सपा पीडीए, ब्राह्मण वोट और भाजपा से नाराज वर्ग को अपने पक्ष में करके मिल्कीपुर उपचुनाव जीतना चाहती है। पार्टी इसी रणनीति पर काम कर रही है। वहीं, भाजपा रामपुर और कुंदरकी मॉडल यहां न अपना पाए इसके लिए सपा माइंड गेम भी खेल रही है। सपा प्रमुख अखिलेश यादव दावा कर रहे हैं कि निष्पक्ष चुनाव हुआ तो उनकी पार्टी को कोई हरा नहीं सकता। वह मीडिया से अपील कर रहे हैं कि उनकी बड़ाई और मजबूती न दिखाए। दूसरी ओर मिल्कीपुर के चुनाव को देश के उपचुनावों के इतिहास का सबसे बड़ा चुनाव बताकर देश ही नहीं, दुनिया भर की मीडिया को आमंत्रित कर रहे हैं। कुंदरकी की हार को सपा अपनी हार मानने को तैयार नहीं है। खुद अखिलेश यादव इस सीट पर भाजपा की जीत को धांधली से हासिल की हुई बताने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे। मिल्कीपुर चुनाव को लेकर अखिलेश यादव का मानना है कि इस चुनाव का रिजल्ट बड़ा संदेश देकर जाएगा। इस चुनाव के बाद भाजपा का ये भ्रम टूट जाएगा कि कुछ लोग हमेशा उन्हीं को वोट देते हैं। मिल्कीपुर में पीडीए का सौहार्द जीतेगा और साम्प्रदायिक राजनीति हारेगी। अखिलेश यादव की पूरी कोशिश है किसी तरह मीडिया मिल्कीपुर पर फोकस करे और वहां पारदर्शी तरीके से चुनाव हो तो मामला उनके पक्ष में होगा। जानिए सपा की तीन रणनीति क्या हैं? 1- पीडीए के नाम पर जीत का भरोसा
राजनीतिक विश्लेषक सिद्धार्थ कलहंस कहते हैं मिल्कीपुर में जातीय समीकरण सपा के पक्ष में नजर आ रहे हैं। सपा पीडीए फॉर्मूले को आगे कर और अगड़ों में ब्राह्मणों को रिझा कर चुनाव अपने पक्ष में करने की रणनीति पर काम कर रही है। पवन पांडेय के जरिए सपा इस मुहिम में लगी है। भाजपा ने यहां लोकसभा चुनाव हारे लल्लू सिंह को प्रभारी बनाया है। ऐसे में लल्लू के विरोधी सपा के पक्ष में काम कर सकते हैं। वहीं, अखिलेश यादव खुद कह रहे हैं कि पीडीए का प्रतिनिधि चुनाव लड़ रहा है। अखिलेश कहते हैं कि मिल्कीपुर का चुनाव पीडीए बनाम भाजपा के भ्रष्ट तंत्र के बीच का मुकाबला है। 2-भाजपा के भितरघात से भी आस
फैजाबाद के लोकसभा चुनाव की तरह मिल्कीपुर उपचुनाव में भी भाजपा प्रत्याशी का विरोध खुद पार्टी के लोग कर रहे हैं। भाजपा के स्थानीय नेताओं के बीच नाराजगी की खबरें भी आम हैं। ऐसे में सपा की रणनीति है कि इसे और हवा देकर माहौल को अपने पक्ष में किया जाए। 2017 में यह सीट भाजपा की झोली में डालने वाले बाबा गोरखनाथ को इस बार टिकट नहीं मिला है। इसलिए वह नाराज बताए जा रहे हैं। 3-बाहरी, गुजराती का मुद्दा
भाजपा ने चंद्रभानु पासवान को प्रत्याशी बनाया है, वह गुजरात में रहकर कारोबार करते हैं। मिल्कीपुर विधानसभा क्षेत्र में उनका वोट भी नहीं है। ऐसे में सपा यह साबित करने की कोशिश कर रही है कि मिल्कीपुर में उनके प्रत्याशी अजीत प्रसाद स्थानीय हैं। उनके पिता अवधेश प्रसाद पासी इस सीट से कई बार विधायक रह चुके हैं। स्थानीय होने के नाते जनता उन्हें जिता कर विधानसभा पहुंचाएगी। जातिगत समीकरण क्या?
सिद्धार्थ कहते हैं कि मिल्कीपुर का समीकरण न तो रामपुर जैसा है और न ही कुंदरकी जैसा। यहां मुस्लिम आबादी कम है। जो है भी वह समूह में किसी एक जगह के वोट नहीं हैं, बल्कि मिक्स आबादी का हिस्सा हैं। इसलिए यहां रामपुर या कुंदरकी मॉडल लागू कर पाना आसान नहीं है। आबादी की बात करें तो यहां सबसे ज्यादा ब्राह्मण-गोसाई जाति के लोग हैं। इनकी संख्या 75 हजार बताई जाती है। इसके बाद पासी 57 हजार हैं, जिस जाति से सपा और भाजपा दोनों ने अपने प्रत्याशी उतारे हैं। वहीं, राजनीति के जानकारों का कहना है कि अगर सपा का पीडीए फॉर्मूला चला यानी पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक एक साथ आए तो उसकी राह आसान रहेगी। वहीं, भाजपा सरकार की ओर से दिया जा रहा राशन वोट में तब्दील होता है तो सभी समीकरण धरे के रह जाएंगे। अयोध्या में जमीन का मुद्दा भी उठा रही सपा
अयोध्या के विकास के नाम पर किसानों और स्थानीय लोगों की जमीन ली गई है। सपा मुद्दा उठा रही है कि यहां सस्ते दाम में जमीन ली जा रही है। वह मुद्दे को उठाकर सरकार से नाराज लोगों को एकजुट करने की कोशिश भी कर रही है। सपा ने बाकायदा ऐलान कर दिया है कि वे सत्ता में आए तो बाजार के रेट पर मुआवजा देंगे। इसका सपा काे कितना लाभ मिलता है, यह पांच फरवरी के बाद पता चलेगा। राजनीतिक विश्लेषक राजेंद्र कुमार कहते हैं कि यह चुनाव भाजपा-सपा का नहीं बल्कि अखिलेश और योगी के बीच का है। यही वजह है सपा योगी सरकार को घेरने का कोई मौका नहीं छोड़ रही है। भाजपा भी पूरा जोर लगा रही है। मायावती ने भी चुनाव न लड़ने का ऐलान किया है। उन्होंने योगी सरकार पर कानून व्यवस्था को लेकर हमला कर अपने मतदाताओं को संकेत दे दिया है कि उन्हें चुनाव में क्या करना है। सपा ने अवधेश प्रसाद काे बनाया दलित आईकॉन
फैजाबाद सीट जीतने के बाद से समाजवादी पार्टी ने मिल्कीपुर के विधायक रहे अवधेश प्रसाद पासी को दलित आईकॉन के रूप में पेश किया है। अखिलेश यादव सड़क से लेकर संसद तक में उन्हें आगे करने से गुरेज नहीं कर रहे। भाजपा केवल दो बार ही जीत सकी है मिल्कीपुर सीट
मिल्कीपुर में भाजपा दो बार चुनाव जीत सकी है। भाजपा यहां 1991 में चुनाव जीती थी। यह चुनाव बाबरी विध्वंस के बाद पहला चुनाव था। इसके बाद भाजपा लगातार यहां हारती रही। 2017 में मोदी लहर में यह चुनाव भाजपा ने जीता था। 2022 में सपा ने इस पर फिर से कब्जा कर लिया था। समाजवादी पार्टी यहां 1996, 2002, 2012 और 2022 में जीत दर्ज कर चुकी है। 2007 में यहां बसपा के आनंद सेन ने जीत दर्ज की थी। 2022 के बाद से अब तक यूपी में 18 सीटों पर उपचुनाव
2022 में हुए विधानसभा चुनाव के बाद से अब तक यूपी में 18 विधानसभा चुनाव हो चुके हैं। इसमें से 2022 में सपा का 8 सीटों पर कब्जा था। उपचुनाव के बाद सपा ने भाजपा से एक सीट छीनी जबकि भाजपा ने सपा की 3 सीट छीनने में कामयाबी हासिल की। एक सीट सपा की भाजपा की सहयोगी अपना दल ने जीती। भाजपा 2022 में जीती 2 सीटें उपचुनावों में हार चुकी है, जबकि सपा चार सीटें उपचुनावों में गंवा चुकी है। कुल मिलाकर सपा की विधानसभा 2022 में 109 सीट थी जो अब 107 पर पहुंच गई है। वहीं भाजपा 255 थी और 257 पर पहुंच गई है। एक-एक सीट का लाभ रालोद और अपनादल को हुआ है। रालोद ने 2022 का चुनाव सपा के साथ मिलकर लड़ा था और 2024 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले उसने पाला बदल लिया था और भाजपा के साथ हो गई थी। अखिलेश यादव ने क्या कहा था?
समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा था- मिल्कीपुर उपचुनाव देश के उपचुनावों के इतिहास का सबसे बड़ा चुनाव होगा। इसीलिए हम चाहते हैं कि दुनियाभर के जो जर्नलिस्ट हैं वो इस चुनाव को देखने-समझने-कवर करने आएं। इस चुनाव की केस स्टडी करने के लिए हम दुनिया के बड़े विद्वानों को आमंत्रित करते हैं। हम चाहते हैं कि उप्र की सरकार इस उपचुनाव को ‘पारदर्शी चुनाव का उदाहरण’ बनाए और वो भी सबको आमंत्रित करें। चाचा की तेरहवीं के बाद मिल्कीपुर जाएंगे अखिलेश
अखिलेश यादव अपने चाचा राजपाल यादव की तेरहवीं के बाद मिल्कीपुर जाएंगे और अपने प्रत्याशी अजीत प्रसाद के पक्ष में वोट मांगेंगे। राजपाल यादव की तेरहवीं 20 जनवरी को सैफई में होगी। वहीं अखिलेश यादव ने अपने कार्यकर्ताओं को भी इस चुनाव में भाजपा से हर स्तर पर निपटने के लिए कहा है। इसका क्या असर होता है यह मतदान के दिन ही पता चल सकेगा। ————————- ये खबर भी पढ़ें… मिल्कीपुर में जाति के हिसाब से भाजपा ने उतारे मंत्री:एक-एक बूथ का लेखा-जोखा तैयार; सबसे बड़ी चुनौती अपनों को मनाना 2027 के विधानसभा चुनाव से पहले मिल्कीपुर उपचुनाव भाजपा-सपा के लिए प्रतिष्ठा का सवाल है। उपचुनाव की 9 में से 6 सीटें जीतने के बाद भाजपा हर हाल में मिल्कीपुर में भी जीत दर्ज करना चाह रही। पार्टी ने प्रत्याशी घोषित करने के साथ ही जातीय समीकरण बिठाने शुरू कर दिए हैं। पढ़ें पूरी खबर सपा पीडीए, ब्राह्मण वोट और भाजपा से नाराज वर्ग को अपने पक्ष में करके मिल्कीपुर उपचुनाव जीतना चाहती है। पार्टी इसी रणनीति पर काम कर रही है। वहीं, भाजपा रामपुर और कुंदरकी मॉडल यहां न अपना पाए इसके लिए सपा माइंड गेम भी खेल रही है। सपा प्रमुख अखिलेश यादव दावा कर रहे हैं कि निष्पक्ष चुनाव हुआ तो उनकी पार्टी को कोई हरा नहीं सकता। वह मीडिया से अपील कर रहे हैं कि उनकी बड़ाई और मजबूती न दिखाए। दूसरी ओर मिल्कीपुर के चुनाव को देश के उपचुनावों के इतिहास का सबसे बड़ा चुनाव बताकर देश ही नहीं, दुनिया भर की मीडिया को आमंत्रित कर रहे हैं। कुंदरकी की हार को सपा अपनी हार मानने को तैयार नहीं है। खुद अखिलेश यादव इस सीट पर भाजपा की जीत को धांधली से हासिल की हुई बताने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे। मिल्कीपुर चुनाव को लेकर अखिलेश यादव का मानना है कि इस चुनाव का रिजल्ट बड़ा संदेश देकर जाएगा। इस चुनाव के बाद भाजपा का ये भ्रम टूट जाएगा कि कुछ लोग हमेशा उन्हीं को वोट देते हैं। मिल्कीपुर में पीडीए का सौहार्द जीतेगा और साम्प्रदायिक राजनीति हारेगी। अखिलेश यादव की पूरी कोशिश है किसी तरह मीडिया मिल्कीपुर पर फोकस करे और वहां पारदर्शी तरीके से चुनाव हो तो मामला उनके पक्ष में होगा। जानिए सपा की तीन रणनीति क्या हैं? 1- पीडीए के नाम पर जीत का भरोसा
राजनीतिक विश्लेषक सिद्धार्थ कलहंस कहते हैं मिल्कीपुर में जातीय समीकरण सपा के पक्ष में नजर आ रहे हैं। सपा पीडीए फॉर्मूले को आगे कर और अगड़ों में ब्राह्मणों को रिझा कर चुनाव अपने पक्ष में करने की रणनीति पर काम कर रही है। पवन पांडेय के जरिए सपा इस मुहिम में लगी है। भाजपा ने यहां लोकसभा चुनाव हारे लल्लू सिंह को प्रभारी बनाया है। ऐसे में लल्लू के विरोधी सपा के पक्ष में काम कर सकते हैं। वहीं, अखिलेश यादव खुद कह रहे हैं कि पीडीए का प्रतिनिधि चुनाव लड़ रहा है। अखिलेश कहते हैं कि मिल्कीपुर का चुनाव पीडीए बनाम भाजपा के भ्रष्ट तंत्र के बीच का मुकाबला है। 2-भाजपा के भितरघात से भी आस
फैजाबाद के लोकसभा चुनाव की तरह मिल्कीपुर उपचुनाव में भी भाजपा प्रत्याशी का विरोध खुद पार्टी के लोग कर रहे हैं। भाजपा के स्थानीय नेताओं के बीच नाराजगी की खबरें भी आम हैं। ऐसे में सपा की रणनीति है कि इसे और हवा देकर माहौल को अपने पक्ष में किया जाए। 2017 में यह सीट भाजपा की झोली में डालने वाले बाबा गोरखनाथ को इस बार टिकट नहीं मिला है। इसलिए वह नाराज बताए जा रहे हैं। 3-बाहरी, गुजराती का मुद्दा
भाजपा ने चंद्रभानु पासवान को प्रत्याशी बनाया है, वह गुजरात में रहकर कारोबार करते हैं। मिल्कीपुर विधानसभा क्षेत्र में उनका वोट भी नहीं है। ऐसे में सपा यह साबित करने की कोशिश कर रही है कि मिल्कीपुर में उनके प्रत्याशी अजीत प्रसाद स्थानीय हैं। उनके पिता अवधेश प्रसाद पासी इस सीट से कई बार विधायक रह चुके हैं। स्थानीय होने के नाते जनता उन्हें जिता कर विधानसभा पहुंचाएगी। जातिगत समीकरण क्या?
सिद्धार्थ कहते हैं कि मिल्कीपुर का समीकरण न तो रामपुर जैसा है और न ही कुंदरकी जैसा। यहां मुस्लिम आबादी कम है। जो है भी वह समूह में किसी एक जगह के वोट नहीं हैं, बल्कि मिक्स आबादी का हिस्सा हैं। इसलिए यहां रामपुर या कुंदरकी मॉडल लागू कर पाना आसान नहीं है। आबादी की बात करें तो यहां सबसे ज्यादा ब्राह्मण-गोसाई जाति के लोग हैं। इनकी संख्या 75 हजार बताई जाती है। इसके बाद पासी 57 हजार हैं, जिस जाति से सपा और भाजपा दोनों ने अपने प्रत्याशी उतारे हैं। वहीं, राजनीति के जानकारों का कहना है कि अगर सपा का पीडीए फॉर्मूला चला यानी पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक एक साथ आए तो उसकी राह आसान रहेगी। वहीं, भाजपा सरकार की ओर से दिया जा रहा राशन वोट में तब्दील होता है तो सभी समीकरण धरे के रह जाएंगे। अयोध्या में जमीन का मुद्दा भी उठा रही सपा
अयोध्या के विकास के नाम पर किसानों और स्थानीय लोगों की जमीन ली गई है। सपा मुद्दा उठा रही है कि यहां सस्ते दाम में जमीन ली जा रही है। वह मुद्दे को उठाकर सरकार से नाराज लोगों को एकजुट करने की कोशिश भी कर रही है। सपा ने बाकायदा ऐलान कर दिया है कि वे सत्ता में आए तो बाजार के रेट पर मुआवजा देंगे। इसका सपा काे कितना लाभ मिलता है, यह पांच फरवरी के बाद पता चलेगा। राजनीतिक विश्लेषक राजेंद्र कुमार कहते हैं कि यह चुनाव भाजपा-सपा का नहीं बल्कि अखिलेश और योगी के बीच का है। यही वजह है सपा योगी सरकार को घेरने का कोई मौका नहीं छोड़ रही है। भाजपा भी पूरा जोर लगा रही है। मायावती ने भी चुनाव न लड़ने का ऐलान किया है। उन्होंने योगी सरकार पर कानून व्यवस्था को लेकर हमला कर अपने मतदाताओं को संकेत दे दिया है कि उन्हें चुनाव में क्या करना है। सपा ने अवधेश प्रसाद काे बनाया दलित आईकॉन
फैजाबाद सीट जीतने के बाद से समाजवादी पार्टी ने मिल्कीपुर के विधायक रहे अवधेश प्रसाद पासी को दलित आईकॉन के रूप में पेश किया है। अखिलेश यादव सड़क से लेकर संसद तक में उन्हें आगे करने से गुरेज नहीं कर रहे। भाजपा केवल दो बार ही जीत सकी है मिल्कीपुर सीट
मिल्कीपुर में भाजपा दो बार चुनाव जीत सकी है। भाजपा यहां 1991 में चुनाव जीती थी। यह चुनाव बाबरी विध्वंस के बाद पहला चुनाव था। इसके बाद भाजपा लगातार यहां हारती रही। 2017 में मोदी लहर में यह चुनाव भाजपा ने जीता था। 2022 में सपा ने इस पर फिर से कब्जा कर लिया था। समाजवादी पार्टी यहां 1996, 2002, 2012 और 2022 में जीत दर्ज कर चुकी है। 2007 में यहां बसपा के आनंद सेन ने जीत दर्ज की थी। 2022 के बाद से अब तक यूपी में 18 सीटों पर उपचुनाव
2022 में हुए विधानसभा चुनाव के बाद से अब तक यूपी में 18 विधानसभा चुनाव हो चुके हैं। इसमें से 2022 में सपा का 8 सीटों पर कब्जा था। उपचुनाव के बाद सपा ने भाजपा से एक सीट छीनी जबकि भाजपा ने सपा की 3 सीट छीनने में कामयाबी हासिल की। एक सीट सपा की भाजपा की सहयोगी अपना दल ने जीती। भाजपा 2022 में जीती 2 सीटें उपचुनावों में हार चुकी है, जबकि सपा चार सीटें उपचुनावों में गंवा चुकी है। कुल मिलाकर सपा की विधानसभा 2022 में 109 सीट थी जो अब 107 पर पहुंच गई है। वहीं भाजपा 255 थी और 257 पर पहुंच गई है। एक-एक सीट का लाभ रालोद और अपनादल को हुआ है। रालोद ने 2022 का चुनाव सपा के साथ मिलकर लड़ा था और 2024 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले उसने पाला बदल लिया था और भाजपा के साथ हो गई थी। अखिलेश यादव ने क्या कहा था?
समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा था- मिल्कीपुर उपचुनाव देश के उपचुनावों के इतिहास का सबसे बड़ा चुनाव होगा। इसीलिए हम चाहते हैं कि दुनियाभर के जो जर्नलिस्ट हैं वो इस चुनाव को देखने-समझने-कवर करने आएं। इस चुनाव की केस स्टडी करने के लिए हम दुनिया के बड़े विद्वानों को आमंत्रित करते हैं। हम चाहते हैं कि उप्र की सरकार इस उपचुनाव को ‘पारदर्शी चुनाव का उदाहरण’ बनाए और वो भी सबको आमंत्रित करें। चाचा की तेरहवीं के बाद मिल्कीपुर जाएंगे अखिलेश
अखिलेश यादव अपने चाचा राजपाल यादव की तेरहवीं के बाद मिल्कीपुर जाएंगे और अपने प्रत्याशी अजीत प्रसाद के पक्ष में वोट मांगेंगे। राजपाल यादव की तेरहवीं 20 जनवरी को सैफई में होगी। वहीं अखिलेश यादव ने अपने कार्यकर्ताओं को भी इस चुनाव में भाजपा से हर स्तर पर निपटने के लिए कहा है। इसका क्या असर होता है यह मतदान के दिन ही पता चल सकेगा। ————————- ये खबर भी पढ़ें… मिल्कीपुर में जाति के हिसाब से भाजपा ने उतारे मंत्री:एक-एक बूथ का लेखा-जोखा तैयार; सबसे बड़ी चुनौती अपनों को मनाना 2027 के विधानसभा चुनाव से पहले मिल्कीपुर उपचुनाव भाजपा-सपा के लिए प्रतिष्ठा का सवाल है। उपचुनाव की 9 में से 6 सीटें जीतने के बाद भाजपा हर हाल में मिल्कीपुर में भी जीत दर्ज करना चाह रही। पार्टी ने प्रत्याशी घोषित करने के साथ ही जातीय समीकरण बिठाने शुरू कर दिए हैं। पढ़ें पूरी खबर उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर