प्रेमानंद महाराज ने रात की पदयात्रा बंद की:हाथरस हादसे के बाद फैसला, बोले- श्रद्धालु रास्ते में दर्शन के लिए खड़े न हों हाथरस हादसे के बाद प्रेमानंद महाराज ने मथुरा में अपनी रात की पदयात्रा को अनिश्चितकाल के लिए बंद कर दी है। श्रीहित राधा केली कुंज परिकर की ओर से जारी लेटर में लिखा- हाथरस में हुई दुर्भाग्यपूर्ण घटना हृदय विदारक और अत्यंत दुखद है। हादसे में हम सबकी सवेदनाएं परिजनों के साथ हैं। भविष्य में ऐसी कोई भी घटना न घटे, ऐसी ठाकुर जी के चरणों में प्रार्थना है। प्रेमानंद महाराज ने कहा- कृपया कोई भी श्रद्धालु रात में रास्ते में दर्शन के लिए खड़े न हों। न ही रास्ते में किसी प्रकार की भीड़ लगाएं। इधर, बागेश्वर धाम वाले पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री ने आज (4 जुलाई) अपने जन्मदिन पर होने वाले कार्यक्रम को रद्द कर दिया है। इस कार्यक्रम में लाखों की संख्या में लोगों के आने की उम्मीद थी। दो किलोमीटर पैदल चलते हैं संत प्रेमानंद
संत प्रेमानंद महाराज रात 2:30 बजे श्रीकृष्ण शरणम् सोसाइटी से रमणरेती स्थिति आश्रम हित राधा केली कुंज के लिए निकलते हैं। 2 किलोमीटर पैदल चलकर जाते हैं। इस दौरान उनके हजारों अनुयायी एक झलक पाने को गर्मी, बारिश, सर्दी में सड़क के दोनों ओर पलक पांवड़े बिछाए खड़े रहते हैं। फूलों से पट जाता है रास्ता
रात में जब संत प्रेमानंद महाराज आश्रम के लिए निकलते हैं, तब उनके अनुयायी रास्ते भर फूलों से रंगोली बनाते हैं। निवास से लेकर आश्रम तक का रास्ता फूलों से पट जाता है। बच्चे, बुजुर्ग, महिलाएं हर कोई एक झलक पाने को उनका इंतजार करता है। जगह-जगह उनकी आरती उतारी जाती है। प्रेमानंद महाराज और पं. प्रदीप बयान को लेकर चर्चा में रहे
राधारानी के जन्म और श्रीकृष्ण से उनके विवाह को लेकर देश के प्रसिद्ध कथावाचक पंडित प्रदीप मिश्रा और संत प्रेमानंद महाराज में विवाद शुरू हो गया। दरअसल, प्रदीप मिश्रा ने कहा था- राधा के पति का नाम अनय घोष, उनकी सास का नाम जटिला और ननद का नाम कुटिला था। राधाजी का विवाह छाता में हुआ था। राधाजी बरसाना की नहीं, रावल की रहने वाली थीं। बरसाना में तो राधाजी के पिता की कचहरी थी, जहां वह साल भर में एक बार आती थीं। विरोध में प्रेमानंद महाराज ने कहा- 4 श्लोक क्या पढ़ लिए, प्रवक्ता बन गए? तुझे नरक से कोई नहीं बचा सकता। हमें गाली दो तो चलेगा। लेकिन तुम हमारे इष्ट, हमारे गुरु, हमारे धर्म के खिलाफ बोलोगे, उनका अपमान करोगे, तो हम ये बर्दाश्त नहीं करेंगे। तुम्हें बोलने लायक नहीं छोड़ेंगे। इसके बाद प्रदीप मिश्रा ने बरसाना मंदिर में नाक रगड़कर माफी मांगी थी। अब प्रेमानंद जी के बचपन से लेकर प्रसिद्ध कथावाचक और संत बनने की कहानी… 13 साल की उम्र में प्रेमानंद जी महाराज ने घर छोड़ दिया था
प्रेमानंद महाराज का कानपुर के अखरी गांव में जन्म और पालन-पोषण हुआ। यहीं से निकलकर वो इस देश के करोड़ों लोगों के मन में बस गए। उनके बड़े भाई गणेश दत्त पांडे बताते हैं- मेरे पिता शंभू नारायण पांडे और मां रामा देवी हैं। हम 3 भाई हैं, प्रेमानंद मंझले हैं। प्रेमानंद हमेशा से प्रेमानंद महाराज नहीं थे। बचपन में मां-पिता ने बड़े प्यार से उनका नाम अनिरुद्ध कुमार पांडे रखा था। हर पीढ़ी में कोई न कोई एक बड़ा साधु-संत निकला
गणेश पांडे बताते हैं- हमारे पिताजी पुरोहित का काम करते थे। मेरे घर की हर पीढ़ी में कोई न कोई बड़ा साधु-संत होकर निकलता है। पीढ़ी दर पीढ़ी अध्यात्म की ओर झुकाव होने के चलते अनिरुद्ध भी बचपन से ही आध्यात्मिक रहे। बचपन में पूरा परिवार रोजाना एक साथ बैठकर पूजा-पाठ करता था। अनिरुद्ध यह सब बड़े ध्यान से सभी देखा-सुना करता था। शिव मंदिर में चबूतरा बनाने से रोका, तो घर छोड़ दिया
बचपन में अनिरुद्ध ने अपनी सखा टोली के साथ शिव मंदिर के लिए एक चबूतरा बनाना चाहा। इसका निर्माण भी शुरू करवाया, लेकिन कुछ लोगों ने रोक दिया। इससे वह मायूस हो गए। उनका मन इस कदर टूटा कि घर छोड़ दिया। घरवालों ने उनकी खोजबीन शुरू की। काफी मशक्कत के बाद पता चला कि वो सरसौल में नंदेश्वर मंदिर पर रुके हैं। घरवालों ने उन्हें घर लाने का हर जतन किया, लेकिन अनिरुद्ध नहीं माने। फिर कुछ दिनों बाद बची-खुची मोह माया भी छोड़कर वह सरसौल से भी चले गए। नंदेश्वर से महराजपुर, कानपुर और फिर काशी पहुंचे
आज जिन प्रेमानंद महाराज के भक्तों में आम आदमी से लेकर सेलिब्रिटी तक शुमार हैं, उनकी पढ़ाई-लिखाई सिर्फ 8वीं कक्षा तक हुई है। 9वीं में भास्करानंद विद्यालय में एडमिशन दिलाया गया था, लेकिन 4 महीने में ही स्कूल छोड़ दिया। इसके बाद वह भगवान की भक्ति में लीन हो गए। सरसौल नंदेश्वर मंदिर से जाने के बाद वह महराजपुर के सैमसी स्थित एक मंदिर में कुछ दिन रुके। फिर कानपुर के बिठूर में रहे। बिठूर के बाद काशी चले गए। संन्यासी जीवन में कई दिन भूखे रहे
काशी में उन्होंने करीब 15 महीने बिताए। उन्होंने गुरु गौरी शरण जी महाराज से गुरुदीक्षा ली। वाराणसी में संन्यासी जीवन के दौरान वो रोज गंगा में तीन बार स्नान करते। तुलसी घाट पर भगवान शिव और माता गंगा का ध्यान-पूजन करते। दिन में केवल एक बार भोजन करते। प्रेमानंद महाराज भिक्षा मांगने की जगह भोजन प्राप्ति की इच्छा से 10-15 मिनट बैठते थे। अगर इतने समय में भोजन मिला तो उसे ग्रहण करते, नहीं तो सिर्फ गंगाजल पीकर रह जाते। संन्यासी जीवन की दिनचर्या में प्रेमानंद महाराज ने कई दिन बिना कुछ खाए-पीए बिताया। प्रेमानंद जी के वृंदावन पहुंचने की कहानी
प्रेमानंद महाराज के संन्यासी बनने के बाद वृंदावन आने की कहानी बेहद रोचक है। एक दिन प्रेमानंद महाराज से मिलने एक संत आए। उन्होंने कहा- श्री हनुमत धाम विश्वविद्यालय में श्रीराम शर्मा दिन में श्री चैतन्य लीला और रात में रासलीला मंच का आयोजन कर रहे हैं। इसमें आप आमंत्रित हैं। पहले तो प्रेमानंद महाराज ने अपरिचित साधु से वहां आने के लिए मना कर दिया। लेकिन साधु ने उनसे आयोजन में शामिल होने के लिए काफी आग्रह किया। इस पर प्रेमानंद महाराज ने आमंत्रण स्वीकार कर लिया। प्रेमानंद महाराज जब चैतन्य लीला और रासलीला देखने गए, तो उन्हें बहुत पसंद आई। यह आयोजन करीब एक महीने तक चला। चैतन्य लीला और रासलीला समाप्त होने के बाद प्रेमानंद महाराज को आयोजन देखने की व्याकुलता होने लगी। वह उसी साधु के पास गए, जो उन्हें आमंत्रित करने आए थे। उनसे मिलकर महाराज ने कहा- मुझे भी अपने साथ ले चलें। मैं रासलीला को देखूंगा और इसके बदले आपकी सेवा करूंगा। इस पर साधु ने कहा, आप वृंदावन आ जाएं। वहां हर रोज आपको रासलीला देखने को मिलेगी। इसके बाद प्रेमानंद महाराज वृंदावन आ गए। यहां खुद को राधा रानी और श्रीकृष्ण के चरणों में समर्पित कर दिया। साथ ही भगवद प्राप्ति में लग गए। इसके बाद महाराज संन्यास मार्ग से भक्ति मार्ग में आ गए। फिलहाल वह वृंदावन के मधुकरी में रहते हैं।