‘उत्तर प्रदेश आजादी के बाद के सबसे कठिन उपचुनावों का गवाह बनने जा रहा है। ये उपचुनाव नहीं हैं, ये रुख चुनाव हैं, जो उप्र के भविष्य का रुख तय करेंगे।’ ये बातें सपा मुखिया अखिलेश यादव ने सोमवार, 18 नवंबर की शाम 4:05 बजे लिखी। इस पोस्ट के एक घंटे बाद विधानसभा उप चुनाव के लिए प्रचार का शोर थम गया। अब 20 नवंबर को वोटिंग है। अखिलेश जानते हैं कि चुनाव के नतीजे यूपी में विधानसभा चुनाव 2027 की राजनीतिक दशा और दिशा तय करेंगे। यही वजह है कि सपा मुखिया हों या यूपी सरकार के प्रमुख योगी, दोनों ने प्रचार में कोई कसर नहीं छोड़ी। योगी ने 5 दिन में 13 रैलियां और 2 रोड शो किया तो अखिलेश ने 13 सभाएं और एक रोड शो किया। उप चुनाव के नतीजे यह भी बताएंगे कि सीएम योगी का ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ और ‘एक रहेंगे तो नेक रहेंगे’ का प्रयोग कितना सफल रहा। वहीं, विपक्ष में रहते हुए पहली बार उप चुनाव में ताकत झोंकने वाले अखिलेश यादव अपने PDA (पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक) के फॉर्मूले को बरकरार रखने में कितना सफल हुए। 9 सीटों पर 90 प्रत्याशियों के बीच मुकाबला
विधानसभा उप चुनाव की नौ सीटों पर 90 प्रत्याशियों के बीच मुकाबला है। सभी नौ सीटों पर भाजपा, सपा और बसपा के बीच त्रिकोणीय मुकाबला है, लेकिन सीधी टक्कर भाजपा और सपा के बीच ही है। विधानसभा चुनाव 2022 में कटेहरी, सीसामऊ, कुंदरकी, करहल सीट सपा के पास थी। जबकि मीरापुर सीट रालोद ने सपा से गठबंधन कर जीती थी। वहीं खैर, फूलपुर, मझवां और गाजियाबाद सीट भाजपा के पास थी। लोकसभा चुनाव 2024 में विधानसभावार सीट आकलन में सामने आया कि कटेहरी, सीसामऊ, कुंदरकी, करहल, मीरापुर और फूलपुर में सपा ने बढ़त बनाई थी। वहीं मझवां, खैर और गाजियाबाद में भाजपा को बढ़त मिली थी। उप चुनाव में भाजपा और योगी सरकार के सामने अधिक से अधिक सीटें जीतकर कार्यकर्ताओं का उत्साह बढ़ाने, जनता के बीच माहौल सुधारने की चुनौती है। वहीं, सपा के सामने लोकसभा चुनाव के परिणाम के बाद से बने माहौल को बनाए रखना चुनौती है। योगी और बंटेंगे तो कटेंगे की परीक्षा
सीएम योगी आदित्यनाथ ने उप चुनाव की घोषणा से पहले 26 अक्टूबर को आगरा में ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ और ‘एक रहेंगे तो नेक रहेंगे’ का नारा दिया। योगी के इस संदेश पर भाजपा और आरएसएस ने भी मुहर लगाई। इतना ही नहीं इस नारे का हरियाणा विधानसभा चुनाव में काफी लाभ मिला। महाराष्ट्र और झारखंड विधानसभा चुनाव में भी भाजपा ने यही नारा दिया। राजनीतिक हल्कों में चर्चा है कि यूपी उप चुनाव के नतीजे बताएंगे कि योगी का यह नारा राज्य में कितना कारगर रहा। उप चुनाव में यह प्रयोग सफल रहा तो 2027 तक इसी लाइन पर राजनीति आगे बढ़ेगी। राजनीतिक विश्लेषक वीरेंद्रनाथ भट्ट कहते हैं- लोकसभा चुनाव में यूपी में भाजपा की हार हुई। भाजपा 2019 लोकसभा चुनाव में जीती 64 सीटों के मुकाबले 2024 में 33 सीटों पर सिमट गई। उसके बाद हरियाणा विधानसभा चुनाव में भाजपा की अप्रत्याशित जीत हुई। वहीं, झारखंड और महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के रुझान भी भाजपा के पक्ष में नजर आ रहे हैं। उनका मानना है कि ऐसे में योगी आदित्यनाथ पर बेहतर प्रदर्शन करने का दबाव है। भाजपा और आरएसएस ने योगी को इस बार फ्री हैंड भी दिया है। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि बंटेंगे तो कटेंगे नारे से किनारा करने डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य को 24 घंटे के भीतर यू-टर्न लेना पड़ा। उनका कहना है कि यह ऐसे ही नहीं हुआ है। उनका मानना है कि उप चुनाव के बीच केशव के विरोधीभासी बयान को भाजपा और संघ के शीर्ष नेतृत्व ने गंभीरता से लेते हुए अवश्य नाराजगी जाहिर की होगी। अब बात राजनीतिक दलों के प्रचार की… योगी ने पांच दिन में कीं 15 रैलियां
सीएम योगी आदित्यनाथ ने उप चुनाव की घोषणा के बाद 8 से 16 नवंबर के बीच पांच दिन में 13 चुनावी रैली और सभा कीं। 2 रोड शो कर माहौल बनाया। फूलपुर, मझवां, खैर, कटेहरी में दो-दो रैली की। वहीं, गाजियाबाद, सीसामऊ में एक-एक रोड शो किया। कुंदरकी, करहल और मीरापुर में एक-एक रैली की। डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने भी सभी नौ सीटों पर एक-एक चुनावी सभा को संबोधित किया। उनका पूरा जोर फूलपुर और मझवां सीट पर रहा है। उप मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक ने भी उप चुनाव में नौ सीटों पर एक-एक रैली की। सामाजिक संगठनों के साथ बैठकें भी की। पूरी सरकार मैदान में उतरी
योगी सरकार ने नौ सीटों पर सरकार के 30 मंत्रियों की टीम-30 को मैदान में उतारा। जलशक्ति मंत्री स्वतंत्र देव सिंह, वित्त मंत्री सुरेश खन्ना, उच्च शिक्षा मंत्री योगेंद्र उपाध्याय, एमएसएमई मंत्री राकेश सचान, पर्यटन मंत्री जयवीर सिंह, पशुधन मंत्री धर्मपाल सिंह, सहकारिता मंत्री जेपीएस राठौर, कौशल विकास मंत्री कपिल देव अग्रवाल, समाज कल्याण मंत्री असीम अरुण और परिवहन मंत्री दयाशंकर सिंह सहित सरकार के सभी मंत्री बीते दस पंद्रह दिन से नौ सीटों पर चुनाव प्रचार में डटे रहे। मोदी सरकार में राज्यमंत्री और अपना दल (एस) की अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल, प्राविधिक शिक्षा मंत्री आशीष पटेल, मत्स्य मंत्री और निषाद पार्टी के संजय निषाद, पंचायतीराज मंत्री एवं सुभासपा के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर भी चुनाव प्रचार में जुटे। चौधरी के लिए भी बड़ी परीक्षा
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौधरी के लिए भी उप चुनाव बड़ी परीक्षा है। चौधरी का कार्यकाल अंतिम दौर में है। ऐसे में उप चुनाव में अधिकांश सीटें जीतकर ‘अंत भला तो सब भला’ वाली कहावत को चरितार्थ करना चाहते हैं। चौधरी ने सभी नौ सीटों पर दो से तीन बार दौरा किया है। चुनावी सभा संबोधित करने के साथ कार्यकर्ताओं की बैठक और बूथ प्रबंधन पर जोर दिया। कांग्रेस रही उप चुनाव से दूर
उप चुनाव में सपा के साथ सीट बंटवारे को लेकर सहमति नहीं बनने के बाद कांग्रेस अपने दम पर उप चुनाव लड़ने की हिम्मत नहीं जुटा सकी। लिहाजा कांग्रेस नेतृत्व ने उप चुनाव से दूरी बनाए रखने और सैद्धांतिक रूप से सपा का समर्थन करने का निर्णय लिया। मायावती ने प्रत्याशी उतारे, लेकिन खुद घर में रहीं
लोकसभा चुनाव के बाद से बसपा यूपी में राजनीतिक अस्तित्व के लिए जूझ रही है। बसपा ने लंबे अर्से बाद उप चुनाव में प्रत्याशी उतारे हैं। हालांकि बसपा सुप्रीमो मायावती ने चुनाव प्रचार से दूरी बनाए रखी। उनके भतीजे और उत्तराधिकारी आकाश आनंद ने भी कहीं भी चुनावी सभा नहीं की। बसपा के उम्मीदवार कटेहरी, करहल, कुंदरकी और मीरापुर में सपा को नुकसान पहुंचा सकते हैं। वहीं फूलपुर, मझवां और गाजियाबाद में भाजपा को झटका लग सकता है। अखिलेश ने भी पूरी ताकत लगाई, 14 रैलियां कीं
लोकसभा चुनाव में PDA (पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक) की ताकत के बूते सपा ने 37 सीटें जीती थीं। भाजपा पर बढ़त बनाकर उत्साहित सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने उप चुनाव में पूरी ताकत झोंकी। जानकार मानते हैं कि ऐसा पहली बार है जब विपक्ष में रहते हुए अखिलेश यादव ने उप चुनाव में एक-एक सीट पर रैली की है। अखिलेश यादव ने करहल विधानसभा क्षेत्र में तीन बार सपा प्रत्याशी तेज प्रताप यादव के समर्थन में चुनाव प्रचार किया है। एक बार रोड शो और चुनावी रैली की है। कुल 13 रैली और एक रोड शो किया। इससे पहले आजमगढ़, रामपुर जैसी सीटों पर उप चुनाव में अखिलेश प्रचार पर नहीं निकले थे। अखिलेश ने प्रत्याशी चयन में PDA का ध्यान रखा। वहीं, गाजियाबाद जैसी सामान्य वर्ग की सीट पर दलित प्रत्याशी उतारकर पश्चिमी यूपी में जाटव वोट बैंक को साधने की कोशिश की। अखिलेश चुनावी सभाओं में भी योगी सरकार पर पूरी तरह हमलावर रहे। उधर, मैनपुरी की करहल सीट पर अखिलेश की पत्नी डिंपल यादव ने कमान संभाल रखी थी। चाचा शिवपाल यादव कटेहरी में डटे रहे। सहयोगी दल अखिलेश के साथ नहीं
सपा में पहली बार ऐसा हुआ जब पूरा सैफई परिवार तक एकजुट है। लेकिन सपा के सहयोगी राजनीतिक दल साथ नहीं हैं। रालोद और सुभासपा जैसे बड़े क्षेत्रीय दल सपा से नाता तोड़ चुके हैं। वहीं, सपा के सात विधायक भी बगावत कर भाजपा को समर्थन कर रहे हैं। अखिलेश यादव पर भी लोकसभा चुनाव के बाद बने माहौल को बरकरार रखने का दबाव है। राजनीतिक विश्लेषकों की नजर है कि उप चुनाव में सपा का पीडीए फॉर्मूला कारगर रहेगा या ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ के आगे फेल हो जाएगा। सरकार की स्थिरता पर असर नहीं
उप चुनाव के नतीजे यूपी में भविष्य की राजनीति की दिशा अवश्य तय करेंगे। लेकिन इन चुनाव परिणाम से योगी सरकार पर कोई असर नहीं पड़ेगा। मिल्कीपुर का इंतजार बरकरार
अयोध्या जिले की मिल्कीपुर सीट पर विधानसभा उप चुनाव का इंतजार बरकरार है। मिल्कीपुर में भाजपा के बाबा गोरखनाथ की चुनाव याचिका के कारण चुनाव नहीं हो सका है। मामला अभी इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ बेंच में विचाराधीन है। हाईकोर्ट के निर्णय के बाद ही वहां चुनाव हो सकेगा। ——————- ये भी पढ़ें… ‘कुंदरकी में BJP धांधली की तैयारी कर रही’:अखिलेश ने कहा- चीन सीमा जैसी तैयारी है; वोटिंग कम कराने की साजिश यूपी में उपचुनाव की वोटिंग से पहले अखिलेश यादव ने BJP सरकार पर निशाना साधा। रविवार को उन्होंने कुंदरकी में फोर्स के फ्लैग मार्च का वीडियो X पर पोस्ट किया। कहा- BJP वोटिंग को कम करने की साजिश कर रही है। चुनाव आयोग से चेतावनी भरा आग्रह है कि इस साजिश को नाकाम करें। उन्होंने पुलिस और कमांडो के फ्लैग मार्च पर कहा- देखने में ऐसा लग रहा है जैसा चीन सीमा पर युद्ध की तैयारी है। असल में यह मुरादाबाद का कुंदरकी है। यहां 20 नवंबर यानी 3 दिन बाद वोटिंग होनी है। पढ़ें पूरी खबर… ‘उत्तर प्रदेश आजादी के बाद के सबसे कठिन उपचुनावों का गवाह बनने जा रहा है। ये उपचुनाव नहीं हैं, ये रुख चुनाव हैं, जो उप्र के भविष्य का रुख तय करेंगे।’ ये बातें सपा मुखिया अखिलेश यादव ने सोमवार, 18 नवंबर की शाम 4:05 बजे लिखी। इस पोस्ट के एक घंटे बाद विधानसभा उप चुनाव के लिए प्रचार का शोर थम गया। अब 20 नवंबर को वोटिंग है। अखिलेश जानते हैं कि चुनाव के नतीजे यूपी में विधानसभा चुनाव 2027 की राजनीतिक दशा और दिशा तय करेंगे। यही वजह है कि सपा मुखिया हों या यूपी सरकार के प्रमुख योगी, दोनों ने प्रचार में कोई कसर नहीं छोड़ी। योगी ने 5 दिन में 13 रैलियां और 2 रोड शो किया तो अखिलेश ने 13 सभाएं और एक रोड शो किया। उप चुनाव के नतीजे यह भी बताएंगे कि सीएम योगी का ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ और ‘एक रहेंगे तो नेक रहेंगे’ का प्रयोग कितना सफल रहा। वहीं, विपक्ष में रहते हुए पहली बार उप चुनाव में ताकत झोंकने वाले अखिलेश यादव अपने PDA (पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक) के फॉर्मूले को बरकरार रखने में कितना सफल हुए। 9 सीटों पर 90 प्रत्याशियों के बीच मुकाबला
विधानसभा उप चुनाव की नौ सीटों पर 90 प्रत्याशियों के बीच मुकाबला है। सभी नौ सीटों पर भाजपा, सपा और बसपा के बीच त्रिकोणीय मुकाबला है, लेकिन सीधी टक्कर भाजपा और सपा के बीच ही है। विधानसभा चुनाव 2022 में कटेहरी, सीसामऊ, कुंदरकी, करहल सीट सपा के पास थी। जबकि मीरापुर सीट रालोद ने सपा से गठबंधन कर जीती थी। वहीं खैर, फूलपुर, मझवां और गाजियाबाद सीट भाजपा के पास थी। लोकसभा चुनाव 2024 में विधानसभावार सीट आकलन में सामने आया कि कटेहरी, सीसामऊ, कुंदरकी, करहल, मीरापुर और फूलपुर में सपा ने बढ़त बनाई थी। वहीं मझवां, खैर और गाजियाबाद में भाजपा को बढ़त मिली थी। उप चुनाव में भाजपा और योगी सरकार के सामने अधिक से अधिक सीटें जीतकर कार्यकर्ताओं का उत्साह बढ़ाने, जनता के बीच माहौल सुधारने की चुनौती है। वहीं, सपा के सामने लोकसभा चुनाव के परिणाम के बाद से बने माहौल को बनाए रखना चुनौती है। योगी और बंटेंगे तो कटेंगे की परीक्षा
सीएम योगी आदित्यनाथ ने उप चुनाव की घोषणा से पहले 26 अक्टूबर को आगरा में ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ और ‘एक रहेंगे तो नेक रहेंगे’ का नारा दिया। योगी के इस संदेश पर भाजपा और आरएसएस ने भी मुहर लगाई। इतना ही नहीं इस नारे का हरियाणा विधानसभा चुनाव में काफी लाभ मिला। महाराष्ट्र और झारखंड विधानसभा चुनाव में भी भाजपा ने यही नारा दिया। राजनीतिक हल्कों में चर्चा है कि यूपी उप चुनाव के नतीजे बताएंगे कि योगी का यह नारा राज्य में कितना कारगर रहा। उप चुनाव में यह प्रयोग सफल रहा तो 2027 तक इसी लाइन पर राजनीति आगे बढ़ेगी। राजनीतिक विश्लेषक वीरेंद्रनाथ भट्ट कहते हैं- लोकसभा चुनाव में यूपी में भाजपा की हार हुई। भाजपा 2019 लोकसभा चुनाव में जीती 64 सीटों के मुकाबले 2024 में 33 सीटों पर सिमट गई। उसके बाद हरियाणा विधानसभा चुनाव में भाजपा की अप्रत्याशित जीत हुई। वहीं, झारखंड और महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के रुझान भी भाजपा के पक्ष में नजर आ रहे हैं। उनका मानना है कि ऐसे में योगी आदित्यनाथ पर बेहतर प्रदर्शन करने का दबाव है। भाजपा और आरएसएस ने योगी को इस बार फ्री हैंड भी दिया है। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि बंटेंगे तो कटेंगे नारे से किनारा करने डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य को 24 घंटे के भीतर यू-टर्न लेना पड़ा। उनका कहना है कि यह ऐसे ही नहीं हुआ है। उनका मानना है कि उप चुनाव के बीच केशव के विरोधीभासी बयान को भाजपा और संघ के शीर्ष नेतृत्व ने गंभीरता से लेते हुए अवश्य नाराजगी जाहिर की होगी। अब बात राजनीतिक दलों के प्रचार की… योगी ने पांच दिन में कीं 15 रैलियां
सीएम योगी आदित्यनाथ ने उप चुनाव की घोषणा के बाद 8 से 16 नवंबर के बीच पांच दिन में 13 चुनावी रैली और सभा कीं। 2 रोड शो कर माहौल बनाया। फूलपुर, मझवां, खैर, कटेहरी में दो-दो रैली की। वहीं, गाजियाबाद, सीसामऊ में एक-एक रोड शो किया। कुंदरकी, करहल और मीरापुर में एक-एक रैली की। डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने भी सभी नौ सीटों पर एक-एक चुनावी सभा को संबोधित किया। उनका पूरा जोर फूलपुर और मझवां सीट पर रहा है। उप मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक ने भी उप चुनाव में नौ सीटों पर एक-एक रैली की। सामाजिक संगठनों के साथ बैठकें भी की। पूरी सरकार मैदान में उतरी
योगी सरकार ने नौ सीटों पर सरकार के 30 मंत्रियों की टीम-30 को मैदान में उतारा। जलशक्ति मंत्री स्वतंत्र देव सिंह, वित्त मंत्री सुरेश खन्ना, उच्च शिक्षा मंत्री योगेंद्र उपाध्याय, एमएसएमई मंत्री राकेश सचान, पर्यटन मंत्री जयवीर सिंह, पशुधन मंत्री धर्मपाल सिंह, सहकारिता मंत्री जेपीएस राठौर, कौशल विकास मंत्री कपिल देव अग्रवाल, समाज कल्याण मंत्री असीम अरुण और परिवहन मंत्री दयाशंकर सिंह सहित सरकार के सभी मंत्री बीते दस पंद्रह दिन से नौ सीटों पर चुनाव प्रचार में डटे रहे। मोदी सरकार में राज्यमंत्री और अपना दल (एस) की अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल, प्राविधिक शिक्षा मंत्री आशीष पटेल, मत्स्य मंत्री और निषाद पार्टी के संजय निषाद, पंचायतीराज मंत्री एवं सुभासपा के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर भी चुनाव प्रचार में जुटे। चौधरी के लिए भी बड़ी परीक्षा
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौधरी के लिए भी उप चुनाव बड़ी परीक्षा है। चौधरी का कार्यकाल अंतिम दौर में है। ऐसे में उप चुनाव में अधिकांश सीटें जीतकर ‘अंत भला तो सब भला’ वाली कहावत को चरितार्थ करना चाहते हैं। चौधरी ने सभी नौ सीटों पर दो से तीन बार दौरा किया है। चुनावी सभा संबोधित करने के साथ कार्यकर्ताओं की बैठक और बूथ प्रबंधन पर जोर दिया। कांग्रेस रही उप चुनाव से दूर
उप चुनाव में सपा के साथ सीट बंटवारे को लेकर सहमति नहीं बनने के बाद कांग्रेस अपने दम पर उप चुनाव लड़ने की हिम्मत नहीं जुटा सकी। लिहाजा कांग्रेस नेतृत्व ने उप चुनाव से दूरी बनाए रखने और सैद्धांतिक रूप से सपा का समर्थन करने का निर्णय लिया। मायावती ने प्रत्याशी उतारे, लेकिन खुद घर में रहीं
लोकसभा चुनाव के बाद से बसपा यूपी में राजनीतिक अस्तित्व के लिए जूझ रही है। बसपा ने लंबे अर्से बाद उप चुनाव में प्रत्याशी उतारे हैं। हालांकि बसपा सुप्रीमो मायावती ने चुनाव प्रचार से दूरी बनाए रखी। उनके भतीजे और उत्तराधिकारी आकाश आनंद ने भी कहीं भी चुनावी सभा नहीं की। बसपा के उम्मीदवार कटेहरी, करहल, कुंदरकी और मीरापुर में सपा को नुकसान पहुंचा सकते हैं। वहीं फूलपुर, मझवां और गाजियाबाद में भाजपा को झटका लग सकता है। अखिलेश ने भी पूरी ताकत लगाई, 14 रैलियां कीं
लोकसभा चुनाव में PDA (पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक) की ताकत के बूते सपा ने 37 सीटें जीती थीं। भाजपा पर बढ़त बनाकर उत्साहित सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने उप चुनाव में पूरी ताकत झोंकी। जानकार मानते हैं कि ऐसा पहली बार है जब विपक्ष में रहते हुए अखिलेश यादव ने उप चुनाव में एक-एक सीट पर रैली की है। अखिलेश यादव ने करहल विधानसभा क्षेत्र में तीन बार सपा प्रत्याशी तेज प्रताप यादव के समर्थन में चुनाव प्रचार किया है। एक बार रोड शो और चुनावी रैली की है। कुल 13 रैली और एक रोड शो किया। इससे पहले आजमगढ़, रामपुर जैसी सीटों पर उप चुनाव में अखिलेश प्रचार पर नहीं निकले थे। अखिलेश ने प्रत्याशी चयन में PDA का ध्यान रखा। वहीं, गाजियाबाद जैसी सामान्य वर्ग की सीट पर दलित प्रत्याशी उतारकर पश्चिमी यूपी में जाटव वोट बैंक को साधने की कोशिश की। अखिलेश चुनावी सभाओं में भी योगी सरकार पर पूरी तरह हमलावर रहे। उधर, मैनपुरी की करहल सीट पर अखिलेश की पत्नी डिंपल यादव ने कमान संभाल रखी थी। चाचा शिवपाल यादव कटेहरी में डटे रहे। सहयोगी दल अखिलेश के साथ नहीं
सपा में पहली बार ऐसा हुआ जब पूरा सैफई परिवार तक एकजुट है। लेकिन सपा के सहयोगी राजनीतिक दल साथ नहीं हैं। रालोद और सुभासपा जैसे बड़े क्षेत्रीय दल सपा से नाता तोड़ चुके हैं। वहीं, सपा के सात विधायक भी बगावत कर भाजपा को समर्थन कर रहे हैं। अखिलेश यादव पर भी लोकसभा चुनाव के बाद बने माहौल को बरकरार रखने का दबाव है। राजनीतिक विश्लेषकों की नजर है कि उप चुनाव में सपा का पीडीए फॉर्मूला कारगर रहेगा या ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ के आगे फेल हो जाएगा। सरकार की स्थिरता पर असर नहीं
उप चुनाव के नतीजे यूपी में भविष्य की राजनीति की दिशा अवश्य तय करेंगे। लेकिन इन चुनाव परिणाम से योगी सरकार पर कोई असर नहीं पड़ेगा। मिल्कीपुर का इंतजार बरकरार
अयोध्या जिले की मिल्कीपुर सीट पर विधानसभा उप चुनाव का इंतजार बरकरार है। मिल्कीपुर में भाजपा के बाबा गोरखनाथ की चुनाव याचिका के कारण चुनाव नहीं हो सका है। मामला अभी इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ बेंच में विचाराधीन है। हाईकोर्ट के निर्णय के बाद ही वहां चुनाव हो सकेगा। ——————- ये भी पढ़ें… ‘कुंदरकी में BJP धांधली की तैयारी कर रही’:अखिलेश ने कहा- चीन सीमा जैसी तैयारी है; वोटिंग कम कराने की साजिश यूपी में उपचुनाव की वोटिंग से पहले अखिलेश यादव ने BJP सरकार पर निशाना साधा। रविवार को उन्होंने कुंदरकी में फोर्स के फ्लैग मार्च का वीडियो X पर पोस्ट किया। कहा- BJP वोटिंग को कम करने की साजिश कर रही है। चुनाव आयोग से चेतावनी भरा आग्रह है कि इस साजिश को नाकाम करें। उन्होंने पुलिस और कमांडो के फ्लैग मार्च पर कहा- देखने में ऐसा लग रहा है जैसा चीन सीमा पर युद्ध की तैयारी है। असल में यह मुरादाबाद का कुंदरकी है। यहां 20 नवंबर यानी 3 दिन बाद वोटिंग होनी है। पढ़ें पूरी खबर… उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर