जिस गांजे पर फंसे सांसद अफजाल अंसारी, उसकी कहानी…:मध्य एशिया से 4 हजार साल पहले भारत आया, वेद में औषधि बताया ‘लाखों-करोड़ों लोग खुलेआम गांजा पीते हैं। उसे भगवान का प्रसाद और भगवान की बूटी कहकर पीते हैं। भगवान की बूटी है, तो अवैध क्यों? अपने योगी बाबा से कहिए, गांजा को कानून में मान्यता दिलाएं। अगर गांजा कानूनन अवैध है, तो पीने की छूट क्यों है? ये दोहरी नीति नहीं चलेगी। कुंभ में एक मालगाड़ी गांजा चला जाए तो खप जाएगा। साधु-संत, महात्मा और समाज के बहुत लोग गांजा बड़े शौक से पीते हैं। न यकीन हो तो मेरे साथ गाजीपुर के मठों में चलकर देखिए। लखनऊ में भी पी रहे हैं। मेरी मांग है कि इसे कानून का दर्जा दे दीजिए।’ 26 सितंबर को गाजीपुर में सपा सांसद अफजाल अंसारी ने ये बातें कहीं। उनके इस बयान का राज्य में जगह-जगह साधु-संतों ने विरोध करना शुरू कर दिया। सनातन धर्म को बदनाम करने की साजिश बताया। उनकी गिरफ्तारी की मांग हो रही है। गांजा क्या है? भारत में यह वैध है या अवैध? भगवान की बूटी और साधु-संतों के पीने को लेकर क्या सच्चाई है? पूरी कहानी भास्कर एक्सप्लेनर में जानिए- सबसे पहले जानिए गांजा या भांग क्या होता है?
गांजा को अंग्रेजी में कैनबिस, मारिजुआना या वीड भी कहते हैं। इसमें टेट्रा-हाइड्रोकार्बन बिनोल पाया जाता है, जिसे आसान शब्दों में THC भी कहते हैं। इसे लेने के बाद अजीब सी खुशी महसूस होती है। इसी खुशी को पाने की बार-बार चाहत में लोग इसके आदी होने लगते हैं। गांजा मिलता कहां है? इसकी बात करें तो इसके पौधे होते हैं। पौधे में तना, पत्ती, फल और बीज होता है। अक्सर लोग भांग और गांजा को एक समझते हैं, लेकिन ऐसा नहीं है। यह एक ही पौधे की प्रजाति के अलग-अलग रूप हैं। इन पौधों की नर प्रजाति को भांग और मादा प्रजाति को गांजा कहते हैं। गांजे में भांग के मुकाबले THC ज्यादा होता है। नर प्रजाति (भांग) के पौधों की पहचान: भांग के पौधों के तने मोटे होते हैं। इनके पूरे तने फूल से भरे होते हैं। इनकी लंबाई भी ज्यादा होती है। इसमें पत्तियां कम होती हैं। मादा प्रजाति (गांजा) के पौधों की पहचान: गांजा के पौधों की लंबाई नर प्रजाति के पौधों के मुकाबले छोटी होती है। इनका तना भी नर की तुलना में पतला होता है। इनमें पत्तियां ज्यादा होती हैं। फूल सिर्फ ऊपरी हिस्से में होता है। अथर्ववेद में पृथ्वी के पांच सबसे पवित्र पौधों में गांजे और भांग का जिक्र
भारतीय उपमहाद्वीप में गांजा या भांग के पौधे का जिक्र प्राचीन है। करीब चार हजार साल पहले इसका जिक्र है। दूसरे शब्दों में कहें, तो वैदिक काल में। यह समय था करीब 1200 से 600 ईसा पूर्व के बीच। हिंदू धर्म के पवित्र धर्मग्रंथों में शामिल और दुनिया के सबसे प्राचीन साहित्य चार वेदों में से एक अथर्ववेद में भांग का सबसे पहला जिक्र मिलता है। अथर्ववेद में इसे पृथ्वी के सबसे पवित्र पांच पौधों में से एक बताया गया है। इस पौधे को खुशी का स्त्रोत और मुक्ति देने वाला कहा गया है। गांजे के इतिहास को लेकर प्रोफेसर मार्क एस. फेरारा ने सेक्रेड ब्लिस: अ स्पिरिचुअल हिस्ट्री ऑफ कैनबिस नाम से किताब लिखी है। इसमें अथर्ववेद में लिखे श्लोक का अर्थ बताते हैं- भांग और जड़ी-बूटियां मुझे विषकंध (बीमारी) से बचाएं, जो हमें जंगल से लेकर आई हैं। यह खेती के रस से उत्पन्न हुई है। मध्य एशिया से गांजा और भांग के पौधे भारत आए
इसके भारत में आने को लेकर कहा जाता है कि मध्य एशिया के लोग इसे लेकर आए। भूगोलविद बार्नी वार्फ अपने रिसर्च पेपर ‘हाई पॉइंट: एन हिस्टोरिकल ज्योग्राफी ऑफ कैनबिस’ में कहते हैं, इस बात की पूरी संभावना है कि आर्यों के आक्रमण (इस थ्योरी को लेकर विवाद है) के जरिए यह भारत में आया। भारत के अलावा इसका जिक्र चीन, असीरिया, ग्रीक और रोमन की प्रचीन सभ्यताओं में भी मिलता है। यूनिवर्सिटी ऑफ सिडनी की एक रिसर्च के मुताबिक, इन सभ्यताओं के साहित्य में गांजा और भांग के पौधों से तमाम तरह की स्वास्थ्य समस्याओं के हल की बात कही गई है। साधु-संन्यासी गांजा और भांग को शिव और आध्यात्म से जोड़ते हैं
भारत में गांजा अवैध है। लेकिन, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि धार्मिक और सामाजिक रूप से ये भारतीय संस्कृति से जुड़ा है। इसके प्राचीन हिंदू ग्रंथों में जिक्र और भगवान शिव से जुड़े होने की कथा की वजह से साधु-संत इसका इस्तेमाल करने को धर्म से जोड़ते हैं। अमेरिकी समाजशास्त्री थिओडोर एम गोडलास्की ने भारत में भांग या गांजे का धर्म से जोड़े जाने को लेकर 2012 में एक आर्टिकल लिखा। इसको नाम दिया ‘शिवा द लॉर्ड ऑफ भांग’। वो बताते हैं कि साधु-संन्यासी अक्सर मादा पौधे से बना गांजा या उसी पौधे से निकले लिसलिसे पदार्थ से बने चरस का इस्तेमाल करते हैं। इसे ‘चिलम’ कहा जाता है। गोडलास्की साधुओं के चिलम पीने की रस्म का बारीकी से ब्योरा देते हैं। वो कहते हैं- चिलम कभी भी अकेले नहीं पिया जाता, इसे समूह में पीते हैं। पहला व्यक्ति पॉट को भरता है, दूसरे को पास करता है। दूसरा उसे माथे तक उठाता है और ‘बम शंकर’ कहता है। जैसे वह शिव की भक्ति कर रहा हो। इसी आर्टिकल में वह बताते हैं कि गांजे का इस्तेमाल सिर्फ धार्मिक रूप तक ही सीमित नहीं है। शिवरात्रि और कुंभ मेला में प्रसाद के रूप में जमकर भांग खाई और पी जाती है। गांजा को जलाकर शिव को अर्पित किया जाता है। फरारा इसी आर्टिकल में कहते हैं, भांग और गांजे के धर्म में इस्तेमाल को सिर्फ शिव भक्तों तक सीमित नहीं किया जा सकता। इसका इस्तेमाल सूफी, चीनी ताओवादी, अफ्रीकी डग्गा पंथ के सदस्य और जमैका के रस्ताफरियाई लोग भी करते हैं। भारत में ड्रग्स के इस्तेमाल को लेकर क्या कानून है?
भारत में पहले गांजे का इस्तेमाल खुले तौर पर किया जा सकता था, लेकिन 1985 में इस पर रोक लगा दी गई। सरकार ने 1985 में नारकोटिक ड्रग और साइकोट्रोपिक सब्सटेंस (NDPS) एक्ट पास किया। इसके तहत नारकोटिक और साइकोट्रोपिक पदार्थ के प्रोडक्शन यानी खेती, खरीद-फरोख्त, ट्रांसपोर्ट, स्टोर और कंजंप्शन को बैन किया गया। 1985 में ही ये एक्ट लागू हुआ। इसमें कुल 6 चैप्टर और 83 सेक्शन हैं। NDPS एक्ट में भांग के पौधे के अलग-अलग भागों के इस्तेमाल को कानूनी और गैरकानूनी घोषित किया गया है। कानून में पौधे के फूल को गांजे के तौर पर परिभाषित किया गया है, जिसका इस्तेमाल अपराध है। इसी वजह से गांजे का इस्तेमाल भी गैरकानूनी है। कानून के उल्लंघन पर सजा और जुर्माना दोनों का प्रावधान है। 1 से लेकर 20 साल तक की सजा हो सकती है, 10 हजार से लेकर 2 लाख तक का जुर्माना भी हो सकता है। वहीं, भारत में भांग का इस्तेमाल खुले तौर पर किया जा सकता है। कई राज्यों में यह सरकारी ठेकों पर भी मिलता है। अगर गांजा अवैध है तो भांग की सरकारी दुकानें क्यों?
देश के कई शहरों में भांग की सरकारी दुकानें होती हैं। ये खुलेआम मुख्य सड़कों पर बड़े-बड़े बोर्ड के साथ होती हैं। इन पर लिखा होता है- सरकारी भांग की दुकान। ऐसे में, यहां सवाल उठता है कि अगर गांजा अवैध है तो उसी के नर प्रजाति के पौधे से बनने वाला भांग कैसे वैध है। यहीं होती है NDPS कानून में एक लूपहोल की एंट्री। कैनबिस के पौधे से निकलने वाले लिसलिसे पदार्थ का लेन-देन गैरकानूनी है। लेकिन उसी पौधे के बीज, तने और पत्तियों का इस्तेमाल अवैध नहीं है। यहीं से पूरे पिक्चर में भांग आती है। भांग लीगल है, क्योंकि वह कैनबिस पौधे के सिर्फ पत्तियों को पीस कर तैयार होती है। इन पौधों को उगाने के लिए सरकार लाइसेंस देती है। इसे हर कोई नहीं उगा सकता। 2018 में उत्तराखंड ऐसा पहला राज्य बना, जिसने कैनबिस पौधों के औद्योगिक उत्पादन के लिए लाइसेंस जारी करना शुरू किया। यूपी, उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर में कैनबिस की खेती का लाइसेंस मिलता है
भारत में यह पौधा हिमालय की तलहटी और आसपास के मैदानों में, पश्चिम में कश्मीर से लेकर पूर्व में असम तक पाया जाता है। वैसे तो ये एक जंगली पौधे के तौर पर पाया जाता है, लेकिन इसका उत्पादन कॉमर्शियल भी होता है। जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश की सरकारें कैनबिस के पौधों की खेती के लिए लाइसेंस देती हैं। ये लाइसेंस मेडिसिनल, रिसर्च और डेवलपमेंट और औद्योगिक उत्पादन के लिए होता है। हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र इसके उत्पादन के लिए लाइसेंस देने की पॉलिसी पर काम कर रहे हैं। दुनिया की बात करें तो पिछले कुछ साल में अमेरिका, कनाडा, जापान, फ्रांस, इटली, हंगरी, चीन, डेनमार्क और दूसरे यूरोपीय देश भांग की बड़े पैमाने पर खेती करने लगे हैं। इनके मेडिसिनल फायदे पता चलने के बाद इन देशों में उत्पादन बढ़ा है। इसकी खेती की बात करें तो आमतौर पर अगस्त में बीज बोए जाते हैं। सितंबर के अंत तक जब पौधे 6-12 इंच के हो जाते हैं, तब इनकी रोपाई की जाती है। नवंबर तक पौधों की ट्रिमिंग कर निचली डालियों को काट दिया जाता है। गांजे के मेल और फीमेल प्लांट को अलग-अलग किया जाता है। जनवरी-फरवरी तक गांजा उपयोग के लिए पूरी तरह तैयार हो जाता है। दुनिया के इन देशों में गांजे का इस्तेमाल वैध जर्मनी: 2023 में जर्मनी ने गांजे के इस्तेमाल को वैध कर दिया। तब स्वास्थ्य मंत्री कार्ल लॉटरबैश ने कहा था कि इस कानून का गलत मतलब नहीं समझना चाहिए। गांजा कानूनी हो जाएगा, लेकिन यह हानिकारक तो रहेगा ही। इस बिल का मकसद गांजे की कालाबाजारी और ड्रग से जुड़े अपराधों पर लगाम लगाना है, ताकि हानिकारक चीजों का इस्तेमाल रोका जा सके। साथ ही इसके ग्राहकों की संख्या में भी कमी लाई जा सके। ऑस्ट्रेलिया: ऑस्ट्रेलियाई राजधानी क्षेत्र ने 2019 के अंत में गांजे को वैध बनाने के लिए एक कानून पारित किया। जनवरी, 2020 में इस कानून के लागू होने के बाद कोई भी शख्स निजी उपयोग के लिए छोटी मात्रा में गांजा-भांग रख सकता है और उसे उगा सकता है। अमेरिका: 37 राज्यों में डॉक्टर के प्रिस्क्राइब करने पर गांजे का उपयोग कर सकते हैं। वहीं 21 राज्यों में मनोरंजक कामों के लिए इसका उपयोग किया जा सकता है। कनाडा: अक्टूबर 2018 में फेडरल कैनबिस एक्ट आने के बाद से मारिजुआना को कानूनी बना दिया। एक्ट के मुताबिक, हर घर को केवल चार पौधे लगाने और एक शख्स को 30 ग्राम गांजा ले सकने की परमिशन है। कोलंबिया: 1994 में बने कानून के मुताबिक, आम लोग आंशिक तौर पर गांजे का उपयोग कर सकते हैं। जॉर्जिया: 30 जुलाई 2018 को जॉर्जिया की संवैधानिक कोर्ट के फैसले के बाद गांजे का मेडिकल और मनोरंजक उपयोग वैध कर दिया गया। यह खबर भी पढ़ें नरसिंहानंद के पास 5 हजार लोगों की ‘सेना’, गाजियाबाद में डासना मंदिर 4 लाख स्क्वायर फीट में फैला, मुसलमानों को एंट्री नहीं करीब 4 लाख स्क्वायर फीट में फैले डासना देवी मंदिर को पूजने वाले लोग देश-दुनिया में हैं। इस कैंपस में मुस्लिम धर्म के लोगों की एंट्री बैन है। बिना ID दिखाए एंट्री नहीं मिलती। खुद की 5 हजार लोगों की ‘धर्म सेना’ है। करीब 25 PAC के जवान 24 घंटे सिक्योरिटी में तैनात रहते हैं। अंदर की व्यवस्थाएं 200 से ज्यादा वॉलंटियर संभालते हैं। इन दिनों यह मंदिर, यहां के पीठाधीश्वर यति नरसिंहानंद के 1 बयान की वजह से सुर्खियों में है। यहां पढ़ें पूरी खबर