हरियाणा के करनाल में फर्जी धान की खरीद का मामला एक फिर से उठा है। विभागीय जांच के दौरान 4 हजार क्विंटल धान गायब पाई गई है। मामला सुर्खियों में आने के बाद जिला उपायुक्त ने भी मामले पर संज्ञान लिया और गड़बड़ी वाली मिलों की भी पीवी करवाने के निर्देश जारी कर दिए। अब प्रशासन यह जानने का प्रयास कर रहा है कि आखिर गड़बड़ी कितनी हुई है। पहली ही पीवी में 4 हजार क्विंटल कम आईएएस अधिकारी योगेश सैनी के नेतृत्व में राइस मिल में फिजिकल वैरिफिकेशन की गई। प्रशासनिक जांच का यह पहला फेस था और पहले फेस ने ही बड़ा झटका दे दिया। करीब चार हजार क्विंटल धान कम मिली। जब पहले फेस में ही यह हालात है तो आगे फिजिकल वैरिफिकेशन होगी तो भ्रष्टाचार की ओर भी परते हटती नजर आएगी। इतनी स्पीड से काटे गए गेट पास जब भी गेट पास काटा जाता है तो उसे में औसतन दो से तीन मिनट लगता है। लेकिन जिले कई मंडियों में तो तेज रफ्तार से गेट पास काटकर रख दिए। शक ऐसे भी गहराता है कि जिस गेट पास को कटने में दो से तीन मिनट का टाइम लगता है, उन्हीं गेट पास को 41 सेकेंड दो बार और 2 मिनट 35 सेकेंड में तीन बार काट दिया जाता है। जिसके बाद निसिंग मंडी में 772 गेट पास कैंसिल किए गए। जिसका वजन 42 हजार 633 क्विंटल बनता था। निगदू, इंद्री, तरावड़ी, घरौंडा, करनाल और असंध की मंडियों गेट पास का यही तरीका है। वहीं डीएफएससी की माने तो पूरे मामले की जांच जारी है और गड़बड़ी करने वालों पर एक्शन लिया जाएगा। सवालों के घेरे में मंडी से जुड़े अधिकारी, कर्मचारी और व्यापारी भ्रष्टाचार की जड़े कुरेदी गई और खाद्य एवं आपूर्ति विभाग के अधिकारियों की चूल्ले हिल गई। अब जिम्मेदार खुद को बचाने की जुगत में है और हड़बड़ी में उन राइस मिलर्स के खिलाफ जांच शुरू कर दी, जहां पर धान कम पाया गया है। ऐसे में अधिकारियों की हड़बड़ाहट ने कई सवाल खड़े कर दिए है। जिनकी तरफ आखिर प्रशासन का ध्यान नहीं जाता। कागजो में ही लिखी जाती है भ्रष्टाचार की पटकथा यूथ फॉर चेंज के अध्यक्ष एडवोकेट राकेश ढुल ने बताया कि फर्जी खरीद का खेल कोई एक अधिकारी या कर्मचारी या फिर मंडी से जुड़ा व्यक्ति नहीं कर सकता। इसके लिए पूरे टीम वर्क की जरूरत होती है। कैसे धान को कागजों में उगाना है? कैसे कागजों में ही धान का फर्जी गेट पास कटेगा? कैसे आढ़ती की दुकान के कागजों में चढ़ेगा? कैसे कागजों में ही खरीद एजेंसी धान की परचेज करेगी? कैसे मिलर्स कागजों में ही धान की बोरिया ट्रक में लोड होकर जाएगी? भ्रष्टाचार की पटकथा कागजों में ही लिखी जाती है और उसी में दब जाती है, लेकिन इस तरफ किसी का भी ध्यान नहीं जाता। यह कार्य बिना किसी अधिकारी, आढ़ती या फिर सरकारी खरीद एजेंसियों के इंस्पेक्टरों की मर्जी के बिना नहीं हो सकता। कैसे रचा जाता है भ्रष्टाचार का चक्रव्यूह अक्सर यह सवाल मन में आते है कि मंडी में फर्जी खरीद होती कैसे है और कैसे भ्रष्टाचार होता है? उन्हीं को कुछ आसान तरीके से समझने का प्रयास करते है। एडवोकेट राकेश ढूल के मुताबिक, मंडी में किसान का धान आते ही गेट पर पास कट जाता है। इसमें अनुमानित वजह होता है। गेट पास के माध्यम से ही पता चलता है कि किस आढ़ती के पास धान आया और किस एजेंसी ने खरीदा और किस मिलर्स को भेजा गया। जे फार्म कटने के बाद धान की खरीद का पैसा ऑनलाइन ट्रांसफर हो जाता है। फर्जी गेट पास से शुरू होता है भ्रष्टाचार का फर्स्ट फेस भ्रष्टाचार में फर्स्ट फेस फर्जी गेट पास से शुरू होता है। सेकेंड फेज धान की परचेज से शुरू होता है। इसमें खरीद एजेंसी का निरीक्षक और आढ़ती फर्जी गेट पास के नाम पर चढ़ी धान की सरकारी कागजों में खरीद दिखा देते है, अर्थात कागजों में धान उग जाती है। इसमें आढ़ती की अमाउंट प्रतिशत पहले से ही सेट होती है। किसी किसान के नाम पर धान का जे फार्म काट देते है और फिर किसी राइस मिलर्स को सीएसआर के लिए धान अलॉट कर दी जाती है। जे फार्म वाले किसान के खाते में पैसा आ जाता है और वह सब बंट जाता है और यह काम खरीद एजेंसी के जिम्मेदारों के मार्फत हो सकता है। गरीबों के चावल पर मिलर्स का डाका जो धान कागजों में थी उसको वास्तविक रूप में दिखाने के लिए मिलर्स यूपी और बिहार से गरीबों को मिलने वाले चावल को सस्ते रेट पर खरीद लेता है। इससे मिलर्स का सबसे बड़ा फायदा यह होता है कि वह मिलिंग का खर्च बचा लेता है और सस्ते में चावल खरीदकर एफसीआई को भेज देता है और यूपी व बिहार के चावल माफिया द्वारा यह कार्य किया जाता है। ऐसे में एमएसपी का लाभ किसान को न जाकर भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गया और सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत मिलने वाले चावल को फूड माफिया के जरिए मिलर्स डकार लेते है। खानापूर्ति तक सीमित रह जाता है सब कुछ आकृति संस्था के अध्यक्ष अनुज सैनी की माने तो फिजिकल वैरिफिकेशन महज खानापूर्ति तक सीमित है। जनता को लगे कि प्रशासन द्वारा एक्शन लिया जा रहा है, इसके लिए एक नोटिस जारी कर दिया जाता है और आगे की जांच भी इंस्पेक्टर को ही करनी होती है। यहां पर तो वह कहावत चरितार्थ हो जाती है कि दूध की रखवाली बिल्ली को ही दे दी। जब तक सिस्टम में कड़ी कार्रवाई का प्रावधान नहीं होगा, इस तरह की खानापूर्ति चलती रहेगी। यह होता आया है और आगे भी इसी तरह से होता रहेगा। जांच के नाम पर महज खाना पूर्ति। हरियाणा के करनाल में फर्जी धान की खरीद का मामला एक फिर से उठा है। विभागीय जांच के दौरान 4 हजार क्विंटल धान गायब पाई गई है। मामला सुर्खियों में आने के बाद जिला उपायुक्त ने भी मामले पर संज्ञान लिया और गड़बड़ी वाली मिलों की भी पीवी करवाने के निर्देश जारी कर दिए। अब प्रशासन यह जानने का प्रयास कर रहा है कि आखिर गड़बड़ी कितनी हुई है। पहली ही पीवी में 4 हजार क्विंटल कम आईएएस अधिकारी योगेश सैनी के नेतृत्व में राइस मिल में फिजिकल वैरिफिकेशन की गई। प्रशासनिक जांच का यह पहला फेस था और पहले फेस ने ही बड़ा झटका दे दिया। करीब चार हजार क्विंटल धान कम मिली। जब पहले फेस में ही यह हालात है तो आगे फिजिकल वैरिफिकेशन होगी तो भ्रष्टाचार की ओर भी परते हटती नजर आएगी। इतनी स्पीड से काटे गए गेट पास जब भी गेट पास काटा जाता है तो उसे में औसतन दो से तीन मिनट लगता है। लेकिन जिले कई मंडियों में तो तेज रफ्तार से गेट पास काटकर रख दिए। शक ऐसे भी गहराता है कि जिस गेट पास को कटने में दो से तीन मिनट का टाइम लगता है, उन्हीं गेट पास को 41 सेकेंड दो बार और 2 मिनट 35 सेकेंड में तीन बार काट दिया जाता है। जिसके बाद निसिंग मंडी में 772 गेट पास कैंसिल किए गए। जिसका वजन 42 हजार 633 क्विंटल बनता था। निगदू, इंद्री, तरावड़ी, घरौंडा, करनाल और असंध की मंडियों गेट पास का यही तरीका है। वहीं डीएफएससी की माने तो पूरे मामले की जांच जारी है और गड़बड़ी करने वालों पर एक्शन लिया जाएगा। सवालों के घेरे में मंडी से जुड़े अधिकारी, कर्मचारी और व्यापारी भ्रष्टाचार की जड़े कुरेदी गई और खाद्य एवं आपूर्ति विभाग के अधिकारियों की चूल्ले हिल गई। अब जिम्मेदार खुद को बचाने की जुगत में है और हड़बड़ी में उन राइस मिलर्स के खिलाफ जांच शुरू कर दी, जहां पर धान कम पाया गया है। ऐसे में अधिकारियों की हड़बड़ाहट ने कई सवाल खड़े कर दिए है। जिनकी तरफ आखिर प्रशासन का ध्यान नहीं जाता। कागजो में ही लिखी जाती है भ्रष्टाचार की पटकथा यूथ फॉर चेंज के अध्यक्ष एडवोकेट राकेश ढुल ने बताया कि फर्जी खरीद का खेल कोई एक अधिकारी या कर्मचारी या फिर मंडी से जुड़ा व्यक्ति नहीं कर सकता। इसके लिए पूरे टीम वर्क की जरूरत होती है। कैसे धान को कागजों में उगाना है? कैसे कागजों में ही धान का फर्जी गेट पास कटेगा? कैसे आढ़ती की दुकान के कागजों में चढ़ेगा? कैसे कागजों में ही खरीद एजेंसी धान की परचेज करेगी? कैसे मिलर्स कागजों में ही धान की बोरिया ट्रक में लोड होकर जाएगी? भ्रष्टाचार की पटकथा कागजों में ही लिखी जाती है और उसी में दब जाती है, लेकिन इस तरफ किसी का भी ध्यान नहीं जाता। यह कार्य बिना किसी अधिकारी, आढ़ती या फिर सरकारी खरीद एजेंसियों के इंस्पेक्टरों की मर्जी के बिना नहीं हो सकता। कैसे रचा जाता है भ्रष्टाचार का चक्रव्यूह अक्सर यह सवाल मन में आते है कि मंडी में फर्जी खरीद होती कैसे है और कैसे भ्रष्टाचार होता है? उन्हीं को कुछ आसान तरीके से समझने का प्रयास करते है। एडवोकेट राकेश ढूल के मुताबिक, मंडी में किसान का धान आते ही गेट पर पास कट जाता है। इसमें अनुमानित वजह होता है। गेट पास के माध्यम से ही पता चलता है कि किस आढ़ती के पास धान आया और किस एजेंसी ने खरीदा और किस मिलर्स को भेजा गया। जे फार्म कटने के बाद धान की खरीद का पैसा ऑनलाइन ट्रांसफर हो जाता है। फर्जी गेट पास से शुरू होता है भ्रष्टाचार का फर्स्ट फेस भ्रष्टाचार में फर्स्ट फेस फर्जी गेट पास से शुरू होता है। सेकेंड फेज धान की परचेज से शुरू होता है। इसमें खरीद एजेंसी का निरीक्षक और आढ़ती फर्जी गेट पास के नाम पर चढ़ी धान की सरकारी कागजों में खरीद दिखा देते है, अर्थात कागजों में धान उग जाती है। इसमें आढ़ती की अमाउंट प्रतिशत पहले से ही सेट होती है। किसी किसान के नाम पर धान का जे फार्म काट देते है और फिर किसी राइस मिलर्स को सीएसआर के लिए धान अलॉट कर दी जाती है। जे फार्म वाले किसान के खाते में पैसा आ जाता है और वह सब बंट जाता है और यह काम खरीद एजेंसी के जिम्मेदारों के मार्फत हो सकता है। गरीबों के चावल पर मिलर्स का डाका जो धान कागजों में थी उसको वास्तविक रूप में दिखाने के लिए मिलर्स यूपी और बिहार से गरीबों को मिलने वाले चावल को सस्ते रेट पर खरीद लेता है। इससे मिलर्स का सबसे बड़ा फायदा यह होता है कि वह मिलिंग का खर्च बचा लेता है और सस्ते में चावल खरीदकर एफसीआई को भेज देता है और यूपी व बिहार के चावल माफिया द्वारा यह कार्य किया जाता है। ऐसे में एमएसपी का लाभ किसान को न जाकर भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गया और सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत मिलने वाले चावल को फूड माफिया के जरिए मिलर्स डकार लेते है। खानापूर्ति तक सीमित रह जाता है सब कुछ आकृति संस्था के अध्यक्ष अनुज सैनी की माने तो फिजिकल वैरिफिकेशन महज खानापूर्ति तक सीमित है। जनता को लगे कि प्रशासन द्वारा एक्शन लिया जा रहा है, इसके लिए एक नोटिस जारी कर दिया जाता है और आगे की जांच भी इंस्पेक्टर को ही करनी होती है। यहां पर तो वह कहावत चरितार्थ हो जाती है कि दूध की रखवाली बिल्ली को ही दे दी। जब तक सिस्टम में कड़ी कार्रवाई का प्रावधान नहीं होगा, इस तरह की खानापूर्ति चलती रहेगी। यह होता आया है और आगे भी इसी तरह से होता रहेगा। जांच के नाम पर महज खाना पूर्ति। हरियाणा | दैनिक भास्कर
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हरियाणा में नायब सिंह सैनी के नेतृत्व में गठित भाजपा की नई सरकार 12 जून को अपने 3 माह का कार्यकाल पूरा कर चुकी है। 12 मार्च को मुख्यमंत्री नायब सैनी के साथ शपथ लेने वाले 5 कैबिनेट मंत्रियों में रणजीत सिंह भी शामिल थे, जो तब सिरसा जिले की रानियां विधानसभा सीट से निर्दलीय विधायक थे। 22 मार्च को रणजीत को ऊर्जा और जेल विभाग आबंटित किए गए। हालांकि वह पिछली मनोहर लाल खट्टर सरकार में भी इन विभागों के मंत्री रह चुके थे। इसके बाद 24 मार्च की शाम रणजीत सिंह भाजपा में शामिल हो गए। जिसके कुछ समय बाद ही उन्हें हिसार लोकसभा सीट से पार्टी उम्मीदवार घोषित कर दिया गया। जिस कारण रणजीत ने उसी दिन विधायक पद से त्यागपत्र दे दिया। इसलिए रणजीत चौटाला ने दिया इस्तीफा
चूंकि निर्दलीय विधायक रहते हुए कोई भी किसी राजनीतिक दल में शामिल नहीं हो सकता। यदि वह ऐसा करता है तो उसे दल-बदल विरोधी कानून के अंतर्गत विधानसभा सदस्यता से अयोग्य घोषित कर दिया जाता है। हालांकि विधायक पद से त्यागपत्र के साथ रणजीत ने प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्रीपद ने अपना इस्तीफा नहीं दिया। रानियां विधानसभा सीट से विधायक पद से त्यागपत्र देने के बाद स्पीकर ज्ञान चंद गुप्ता ने उसे स्वीकार कर लिया। क्यों उठ रहे नियुक्ति पर सवाल
पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के एडवोकेट हेमंत कुमार ने 2 मई को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और हरियाणा गवर्नर बंडारू दत्तात्रेय को लेटर लिखकर उनकी नियुक्ति पर सवाल उठाए थे। लेटर में लिखा कि रणजीत सिंह 12 मार्च को वर्तमान 14वीं हरियाणा विधानसभा के सदस्य (विधायक) थे। इस दिन उन्होंने सीएम नायब सैनी के साथ मंत्रीपद के रूप में पद और गोपनीयता की शपथ ली। इसके बाद 24 मार्च 2024 से विधायक के रूप में उनका इस्तीफा विधानसभा अध्यक्ष द्वारा स्वीकार कर लिया गया। इसके बाद अब वह पूर्व विधायक या दूसरे शब्दों में एक गैर-विधायक हो गए हैं। मंत्री बने रहने के लिए लेनी होगी दोबारा शपथ
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 164(4) के अनुसार गैर- विधायक के तौर पर अधिकतम 6 माह तक मंत्रीपद पर तो रह सकते हैं, लेकिन उसके लिए उन्हें हरियाणा के राज्यपाल द्वारा मंत्री के रूप में नए सिरे से पद एवं गोपनीयता की शपथ लेनी होगी। क्योंकि 24 मार्च 2024 से वे गैर-विधायक हैं। टेक्निकल सवाल यह भी है कि जब उन्होंने मंत्री के रूप में पद एवं गोपनीयता की शपथ ली थी तब वह निर्दलीय विधायक थे, लेकिन अब वह भाजपा में शामिल हो चुके हैं, इसलिए गैर-विधायक होने के नाते मंत्री के रूप में उनका नया कार्यकाल माना जाएगा। कानूनी जानकारों का क्या कहना है?
राष्ट्रपति सचिवालय के अंडर सेक्रेटरी द्वारा 9 मई को इस विषय पर हरियाणा के मुख्य सचिव को लिखकर मामले में आवश्यक कार्यवाही करने एवं उसकी सूचना याचिकाकर्ता को देने बारे कहा गया था, हालांकि अभी तक हेमंत को हरियाणा सरकार से कोई जवाब नहीं प्राप्त हुआ है। हेमंत का कहना है कि जब भी केंद्र सरकार या राज्य सरकार में नियुक्त किसी मंत्री का निर्वाचन (सांसद या विधायक के रूप में, जैसा भी मामला हो) संबंधित उच्च न्यायालय या भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा रद्द या अमान्य घोषित कर दिया जाता है तो ऐसे सांसद या विधायक को तत्काल केंद्र सरकार या राज्य सरकार में मंत्रीपद से इस्तीफा देना होता है। वह व्यक्ति यह तर्क नहीं दे सकता कि गैर-सांसद या गैर-विधायक के रूप में भी, वह सांसद या विधायक के रूप में अपने अयोग्य होने की तिथि से अधिकतम छह महीने तक केंद्र या राज्य सरकार में मंत्री के रूप में बना रह सकता है।