अंबाला से 9 वर्ष की उम्र में लापता हुआ बच्चा अब 29 साल बाद युवा होकर अपने घर पहुंचा। इकलौते बेटे को देख मां फफक पड़ी। उसे उम्मीद ही नहीं थी कि कभी ऐसा भी होगा। यह बेटा अपने साथ पत्नी और तीन बच्चों को भी लेकर आया है। हालांकि आरंभ में मां न उसको पहचाने से इनकार कर दिया। युवक ने बचपन की कहानी सुनाई तो मां ने उसे गले से लगा लिया। वह चार बहनों का इकलौता भाई है। जानकारी अनुसार, अंबाला छावनी के कबीर नगर निवासी संजय 1996 में नादानी में ट्रेन में सवार होकर कहीं चला गया था। बाद में शहर का नाम और पता भूलने के कारण भटक गया था। आगरा के एक परिवार ने उसका पालन पोषण किया। संजय चार बहनों का इकलौता भाई है। गूगल पर सर्च करता था अपनी धुंधली यादें संजय तभी से अपनी धुंधली यादों के सहारे गूगल पर सर्च करता रहता था, जो अब अपने घर पहुंचा। पहले तो मां ने बचपन की यादें पूछी, जवाब सही मिलने पर मां वीना की आंखों से खुशी के आंसू छलक पड़े। मां ने बेटे को रज कर गले लगाया और उसे पानी पिलाया। साथ में आए उसके बच्चों को भी रोते हुए उनसे नाम पूछे। ट्रेन में नींद आने पर छूट गया था शहर संजय ने बताया कि करीब नौ साल की उम्र में वह अपने घर से मंदिर के लिए निकला। वहां से सब्जी मंडी और फिर वहां से अंबाला कैंट रेलवे स्टेशन चला गया। उस समय वह एक ट्रेन में बैठ गया था। उसे वहां नींद आ गई और ट्रेन चल पड़ी और वह अनजान शहरों में कई महीने इसी तरह रेलवे स्टेशनों पर सोता रहा। घर का पता याद नहीं होने के कारण वापस नहीं आ सका। आगरा के दंपती ने किया पालन पोषण इसी बीच वह एक दिन वर्ष 2001 में आगरा पहुंचा तो वहां एक ढाबे वाले इंद्रजीत और उसकी पत्नी गीता ने उसे अपने साथ रख लिया। उस ढाबे वाले के परिवार के साथ ही वह रहा। वह केबल का काम भी करने लगा। उस दौरान ढाबे वाले के कोई संतान नहीं थी। इसी बीच ढाबे वाला परिवार वर्ष 2002 में मेरठ शिफ्ट हो गया और वहां से 2004 में ऋषिकेश शिफ्ट हो गया। वह केबल का काम कर रहा है। याद था तो केवल थाने के सामने पीर संजय ने अपनी धुंधली यादों के बारे बताते हुए कहा कि इतने सालों तक वह हमेशा अपनी माता-पिता और चार बहनों के बारे में सोचता रहता था। शहर का नाम नहीं पता था लेकिन घर की गली में थाने के सामने पीर की दरगाह और उसी गली में आगे जाकर शिव मंदिर से पहले तीसरी गली में घर। गूगल पर लंबे समय तक हर शहर में इस तरह की लोकेशन को ढूंढा। आखिर में अंबाला सर्च किया तो महेश नगर थाने की लोकेशन आई। पत्नी और बच्चों को लेकर माता वीना व पिता कर्मपाल नाम पूछता हुआ गली में आ गया था। पड़ोसियों से पता पूछ रहा था तो मां ने पीछे से आवाज लगाई। संजय ने बताया कि पहले मां ने नहीं पहचाना था। वह फोन नंबर देकर चला गया था लेकिन बाद में जब बचपन की यादें और फोटो दिखाया तो गले लगा लिया। अंबाला से 9 वर्ष की उम्र में लापता हुआ बच्चा अब 29 साल बाद युवा होकर अपने घर पहुंचा। इकलौते बेटे को देख मां फफक पड़ी। उसे उम्मीद ही नहीं थी कि कभी ऐसा भी होगा। यह बेटा अपने साथ पत्नी और तीन बच्चों को भी लेकर आया है। हालांकि आरंभ में मां न उसको पहचाने से इनकार कर दिया। युवक ने बचपन की कहानी सुनाई तो मां ने उसे गले से लगा लिया। वह चार बहनों का इकलौता भाई है। जानकारी अनुसार, अंबाला छावनी के कबीर नगर निवासी संजय 1996 में नादानी में ट्रेन में सवार होकर कहीं चला गया था। बाद में शहर का नाम और पता भूलने के कारण भटक गया था। आगरा के एक परिवार ने उसका पालन पोषण किया। संजय चार बहनों का इकलौता भाई है। गूगल पर सर्च करता था अपनी धुंधली यादें संजय तभी से अपनी धुंधली यादों के सहारे गूगल पर सर्च करता रहता था, जो अब अपने घर पहुंचा। पहले तो मां ने बचपन की यादें पूछी, जवाब सही मिलने पर मां वीना की आंखों से खुशी के आंसू छलक पड़े। मां ने बेटे को रज कर गले लगाया और उसे पानी पिलाया। साथ में आए उसके बच्चों को भी रोते हुए उनसे नाम पूछे। ट्रेन में नींद आने पर छूट गया था शहर संजय ने बताया कि करीब नौ साल की उम्र में वह अपने घर से मंदिर के लिए निकला। वहां से सब्जी मंडी और फिर वहां से अंबाला कैंट रेलवे स्टेशन चला गया। उस समय वह एक ट्रेन में बैठ गया था। उसे वहां नींद आ गई और ट्रेन चल पड़ी और वह अनजान शहरों में कई महीने इसी तरह रेलवे स्टेशनों पर सोता रहा। घर का पता याद नहीं होने के कारण वापस नहीं आ सका। आगरा के दंपती ने किया पालन पोषण इसी बीच वह एक दिन वर्ष 2001 में आगरा पहुंचा तो वहां एक ढाबे वाले इंद्रजीत और उसकी पत्नी गीता ने उसे अपने साथ रख लिया। उस ढाबे वाले के परिवार के साथ ही वह रहा। वह केबल का काम भी करने लगा। उस दौरान ढाबे वाले के कोई संतान नहीं थी। इसी बीच ढाबे वाला परिवार वर्ष 2002 में मेरठ शिफ्ट हो गया और वहां से 2004 में ऋषिकेश शिफ्ट हो गया। वह केबल का काम कर रहा है। याद था तो केवल थाने के सामने पीर संजय ने अपनी धुंधली यादों के बारे बताते हुए कहा कि इतने सालों तक वह हमेशा अपनी माता-पिता और चार बहनों के बारे में सोचता रहता था। शहर का नाम नहीं पता था लेकिन घर की गली में थाने के सामने पीर की दरगाह और उसी गली में आगे जाकर शिव मंदिर से पहले तीसरी गली में घर। गूगल पर लंबे समय तक हर शहर में इस तरह की लोकेशन को ढूंढा। आखिर में अंबाला सर्च किया तो महेश नगर थाने की लोकेशन आई। पत्नी और बच्चों को लेकर माता वीना व पिता कर्मपाल नाम पूछता हुआ गली में आ गया था। पड़ोसियों से पता पूछ रहा था तो मां ने पीछे से आवाज लगाई। संजय ने बताया कि पहले मां ने नहीं पहचाना था। वह फोन नंबर देकर चला गया था लेकिन बाद में जब बचपन की यादें और फोटो दिखाया तो गले लगा लिया। हरियाणा | दैनिक भास्कर
