झांसी अग्निकांड…5 नवजात बचाने वाली नर्स की कहानी:कपड़े जले, फिर भी आग में घुसकर उठा लाई, बोलीं- वो रात कभी नहीं भूल सकती ‘मैं नाइट ड्यूटी पर थी। रजिस्टर पर बच्चों की दवा लिख रही थी। NICU में ऑक्सीजन कॉन्सन्ट्रेटर रखा था। हमें शॉर्ट सर्किट होने का पता चला। मगर कुछ समझ पाने से पहले चिंगारी आक्सीजन तक पहुंच गई। देखते-देखते पूरे केबिन में आग फैल गई।’ यह कहना है झांसी मेडिकल कॉलेज की स्टाफ नर्स मेघा का। अग्निकांड वाली रात उनकी ड्यूटी चाइल्ड वार्ड में थी। वह कहती हैं- हम थोड़ी दूर थे, इसलिए बच गए। आग देखकर जिन बच्चों को उठाकर बाहर भाग सकती थी, मैं भागी। मगर आग से मेरी सलवार जल गई। पैर झुलस गए, बच्चों को सुरक्षित बाहर छोड़कर वापस अंदर आई। बगल के कमरे में जाकर दूसरी सलवार पहनी। फिर दोबारा आग में गई, 3 बच्चों बचाकर बाहर ले आई। यह कहते हुए नर्स मेघा मायूस हो जाती हैं। वह आगे कहती हैं- वो रात बहुत भयानक थी, कभी नहीं भूल सकती हूं। मैं जब बच्चों को जलते हुए देख रही थी, उस दर्द को अभी तक महसूस करती हूं। ऐसा मंजर कभी नहीं देखा। झांसी मेडिकल कॉलेज में 10 नवजात की मौत के बाद स्थितियों को और करीब से समझने के लिए भास्कर टीम बर्न वार्ड पहुंची। यहां स्टाफ नर्स मेघा से मुलाकात हुई। हमने अग्निकांड के वक्त चाइल्ड वार्ड में क्या-कुछ हुआ, ये उनसे जाना। पहली चिंगारी कॉन्सेंट्रेटर से निकली, फिर सब कुछ जलने लगा
मेघा कहती हैं- रात में 4 स्टाफ नर्स और वार्ड बॉय, 2 जूनियर डॉक्टर की ड्यूटी थी। हम लोग साफ-सफाई करके मशीनों में मौजूद बच्चों को चेक कर रहे थे। वहीं पर एक ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर में अचानक शॉर्ट सर्किट हुआ। चिंगारी निकली, मुझे ऐसा लगता है कि कॉन्सेंट्रेटर में लीकेज थी। क्योंकि आग बहुत तेजी से फैली। मेघा बताती हैं- मेरी यूनिफॉर्म सिंथेटिक कपड़े की थी। इस वजह से तेजी से आग पकड़ ली। मैंने सलवार उतारकर फेंक दी। उसके बाद 2 बच्चों को लेकर बाहर भागी। उस वक्त मुझे लगा कि इज्जत से ज्यादा बच्चों की जान जरूरी है। बच्चों को सुरक्षित बाहर छोड़ने के बाद दोबारा अंदर आई, बगल के कमरे में मेरी एक और यूनिफॉर्म रखी थी। जल्दी-जल्दी पहनी, फिर से वार्ड में घुस गई। 3 और बच्चों को उठाया और तेजी से बाहर आ गई। मगर तब तक पैर जल चुके थे। मास्क लगाकर अंदर आई, मगर 5 मिनट भी नहीं टिक पाई
मेघा कहती हैं- अचानक अस्पताल की लाइट काट दी गई। वार्ड में इस कदर धुआं भर गया कि कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। मैंने मास्क लगाया, मगर अंदर 5 मिनट भी खड़े रह पाना मुश्किल था। धुआं और अंधेरा देखकर हम हिम्मत हार गए। बाकी स्टाफ भी अंदर जाने का प्रयास कर रहा था, मगर धुएं के आगे हम सब बेबस हो गए। कोई कुछ नहीं कर पाया। जिन डॉक्टर पर बच्चों के इलाज की जिम्मेदारी, वे भी बीमार
मेघा ने कहा- उन बच्चों की डिलीवरी हमारे स्टाफ ने अपने हाथ से करवाई थी। वह बच्चे हमें जान से प्यारे थे। जिन डॉक्टरों पर उन बच्चों के इलाज की जिम्मेदारी थी। उनमें से एक के पैर में अर्थराइटिस थी, दूसरे के पैर में भी समस्या थी। इसके बावजूद दोनों जुटे रहे। बच्चों को बाहर निकालने में पूरी मदद की। मेरे बच्चे का जन्मदिन, डाक्टरों ने यहीं रहने को कहा है
मेघा का दायां पैर जल गया है। उन्हें न्यू बिल्डिंग के बर्न वॉर्ड में एडमिट किया गया है। वह कहती हैं कि मेरे दो बच्चे हैं। एक नौ साल का, एक 12 साल का। छोटे वाले का जन्मदिन 27 नवंबर को है। मेघा ने बताया उन्हें डायबिटीज है, टेंशन के कारण शुगर लेवल बढ़ गया है। अब बाहर जाने को मना किया गया है। अब पढ़िए उन मांओं का दर्द, जिन्होंने अपने बच्चे को खो दिया दैनिक भास्कर की टीम ने ऐसी महिलाओं से बात की, जिनके बच्चे या तो हादसे में मर चुके हैं या नहीं मिल रहे। पढ़िए उनका दर्द… अस्पताल में मेरा बच्चा नहीं रोया, यहां सब चीखें सुनाई दे रहीं जालौन की रहने वाली संतोषी अस्पताल की फर्श पर शॉल ओढ़े बैठी हैं। उनके चेहरे पर उदासी है। आंखों के आंसू सूख चुके हैं। उनकी रुंधी हुई आवाज से अंदाजा लगाया जा सकता है कि उनके अंदर अथाह दर्द और पीड़ा है। हमने उनसे पूछा कि वो यहां कब आई थीं, तो वह कहती हैं- 5 नवंबर को डिलीवरी हुई थी। बच्चा रोया नहीं था, इसलिए उसे उरई जिला अस्पताल लेकर पहुंचे। डॉक्टरों ने उसे झांसी मेडिकल कॉलेज रेफर कर दिया। जब हमने उनसे पूछा कि आग लगी, तब आप कहां थीं? जवाब में संतोषी ने कहा- रात को अंदर सो रही थी। आवाज सुनकर बाहर आई। देखा, तो आग लगी थी। चारों तरफ भगदड़ मची थी। लोग अपने बच्चों को लेकर भाग रहे थे। हमें समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें? अंदर गए तो देखा कि मेरा बच्चा ही नहीं था। अब आपको क्या चाहिए? इस सवाल पर संतोषी ने कहा- मुझे सिर्फ मेरा बच्चा चाहिए। क्या आपने बच्चे को देखा? संतोषी ने जवाब दिया- नहीं। कुछ बच्चे दिखाए गए, लेकिन उनमें मेरा बेटा नहीं था। रात से सुबह हो गई, अभी तक बेटे की कोई जानकारी नहीं मिली। इतना कहते हुए संतोषी रो पड़ीं। ‘हमारा बच्चा पूरा जल गया..वो जिंदा नहीं है’ ललितपुर के फुलवारा गांव के रहने वाले सोनू और उनकी पत्नी संजना मेडिकल कॉलेज में मौजूद हैं। संजना फर्श पर बैठकर बीच-बीच में रो पड़ती हैं। वो चीखती हैं, मेरा बच्चा कहां है, मेरा पहला बच्चा था। हाय मेरा बच्चा जल गया…पूरा जल गया। अरे कोई तो दिखा दो, मेरे बच्चे को। पास बैठे पति सोनू उन्हें दिलासा देते हैं, लेकिन उनकी आंखों से भी आंसू नहीं रुक रहे। सोनू ने बताया- 7 अक्टूबर को पत्नी ने बच्चे को जन्म दिया। डिलीवरी के बाद बच्चे को झांसी मेडिकल कॉलेज रेफर कर दिया गया। उसे सांस लेने में दिक्कत थी, क्योंकि 7 महीने में ही पैदा हुआ था। यहां इलाज चल रहा था। 1 महीने से हम लोग यहीं हैं। शुक्रवार को ही बच्चे का सीटी स्कैन हुआ था। डॉक्टर ने बताया- बेटे के माथे में पानी भरा है। डॉक्टर ने दूध पिलाने से मना किया था, इसलिए हम लोग निश्चिंत होकर सो रहे थे। इसी बीच अचानक आग लग गई। हम दौड़कर वार्ड के पास पहुंचे, लेकिन हमें अंदर नहीं जाने दिया। बच्चा कहां है? सोनू ने जवाब दिया- पता नहीं। स्टाफ बोल रहा है कि इमरजेंसी में है, लेकिन मैंने देखा नहीं। कुछ बच्चे खो गए, मिल नहीं रहे हैं। उनकी पत्नी संजना से पूछा- आपका बच्चा कैसा है, तो वह धीमी आवाज में बोलीं- पता नहीं। हमारा बच्चा पूरा जल गया। अब वह जिंदा नहीं है। ये मेरा पहला बच्चा था। यह कहते हुए वह रो पड़ीं। मेरा पोता खत्म हो गया, वो पूरा जला हुआ था ललितपुर के सीरोनकला गांव के रहने वाले निरन बेचैन होकर मेडिकल कॉलेज में घूम रहे हैं। हमने उनसे पूछा कि आपका यहां कौन भर्ती था? उन्होंने बताया- मेरी बहू पूजा का बच्चा भर्ती था। ललितपुर में ऑपरेशन से बच्चा हुआ था। बच्चे का वजन कम था, इसलिए शुक्रवार को बच्चे को यहां लेकर आए। रात में यहां आग लग गई। बच्चे जलकर मर गए। मैंने देखा तो मेरा पोता ऊपर से लेकर नीचे तक जला हुआ था। कैसे पहचाना? जवाब में उन्होंने कहा- नाम की पट्टी लगी हुई थी, उसी से पहचाना। मेरा बच्चा खत्म हो गया। हम तो गरीब हैं, मेरे पास कुछ नहीं है। हादसा कैसे हुआ, जवाब दिया कि कर्मचारियों की लापरवाही से हुआ। हमने बच्चों को बचाया, अब धमकी मिल रही महोबा के रहने वाले कुलदीप ने बताया कि आग लगी तो मैं दौड़कर वहां पहुंचा। पीछे वाला गेट तोड़ा गया। देखा तो डॉक्टर भाग रहे थे। मैं अंदर गया। वहां बहुत धुआं था। कुछ बच्चे मरे हुए थे। लेकिन, मेरा बच्चा नहीं था। इसके बाद मैंने 4-5 बच्चों को बाहर निकाला। मीडिया में बयान देने पर अब अस्पताल प्रशासन से धमकी मिल रही है। मुझसे कहा जा रहा है कि तुम ऐसे कैसे बयान दे रहे हो। मैंने जो देखा, वही तो बोलूंगा। मैं अपने बच्चे के बारे में क्या कहूं, कोई उम्मीद नहीं है। मर ही गया, समझिए। बेटा महोबा सरकारी अस्पताल से रेफर किया गया था। 9 नवंबर को बेटे को यहां एडमिट कराया। हादसे के पीछे डॉक्टर की लापरवाही है। 7 बच्चों के पोस्टमॉर्टम हुए, 3 का 72 घंटे के बाद होगा
झांसी के मेडिकल कॉलेज में अग्निकांड के वक्त चाइल्ड वार्ड में 39 बच्चे एडमिट थे। 10 नवजात की जिंदा जलकर मौत हो गई। 1 बच्चे की बॉडी अभी भी मिसिंग है। शनिवार को मृतक बच्चों का पोस्टमॉर्टम हुआ। दो-दो डॉक्टरों के पैनल ने 7 नवजात बच्चों का पोस्टमॉर्टम किया। सभी बच्चे 70% से ज्यादा जल गए थे। जलने की वजह से ही उनकी मौत हुई है। इसकी पुष्टि पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में हुई है। सभी के DNA सैंपल भी लिए गए हैं। 3 बच्चों के शवों की पहचान नहीं हो सकी, इसलिए पोस्टमॉर्टम नहीं हो पाए। पहचान होने या नहीं होने पर 72 घंटे बाद पोस्टमॉर्टम होगा। ——————- झांसी अग्निकांड में भास्कर कवरेज पढ़िए… झांसी अग्निकांड- 10 नवजात जिंदा जले, बच्चों को बचाने वाले ने कहा- डॉक्टर भाग रहे थे, बयान देने पर अस्पताल ने धमकाया झांसी के महारानी लक्ष्मीबाई सरकारी मेडिकल कॉलेज में स्पेशल न्यू बोर्न केयर यूनिट (SNCU) में शुक्रवार रात भीषण आग लग गई। हादसे में 10 बच्चों की मौत हो गई। पोस्टमॉर्टम के बाद 7 नवजात बच्चों का शव परिजनों को सौंप दिया गया। 3 बच्चों की शिनाख्त अभी नहीं है। पढ़िए पूरी खबर…