<p style=”text-align: justify;”><strong>Santhara Ritual News:</strong> मध्य प्रदेश के इंदौर से एक ऐसी खबर सामने आई है, जिसे जानकर आप भी सोच में पड़ जाएंगे. एक 3 साल की बच्ची वियाना, जो कि ट्यूमर से पीड़ित थी, उसके माता-पिता ने उसे संथारा दिलवाया और 10 मिनट में बच्ची ने प्राण त्याग दिए.</p>
<p style=”text-align: justify;”>मामला 21 मार्च का है, लेकिन इस सप्ताह तब सामने आया जब अमेरिका की गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स ने बच्ची को ‘संथारा संकल्प लेने वाली सबसे कम उम्र की व्यक्ति’ के रूप में दर्ज किया.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>परिवार का दावा और बीमारी का सिलसिला</strong><br />वियाना के माता-पिता (35 वर्षीय) पीयूष जैन और (32 वर्षीय) वर्षा जैन दोनों ही IT प्रोफेशनल हैं. हिंदूस्तान टाइम्स के अनुसार बच्ची के पैरेंट्स का दावा है कि उनकी बेटी को दिसंबर में ब्रेन ट्यूमर का पता चला था. 10 जनवरी को मुंबई में उसकी सफल सर्जरी हुई, लेकिन मार्च में कैंसर फिर उभर आया. 15 मार्च को वियाना की तबीयत फिर बिगड़ी. इस बार डॉक्टर्स ने उसके गले में संक्रमण बताया और 18 मार्च से उसे जूस पर रखा गया. 21 मार्च की शाम को उसे कृत्रिम फीडिंग ट्यूब के जरिए तरल दिए गए.</p>
<p style=”text-align: justify;”>लेकिन उसी शाम माता-पिता ने अपने आध्यात्मिक गुरु राजेश मुनि महाराज से सलाह ली. जिन्होंने उन्हें संथारा व्रत का सुझाव दिया ताकि ‘उसकी पीड़ा कम हो और अगला जन्म बेहतर हो’. इसी रात 9:25 बजे इंदौर के आश्रम में संथारा की शुरुआत हुई और 10:05 बजे वियाना ने देह त्याग दिया.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>क्या है संथारा परंपरा?</strong><br />संथारा जैन धर्म की वह प्रथा है जिसमें व्यक्ति स्वेच्छा से अन्न-जल त्यागकर मृत्यु को स्वीकार करता है. यह प्रथा 2015 में राजस्थान हाई कोर्ट द्वारा अवैध करार दी गई थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उस फैसले पर रोक लगा दी, जिससे यह कानूनी रूप से वैध बनी रही.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>कानूनी और नैतिक सवाल</strong><br />हालांकि, बच्चों के मामले में यह प्रथा गंभीर कानूनी सवाल खड़े करती है. मध्य प्रदेश बाल अधिकार आयोग के सदस्य ओंकार सिंह ने कहा, “संथारा बुजुर्गों के लिए है. हमें माता-पिता से सहानुभूति है, लेकिन इतनी छोटी बच्ची के लिए यह उचित नहीं. उसे अपनी स्थिति की समझ भी नहीं थी.” उन्होंने बताया कि आयोग कानूनी पहलुओं की समीक्षा कर रहा है और जल्द ही माता-पिता पर कार्रवाई का फैसला हो सकता है.</p>
<p style=”text-align: justify;”>पूर्व HC जज अभय जैन गोहिल का मानना है कि बच्ची पहले से ही मृत्यु शैय्या पर थी, इसलिए कानूनी चुनौती देना कठिन होगा. उन्होंने कहा, “हर साल करीब 200 लोग संथारा लेते हैं, लेकिन यह मामला अलग है क्योंकि फैसला बच्ची के उसके बजाय माता-पिता ने लिया.”</p>
<p style=”text-align: justify;”>वहीं, चिकित्सा विशेषज्ञों ने स्पष्ट रूप से इस फैसले पर आपत्ति जताई है. एक वरिष्ठ डॉक्टर ने कहा, “बच्ची को अस्पताल में भर्ती किया जाना चाहिए था, न कि आध्यात्मिक केंद्र ले जाना चाहिए था. वह इतनी छोटी थी कि संथारा जैसे व्रत का मानसिक और शारीरिक बोझ नहीं सह सकती थी.”</p> <p style=”text-align: justify;”><strong>Santhara Ritual News:</strong> मध्य प्रदेश के इंदौर से एक ऐसी खबर सामने आई है, जिसे जानकर आप भी सोच में पड़ जाएंगे. एक 3 साल की बच्ची वियाना, जो कि ट्यूमर से पीड़ित थी, उसके माता-पिता ने उसे संथारा दिलवाया और 10 मिनट में बच्ची ने प्राण त्याग दिए.</p>
<p style=”text-align: justify;”>मामला 21 मार्च का है, लेकिन इस सप्ताह तब सामने आया जब अमेरिका की गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स ने बच्ची को ‘संथारा संकल्प लेने वाली सबसे कम उम्र की व्यक्ति’ के रूप में दर्ज किया.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>परिवार का दावा और बीमारी का सिलसिला</strong><br />वियाना के माता-पिता (35 वर्षीय) पीयूष जैन और (32 वर्षीय) वर्षा जैन दोनों ही IT प्रोफेशनल हैं. हिंदूस्तान टाइम्स के अनुसार बच्ची के पैरेंट्स का दावा है कि उनकी बेटी को दिसंबर में ब्रेन ट्यूमर का पता चला था. 10 जनवरी को मुंबई में उसकी सफल सर्जरी हुई, लेकिन मार्च में कैंसर फिर उभर आया. 15 मार्च को वियाना की तबीयत फिर बिगड़ी. इस बार डॉक्टर्स ने उसके गले में संक्रमण बताया और 18 मार्च से उसे जूस पर रखा गया. 21 मार्च की शाम को उसे कृत्रिम फीडिंग ट्यूब के जरिए तरल दिए गए.</p>
<p style=”text-align: justify;”>लेकिन उसी शाम माता-पिता ने अपने आध्यात्मिक गुरु राजेश मुनि महाराज से सलाह ली. जिन्होंने उन्हें संथारा व्रत का सुझाव दिया ताकि ‘उसकी पीड़ा कम हो और अगला जन्म बेहतर हो’. इसी रात 9:25 बजे इंदौर के आश्रम में संथारा की शुरुआत हुई और 10:05 बजे वियाना ने देह त्याग दिया.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>क्या है संथारा परंपरा?</strong><br />संथारा जैन धर्म की वह प्रथा है जिसमें व्यक्ति स्वेच्छा से अन्न-जल त्यागकर मृत्यु को स्वीकार करता है. यह प्रथा 2015 में राजस्थान हाई कोर्ट द्वारा अवैध करार दी गई थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उस फैसले पर रोक लगा दी, जिससे यह कानूनी रूप से वैध बनी रही.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>कानूनी और नैतिक सवाल</strong><br />हालांकि, बच्चों के मामले में यह प्रथा गंभीर कानूनी सवाल खड़े करती है. मध्य प्रदेश बाल अधिकार आयोग के सदस्य ओंकार सिंह ने कहा, “संथारा बुजुर्गों के लिए है. हमें माता-पिता से सहानुभूति है, लेकिन इतनी छोटी बच्ची के लिए यह उचित नहीं. उसे अपनी स्थिति की समझ भी नहीं थी.” उन्होंने बताया कि आयोग कानूनी पहलुओं की समीक्षा कर रहा है और जल्द ही माता-पिता पर कार्रवाई का फैसला हो सकता है.</p>
<p style=”text-align: justify;”>पूर्व HC जज अभय जैन गोहिल का मानना है कि बच्ची पहले से ही मृत्यु शैय्या पर थी, इसलिए कानूनी चुनौती देना कठिन होगा. उन्होंने कहा, “हर साल करीब 200 लोग संथारा लेते हैं, लेकिन यह मामला अलग है क्योंकि फैसला बच्ची के उसके बजाय माता-पिता ने लिया.”</p>
<p style=”text-align: justify;”>वहीं, चिकित्सा विशेषज्ञों ने स्पष्ट रूप से इस फैसले पर आपत्ति जताई है. एक वरिष्ठ डॉक्टर ने कहा, “बच्ची को अस्पताल में भर्ती किया जाना चाहिए था, न कि आध्यात्मिक केंद्र ले जाना चाहिए था. वह इतनी छोटी थी कि संथारा जैसे व्रत का मानसिक और शारीरिक बोझ नहीं सह सकती थी.”</p> मध्य प्रदेश MuzaffarNagar News: मुजफ्फरनगर महापंचायत में मेरठ से आ रहे किसान, बोले- धरती लाल कर देंगे
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