लुधियाना में हथियार प्रमोट की वीडियो:वायरल होने पर व्यक्ति ने की पोस्ट डिलीट;SHO बोले-मामले की जांच कर लेंगे एक्शन

लुधियाना में हथियार प्रमोट की वीडियो:वायरल होने पर व्यक्ति ने की पोस्ट डिलीट;SHO बोले-मामले की जांच कर लेंगे एक्शन पंजाब के लुधियाना में एक व्यक्ति की हथियार प्रमोट करते हुए की वीडियो सामने आई है। वीडियो वायरल होने के बाद पता चला कि उक्त व्यक्ति किसी राजनीतिक पार्टी से जुड़ा है। उसे जब पता चला कि उस पर पुलिस का एक्शन होने वाला है तो उसने तुरंत वीडियो फेसबुक से डिलीट कर दी। उक्त नेता थाना लाडोवाल के गांव तलवंडी का रहने वाला है। सोशल मीडिया पर हथियार प्रमोट करना कानूनी जुर्म उक्त व्यक्ति ने नछत्तर सिंह लक्की नाम की फेसबुक ID से ये वीडियो पोस्ट किया है। उसके साथ गाड़ी में एक अन्य व्यक्ति भी बैठा है। बता दें सोशल मीडिया पर हथियारों को प्रमोट करना कानूनी जुर्म है। पुलिस प्रशासन के द्वारा पहले भी कई लोगों पर हथियार प्रमोट करने के मामले दर्ज हो चुके है। नेताओं ने साधी चुप्पी ये वीडियो की पोस्ट 1 या 2 दिन पुरानी बताई जा रही है। फिलहाल सभी राजनीतिक पार्टियों के किसी भी सीनियर नेता ने इस संबंधी कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया। सभी नेताओं ने इस संबंधी चुप्पी साधी है। इस मामले में जब थाना लाडोवाल के एसएचओ हरप्रीत सिंह से बातचीत की गई तो उन्होंने कहा कि मामले की गहनता से जांच की जाएगी। किसी भी व्यक्ति को सोशल मीडिया पर हथियार प्रमोट करने का अधिकार नहीं है। लोगों से भी अपील है कि जिनके पास लाइसेंसी हथियार है वह उसका प्रदर्शन बिल्कुल न करे।

छात्र आंदोलन से चमके, राष्ट्रपति- प्रधानमंत्री बने:6 नेताओं ने संभाली प्रदेश की सत्ता; इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के ऐसे छात्रों की कहानी

छात्र आंदोलन से चमके, राष्ट्रपति- प्रधानमंत्री बने:6 नेताओं ने संभाली प्रदेश की सत्ता; इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के ऐसे छात्रों की कहानी स्टूडेंट्स के प्रदर्शन को लेकर प्रयागराज एक बार फिर सुर्खियों में है। ये वही प्रयागराज (तब इलाहाबाद) है, जहां की छात्र राजनीति ने देश को कई नामी चेहरे दिए। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से निकले नेताओं ने देश के राष्ट्रपति-प्रधानमंत्री का पद भी संभाला। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के ऐसे 6 नाम हैं जो स्टूडेंट पॉलिटिक्स से चमके और आगे चल कर मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाली। संडे बिग स्टोरी में पढ़िए इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से निकले कुछ नेताओं की चर्चित और दिलचस्प कहानियां… इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से निकले 6 सीएम
इलाहाबाद विवि से पढ़ने वालों में यूपी के पूर्व सीएम पंडित गोविंद बल्‍लभ पंत, हेमवती नंदन बहुगुणा, नारायण दत्त तिवारी समेत 6 सीएम का नाम शामिल है। दिल्‍ली के सीएम रहे मदन लाल खुराना ने भी यहीं से पढ़ाई की। उत्तराखंड के सीएम रहे विजय बहुगुणा और एमपी के सीएम डॉ. अर्जुन सिंह ने भी यहीं से पढ़ाई की है। बहुगुणा ने किया ‘करो या मरो’ आंदोलन का नेतृत्व
इलाहाबाद की पूर्व सांसद और इलाहाबाद विवि की पूर्व प्रोफेसर रीता बहुगुणा जोशी के पिता और यूपी के पूर्व सीएम हेमवती नंदन बहुगुणा की राजनीतिक यात्रा भी इलाहाबाद विवि से शुरू हुई। रीता बहुगुणा जोशी बताती हैं कि 9 अगस्त 1942 को महात्मा गांधी सहित अन्य नेता मुंबई में गिरफ्तार हुए थे। जेल जाने से पहले महात्मा गांधी ने नारा दिया अंग्रेजों भारत छोड़ो, करो या मरो। आमतौर पर महात्मा गांधी युवाओं की शिक्षा पर ही जोर देते थे। लेकिन पहली बार उन्होंने आजादी आंदोलन में युवाओं की भागीदारी का आह्वान किया। रीता बहुगुणा ने बताया कि उस दौरान इलाहाबाद विवि के छात्रसंघ अध्यक्ष अंडरग्राउंड हो गए थे। इसलिए छात्रों ने हेमवती नंदन बहुगुणा को विवि छात्रसंघ का डिक्टेटर चुना। हेमवंती नंदन के नेतृत्व में 12 अगस्त 1942 को इलाहाबाद में अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन के तहत जुलूस निकाला गया। जुलूस जब कचहरी होते हुए चौक तक जाने लगा तो तत्कालीन डीएम और पुलिस कोतवाल ने उन्हें रोका। पुलिस ने धमकी दी की यदि छात्र नहीं लौटे तो फायरिंग होगी। इतने में डीएम ने आकर बहुगुणा से कहा कि तुम क्या आंदोलन करोगे, तुम्हारे साथ कोई नहीं है। इतने में ही एक लड़का लालपद्मधर आया, उसने बहुगुणा के हाथ से तिरंगा झंडा लेते हुए कहा कि ये अकेले नहीं हैं इनके साथ हजारों छात्र हैं। यह कहते हुए लालपद्मधर आगे बढ़े तो पुलिस ने उन्हें गोली मार दी, उनकी मौके पर ही मौत हो गई। इसके बाद पूरे इलाहाबाद में बड़ा आंदोलन हुआ। वहां से बहुगुणा राजनीति में आगे बढ़े। चंद्रशेखर की दाढ़ी की भी है दिलचस्प कहानी
इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से ही एक चेहरा निकलकर आया चंद्रशेखर का, जिन्होंने बाद में पीएम का पद संभाला। बलिया में जन्म लेने वाले चंद्रशेखर जब छात्र नेता थे, तभी से दाढ़ी रखते थे। इसके पीछे की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है। चंद्रशेखर इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में हिंदू हॉस्टल में रहते थे। हॉस्टल में उनके एक दोस्त को टीबी की बीमारी हो गई थी। उसे एक इंटरव्यू के लिए जयपुर जाना था। उसने चंद्रशेखर से साथ चलने को कहा। चंद्रशेखर चल दिए। चंद्रशेखर को क्लीनशेव रहने की आदत थी। वहां जयपुर में वह कई दिनों तक दाढ़ी नहीं बनवा पाए। वापस लौटे तो साथ के स्टूडेंट्स ने कहा दाढ़ी आप पर अच्छी लग रही है। तभी से चंद्रशेखर दाढ़ी रखने लगे। चंद्रशेखर निडर और बेखौफ नेता थे। जब वह राजनीति का बड़ा चेहरा बन गए तो कुछ लोगों ने उन्हें शेव करने की सलाह दी। चंद्रशेखर हमेशा एक ही बात दोहराते कि मेरी दाढ़ी का मेरी राजनीति से कोई लेना देना नहीं है। रामबहादुर राय की किताब ‘रहबरी के सवाल’ में चंद्रशेखर बताते हैं, 1951 में राजनीति शास्त्र से एमए करने फिर से इलाहाबाद यूनिवर्सिटी पहुंचा। हिन्दू हॉस्टल को ठिकाना बनाया। शुरू में थोड़ी बहुत दिक्कत हुई लेकिन जल्द ही वहां के माहौल में रम गया। इसी साल मैं सोशलिस्ट पार्टी से जुड़ गया और समाजवाद के लिए काम करने लगा। छात्र राजनीति से निकलकर राजनीति के कद्दावर नेता बने वीपी सिंह
यूपी के सीएम और फिर पीएम बनने वाले वीपी सिंह की राजनीति भी इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से चमकी। वीपी सिंह ने छात्र जीवन में इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्र संघ के उपाध्यक्ष चुने जाने के बाद विधायक, यूपी के मुख्यमंत्री, देश के वित्तमंत्री, रक्षामंत्री और प्रधानमंत्री तक का सफर तय किया। 25 जून 1931 को इलाहाबाद के राजपूत परिवार में जन्म लेने वाले विश्वनाथ प्रताप सिंह ने शुरुआती पढ़ाई के बाद 1947 में इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया। छात्रसंघ के उपाध्यक्ष होने के दौरान हुए आंदोलनों में वह सक्रिय हो गए। 1957 में भूदान आंदोलन के दौरान उनके नेतृत्व में बड़ी संख्या में युवा जुटे। युवाओं की संख्या देखने के बाद राजनीति के जानकारों ने कह दिया था कि देश में एक बड़ा नेता उभर रहा है। इस आंदोलन के दौरान वीपी सिंह ने भी जमीन दान की थी। बाद में यूपी की राजनीति के ताकतवर नेता बने। 1980 में राज्य की कमान संभाली। 1984 में केंद्रीय मंत्री बने। बाद में प्रधानमंत्री तक का सफर तय किया। नाटकीय ढंग से PM बने थे वीपी सिंह
1 दिसंबर, 1989 को संसद भवन के सेंट्रल हॉल में जनता दल की संसदीय बैठक आयोजित हुई। जैसे ही बैठक शुरू हुई मधु दंडवते ने वीपी सिंह से प्रस्ताव रखने के लिए कहा। वीपी सिंह ने ताऊ देवीलाल को पीएम बनाने का प्रस्ताव रखा। लेकिन देवीलाल बोले, ‘मुझे हरियाणा में ताऊ कहते हैं। यहां भी ताऊ ही बना रहना चाहता हूं। मेरी इच्छा है कि विश्वनाथ प्रताप सिंह प्रधानमंत्री बनें। मैं अपना नाम वापस लेता हूं। अजीत सिंह ने इस प्रस्ताव को अनुमोदित किया और दंडवते ने वीपी के निर्वाचन की घोषणा कर दी। वीपी सिंह कुछ फैसलों को लेकर कंट्रोवर्सी में रहे। मंडल कमीशन लागू करने पर उनका विरोध भी हुआ। दिल्ली यूनिवर्सिटी से लेकर इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में उनके फैसले के खिलाफ आंदोलन हुआ। इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से ही लोकप्रिय हुए थे एनडी तिवारी
इलाहाबाद विवि के पूर्व छात्रसंघ उपाध्यक्ष अभय अवस्थी बताते हैं कि एनडी तिवारी 1942 से लेकर 47 तक विवि के छात्र रहे। सन 1947 में जब देश आजाद हुआ, तो एनडी तिवारी इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के निर्वाचित छात्रसंघ अध्यक्ष थे। एनडी तिवारी का इलाहाबाद से गहरा लगाव रहा है। केंद्रीय मंत्री और तीन बार यूपी का सीएम बनने के बाद भी वह इलाहाबाद आने का कोई मौका नहीं छोड़ते थे। प्रदेश की राजनीति में सक्रिय होने के बाद भी इलाहाबाद यूनिवर्सिटी छात्रसंघ चुनाव में लम्बे अरसे तक उनका दखल हुआ करता था। वजह भी खास थी, इलाहाबाद यूनिवर्सिटी का अध्यक्ष बनकर ही उन्होंने न सिर्फ यूपी बल्कि पूरे देश में अपनी अलग पहचान बना ली थी। इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के अध्यक्ष रहने के बाद मिली लोकप्रियता के बूते उन्होंने पहले विधानसभा चुनाव में सोशलिस्ट पार्टी के बैनर पर चुनाव लड़कर कांग्रेस उम्मीदवार को बुरी तरह हराया था। तिवारी के अध्यक्ष बनने के बाद नेहरू बतौर देश के पहले प्रधानमंत्री इलाहाबाद विश्वविद्यालय के सीनेट हाल में आए और विश्वविद्यालय को संबोधित किया। तिवारी क्रांतिकारी नेता के रूप में जाने जाते थे, जिन्होंने कई बड़े आंदोलनों की अगुवाई की। मुरली मनोहर जोशी की कुर्सी पर वर्षों तक कोई नहीं बैठा
इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र और विवि के प्रोफेसर के.एन.उत्तम बताते हैं कि पूर्व पीएम वीपी सिंह भी मुरली मनोहर जोशी के शिष्य रहे हैं। उन्हें पीएचडी के दौरान ही विवि में नियुक्ति मिली थी। मुरली मनोहर जोशी ने इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय (इविवि) के भौतिक विज्ञान विभाग में 26 साल तक शिक्षण कार्य किया। डॉ. जोशी जिस कुर्सी पर बैठा करते थे वह कुर्सी सालों तक खाली रही। उनकी कुर्सी पर कोई शिक्षक नहीं बैठा। विभाग के शिक्षक और अध्यक्ष शोध कक्ष में उसके बगल दूसरी कुर्सी लगाकर बैठते हैं। वह कुर्सी और टेबल आज भी संदेश देने के लिए सुरक्षित है कि साधारण कुर्सी पर बैठकर वह पढ़ाया करते थे। उनकी ओर से प्रयोगशाला के लिए बनाए गए उपकरण भी सुरक्षित है। एमएससी की उपाधि लेने के बाद डॉ. जोशी बतौर नॉन पीएचडी कैंडिडेट वर्ष 1956 में इविवि में अस्थायी लेक्चरर बने और अध्यापन शुरू किया। फिर प्रो. देवेंद्र शर्मा के निर्देशन में पीएचडी की डिग्री हासिल की। वर्ष 1972 में रीडर और फिर 1984 में पर्सनल प्रमोशन स्कीम के तहत प्रोफेसर नियुक्त हुए। वर्ष 1989 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय शिक्षक संघ (आटा) के अध्यक्ष रहे। फोटोग्राफी में गहरी रुचि रखने वाले डॉ. जोशी के निर्देशन में कुल 13 लोगों ने पीएचडी की जबकि एक ने डॉक्टर ऑफ साइंस (डीएससी) की उपाधि। वर्ष 1963 में उनके पहले शोधार्थी राघवेंद्र एमदागनी रहे। वह बाद में कनाडा चले गए। 1960 में पहला शोध पत्र विज्ञान अनुसंधान पत्रिका में हिंदी में प्रकाशित हुआ था। इसी साल दिल्ली में प्रदर्शनी लगी थी। डॉ. जोशी इसमें बतौर प्रतिभागी शामिल हुए। वहां उनके निर्देशन में तैयार मॉडल रखा गया था, जिसे सराहना मिली थी, ईंट और पत्थर से बने रंगेपासन (स्पेक्ट्रोग्राफ) को उन्होंने बाद में इविवि को सौंप दिया। यूनिवर्सिटी का ये किस्सा भी मशहूर… ​​​​पंचर वाले की बेटी के लिए शुरू हुई पुनर्मूल्यांकन व्यवस्था
इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पूर्व छात्रसंघ पदाधिकारी अनुग्रह नारायण सिंह बताते हैं कि यूपी के विश्वविद्यालयों में पूनर्मूल्यांकन और यूपीएससी में स्कैलिंग की व्यवस्था इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्रों के आंदोलन के बाद ही लागू हुई। 1974 में विश्वविद्यालय की छात्रा पार्वती गुप्ता विश्वविद्यालय में भूगोल विषय की मेधावी छात्रा थीं। वह बहुत गरीब परिवार से थीं, उनके पिता विवि के बाहर ही साइकिल का पंचर जोड़ने का काम करते थे। बीए प्रथम वर्ष में वह विवि में द्वितीय स्थान पर रहीं लेकिन द्वितीय वर्ष में उनका नाम सूची से ही गायब कर दिया गया। इसके बाद छात्रों ने आंदोलन किया, आंदोलन इतना बड़ा हुआ कि विवि के तत्कालीन कुलपति रामसहाय ने पूनर्मूल्यांकन व्यवस्था लागू की। इससे शिक्षकों की ओर से छात्रों का शोषण बंद हुआ। उन्होंने कहा कि 1980-81 में उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग में स्केलिंग की मांग उठी। छात्रों ने इसकी मांग की तो उन्होंने विश्वविद्यालय के छात्रों को लेकर आंदोलन खड़ा किया। छात्रों की मांग के आगे आयोग और सरकार को स्केलिंग की व्यवस्था लागू करनी पड़ी। उसके बाद ही प्रदेश के अन्य विवि में पूनर्मूल्यांकन की व्यवस्था शुरू हुई। हिंदी आंदोलन को भी दी थी धार
अनुग्रह नारायण सिंह बताते हैं कि 1967-68 के दौर में जब डॉ. राममनोहर लोहिया ने हिंदी आंदोलन चलाया तो इलाहाबाद विश्वविद्यालय ही सबसे आगे रहा। विश्वविद्यालय के तत्कालीन छात्रसंघ अध्यक्ष मोहन सिंह ने कई महीनों तक आंदोलन कर अंग्रेजी के बोर्ड हटाए। हिंदी आंदोलन का केंद्र इलाहाबाद विश्वविद्यालय रहा। —————————– ये भी पढ़ें… यूपी में बदले की तीन कहानियां:बाप का, दादा का, भाई का बदला लेने के लिए मर्डर; 28 साल से सीने में धधक रही थी आग बाप का, दादा का, भाई का…सबका बदला लेगा फैजल। गैंग्स ऑफ वासेपुर का ये डायलॉग सिर्फ फिल्म तक सीमित नहीं रह गया है। यूपी में 20 दिन में कुछ इसी तर्ज पर बदले में हत्या की तीन कहानियां सामने आई हैं। पीतल नगरी मुरादाबाद में 14 साल के बेटे की मौत का बदला लेने के लिए मां ही बेटों से कहती है- भाई का बदला नहीं लोगे क्या? बार-बार जोर देने पर बेटे ने दोस्त के साथ इस तरह वारदात को अंजाम दिया कि किसी की भी रूह कांप जाए। पढ़ें पूरी खबर…

पोस्टमार्टम रिपोर्ट- 70% झुलस जाने से हुई नवजातों की मौत:हड़ियां तक निकल आईं थीं, सभी शवों के DNA सैंपल लिए

पोस्टमार्टम रिपोर्ट- 70% झुलस जाने से हुई नवजातों की मौत:हड़ियां तक निकल आईं थीं, सभी शवों के DNA सैंपल लिए झांसी के महारानी लक्ष्मीबाई मेडिकल कॉलेज में स्पेशल न्यू बोर्न केयर यूनिट (SNCU) में भीषण आग लग गई थी। इसमें 10 नवजात बच्चों की मौत हो गई। कोई दो दिन का था तो कोई एक माह से वाॅर्ड के अंदर एडमिट था। आग की लपटों में नन्हें मासूम 70 से 80 प्रतिशत तक झुलस गए थे। इसी वजह से उनकी मौत हुई है। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में इसकी पुष्टि हुई। पोस्टमार्टम रिपोर्ट के मुताबिक सभी नवजात बुरी तरह झुलस गए थे। इस वजह से झुलसने के चंद मिनट के भीतर ही मासूमों ने दम तोड़ दिया। पैनल ने किया शवों का पोस्टमार्टम शनिवार को सभी दस मृत नवजातों का पोस्टमार्टम कराया गया। दो-दो डॉक्टरों की तीन टीम ने शवों का पोस्टमार्टम किया। शिनाख्त होने की वजह से शुरूआत में सिर्फ सात नवजात ही पोस्टमार्टम को भेजे गए जबकि तीन नवजात की शिनाख्त न होने से उनके पोस्टमार्टम में पेंच फंस गया। उनके शव वापस मार्चेरी भेज दिए गए। हालांकि शाम को तीन अन्य बच्चों की पहचान हो गई। देर शाम पोस्टमार्टम के बाद शव परिजनों को सौंप दिया। सभी का डीएनए सैंपल भी लिया गया है, ताकि भविष्य दिक्कत आए तो मैच कराया जा सके। हादसे में इन दंपतियों ने खोए अपने बच्चे

झांसी अग्निकांड-10 नवजात शवों की फोटो जारी:शव देखने लायक नहीं, 80% तक झुलसे; प्रशासन ने कहा– ज्यादा मौतों की बात गलत

झांसी अग्निकांड-10 नवजात शवों की फोटो जारी:शव देखने लायक नहीं, 80% तक झुलसे; प्रशासन ने कहा– ज्यादा मौतों की बात गलत झांसी के महारानी लक्ष्मीबाई सरकारी मेडिकल कॉलेज में स्पेशल न्यू बोर्न केयर यूनिट (SNCU) में शुक्रवार रात भीषण आग लग गई। हादसे में 10 बच्चों की मौत हो गई। पोस्टमॉर्टम के बाद 7 नवजात बच्चों का शव परिजनों को सौंप दिया गया। 3 बच्चों की शिनाख्त अभी नहीं हो पाई है। एक बच्चे की हालत गंभीर है। 20 घंटे से लापता 8 बच्चों में से 7 मिल गए हैं। अब केवल एक बच्चा ऐसा है, जिसकी सूचना नहीं मिल पाई है। बच्चों को बचाने वाले युवक ने कहा- आग लगी तो डॉक्टर भागने लगे। मैंने 4-5 बच्चों को बचाया। अब मीडिया में बयान देने पर अस्पताल प्रशासन से धमकी मिल रही है। कहा जा रहा है कि तुम ऐसे कैसे बयान दे रहे हो। झांसी जिला प्रशासन ने 10 बच्चों के शवों की फोटो जारी की। कहा- ज्यादा मौतों की बात गलत है। हादसा रात करीब साढ़े 10 बजे हुआ। ऑक्सीजन कंसंट्रेटर में स्पार्किंग के चलते आग लगी, फिर धमाका हो गया। पूरे वार्ड में आग फैल गई। वार्ड बॉय ने आग बुझाने के लिए अग्निशमन यंत्र (फायर एक्सटिंग्विशर) चलाया, मगर वह 4 साल पहले ही एक्सपायर हो चुका था, इसलिए काम नहीं किया। ​​​​​​सूचना पर फायर ब्रिगेड की 6 गाड़ियां पहुंचीं। खिड़की तोड़कर पानी की बाैछारें मारीं। भीषण आग को देखते हुए सेना को बुलाया गया। करीब 2 घंटे में आग पर काबू पाया गया। वार्ड की खिड़की तोड़कर 39 बच्चों को सुरक्षित बाहर निकाला गया। हादसे से जुड़े वीडियो सामने आए हैं। इसमें दिख रहा है कि एक तरफ हॉस्पिटल में चीख-पुकार मची हुई थी। दूसरी तरफ, डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक के पहुंचने से पहले सड़क की सफाई कर चूना डाला जा रहा है। हालांकि, मामला सुर्खियों में आने के बाद डिप्टी सीएम ने वीडियो जारी कर बयान दिया। कहा- उन्होंने डीएम से उन लोगों पर एक्शन लेने के लिए कहा है, जिन्होंने चूना छिड़कवाया था। इधर, हादसे के बाद CM योगी ने हाईलेवल मीटिंग की। उन्होंने कमिश्नर और DIG को 12 घंटे के अंदर रिपोर्ट देने के आदेश दिए। सुबह 5 बजे झांसी पहुंचे डिप्टी CM ब्रजेश पाठक ने कहा- हादसे की 3 जांच होगी। पहली- स्वास्थ्य विभाग करेगा। दूसरी- पुलिस करेगी। तीसरी- मजिस्ट्रेट से जांच कराई जाएगी। अगर कोई चूक पाई जाती है, तो जिम्मेदारों पर कड़ी कार्रवाई करेंगे।

अफसर सस्पेंड हों या न हों…मेरी जमीन नाप दो बस:लखीमपुर में संघ कार्यकर्ता पैमाइश के लिए चक्कर लगा रहा, 4 अफसर हुए थे निलंबित

अफसर सस्पेंड हों या न हों…मेरी जमीन नाप दो बस:लखीमपुर में संघ कार्यकर्ता पैमाइश के लिए चक्कर लगा रहा, 4 अफसर हुए थे निलंबित लखीमपुर खीरी में 2 बीघा जमीन की पैमाइश के लिए सरकार ने एक आईएएस और तीन पीसीएस अधिकारी को सस्पेंड कर दिया। जिस 10 लाख की जमीन के लिए सरकार ने इतना बड़ा एक्शन लिया, उस खेत का अभी भी सीमांकन नहीं हो पाया है। राजस्व की टीम मौके पर गई, चक रोड खुलवा कर वापस चली गई। जमीन के मालिक रिटायर्ड मास्टर विश्वेश्वर दयाल संघ से जुड़े हैं। वो RSS के ब्लॉक स्तर के कार्यकर्ता खंड संचालक है। इनसे जुड़े एक वीडियो पर ही इतना बड़ा एक्शन हुआ है, फिर भी वो संतुष्ट नहीं हैं। दरअसल, यह पूरा मामला विभाग की लापरवाही से जुड़ा है। विश्वेश्वर के विपक्षी भी यही चाहते हैं कि नक्शा के मुताबिक खेत की मापी हो जाए। विश्वेश्वर दयाल ने बताया कि मैं छह साल से भटक रहा हूं। प्रशासन और पुलिस की लापरवाही के चलते अपने खेत पर कब्जा नहीं मिल पा रहा है। सबसे पहले जानते हैं पूरा मामला क्या है…
नकहा ब्लाक के रहने वाले रिटायर्ड मास्टर विश्वेश्वर ने 6 साल पहले भूमि की पैमाइश कराने के लिए SDM के यहां वाद दायर किया था। उनकी भूमि की मेढ़बंदी तो करा दी गई थी, लेकिन कुछ दिन बाद ही विपक्षियों ने इसे तुड़वा दिया। विश्वेश्वर ने इसकी शिकायत भाजपा विधायक योगेश वर्मा से की। इसके बाद 24 अक्टूबर को भाजपा विधायक स्कूटी से SDM अश्वनी सिंह से मिलने पहुंचे थे। इस दौरान पता चला कि अफसरों और लेखपाल ने RSS लीडर से 5 हजार सुविधा शुल्क भी लिया, लेकिन जमीन पैमाइश नहीं की। इसका वीडियो भी सामने आया था। वीडियो सामने आने के बाद नियुक्ति विभाग से पूरे मामले की जांच के निर्देश दिए। लखीमपुर खीरी डीएम से केस की पूरी रिपोर्ट मांगी। पूछा गया- 6 साल पहले यानी 2019 के बाद कौन-कौन एसडीएम, तहसीलदार और नायब तहसील वहां तैनात रहा। उन्होंने पैमाइश के मामले में क्या कार्रवाई की। डीएम से मिली रिपोर्ट के आधार पर चार अफसरों को इसके लिए दोषी पाया गया। उसके बाद डीएम दुर्गा शक्ति नागपाल और पूर्व जिलाधिकारी रहे महेंद्र बहादुर सिंह को नोटिस जारी कर स्पष्टीकरण मांगा गया है। नियुक्ति विभाग ने दोनों अधिकारियों को नोटिस भेजा है। मामले में शासन ने एक आईएएस समेत तीन पीसीएस अफसरों को सस्पेंड किया है। महेंद्र बहादुर सिंह अक्टूबर 2021 से जून 2024 तक जिलाधिकारी रहे हैं। दुर्गा शक्ति नागपाल 25 जून 2024 से लखीमपुर की डीएम हैं। नियुक्ति विभाग ने इन दोनों अधिकारियों से पूछा है कि छह साल से लटके पैमाइश के मामले को इन्होंने समीक्षा के दौरान क्यों नहीं देखा? दैनिक भास्कर ने विश्वेश्वर से बात की। पढ़िए उन्हीं की जुबानी, संघर्ष की पूरी कहानी… बड़े अफसरों से ज्यादा नीचे के अधिकारी दोषी मेरा खेत गाटा संख्या 432 है, जिसका कुल रकबा लगभग 11 बीघा है। अनुमानित कीमत 50 लाख से अधिक होगी। इसमें से 2 बीघा विपक्षी लोगों ने जोत रखा है, जिसकी नपाई के लिए वाद दायर किया था। अभी तक नपाई नहीं हो सकी है। अफसरों ने बताया विपक्षी पार्टी ने कमिश्नरी से इस पर स्टे ले लिया है। सीमांकन को लेकर विवाद था, जिसकी नपाई के लिए मैंने दिसंबर-2019 में उपजिलाधिकारी के पास वाद दायर किया था। मेरा केस करीब चार महीने बाद अतिरिक्त उपजिलाधिकारी कोर्ट में स्थानांतरित हो गया। जिसमें संघर्ष करते-करते, पेशी तारीख़ करते-करते पांच साल बीत गया। आखिरकार पांच साल बाद 2023 में अतिरिक्त उपजिलाधिकारी कोर्ट से हमारे पक्ष में आदेश हुआ। जिसकी मेड बंदी राजस्व टीम ने आकर मौके पर करवा दी। जिसके बाद विपक्षी लोगों ने 2023 में हमारे विरुद्ध फिर अतिरिक्त उप जिलाधिकारी कोर्ट में वाद दायर कर दिया। जिसे मैंने फिर मुकदमा लड़ना शुरू किया और 2023 के अंत तक पुनः मेरे पक्ष में निर्णय हुआ।
इसके बावजूद भी मेरी मुश्किलें कम नहीं हुई। पहले राजस्व टीम द्वारा की गयी मेड़बंदी विपक्षी जनों ने तोड़ दी। पिलर उखाड़ कर गन्ने की फसल जोत दी। इसकी शिकायत लेकर मार्च 2024 जब वह पुलिस चौकी रामापुर गए तो चौकी इचार्ज दिनेश पांडे ने यह कहकर टरका दिया कि ये मामला राजस्व का है, वहीं जाइए।
अप्रैल 2024 को जिलाधिकारी महेन्द्र बहादुर को भी समस्या को लेकर प्रार्थना पत्र दिया। जिसमें उन्होंने एसडीम लखीमपुर और सीईओ को कार्यवाही के लिए निर्देशित किया,लेकिन कोई कार्यवाही नहीं हुई। मई 2024 में हम सदर कोतवाली में जाकर बैठ गए। मुकदमा जब तक नहीं लिखा जायेगा उठूंगा नहीं की धमकी दी। मेरे हठ पकड़ने के बाद आखिरकार विपक्षियों के विरुद्ध मुकदमा दर्ज हुआ। मुकदमा तो दर्ज हो गया लेकिन न तो पुलिस ने कोई कार्यवाही की, न राजस्व टीम ने।
इसके बाद हम 3 अक्टूबर सदर एसडीएम अश्वनी सिंह से मिले। तहसील दिवस में उनको शिकायती पत्र हाथ में दिया। वो बोले कि पुलिस के पास जाओ, FIR दर्ज करवाओ। मैंने उन्हें बताया कि FIR दर्ज हो चुकी है, न्यायालय आदेश के अनुसार पैमाइस करवा दी जाय, जिस पर एसडीएम ने आश्वासन दिया कि राजस्व टीम भेजेंगे और नपाई करवाएंगे लेकिन नपाई नहीं हुई। प्रशासन के सामने रोते-गाते कानूनी तरीके से संघर्ष किया। छह साल में हमारे खेत की नपाई जब नहीं हो सकी तो थक हारकर हम अपने भाजपा के सदर विधायक योगेश वर्मा के पास पहुंचे और उन्हें और पूरी स्थिति से अवगत कराया,क्योंकि हम आरएसएस से जुड़े हुए हैं और ब्लॉक नकहा के खंड संचालक हैं। सदर विधायक योगेश वर्मा ने सदर एसडीएम अश्वनी सिंह को फोन पर बताया की गुरुजी आ रहे हैं, उनकी नपाई करवाओ। हम एक बार फिर सदर SDM अश्वनी सिंह से मिले तो उन्होंने कहा कि दोनों पार्टी को बुलाकर बात होगी। योगी सरकार की कार्रवाई के बाद सिर्फ रास्ता खुला जब कोई कार्रवाई नहीं हुई तो हम 24 अक्टूबर 2024 को फिर सदर विधायक योगेश वर्मा से मिले और नाराजगी जताई। तब सदर विधायक योगेश वर्मा हमें स्कूटी पर बैठाकर तुरंत एसडीएम ऑफिस ले गए और एसडीएम से उनकी नोकझोंक हुई और कानूनगो द्वारा पांच हजार की घूस जो हमसे ली गई थी उसे वापस करने की भी बात विधायक ने की। विधायक का यह वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद तब
13 नवंबर को योगी सरकार द्वारा इतनी बड़ी कार्रवाई के बाद 14 नवंबर को राजस्व की टीम ने आकर केवल रास्ता खुलवाया है, खेत की नपाई अभी भी बाकी है। बड़े की जगह नीचे वाले अफसर ज्यादा जिम्मेदार हमें किसी पर कार्रवाई में कोई दिलचस्पी नहीं है। कार्रवाई क्या हुई है? किस पर हुई है? और क्यों हुई है इसका हमें क्या मालूम। हमें इतना मालूम है जिस खेत की नपाई के लिए हम 6 साल से संघर्ष कर रहे हैं, वह जस का तस है। मेरा खेत नप जाए,मेरे लिए यही बहुत है। इसमें उच्च अधिकारियों से ज्यादा निचले स्तर के कर्मचारी, पुलिस,लेखपाल कानूनगो और उप जिलाधिकारी ज्यादा जिम्मेदार है, जिनकी जानकारी में सब कुछ होते हुए हमें भटका रहे हैं। नक़्शे के हिसाब से जमीन की मापी कराई जाए- विश्वेश्वर दयाल के विपक्षी विश्वेश्वर के विपक्षी बहुत हाई प्रोफाइल और ऊंची पहुंच वाले नहीं हैं। विश्वेश्वर दयाल के जो विपक्षी हैं, उनमें एक शिला देवी पत्नी राजकुमार हैं l शीला देवी आशा बहू है और राजकुमार शिक्षामित्र l विपक्षी श्रवण उर्फ राजा राम गांव में खेती करते हैं और उनका बेटा शोभित बाहर प्राइवेट नौकरी l श्रवण कुमार के बेटे शोभित ने बताया कि पहली बार जब मेरे खेत में पिलर लगाए गए, तब पता चला कि नपाई का आदेश हुआ है l राजस्व कर्मियों द्वारा पूरी तरह से सेक्टर न नाप कर, ऐसे ही मेढबंदी कर दी गई । फिर उसे आदेश के विरुद्ध हम लोग भी उप जिलाधिकारी न्यायालय गए, जहां से स्टे मिला और उसके बाद हम लोगों ने राजस्व कर्मियों की मौजूदगी में पिलर उखाड़ दिए l जिस पर विश्वेश्वर दयाल द्वारा हम पर मुकदमा दर्ज कर दिया गया l
फिर हमारे द्वारा मार्च 2024 में कमिश्नरी में वाद डाला गया l जिसकी कॉपी हमने राजस्व टीम को रिसीव करा दी l उसके बावजूद भी विधायक का वीडियो वायरल होने के बाद बिना नपाई किए राजस्व टीम वाले मेरा खड़ा गन्ना काटकर रास्ता बना गए हैं l जबकि हमें कोई आपत्ति नहीं है, पूरा सेक्टर नाप कर नक़्शे के हिसाब से जिसकी ज़मीन जहां है, वहां कब्ज़ा प्रशासन की मौजूदगी में कराया जाए l विधायक बोले- मुख्यमंत्री से शिकायत नहीं की थी सदर विधायक योगेश वर्मा बताया कि जमीन विवाद को लेकर मैंने मुख्यमंत्री से शिकायत नहीं की थी। वायरल वीडियो का संज्ञान लेते हुए नियुक्ति विभाग ने कार्रवाई की। ये कार्रवाई सरकार का सीधा संदेश है कि किसान या किसी पीड़ित के काम में लापरवाही करने वालों को छोड़ा नहीं जाएगा l निलंबित किए गए अफसरों ने क्या कहा… न्यायालय प्रक्रिया के अनुसार कार्यवाही की- उप जिलाधिकारी उप जिलाधिकारी रेनू ने बताया कि मैंने अतिरिक्त उपजिलाधिकारी के रूप में 31 दिसंबर 2021 को ज्वाइन किया था l नवंबर में अपनी शादी के लिए एक महीने के अवकाश पर चली गईl 3 महीने तक चुनावी व्यस्तता रही l जब न्यायालय का काम संभाला तो यह फाइल उनके संज्ञान में आई थी l न्यायालय प्रक्रिया के अनुसार कार्यवाही की, जिसका विवरण पत्रावली में दर्ज है l उसके बाद 2022 में उनका जनपद तबादला हो गया। सेम डे राजस्व टीम को निरीक्षण के लिए भेजा- सदर एसडीएम तत्कालीन सदर एसडीएम अरुण कुमार ने बताया कि दिसंबर 2019 में विश्वेश्वर दयाल का पैमाइश को लेकर वाद आया था। सेम डे राजस्व टीम को निरीक्षण के लिए निर्देश दिया था। कार्यवाही चलती रही, इसी दौरान मार्च 2020 में लॉकडाउन लग गया। सभी कोर्ट व फील्ड कार्य बंद हो गए। नवंबर 2020 में जब लॉकडाउन में कुछ ढील हुई तो इनका प्रारम्भिक सीमांकन करवाकर न्यायलय में कार्यवाही शुरू हुई l इसके बाद वाद उपजिलाधिकारी अतिरिक्त कोर्ट में स्थानांतरित हो गया l

झांसी अग्निकांड…5 नवजात बचाने वाली नर्स की कहानी:कपड़े जले, फिर भी आग में घुसकर उठा लाई, बोलीं- वो रात कभी नहीं भूल सकती

झांसी अग्निकांड…5 नवजात बचाने वाली नर्स की कहानी:कपड़े जले, फिर भी आग में घुसकर उठा लाई, बोलीं- वो रात कभी नहीं भूल सकती ‘मैं नाइट ड्यूटी पर थी। रजिस्टर पर बच्चों की दवा लिख रही थी। NICU में ऑक्सीजन कॉन्सन्ट्रेटर रखा था। हमें शॉर्ट सर्किट होने का पता चला। मगर कुछ समझ पाने से पहले चिंगारी आक्सीजन तक पहुंच गई। देखते-देखते पूरे केबिन में आग फैल गई।’ यह कहना है झांसी मेडिकल कॉलेज की स्टाफ नर्स मेघा का। अग्निकांड वाली रात उनकी ड्यूटी चाइल्ड वार्ड में थी। वह कहती हैं- हम थोड़ी दूर थे, इसलिए बच गए। आग देखकर जिन बच्चों को उठाकर बाहर भाग सकती थी, मैं भागी। मगर आग से मेरी सलवार जल गई। पैर झुलस गए, बच्चों को सुरक्षित बाहर छोड़कर वापस अंदर आई। बगल के कमरे में जाकर दूसरी सलवार पहनी। फिर दोबारा आग में गई, 3 बच्चों बचाकर बाहर ले आई। यह कहते हुए नर्स मेघा मायूस हो जाती हैं। वह आगे कहती हैं- वो रात बहुत भयानक थी, कभी नहीं भूल सकती हूं। मैं जब बच्चों को जलते हुए देख रही थी, उस दर्द को अभी तक महसूस करती हूं। ऐसा मंजर कभी नहीं देखा। झांसी मेडिकल कॉलेज में 10 नवजात की मौत के बाद स्थितियों को और करीब से समझने के लिए भास्कर टीम बर्न वार्ड पहुंची। यहां स्टाफ नर्स मेघा से मुलाकात हुई। हमने अग्निकांड के वक्त चाइल्ड वार्ड में क्या-कुछ हुआ, ये उनसे जाना। पहली चिंगारी कॉन्सेंट्रेटर से निकली, फिर सब कुछ जलने लगा
मेघा कहती हैं- रात में 4 स्टाफ नर्स और वार्ड बॉय, 2 जूनियर डॉक्टर की ड्यूटी थी। हम लोग साफ-सफाई करके मशीनों में मौजूद बच्चों को चेक कर रहे थे। वहीं पर एक ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर में अचानक शॉर्ट सर्किट हुआ। चिंगारी निकली, मुझे ऐसा लगता है कि कॉन्सेंट्रेटर में लीकेज थी। क्योंकि आग बहुत तेजी से फैली। मेघा बताती हैं- मेरी यूनिफॉर्म सिंथेटिक कपड़े की थी। इस वजह से तेजी से आग पकड़ ली। मैंने सलवार उतारकर फेंक दी। उसके बाद 2 बच्चों को लेकर बाहर भागी। उस वक्त मुझे लगा कि इज्जत से ज्यादा बच्चों की जान जरूरी है। बच्चों को सुरक्षित बाहर छोड़ने के बाद दोबारा अंदर आई, बगल के कमरे में मेरी एक और यूनिफॉर्म रखी थी। जल्दी-जल्दी पहनी, फिर से वार्ड में घुस गई। 3 और बच्चों को उठाया और तेजी से बाहर आ गई। मगर तब तक पैर जल चुके थे। मास्क लगाकर अंदर आई, मगर 5 मिनट भी नहीं टिक पाई
मेघा कहती हैं- अचानक अस्पताल की लाइट काट दी गई। वार्ड में इस कदर धुआं भर गया कि कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। मैंने मास्क लगाया, मगर अंदर 5 मिनट भी खड़े रह पाना मुश्किल था। धुआं और अंधेरा देखकर हम हिम्मत हार गए। बाकी स्टाफ भी अंदर जाने का प्रयास कर रहा था, मगर धुएं के आगे हम सब बेबस हो गए। कोई कुछ नहीं कर पाया। जिन डॉक्टर पर बच्चों के इलाज की जिम्मेदारी, वे भी बीमार
मेघा ने कहा- उन बच्चों की डिलीवरी हमारे स्टाफ ने अपने हाथ से करवाई थी। वह बच्चे हमें जान से प्यारे थे। जिन डॉक्टरों पर उन बच्चों के इलाज की जिम्मेदारी थी। उनमें से एक के पैर में अर्थराइटिस थी, दूसरे के पैर में भी समस्या थी। इसके बावजूद दोनों जुटे रहे। बच्चों को बाहर निकालने में पूरी मदद की। मेरे बच्चे का जन्मदिन, डाक्टरों ने यहीं रहने को कहा है
मेघा का दायां पैर जल गया है। उन्हें न्यू बिल्डिंग के बर्न वॉर्ड में एडमिट किया गया है। वह कहती हैं कि मेरे दो बच्चे हैं। एक नौ साल का, एक 12 साल का। छोटे वाले का जन्मदिन 27 नवंबर को है। मेघा ने बताया उन्हें डायबिटीज है, टेंशन के कारण शुगर लेवल बढ़ गया है। अब बाहर जाने को मना किया गया है। अब पढ़िए उन मांओं का दर्द, जिन्होंने अपने बच्चे को खो दिया दैनिक भास्कर की टीम ने ऐसी महिलाओं से बात की, जिनके बच्चे या तो हादसे में मर चुके हैं या नहीं मिल रहे। पढ़िए उनका दर्द… अस्पताल में मेरा बच्चा नहीं रोया, यहां सब चीखें सुनाई दे रहीं जालौन की रहने वाली संतोषी अस्पताल की फर्श पर शॉल ओढ़े बैठी हैं। उनके चेहरे पर उदासी है। आंखों के आंसू सूख चुके हैं। उनकी रुंधी हुई आवाज से अंदाजा लगाया जा सकता है कि उनके अंदर अथाह दर्द और पीड़ा है। हमने उनसे पूछा कि वो यहां कब आई थीं, तो वह कहती हैं- 5 नवंबर को डिलीवरी हुई थी। बच्चा रोया नहीं था, इसलिए उसे उरई जिला अस्पताल लेकर पहुंचे। डॉक्टरों ने उसे झांसी मेडिकल कॉलेज रेफर कर दिया। जब हमने उनसे पूछा कि आग लगी, तब आप कहां थीं? जवाब में संतोषी ने कहा- रात को अंदर सो रही थी। आवाज सुनकर बाहर आई। देखा, तो आग लगी थी। चारों तरफ भगदड़ मची थी। लोग अपने बच्चों को लेकर भाग रहे थे। हमें समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें? अंदर गए तो देखा कि मेरा बच्चा ही नहीं था। अब आपको क्या चाहिए? इस सवाल पर संतोषी ने कहा- मुझे सिर्फ मेरा बच्चा चाहिए। क्या आपने बच्चे को देखा? संतोषी ने जवाब दिया- नहीं। कुछ बच्चे दिखाए गए, लेकिन उनमें मेरा बेटा नहीं था। रात से सुबह हो गई, अभी तक बेटे की कोई जानकारी नहीं मिली। इतना कहते हुए संतोषी रो पड़ीं। ‘हमारा बच्चा पूरा जल गया..वो जिंदा नहीं है’ ललितपुर के फुलवारा गांव के रहने वाले सोनू और उनकी पत्नी संजना मेडिकल कॉलेज में मौजूद हैं। संजना फर्श पर बैठकर बीच-बीच में रो पड़ती हैं। वो चीखती हैं, मेरा बच्चा कहां है, मेरा पहला बच्चा था। हाय मेरा बच्चा जल गया…पूरा जल गया। अरे कोई तो दिखा दो, मेरे बच्चे को। पास बैठे पति सोनू उन्हें दिलासा देते हैं, लेकिन उनकी आंखों से भी आंसू नहीं रुक रहे। सोनू ने बताया- 7 अक्टूबर को पत्नी ने बच्चे को जन्म दिया। डिलीवरी के बाद बच्चे को झांसी मेडिकल कॉलेज रेफर कर दिया गया। उसे सांस लेने में दिक्कत थी, क्योंकि 7 महीने में ही पैदा हुआ था। यहां इलाज चल रहा था। 1 महीने से हम लोग यहीं हैं। शुक्रवार को ही बच्चे का सीटी स्कैन हुआ था। डॉक्टर ने बताया- बेटे के माथे में पानी भरा है। डॉक्टर ने दूध पिलाने से मना किया था, इसलिए हम लोग निश्चिंत होकर सो रहे थे। इसी बीच अचानक आग लग गई। हम दौड़कर वार्ड के पास पहुंचे, लेकिन हमें अंदर नहीं जाने दिया। बच्चा कहां है? सोनू ने जवाब दिया- पता नहीं। स्टाफ बोल रहा है कि इमरजेंसी में है, लेकिन मैंने देखा नहीं। कुछ बच्चे खो गए, मिल नहीं रहे हैं। उनकी पत्नी संजना से पूछा- आपका बच्चा कैसा है, तो वह धीमी आवाज में बोलीं- पता नहीं। हमारा बच्चा पूरा जल गया। अब वह जिंदा नहीं है। ये मेरा पहला बच्चा था। यह कहते हुए वह रो पड़ीं। मेरा पोता खत्म हो गया, वो पूरा जला हुआ था ललितपुर के सीरोनकला गांव के रहने वाले निरन बेचैन होकर मेडिकल कॉलेज में घूम रहे हैं। हमने उनसे पूछा कि आपका यहां कौन भर्ती था? उन्होंने बताया- मेरी बहू पूजा का बच्चा भर्ती था। ललितपुर में ऑपरेशन से बच्चा हुआ था। बच्चे का वजन कम था, इसलिए शुक्रवार को बच्चे को यहां लेकर आए। रात में यहां आग लग गई। बच्चे जलकर मर गए। मैंने देखा तो मेरा पोता ऊपर से लेकर नीचे तक जला हुआ था। कैसे पहचाना? जवाब में उन्होंने कहा- नाम की पट्टी लगी हुई थी, उसी से पहचाना। मेरा बच्चा खत्म हो गया। हम तो गरीब हैं, मेरे पास कुछ नहीं है। हादसा कैसे हुआ, जवाब दिया कि कर्मचारियों की लापरवाही से हुआ। हमने बच्चों को बचाया, अब धमकी मिल रही महोबा के रहने वाले कुलदीप ने बताया कि आग लगी तो मैं दौड़कर वहां पहुंचा। पीछे वाला गेट तोड़ा गया। देखा तो डॉक्टर भाग रहे थे। मैं अंदर गया। वहां बहुत धुआं था। कुछ बच्चे मरे हुए थे। लेकिन, मेरा बच्चा नहीं था। इसके बाद मैंने 4-5 बच्चों को बाहर निकाला। मीडिया में बयान देने पर अब अस्पताल प्रशासन से धमकी मिल रही है। मुझसे कहा जा रहा है कि तुम ऐसे कैसे बयान दे रहे हो। मैंने जो देखा, वही तो बोलूंगा। मैं अपने बच्चे के बारे में क्या कहूं, कोई उम्मीद नहीं है। मर ही गया, समझिए। बेटा महोबा सरकारी अस्पताल से रेफर किया गया था। 9 नवंबर को बेटे को यहां एडमिट कराया। हादसे के पीछे डॉक्टर की लापरवाही है। 7 बच्चों के पोस्टमॉर्टम हुए, 3 का 72 घंटे के बाद होगा
झांसी के मेडिकल कॉलेज में अग्निकांड के वक्त चाइल्ड वार्ड में 39 बच्चे एडमिट थे। 10 नवजात की जिंदा जलकर मौत हो गई। 1 बच्चे की बॉडी अभी भी मिसिंग है। शनिवार को मृतक बच्चों का पोस्टमॉर्टम हुआ। दो-दो डॉक्टरों के पैनल ने 7 नवजात बच्चों का पोस्टमॉर्टम किया। सभी बच्चे 70% से ज्यादा जल गए थे। जलने की वजह से ही उनकी मौत हुई है। इसकी पुष्टि पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में हुई है। सभी के DNA सैंपल भी लिए गए हैं। 3 बच्चों के शवों की पहचान नहीं हो सकी, इसलिए पोस्टमॉर्टम नहीं हो पाए। पहचान होने या नहीं होने पर 72 घंटे बाद पोस्टमॉर्टम होगा। ——————- झांसी अग्निकांड में भास्कर कवरेज पढ़िए… झांसी अग्निकांड- 10 नवजात जिंदा जले, बच्चों को बचाने वाले ने कहा- डॉक्टर भाग रहे थे, बयान देने पर अस्पताल ने धमकाया झांसी के महारानी लक्ष्मीबाई सरकारी मेडिकल कॉलेज में स्पेशल न्यू बोर्न केयर यूनिट (SNCU) में शुक्रवार रात भीषण आग लग गई। हादसे में 10 बच्चों की मौत हो गई। पोस्टमॉर्टम के बाद 7 नवजात बच्चों का शव परिजनों को सौंप दिया गया। 3 बच्चों की शिनाख्त अभी नहीं है। पढ़िए पूरी खबर…

मझवां में बंटेंगे तो कटेंगे का मुसलमानों पर असर नहीं:ओबीसी-जनरल वोट से भाजपा मजबूत, सपा को PDA पर भरोसा

मझवां में बंटेंगे तो कटेंगे का मुसलमानों पर असर नहीं:ओबीसी-जनरल वोट से भाजपा मजबूत, सपा को PDA पर भरोसा कोई कहता भली है, कोई कहता बुरी है। मैं तो कहता हूं- सियासत दोगली है। ऐसा मुकेश उपाध्याय का कहना है। मिर्जापुर के मझवां ब्लॉक में रहते हैं। वह कहते हैं- इस एरिया में आज विकास कोसों दूर है। जनता ने सभी पार्टियों को जिताया। लेकिन, उद्योग-धंधे, अच्छे स्कूल-कॉलेज और अस्पताल की कमी दूर नहीं हुई। सड़कों की स्थिति बहुत खराब है। मझवां में 3 दिन बाद उपचुनाव होने हैं। मुकेश उपाध्याय जैसे ही तमाम लोग इलाके की समस्या बताते हैं। लेकिन, लोगों का कहना है- यहां मुद्दा नहीं, चुनाव जाति-बिरादरी में सिमट जाता है। चुनाव वाले दिन लोग पार्टी और प्रत्याशी को देखकर ही वोट देते हैं। मझवां में भाजपा और सपा दोनों ने महिला कैंडिडेट उतारे। भाजपा से सुचिस्मिता मौर्य लड़ रही हैं। वह पूर्व विधायक रामचंद्र मौर्या की बहू हैं। सपा से डॉ. ज्योति बिंद चुनावी मैदान में हैं। वह पूर्व विधायक डॉ. रमेश बिंद की बेटी हैं। बसपा ने यहां जातीय समीकरण साधते हुए ब्राह्मण चेहरे दीपक तिवारी उर्फ दीपू पर भरोसा जताया है। तमाम जातीय और सियासी समीकरण साधते हुए भाजपा अभी मजबूत स्थिति में है। अगर बसपा का BDM (ब्राह्मण-दलित-मुस्लिम) समीकरण ज्यादा प्रभाव नहीं छोड़ता और सपा का PDA काम कर जाता है, तो यहां सपा मजबूत होगी। बसपा मुकाबले को त्रिकोणीय बना रही है। मझवां में हवा का रुख कैसा है? जनता की राय क्या है? पॉलिटिकल एक्सपर्ट क्या कह रहे हैं? इन सभी सवालों का जवाब जानने हम वोटिंग से 4 दिन पहले मझवां के अलग-अलग इलाकों में पहुंचे… सबसे पहले मझवां का सियासी समीकरण…
2022 में यह सीट भाजपा के सहयोगी दल निषाद पार्टी के कोटे में गई थी। निषाद पार्टी के विनोद बिंद को 33 हजार 587 मतों से जीत मिली। विनोद बिंद को 1 लाख 3 हजार 235 वोट मिले। सपा के रोहित शुक्ला को 69 हजार 648 वोट मिले थे। पिछले लोकसभा चुनाव में अपना दल (एस) प्रत्याशी अनुप्रिया पटेल और सपा प्रत्याशी डॉक्टर रमेश बिंद के बीच मुकाबला हुआ। इस इलाके से अनुप्रिया पटेल को सिर्फ 1,762 मतों से जीत मिली। यह आंकड़ा ही भाजपा के लिए चिंताजनक है। मझवां में बिंद, ब्राह्मण और दलित ये 3 वोट बैंक निर्णायक होते हैं। यह वोट जिसकी तरफ शिफ्ट हुआ, उसकी जीत पक्की होती है। अब जानते हैं वोटर्स की बात…
मिर्जापुर मुख्यालय से करीब 20 किमी दूर मझवां विधानसभा सीट ग्रामीण इलाका है। यहां के लोगों का मुख्य पेशा खेती और पशुपालन है। भाजपा यहां सहयोगी दलों के साथ एकजुट है और जीत की हैट्रिक लगाने का प्रयास कर रही है। राजा तालाब से जमुआ बाजार होकर हम कछवा नगर पंचायत पहुंचे। इससे पहले रास्ते में मुस्लिम मतदाताओं का मिजाज जाना। मुस्लिम वोटरों की अपनी अलग रायशुमारी नजर आई। कोवटावीर महामलपुरी के पूर्व प्रधान मो. असलम खां ने बताया- वर्तमान स्थिति में भाजपा मजबूत नजर आ रही है। मुस्लिम सब ओर जा रहा है, सपा- बसपा और भाजपा में भी…। लेकिन, वोटों का प्रतिशत अलग होगा। वोटरों का सबसे बड़ा तबका सपा और फिर बसपा की ओर जा रहा है। भाजपा की ओर रुझान कम है, किसी प्रभाव में 2 फीसदी जा सकता है। ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ नारे का मुस्लिमों पर कोई असर नहीं है। जो चल रहा है, वह ठीक नहीं है। अपेक्षा यही है, जो सरकार चला रहे हैं, बस ठीक से चलाएं। बाकी हम तो राजा बनेंगे नहीं, हमें तो प्रजा ही रहना है। जहीर कहते हैं- हम वोट किसे देंगे, यह ऊपर वाला जानता है। सही समय पर पत्ता खोलेंगे। मुस्लिमों का एक वर्ग इस चुनाव में बिक सकता है। पैसे लेकर वोट देगा। हालात भी ठीक नहीं हैं। कुछ बोलने या अपनी बात रखने पर जेल में डाल दिया जाता है। ब्राह्मण बहुल इलाकों में भाजपा की चर्चा
मझवां में सबसे ज्यादा मतदाता ब्राह्मण हैं। उनके कई गांव एक साथ हैं। पहाड़ी ब्लॉक के कई गांवों में ब्राह्मणों का रुझान भाजपा में दिखा, कुछ फीसदी बसपा प्रत्याशी को दे रहे हैं। लेकिन, सपा से ब्राह्मण दूर नजर आ रहा है। कछवा बाजार से ब्राह्मण बाहुल्य इलाकों में बढ़ें, तो पहला गांव बेदौली पड़ा। चाय की दुकान पर वकील सर्वेश तिवारी के साथ बड़ी संख्या में गांव के युवा जुटे थे। दैनिक भास्कर का माइक देखा तो चुनावी चर्चा भी शुरू हो गई। सर्वेश तिवारी ने बताया- हमारा गांव पूरी तरह से भाजपा के साथ है। यह पार्टी राष्ट्र और समाज के प्रति सोच रही है। हम विचारधारा पर वोट दे रहे हैं। किसानों के लिए बेहतरीन व्यवस्था दी गई है। हर समय लाइट आती है और सिंचाई कर सकते हैं। राजकुमार विश्वकर्मा मझवां की सीट पर त्रिकोणीय लड़ाई बता रहे हैं। उन्होंने कहा- भाजपा के पक्ष में हवा बह रही है। वोट का आधार उनके पक्ष में दिखाई दे रहा। सीएम योगी के नारे का बोलबाला भी दिख रहा है। आशीष तिवारी और प्रवीण चौबे भाजपा की जीत का दावा कर रहे हैं। दोनों का कहना है कि युवाओं का सबसे ज्यादा सपोर्ट भाजपा के साथ है। जन्मेजय शर्मा मझवां में त्रिकोणीय लड़ाई बता रहे हैं। कहते हैं- सपा, भाजपा के साथ बसपा भी मजबूती से चुनाव लड़ रही है। बसपा के पास अपना सॉलिड वोट है, जो उसे मजबूत कर रहा है। मिर्जापुर बार एसोसिएशन के अध्यक्ष संतोष उपाध्याय ने बताया- मझवां में अभी जटिल स्थिति चल रही है। भाजपा को जीता हुआ नहीं मान सकते। सभी दल मेहनत कर रहे, अच्छा चुनाव लड़ रहे हैं। अजय कुमार की मानें, तो समय आने पर परिणाम दिखेगा। लड़ाई भाजपा और सपा में है। अब बात पॉलिटिकल एक्सपर्ट की….
इलाके की राजनीति को करीब से समझने वाले प्रोफेसर मारकण्डेय सिंह ने बताया- मझवां में भाजपा की स्थिति मजबूत है। अधिकतम मतदाताओं का रुझान है कि सरकार योगी की है। उनकी पार्टी का प्रत्याशी जीतेगा, तो विकास होगा। सभी मिलकर उन्हीं से उम्मीद रखे हैं। सपा और बसपा का प्रयास जारी है, चुनाव रोचक होगा। उन्होंने बताया- सभी दल आ रहे हैं, लेकिन उनका प्रभाव जनता पर नहीं दिख रहा। जातिगत समीकरण भी प्रभावी नहीं हैं। भाजपा के आगे विपक्षी टिक नहीं रहे हैं। चौराहों, चाय की दुकानों पर भाजपा की जीत पर ही चर्चा हो रही है। 1989-90 के बाद से अब तक मझवां में वोटिंग पैटर्न नहीं बदला। यहां के मतदाता ज्यादातर दो फैक्टर पर बात करते हैं। पहला पार्टी के साथ वैचारिक जुड़ाव और दूसरा कैंडिडेट की जाति। बीजेपी और बसपा ज्यादातर इसी आधार पर चुनाव जीतती रही हैं। सपा जातीय गोलबंदी और रोजगार के मुद्दे को धार दे रही है। प्रत्याशी के पिता पुरानी तस्वीरों पर धूल साफ कर रहे हैं। वहीं, भाजपा कानून व्यवस्था और ध्रुवीकरण के भरोसे चुनावी वैतरणी पार करने की कोशिश में है। ………………………………. यह खबर भी पढ़ें अलीगढ़ के खैर में क्या हैट्रिक लगा पाएगी BJP: वोटर्स के पैर छू रहे भाजपा प्रत्याशी, AMU बना मुद्दा; सपा कितनी ताकतवर सपा अपने 32 साल के इतिहास में यहां कभी भी फाइट में नहीं रही। लेकिन, इस बारअलीगढ़ के खैर विधानसभा एरिया में जो समीकरण बन रहे हैं, उससे यह साफ है कि लड़ाई भाजपा और सपा के बीच है। चारू कैन सिर पर पल्लू रख बहू की तरह वोट मांग रही हैं। वहीं सुरेंद्र दिलेर लोगों के पैर छूते हैं। कहते हैं- आपका बेटा हूं। आशीर्वाद दीजिएगा। पढ़ें पूरी खबर…

हिमाचल BJP ने सरकार अस्थिर करने को लिखी स्क्रिप्ट:सत्तारूढ़ दल जवाबी कार्रवाई को तैयार; कांग्रेस-BJP के 9-9 विधायकों पर कार्रवाई की तलवार

हिमाचल BJP ने सरकार अस्थिर करने को लिखी स्क्रिप्ट:सत्तारूढ़ दल जवाबी कार्रवाई को तैयार; कांग्रेस-BJP के 9-9 विधायकों पर कार्रवाई की तलवार हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस सरकार पर फिर सियासी संकट मंडरा सकता है। भारतीय जनता पार्टी ने इसकी स्क्रिप्ट लिख दी है। बीजेपी कभी भी कांग्रेस के 9 विधायकों (6 पूर्व CPS और 3 कैबिनेट रेंक MLA) को अनसीट करने की मांग को लेकर राजभवन पहुंच सकती है। ऐसा हुआ तो सत्तारूढ़ कांग्रेस भी पलटवार को तैयार बैठी है। कांग्रेस सरकार के पास इस बार BJP के 9 विधायकों के खिलाफ बड़ा हथियार है। दरअसल, BJP विधायकों पर विधानसभा के बजट सत्र के दौरान सदन के भीतर दुर्व्यवहार करने के आरोप है। बीजेपी विधायकों पर आरोप है कि सत्र में इन्होंने विधानसभा के बीचोंबीच बैठने वाले सरकारी रिपोर्टरों से फाइलें छीनकर स्पीकर चेयर की ओर फेंकी। BJP विधायकों पर दुर्व्यवहार के आरोप यही नहीं कुछ विधायकों ने मार्शलों के साथ भी धक्का-मुक्की की। विधानसभा सचिवालय प्रशासन के पास इसके बाकायदा वीडियो मौजूद है। भाजपा विधायकों के इस व्यवहार को लेकर विधानसभा अध्यक्ष कुलदीप सिंह पठानिया ने इन्हें नोटिस दे रखे है। बाकायदा इनके जवाब आ गए है। अब कार्रवाई होनी शेष है। जाहिर है कि बीजेपी यदि कांग्रेस के 9 विधायकों को अनसीट करने की मांग करती है तो सत्तारूढ़ कांग्रेस भी विधानसभा के शीत कालीन सत्र में बीजेपी के 9 विधायकों के खिलाफ कार्रवाई कर सकती है। इससे मुकाबला कांग्रेस के 9 विधायक बनाम बीजेपी के 9 MLA होगा। कांग्रेस के 9 MLA की सदस्यता गई तो भी बहुमत मौजूद कांग्रेस सरकार के लिए राहत की बात यह है कि यदि ऑफिस ऑफ प्रॉफिट के तहत कांग्रेस के 9 विधायकों की सदस्यता जाती है तो भी कांग्रेस के पास बहुमत है। इससे 9 सीटों पर उप चुनाव होंगे। कांग्रेस को बहुमत के लिए 9 में से 4 सीटें जीतनी होगी। बीजेपी को सत्ता हथियाने के लिए 7 सीटें जीतनी होगी यदि कांग्रेस के विधायकों की सदस्यता गई तो बीजेपी को सत्ता के लिए कम से कम 7 विधायक जीतने जरूरी होंगे। विधानसभा स्पीकर यदि बीजेपी के 9 विधायकों को अयोग्य घोषित करते हैं तो बीजेपी को सरकार बनाने के लिए 16 सीटें जीतनी होगी। BJP के इन विधायकों पर कार्रवाई की तलवार BJP के जिन विधायकों को नोटिस दिए गए हैं, उनमें ऊना से विधायक सत्तपाल सत्ती, नाचन से विनोद सुल्तानपुरी, चुराह से हंसराज, बंजार से सुरेंद्र शौरी, सुलह से विपिन सिंह परमार, बिलासपुर से त्रिलोक जम्वाल, बल्ह से इंद्र सिंह गांधी, आनी से लोकेंद्र कुमार और करसोग से दीपराज शामिल है। राज्यपाल अभी प्रदेश से बाहर बता दें कि हिमाचल के गवर्नर अभी 19 नवंबर तक प्रदेश से बाहर है। जाहिर है कि 19 नवंबर के बाद राज्यपाल के लौटने पर ही बीजेपी अगला कदम उठाएगी। भाजपा के राज्यसभा सांसद हर्ष महाजन ने कहा कि राज्यपाल से मिलकर कांग्रेस के 9 विधायकों को अनसीट करने की मांग की जाएगी। उन्होंने कहा, सीपीएस लाभ का पद है। कांग्रेस के इन विधायकों पर तलवार सीपीएस के अलावा सीएम सुक्खू ने फतेहपुर से विधायक भवानी सिंह पठानिया को स्टेट प्लानिंग बोर्ड का कैबिनेट रेंक के साथ डिप्टी चेयरमैन, नगरोटा बगवा से विधायक आरएस बाली कैबिनेट रेंक के साथ हिमाचल पर्यटन विकास निगम का वाइस-चेयरमैन और रामपुर से विधायक नंद लाल को सातवें वित्त आयोग का अध्यक्ष लगा रखा है। इन तीन विधायकों के अलावा विपक्ष पूर्व सीपीएस किशोरी लाल, आशीष बुटेल, एमएल ब्राक्टा, सुंदर सिंह ठाकुर, संजय अवस्थी और दून से राम कुमार चौधरी को भी अनसीट करने की मांग करेगी।

पंजाब उपचुनाव: चब्बेवाल में दलबदलुओं में मुकाबला:AAP उम्मीदवार को सांसद पिता के कामों से एज, कांग्रेस के वकील क्लोज फाइट में

पंजाब उपचुनाव: चब्बेवाल में दलबदलुओं में मुकाबला:AAP उम्मीदवार को सांसद पिता के कामों से एज, कांग्रेस के वकील क्लोज फाइट में पंजाब की जिन 4 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हो रहे हैं, उनमें होशियारपुर की चब्बेवाल सीट भी शामिल है। इस सीट पर मुकाबला कांग्रेस और आम आदमी पार्टी (AAP) के बीच माना जा रहा है। AAP, कांग्रेस और भाजपा तीनों पार्टियों के उम्मीदवार दलबदलू हैं। यहां से आम आदमी पार्टी (AAP) ने सांसद डॉ. राज कुमार चब्बेवाल के बेटे इशांक को टिकट दी है। कांग्रेस ने जिला बार एसोसिएशन के प्रधान रणजीत कुमार और BJP ने पूर्व मंत्री सोहन सिंह ठंडल को मैदान में उतारा है। इशांक अभी राजनीतिक सफर की शुरुआत कर रहे हैं। वहीं रणजीत सिंह बहुजन समाजवादी पार्टी (BSP) से कांग्रेस और ठंडल अकाली दल से बीजेपी में आए हैं। अकाली दल भले ही चुनाव मैदान में न हो लेकिन हार-जीत में उनके वोट बैंक की भूमिका अहम होगी। AAP, कांग्रेस और बीजेपी अकाली दल व बसपा के वोटरों को अपनी ओर करने में लगी हुई हैं। पिछले 3 विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने 2 बार और अकाली दल ने एक बार जीत हासिल की है। साल 2012 का विधानसभा चुनाव शिरोमणि अकाली दल और बीजेपी के उम्मीदवार रहे सोहन सिंह ठंडल ने जीता था। जिसके बाद साल 2017 में विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस की टिकट पर डॉ. राजकुमार चब्बेवाल ने (अब AAP के होशियारपुर से सांसद) बीजेपी-अकाली गठबंधन के उम्मीदवार रहे सोहन सिंह ठंडल को हराया था। साल 2022 में हुए विधानसभा चुनाव में डॉ. राजकुमार चब्बेवाल ने दोबारा कांग्रेस की टिकट पर जीत दर्ज की थी। उन्होंने AAP के हरमिंदर सिंह संधू को हराया था। चब्बेवाल विधानसभा हलके में करीब 300 गांव हैं। जिनमें कुल 1 लाख 59 हजार 432 वोटर हैं। प्रशासन द्वारा 205 मतदान केंद्र बनाए गए हैं। इसमें 83,704 पुरुष और 75,724 महिला वोटर हैं। साथ ही 4 ट्रांसजेंडर भी हैं। 6 पॉइंट्स में समझें चब्बेवाल विधानसभा सीट के समीकरण…. पिता के कामों का बेटे को फायदा मिल सकता है
चब्बेवाल सीट से सांसद डॉ. राजकुमार चब्बेवाल के बेटे डॉ. इशांक कुमार AAP के उम्मीदवार हैं। हलके के लोगों की माने तो सबसे पुख्ता उम्मीदवार इंशाक कुमार ही हैं। ऐसा आम आदमी पार्टी की वजह से नहीं, बल्कि राज कुमार चब्बेवाल की वजह से है। ज्यादातर लोगों का कहना है कि हम सांसद चब्बेवाल के बेटे को वोट दे रहे हैं, ना कि आम आदमी पार्टी को। इशांक की उम्र महज 31 साल है। उन्हें पिता के किए कामों का फायदा मिलेगा। राजकुमार पिछले 2 दशकों से हलके में एक्टिव हैं। हलके के हर घर तक पहुंच रखते हैं। यह सीट इससे पहले राजकुमार के पास ही थी। उनके सांसद बनने पर इस सीट पर उपचुनाव हो रहे हैं। इशांक कुमार और उनके सांसद पिता अकाली दल के वोटरों को लुभाने में लगे हुए हैं। क्योंकि अकाली दल ने चुनाव न लड़ने का ऐलान किया है। रणजीत कुमार को तैयारी का कम समय मिला
कांग्रेस प्रत्याशी रणजीत कुमार को जनता से संपर्क करने के लिए कम समय मिला। रैलियों में AAP सरकार के अधूरे वादों का जिक्र और बिगड़ती कानून व्यवस्था के लिए सरकार की आलोचना करते हैं। रणजीत कुमार को तैयारी के लिए काफी कम समय मिला है। बसपा के वोट बैंक पर नजर बनाए हुए हैं। जिला बार एसोसिएशन के अध्यक्ष होने के नाते उन्हें वकील समुदाय के एक वर्ग का समर्थन मिल रहा है। वहीं, AAP की ओर से टिकट की दावेदारी पेश कर चुके कुछ नेता भी कांग्रेस को फायदा पहुंचा सकते हैं। क्योंकि इशांक के अलावा 2 अन्य नेताओं ने भी दावेदारी पेश की थी। मगर आप ने इशांक को टिकट दिया। ठंडल को किसानों ने घेरा
अकाली दल छोड़कर BJP में आए सोहन सिंह ठंडल पुराने खिलाड़ी हैं। ऐसा इसलिए, क्योंकि शिअद और बीजेपी की सरकार में ठंडल मंत्री पद पर थे। बीजेपी ने इस बार चब्बेवाल उपचुनाव में ठंडल पर भरोसा जताया है। दो दशक से अधिक समय तक शिअद में रहे। हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव में उन्होंने शिअद के टिकट पर चुनाव लड़ा था। जिसमें उन्हें हार मिली। इसके बाद वह भाजपा में शामिल हो गए। ठंडल को किसानों के गुस्से का सामना करना पड़ रहा है। ठंडल शिअद के वोटरों को अपनी तरफ करने में लगे हुए हैं। जानिए क्या कहते हैं वोटर… AAP उम्मीदवार इशांक का ज्यादा रुझान
चब्बेवाल के कपड़ा कारोबारी सुरिंदर कुमार ने कहा कि इस सीट पर होशियारपुर से सांसद डॉ. राजकुमार के बेटे इशांक ही जीतेंगे। वह AAP को नहीं बल्कि राजकुमार को वोट दे रहे हैं। चब्बेवाल ने उनके गांव और एरिया में जो पिछली सरकारों में फंसे काम थे, सभी करवाए। हमारे बाजार में AAP उम्मीदवार के अलावा कोई उम्मीदवार वोट मांगने तक नहीं पहुंचा। ऐसे में चब्बेवाल में इशांक का ही ज्यादा रुझान नजर आ रहा है। कांग्रेस मुकाबले में है, लेकिन AAP को हराना बहुत मुश्किल
चब्बेवाल में चिकन की दुकान चलाने वाले परमजीत सिंह ने बताया कि हमारे एरिया में सांसद डॉक्टर राजकुमार चब्बेवाल का सबसे ज्यादा जोर है। कांग्रेस मुकाबले में है, मगर हराना बहुत मुश्किल है। क्योंकि राजकुमार ने हमारे एरिया में काफी काम किए हैं। जैसे की सड़कें, पानी और फ्लाईओवर सहित अन्य काम करवाए। वोटिंग की डेट आगे बढ़ने से कांग्रेस को फायदा मिल सकता है
चब्बेवाल में स्पेयर पार्ट का कारोबार करने वाले अवतार सिंह ने बताया कि इस वक्त चब्बेवाल में दोनों पार्टियों (AAP और कांग्रेस) के 50-50 चांस हैं। चुनाव आयोग ने जो वोटिंग की डेट आगे बढ़ाई है इससे सीधा फायदा कहीं न कहीं कांग्रेस को मिला है। क्योंकि कांग्रेस अब लोगों तक पहुंच रही है। कांग्रेस के उम्मीदवार को तैयारी के लिए कम समय मिला है। ऐसे में मुकाबला टक्कर का हो सकता है। जालंधर सांसद चरणजीत सिंह चन्नी लोगों के घरों तक जा रहे हैं। साथ ही कांग्रेस की बड़ी लीडरशिप भी मैदान में है। एक्सपर्ट बोले- कांग्रेस के रणजीत सिंह क्लोज फाइट में
राजनीति में अच्छी पकड़ रखने वाले सीनियर एडवोकेट शमशेर भारद्वाज ने कहा चब्बेवाल के रुझान इस वक्त सांसद डॉ. राजकुमार चब्बेवाल के बेटे इशांक कुमार के पक्ष में हैं। मगर मैं समझता हूं कि कांग्रेस के उम्मीदवार रणजीत सिंह क्लोज फाइट में हैं। क्योंकि वह काफी पढ़े लिखें हैं। मगर लोगों का कुछ कह नहीं सकते। अभी तक का रुझान सांसद परिवार के साथ है। …………………………………. पंजाब उपचुनाव से जुड़ी ये खबरें भी पढ़ें- बरनाला में तिकोना मुकाबला:AAP को बागी का नुकसान, BJP शहरी वोटर्स के भरोसे; कांग्रेस को सत्ता के विरोध से आस पंजाब में 4 सीटों पर 20 नवंबर को उपचुनाव के लिए वोटिंग होगी। यहां बरनाला सीट पिछले 10 साल से आम आदमी पार्टी (AAP) के कब्जे में रही है। दोनों बार यहां से गुरमीत मीत हेयर जीते थे। जो अब सांसद बन चुके हैं। AAP ने सीट दोबारा पाने के लिए उनके ही करीबी दोस्त हरिंदर धालीवाल को टिकट दी है। मगर, इससे पार्टी में बगावत हो गई और पार्टी के जिला प्रधान रहे गुरदीप बाठ बगावत कर चुनाव लड़ रहे हैं। जिससे AAP की मुश्किलें बढ़ गई हैं। पूरी खबर पढ़ें डेरा बाबा नानक में कांग्रेस-AAP का मुकाबला:BJP काहलों फैमिली के रसूख पर निर्भर; अकाली दल का वोट बैंक डिसाइडिंग फैक्ट पंजाब में 4 सीटों पर उपचुनाव के लिए 20 नवंबर को वोटिंग होगी। इस उपचुनाव में गुरदासपुर जिले की डेरा बाबा नानक सीट सुर्खियों में है। इसकी वजह है कि यहां से कांग्रेस के मौजूदा सांसद सुखजिंदर सिंह रंधावा की पत्नी उपचुनाव लड़ रही हैं। वहीं रंधावा और सत्ता में बैठी आम आदमी पार्टी (AAP) के सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल के बीच खूब जुबानी जंग चल रही है। पूरी खबर पढ़ें

बाबू-बेटा कहने पर फूटा भूपेंद्र हुड्‌डा का दर्द:बोले- अपनी पार्टी देखो, मुझे किसी बच्चों से ईर्ष्या नहीं, अपने परिवार पर गर्व

बाबू-बेटा कहने पर फूटा भूपेंद्र हुड्‌डा का दर्द:बोले- अपनी पार्टी देखो, मुझे किसी बच्चों से ईर्ष्या नहीं, अपने परिवार पर गर्व हरियाणा चुनाव में बाबू-बेटा कहे जाने पर पूर्व CM भूपेंद्र हुड्‌डा का दर्द फूट पड़ा। उन्होंने विरोधियों को कहा कि हमारा तो परिवारवाद हो गया लेकिन अपनी पार्टी देखो। मुझे किसी के बच्चों से कोई ईर्ष्या नहीं है। मैं तो खुश हूं और उनको आशीर्वाद देता हूं। हुड्‌डा ने यह भी कहा कि मुझे तो मेरे परिवार पर गर्व है। हुड्‌डा ने यह बातें विधानसभा सेशन के दौरान कहीं थी। जिसके बाद उनके बयान अब खूब वायरल हो रहे हैं। बता दें कि हरियाणा चुनाव में कांग्रेस ने पूर्व सीएम भूपेंद्र हुड्‌डा की अगुआई में लड़ा। उनके रोहतक से सांसद बेटे दीपेंद्र हुड्‌डा ने पूरे प्रदेश में प्रचार किया। इस दौरान भाजपा और CM नायब सैनी से लेकर JJP तक के नेता हुड्‌डा पिता-पुत्र पर निशाना साधते रहे। हालांकि तब उन्होंने इसका कोई जवाब नहीं दिया। चुनाव में कांग्रेस के माहौल के बावजूद भाजपा ने 90 में से 48 सीटें जीतकर बहुमत पा लिया। वहीं कांग्रेस 37 सीटों पर ही रह गई। जिसके बाद अब विरोधियों की जगह कांग्रेस के भीतर ही हुड्‌डा पिता-पुत्र का विरोध किया जा रहा है। भूपेंद्र हुड्‌डा की कहीं 4 अहम बातें… 1. ब्लॉक समिति चेयरमैन से CM तक गया
भूपेंद्र हुड्‌डा ने कहा- मैंने भी एक ब्लॉक समिति के चेयरमैन से काम शुरू किया। धरती से जुड़ा हुआ हूं। MLA और सांसद भी रहा। सेवा की तो चीफ मिनिस्टर तक गया। 3 बार प्रतिपक्ष का नेता भी रहा। हमारा तो परिवारवाद हो गया। 2. अपनी पार्टी देखो, मुझे कोई ईर्ष्या नहीं
आप अपनी पार्टी में देखो। मुझे कोई ईर्ष्या नहीं है। मेरे पार्टी के बच्चे हैं। कोई मिनिस्टर है। कोई कुछ है। मैं खुश हूं। मैंने आशीर्वाद दिया उनको। तुम्हारे को ईर्ष्या होती है। कोई कहता है बाप बेटा… बाबू बेटा। अरे तुम अपनी तो देख लो। मैं एक ही बात कहूंगा कि खुद को तो देख लो। 3. दादाजी को काले पानी की सजा हुई
हुड्‌डा ने कहा- परिवारवाद, ये परिवारवाद की डिफिनेशन (परिभाषा) समझ नहीं आई। और कोई बात नहीं, कहेंगे कांग्रेस में परिवारवाद है। मुझे तो गर्व है अपने परिवार का। मेरे दादा स्वतंत्रता सेनानी थे। शहीद भगत सिंह के चाचा अजीत सिंह और मेरे दादाजी को काले पानी की सजा का हुक्म हुआ था। 4. पिताजी 8 बार जेल गए, संविधान पर साइन किए
मेरे पिताजी 8 बार जेल में गए। 4 आज पाकिस्तान और 4 हिंदुस्तान में हैं। जिस संविधान के तहत आज हम यहां (हरियाणा विधानसभा) बैठे हैं, उस पर 283 लोगों के साइन थे, एक मेरे पिताजी के थे। इन नेताओं ने कसे थे हुड्‌डा पर तंज
CM नायब सैनी ने चुनाव प्रचार के दौरान भूपेंद्र हुड्‌डा और दीपेंद्र हुड्‌डा पर बापू-बेटा कहकर तंज कसा था। उन्होंने कहा था कि बापू-बेटा लगे हुए हैं। सैलजा समर्थक पूर्व विधायक शमशेर गोगी ने कहा कि कांग्रेस में बापू-बेटे की वन वे ट्रैफिक थी। पूर्व डिप्टी CM और JJP नेता दुष्यंत चौटाला के अलावा भाजपा की राज्यसभा सांसद किरण चौधरी ने भी बाबू-बेटा कहकर हुड्‌डा पिता-पुत्र पर खूब तंज कसे थे। इसी वजह से हुड्‌डा नाराज नजर आए। हुड्‌डा परिवार की पूरी कहानी पढ़ें… हुड्डा ने डिप्टी PM देवीलाल को 3 बार हराया: पिता से मिली राजनीतिक विरासत; CM बने तो बेटे को अमेरिका से बुलाकर सांसद बनवाया​​​​​​ हुड्डा लगातार 2 बार हरियाणा के मुख्यमंत्री और 4 बार सांसद रहे। उनके पिता रणबीर हुड्डा 3 बार सांसद और एक बार हरियाणा सरकार में मंत्री रहे। भूपेंद्र के बेटे दीपेंद्र हुड्डा चौथी बार लोकसभा पहुंचे हैं। आज हुड्डा परिवार की तीसरी पीढ़ी राजनीति में है (पूरी खबर पढ़ें)