अयोध्या में रामलला मंदिर के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास का बुधवार को 80 साल की उम्र में निधन हो गया। आचार्य सत्येंद्र दास का पार्थिव शरीर अयोध्या के सत्य धाम गोपाल मंदिर आश्रम में अंतिम दर्शन के लिए रखा गया है। पीएम मोदी और सीएम योगी ने शोक जताया है। आचार्य सत्येंद्र दास को आज दोपहर 12 बजे जल समाधि दी जाएगी। सत्येंद्र दास 32 साल से रामजन्मभूमि में बतौर मुख्य पुजारी सेवा दे रहे थे। 6 दिसंबर, 1992 को बाबरी विध्वंस के समय वे रामलला को गोद में लेकर भागे थे। आचार्य सत्येंद्र दास का व्यवहार कैसा था? उन्होंने कैसे लोगों को जोड़े रखा? रामलला के प्रति उनकी चिंता और बेबाकी कैसी थी? ये बातें 38 साल उनके साथ रहे सहायक पुजारी संतोष तिवारी समेत कई साधु-संतों ने दैनिक भास्कर से शेयर कीं। पढ़िए रिपोर्ट… 1992 में विवादित ढांचा गिराए जाने के बाद टेंट सिटी की 2 तस्वीरें अब पढ़िए सहायक पुजारी संतोष तिवारी ने जो कुछ बताया… बोले- मुझे अपने साथ अयोध्या लाए
पुजारी संतोष तिवारी कहते हैं- मैं सत्येंद्र दास जी के साथ 36 साल रहा। वह राम जन्मभूमि के मुख्य पुजारी थे। अब हमारे बीच नहीं रहे, मुझे बहुत दुख है। आपको बता दूं कि वही हमें 1987 में अयोध्या लेकर आए। यहीं पर उन्होंने मुझे शिक्षा-दीक्षा दिलाई। उन्हीं के आशीर्वाद से अयोध्या धाम मेरी कर्मभूमि बन गई। 1 मार्च, 1992 को उन्होंने मुझे अपने साथ श्री रामलला की सेवा में सहायक पुजारी के रूप में लगाया। हमेशा अभिभावक की तरह मुझे दिशा दिखाते रहे। वह समाज में बराबरी के पक्षधर थे। आप समझिए, दिसंबर 1992 में जब बाबरी विध्वंस का मसला चल रहा था। सत्येंद्र दास बहुत चिंतित रहते थे, उन्हें लगता था कि रामलला काे कोई नुकसान न हो जाए। जब कारसेवक विवादित ढांचा ढहाने के लिए गुंबद पर चढ़ गए तो वे सत्येंद्र दास ही थे जो हिम्मत करके अंदर पहुंचे और रामलला को उठा लिया। उनके साथ हम लोग भी थे। हमने अन्य मूर्तियों को उठाया और तेजी से लेकर निकल पड़े। जब हम उस उन्मादी भीड़ के बीच से बचाकर रामलला की मूर्ति ले आए तब उन्हें राहत मिली। इसी दौरान प्रदेश भर में कर्फ्यू लग और अयोध्या पूरी तरह सेना और अर्द्ध सैनिक बलों के हवाले हो गई थी। तब सत्येंद्र दास अपने आश्रम से रामलला के लिए भोग लेकर आते थे। हम लोग भी जैसे-तैसे रामलला की पूजा करने पहुंचते थे। कैसी भी परिस्थिति हो अगर सत्येंद्र दास अयोध्या में हैं तो रामलला के दर्शन-पूजन करने जरूर करने आते थे। वर्षों तक उनका एक ही सपना था कि रामलला टेंट सिटी से निकलकर अपने मंदिर पहुंच जाएं। जब रामलला मंदिर पहुंचे तो वे सबसे ज्यादा खुश थे, उन्हें लगता था कि उनका सपना पूरा हो गया। जब मंदिर बन गया तो उन्होंने मुझसे कहा- अब मैं चाहे मुख्य पुजारी रहूं या न रहूं, मेरे रामलला टाट से निकल कर ठाठ में पहुंच गए हैं। मेरी तपस्या सफल हो गई। वे इतने बड़े विचार रखते थे। हाशिम अंसारी को होली खेलने बुलाया संतोष तिवारी बताते हैं- जब विवादित ढांचा के गिरने के बाद पूरे देश में तनाव छाया हुआ था और मामला अदालत तक पहुंच गया था। उस दौरान सत्येंद्र दास जी ने कहा कि हाशिम को आश्रम में बुलाओ हम लोग मिलकर होली खेलेंगे। हम लोगों ने यही किया। हाशिम अंसारी और फिर बाद में उनके बेटे इकबाल अंसारी भी होली पर सत्येंद्र दास के आश्रम में आने लगे। हम लोग खूब होली खेलते थे। मुझे याद है कि जब हाशिम अंसारी अस्वस्थ हुए थे, तब सत्येंद्र दास जी ने मुझसे कहा कि चलो संतोष हाशिम के घर चलना है। उनकी तबीयत खराब है। हम लोग साथ में उनको देखने गए थे। यह कहकर भी आए हाशिम तुम जल्दी ठीक होकर लौटो, हम फिर आश्रम में बैठेंगे। अपनी शिक्षा को बच्चों तक पहुंचाना चाहते थे
पुजारी बताते हैं- आचार्य सत्येंद्र दास हमेशा गाय की सेवा करते। रोज नियम से अपने आश्रम के आंगन में बंदरों को चने खिलाते थे। बच्चों को बहुत दुलार करते थे। वो चाहते थे कि उनके पास जो ज्ञान है, वो आने वाली पीढ़ी तक भी जाए। इसलिए अक्सर आसपास और आश्रम के बच्चों को पढ़ाते थे और उनकी शिक्षा में सहयोग करते थे। जब मंदिर में नए पुजारियों की तैयारी चल रही थी तो वे काफी संतुष्टि जताते थे। वो कहते थे कि नए लड़कों को अच्छा मौका मिलेगा। वह विद्यार्थियों को वेद पाठ कराने और संस्कृत की शिक्षा देने के लिए अनवरत लगे रहे। स्वामी रामदिनेशाचार्य ने क्या कहा… कर्फ्यू लगा तो अपने वेतन से रामलला का भोग लगाते रहे
अयोध्या में जगद्गुरु रामानंदाचार्य स्वामी रामदिनेशाचार्य ने कहा- बचपन से उन्हें करीब से देखा है। उनका जाना एक युग के अंत जैसा है। उन्होंने अपना पूरा जीवन रामलला को टेंट से निकालकर मंदिर तक पहुंचाने में लगा दिया। विपरीत परिस्थितियों में भी भगवान राम के भोग, राग-सेवा के लिए उनका लगाव अब शायद ही दोबारा दिखेगा। मैंने देखा है कि कर्फ्यू के समय कितने दर्द उठाकर उन्होंने अपने कमाए हुए पैसों से भगवान को रोज भोग लगाया। उन्होंने कभी भोग बंद नहीं होने दिया। इतने लंबे संघर्षों में भगवान के प्रति जो लगन थी, वह लोगों के लिए प्रेरणा बनी। राजकुमार दास ने क्या कहा… सत्येंद्र दास का योगदान रामभक्त याद रखेंगे
श्रीरामवल्लभाकुंज के प्रमुख स्वामी राजकुमार दास ने कहा- सत्येंद्र दास रामलला और उनकी सेवा को लेकर बेबाक टिप्पणी करते थे। यह उनकी परम रामभक्ति को दिखाता था। उन्होंने हर परिस्थिति में रामलला की सेवा की। उनका योगदान करोड़ों रामभक्त परिवार हमेशा याद रखेंगे। यह संयोग कहें या राम की कृपा, माघ पूर्णिमा के पवित्र दिन उन्होंने प्राण त्यागे। रघुबर शरण ने क्या कहा… मुश्किल हालात में बेबाक राय दी
आचार्य सत्येंद्र दास के पड़ोसी रघुबर शरण कहते हैं- रामलला मंदिर का मुख्य पुजारी होना व्यवस्था के तहत था। मगर वह उससे कहीं ज्यादा थे। वह सच्चे अर्चक और उपासक थे। रामलला के मुख्य अर्चक का दायित्व मिलने के बाद वह प्रबंधन में भी बेहतरीन भूमिका निभाते थे। वह मुश्किल हालातों के दौरान भी रामलला को ध्यान में रखते हुए बेबाक राय रखते थे। एक ठेठ अयोध्या की राम भक्ति के अध्याय का समाप्त हो गया। आचार्य सत्येंद्र दास के बेबाक विचार ——————————- सत्येंद्र दास से जुड़ी ये खबर भी पढ़िए… राम मंदिर के मुख्य पुजारी सत्येंद्र दास का निधन; बाबरी विध्वंस के वक्त रामलला को गोद में लेकर भागे थे, टीचर के बाद पुजारी बने अयोध्या में रामलला मंदिर के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास का 80 साल की उम्र में निधन हो गया। बुधवार सुबह 7 बजे लखनऊ PGI में उन्होंने आखिरी सांस ली। 3 फरवरी को ब्रेन हेमरेज के बाद उनको अयोध्या से लखनऊ रेफर किया गया था। पढ़िए पूरी खबर अयोध्या में रामलला मंदिर के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास का बुधवार को 80 साल की उम्र में निधन हो गया। आचार्य सत्येंद्र दास का पार्थिव शरीर अयोध्या के सत्य धाम गोपाल मंदिर आश्रम में अंतिम दर्शन के लिए रखा गया है। पीएम मोदी और सीएम योगी ने शोक जताया है। आचार्य सत्येंद्र दास को आज दोपहर 12 बजे जल समाधि दी जाएगी। सत्येंद्र दास 32 साल से रामजन्मभूमि में बतौर मुख्य पुजारी सेवा दे रहे थे। 6 दिसंबर, 1992 को बाबरी विध्वंस के समय वे रामलला को गोद में लेकर भागे थे। आचार्य सत्येंद्र दास का व्यवहार कैसा था? उन्होंने कैसे लोगों को जोड़े रखा? रामलला के प्रति उनकी चिंता और बेबाकी कैसी थी? ये बातें 38 साल उनके साथ रहे सहायक पुजारी संतोष तिवारी समेत कई साधु-संतों ने दैनिक भास्कर से शेयर कीं। पढ़िए रिपोर्ट… 1992 में विवादित ढांचा गिराए जाने के बाद टेंट सिटी की 2 तस्वीरें अब पढ़िए सहायक पुजारी संतोष तिवारी ने जो कुछ बताया… बोले- मुझे अपने साथ अयोध्या लाए
पुजारी संतोष तिवारी कहते हैं- मैं सत्येंद्र दास जी के साथ 36 साल रहा। वह राम जन्मभूमि के मुख्य पुजारी थे। अब हमारे बीच नहीं रहे, मुझे बहुत दुख है। आपको बता दूं कि वही हमें 1987 में अयोध्या लेकर आए। यहीं पर उन्होंने मुझे शिक्षा-दीक्षा दिलाई। उन्हीं के आशीर्वाद से अयोध्या धाम मेरी कर्मभूमि बन गई। 1 मार्च, 1992 को उन्होंने मुझे अपने साथ श्री रामलला की सेवा में सहायक पुजारी के रूप में लगाया। हमेशा अभिभावक की तरह मुझे दिशा दिखाते रहे। वह समाज में बराबरी के पक्षधर थे। आप समझिए, दिसंबर 1992 में जब बाबरी विध्वंस का मसला चल रहा था। सत्येंद्र दास बहुत चिंतित रहते थे, उन्हें लगता था कि रामलला काे कोई नुकसान न हो जाए। जब कारसेवक विवादित ढांचा ढहाने के लिए गुंबद पर चढ़ गए तो वे सत्येंद्र दास ही थे जो हिम्मत करके अंदर पहुंचे और रामलला को उठा लिया। उनके साथ हम लोग भी थे। हमने अन्य मूर्तियों को उठाया और तेजी से लेकर निकल पड़े। जब हम उस उन्मादी भीड़ के बीच से बचाकर रामलला की मूर्ति ले आए तब उन्हें राहत मिली। इसी दौरान प्रदेश भर में कर्फ्यू लग और अयोध्या पूरी तरह सेना और अर्द्ध सैनिक बलों के हवाले हो गई थी। तब सत्येंद्र दास अपने आश्रम से रामलला के लिए भोग लेकर आते थे। हम लोग भी जैसे-तैसे रामलला की पूजा करने पहुंचते थे। कैसी भी परिस्थिति हो अगर सत्येंद्र दास अयोध्या में हैं तो रामलला के दर्शन-पूजन करने जरूर करने आते थे। वर्षों तक उनका एक ही सपना था कि रामलला टेंट सिटी से निकलकर अपने मंदिर पहुंच जाएं। जब रामलला मंदिर पहुंचे तो वे सबसे ज्यादा खुश थे, उन्हें लगता था कि उनका सपना पूरा हो गया। जब मंदिर बन गया तो उन्होंने मुझसे कहा- अब मैं चाहे मुख्य पुजारी रहूं या न रहूं, मेरे रामलला टाट से निकल कर ठाठ में पहुंच गए हैं। मेरी तपस्या सफल हो गई। वे इतने बड़े विचार रखते थे। हाशिम अंसारी को होली खेलने बुलाया संतोष तिवारी बताते हैं- जब विवादित ढांचा के गिरने के बाद पूरे देश में तनाव छाया हुआ था और मामला अदालत तक पहुंच गया था। उस दौरान सत्येंद्र दास जी ने कहा कि हाशिम को आश्रम में बुलाओ हम लोग मिलकर होली खेलेंगे। हम लोगों ने यही किया। हाशिम अंसारी और फिर बाद में उनके बेटे इकबाल अंसारी भी होली पर सत्येंद्र दास के आश्रम में आने लगे। हम लोग खूब होली खेलते थे। मुझे याद है कि जब हाशिम अंसारी अस्वस्थ हुए थे, तब सत्येंद्र दास जी ने मुझसे कहा कि चलो संतोष हाशिम के घर चलना है। उनकी तबीयत खराब है। हम लोग साथ में उनको देखने गए थे। यह कहकर भी आए हाशिम तुम जल्दी ठीक होकर लौटो, हम फिर आश्रम में बैठेंगे। अपनी शिक्षा को बच्चों तक पहुंचाना चाहते थे
पुजारी बताते हैं- आचार्य सत्येंद्र दास हमेशा गाय की सेवा करते। रोज नियम से अपने आश्रम के आंगन में बंदरों को चने खिलाते थे। बच्चों को बहुत दुलार करते थे। वो चाहते थे कि उनके पास जो ज्ञान है, वो आने वाली पीढ़ी तक भी जाए। इसलिए अक्सर आसपास और आश्रम के बच्चों को पढ़ाते थे और उनकी शिक्षा में सहयोग करते थे। जब मंदिर में नए पुजारियों की तैयारी चल रही थी तो वे काफी संतुष्टि जताते थे। वो कहते थे कि नए लड़कों को अच्छा मौका मिलेगा। वह विद्यार्थियों को वेद पाठ कराने और संस्कृत की शिक्षा देने के लिए अनवरत लगे रहे। स्वामी रामदिनेशाचार्य ने क्या कहा… कर्फ्यू लगा तो अपने वेतन से रामलला का भोग लगाते रहे
अयोध्या में जगद्गुरु रामानंदाचार्य स्वामी रामदिनेशाचार्य ने कहा- बचपन से उन्हें करीब से देखा है। उनका जाना एक युग के अंत जैसा है। उन्होंने अपना पूरा जीवन रामलला को टेंट से निकालकर मंदिर तक पहुंचाने में लगा दिया। विपरीत परिस्थितियों में भी भगवान राम के भोग, राग-सेवा के लिए उनका लगाव अब शायद ही दोबारा दिखेगा। मैंने देखा है कि कर्फ्यू के समय कितने दर्द उठाकर उन्होंने अपने कमाए हुए पैसों से भगवान को रोज भोग लगाया। उन्होंने कभी भोग बंद नहीं होने दिया। इतने लंबे संघर्षों में भगवान के प्रति जो लगन थी, वह लोगों के लिए प्रेरणा बनी। राजकुमार दास ने क्या कहा… सत्येंद्र दास का योगदान रामभक्त याद रखेंगे
श्रीरामवल्लभाकुंज के प्रमुख स्वामी राजकुमार दास ने कहा- सत्येंद्र दास रामलला और उनकी सेवा को लेकर बेबाक टिप्पणी करते थे। यह उनकी परम रामभक्ति को दिखाता था। उन्होंने हर परिस्थिति में रामलला की सेवा की। उनका योगदान करोड़ों रामभक्त परिवार हमेशा याद रखेंगे। यह संयोग कहें या राम की कृपा, माघ पूर्णिमा के पवित्र दिन उन्होंने प्राण त्यागे। रघुबर शरण ने क्या कहा… मुश्किल हालात में बेबाक राय दी
आचार्य सत्येंद्र दास के पड़ोसी रघुबर शरण कहते हैं- रामलला मंदिर का मुख्य पुजारी होना व्यवस्था के तहत था। मगर वह उससे कहीं ज्यादा थे। वह सच्चे अर्चक और उपासक थे। रामलला के मुख्य अर्चक का दायित्व मिलने के बाद वह प्रबंधन में भी बेहतरीन भूमिका निभाते थे। वह मुश्किल हालातों के दौरान भी रामलला को ध्यान में रखते हुए बेबाक राय रखते थे। एक ठेठ अयोध्या की राम भक्ति के अध्याय का समाप्त हो गया। आचार्य सत्येंद्र दास के बेबाक विचार ——————————- सत्येंद्र दास से जुड़ी ये खबर भी पढ़िए… राम मंदिर के मुख्य पुजारी सत्येंद्र दास का निधन; बाबरी विध्वंस के वक्त रामलला को गोद में लेकर भागे थे, टीचर के बाद पुजारी बने अयोध्या में रामलला मंदिर के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास का 80 साल की उम्र में निधन हो गया। बुधवार सुबह 7 बजे लखनऊ PGI में उन्होंने आखिरी सांस ली। 3 फरवरी को ब्रेन हेमरेज के बाद उनको अयोध्या से लखनऊ रेफर किया गया था। पढ़िए पूरी खबर उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर
कर्फ्यू में सैलरी के पैसे से बनवाया रामलला का भोग:बाबरी मस्जिद के पक्षकार हाशिम अंसारी से होली खेली, सत्येंद्र दास की कहानी
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