मेरी दोनों बेटियां अंदर थीं। आग और धुआं उठा, तो मैं वार्ड की तरफ भागा। तभी बिजली चली गई। कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि क्या करूं? तभी सब खिड़की तोड़ने में लग गए। खिड़की टूटी, तो मैं अंदर कूद गया। मैं अपनी दोनों बेटियों को खोज रहा था। वहां जो भी बच्चा मिला, मैं उसे खिड़की से बाहर खड़े लोगों को पकड़ाता रहा। 7 बच्चों को बाहर निकाल लाया, लेकिन मेरी दोनों बेटियां नहीं मिलीं। आधे घंटे बाद उनकी जली लाश मिली। मां तो बेटियों का चेहरा भी नहीं देख पाई थी। यह कहना है हमीरपुर के रहने वाले याकूब का। झांसी मेडिकल कॉलेज के अग्निकांड में उनकी 5 दिन की जुड़वां बेटियों की मौत हो गई। याकूब की पत्नी नजमा बेटियों की मौत से बदहवास हैं। उनकी मां और सास ढांढस बंधाती रहती हैं। दैनिक भास्कर की टीम झांसी मेडिकल कॉलेज से करीब 130 किलोमीटर दूर हमीरपुर के राठ कस्बे पहुंची। हम याकूब के परिवार से मिले। उनसे उस रात हुई घटना का सच जानने की कोशिश की। पहले याकूब के परिवार के बारे में जानिए पिछले साल हुई थी शादी, अब इतना बड़ा सदमा लगा
सिकंदरपुरा इलाके में याकूब का घर है। घर के बाहर परिवार के लोग शांत बैठे थे। हमने पहले परिवार से बात की। वे बताते हैं कि याकूब बड़े भाई यामीन की दुकान पर बक्सा बनाने का काम करते हैं। उनकी शादी 9 अक्टूबर, 2023 को हुई थी। बारात छतरपुर के एक गांव गई थी। सब कुछ बहुत अच्छे से हुआ। मार्च में याकूब की पत्नी नजमा प्रेग्नेंट गर्भवती हुईं। सभी उनका ख्याल रखने लगे। याकूब ने भी समय-समय पर नजमा की जांच करवाई। नजमा का अल्ट्रासाउंड हुआ तो पता चला कि जुड़वां बच्चे हैं। ये सुनकर परिवार के लोगों की खुशी दोगुनी हो गई। डिलीवरी की डेट 10 से 15 नवंबर थी। लेकिन, 7 नवंबर की रात अचानक नजमा को लेबर पेन शुरू हो गया। परिवार के लोग उनको लेकर राठ सीएचसी पहुंचे। राठ में डॉक्टरों ने जांच की और स्थिति को गंभीर देखा, तो उरई मेडिकल कॉलेज रेफर कर दिया। परिवार नजमा को 8 नवंबर को उरई लेकर पहुंचा। वहां भी स्थिति में सुधार नहीं हुआ। डॉक्टरों ने यह तक कह दिया कि या तो बच्चा बचेगा या फिर नजमा। याकूब और उनकी मां दोनों को बचाना चाहते थे, इसलिए डॉक्टरों से बात की। डॉक्टरों ने उन्हें झांसी मेडिकल कॉलेज जाने की सलाह दी और वहां रेफर कर दिया। पत्नी ने बच्चों को जन्म दिया लेकिन देख नहीं पाई
याकूब बताते हैं- उरई से नजमा को रेफर करते समय डॉक्टरों ने कहा था कि यहां अगर डिलीवरी होती है तो बच्चों के लिए वह सुविधा नहीं है, जो झांसी मेडिकल कॉलेज में है। ऐसे में वहीं जाना ही ठीक रहेगा। हम नजमा को वहां लेकर पहुंचे। 9 नवंबर की शाम को दोनों बेटियों का जन्म हुआ। हम 5 मिनट भी नहीं देख पाए थे, तभी बच्चों को स्पेशल न्यू बॉर्न केयर यूनिट (SNCU) में लेकर चले गए। नजमा तो अपनी बेटियों का चेहरा भी नहीं देख पाई थी। याकूब से हमने पूछा कि क्या नजमा ने अपने बच्चों को दूध पिलाया था? वह कहते हैं- नजमा की स्थिति ऐसी नहीं थी कि वह दूध पिला सके। हम बाहर से दूध लेकर आते थे और गिलास में नर्स को दे देते थे। वही दूध बेटियों के पेट में जा रहा था। हमारी कोशिश यही थी कि जल्दी से स्थिति नॉर्मल हो। बेटियां 5 दिन की हो गई थीं। डॉक्टरों ने बताया भी कि बच्चियों की स्थिति में सुधार हो रहा है। आग और धुएं के बीच बेटियों को खोजता रहा
घटना को लेकर याकूब बताते हैं- 15 नवंबर की रात 10 बजे अनाउंसमेंट हुआ कि मां अपने बच्चों को आकर दूध पिला दें। बाहर सारे लोग बैठे खाना खा रहे थे और मां अपने बच्चों को दूध पिलाने के लिए अंदर चली गईं। तभी एक महिला भागते हुए आई और बोली कि अंदर आग लग गई है। सभी SNCU की तरफ तेजी से भागे, लेकिन तब तक अंदर आग भड़क चुकी थी। हर तरफ धुआं भर गया था। इसी बीच लाइट भी काट दी गई, तो किसी को कुछ दिख ही नहीं रहा था। याकूब बताते हैं- मेरी बेटियां 5 दिन से अंदर भर्ती थीं, लेकिन मुझे नहीं पता था कि वह कहां भर्ती हैं? इसी बीच आसपास के लोग बोले कि बाहर से जो खिड़की है, उसे तोड़ा जाए। लोग उसे तोड़ने लगे। जैसे ही खिड़की टूटी, मैं अंदर चला गया। वहां कुछ भी नहीं दिख रहा था। मैं अपनी दोनों बेटियों को खोज रहा था। मुझे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था। जो भी बच्चा दिखा, उसे उठाकर बाहर देने लगा। इसी बीच कुछ और फायर ब्रिगेड के लोग अंदर पहुंचे। आग बुझाने की कोशिश करने लगे। आसपास के लोग भी वहीं रखे फायर सिलेंडर से आग बुझाने में लग गए। कुछ देर बाद अंदर से बच्चों की लाशें निकलने लगीं। उन्हीं में याकूब की दोनों बेटियां भी थीं। यह याकूब के लिए किसी बुरे सपने से कम नहीं था। उन्होंने 7 बच्चों को बचाया, लेकिन उनके हाथ में उनकी दो बेटियों की लाश आई। परिवार में ऐसा हादसा कभी नहीं हुआ
हमने याकूब की मां बिलकिस से बात की। वह कहती हैं- जब हम राठ से उरई मेडिकल कॉलेज लेकर गए तो वहां कहा गया कि बच्ची को बचा लीजिए या फिर मां को। हमने डॉक्टरों से कहा कि हमें दोनों बचाना है। तब डॉक्टरों ने कहा कि झांसी लेकर जाइए। वहां गए, तो बच्चों का जन्म हुआ। जब घटना हुई, तब नजमा दूसरे वार्ड में थी। वह वार्ड बच्चों से बहुत दूर था। हम नजमा के ही साथ थे। हमारे परिवार में ऐसा कभी नहीं हुआ था। दो और बेटे हैं, उनके भी दो-दो बच्चे हैं। इस बहू की पहली डिलीवरी हुई और इतना बड़ा हादसा हो गया। डिलीवरी वाले दिन को याद करते हुए बिलकिस कहती हैं- डिलीवरी के बाद हॉस्पिटल में साफ-सफाई करने वाली महिला बच्चा लेकर आई और मुझे हाथ में देते हुए कहा, पैसा दीजिए। हमने खुशी-खुशी 500 रुपए दे दिए। उसके बाद हम बच्चों को नहीं देख पाए, उन्हें मशीन में रख दिया गया। नजमा ने एक बार भी बच्चे को छुआ तक नहीं था। नजमा की मां बोलीं- बेटी की डिलीवरी से परिवार में खुशी थी
बेटी की बच्चियों की दर्दनाक मौत की खबर सुनकर नजमा की मां भी सिकंदरपुरा आ गईं। वह कहती हैं- मेरे 4 बच्चे हैं, नजमा सबसे बड़ी है। हमारा घर छतरपुर में है, लेकिन हम सभी जम्मू-कश्मीर में रहते हैं। वहीं मजदूरी करते हैं। जब डिलीवरी की खबर सुनी, तो सब लोग खुश थे। उसके बाद जब हॉस्पिटल में आग लगने की खबर मिली, तो सारी खुशी खत्म हो गईं। हमने नजमा की स्थिति के बारे में पूछा तो वह कहती हैं, कुछ नहीं बचा। मेरा दामाद भी टेंशन में है। पूरे परिवार के लोग दुखी हैं। हमने नजमा से भी बात करने की कोशिश की, लेकिन उनका रो-रोकर बुरा हाल है। वह बात करने की स्थिति में नहीं थी। अधिकारियों ने घटना के बाद रोज संपर्क किया
हमने याकूब के बड़े भाई यामीन से बात की। वह कहते हैं- जब डिलीवरी हुई थी, तब से 5 दिन तक हम वहीं रहे। लेकिन जिस दिन घटना हुई, हम वापस आ गए थे। किसी को पता नहीं था कि बच्चियों को कहां रखा गया है? इसलिए भाई आग लगने के बाद वहां तक पहुंच ही नहीं पाया। अधिकारियों के संपर्क करने के सवाल पर यामीन कहते हैं- हां, झांसी में भी अधिकारियों ने संपर्क किया। यहां भी रोज आते हैं। सारे कागज लिए हैं। इस हादसे में जिन परिवारों के बच्चों की मौत हुई, उन्हें राज्य सरकार की तरफ से 5 लाख रुपए और केंद्र सरकार की तरफ से 2-2 लाख रुपए मुआवजे की घोषणा की गई है। अधिकारी सभी पीड़ित परिवारों से संपर्क करके कागज ले रहे हैं। कागज पूरे होने के बाद सभी को मुआवजे की राशि दी जाएगी। ———— ये भी पढ़ें… 7 मासूमों को बचाया…खुद की जुड़वां बेटियां जिंदा जलीं, झांसी मेडिकल कॉलेज अग्निकांड-हमीरपुर के याकूब ने पेश की बहादुरी की मिसाल झांसी के महारानी लक्ष्मीबाई मेडिकल कॉलेज में शिशु वार्ड (एसएनसीयू) में शुक्रवार रात भीषण आग लग गई। जिसमें झुलस कर 12 नवजात बच्चों की मौत हो गई। चाइल्ड वार्ड की खिड़की तोड़कर शवों को बाहर निकाला गया था। इसी अग्निकांड में हमीरपुर के राठ निवासी याकूब ने अपनी दो जुड़वा बेटियों को खो दिया। याकूब दोनों नवजात को सांस लेने में दिक्कत होने पर इलाज किए झांसी लेकर आए थे। उस रात आग लगने पर याकूब वार्ड से 7 बच्चों को निकाल लाए, इसी चक्कर में वे खुद की बेटियों को निकालना भूल गए। पढ़ें पूरी खबर… मेरी दोनों बेटियां अंदर थीं। आग और धुआं उठा, तो मैं वार्ड की तरफ भागा। तभी बिजली चली गई। कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि क्या करूं? तभी सब खिड़की तोड़ने में लग गए। खिड़की टूटी, तो मैं अंदर कूद गया। मैं अपनी दोनों बेटियों को खोज रहा था। वहां जो भी बच्चा मिला, मैं उसे खिड़की से बाहर खड़े लोगों को पकड़ाता रहा। 7 बच्चों को बाहर निकाल लाया, लेकिन मेरी दोनों बेटियां नहीं मिलीं। आधे घंटे बाद उनकी जली लाश मिली। मां तो बेटियों का चेहरा भी नहीं देख पाई थी। यह कहना है हमीरपुर के रहने वाले याकूब का। झांसी मेडिकल कॉलेज के अग्निकांड में उनकी 5 दिन की जुड़वां बेटियों की मौत हो गई। याकूब की पत्नी नजमा बेटियों की मौत से बदहवास हैं। उनकी मां और सास ढांढस बंधाती रहती हैं। दैनिक भास्कर की टीम झांसी मेडिकल कॉलेज से करीब 130 किलोमीटर दूर हमीरपुर के राठ कस्बे पहुंची। हम याकूब के परिवार से मिले। उनसे उस रात हुई घटना का सच जानने की कोशिश की। पहले याकूब के परिवार के बारे में जानिए पिछले साल हुई थी शादी, अब इतना बड़ा सदमा लगा
सिकंदरपुरा इलाके में याकूब का घर है। घर के बाहर परिवार के लोग शांत बैठे थे। हमने पहले परिवार से बात की। वे बताते हैं कि याकूब बड़े भाई यामीन की दुकान पर बक्सा बनाने का काम करते हैं। उनकी शादी 9 अक्टूबर, 2023 को हुई थी। बारात छतरपुर के एक गांव गई थी। सब कुछ बहुत अच्छे से हुआ। मार्च में याकूब की पत्नी नजमा प्रेग्नेंट गर्भवती हुईं। सभी उनका ख्याल रखने लगे। याकूब ने भी समय-समय पर नजमा की जांच करवाई। नजमा का अल्ट्रासाउंड हुआ तो पता चला कि जुड़वां बच्चे हैं। ये सुनकर परिवार के लोगों की खुशी दोगुनी हो गई। डिलीवरी की डेट 10 से 15 नवंबर थी। लेकिन, 7 नवंबर की रात अचानक नजमा को लेबर पेन शुरू हो गया। परिवार के लोग उनको लेकर राठ सीएचसी पहुंचे। राठ में डॉक्टरों ने जांच की और स्थिति को गंभीर देखा, तो उरई मेडिकल कॉलेज रेफर कर दिया। परिवार नजमा को 8 नवंबर को उरई लेकर पहुंचा। वहां भी स्थिति में सुधार नहीं हुआ। डॉक्टरों ने यह तक कह दिया कि या तो बच्चा बचेगा या फिर नजमा। याकूब और उनकी मां दोनों को बचाना चाहते थे, इसलिए डॉक्टरों से बात की। डॉक्टरों ने उन्हें झांसी मेडिकल कॉलेज जाने की सलाह दी और वहां रेफर कर दिया। पत्नी ने बच्चों को जन्म दिया लेकिन देख नहीं पाई
याकूब बताते हैं- उरई से नजमा को रेफर करते समय डॉक्टरों ने कहा था कि यहां अगर डिलीवरी होती है तो बच्चों के लिए वह सुविधा नहीं है, जो झांसी मेडिकल कॉलेज में है। ऐसे में वहीं जाना ही ठीक रहेगा। हम नजमा को वहां लेकर पहुंचे। 9 नवंबर की शाम को दोनों बेटियों का जन्म हुआ। हम 5 मिनट भी नहीं देख पाए थे, तभी बच्चों को स्पेशल न्यू बॉर्न केयर यूनिट (SNCU) में लेकर चले गए। नजमा तो अपनी बेटियों का चेहरा भी नहीं देख पाई थी। याकूब से हमने पूछा कि क्या नजमा ने अपने बच्चों को दूध पिलाया था? वह कहते हैं- नजमा की स्थिति ऐसी नहीं थी कि वह दूध पिला सके। हम बाहर से दूध लेकर आते थे और गिलास में नर्स को दे देते थे। वही दूध बेटियों के पेट में जा रहा था। हमारी कोशिश यही थी कि जल्दी से स्थिति नॉर्मल हो। बेटियां 5 दिन की हो गई थीं। डॉक्टरों ने बताया भी कि बच्चियों की स्थिति में सुधार हो रहा है। आग और धुएं के बीच बेटियों को खोजता रहा
घटना को लेकर याकूब बताते हैं- 15 नवंबर की रात 10 बजे अनाउंसमेंट हुआ कि मां अपने बच्चों को आकर दूध पिला दें। बाहर सारे लोग बैठे खाना खा रहे थे और मां अपने बच्चों को दूध पिलाने के लिए अंदर चली गईं। तभी एक महिला भागते हुए आई और बोली कि अंदर आग लग गई है। सभी SNCU की तरफ तेजी से भागे, लेकिन तब तक अंदर आग भड़क चुकी थी। हर तरफ धुआं भर गया था। इसी बीच लाइट भी काट दी गई, तो किसी को कुछ दिख ही नहीं रहा था। याकूब बताते हैं- मेरी बेटियां 5 दिन से अंदर भर्ती थीं, लेकिन मुझे नहीं पता था कि वह कहां भर्ती हैं? इसी बीच आसपास के लोग बोले कि बाहर से जो खिड़की है, उसे तोड़ा जाए। लोग उसे तोड़ने लगे। जैसे ही खिड़की टूटी, मैं अंदर चला गया। वहां कुछ भी नहीं दिख रहा था। मैं अपनी दोनों बेटियों को खोज रहा था। मुझे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था। जो भी बच्चा दिखा, उसे उठाकर बाहर देने लगा। इसी बीच कुछ और फायर ब्रिगेड के लोग अंदर पहुंचे। आग बुझाने की कोशिश करने लगे। आसपास के लोग भी वहीं रखे फायर सिलेंडर से आग बुझाने में लग गए। कुछ देर बाद अंदर से बच्चों की लाशें निकलने लगीं। उन्हीं में याकूब की दोनों बेटियां भी थीं। यह याकूब के लिए किसी बुरे सपने से कम नहीं था। उन्होंने 7 बच्चों को बचाया, लेकिन उनके हाथ में उनकी दो बेटियों की लाश आई। परिवार में ऐसा हादसा कभी नहीं हुआ
हमने याकूब की मां बिलकिस से बात की। वह कहती हैं- जब हम राठ से उरई मेडिकल कॉलेज लेकर गए तो वहां कहा गया कि बच्ची को बचा लीजिए या फिर मां को। हमने डॉक्टरों से कहा कि हमें दोनों बचाना है। तब डॉक्टरों ने कहा कि झांसी लेकर जाइए। वहां गए, तो बच्चों का जन्म हुआ। जब घटना हुई, तब नजमा दूसरे वार्ड में थी। वह वार्ड बच्चों से बहुत दूर था। हम नजमा के ही साथ थे। हमारे परिवार में ऐसा कभी नहीं हुआ था। दो और बेटे हैं, उनके भी दो-दो बच्चे हैं। इस बहू की पहली डिलीवरी हुई और इतना बड़ा हादसा हो गया। डिलीवरी वाले दिन को याद करते हुए बिलकिस कहती हैं- डिलीवरी के बाद हॉस्पिटल में साफ-सफाई करने वाली महिला बच्चा लेकर आई और मुझे हाथ में देते हुए कहा, पैसा दीजिए। हमने खुशी-खुशी 500 रुपए दे दिए। उसके बाद हम बच्चों को नहीं देख पाए, उन्हें मशीन में रख दिया गया। नजमा ने एक बार भी बच्चे को छुआ तक नहीं था। नजमा की मां बोलीं- बेटी की डिलीवरी से परिवार में खुशी थी
बेटी की बच्चियों की दर्दनाक मौत की खबर सुनकर नजमा की मां भी सिकंदरपुरा आ गईं। वह कहती हैं- मेरे 4 बच्चे हैं, नजमा सबसे बड़ी है। हमारा घर छतरपुर में है, लेकिन हम सभी जम्मू-कश्मीर में रहते हैं। वहीं मजदूरी करते हैं। जब डिलीवरी की खबर सुनी, तो सब लोग खुश थे। उसके बाद जब हॉस्पिटल में आग लगने की खबर मिली, तो सारी खुशी खत्म हो गईं। हमने नजमा की स्थिति के बारे में पूछा तो वह कहती हैं, कुछ नहीं बचा। मेरा दामाद भी टेंशन में है। पूरे परिवार के लोग दुखी हैं। हमने नजमा से भी बात करने की कोशिश की, लेकिन उनका रो-रोकर बुरा हाल है। वह बात करने की स्थिति में नहीं थी। अधिकारियों ने घटना के बाद रोज संपर्क किया
हमने याकूब के बड़े भाई यामीन से बात की। वह कहते हैं- जब डिलीवरी हुई थी, तब से 5 दिन तक हम वहीं रहे। लेकिन जिस दिन घटना हुई, हम वापस आ गए थे। किसी को पता नहीं था कि बच्चियों को कहां रखा गया है? इसलिए भाई आग लगने के बाद वहां तक पहुंच ही नहीं पाया। अधिकारियों के संपर्क करने के सवाल पर यामीन कहते हैं- हां, झांसी में भी अधिकारियों ने संपर्क किया। यहां भी रोज आते हैं। सारे कागज लिए हैं। इस हादसे में जिन परिवारों के बच्चों की मौत हुई, उन्हें राज्य सरकार की तरफ से 5 लाख रुपए और केंद्र सरकार की तरफ से 2-2 लाख रुपए मुआवजे की घोषणा की गई है। अधिकारी सभी पीड़ित परिवारों से संपर्क करके कागज ले रहे हैं। कागज पूरे होने के बाद सभी को मुआवजे की राशि दी जाएगी। ———— ये भी पढ़ें… 7 मासूमों को बचाया…खुद की जुड़वां बेटियां जिंदा जलीं, झांसी मेडिकल कॉलेज अग्निकांड-हमीरपुर के याकूब ने पेश की बहादुरी की मिसाल झांसी के महारानी लक्ष्मीबाई मेडिकल कॉलेज में शिशु वार्ड (एसएनसीयू) में शुक्रवार रात भीषण आग लग गई। जिसमें झुलस कर 12 नवजात बच्चों की मौत हो गई। चाइल्ड वार्ड की खिड़की तोड़कर शवों को बाहर निकाला गया था। इसी अग्निकांड में हमीरपुर के राठ निवासी याकूब ने अपनी दो जुड़वा बेटियों को खो दिया। याकूब दोनों नवजात को सांस लेने में दिक्कत होने पर इलाज किए झांसी लेकर आए थे। उस रात आग लगने पर याकूब वार्ड से 7 बच्चों को निकाल लाए, इसी चक्कर में वे खुद की बेटियों को निकालना भूल गए। पढ़ें पूरी खबर… उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर