आज 6 जनवरी को तपोनिधि श्री पंचायती आनंद अखाड़ा की पेशवाई यानी छावनी प्रवेश होने जा रहा है। बाघंबरी मठ के पास स्थित आनंद अखाड़ा परिसर से यह पेशवाई भव्य रूप से निकाली जाएगी। इसमें एक हजार से ज्यादा साधु-संत शामिल होंगे। पूरे ढोल-नगाड़ों के साथ संत महाकुंभ में प्रवेश करेंगे। अभी तक यह छठवें अखाड़े की पेशवाई होगी। सबसे आगे अखाड़े का धर्मध्वजा चलेगा जिस पर भगवान सूर्यदेव स्थापित होंगे। इसके बाद आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी बालकानंद गिरि महराज का रथ होगा जिस पर सवार होंगे। इसके बाद पीछे महामंडेलश्वरों के वाहन क्रमवार चलेंगे। यहां नागा सन्यासी भी शामिल हो रहे हैं, जो हाथों में त्रिशूल और गदा लेकर चल रहे होंगे। इसके लिए 2 हाथी, 15 घोड़े भी मंगाए गए हैं। अखाड़े के श्रीमहंत शंकरानंद सरस्वती ने बताया कि पेशवाई भव्य रूप से निकाली जा रही है। जगह-जगह होगा संतों का स्वागत
छावनी प्रवेश की भव्य शोभायात्रा भारद्वाजपुरम्, बाघम्बरी, रामलीला पार्क लेबर चौराहे, बजरंग चौराहा,अलोपीबाग होते हुए महाकुंभ के छावनी मे प्रवेश करेगा। इसमे देश भर से आये हुए महामंडलेश्वर, संत महात्मा, सन्यासी, रथों, घोडों पर सवार बैंड बाजा सहित सभी भक्तों को अपना आशीर्वाद देते हुए निकलेंगे। संतों का स्वागत प्रयागराज के भक्त करते हुए फूलों की बौछार करेगे। स्वामी राजेश्वरानंद सरस्वती ने कहा, पूरे महाकुंभ अवधि तक संत अखाड़े के शिविर में रहेंगे। भगवान सूर्य नारायण हैं इस अखाड़े के इष्टदेव
श्रीमहंत शंकरानंद महराज बताते हैं कि इस अखाड़े के इष्टदेव भगवान सूर्य नारायण हैं। इसका इतिहास सैकड़ों वर्ष पुराना है और इसकी स्थापना 855 ईस्वी में महाराष्ट्र के बरार नामक स्थान पर हुई थी। इस अखाड़े को निरंजनी अखाड़े का छोटा भाई भी कहा जाता है। सबसे कठिन है संन्यास देने की प्रक्रिया
आनंद अखाड़े में संन्यास देने की प्रक्रिया सबसे कठिन है। ब्रह्मचारी बनाकर 3 से 4 वर्ष तक आश्रम में रहना होता है और उसमें खरा उतरने पर ही कुंभ या महाकुंभ में संन्यास की दीक्षा जी जाती है। पिंडदान करवाकर दीक्षा दी जाती। अखाड़े के अध्यक्ष शंकरानंद सरस्वती बताते हैं, इस अखाड़े ने पंचायत राज की स्थापना की थी तभी से पंचायत राज शुरू हो गया। सबसे पहले रमता पंच का चुनाव किया जाता है और उसमें चार श्रीमहंत होते हैं। आज 6 जनवरी को तपोनिधि श्री पंचायती आनंद अखाड़ा की पेशवाई यानी छावनी प्रवेश होने जा रहा है। बाघंबरी मठ के पास स्थित आनंद अखाड़ा परिसर से यह पेशवाई भव्य रूप से निकाली जाएगी। इसमें एक हजार से ज्यादा साधु-संत शामिल होंगे। पूरे ढोल-नगाड़ों के साथ संत महाकुंभ में प्रवेश करेंगे। अभी तक यह छठवें अखाड़े की पेशवाई होगी। सबसे आगे अखाड़े का धर्मध्वजा चलेगा जिस पर भगवान सूर्यदेव स्थापित होंगे। इसके बाद आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी बालकानंद गिरि महराज का रथ होगा जिस पर सवार होंगे। इसके बाद पीछे महामंडेलश्वरों के वाहन क्रमवार चलेंगे। यहां नागा सन्यासी भी शामिल हो रहे हैं, जो हाथों में त्रिशूल और गदा लेकर चल रहे होंगे। इसके लिए 2 हाथी, 15 घोड़े भी मंगाए गए हैं। अखाड़े के श्रीमहंत शंकरानंद सरस्वती ने बताया कि पेशवाई भव्य रूप से निकाली जा रही है। जगह-जगह होगा संतों का स्वागत
छावनी प्रवेश की भव्य शोभायात्रा भारद्वाजपुरम्, बाघम्बरी, रामलीला पार्क लेबर चौराहे, बजरंग चौराहा,अलोपीबाग होते हुए महाकुंभ के छावनी मे प्रवेश करेगा। इसमे देश भर से आये हुए महामंडलेश्वर, संत महात्मा, सन्यासी, रथों, घोडों पर सवार बैंड बाजा सहित सभी भक्तों को अपना आशीर्वाद देते हुए निकलेंगे। संतों का स्वागत प्रयागराज के भक्त करते हुए फूलों की बौछार करेगे। स्वामी राजेश्वरानंद सरस्वती ने कहा, पूरे महाकुंभ अवधि तक संत अखाड़े के शिविर में रहेंगे। भगवान सूर्य नारायण हैं इस अखाड़े के इष्टदेव
श्रीमहंत शंकरानंद महराज बताते हैं कि इस अखाड़े के इष्टदेव भगवान सूर्य नारायण हैं। इसका इतिहास सैकड़ों वर्ष पुराना है और इसकी स्थापना 855 ईस्वी में महाराष्ट्र के बरार नामक स्थान पर हुई थी। इस अखाड़े को निरंजनी अखाड़े का छोटा भाई भी कहा जाता है। सबसे कठिन है संन्यास देने की प्रक्रिया
आनंद अखाड़े में संन्यास देने की प्रक्रिया सबसे कठिन है। ब्रह्मचारी बनाकर 3 से 4 वर्ष तक आश्रम में रहना होता है और उसमें खरा उतरने पर ही कुंभ या महाकुंभ में संन्यास की दीक्षा जी जाती है। पिंडदान करवाकर दीक्षा दी जाती। अखाड़े के अध्यक्ष शंकरानंद सरस्वती बताते हैं, इस अखाड़े ने पंचायत राज की स्थापना की थी तभी से पंचायत राज शुरू हो गया। सबसे पहले रमता पंच का चुनाव किया जाता है और उसमें चार श्रीमहंत होते हैं। उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर