कि अफसरों के सामने ही साधु-संतों के दो गुट आपस में भिड़ गए। चंद मिनटों में बात हाथापाई पर उतर आई। साधु-संतों को ऐसे लड़ते देख सवाल उठने लगे कि भला ये समाज में शांति और समझदारी का संदेश कैसे देते हैं। लेकिन अखाड़ों के बीच ऐसे विवाद नए नहीं है। अखाड़ों के बीच विवाद और राजनीति का क्या इतिहास है, पूरी कहानी भास्कर एक्सप्लेनर में जानिए… सबसे पहले जानिए क्यों बनाए गए थे अखाड़े
अखाड़े क्यों बने थे? इसे लेकर कोई प्रामाणिक वजह नहीं मिलती। इन्हें बनाए जाने को लेकर प्रचलित मत है कि आदि शंकराचार्य ने कई सदियों पहले बौद्ध धर्म के बढ़ते प्रचार-प्रसार को रोकने के लिए अखाड़ों की स्थापना की थी। कहा जाता है कि इन्हें बनाने के पीछे मकसद था, जो शास्त्र से नहीं माने, उन्हें शस्त्र से मनाया जाए। आदि शंकराचार्य का जीवनकाल 8वीं और 9वीं सदी में था। ऐसे में, अंदाजा लगाया जाता है कि इसी बीच अखाड़ों की स्थापना की गई होगी। कहा जाता है कि आदि शंकराचार्य ने सनातन तरीके से जीने के नियमों को बचाने के लिए अखाड़ा की स्थापना की थी। आज इन अखाड़ों के तीन समूह हैं- शैव अखाड़ा यानी जो भगवान शिव की भक्ति करते हैं। वैष्णव अखाड़ा, जो भगवान विष्णु की भक्ति करते हैं और तीसरा उदासीन पंथ। इन तीन समूहों में आज 13 अखाड़े हैं। अखाड़ों के बीच विवाद कब से चले आ रहे?
अखाड़ों को हिंदू धर्म की रक्षा के लिए बनाया गया था। धर्म के जो विधि-विधान और नियम हैं, उन्हें फिर से स्थापित करने के लिए बनाया गया, लेकिन कई बार अखाडों के बीच ही हिंसक संघर्ष हुए। इन संघर्षों और विवादों का मुद्दा कभी इतना बड़ा नहीं रहा, जितने बड़े विवाद हुए। दरअसल, अखाड़ों के लिए अपनी शक्ति-शौर्य और आभा प्रदर्शन का मौका कुंभ और महाकुंभ जैसे धार्मिक आयोजन होता हैं। इनमें किसका तंबू कहां लगेगा, कौन से अखाड़े की झांकी पहले निकलेगी और कौन पहले स्नान करेगा, इन बातों को लेकर विवाद होते आए हैं। अखाड़ों के बीच विवाद रोकने के लिए 1954 में अखाड़ा परिषद बनाया गया ब्रिटिश भारत और उससे पहले भी प्रयागराज, नासिक और उज्जैन में लगने वाले कुंभ और अर्धकुंभ में अखाड़ों के बीच रहने, स्नान करने, चलने को लेकर विवाद बढ़ते चले गए। तब इन विवादों को समझने और सुलझाने वाला कोई जिम्मेदार विभाग या अधिकारी भी नहीं होते थे। साल 1954 में प्रयागराज (तब इलाहाबाद) में कुंभ मेलों का आयोजन हुआ। 3 फरवरी 1954 को मौनी अमावस्या के दिन शाही स्नान था। इस दिन देश भर से भारी भीड़ उमड़ी थी। तभी मेले में भगदड़ मची। अनुमान लगाया जाता है कि 500 से 700 लोगों की मौत हो गई थी। इस भगदड़ की चपेट में अखाड़े भी आए। आगे से इस तरह का टकराव और अव्यवस्था न हो, इसके लिए उसी साल अखाड़ा परिषद की स्थापन की गई। इसमें सभी 13 मान्यता प्राप्त अखाड़ों के दो-दो प्रतिनिधियों को जगह दी गई। तय किया गया कि कुंभ मेले में अखाड़ों के रहने और आपस में तालमेल इस परिषद के जरिए होगा। अखाड़ों के अंदर की राजनीति और विवाद की लिस्ट- अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अंदर के विवाद
अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अंदर ही कई विवाद एक साथ चल रहे हैं। इसमें सबसे पहला है परिषद में अध्यक्ष और महामंत्री के पद को लेकर। इसे लेकर परिषद के अंदर दो गुट बने हैं। इन दोनों गुटों के अध्यक्ष और महामंत्री अलग-अलग हैं। इसमें जो गुट बड़ा है उसके अध्यक्ष महंत रवींद्र पुरी निरंजनी अखाड़ा हैं। महामंत्री जूना अखाड़े के संरक्षक महंत हरि गिरी हैं। इसी तरह दूसरे गुट ने रविंद्र पुरी को अपना अध्यक्ष घोषित कर रखा है। वे महानिर्वाणी अखाड़े से हैं। इस गुट के महामंत्री महंत राजेंद्र दास हैं। 2021 में शुरू हुआ अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष पद को लेकर विवाद सितंबर 2021 में तत्कालीन अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरी ने आत्महत्या कर ली थी। इससे पूरे संत समाज में हड़कंप मच गया था। नरेंद्र गिरी ने एक सुसाइड नोट छोड़ा था, जिसमें उन्होंने अपने शिष्य आनंद गिरी पर ब्लैकमेलिंग का आरोप लगाया था। इस मामले की जांच सीबीआई को सौंपी गई थी। महंत नरेंद्र गिरी की मौत के बाद निरंजनी अखाड़े के महंत रवींद्र पुरी को अध्यक्ष पद पर बैठाया गया। लेकिन कुछ अखाड़े इसके विरोध में थे। विरोध के बावजूद जब परिषद के अंदर उनकी मांगों की सुनवाई नहीं हुई तो इस दूसरे गुट ने दूसरा अध्यक्ष और महामंत्री बना लिया। सीएम के सामने भी दोनों गुट एक-दूसरे पर लगा चुके हैं आरोप
अक्टूबर महीने में प्रयागराज में कुंभ की तैयारियों को लेकर अखाड़ों की सीएम योगी आदित्यनाथ के साथ बैठक थी। 6 अक्टूबर की इस बैठक में दोनों गुट सीएम के सामने ही एक दूसरे से बहस करने लगे। स्नान का क्रम क्या रहेगा, टेंट कहां लगेगा? जैसे मुद्दों को लेकर अखाड़ों के बीच अब भी विवाद है। जूना अखाड़ा से निकले संत नया अखाड़ा बनाने में लगे
13 अखाड़ों में जूना अखाड़ा सबसे बड़ा है। इससे जुड़े साधु-संतों की संख्या लाखों में है। ऐसे में, विवाद भी इस अखाड़े से सबसे ज्यादा सामने आते हैं। कई बार अखाड़ों के महामंडलेश्वर अनुशासनहीनता या नियमों का पालन न करने पर संतों को अखाड़े से बाहर कर देते हैं। जूना अखाड़े से बाहर किए गए ऐसे ही कुछ संतों ने मिलकर अब नया अखाड़ा बना लिया है। पिछले महीने 26 अक्टूबर को इन संतों ने पांच दशनाम श्री गुरुदत्त नाम से नए अखाड़े के गठन का ऐलान कर दिया। हालांकि, उन्हें अभी अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद से मान्यता नहीं मिली है। किन्नर अखाड़े में भी दरार, एक नया अखाड़ा बनेगा
महाकुम्भ से पहले किन्नर अखाड़ा के अलावा किन्नरों के भी दूसरे अखाड़े का गठन होने वाला है। वाराणसी में पीएम मोदी के खिलाफ लोकसभा चुनाव में नामांकन करने बाद नाम वापस लेकर पीएम का समर्थन करने वाली किन्नर व कथा वाचक हिमांगी सखी ने नए अखाड़े के गठन का ऐलान कर दिया है। हिमांगी सखी का कहना है कि महाकुम्भ में वो वैष्णव किन्नर अखाड़े का गठन करेंगी। अभी वो किन्नर अर्द्धनारीश्वर धाम की स्थापना करके उसी के जरिए समाजसेवा कर रहीं हैं। आने वाले महाकुम्भ में वो किन्नर अर्धनारीश्वर धाम का शिविर लगाएंगी। यहां पर वैष्णव किन्नर अखाड़े का गठन करने के साथ ही अलग-अलग क्षेत्र के संतों को महामंडलेश्वर मंडलेश्वर और अन्य उपाधियां दी जाएंगी। अखाड़ों के अंदर विवाद का इतिहास 200 साल पुराना अखाड़ों के अंदर की राजनीति और विवाद की क्या वजह है?
अखाड़ों के अंदर वर्चस्व की लड़ाई की वजह है उनके पास मौजूद जमीन, मठों और मंदिरों पर चढ़ाए जाने वाले चढ़ावे। अखाड़ों को दान में हजारों एकड़ जमीन मिली है। इन जमीनों पर अखाड़ों ने मठ, मंदिरों और आश्रमों का निर्माण किया। इससे अब उनके पास हर रोज लाखों से लेकर करोड़ों तक का चढ़ावा और संपत्ति आती है। इन अखाड़ों की जमीन पर आज के समय में तमाम गेस्ट हाउस से लेकर होटल और अपार्टमेंट बने हैं। इन जमीनों के बेचने का मुनाफा भी अखाड़ों के पास आता है। ऐसे में, इन मठों और मंदिरों का महंत बनना करोड़ों की संपत्ति के उपयोग का अधिकार भी साथ लाता है। ऊपर से इन पदों पर आसीन साधु-संतों की राजनीतिक प्रतिष्ठा भी बढ़ जाती है। बड़े-बड़े नेता उनके सामने हाजिरी लगाने लगते हैं। चूंकि वो उस पद से एक बड़े समुदाय को अपील करने का भी अधिकार रखते हैं। इस तरह आर्थिक और राजनीतिक, ये दोनों वजहें मिल जाने से अखाड़ों में पद हासिल करने की प्रतियोगिता भी बढ़ती जा रही है। और यहीं से विवादों की लंबी-लंबी फेहरिस्त निकल रही है। —————————– ये भी पढ़ें… महाकुंभ में परी अखाड़े का होगा विस्तार:11 पीठों की होगी स्थापना, सभी पीठों पर महिला संत ही बनेंगी पीठाधीश्वर संगम तीरे जनवरी में आयोजित होने वाले महाकुंभ के लिए सभी अखाड़ों में हलचल तेज हो गई है। परी अखाड़े की संस्थापक और आचार्य महामंडलेश्वर साध्वी त्रिकाल भवंता ने भी अपने अखाड़े का विस्तार शुरू किया है। साध्वी त्रिकाल भवंता ने कहा है कि परी अखाड़े की ओर से 11 पीठों की स्थापना की जाएगी। जिसमें सभी पीठों पर महिला संतो को ही पीठाधीश्वर बनाया जाएगा। पढ़ें पूरी खबर… अखाड़ों के बीच विवाद का इतिहास पुराना है। इसमें 7 नवंबर को एक और अध्याय जुड़ गया। प्रयागराज में जनवरी 2025 में होने वाले महाकुंभ को लेकर मेला प्राधिकरण के दफ्तर में एक बैठक हुई। इसमें अखाड़ों के बीच जमीन आवंटन को लेकर बात होनी थी। बैठक में अलग-अलग अखाड़ों के प्रतिनिधि साधु-संत थे। अभी बातचीत शुरू ही हुई थी कि अफसरों के सामने ही साधु-संतों के दो गुट आपस में भिड़ गए। चंद मिनटों में बात हाथापाई पर उतर आई। साधु-संतों को ऐसे लड़ते देख सवाल उठने लगे कि भला ये समाज में शांति और समझदारी का संदेश कैसे देते हैं। लेकिन अखाड़ों के बीच ऐसे विवाद नए नहीं है। अखाड़ों के बीच विवाद और राजनीति का क्या इतिहास है, पूरी कहानी भास्कर एक्सप्लेनर में जानिए… सबसे पहले जानिए क्यों बनाए गए थे अखाड़े
अखाड़े क्यों बने थे? इसे लेकर कोई प्रामाणिक वजह नहीं मिलती। इन्हें बनाए जाने को लेकर प्रचलित मत है कि आदि शंकराचार्य ने कई सदियों पहले बौद्ध धर्म के बढ़ते प्रचार-प्रसार को रोकने के लिए अखाड़ों की स्थापना की थी। कहा जाता है कि इन्हें बनाने के पीछे मकसद था, जो शास्त्र से नहीं माने, उन्हें शस्त्र से मनाया जाए। आदि शंकराचार्य का जीवनकाल 8वीं और 9वीं सदी में था। ऐसे में, अंदाजा लगाया जाता है कि इसी बीच अखाड़ों की स्थापना की गई होगी। कहा जाता है कि आदि शंकराचार्य ने सनातन तरीके से जीने के नियमों को बचाने के लिए अखाड़ा की स्थापना की थी। आज इन अखाड़ों के तीन समूह हैं- शैव अखाड़ा यानी जो भगवान शिव की भक्ति करते हैं। वैष्णव अखाड़ा, जो भगवान विष्णु की भक्ति करते हैं और तीसरा उदासीन पंथ। इन तीन समूहों में आज 13 अखाड़े हैं। अखाड़ों के बीच विवाद कब से चले आ रहे?
अखाड़ों को हिंदू धर्म की रक्षा के लिए बनाया गया था। धर्म के जो विधि-विधान और नियम हैं, उन्हें फिर से स्थापित करने के लिए बनाया गया, लेकिन कई बार अखाडों के बीच ही हिंसक संघर्ष हुए। इन संघर्षों और विवादों का मुद्दा कभी इतना बड़ा नहीं रहा, जितने बड़े विवाद हुए। दरअसल, अखाड़ों के लिए अपनी शक्ति-शौर्य और आभा प्रदर्शन का मौका कुंभ और महाकुंभ जैसे धार्मिक आयोजन होता हैं। इनमें किसका तंबू कहां लगेगा, कौन से अखाड़े की झांकी पहले निकलेगी और कौन पहले स्नान करेगा, इन बातों को लेकर विवाद होते आए हैं। अखाड़ों के बीच विवाद रोकने के लिए 1954 में अखाड़ा परिषद बनाया गया ब्रिटिश भारत और उससे पहले भी प्रयागराज, नासिक और उज्जैन में लगने वाले कुंभ और अर्धकुंभ में अखाड़ों के बीच रहने, स्नान करने, चलने को लेकर विवाद बढ़ते चले गए। तब इन विवादों को समझने और सुलझाने वाला कोई जिम्मेदार विभाग या अधिकारी भी नहीं होते थे। साल 1954 में प्रयागराज (तब इलाहाबाद) में कुंभ मेलों का आयोजन हुआ। 3 फरवरी 1954 को मौनी अमावस्या के दिन शाही स्नान था। इस दिन देश भर से भारी भीड़ उमड़ी थी। तभी मेले में भगदड़ मची। अनुमान लगाया जाता है कि 500 से 700 लोगों की मौत हो गई थी। इस भगदड़ की चपेट में अखाड़े भी आए। आगे से इस तरह का टकराव और अव्यवस्था न हो, इसके लिए उसी साल अखाड़ा परिषद की स्थापन की गई। इसमें सभी 13 मान्यता प्राप्त अखाड़ों के दो-दो प्रतिनिधियों को जगह दी गई। तय किया गया कि कुंभ मेले में अखाड़ों के रहने और आपस में तालमेल इस परिषद के जरिए होगा। अखाड़ों के अंदर की राजनीति और विवाद की लिस्ट- अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अंदर के विवाद
अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अंदर ही कई विवाद एक साथ चल रहे हैं। इसमें सबसे पहला है परिषद में अध्यक्ष और महामंत्री के पद को लेकर। इसे लेकर परिषद के अंदर दो गुट बने हैं। इन दोनों गुटों के अध्यक्ष और महामंत्री अलग-अलग हैं। इसमें जो गुट बड़ा है उसके अध्यक्ष महंत रवींद्र पुरी निरंजनी अखाड़ा हैं। महामंत्री जूना अखाड़े के संरक्षक महंत हरि गिरी हैं। इसी तरह दूसरे गुट ने रविंद्र पुरी को अपना अध्यक्ष घोषित कर रखा है। वे महानिर्वाणी अखाड़े से हैं। इस गुट के महामंत्री महंत राजेंद्र दास हैं। 2021 में शुरू हुआ अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष पद को लेकर विवाद सितंबर 2021 में तत्कालीन अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरी ने आत्महत्या कर ली थी। इससे पूरे संत समाज में हड़कंप मच गया था। नरेंद्र गिरी ने एक सुसाइड नोट छोड़ा था, जिसमें उन्होंने अपने शिष्य आनंद गिरी पर ब्लैकमेलिंग का आरोप लगाया था। इस मामले की जांच सीबीआई को सौंपी गई थी। महंत नरेंद्र गिरी की मौत के बाद निरंजनी अखाड़े के महंत रवींद्र पुरी को अध्यक्ष पद पर बैठाया गया। लेकिन कुछ अखाड़े इसके विरोध में थे। विरोध के बावजूद जब परिषद के अंदर उनकी मांगों की सुनवाई नहीं हुई तो इस दूसरे गुट ने दूसरा अध्यक्ष और महामंत्री बना लिया। सीएम के सामने भी दोनों गुट एक-दूसरे पर लगा चुके हैं आरोप
अक्टूबर महीने में प्रयागराज में कुंभ की तैयारियों को लेकर अखाड़ों की सीएम योगी आदित्यनाथ के साथ बैठक थी। 6 अक्टूबर की इस बैठक में दोनों गुट सीएम के सामने ही एक दूसरे से बहस करने लगे। स्नान का क्रम क्या रहेगा, टेंट कहां लगेगा? जैसे मुद्दों को लेकर अखाड़ों के बीच अब भी विवाद है। जूना अखाड़ा से निकले संत नया अखाड़ा बनाने में लगे
13 अखाड़ों में जूना अखाड़ा सबसे बड़ा है। इससे जुड़े साधु-संतों की संख्या लाखों में है। ऐसे में, विवाद भी इस अखाड़े से सबसे ज्यादा सामने आते हैं। कई बार अखाड़ों के महामंडलेश्वर अनुशासनहीनता या नियमों का पालन न करने पर संतों को अखाड़े से बाहर कर देते हैं। जूना अखाड़े से बाहर किए गए ऐसे ही कुछ संतों ने मिलकर अब नया अखाड़ा बना लिया है। पिछले महीने 26 अक्टूबर को इन संतों ने पांच दशनाम श्री गुरुदत्त नाम से नए अखाड़े के गठन का ऐलान कर दिया। हालांकि, उन्हें अभी अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद से मान्यता नहीं मिली है। किन्नर अखाड़े में भी दरार, एक नया अखाड़ा बनेगा
महाकुम्भ से पहले किन्नर अखाड़ा के अलावा किन्नरों के भी दूसरे अखाड़े का गठन होने वाला है। वाराणसी में पीएम मोदी के खिलाफ लोकसभा चुनाव में नामांकन करने बाद नाम वापस लेकर पीएम का समर्थन करने वाली किन्नर व कथा वाचक हिमांगी सखी ने नए अखाड़े के गठन का ऐलान कर दिया है। हिमांगी सखी का कहना है कि महाकुम्भ में वो वैष्णव किन्नर अखाड़े का गठन करेंगी। अभी वो किन्नर अर्द्धनारीश्वर धाम की स्थापना करके उसी के जरिए समाजसेवा कर रहीं हैं। आने वाले महाकुम्भ में वो किन्नर अर्धनारीश्वर धाम का शिविर लगाएंगी। यहां पर वैष्णव किन्नर अखाड़े का गठन करने के साथ ही अलग-अलग क्षेत्र के संतों को महामंडलेश्वर मंडलेश्वर और अन्य उपाधियां दी जाएंगी। अखाड़ों के अंदर विवाद का इतिहास 200 साल पुराना अखाड़ों के अंदर की राजनीति और विवाद की क्या वजह है?
अखाड़ों के अंदर वर्चस्व की लड़ाई की वजह है उनके पास मौजूद जमीन, मठों और मंदिरों पर चढ़ाए जाने वाले चढ़ावे। अखाड़ों को दान में हजारों एकड़ जमीन मिली है। इन जमीनों पर अखाड़ों ने मठ, मंदिरों और आश्रमों का निर्माण किया। इससे अब उनके पास हर रोज लाखों से लेकर करोड़ों तक का चढ़ावा और संपत्ति आती है। इन अखाड़ों की जमीन पर आज के समय में तमाम गेस्ट हाउस से लेकर होटल और अपार्टमेंट बने हैं। इन जमीनों के बेचने का मुनाफा भी अखाड़ों के पास आता है। ऐसे में, इन मठों और मंदिरों का महंत बनना करोड़ों की संपत्ति के उपयोग का अधिकार भी साथ लाता है। ऊपर से इन पदों पर आसीन साधु-संतों की राजनीतिक प्रतिष्ठा भी बढ़ जाती है। बड़े-बड़े नेता उनके सामने हाजिरी लगाने लगते हैं। चूंकि वो उस पद से एक बड़े समुदाय को अपील करने का भी अधिकार रखते हैं। इस तरह आर्थिक और राजनीतिक, ये दोनों वजहें मिल जाने से अखाड़ों में पद हासिल करने की प्रतियोगिता भी बढ़ती जा रही है। और यहीं से विवादों की लंबी-लंबी फेहरिस्त निकल रही है। —————————– ये भी पढ़ें… महाकुंभ में परी अखाड़े का होगा विस्तार:11 पीठों की होगी स्थापना, सभी पीठों पर महिला संत ही बनेंगी पीठाधीश्वर संगम तीरे जनवरी में आयोजित होने वाले महाकुंभ के लिए सभी अखाड़ों में हलचल तेज हो गई है। परी अखाड़े की संस्थापक और आचार्य महामंडलेश्वर साध्वी त्रिकाल भवंता ने भी अपने अखाड़े का विस्तार शुरू किया है। साध्वी त्रिकाल भवंता ने कहा है कि परी अखाड़े की ओर से 11 पीठों की स्थापना की जाएगी। जिसमें सभी पीठों पर महिला संतो को ही पीठाधीश्वर बनाया जाएगा। पढ़ें पूरी खबर… उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर