करनाल में दो सीटों पर उतारे कांग्रेस ने प्रत्याशी:असंध में गोगी और नीलोखेड़ी गोंदर पर खेला दाव, तीन सीटों पर प्रत्याशियों का इंतजार

करनाल में दो सीटों पर उतारे कांग्रेस ने प्रत्याशी:असंध में गोगी और नीलोखेड़ी गोंदर पर खेला दाव, तीन सीटों पर प्रत्याशियों का इंतजार

हरियाणा विधानसभा चुनावों की तैयारी में कांग्रेस ने अपने 31 उम्मीदवारों की पहली सूची जारी कर दी है, जिसमें करनाल जिले की 5 विधानसभाओं में से असंध और नीलोखेड़ी सीटों पर भी स्थिति साफ हो गई है। कांग्रेस ने असंध से मौजूदा विधायक शमशेर सिंह गोगी पर फिर भरोसा जताया है। जबकि नीलोखेड़ी में मौजूदा विधायक धर्मपाल गोंदर पर भरोसा जताया है। जो 2019 में आजाद उम्मीदवार के रूप में विजयी हुए थे। हालांकि, इन दोनों सीटों से कई दावेदार मैदान में थे, लेकिन अंततः पार्टी ने गोगी और गोंदर को ही चुना। जबकी इंद्री, करनाल व घरौंडा विधानसभा के प्रत्याशियों के नाम अभी जारी नहीं कए है। असंध विधानसभा पर गोगी का मजबूत पकड़
असंध से विधायक शमशेर सिंह गोगी एक बार फिर कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ेंगे। 2019 में उन्होंने बीएसपी के नरेंद्र राणा को 1703 वोटों से हराया था, जबकि भाजपा के बख्शीश सिंह विर्क तीसरे स्थान पर रहे थे। गोगी की जनसंपर्क और भाषण कला के कारण वे जनता के बीच खासे लोकप्रिय हैं। उनकी मिलनसारिता और क्षेत्र में लगातार उपस्थिति ने कांग्रेस को एक बार फिर उनके पक्ष में निर्णय लेने के लिए प्रेरित किया। क्यों मिला गोगी को टिकट
गोगी कांग्रेस के सैलजा गुट से आते हैं, और पार्टी ने पहले ही स्पष्ट कर दिया था कि किसी भी मौजूदा विधायक का टिकट नहीं काटा जाएगा। गोगी की क्षेत्र में मजबूत पकड़, जनता के बीच उनकी छवि, और कांग्रेस के लिए उनकी निष्ठा को देखते हुए उन्हें फिर से मैदान में उतारा गया है। क्यों कटी शेरप्रताप शेरी और सुरेंद्र नरवाल की टिकट
असंध से शेरप्रताप शेरी और सुरेंद्र नरवाल जैसे दावेदार भी टिकट की उम्मीद में थे। हालांकि, शेरप्रताप शेरी क्षेत्र में उतने सक्रिय नहीं थे, जिससे उनका टिकट कट गया। वहीं सुरेंद्र नरवाल ने हुड्‌डा गुट से आते है। चार्चाए ये भी है कि उन्होंने किसान नेता राकेश टिकैत से राहुल गांधी को चिट्ठी लिखकर टिकट की मांग की थी, लेकिन पार्टी ने अनुभव और जनता के साथ उनके संवाद की कमी के कारण उन्हें टिकट नहीं दिया। नीलोखेड़ी विधान धर्मपाल गोंदर की मेहनत लाई रंग
नीलोखेड़ी से धर्मपाल गोंदर को कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार बनाया है। गोंदर ने 2019 में आजाद उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़कर जीत हासिल की थी। जिसके बाद उन्होंने भाजपा को अपना सर्मथन दिया। अब कुछ समय पहले उन्होंने भाजपा से सर्मथन वापस लेकर कांग्रेस में शामिल हुए थे।
अपने कार्यकाल में उन्होंने जनता के बीच अपनी पकड़ और क्षेत्र में किए गए कार्यों के कारण खुद को साबित किया है। 2000 में इनेलो की टिकट पर भी उन्होंने चुनाव जीता था, 2009 में भाजपा की टिकट से चुनाव लड़ा। लेकिन जब 2014 और 2019 में जब पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दिया तो 2019 में भाजपा से अलग होकर आजाद चुनाव लड़ने का फैसला किया और जनता ने उन्हें अपना विधायक चुना। क्यों मिला गोंदर को टिकट
गोंदर की जनता के बीच मजबूत पकड़ और आजाद उम्मीदवार के रूप में उनकी जीत कांग्रेस के लिए अहम रही। पार्टी ने माना कि गोंदर कांग्रेस के टिकट पर इस बार और भी बड़े अंतर से जीत सकते हैं, इसलिए उन्हें टिकट दिया गया। गोंदर की कार्यशैली और जनता के प्रति उनकी निष्ठा भी पार्टी के इस फैसले में महत्वपूर्ण रही। क्यों कटी राजेश वैद्य और राजकुमार वाल्मीकि की टिकट
नीलोखेड़ी से राजेश वैद्य और राजकुमार वाल्मीकि जैसे दावेदार भी टिकट की दौड़ में थे। राजेश वैद्य अनुसूचित जाति के वोटर्स पर मजबूत पकड़ रखते थे, लेकिन 2009 में बीएसपी के टिकट पर लोकसभा चुनाव हारने और कांग्रेस में शामिल होने के बाद पार्टी ने अनुभव की कमी के चलते उन्हें टिकट नहीं दिया। वहीं, राजकुमार वाल्मीकि भी टिकट की आस में थे, लेकिन पार्टी ने गोंदर को ज्यादा सक्षम समझा और उनका टिकट काट दिया।
राजनीतिक समीकरण: कांग्रेस के सामने चुनौती
असंध और नीलोखेड़ी में टिकट वितरण के बाद यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या कांग्रेस में भी टिकट कटने के बाद भाजपा की तरह इस्तीफों की झड़ी लगेगी या नेता एकजुट होकर पार्टी के उम्मीदवारों का साथ देंगे। कांग्रेस के लिए यह भी महत्वपूर्ण होगा कि वे भाजपा से नाराज वोटर्स को अपने पाले में लाने के लिए किस तरह की रणनीति अपनाते हैं। कुल मिलाकर, कांग्रेस ने अपने अनुभवी और मजबूत पकड़ वाले नेताओं पर भरोसा जताया है, लेकिन यह भी सुनिश्चित करना होगा कि टिकट से वंचित हुए नेता पार्टी से नाराज होकर विपक्ष का हाथ न थाम लें। हरियाणा विधानसभा चुनावों की तैयारी में कांग्रेस ने अपने 31 उम्मीदवारों की पहली सूची जारी कर दी है, जिसमें करनाल जिले की 5 विधानसभाओं में से असंध और नीलोखेड़ी सीटों पर भी स्थिति साफ हो गई है। कांग्रेस ने असंध से मौजूदा विधायक शमशेर सिंह गोगी पर फिर भरोसा जताया है। जबकि नीलोखेड़ी में मौजूदा विधायक धर्मपाल गोंदर पर भरोसा जताया है। जो 2019 में आजाद उम्मीदवार के रूप में विजयी हुए थे। हालांकि, इन दोनों सीटों से कई दावेदार मैदान में थे, लेकिन अंततः पार्टी ने गोगी और गोंदर को ही चुना। जबकी इंद्री, करनाल व घरौंडा विधानसभा के प्रत्याशियों के नाम अभी जारी नहीं कए है। असंध विधानसभा पर गोगी का मजबूत पकड़
असंध से विधायक शमशेर सिंह गोगी एक बार फिर कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ेंगे। 2019 में उन्होंने बीएसपी के नरेंद्र राणा को 1703 वोटों से हराया था, जबकि भाजपा के बख्शीश सिंह विर्क तीसरे स्थान पर रहे थे। गोगी की जनसंपर्क और भाषण कला के कारण वे जनता के बीच खासे लोकप्रिय हैं। उनकी मिलनसारिता और क्षेत्र में लगातार उपस्थिति ने कांग्रेस को एक बार फिर उनके पक्ष में निर्णय लेने के लिए प्रेरित किया। क्यों मिला गोगी को टिकट
गोगी कांग्रेस के सैलजा गुट से आते हैं, और पार्टी ने पहले ही स्पष्ट कर दिया था कि किसी भी मौजूदा विधायक का टिकट नहीं काटा जाएगा। गोगी की क्षेत्र में मजबूत पकड़, जनता के बीच उनकी छवि, और कांग्रेस के लिए उनकी निष्ठा को देखते हुए उन्हें फिर से मैदान में उतारा गया है। क्यों कटी शेरप्रताप शेरी और सुरेंद्र नरवाल की टिकट
असंध से शेरप्रताप शेरी और सुरेंद्र नरवाल जैसे दावेदार भी टिकट की उम्मीद में थे। हालांकि, शेरप्रताप शेरी क्षेत्र में उतने सक्रिय नहीं थे, जिससे उनका टिकट कट गया। वहीं सुरेंद्र नरवाल ने हुड्‌डा गुट से आते है। चार्चाए ये भी है कि उन्होंने किसान नेता राकेश टिकैत से राहुल गांधी को चिट्ठी लिखकर टिकट की मांग की थी, लेकिन पार्टी ने अनुभव और जनता के साथ उनके संवाद की कमी के कारण उन्हें टिकट नहीं दिया। नीलोखेड़ी विधान धर्मपाल गोंदर की मेहनत लाई रंग
नीलोखेड़ी से धर्मपाल गोंदर को कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार बनाया है। गोंदर ने 2019 में आजाद उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़कर जीत हासिल की थी। जिसके बाद उन्होंने भाजपा को अपना सर्मथन दिया। अब कुछ समय पहले उन्होंने भाजपा से सर्मथन वापस लेकर कांग्रेस में शामिल हुए थे।
अपने कार्यकाल में उन्होंने जनता के बीच अपनी पकड़ और क्षेत्र में किए गए कार्यों के कारण खुद को साबित किया है। 2000 में इनेलो की टिकट पर भी उन्होंने चुनाव जीता था, 2009 में भाजपा की टिकट से चुनाव लड़ा। लेकिन जब 2014 और 2019 में जब पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दिया तो 2019 में भाजपा से अलग होकर आजाद चुनाव लड़ने का फैसला किया और जनता ने उन्हें अपना विधायक चुना। क्यों मिला गोंदर को टिकट
गोंदर की जनता के बीच मजबूत पकड़ और आजाद उम्मीदवार के रूप में उनकी जीत कांग्रेस के लिए अहम रही। पार्टी ने माना कि गोंदर कांग्रेस के टिकट पर इस बार और भी बड़े अंतर से जीत सकते हैं, इसलिए उन्हें टिकट दिया गया। गोंदर की कार्यशैली और जनता के प्रति उनकी निष्ठा भी पार्टी के इस फैसले में महत्वपूर्ण रही। क्यों कटी राजेश वैद्य और राजकुमार वाल्मीकि की टिकट
नीलोखेड़ी से राजेश वैद्य और राजकुमार वाल्मीकि जैसे दावेदार भी टिकट की दौड़ में थे। राजेश वैद्य अनुसूचित जाति के वोटर्स पर मजबूत पकड़ रखते थे, लेकिन 2009 में बीएसपी के टिकट पर लोकसभा चुनाव हारने और कांग्रेस में शामिल होने के बाद पार्टी ने अनुभव की कमी के चलते उन्हें टिकट नहीं दिया। वहीं, राजकुमार वाल्मीकि भी टिकट की आस में थे, लेकिन पार्टी ने गोंदर को ज्यादा सक्षम समझा और उनका टिकट काट दिया।
राजनीतिक समीकरण: कांग्रेस के सामने चुनौती
असंध और नीलोखेड़ी में टिकट वितरण के बाद यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या कांग्रेस में भी टिकट कटने के बाद भाजपा की तरह इस्तीफों की झड़ी लगेगी या नेता एकजुट होकर पार्टी के उम्मीदवारों का साथ देंगे। कांग्रेस के लिए यह भी महत्वपूर्ण होगा कि वे भाजपा से नाराज वोटर्स को अपने पाले में लाने के लिए किस तरह की रणनीति अपनाते हैं। कुल मिलाकर, कांग्रेस ने अपने अनुभवी और मजबूत पकड़ वाले नेताओं पर भरोसा जताया है, लेकिन यह भी सुनिश्चित करना होगा कि टिकट से वंचित हुए नेता पार्टी से नाराज होकर विपक्ष का हाथ न थाम लें।   हरियाणा | दैनिक भास्कर