उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे साथ आए तो महाराष्ट्र में क्या बदलेगा, BJP को फायदा या नुकसान? समझें

उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे साथ आए तो महाराष्ट्र में क्या बदलेगा, BJP को फायदा या नुकसान? समझें

<p style=”text-align: justify;”>उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे, महाराष्ट्र की राजनीति के दो ऐसे नाम जो हमेशा चर्चा में रहते हैं. इन दोनों की चर्चा के बिना महाराष्ट्र की राजनीति अधूरी लगती है. दो दशक पहले अलग हो चुके ठाकरे परिवार के ये दो चेहरे के साथ आने की चर्चाओं ने जोर पकड़ लिया है.&nbsp;यह चर्चा तब शुरू हुई जब राज ठाकरे ने फिल्म निर्देशक महेश मांजरेकर को दिए इंटरव्यू में कहा कि उनके और उद्धव के बीच के मतभेद महाराष्ट्र के हितों के आगे बेहद छोटे हैं.</p>
<p style=”text-align: justify;”>राज ठाकरे द्वारा हाथ बढ़ाकर सहयोग का संकेत देने पर, उद्धव ठाकरे ने भी सकारात्मक प्रतिक्रिया दी. मुंबई में एक सार्वजनिक कार्यक्रम में बोलते हुए उद्धव ठाकरे ने कहा कि महाराष्ट्र के हितों को प्राथमिकता देने के लिए वे एक साथ आने को तैयार हैं लेकिन यह तैयारी पूरी तरह बिना शर्त नहीं होगी.&nbsp;दोनों नेताओं के एक साथ आने की खबर ने माहौल बना दिया है. जहां उद्धव ठाकरे की पार्टी से संजय राउत जैसे नेता खुश हैं, वहीं राज ठाकरे की पार्टी में कुछ नेता असहज हैं.</p>
<p style=”text-align: justify;”>महाराष्ट्र की मराठी जनता लंबे समय से चाहती रही है कि बालासाहेब ठाकरे के जाने के बाद दोनों भाई एक साथ आएं. इससे पहले भी ऐसी चर्चा हो चुकी है, लेकिन कोई ठोस नतीजा नहीं निकल पाया था. अगर वाकई उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे एक साथ आते हैं, तो इसका महाराष्ट्र की राजनीति पर बड़ा असर होगा.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>महाराष्ट्र की राजनीति पर संभावित असर</strong></p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>मराठी वोटों का एकीकरण</strong></p>
<p style=”text-align: justify;”>महाराष्ट्र की राजनीति में मराठी वोट बैंक की अहम भूमिका होती है. यह वोट बैंक वर्तमान में बीजेपी, <a title=”एकनाथ शिंदे” href=”https://www.abplive.com/topic/eknath-shinde” data-type=”interlinkingkeywords”>एकनाथ शिंदे</a> की शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस में बंटा हुआ है. अगर उद्धव और राज एकसाथ आते हैं, तो यह वोट बैंक काफी हद तक उनके साथ जुड़ सकता है.&nbsp;2011 की जनगणना के अनुसार महाराष्ट्र की लगभग 69.93 फीसदी जनसंख्या मराठी भाषी है &mdash; यानी लगभग 7.74 करोड़ लोग. हालांकि, मुंबई जैसे शहर में मराठी बोलने वालों का प्रतिशत सिर्फ 25&ndash;26 फीसदी है.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>महायुती को झटका लग सकता है</strong></p>
<p style=”text-align: justify;”>बीजेपी, शिंदे गुट और अजित पवार की एनसीपी को ठाकरे भाइयों के गठबंधन से बड़ा नुकसान हो सकता है. बालासाहेब ठाकरे के हिंदुत्ववादी समर्थक आज भी बड़ी संख्या में हैं, जो शायद राज और उद्धव के साथ जाने का विकल्प चुनें. मुंबई, ठाणे और नाशिक जैसे शहरी क्षेत्रों में यह गठबंधन बीजेपी को कड़ी टक्कर दे सकता है.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>सत्ता का केंद्र बन सकता है ठाकरे परिवार</strong></p>
<p style=”text-align: justify;”>1966 में शिवसेना की स्थापना से ही ठाकरे परिवार महाराष्ट्र राजनीति का एक केंद्र रहा है. उनकी भाषण शैली, बोलने का प्रभाव और “ठाकरी बाणा” उन्हें विशिष्ट बनाता है. अगर दोनों भाई एकसाथ आते हैं, तो ठाकरे परिवार एक बार फिर से राजनीतिक केंद्र बिंदु बन सकता है, जिससे अन्य दलों को नुकसान उठाना पड़ सकता है.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>मुस्लिम और दलित समुदाय की नाराज़गी संभव</strong></p>
<p style=”text-align: justify;”>2024 के लोकसभा और विधानसभा चुनावों में उद्धव ठाकरे की यूबीटी को मुस्लिम और दलित वोटों का अच्छा समर्थन मिला था. अगर राज ठाकरे के साथ गठबंधन होता है, तो यह समुदाय नाराज हो सकता है, और उनका समर्थन फिर से कांग्रेस या एनसीपी को मिल सकता है.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>दोनों पार्टियों को मिलेगा पुनर्जीवन</strong></p>
<p style=”text-align: justify;”>राज ठाकरे की पार्टी ने शुरुआत में अच्छा प्रदर्शन किया था, लेकिन 2014 के बाद से उसका ग्राफ गिरा है. उधर उद्धव ठाकरे को बीजेपी और शिंदे गुट से अलग होने के बाद संघर्ष का सामना करना पड़ रहा है. मुंबई महानगरपालिका जहां उद्धव की पकड़ है, वहां अगर राज के साथ मिलकर काम किया जाए, तो यह गठबंधन बीजेपी के लिए चुनौती बन सकता है.</p>
<p style=”text-align: justify;”>लेकिन असली चुनौती यह है कि यह एकीकरण किस रूप में होगा? कौन नेता होगा, किसकी बात अंतिम मानी जाएगी, और क्या साझा फार्मूला तय होगा, ये सवाल अभी अनसुलझे हैं.&nbsp;मुंबई महानगरपालिका चुनाव में यह गठबंधन दोनों के लिए राजनीतिक रूप से अहम है, लेकिन 20 वर्षों के पुराने मतभेदों को सुलझाना भी उतना ही जरूरी है. बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि दोनों ठाकरे अब क्या कदम उठाते हैं?</p> <p style=”text-align: justify;”>उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे, महाराष्ट्र की राजनीति के दो ऐसे नाम जो हमेशा चर्चा में रहते हैं. इन दोनों की चर्चा के बिना महाराष्ट्र की राजनीति अधूरी लगती है. दो दशक पहले अलग हो चुके ठाकरे परिवार के ये दो चेहरे के साथ आने की चर्चाओं ने जोर पकड़ लिया है.&nbsp;यह चर्चा तब शुरू हुई जब राज ठाकरे ने फिल्म निर्देशक महेश मांजरेकर को दिए इंटरव्यू में कहा कि उनके और उद्धव के बीच के मतभेद महाराष्ट्र के हितों के आगे बेहद छोटे हैं.</p>
<p style=”text-align: justify;”>राज ठाकरे द्वारा हाथ बढ़ाकर सहयोग का संकेत देने पर, उद्धव ठाकरे ने भी सकारात्मक प्रतिक्रिया दी. मुंबई में एक सार्वजनिक कार्यक्रम में बोलते हुए उद्धव ठाकरे ने कहा कि महाराष्ट्र के हितों को प्राथमिकता देने के लिए वे एक साथ आने को तैयार हैं लेकिन यह तैयारी पूरी तरह बिना शर्त नहीं होगी.&nbsp;दोनों नेताओं के एक साथ आने की खबर ने माहौल बना दिया है. जहां उद्धव ठाकरे की पार्टी से संजय राउत जैसे नेता खुश हैं, वहीं राज ठाकरे की पार्टी में कुछ नेता असहज हैं.</p>
<p style=”text-align: justify;”>महाराष्ट्र की मराठी जनता लंबे समय से चाहती रही है कि बालासाहेब ठाकरे के जाने के बाद दोनों भाई एक साथ आएं. इससे पहले भी ऐसी चर्चा हो चुकी है, लेकिन कोई ठोस नतीजा नहीं निकल पाया था. अगर वाकई उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे एक साथ आते हैं, तो इसका महाराष्ट्र की राजनीति पर बड़ा असर होगा.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>महाराष्ट्र की राजनीति पर संभावित असर</strong></p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>मराठी वोटों का एकीकरण</strong></p>
<p style=”text-align: justify;”>महाराष्ट्र की राजनीति में मराठी वोट बैंक की अहम भूमिका होती है. यह वोट बैंक वर्तमान में बीजेपी, <a title=”एकनाथ शिंदे” href=”https://www.abplive.com/topic/eknath-shinde” data-type=”interlinkingkeywords”>एकनाथ शिंदे</a> की शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस में बंटा हुआ है. अगर उद्धव और राज एकसाथ आते हैं, तो यह वोट बैंक काफी हद तक उनके साथ जुड़ सकता है.&nbsp;2011 की जनगणना के अनुसार महाराष्ट्र की लगभग 69.93 फीसदी जनसंख्या मराठी भाषी है &mdash; यानी लगभग 7.74 करोड़ लोग. हालांकि, मुंबई जैसे शहर में मराठी बोलने वालों का प्रतिशत सिर्फ 25&ndash;26 फीसदी है.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>महायुती को झटका लग सकता है</strong></p>
<p style=”text-align: justify;”>बीजेपी, शिंदे गुट और अजित पवार की एनसीपी को ठाकरे भाइयों के गठबंधन से बड़ा नुकसान हो सकता है. बालासाहेब ठाकरे के हिंदुत्ववादी समर्थक आज भी बड़ी संख्या में हैं, जो शायद राज और उद्धव के साथ जाने का विकल्प चुनें. मुंबई, ठाणे और नाशिक जैसे शहरी क्षेत्रों में यह गठबंधन बीजेपी को कड़ी टक्कर दे सकता है.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>सत्ता का केंद्र बन सकता है ठाकरे परिवार</strong></p>
<p style=”text-align: justify;”>1966 में शिवसेना की स्थापना से ही ठाकरे परिवार महाराष्ट्र राजनीति का एक केंद्र रहा है. उनकी भाषण शैली, बोलने का प्रभाव और “ठाकरी बाणा” उन्हें विशिष्ट बनाता है. अगर दोनों भाई एकसाथ आते हैं, तो ठाकरे परिवार एक बार फिर से राजनीतिक केंद्र बिंदु बन सकता है, जिससे अन्य दलों को नुकसान उठाना पड़ सकता है.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>मुस्लिम और दलित समुदाय की नाराज़गी संभव</strong></p>
<p style=”text-align: justify;”>2024 के लोकसभा और विधानसभा चुनावों में उद्धव ठाकरे की यूबीटी को मुस्लिम और दलित वोटों का अच्छा समर्थन मिला था. अगर राज ठाकरे के साथ गठबंधन होता है, तो यह समुदाय नाराज हो सकता है, और उनका समर्थन फिर से कांग्रेस या एनसीपी को मिल सकता है.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>दोनों पार्टियों को मिलेगा पुनर्जीवन</strong></p>
<p style=”text-align: justify;”>राज ठाकरे की पार्टी ने शुरुआत में अच्छा प्रदर्शन किया था, लेकिन 2014 के बाद से उसका ग्राफ गिरा है. उधर उद्धव ठाकरे को बीजेपी और शिंदे गुट से अलग होने के बाद संघर्ष का सामना करना पड़ रहा है. मुंबई महानगरपालिका जहां उद्धव की पकड़ है, वहां अगर राज के साथ मिलकर काम किया जाए, तो यह गठबंधन बीजेपी के लिए चुनौती बन सकता है.</p>
<p style=”text-align: justify;”>लेकिन असली चुनौती यह है कि यह एकीकरण किस रूप में होगा? कौन नेता होगा, किसकी बात अंतिम मानी जाएगी, और क्या साझा फार्मूला तय होगा, ये सवाल अभी अनसुलझे हैं.&nbsp;मुंबई महानगरपालिका चुनाव में यह गठबंधन दोनों के लिए राजनीतिक रूप से अहम है, लेकिन 20 वर्षों के पुराने मतभेदों को सुलझाना भी उतना ही जरूरी है. बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि दोनों ठाकरे अब क्या कदम उठाते हैं?</p>  महाराष्ट्र सपा सांसद डिंपल यादव का बीजेपी पर हमला, कहा- ‘भाजपा ने आपसी सौहार्द बिगड़ने का काम किया’