रामनगरी अयोध्या से सटी अंबेडकरनगर की कटेहरी और मां विंध्यवासिनी धाम मिर्जापुर की मझवां में नेता प्रचार में जुटे हैं। ‘दिवाली मिलन सम्मेलन’ आयोजित किए जा रहे हैं। त्योहार के बहाने ही सही, लोगों को अपनी तरफ जुटाने की पूरी कोशिश की जा रही है। दोनों सीटों पर माहौल पूरी तरह चुनावी है। नामांकन के बाद प्रत्याशी खुलकर लोगों के पास वोट मांगने जा रहे हैं। दो साल पहले कटेहरी सीट पर सपा और मझवां में भाजपा ने जीत दर्ज की थी। कटेहरी में भाजपा ने बड़ा दांव खेलते हुए धर्मराज निषाद को टिकट दिया, जबकि सपा ने सांसद लालजी वर्मा की पत्नी शोभावती वर्मा को चुनावी मैदान में उतारा। मौजूदा समीकरण के मुताबिक- यहां भाजपा मजबूत दिखाई दे रही है। अवधेश द्विवेदी की नाराजगी दूर नहीं हुई, तो समीकरण बदल सकते हैं। मझवां में भाजपा और सपा दोनों ने महिला कैंडिडेट उतारे हैं। सुचिस्मिता मौर्य पूर्व विधायक रामचंद्र मौर्या की बहू हैं, जबकि डॉ. ज्योति बिंद पूर्व विधायक डॉ. रमेश बिंद की बेटी हैं। यहां की हवा भाजपा के पक्ष में बह रही है। पर संजय निषाद पर टिकट के लिए पैसे लेने की कंट्रोवर्सी भाजपा को नुकसान पहुंचा सकती है। कटेहरी और मझवां सीट पर क्या राजनीतिक समीकरण बन रहे हैं? क्या यहां बड़ा उलटफेर होगा? अभी हवा का रुख क्या है? ये जानने दैनिक भास्कर की टीम ग्राउंड पर पहुंची। सबसे पहले चलते हैं कटेहरी… अयोध्या से करीब 45 किमी दूर कटेहरी ग्रामीण इलाका है। यहां सबसे पहले हम कटेहरी बाजार पहुंचे। हमें राम अक्षयवर यादव मिले। खुद को सपा का बताते हैं। लेकिन, उपचुनाव के बारे में पूछने पर कहते हैं- यहां भाजपा प्रत्याशी धर्मराज निषाद बढ़त पर हैं। कोई ब्राह्मण-ठाकुर प्रत्याशी आया होता, तो सपा फिर से जीत जाती। लेकिन, अबकी बार ऐसा नहीं लग रहा है। हमने पूछा क्यों? अक्षयवर कहते हैं- क्या यहां सिर्फ लालजी वर्मा का ही परिवार है, उनकी पत्नी की जगह कोई और टिकट पाया होता, तो ठीक रहता। इसी तरह से हमें महरुआ में रजनीश मिले। चुनाव का हाल पूछने पर कहते हैं- हमारे यहां से तो लालजी वर्मा ही जीतेंगे। क्योंकि उन्होंने बहुत काम किया है। अंबेडकरनगर में उनसे ज्यादा काम किसी नेता ने नहीं किया है। अब उनकी पत्नी दावेदार हैं, तो हम सभी लोग उन्हें ही वोट देंगे। वह यहां से एक बार भी नहीं हारे हैं, इसलिए फिर से जीतेंगे। हम कटेहरी में इसी तरह अलग-अलग एरिया में 100 लोगों से मिले, उनसे बात की। लोगों से बातचीत के बाद यह साफ हुआ कि यहां चुनाव मुद्दों का नहीं, बल्कि जातिगत समीकरणों में होने वाला है। यही जीत-हार तय करेगा। सपा ने सभी 5 सीटें जीती थी
अंबेडकरनगर में कुल 5 विधानसभा हैं। 2022 में सभी सीटों पर सपा प्रत्याशियों की जीत हुई थी। इसी में एक सीट कटेहरी थी। 2024 के लोकसभा चुनाव में यहां से विधायक रहे लालजी वर्मा को सपा ने प्रत्याशी बनाया। वह जीत गए। इसलिए यह सीट खाली हुई। अब उनकी पत्नी शोभावती चुनाव लड़ रही हैं। भाजपा ने यहां 1996, 2002 और 2007 में बसपा के टिकट से विधायक रहे धर्मराज निषाद को प्रत्याशी बनाया है। यहां पर भाजपा सिर्फ एक बार 1992 में चुनाव जीती है। पिछले दो चुनाव 10 हजार से भी कम अंतर से हारी है। ऐसे में पार्टी ने यहां पूरी ताकत लगा दी है। खुद सीएम योगी दो बार दौरा कर चुके हैं। कटेहरी के मौजूदा समीकरण 3 पॉइंट में समझिए… 1. 2022 और 2017 का विधानसभा चुनाव ओबीसी बनाम ब्राह्मण हो गया था। अबकी बार ओबीसी बनाम ओबीसी है। ऐसे में स्थिति बदली हुई है। भाजपा ने खुद के सिंबल पर धर्मराज निषाद को टिकट दिया है। लोग मानते हैं, जो प्रत्याशी को नहीं पसंद कर रहे, वह पार्टी और योगी-मोदी के नाम पर वोट देंगे। 2. सपा ने सांसद लालजी वर्मा की पत्नी को टिकट दिया। ऐसे में उनके ऊपर परिवारवाद का आरोप लग रहा है। पार्टी के ही पहाड़ी यादव, शंखलाल यादव जैसे नेता नाराज हो गए। बीजेपी इसे भुनाने की कोशिश कर रही है। यहां पीडीए फॉर्मूला भी ज्यादा प्रभावी नहीं दिख रहा है। 3. बसपा ने यहां अमित वर्मा को प्रत्याशी बनाया है। ऐसे में वर्मा वोट सपा और बसपा में बंट सकता है। इसका फायदा भाजपा को हो सकता है। पिछले दो चुनाव में ब्राह्मण-ठाकुर के बीच वोट बंट गया था। अब जानते हैं वो कौन से फैक्टर हैं, जो चुनाव का रुख बदल सकते हैं… 1. भाजपा नेता और पूर्व प्रत्याशी अवधेश द्विवेदी इस सीट पर जमकर प्रचार कर रहे थे। दावा था कि उन्हें ही टिकट मिलेगा। ऐन मौके पर भाजपा ने धर्मराज को टिकट दिया। अवधेश द्विवेदी इससे नाराज दिखे। वह नामांकन कार्यक्रम में भी शामिल नहीं हुए। इसी तरह अजय प्रताप सिंह उर्फ अजय सिपाही भी नाराज हैं। यह विरोध चुनाव तक बना रहा तो भाजपा को मुश्किल होगी। 2. सपा अपने ऊपर लग रहे परिवारवाद के आरोप को हटाने में अगर कामयाब होती है। और PDA समीकरण के अलावा सवर्ण वोट बैंक को अपने पक्ष में ले आती है, तब वह फिर से मजबूत स्थिति में आ जाएगी। 3. भाजपा प्रत्याशी धर्मराज पिछले तीन चुनाव हार चुके हैं। कटेहरी में वह कम एक्टिव रहे हैं। यह सपा के लिए प्लस पॉइंट दिखाई दे रहा है। अब जानते हैं पॉलिटिकल एक्सपर्ट की राय… पहला चुनाव, जब किसी पार्टी ने सवर्ण उम्मीदवार नहीं उतारा अंबेडकरनगर के वरिष्ठ पत्रकार अश्विनी मिश्र कहते हैं- यह पहला मौका है, जब तीनों मुख्य पार्टी सपा-बसपा-भाजपा में से किसी ने सवर्ण प्रत्याशी नहीं उतारे। सभी ने बैकवर्ड पर दांव खेला है। अगर सवर्ण जातियां एकजुट होकर किसी पाले में जाती हैं, तो इस चुनाव में बहुत महत्वपूर्ण फैक्टर होने वाला है। बाकी सपा में जो नाराजगी टिकट घोषित होने के बाद थी, उसे काफी हद तक मैनेज कर लिया गया है। खिलाफ में चुनाव लड़ने वाले पहाड़ी यादव, अब मान गए हैं। अब देखना यह होगा कि भाजपा अपने नाराज नेताओं को कैसे मनाती है। अंबेडकरनगर की राजनीति को करीब से जानने वाले अखिलेश तिवारी कहते हैं- धर्मराज की सक्रियता कटेहरी में कम है। इसकी बड़ी वजह यह है कि वह पिछला तीन चुनाव अलग-अलग जगह से लड़े हैं। लेकिन धर्मराज की छवि अच्छी है। पिछले दो चुनाव में सवर्ण जातियों के दो-दो कैंडिडेट लड़े, इसलिए भाजपा हार गई। लेकिन अबकी स्थिति अलग दिख रही है। माना जाता है कि सवर्ण बीजेपी का मूल वोट है, बिखराव की संभावना कम है। ……………………… अब चलते हैं मिर्जापुर की मझवां सीट पर…. मिर्जापुर मुख्यालय से करीब 20 किमी दूर मझवां विधानसभा सीट ग्रामीण इलाका है। यहां के लोगों का मुख्य पेशा खेती और पशुपालन है। भाजपा यहां सहयोगी दलों के साथ एकजुट है और जीत की हैट्रिक लगाने का प्रयास कर रही है। हम सबसे पहले कछवां बाजार पहुंचे। यहां सबसे पुरानी सूरत-मूरत की चाय की दुकान है। भास्कर का माइक देखकर लोगों ने चुनावी माहौल पर बात करनी शुरू की। हमने जब उनसे मझवां विधानसभाा क्षेत्र में उपचुनाव का हाल पूछा, तो सभी की राय अलग-अलग दिखी। स्थानीय भाषा में रामनरेश कहते हैं- हमार हिंदी भाषा सुन ला, बसपा भी रहा, भाजपा भी कुर्सी पे रहा…लेकिन जे आपन, जो कमाए होई, वो मिली। माहौल अभई कछु समझ में ना आवत हौ। सब गुरू हैं, कोई चेला है नहीं। इसलिए इन प्रत्याशी को जानकर क्या करेंगे, हम तो सभी की सच्चाई जानत हैं। छुन्ना सिंह के सामने माइक पहुंचा तो नाराजगी छलक आई। उनका कहना है कि कछवां नगर पंचायत क्षेत्र में भाजपा की हालात ठीक नहीं है। निषाद पार्टी के हरिशंकर बिंद के संजय निषाद पर लगाए गए आरोपों को लेकर बिंद समाज नाराज है, वो भाजपा को वोट नहीं देना चाहता है। पहले हम भाजपा के समर्थक रहे, लेकिन उनकी कथनी-करनी में अंतर है। कस्बे के हनुमान मंदिर चौराहे पर मिले पृथ्वीनाथ तिवारी ने कहा- भाजपा इस बार इतिहास बनाएगी। सारे आंकड़े भाजपा की तरफ हैं। उनकी सरकार है, तो लोग उन्हें ही जिताना चाहेंगे। शुरुआत में कांग्रेस, बसपा और भाजपा ही चुनाव जीती है। इलाके के समाजसेवी लल्लन केसरी ने कहा- मझवां ब्लॉक में तहसील, डिग्री कालेज जैसी सुविधाएं मिलना जरूरी है। हमें तो उसकी जीत चाहिए, जो हमें मूलभूत सुविधाएं और परियोजनाएं दे, सरकार जिस पार्टी की है, उसको जिताने से यह संभव होगा। विपक्ष का विधायक जीत गया, तो जनता को लाभ नहीं मिलेगा। इन सभी लोगों से बात करने के बाद हम व्यापारियों के पास पहुंचे। व्यापार मंडल के संरक्षक लक्ष्मीकांत गुप्ता ने कहा- व्यापारी वर्ग भाजपा के साथ है। क्षत्रिय, ब्राह्मण और ओबीसी वोट सुचिस्मिता मौर्या को मिल रहा है। दलों के आंकड़े अलग-अलग हैं। व्यापारी वर्ग पूर्व विधायक को समर्थन कर रहा है। अभी फाइट में भाजपा और सपा दिख रही है। करीब 100 लोगों से बात की, यहां के जो मौजूदा समीकरण दिखे, उन्हें 3 पॉइंट में समझिए… 1. सुचिस्मिता मौर्य 2017 में मझवां से भाजपा के टिकट पर चुनाव जीती थीं। उनके ससुर रामचंद्र मौर्य मझवां से विधायक रहे थे। कालीन के कारोबार से जुड़ी सुचिस्मिता मौर्य टिकट कटने के बाद भी लगातार भाजपा नेता के रूप में एक्टिव रहीं। क्षेत्र में उनकी छवि बेदाग है। 2. पूर्व सांसद-विधायक रमेश बिंद ओबीसी खेमे में एकतरफा मजबूती दिखा रहे थे। लेकिन, भाजपा ने अपने सिंबल पर सुचिस्मिता की घोषणा कर सभी को चौंका दिया। पार्टी ने शुरूआती और पुराने समीकरणों को मजबूत कर लिया। 3. बसपा ने ब्राह्मण चेहरे दीपक तिवारी को उतारा है। वह पार्टी के पारंपरिक वोटों को मजबूत करने में जुटे हैं। सवर्ण वोटर पर अभी इस बात का ज्यादा प्रभाव नहीं दिख रहा है। अब जानिए वो कौन से फैक्टर हैं, जो चुनाव का रुख बदल सकते हैं… 1. निषाद पार्टी के हरिशंकर बिंद ने बड़ा आरोप लगाया है। उनका आरोप है कि संजय निषाद ने टिकट दिलाने का आश्वासन दिया था। 10 लाख रुपए भी लिए। क्षेत्र में इस बात की चर्चा है। निषाद वोटर एनडीए से आक्रोशित दिख रहे हैं। सपा अगर इसे मुद्दा बनाती है, तो उसे फायदा मिलेगा। 2. ज्योति बिंद के पिता रमेश बिंद 2002 से 2012 तक लगातार तीन बार विधायक रहे। उनका इस सीट पर अच्छा अनुभव है। अगर वह बिंद वोटर को पूरी तरह अपने पक्ष में ले आते हैं। तब समीकरण बदल सकते हैं। 3. बसपा के दीपक तिवारी अगर सवर्ण वोटर को अपने पक्ष में लाते हैं, तब इसका फायदा सपा को मिल सकता है। क्योंकि अभी भाजपा सवर्ण को अपना वोट बैंक मानती है। अब जानते हैं कि पॉलिटिकल एक्सपर्ट क्या कहते हैं मझवां की राजनीति को करीब से जानने वाले प्रोफेसर मारकण्डेय सिंह ने कहा- अभी चुनाव की हवा भाजपा की तरफ दिखाई दे रही है। लड़ाई सिर्फ भाजपा-सपा के बीच है। बसपा के ब्राह्मण प्रत्याशी की चर्चा नहीं है। लेकिन मायावती का कोर वोटर, उन्हीं को वोट करेगा। प्रोफेसर मारकण्डेय ने बताया- जातिगत आंकड़ों को देखें तो ओबीसी-जनरल वोटर निर्णायक हैं, वो एकजुट होकर वोट करते हैं। भाजपा को सभी जातियों का वोट मिलता है, अन्य दलों को जातिगत वोट मिलता दिख रहा है। बसपा कुछ वोट काटेगी। लेकिन, उनके लोग बिखरते नजर आ रहे हैं। इसलिए प्रभाव नहीं दिख रहा। …………………………………………… यह खबर भी पढ़ें फूलपुर में BJP मजबूत, सीसामऊ में नसीम के साथ संवेदनाएं: इरफान की सीट पर दलित पलटे तभी खिलेगा कमल दो साल पहले कानपुर की सीसामऊ सीट पर सपा और प्रयागराज की फूलपुर सीट पर भाजपा ने जीत दर्ज कराई। सीसामऊ में भाजपा ने पिछले रिकॉर्ड को खंगाला और गुणा-भाग करके सुरेश अवस्थी को टिकट दिया। सपा ने जेल में बंद पूर्व विधायक इरफान सोलंकी की पत्नी नसीम सोलंकी को उम्मीदवार बनाया। पढ़ें पूरी रिपोर्ट… रामनगरी अयोध्या से सटी अंबेडकरनगर की कटेहरी और मां विंध्यवासिनी धाम मिर्जापुर की मझवां में नेता प्रचार में जुटे हैं। ‘दिवाली मिलन सम्मेलन’ आयोजित किए जा रहे हैं। त्योहार के बहाने ही सही, लोगों को अपनी तरफ जुटाने की पूरी कोशिश की जा रही है। दोनों सीटों पर माहौल पूरी तरह चुनावी है। नामांकन के बाद प्रत्याशी खुलकर लोगों के पास वोट मांगने जा रहे हैं। दो साल पहले कटेहरी सीट पर सपा और मझवां में भाजपा ने जीत दर्ज की थी। कटेहरी में भाजपा ने बड़ा दांव खेलते हुए धर्मराज निषाद को टिकट दिया, जबकि सपा ने सांसद लालजी वर्मा की पत्नी शोभावती वर्मा को चुनावी मैदान में उतारा। मौजूदा समीकरण के मुताबिक- यहां भाजपा मजबूत दिखाई दे रही है। अवधेश द्विवेदी की नाराजगी दूर नहीं हुई, तो समीकरण बदल सकते हैं। मझवां में भाजपा और सपा दोनों ने महिला कैंडिडेट उतारे हैं। सुचिस्मिता मौर्य पूर्व विधायक रामचंद्र मौर्या की बहू हैं, जबकि डॉ. ज्योति बिंद पूर्व विधायक डॉ. रमेश बिंद की बेटी हैं। यहां की हवा भाजपा के पक्ष में बह रही है। पर संजय निषाद पर टिकट के लिए पैसे लेने की कंट्रोवर्सी भाजपा को नुकसान पहुंचा सकती है। कटेहरी और मझवां सीट पर क्या राजनीतिक समीकरण बन रहे हैं? क्या यहां बड़ा उलटफेर होगा? अभी हवा का रुख क्या है? ये जानने दैनिक भास्कर की टीम ग्राउंड पर पहुंची। सबसे पहले चलते हैं कटेहरी… अयोध्या से करीब 45 किमी दूर कटेहरी ग्रामीण इलाका है। यहां सबसे पहले हम कटेहरी बाजार पहुंचे। हमें राम अक्षयवर यादव मिले। खुद को सपा का बताते हैं। लेकिन, उपचुनाव के बारे में पूछने पर कहते हैं- यहां भाजपा प्रत्याशी धर्मराज निषाद बढ़त पर हैं। कोई ब्राह्मण-ठाकुर प्रत्याशी आया होता, तो सपा फिर से जीत जाती। लेकिन, अबकी बार ऐसा नहीं लग रहा है। हमने पूछा क्यों? अक्षयवर कहते हैं- क्या यहां सिर्फ लालजी वर्मा का ही परिवार है, उनकी पत्नी की जगह कोई और टिकट पाया होता, तो ठीक रहता। इसी तरह से हमें महरुआ में रजनीश मिले। चुनाव का हाल पूछने पर कहते हैं- हमारे यहां से तो लालजी वर्मा ही जीतेंगे। क्योंकि उन्होंने बहुत काम किया है। अंबेडकरनगर में उनसे ज्यादा काम किसी नेता ने नहीं किया है। अब उनकी पत्नी दावेदार हैं, तो हम सभी लोग उन्हें ही वोट देंगे। वह यहां से एक बार भी नहीं हारे हैं, इसलिए फिर से जीतेंगे। हम कटेहरी में इसी तरह अलग-अलग एरिया में 100 लोगों से मिले, उनसे बात की। लोगों से बातचीत के बाद यह साफ हुआ कि यहां चुनाव मुद्दों का नहीं, बल्कि जातिगत समीकरणों में होने वाला है। यही जीत-हार तय करेगा। सपा ने सभी 5 सीटें जीती थी
अंबेडकरनगर में कुल 5 विधानसभा हैं। 2022 में सभी सीटों पर सपा प्रत्याशियों की जीत हुई थी। इसी में एक सीट कटेहरी थी। 2024 के लोकसभा चुनाव में यहां से विधायक रहे लालजी वर्मा को सपा ने प्रत्याशी बनाया। वह जीत गए। इसलिए यह सीट खाली हुई। अब उनकी पत्नी शोभावती चुनाव लड़ रही हैं। भाजपा ने यहां 1996, 2002 और 2007 में बसपा के टिकट से विधायक रहे धर्मराज निषाद को प्रत्याशी बनाया है। यहां पर भाजपा सिर्फ एक बार 1992 में चुनाव जीती है। पिछले दो चुनाव 10 हजार से भी कम अंतर से हारी है। ऐसे में पार्टी ने यहां पूरी ताकत लगा दी है। खुद सीएम योगी दो बार दौरा कर चुके हैं। कटेहरी के मौजूदा समीकरण 3 पॉइंट में समझिए… 1. 2022 और 2017 का विधानसभा चुनाव ओबीसी बनाम ब्राह्मण हो गया था। अबकी बार ओबीसी बनाम ओबीसी है। ऐसे में स्थिति बदली हुई है। भाजपा ने खुद के सिंबल पर धर्मराज निषाद को टिकट दिया है। लोग मानते हैं, जो प्रत्याशी को नहीं पसंद कर रहे, वह पार्टी और योगी-मोदी के नाम पर वोट देंगे। 2. सपा ने सांसद लालजी वर्मा की पत्नी को टिकट दिया। ऐसे में उनके ऊपर परिवारवाद का आरोप लग रहा है। पार्टी के ही पहाड़ी यादव, शंखलाल यादव जैसे नेता नाराज हो गए। बीजेपी इसे भुनाने की कोशिश कर रही है। यहां पीडीए फॉर्मूला भी ज्यादा प्रभावी नहीं दिख रहा है। 3. बसपा ने यहां अमित वर्मा को प्रत्याशी बनाया है। ऐसे में वर्मा वोट सपा और बसपा में बंट सकता है। इसका फायदा भाजपा को हो सकता है। पिछले दो चुनाव में ब्राह्मण-ठाकुर के बीच वोट बंट गया था। अब जानते हैं वो कौन से फैक्टर हैं, जो चुनाव का रुख बदल सकते हैं… 1. भाजपा नेता और पूर्व प्रत्याशी अवधेश द्विवेदी इस सीट पर जमकर प्रचार कर रहे थे। दावा था कि उन्हें ही टिकट मिलेगा। ऐन मौके पर भाजपा ने धर्मराज को टिकट दिया। अवधेश द्विवेदी इससे नाराज दिखे। वह नामांकन कार्यक्रम में भी शामिल नहीं हुए। इसी तरह अजय प्रताप सिंह उर्फ अजय सिपाही भी नाराज हैं। यह विरोध चुनाव तक बना रहा तो भाजपा को मुश्किल होगी। 2. सपा अपने ऊपर लग रहे परिवारवाद के आरोप को हटाने में अगर कामयाब होती है। और PDA समीकरण के अलावा सवर्ण वोट बैंक को अपने पक्ष में ले आती है, तब वह फिर से मजबूत स्थिति में आ जाएगी। 3. भाजपा प्रत्याशी धर्मराज पिछले तीन चुनाव हार चुके हैं। कटेहरी में वह कम एक्टिव रहे हैं। यह सपा के लिए प्लस पॉइंट दिखाई दे रहा है। अब जानते हैं पॉलिटिकल एक्सपर्ट की राय… पहला चुनाव, जब किसी पार्टी ने सवर्ण उम्मीदवार नहीं उतारा अंबेडकरनगर के वरिष्ठ पत्रकार अश्विनी मिश्र कहते हैं- यह पहला मौका है, जब तीनों मुख्य पार्टी सपा-बसपा-भाजपा में से किसी ने सवर्ण प्रत्याशी नहीं उतारे। सभी ने बैकवर्ड पर दांव खेला है। अगर सवर्ण जातियां एकजुट होकर किसी पाले में जाती हैं, तो इस चुनाव में बहुत महत्वपूर्ण फैक्टर होने वाला है। बाकी सपा में जो नाराजगी टिकट घोषित होने के बाद थी, उसे काफी हद तक मैनेज कर लिया गया है। खिलाफ में चुनाव लड़ने वाले पहाड़ी यादव, अब मान गए हैं। अब देखना यह होगा कि भाजपा अपने नाराज नेताओं को कैसे मनाती है। अंबेडकरनगर की राजनीति को करीब से जानने वाले अखिलेश तिवारी कहते हैं- धर्मराज की सक्रियता कटेहरी में कम है। इसकी बड़ी वजह यह है कि वह पिछला तीन चुनाव अलग-अलग जगह से लड़े हैं। लेकिन धर्मराज की छवि अच्छी है। पिछले दो चुनाव में सवर्ण जातियों के दो-दो कैंडिडेट लड़े, इसलिए भाजपा हार गई। लेकिन अबकी स्थिति अलग दिख रही है। माना जाता है कि सवर्ण बीजेपी का मूल वोट है, बिखराव की संभावना कम है। ……………………… अब चलते हैं मिर्जापुर की मझवां सीट पर…. मिर्जापुर मुख्यालय से करीब 20 किमी दूर मझवां विधानसभा सीट ग्रामीण इलाका है। यहां के लोगों का मुख्य पेशा खेती और पशुपालन है। भाजपा यहां सहयोगी दलों के साथ एकजुट है और जीत की हैट्रिक लगाने का प्रयास कर रही है। हम सबसे पहले कछवां बाजार पहुंचे। यहां सबसे पुरानी सूरत-मूरत की चाय की दुकान है। भास्कर का माइक देखकर लोगों ने चुनावी माहौल पर बात करनी शुरू की। हमने जब उनसे मझवां विधानसभाा क्षेत्र में उपचुनाव का हाल पूछा, तो सभी की राय अलग-अलग दिखी। स्थानीय भाषा में रामनरेश कहते हैं- हमार हिंदी भाषा सुन ला, बसपा भी रहा, भाजपा भी कुर्सी पे रहा…लेकिन जे आपन, जो कमाए होई, वो मिली। माहौल अभई कछु समझ में ना आवत हौ। सब गुरू हैं, कोई चेला है नहीं। इसलिए इन प्रत्याशी को जानकर क्या करेंगे, हम तो सभी की सच्चाई जानत हैं। छुन्ना सिंह के सामने माइक पहुंचा तो नाराजगी छलक आई। उनका कहना है कि कछवां नगर पंचायत क्षेत्र में भाजपा की हालात ठीक नहीं है। निषाद पार्टी के हरिशंकर बिंद के संजय निषाद पर लगाए गए आरोपों को लेकर बिंद समाज नाराज है, वो भाजपा को वोट नहीं देना चाहता है। पहले हम भाजपा के समर्थक रहे, लेकिन उनकी कथनी-करनी में अंतर है। कस्बे के हनुमान मंदिर चौराहे पर मिले पृथ्वीनाथ तिवारी ने कहा- भाजपा इस बार इतिहास बनाएगी। सारे आंकड़े भाजपा की तरफ हैं। उनकी सरकार है, तो लोग उन्हें ही जिताना चाहेंगे। शुरुआत में कांग्रेस, बसपा और भाजपा ही चुनाव जीती है। इलाके के समाजसेवी लल्लन केसरी ने कहा- मझवां ब्लॉक में तहसील, डिग्री कालेज जैसी सुविधाएं मिलना जरूरी है। हमें तो उसकी जीत चाहिए, जो हमें मूलभूत सुविधाएं और परियोजनाएं दे, सरकार जिस पार्टी की है, उसको जिताने से यह संभव होगा। विपक्ष का विधायक जीत गया, तो जनता को लाभ नहीं मिलेगा। इन सभी लोगों से बात करने के बाद हम व्यापारियों के पास पहुंचे। व्यापार मंडल के संरक्षक लक्ष्मीकांत गुप्ता ने कहा- व्यापारी वर्ग भाजपा के साथ है। क्षत्रिय, ब्राह्मण और ओबीसी वोट सुचिस्मिता मौर्या को मिल रहा है। दलों के आंकड़े अलग-अलग हैं। व्यापारी वर्ग पूर्व विधायक को समर्थन कर रहा है। अभी फाइट में भाजपा और सपा दिख रही है। करीब 100 लोगों से बात की, यहां के जो मौजूदा समीकरण दिखे, उन्हें 3 पॉइंट में समझिए… 1. सुचिस्मिता मौर्य 2017 में मझवां से भाजपा के टिकट पर चुनाव जीती थीं। उनके ससुर रामचंद्र मौर्य मझवां से विधायक रहे थे। कालीन के कारोबार से जुड़ी सुचिस्मिता मौर्य टिकट कटने के बाद भी लगातार भाजपा नेता के रूप में एक्टिव रहीं। क्षेत्र में उनकी छवि बेदाग है। 2. पूर्व सांसद-विधायक रमेश बिंद ओबीसी खेमे में एकतरफा मजबूती दिखा रहे थे। लेकिन, भाजपा ने अपने सिंबल पर सुचिस्मिता की घोषणा कर सभी को चौंका दिया। पार्टी ने शुरूआती और पुराने समीकरणों को मजबूत कर लिया। 3. बसपा ने ब्राह्मण चेहरे दीपक तिवारी को उतारा है। वह पार्टी के पारंपरिक वोटों को मजबूत करने में जुटे हैं। सवर्ण वोटर पर अभी इस बात का ज्यादा प्रभाव नहीं दिख रहा है। अब जानिए वो कौन से फैक्टर हैं, जो चुनाव का रुख बदल सकते हैं… 1. निषाद पार्टी के हरिशंकर बिंद ने बड़ा आरोप लगाया है। उनका आरोप है कि संजय निषाद ने टिकट दिलाने का आश्वासन दिया था। 10 लाख रुपए भी लिए। क्षेत्र में इस बात की चर्चा है। निषाद वोटर एनडीए से आक्रोशित दिख रहे हैं। सपा अगर इसे मुद्दा बनाती है, तो उसे फायदा मिलेगा। 2. ज्योति बिंद के पिता रमेश बिंद 2002 से 2012 तक लगातार तीन बार विधायक रहे। उनका इस सीट पर अच्छा अनुभव है। अगर वह बिंद वोटर को पूरी तरह अपने पक्ष में ले आते हैं। तब समीकरण बदल सकते हैं। 3. बसपा के दीपक तिवारी अगर सवर्ण वोटर को अपने पक्ष में लाते हैं, तब इसका फायदा सपा को मिल सकता है। क्योंकि अभी भाजपा सवर्ण को अपना वोट बैंक मानती है। अब जानते हैं कि पॉलिटिकल एक्सपर्ट क्या कहते हैं मझवां की राजनीति को करीब से जानने वाले प्रोफेसर मारकण्डेय सिंह ने कहा- अभी चुनाव की हवा भाजपा की तरफ दिखाई दे रही है। लड़ाई सिर्फ भाजपा-सपा के बीच है। बसपा के ब्राह्मण प्रत्याशी की चर्चा नहीं है। लेकिन मायावती का कोर वोटर, उन्हीं को वोट करेगा। प्रोफेसर मारकण्डेय ने बताया- जातिगत आंकड़ों को देखें तो ओबीसी-जनरल वोटर निर्णायक हैं, वो एकजुट होकर वोट करते हैं। भाजपा को सभी जातियों का वोट मिलता है, अन्य दलों को जातिगत वोट मिलता दिख रहा है। बसपा कुछ वोट काटेगी। लेकिन, उनके लोग बिखरते नजर आ रहे हैं। इसलिए प्रभाव नहीं दिख रहा। …………………………………………… यह खबर भी पढ़ें फूलपुर में BJP मजबूत, सीसामऊ में नसीम के साथ संवेदनाएं: इरफान की सीट पर दलित पलटे तभी खिलेगा कमल दो साल पहले कानपुर की सीसामऊ सीट पर सपा और प्रयागराज की फूलपुर सीट पर भाजपा ने जीत दर्ज कराई। सीसामऊ में भाजपा ने पिछले रिकॉर्ड को खंगाला और गुणा-भाग करके सुरेश अवस्थी को टिकट दिया। सपा ने जेल में बंद पूर्व विधायक इरफान सोलंकी की पत्नी नसीम सोलंकी को उम्मीदवार बनाया। पढ़ें पूरी रिपोर्ट… उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर