लखनऊ का केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय मेडिकल में आयुर्वेद की पढ़ाई संस्कृत भाषा में कराएगा। इसके लिए 10वीं के बाद 2 साल तक बिना संस्कृत बैकग्राउंड के स्टूडेंट्स को पहले संस्कृत पढ़ाई जाएगी। इसके बाद 5 साल का आयुर्वेद मेडिकल कोर्स कराया जाएगा। केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के निदेशक प्रो. सर्व नारायण झा ने बताया- भारतीय आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति बेहद प्रभावी और कारगर है। अभी BAMS (बैचलर ऑफ आयुर्वेद मेडिकल साइंस) की पढ़ाई करने वाले स्टूडेंट्स का सलेक्शन NEET के माध्यम से हो रहा है। वो पढ़ाई के दौरान चरक और सुश्रुत संहिता जैसे आयुर्वेद के ग्रंथ जरूर पढ़ते हैं। संस्कृत का बैकग्राउंड न होने के कारण वास्तविक रूप से वैद्य नहीं बन पा रहे हैं। आयुर्वेद में कई आसाध्य बीमारियों का इलाज
प्राचीन परंपरा की तर्ज पर आयुर्वेद का अध्ययन, अध्यापन और अनुसंधान हो सकेगा। मकसद आयुर्वेद गुरुकुलम की स्थापना कर सही मायने में सार्थक रूप से आयुर्वेद को प्रभावी बनाना है। साथ ही ऐसे मरीजों को भी इलाज मुहैया कराना है, जिन्हें अन्य किसी मेडिकल पद्धति से इलाज नहीं मिल पा रहा है। एग्जीक्यूटिव और एकेडमिक काउंसिल में प्रस्ताव पास
प्रो. सर्व नारायण झा कहते हैं कि केंद्रीय आयुष मंत्रालय से अनुमति मिलने के बाद यूनिवर्सिटी के एग्जीक्यूटिव काउंसिल और एकेडमिक काउंसिल से भी प्रस्ताव पास हो गया है। डीन काउंसिल ने भी इस पर मुहर लगाते हुए कोर्स डिजाइन पर सहमति बनाई है। नए सत्र से इसकी पढ़ाई शुरू होगी। अब बात करते हैं कि लखनऊ में आयुर्वेद के टॉप डॉक्टर का क्या कुछ कहना है.. ट्रांसलेशन से होती है पढ़ाई
KGMU में आयुष के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डॉ. सुनीत कुमार मिश्रा कहते हैं कि आयुर्वेद के सभी ग्रंथ संस्कृत भाषा में हैं। BAMS की पढ़ाई के दौरान इनका ट्रांसलेशन ही पढ़ाया जाता है। चरक संहिता जैसे प्रमुख ग्रंथ का मूल स्वरूप भी इसी भाषा में है। कई भाषाओं में ट्रांसलेशन भले ही हो गया हो पर अभी भी मूल ग्रंथ जैसी क्षमता ट्रांसलेशन वाले किताबों में नहीं है। आयुर्वेद से निकली सभी चिकित्सा पद्धति
प्रोफेसर सुनीत कुमार मिश्रा कहते हैं कि मेडिकल की सभी विधाएं आयुर्वेद से ही निकली हैं। कई ऐसी असाध्य बीमारियां हैं, जिनका किसी अन्य मेडिकल पद्धति में अभी इलाज नहीं मिल रहा है। ऐसे में आयुर्वेद के जरिए भी उनका इलाज किया जा सकेगा। KGMU में भी पढ़ाई जाती है ‘चरक शपथ’
KGMU में सीनियर रेजिडेंट एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ. दिव्यांश सिंह ने बताया कि आयुर्वेद का मूल श्लोक संस्कृत भाषा में है। यदि आयुर्वेद की पढ़ाई संस्कृत भाषा में होगी तो ये बेहतरीन होगा। इसके अलावा मेरा निजी मत ये भी कि कोई भी मेडिकल पद्धति अगर बढ़ेगी तो इसका फायदा पूरी मानव प्रजाति को होगा। निश्चित तौर इससे शोध में भी बढ़ावा मिलेगा और सबसे अच्छी बात ये है कि ओवरऑल फायदा मरीजों को होगा। सभी भाषाओं का होना चाहिए ज्ञान
BAMS की फर्स्ट ईयर स्टूडेंट आकांक्षा पटेल कहती हैं कि मेरा ही मानना है कि संस्कृत की पढ़ाई अच्छी बात है। इसका अगर ज्ञान होगा तो आसानी से आयुर्वेद के ग्रंथ समझ में आएंगे। मेरा यह भी कहना है की संस्कृत के साथ-साथ BAMS के स्टूडेंट्स को अन्य भाषाओं का भी ज्ञान होना चाहिए। वैदिक और मॉडर्न का तालमेल जरूरी
BAMS में आने वाले ज्यादातर बच्चे CBSE या ICSE बैकग्राउंड के होते हैं। ऐसे में उनकी संस्कृत की नॉलेज बहुत अच्छी नहीं होती। हमारी पहले साल की पढ़ाई में एक विषय संस्कृत भी होता है। एक और बात ये है कि वैदिक ज्ञान के साथ मॉडर्न मेडिसिन का ज्ञान भी जरूरी है, इसलिए दोनों का तालमेल होना चाहिए। संस्कृत ज्ञान के बिना आयुर्वेद की पढ़ाई अधूरी
BAMS के दूसरे साल के स्टूडेंट हर्षित द्विवेदी कहते हैं कि जैसे बिना अंग्रेजी के ज्ञान के एलोपैथी की पढ़ाई पूरी नहीं हो सकती है। वैसे ही बिना संस्कृत आए आयुर्वेद की पढ़ाई संभव नहीं। संस्कृत आयुर्वेद के लिए एक बेस है। इसका ज्ञान होने से इसकी पढ़ाई कई गुना आसान हो जाएगी। इस पहल के सार्थक परिणाम आएंगे। ………………………….. इस खबर को भी पढ़ें…. देश की इकलौती सेंट्रल संस्कृत यूनिवर्सिटी…फ्री में होती है पढ़ाई:18 रुपए में लंच; जज फैसला सुनाने से पहले यहां लाइब्रेरी में पढ़ते हैं लखनऊ का केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय देश का पहला ऐसा विश्वविद्यालय है, जहां संस्कृत के साथ-साथ सिविल सर्विसेस की तैयारी कराएगा। यहां ट्रेडिशनल स्कॉलरशिप और मॉडर्न टेक्नीक के आधार पर पढ़ाई हो रही है। पढ़ें पूरी खबर… लखनऊ का केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय मेडिकल में आयुर्वेद की पढ़ाई संस्कृत भाषा में कराएगा। इसके लिए 10वीं के बाद 2 साल तक बिना संस्कृत बैकग्राउंड के स्टूडेंट्स को पहले संस्कृत पढ़ाई जाएगी। इसके बाद 5 साल का आयुर्वेद मेडिकल कोर्स कराया जाएगा। केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के निदेशक प्रो. सर्व नारायण झा ने बताया- भारतीय आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति बेहद प्रभावी और कारगर है। अभी BAMS (बैचलर ऑफ आयुर्वेद मेडिकल साइंस) की पढ़ाई करने वाले स्टूडेंट्स का सलेक्शन NEET के माध्यम से हो रहा है। वो पढ़ाई के दौरान चरक और सुश्रुत संहिता जैसे आयुर्वेद के ग्रंथ जरूर पढ़ते हैं। संस्कृत का बैकग्राउंड न होने के कारण वास्तविक रूप से वैद्य नहीं बन पा रहे हैं। आयुर्वेद में कई आसाध्य बीमारियों का इलाज
प्राचीन परंपरा की तर्ज पर आयुर्वेद का अध्ययन, अध्यापन और अनुसंधान हो सकेगा। मकसद आयुर्वेद गुरुकुलम की स्थापना कर सही मायने में सार्थक रूप से आयुर्वेद को प्रभावी बनाना है। साथ ही ऐसे मरीजों को भी इलाज मुहैया कराना है, जिन्हें अन्य किसी मेडिकल पद्धति से इलाज नहीं मिल पा रहा है। एग्जीक्यूटिव और एकेडमिक काउंसिल में प्रस्ताव पास
प्रो. सर्व नारायण झा कहते हैं कि केंद्रीय आयुष मंत्रालय से अनुमति मिलने के बाद यूनिवर्सिटी के एग्जीक्यूटिव काउंसिल और एकेडमिक काउंसिल से भी प्रस्ताव पास हो गया है। डीन काउंसिल ने भी इस पर मुहर लगाते हुए कोर्स डिजाइन पर सहमति बनाई है। नए सत्र से इसकी पढ़ाई शुरू होगी। अब बात करते हैं कि लखनऊ में आयुर्वेद के टॉप डॉक्टर का क्या कुछ कहना है.. ट्रांसलेशन से होती है पढ़ाई
KGMU में आयुष के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डॉ. सुनीत कुमार मिश्रा कहते हैं कि आयुर्वेद के सभी ग्रंथ संस्कृत भाषा में हैं। BAMS की पढ़ाई के दौरान इनका ट्रांसलेशन ही पढ़ाया जाता है। चरक संहिता जैसे प्रमुख ग्रंथ का मूल स्वरूप भी इसी भाषा में है। कई भाषाओं में ट्रांसलेशन भले ही हो गया हो पर अभी भी मूल ग्रंथ जैसी क्षमता ट्रांसलेशन वाले किताबों में नहीं है। आयुर्वेद से निकली सभी चिकित्सा पद्धति
प्रोफेसर सुनीत कुमार मिश्रा कहते हैं कि मेडिकल की सभी विधाएं आयुर्वेद से ही निकली हैं। कई ऐसी असाध्य बीमारियां हैं, जिनका किसी अन्य मेडिकल पद्धति में अभी इलाज नहीं मिल रहा है। ऐसे में आयुर्वेद के जरिए भी उनका इलाज किया जा सकेगा। KGMU में भी पढ़ाई जाती है ‘चरक शपथ’
KGMU में सीनियर रेजिडेंट एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ. दिव्यांश सिंह ने बताया कि आयुर्वेद का मूल श्लोक संस्कृत भाषा में है। यदि आयुर्वेद की पढ़ाई संस्कृत भाषा में होगी तो ये बेहतरीन होगा। इसके अलावा मेरा निजी मत ये भी कि कोई भी मेडिकल पद्धति अगर बढ़ेगी तो इसका फायदा पूरी मानव प्रजाति को होगा। निश्चित तौर इससे शोध में भी बढ़ावा मिलेगा और सबसे अच्छी बात ये है कि ओवरऑल फायदा मरीजों को होगा। सभी भाषाओं का होना चाहिए ज्ञान
BAMS की फर्स्ट ईयर स्टूडेंट आकांक्षा पटेल कहती हैं कि मेरा ही मानना है कि संस्कृत की पढ़ाई अच्छी बात है। इसका अगर ज्ञान होगा तो आसानी से आयुर्वेद के ग्रंथ समझ में आएंगे। मेरा यह भी कहना है की संस्कृत के साथ-साथ BAMS के स्टूडेंट्स को अन्य भाषाओं का भी ज्ञान होना चाहिए। वैदिक और मॉडर्न का तालमेल जरूरी
BAMS में आने वाले ज्यादातर बच्चे CBSE या ICSE बैकग्राउंड के होते हैं। ऐसे में उनकी संस्कृत की नॉलेज बहुत अच्छी नहीं होती। हमारी पहले साल की पढ़ाई में एक विषय संस्कृत भी होता है। एक और बात ये है कि वैदिक ज्ञान के साथ मॉडर्न मेडिसिन का ज्ञान भी जरूरी है, इसलिए दोनों का तालमेल होना चाहिए। संस्कृत ज्ञान के बिना आयुर्वेद की पढ़ाई अधूरी
BAMS के दूसरे साल के स्टूडेंट हर्षित द्विवेदी कहते हैं कि जैसे बिना अंग्रेजी के ज्ञान के एलोपैथी की पढ़ाई पूरी नहीं हो सकती है। वैसे ही बिना संस्कृत आए आयुर्वेद की पढ़ाई संभव नहीं। संस्कृत आयुर्वेद के लिए एक बेस है। इसका ज्ञान होने से इसकी पढ़ाई कई गुना आसान हो जाएगी। इस पहल के सार्थक परिणाम आएंगे। ………………………….. इस खबर को भी पढ़ें…. देश की इकलौती सेंट्रल संस्कृत यूनिवर्सिटी…फ्री में होती है पढ़ाई:18 रुपए में लंच; जज फैसला सुनाने से पहले यहां लाइब्रेरी में पढ़ते हैं लखनऊ का केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय देश का पहला ऐसा विश्वविद्यालय है, जहां संस्कृत के साथ-साथ सिविल सर्विसेस की तैयारी कराएगा। यहां ट्रेडिशनल स्कॉलरशिप और मॉडर्न टेक्नीक के आधार पर पढ़ाई हो रही है। पढ़ें पूरी खबर… उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर