पेठा…नाम सुनते ही मुंह में एक मिठास आ जाती है। आमतौर पर यह यूपी के हर जगह मिलता है, लेकिन आगरा के पेठे की बात ही कुछ और है। कहा जाता है कि आगरा घूमकर वापस जाने वाला शख्स अगर पेठा न ले जाए तो लोग मानते ही नहीं है कि वो ताजनगरी गया था। आगरा के पेठे का स्वाद यूपी ही नहीं, बल्कि दुनिया भर में फेमस है। 7 समंदर पार से आने वाले हर शख्स के दिमाग में 2 बातें चलती हैं। पहली: चलो ताजमहल देख आएं। दूसरी: घर वापसी के समय अपने और परिचितों के लिए आगरा का पेठा ले जाएं। यहां के नूरी दरवाजा इलाके में पेठा बनने का काम दशकों से चला आ रहा है। यहां बना पेठा दूसरी जगहों पर तैयार होने वाले पेठे से ज्यादा लजीज होता है। यह कई दिनों तक खराब भी नहीं होता। कुम्हड़ा से बनाई जाती है खास मिठाई
कुम्हड़े से पेठा बनाए जाने का तरीका बेहद रोचक है। कुशल कारीगरों के हाथों से यह कई स्टेप्स में बनाया जाता है। सबसे पहले कच्चे पेठे यानी कुम्हड़ा को काटा जाता है। उसके अंदर से गूदा निकाला जाता है। इस गूदे को पेठे के आकार में काटकर उसके पीस तैयार किए जाते हैं। कटे हुए पीस को एक नुकीली कीलों वाली मशीन से गोदा जाता है। ये प्रक्रिया इसलिए जरूरी है, ताकि पेठे में चीनी की मिठास अंदर तक घुल जाए। इसके बाद पेठे को चूने के पानी में अच्छी तरह से 2 से 3 बार धोया जाता है। उसके बाद गर्म पानी में डालकर उबालते हैं। इस पेठे को एक बार फिर से चाशनी में पकाया जाता है और उसके बाद उस पेठे में फ्लेवर मिलाकर ड्राई किया जाता है। पेठा सुखाने के बाद खाने के लिए बिल्कुल तैयार हो जाता है। ये ऐसी मिठाई है, जो जल्दी खराब नहीं होती है। आगरा में बनाया जाता है 56 तरह का पेठा
पेठा कारोबारी बताते हैं कि बिना शक्कर वाला पेठा खून से लेकर दिल की बीमारियों में मरीजों को दिया जाता है। इससे बीमारियों के खिलाफ लड़ने की ताकत मिलती है। हालांकि, धीरे-धीरे इसके स्वाद में बदलाव आने लगा है। लोग चीनी के साथ-साथ इसमें सुगंध का इस्तेमाल करके रसीला पेठा बड़े ही चाव से बनाने और खाने लगे। अब 56 तरह का पेठा बनाया जा रहा है। इसमें सबसे ज्यादा डिमांड सूखे पेठे और केसर पेठे की रहती है। डायबिटीज वालों के लिए शुगर फ्री पेठा
कारोबारी बताते हैं, डायबिटीज के मरीजों के लिए शुगर फ्री पेठा भी आ गया है। इसमें शुगर नहीं होती है। पान के शौकीनों के लिए पान पेठा है। इसमें गुलकंद होता है। मुंह में रखते ही गुलकंद का स्वाद आता है। गुलाब लड्डू पेठे में गुलाब की खुशबू का आनंद आता है। इसी तरह सैंडविच पेठा, मेवावाटी, केसर चेरी, कोकोनट पेठा, पिस्ता पसंद और लाल पेठे की बहुत डिमांड रहती है। पेठा नहीं ले गए तो कोई मानता नहीं कि आगरा गए थे
आगरा में ताजमहल देखने के लिए रोजाना हजारों पर्यटक आते हैं। ताजमहल देखने के बाद सबसे ज्यादा जरूरी काम पेठा खरीदना होता है। दिल्ली से आए पर्यटक मनोज कश्यप ने बताया कि वो परिवार के साथ घूमने आए हैं। अब वापस लौट रहे हैं। ऐसे में यहां का फेमस पेठा लेने आए हैं। जब भी आगरा आते हैं, पेठा ले जाना नहीं भूलते। अब पेठे की बहुत वैराइटी हो गई हैं। मगर, उन्हें केसर और चॉकलेट पेठा काफी अच्छा लगता है। उन्होंने बताया कि पेठे की सबसे अच्छी बात ये है कि दूसरी मिठाइयों से अच्छा और सस्ता है। अपने लिए तो तीन डिब्बे लिए हैं, लेकिन रिश्तेदार और ऑफिस के लिए पांच डिब्बे लिए हैं। जिसको भी पता चला कि आगरा में हूं, वो बस यही बोला कि पेठा जरूर ले आना। सैकड़ों साल पुराना पेठे का इतिहास
पेठा कारोबारी राजेश अग्रवाल ने बताया कि पेठा का इतिहास महाभारत काल से है। पहले पेठे का इस्तेमाल औषधि के रूप में होता था। बाद में खाने के लिए इसका प्रयोग किया जाने लगा। मुगलकाल में पेठे को मिठाई के लिए इस्तेमाल किया जाने लगा। बताया जाता है पेठे का अस्तित्व ताजमहल के अस्तित्व से पहले ही आ गया था। पूरे साल कम नहीं पड़ती डिमांड
पेठे को सबसे सस्ती, शुद्ध और स्वास्थ्यवर्धक मिठाई कहा जाता है। इसलिए व्रत और पूजा में इस मिठाई का प्रयोग किया जाता है। पर्यटकों के साथ स्थानीय लोग भी पेठे को खासा पसंद करते हैं। कालिंदी पेठा समिति के उपाध्यक्ष सोनू मित्तल ने बताया कि गर्मी में पेठे को खाने से ठंडक मिलती है। पेठा 140 रुपए से 400 रुपए तक की रेंज में आता है। ऐसे में किसी भी दूसरी मिठाई की तुलना में ये बहुत सस्ता है। इसलिए भी इसकी काफी मांग रहती है। आगरा के पेठे की बात ही अलग
प्राचीन पेठे की दुकान पर बरेली से आए सचिन साहनी कहते हैं, “मैं लंबे समय बाद आगरा आया हूं। आज वापसी है इसलिए पेठा लेने आ गया। मुझे पेठे में गरी वाला पेठा पसंद है। वैसे तो पेठा बरेली में भी मिल जाता है, लेकिन उस पेठे में आगरा के पेठे जैसे बात नहीं। यहां के पेठे की बात ही अलग है।” उन्होंने कहा, “आगरे का पेठा खाने में बेहद सॉफ्ट होता है और इसके खाने से कोई नुकसान नहीं होता। सबसे बड़ी बात है कि यहां के पेठे क्वालिटी वाइज भी बहुत अच्छे होते हैं। इनमें मिलावट नहीं होती और ये 10 दिन तक फ्रिज में स्टोर कर के रखे जा सकते हैं। इनके स्वाद में कोई फर्क नहीं पड़ता।” युवाओं के लिए नए फ्लेवर
पेठा कारोबारी यथार्थ अग्रवाल ने बताया कि युवाओं को देखते हुए नए फ्लेवर लॉन्च किए गए हैं। इसमें बटर स्कॉच, वनीला फ्लेवर हैं। यूथ को कुछ नया चाहिए, इसलिए उनको देखते हुए ये पेठा बनाया गया है। इस पेठे में मीठा कम होता है। यह भी पढ़ें- बनारस की ब्लू लस्सी के 120 फ्लेवर:96 साल पुरानी दुकान, 50 पन्नों का मेन्यू; चंद्रशेखर आजाद भी थे लस्सी के दीवाने बनारस में खानपान का रस इतना रसीला है कि जो भी इसमें डूबता है वो खुद को तरबतर पाता है। आज “जायका यूपी का” सीरीज में बात बनारस की वर्ल्ड फेमस ब्लू लस्सी की करते हैं। यहां की ब्लू लस्सी की दुकान 96 साल पुरानी है। लस्सी के एक-दो नहीं, 120 फ्लेवर मिलते हैं। यहां पहुंचते ही 50 पन्नों का मेन्यू मिलता है, जिसमें आपको 120 तरह की लस्सी के अलग-अलग रेट मिलेंगे। लस्सी का दाम 40 रुपए से लेकर 150 रुपए तक है। रोजाना करीब 5 हजार लोग लस्सी पीने पहुंचते हैं। स्वतंत्रता संग्राम के दिनों में चंद्रशेखर आजाद भी यहीं पर लस्सी पीने आते थे। लेकिन पैसे खुद नहीं, उनके गुरु शचींद्र नाथ सांयाल देते थे। पूरी खबर यहां पढ़ें पेठा…नाम सुनते ही मुंह में एक मिठास आ जाती है। आमतौर पर यह यूपी के हर जगह मिलता है, लेकिन आगरा के पेठे की बात ही कुछ और है। कहा जाता है कि आगरा घूमकर वापस जाने वाला शख्स अगर पेठा न ले जाए तो लोग मानते ही नहीं है कि वो ताजनगरी गया था। आगरा के पेठे का स्वाद यूपी ही नहीं, बल्कि दुनिया भर में फेमस है। 7 समंदर पार से आने वाले हर शख्स के दिमाग में 2 बातें चलती हैं। पहली: चलो ताजमहल देख आएं। दूसरी: घर वापसी के समय अपने और परिचितों के लिए आगरा का पेठा ले जाएं। यहां के नूरी दरवाजा इलाके में पेठा बनने का काम दशकों से चला आ रहा है। यहां बना पेठा दूसरी जगहों पर तैयार होने वाले पेठे से ज्यादा लजीज होता है। यह कई दिनों तक खराब भी नहीं होता। कुम्हड़ा से बनाई जाती है खास मिठाई
कुम्हड़े से पेठा बनाए जाने का तरीका बेहद रोचक है। कुशल कारीगरों के हाथों से यह कई स्टेप्स में बनाया जाता है। सबसे पहले कच्चे पेठे यानी कुम्हड़ा को काटा जाता है। उसके अंदर से गूदा निकाला जाता है। इस गूदे को पेठे के आकार में काटकर उसके पीस तैयार किए जाते हैं। कटे हुए पीस को एक नुकीली कीलों वाली मशीन से गोदा जाता है। ये प्रक्रिया इसलिए जरूरी है, ताकि पेठे में चीनी की मिठास अंदर तक घुल जाए। इसके बाद पेठे को चूने के पानी में अच्छी तरह से 2 से 3 बार धोया जाता है। उसके बाद गर्म पानी में डालकर उबालते हैं। इस पेठे को एक बार फिर से चाशनी में पकाया जाता है और उसके बाद उस पेठे में फ्लेवर मिलाकर ड्राई किया जाता है। पेठा सुखाने के बाद खाने के लिए बिल्कुल तैयार हो जाता है। ये ऐसी मिठाई है, जो जल्दी खराब नहीं होती है। आगरा में बनाया जाता है 56 तरह का पेठा
पेठा कारोबारी बताते हैं कि बिना शक्कर वाला पेठा खून से लेकर दिल की बीमारियों में मरीजों को दिया जाता है। इससे बीमारियों के खिलाफ लड़ने की ताकत मिलती है। हालांकि, धीरे-धीरे इसके स्वाद में बदलाव आने लगा है। लोग चीनी के साथ-साथ इसमें सुगंध का इस्तेमाल करके रसीला पेठा बड़े ही चाव से बनाने और खाने लगे। अब 56 तरह का पेठा बनाया जा रहा है। इसमें सबसे ज्यादा डिमांड सूखे पेठे और केसर पेठे की रहती है। डायबिटीज वालों के लिए शुगर फ्री पेठा
कारोबारी बताते हैं, डायबिटीज के मरीजों के लिए शुगर फ्री पेठा भी आ गया है। इसमें शुगर नहीं होती है। पान के शौकीनों के लिए पान पेठा है। इसमें गुलकंद होता है। मुंह में रखते ही गुलकंद का स्वाद आता है। गुलाब लड्डू पेठे में गुलाब की खुशबू का आनंद आता है। इसी तरह सैंडविच पेठा, मेवावाटी, केसर चेरी, कोकोनट पेठा, पिस्ता पसंद और लाल पेठे की बहुत डिमांड रहती है। पेठा नहीं ले गए तो कोई मानता नहीं कि आगरा गए थे
आगरा में ताजमहल देखने के लिए रोजाना हजारों पर्यटक आते हैं। ताजमहल देखने के बाद सबसे ज्यादा जरूरी काम पेठा खरीदना होता है। दिल्ली से आए पर्यटक मनोज कश्यप ने बताया कि वो परिवार के साथ घूमने आए हैं। अब वापस लौट रहे हैं। ऐसे में यहां का फेमस पेठा लेने आए हैं। जब भी आगरा आते हैं, पेठा ले जाना नहीं भूलते। अब पेठे की बहुत वैराइटी हो गई हैं। मगर, उन्हें केसर और चॉकलेट पेठा काफी अच्छा लगता है। उन्होंने बताया कि पेठे की सबसे अच्छी बात ये है कि दूसरी मिठाइयों से अच्छा और सस्ता है। अपने लिए तो तीन डिब्बे लिए हैं, लेकिन रिश्तेदार और ऑफिस के लिए पांच डिब्बे लिए हैं। जिसको भी पता चला कि आगरा में हूं, वो बस यही बोला कि पेठा जरूर ले आना। सैकड़ों साल पुराना पेठे का इतिहास
पेठा कारोबारी राजेश अग्रवाल ने बताया कि पेठा का इतिहास महाभारत काल से है। पहले पेठे का इस्तेमाल औषधि के रूप में होता था। बाद में खाने के लिए इसका प्रयोग किया जाने लगा। मुगलकाल में पेठे को मिठाई के लिए इस्तेमाल किया जाने लगा। बताया जाता है पेठे का अस्तित्व ताजमहल के अस्तित्व से पहले ही आ गया था। पूरे साल कम नहीं पड़ती डिमांड
पेठे को सबसे सस्ती, शुद्ध और स्वास्थ्यवर्धक मिठाई कहा जाता है। इसलिए व्रत और पूजा में इस मिठाई का प्रयोग किया जाता है। पर्यटकों के साथ स्थानीय लोग भी पेठे को खासा पसंद करते हैं। कालिंदी पेठा समिति के उपाध्यक्ष सोनू मित्तल ने बताया कि गर्मी में पेठे को खाने से ठंडक मिलती है। पेठा 140 रुपए से 400 रुपए तक की रेंज में आता है। ऐसे में किसी भी दूसरी मिठाई की तुलना में ये बहुत सस्ता है। इसलिए भी इसकी काफी मांग रहती है। आगरा के पेठे की बात ही अलग
प्राचीन पेठे की दुकान पर बरेली से आए सचिन साहनी कहते हैं, “मैं लंबे समय बाद आगरा आया हूं। आज वापसी है इसलिए पेठा लेने आ गया। मुझे पेठे में गरी वाला पेठा पसंद है। वैसे तो पेठा बरेली में भी मिल जाता है, लेकिन उस पेठे में आगरा के पेठे जैसे बात नहीं। यहां के पेठे की बात ही अलग है।” उन्होंने कहा, “आगरे का पेठा खाने में बेहद सॉफ्ट होता है और इसके खाने से कोई नुकसान नहीं होता। सबसे बड़ी बात है कि यहां के पेठे क्वालिटी वाइज भी बहुत अच्छे होते हैं। इनमें मिलावट नहीं होती और ये 10 दिन तक फ्रिज में स्टोर कर के रखे जा सकते हैं। इनके स्वाद में कोई फर्क नहीं पड़ता।” युवाओं के लिए नए फ्लेवर
पेठा कारोबारी यथार्थ अग्रवाल ने बताया कि युवाओं को देखते हुए नए फ्लेवर लॉन्च किए गए हैं। इसमें बटर स्कॉच, वनीला फ्लेवर हैं। यूथ को कुछ नया चाहिए, इसलिए उनको देखते हुए ये पेठा बनाया गया है। इस पेठे में मीठा कम होता है। यह भी पढ़ें- बनारस की ब्लू लस्सी के 120 फ्लेवर:96 साल पुरानी दुकान, 50 पन्नों का मेन्यू; चंद्रशेखर आजाद भी थे लस्सी के दीवाने बनारस में खानपान का रस इतना रसीला है कि जो भी इसमें डूबता है वो खुद को तरबतर पाता है। आज “जायका यूपी का” सीरीज में बात बनारस की वर्ल्ड फेमस ब्लू लस्सी की करते हैं। यहां की ब्लू लस्सी की दुकान 96 साल पुरानी है। लस्सी के एक-दो नहीं, 120 फ्लेवर मिलते हैं। यहां पहुंचते ही 50 पन्नों का मेन्यू मिलता है, जिसमें आपको 120 तरह की लस्सी के अलग-अलग रेट मिलेंगे। लस्सी का दाम 40 रुपए से लेकर 150 रुपए तक है। रोजाना करीब 5 हजार लोग लस्सी पीने पहुंचते हैं। स्वतंत्रता संग्राम के दिनों में चंद्रशेखर आजाद भी यहीं पर लस्सी पीने आते थे। लेकिन पैसे खुद नहीं, उनके गुरु शचींद्र नाथ सांयाल देते थे। पूरी खबर यहां पढ़ें उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर