कमाई यूपी की, नेता-अफसरों का निवेश देवभूमि में:लखनऊ से दिल्ली गए थे दिल लगाने, बात बिगड़ी; बड़े-छोटे साहब की शिकायत पहुंची

कमाई यूपी की, नेता-अफसरों का निवेश देवभूमि में:लखनऊ से दिल्ली गए थे दिल लगाने, बात बिगड़ी; बड़े-छोटे साहब की शिकायत पहुंची

भगवा टोली से जुड़े कुछ नेताओं ने कमाई यूपी में की और निवेश देवभूमि में किया, जबकि प्रदेश के मुखिया देश-दुनिया से यूपी में निवेश लाने में जुटे हुए हैं। भगवा दल के एक सहयोगी का दम घुटने लगा है। सुनने में आ रहा है कि नए ठिकाने की तलाश में हैं। बड़ी हसरत लेकर दिल्ली पहुंचे थे। लेकिन, बात नहीं बनी। अब पुराने घर में ही खुश होने की कोशिश कर रहे हैं। इस शनिवार सुनी-सुनाई में पढ़िए राजनीति और ब्यूरोक्रेसी के गलियारे में चल रही ऐसी ही चर्चाओं को… ऊपरी कमाई ऊंची वाली जगह पर लगाई ठिकाने
सूबे की सत्ता के सियासी मुखिया और मुख्य नाजिम देश-दुनिया के कोने-कोने से यूपी में निवेश लाने के लिए भरकस प्रयास कर रहे हैं। इसके लिए प्रदेश में हर साल बड़े-बड़े इवेंट कराए जा रहे हैं। निवेश आएगा तो प्रदेश के लोगों को रोजगार मिलेगा। यूपी वन ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था वाला राज्य बन जाएगा। लेकिन, बीते दिनों चर्चा जोरों पर है कि यहां की कमाई दूसरी जगह जा रही है। सियासत और शासन से जुड़े बड़े नामवाले यूपी से कमाकर पड़ोसी राज्यों में निवेश कर रहे हैं। देवभूमि उनकी पहली पसंद तो मरुभूमि दूसरी पसंद है। हाल ही में भगवा टोली से जुड़े कुछ नेताओं ने देवभूमि के मुक्तेश्वर में निवेश किया है। बताया जा रहा है कि ये कमाई सैलेरी की नहीं, ऊपरी है। ऊपरी कमाई को ऊंचाई वाली जगह ठिकाने लगाने में ज्यादा आसानी होती है। पहले भी ये जगह अफसरों और नेताओं के लिए मुफीद रही है। पकड़ा गया दो “इनवेंटिव” युवाओं का खेल
भगवा टोली के दोनों मुखिया बीते एक महीने में नए सदस्य बनाकर लक्ष्य पूरा करने के लिए जी जान से जुटे रहे। एक-एक सदस्य बनाने के लिए पसीना बहाया गया, लेकिन उन्हीं के बगल में बैठकर उनकी टीम के दो सदस्य पड़ोसी राज्य के माननीयों के सदस्य बनाने में लगे रहे। खास बात ये रही कि अभियान के दौरान यूपी का मुख्य मुकाबला भी उसी राज्य से था, जिसके सदस्य बनाने के लिए दोनों युवा लगे हुए थे। सोशल मीडिया के दोनों “इनवेंटिव” युवाओं ने सदस्यता अभियान को कमाई अभियान में बदल दिया। चर्चा तो ये है कि एक सदस्य बनाने के लिए 10 से 20 रुपए तक लिए गए और लाखों रुपए की कमाई की गई। हैरत की बात यह है कि कामकाज की ब्रांडिंग भी पार्टी दफ्तर से बैठकर की गई। जबकि कामकाज गोमती नगर स्थित कंपनी दफ्तर से किया गया। सत्ता के भागीदार नए बंधन की तलाश में
सूबे में सत्ता के भागीदार और वजीर नए बंधन की तलाश में हैं। जिससे उन्हें प्रेम है, वह वजीर को पसंद नहीं करते। इस बंधन की शुरुआती बातचीत फिलहाल विफल हो गई है। हुआ यह कि बीते दिनों सूबे के हुक्मरानों से नाराज वजीर पहुंच गए दिल्ली। उन्होंने लाल टोपी वाले मुखिया के एक करीबी से अपनी नई-नई मोहब्बत का इजहार कर दिया। उन्होंने कहा कि मैं तो कुछ नहीं कर सकता। मुखिया से ही पूछ लेता हूं। मध्यस्थ की भूमिका में आए करीबी ने मुखिया को फोन लगा दिया। फिर क्या था लाल टोपी वाले मुखिया ने फोन पर ही वजीर पर लांछन लगाने शुरू कर दिए। फोन स्पीकर पर था, तो दूसरी ओर से आ रही आवाज़ वजीर के कानों से टकरा गई। उनका चेहरा उतर गया। फोन कटा तो वे चुपचाप वहां से निकल कर सीधे सूबे की राजधानी आ गए और अपने मौजूदा साथी के कसीदे पढ़ने शुरू कर दिए। अब सियासत के गलियारे में चर्चा है कि देर सबेर वजीर, पुराने बंधन से मुक्त होंगे और नए बंधन का हिस्सा बनेंगे। लखनऊ पहुंची दो बड़ों की लड़ाई
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में लंबे अरसे से जमे एक पुलिस अफसर की उनके जूनियर अफसर के साथ तनातनी की खबरें अब लखनऊ तक पहुंचने लगी हैं। बड़े साहब का पांव पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अंगद की तरह जमा हुआ है। वह पहले तो जिले की कमान संभाल रहे थे, बाद में मंडल की जिम्मेदारी सौंप दी गई। साहब अब भी जिले वाली हनक बनाना चाहते हैं। वहीं, जिले के साहब जिले को अपने हिसाब से चलाना चाहते हैं। अब ऐसे में टकराव होना वाजिब है। हुआ भी यही। दाेनों अफसरों की अदावत के किस्से दोनों के दफ्तरों में खूब चटखारे लेकर सुनाए जा रहे हैं। इसकी शिकायत लखनऊ भी पहुंची है। इन दोनों अफसरों में एक आयातित हैं और दूसरे शुद्ध देसी। दोनों के अलग-अलग पावर सेंटर हैं, जहां से उन्हें ऊर्जा मिलती है। देखना दिलचस्प होगा कि इन दोनों की लड़ाई में किसकी जीत और किसकी हार होती है। रामनगरी की राह में युद्ध, कील-कांटे बिछा दिए
रामनगरी की हॉट सीट पर चुनाव टल गया। चुनाव में भगवा टोली के टिकट के सबसे प्रबल दावेदार पर “चौबे जी छब्बे जी बनने गए थे, दुबे जी बनकर लौटे” वाली कहावत चरितार्थ हुई। अब भगवा टोली में दावेदार बाबा की राजनीतिक सूझबूझ पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं कि टिकट मांगने के लिए लखनऊ से दिल्ली तक चक्कर लगाने के चक्कर में वह भूल गए कि उन्होंने खुद ही राह में कील कांटे बिछा रखे हैं। उनकी अनदेखी और नासमझी में सत्ता और संगठन की मेहनत पर पानी फिरने के बाद अब नेतृत्व उनके राजनीतिक भविष्य के बारे में भी गंभीरता से विचार कर रहा है। ……………………………………………………… ये कॉलम भी पढ़ें… माई की कृपा वाले को नहीं मिला ऊपर से आशीर्वाद:यूपी में बागियों के लिए गेट खोलने वाला नहीं मिल रहा, भगदड़ मचने वाली है, इंतजार करिए भगवा टोली से जुड़े कुछ नेताओं ने कमाई यूपी में की और निवेश देवभूमि में किया, जबकि प्रदेश के मुखिया देश-दुनिया से यूपी में निवेश लाने में जुटे हुए हैं। भगवा दल के एक सहयोगी का दम घुटने लगा है। सुनने में आ रहा है कि नए ठिकाने की तलाश में हैं। बड़ी हसरत लेकर दिल्ली पहुंचे थे। लेकिन, बात नहीं बनी। अब पुराने घर में ही खुश होने की कोशिश कर रहे हैं। इस शनिवार सुनी-सुनाई में पढ़िए राजनीति और ब्यूरोक्रेसी के गलियारे में चल रही ऐसी ही चर्चाओं को… ऊपरी कमाई ऊंची वाली जगह पर लगाई ठिकाने
सूबे की सत्ता के सियासी मुखिया और मुख्य नाजिम देश-दुनिया के कोने-कोने से यूपी में निवेश लाने के लिए भरकस प्रयास कर रहे हैं। इसके लिए प्रदेश में हर साल बड़े-बड़े इवेंट कराए जा रहे हैं। निवेश आएगा तो प्रदेश के लोगों को रोजगार मिलेगा। यूपी वन ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था वाला राज्य बन जाएगा। लेकिन, बीते दिनों चर्चा जोरों पर है कि यहां की कमाई दूसरी जगह जा रही है। सियासत और शासन से जुड़े बड़े नामवाले यूपी से कमाकर पड़ोसी राज्यों में निवेश कर रहे हैं। देवभूमि उनकी पहली पसंद तो मरुभूमि दूसरी पसंद है। हाल ही में भगवा टोली से जुड़े कुछ नेताओं ने देवभूमि के मुक्तेश्वर में निवेश किया है। बताया जा रहा है कि ये कमाई सैलेरी की नहीं, ऊपरी है। ऊपरी कमाई को ऊंचाई वाली जगह ठिकाने लगाने में ज्यादा आसानी होती है। पहले भी ये जगह अफसरों और नेताओं के लिए मुफीद रही है। पकड़ा गया दो “इनवेंटिव” युवाओं का खेल
भगवा टोली के दोनों मुखिया बीते एक महीने में नए सदस्य बनाकर लक्ष्य पूरा करने के लिए जी जान से जुटे रहे। एक-एक सदस्य बनाने के लिए पसीना बहाया गया, लेकिन उन्हीं के बगल में बैठकर उनकी टीम के दो सदस्य पड़ोसी राज्य के माननीयों के सदस्य बनाने में लगे रहे। खास बात ये रही कि अभियान के दौरान यूपी का मुख्य मुकाबला भी उसी राज्य से था, जिसके सदस्य बनाने के लिए दोनों युवा लगे हुए थे। सोशल मीडिया के दोनों “इनवेंटिव” युवाओं ने सदस्यता अभियान को कमाई अभियान में बदल दिया। चर्चा तो ये है कि एक सदस्य बनाने के लिए 10 से 20 रुपए तक लिए गए और लाखों रुपए की कमाई की गई। हैरत की बात यह है कि कामकाज की ब्रांडिंग भी पार्टी दफ्तर से बैठकर की गई। जबकि कामकाज गोमती नगर स्थित कंपनी दफ्तर से किया गया। सत्ता के भागीदार नए बंधन की तलाश में
सूबे में सत्ता के भागीदार और वजीर नए बंधन की तलाश में हैं। जिससे उन्हें प्रेम है, वह वजीर को पसंद नहीं करते। इस बंधन की शुरुआती बातचीत फिलहाल विफल हो गई है। हुआ यह कि बीते दिनों सूबे के हुक्मरानों से नाराज वजीर पहुंच गए दिल्ली। उन्होंने लाल टोपी वाले मुखिया के एक करीबी से अपनी नई-नई मोहब्बत का इजहार कर दिया। उन्होंने कहा कि मैं तो कुछ नहीं कर सकता। मुखिया से ही पूछ लेता हूं। मध्यस्थ की भूमिका में आए करीबी ने मुखिया को फोन लगा दिया। फिर क्या था लाल टोपी वाले मुखिया ने फोन पर ही वजीर पर लांछन लगाने शुरू कर दिए। फोन स्पीकर पर था, तो दूसरी ओर से आ रही आवाज़ वजीर के कानों से टकरा गई। उनका चेहरा उतर गया। फोन कटा तो वे चुपचाप वहां से निकल कर सीधे सूबे की राजधानी आ गए और अपने मौजूदा साथी के कसीदे पढ़ने शुरू कर दिए। अब सियासत के गलियारे में चर्चा है कि देर सबेर वजीर, पुराने बंधन से मुक्त होंगे और नए बंधन का हिस्सा बनेंगे। लखनऊ पहुंची दो बड़ों की लड़ाई
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में लंबे अरसे से जमे एक पुलिस अफसर की उनके जूनियर अफसर के साथ तनातनी की खबरें अब लखनऊ तक पहुंचने लगी हैं। बड़े साहब का पांव पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अंगद की तरह जमा हुआ है। वह पहले तो जिले की कमान संभाल रहे थे, बाद में मंडल की जिम्मेदारी सौंप दी गई। साहब अब भी जिले वाली हनक बनाना चाहते हैं। वहीं, जिले के साहब जिले को अपने हिसाब से चलाना चाहते हैं। अब ऐसे में टकराव होना वाजिब है। हुआ भी यही। दाेनों अफसरों की अदावत के किस्से दोनों के दफ्तरों में खूब चटखारे लेकर सुनाए जा रहे हैं। इसकी शिकायत लखनऊ भी पहुंची है। इन दोनों अफसरों में एक आयातित हैं और दूसरे शुद्ध देसी। दोनों के अलग-अलग पावर सेंटर हैं, जहां से उन्हें ऊर्जा मिलती है। देखना दिलचस्प होगा कि इन दोनों की लड़ाई में किसकी जीत और किसकी हार होती है। रामनगरी की राह में युद्ध, कील-कांटे बिछा दिए
रामनगरी की हॉट सीट पर चुनाव टल गया। चुनाव में भगवा टोली के टिकट के सबसे प्रबल दावेदार पर “चौबे जी छब्बे जी बनने गए थे, दुबे जी बनकर लौटे” वाली कहावत चरितार्थ हुई। अब भगवा टोली में दावेदार बाबा की राजनीतिक सूझबूझ पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं कि टिकट मांगने के लिए लखनऊ से दिल्ली तक चक्कर लगाने के चक्कर में वह भूल गए कि उन्होंने खुद ही राह में कील कांटे बिछा रखे हैं। उनकी अनदेखी और नासमझी में सत्ता और संगठन की मेहनत पर पानी फिरने के बाद अब नेतृत्व उनके राजनीतिक भविष्य के बारे में भी गंभीरता से विचार कर रहा है। ……………………………………………………… ये कॉलम भी पढ़ें… माई की कृपा वाले को नहीं मिला ऊपर से आशीर्वाद:यूपी में बागियों के लिए गेट खोलने वाला नहीं मिल रहा, भगदड़ मचने वाली है, इंतजार करिए   उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर