अयोध्या का प्रसिद्ध मणि पर्वत मेला 7 अगस्त को होगा।इस दिन कनक भवन,दशरथ महल,श्रीरामवल्लभाकुंज और मणि राम दास जी की छावनी सहित 100 से ज्यादा मंदिरों से भगवान के विग्रह धूमधाम से मणि पर्वत ले जाए जाते हैं।यहां भगवान के राम के विग्रह और स्वरूप श्रीसीता के संग गायन-वादन के बीच झूला झूलते हैं।यह झूला वहां के प्राचीन पेड़ की डाल पर लगाए जाते हैं। मणि पर्वत पर सावन का पहला झूला झूलने के बाद भगवान श्रीराम के संग सीता के विग्रह अयोध्या के एक हजार मंदिरों में सावन पूर्णिमा तक झूलन का आनंद लेते हैं। इस दिन से अयोध्या का 12 दिवसीय सावन झूला मेला आरंभ हो जाता है।श्रीरामजन्मभूमि पर बने भव्य मंदिर में रामलला को भी चांदी के झूलन पर विराजमान किया जाता है। इसी तरह कनक भवन,श्रीरामवल्लभाकुंज,दशरथ महल,मणिराम दास जी की छावनी,राजगोपाल मंदिर,लक्ष्मण किला,हनुमत निवास,राज सदन, रामलला सदन,कोसलेश सदन,रंग महल,राम हर्षण कुंज,जानकी महल ट्रस्ट,सदगुरू सदन,सियाराम किला,अशर्फी भवन,राम चरित मानस भवन, गहोई मंदिर,हनुमत सदन, जानकी घाट बड़ा स्थान और बड़ा भक्तमाल आदि स्थानों में झूलनोत्सव बेहद मनभवन होता है। मंदिरों की परंपरा के अनुसार मंदिरों के झूलन पर कहीं श्रीराम के अलावा हनुमान तो कही गुरू की मूर्ति अथवा चित्र का झूलन उत्सव होता है।अधिकांश मंदिरों उत्सव विग्रह को झूला झुलाया जाता है। भगवान की झूलन झांकी का दर्शन करने के लिए लाखों की संख्या में श्रद्धालु और भक्त अयोध्या पहुंचते हैं। श्रीरामवल्लभाकुंज में इस उत्सव का खास आकर्षण होता है।आश्रम के प्रमुख स्वामी राजकुमार दास ने बताया कि हमारे मंदिर में भगवान श्रीराम और सीता के मुख्य विग्रह को ही झूले पर बिठाया जाता है।पूरे 12 दिन झूलन पर ही भगवान के जागरण,झूलन,शयन और भोग आदि की सभी सेवाएं होती हैं।जबकि अन्य मदिरों में झूलन के बाद रोज भगवान को गर्भगृह में ले जाया जाता है।अगले दिन शाम को फिर झूलन पर लाया जाता है। उन्होंने बताया कि करीब 70 साल पहले जपयुर के कलाकारों ने 20 फिट ऊँचे चांदी के झूलन का निर्माण किया था।चांदी का यह झूला करीब 12 फिट चौड़ा है।जिसमें सीढ़ी से लेकर शिखर पर बने मोर तक सभी चांदी के हैं।पूरे झूले पर सोने की पालिश है।यह झूलन अपनी कलाकृतियों के कारण आज भी बेहद आकर्षण झूले में शामिल हैं।इस पर जब भगवान के दिव्य स्वरूप विराजमान होते हैं।तो यह संयोग परम आनंद देने वाला होता है। अशर्फी भवन के महंत जगदगुरू रामानुजाचार्य स्वामी श्रीधराचार्य ने बताया कि आश्रम में चांदी के झूलन पर भगवान लक्ष्मी नारायण के साथ श्रीदेवी और भूदेवी विराजमान होती हैं।मेले के दौरान ही जगदगुरू रामानुजाचार्य स्वामी माधवाचार्य महाराज की पुण्यतिथि का समारोह भी होता है।इस उत्सव में पूरे देश के लोग शामिल होने आते हैं। सियाराम किला के महंत स्वामी करुणानिधान शरण ने बताया कि सावन शुक्ल पक्ष की तृतीया से ही मंदिर में रसिक भाव से यह उत्सव आरंभ हो जाता है।यहां भगवान के साथ गुरुदेव को झूलन पर विराजमान किया जाता है।इस दौरान रोज शाम संतों द्वारा गायन-वादन और नृत्य कर भगवान को प्रसन्न करने का अनेक उपाय किया जाता है। अयोध्या का प्रसिद्ध मणि पर्वत मेला 7 अगस्त को होगा।इस दिन कनक भवन,दशरथ महल,श्रीरामवल्लभाकुंज और मणि राम दास जी की छावनी सहित 100 से ज्यादा मंदिरों से भगवान के विग्रह धूमधाम से मणि पर्वत ले जाए जाते हैं।यहां भगवान के राम के विग्रह और स्वरूप श्रीसीता के संग गायन-वादन के बीच झूला झूलते हैं।यह झूला वहां के प्राचीन पेड़ की डाल पर लगाए जाते हैं। मणि पर्वत पर सावन का पहला झूला झूलने के बाद भगवान श्रीराम के संग सीता के विग्रह अयोध्या के एक हजार मंदिरों में सावन पूर्णिमा तक झूलन का आनंद लेते हैं। इस दिन से अयोध्या का 12 दिवसीय सावन झूला मेला आरंभ हो जाता है।श्रीरामजन्मभूमि पर बने भव्य मंदिर में रामलला को भी चांदी के झूलन पर विराजमान किया जाता है। इसी तरह कनक भवन,श्रीरामवल्लभाकुंज,दशरथ महल,मणिराम दास जी की छावनी,राजगोपाल मंदिर,लक्ष्मण किला,हनुमत निवास,राज सदन, रामलला सदन,कोसलेश सदन,रंग महल,राम हर्षण कुंज,जानकी महल ट्रस्ट,सदगुरू सदन,सियाराम किला,अशर्फी भवन,राम चरित मानस भवन, गहोई मंदिर,हनुमत सदन, जानकी घाट बड़ा स्थान और बड़ा भक्तमाल आदि स्थानों में झूलनोत्सव बेहद मनभवन होता है। मंदिरों की परंपरा के अनुसार मंदिरों के झूलन पर कहीं श्रीराम के अलावा हनुमान तो कही गुरू की मूर्ति अथवा चित्र का झूलन उत्सव होता है।अधिकांश मंदिरों उत्सव विग्रह को झूला झुलाया जाता है। भगवान की झूलन झांकी का दर्शन करने के लिए लाखों की संख्या में श्रद्धालु और भक्त अयोध्या पहुंचते हैं। श्रीरामवल्लभाकुंज में इस उत्सव का खास आकर्षण होता है।आश्रम के प्रमुख स्वामी राजकुमार दास ने बताया कि हमारे मंदिर में भगवान श्रीराम और सीता के मुख्य विग्रह को ही झूले पर बिठाया जाता है।पूरे 12 दिन झूलन पर ही भगवान के जागरण,झूलन,शयन और भोग आदि की सभी सेवाएं होती हैं।जबकि अन्य मदिरों में झूलन के बाद रोज भगवान को गर्भगृह में ले जाया जाता है।अगले दिन शाम को फिर झूलन पर लाया जाता है। उन्होंने बताया कि करीब 70 साल पहले जपयुर के कलाकारों ने 20 फिट ऊँचे चांदी के झूलन का निर्माण किया था।चांदी का यह झूला करीब 12 फिट चौड़ा है।जिसमें सीढ़ी से लेकर शिखर पर बने मोर तक सभी चांदी के हैं।पूरे झूले पर सोने की पालिश है।यह झूलन अपनी कलाकृतियों के कारण आज भी बेहद आकर्षण झूले में शामिल हैं।इस पर जब भगवान के दिव्य स्वरूप विराजमान होते हैं।तो यह संयोग परम आनंद देने वाला होता है। अशर्फी भवन के महंत जगदगुरू रामानुजाचार्य स्वामी श्रीधराचार्य ने बताया कि आश्रम में चांदी के झूलन पर भगवान लक्ष्मी नारायण के साथ श्रीदेवी और भूदेवी विराजमान होती हैं।मेले के दौरान ही जगदगुरू रामानुजाचार्य स्वामी माधवाचार्य महाराज की पुण्यतिथि का समारोह भी होता है।इस उत्सव में पूरे देश के लोग शामिल होने आते हैं। सियाराम किला के महंत स्वामी करुणानिधान शरण ने बताया कि सावन शुक्ल पक्ष की तृतीया से ही मंदिर में रसिक भाव से यह उत्सव आरंभ हो जाता है।यहां भगवान के साथ गुरुदेव को झूलन पर विराजमान किया जाता है।इस दौरान रोज शाम संतों द्वारा गायन-वादन और नृत्य कर भगवान को प्रसन्न करने का अनेक उपाय किया जाता है। उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर
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