समय बदल गया है। बचपन में गांव में नौटंकियां होती थीं, जिनमें नारी पात्रों की भूमिका भी लड़के ही निभाते थे। नौटंकियों को मनोरंजक बनाए रखने के लिए उनमें नृत्य भी होता था। नौटंकी की कहानी भले ही हास्य प्रधान हो लेकिन उसमें लड़के नृत्यांगना की तरह नाचते थे। एक दिन किसी ने शरारत कर दी। ऐसे ही एक अलौकिक नृत्य के बीच किसी ने घोषणा करवा दी कि ‘प्रसिद्ध वैद्य श्री बालकिशन जी के सुपुत्र सुरेंद्र शर्मा ने इस नृत्य से प्रसन्न होकर पांच रुपए का इनाम दिया है।’ बात पूरे गांव में फैल गई। मुझे पता ही नहीं था कि मैं कब, किसके नृत्य से प्रसन्न हुआ और कब मैंने 5 रुपए का इनाम दे दिए। पर मुझे पता न होने से क्या फर्क पड़ता था, पिताजी को तो पता चल ही गया। वे बहुत निराश हुए। बोले, ‘पहले ही तेरा ब्याह नहीं हो पा रहा है, अब सबको ये और पता चल गया कि तू लड़कों के डांस पर पैसे लुटाने लगा है।’ मेरे इस घोर अपराध के लिए किसी ने मेरे पिताजी को चिट्ठी भी लिखी, जिसके कारण मेरे पिताजी मुझसे और भी अधिक निराश हो गए। तरह-तरह की लीलाओं के लिए जो नाटक मंडली आती थी, उसके कलाकारों के भोजन के लिए गांव के अलग-अलग घरों से न्योता भेजा जाता था। जिसके यहां मंडली का भोजन होता था, उसके घर पर पूरी मंडली उस लीला से जुड़े कपड़े पहनकर जीमने जाते थे। अक्सर अगले दिन का न्योता पहले दिन का मंचन शुरू होने से पहले तक मिल जाता था। एक दिन न्योता नहीं मिला और मंचन शुरू हो गया। उस दिन नाटक में विलाप का कोई दृश्य था अनाउंसर बोल रहा था, ‘कल के भोजन का न्योता अभी तक नहीं मिला है। कलाकार के इससे भी बढ़िया विलाप कल देखने को मिलेगा, जब दोपहर का भोजन नहीं मिलेगा।’ मंच पर पात्र की प्रेमिका खो गई थी और अनाउंसर भोजन खोज रहा था। बेचारे मंडली वालों की कमाई वह रेजगारी थी, जो मंचन में लुटाई जाती थी। गांव में जिसके पास जो सबसे घिसे-पिटे सिक्के होते थे, वो वहां लुटा जाता था। यही कीमत बेचारे कलाकारों की आमदनी थी। बाद में जब मैं कवि-सम्मेलनों में जाने लगा तो एक बार कवि-सम्मेलन में से मेरी चप्पल चोरी हो गई। मेरी चप्पल कोई और ले गया और मैं किसी और की चप्पलें पहनकर घर आ गया। उस कवि-सम्मेलन के आयोजक मुगली घुट्टी वाले अरोड़ा जी थे। हमारे घर के बाहर ही उनकी दुकान थी। अगले दिन जब मैं कवि-सम्मेलन से बदली हुई चप्पल पहनकर निकला तो उन्होंने बड़ी हैरत से मेरी ओर देखकर पूछा था, ‘ये चप्पलें तो बहुत शानदार हैं, कितने की खरीदीं?’ मैं उनके पूछने के अंदाज से ही समझ गया कि वे चप्पलें उन्हीं की थीं। मैंने शर्मिंदगी महसूस की। उन दिनों कवि गद्दे पर बैठते थे, इसलिए चप्पलें उतारकर ही मंच पर चढ़ने की परंपरा थी। और चप्पलें उतारकर कवि मंच पर व्यस्त रहता था, इसलिए कवियों की चप्पलें चोरी होने की घटनाएं आम थीं। आज देखता हूं, जिन कवि-सम्मेलनों में कभी चप्पलें चोरी होती थीं, वहां आजकल कविताएं भी चोरी होने लगी हैं और शर्मिंदा उसे होना पड़ता है, जिसकी कविता चुराई गई है, क्योंकि जिसने चुराई है वो तो हाथ में चप्पल लेकर आत्मविश्वास के साथ खड़ा है। ————— ये कॉलम भी पढ़ें राजनीतिक लड़ाकों का युग फिर से लौटेगा:सभी राजनैतिक पार्टियां पहलवानों को टिकट देंगी! लुप्तप्राय दंगल लौटकर आएंगे समय बदल गया है। बचपन में गांव में नौटंकियां होती थीं, जिनमें नारी पात्रों की भूमिका भी लड़के ही निभाते थे। नौटंकियों को मनोरंजक बनाए रखने के लिए उनमें नृत्य भी होता था। नौटंकी की कहानी भले ही हास्य प्रधान हो लेकिन उसमें लड़के नृत्यांगना की तरह नाचते थे। एक दिन किसी ने शरारत कर दी। ऐसे ही एक अलौकिक नृत्य के बीच किसी ने घोषणा करवा दी कि ‘प्रसिद्ध वैद्य श्री बालकिशन जी के सुपुत्र सुरेंद्र शर्मा ने इस नृत्य से प्रसन्न होकर पांच रुपए का इनाम दिया है।’ बात पूरे गांव में फैल गई। मुझे पता ही नहीं था कि मैं कब, किसके नृत्य से प्रसन्न हुआ और कब मैंने 5 रुपए का इनाम दे दिए। पर मुझे पता न होने से क्या फर्क पड़ता था, पिताजी को तो पता चल ही गया। वे बहुत निराश हुए। बोले, ‘पहले ही तेरा ब्याह नहीं हो पा रहा है, अब सबको ये और पता चल गया कि तू लड़कों के डांस पर पैसे लुटाने लगा है।’ मेरे इस घोर अपराध के लिए किसी ने मेरे पिताजी को चिट्ठी भी लिखी, जिसके कारण मेरे पिताजी मुझसे और भी अधिक निराश हो गए। तरह-तरह की लीलाओं के लिए जो नाटक मंडली आती थी, उसके कलाकारों के भोजन के लिए गांव के अलग-अलग घरों से न्योता भेजा जाता था। जिसके यहां मंडली का भोजन होता था, उसके घर पर पूरी मंडली उस लीला से जुड़े कपड़े पहनकर जीमने जाते थे। अक्सर अगले दिन का न्योता पहले दिन का मंचन शुरू होने से पहले तक मिल जाता था। एक दिन न्योता नहीं मिला और मंचन शुरू हो गया। उस दिन नाटक में विलाप का कोई दृश्य था अनाउंसर बोल रहा था, ‘कल के भोजन का न्योता अभी तक नहीं मिला है। कलाकार के इससे भी बढ़िया विलाप कल देखने को मिलेगा, जब दोपहर का भोजन नहीं मिलेगा।’ मंच पर पात्र की प्रेमिका खो गई थी और अनाउंसर भोजन खोज रहा था। बेचारे मंडली वालों की कमाई वह रेजगारी थी, जो मंचन में लुटाई जाती थी। गांव में जिसके पास जो सबसे घिसे-पिटे सिक्के होते थे, वो वहां लुटा जाता था। यही कीमत बेचारे कलाकारों की आमदनी थी। बाद में जब मैं कवि-सम्मेलनों में जाने लगा तो एक बार कवि-सम्मेलन में से मेरी चप्पल चोरी हो गई। मेरी चप्पल कोई और ले गया और मैं किसी और की चप्पलें पहनकर घर आ गया। उस कवि-सम्मेलन के आयोजक मुगली घुट्टी वाले अरोड़ा जी थे। हमारे घर के बाहर ही उनकी दुकान थी। अगले दिन जब मैं कवि-सम्मेलन से बदली हुई चप्पल पहनकर निकला तो उन्होंने बड़ी हैरत से मेरी ओर देखकर पूछा था, ‘ये चप्पलें तो बहुत शानदार हैं, कितने की खरीदीं?’ मैं उनके पूछने के अंदाज से ही समझ गया कि वे चप्पलें उन्हीं की थीं। मैंने शर्मिंदगी महसूस की। उन दिनों कवि गद्दे पर बैठते थे, इसलिए चप्पलें उतारकर ही मंच पर चढ़ने की परंपरा थी। और चप्पलें उतारकर कवि मंच पर व्यस्त रहता था, इसलिए कवियों की चप्पलें चोरी होने की घटनाएं आम थीं। आज देखता हूं, जिन कवि-सम्मेलनों में कभी चप्पलें चोरी होती थीं, वहां आजकल कविताएं भी चोरी होने लगी हैं और शर्मिंदा उसे होना पड़ता है, जिसकी कविता चुराई गई है, क्योंकि जिसने चुराई है वो तो हाथ में चप्पल लेकर आत्मविश्वास के साथ खड़ा है। ————— ये कॉलम भी पढ़ें राजनीतिक लड़ाकों का युग फिर से लौटेगा:सभी राजनैतिक पार्टियां पहलवानों को टिकट देंगी! 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खुर्रमनगर से कुकरैल की तरफ जाने सड़क पर 50 मीटर बाद ही अबरारनगर इलाका शुरू हो जाता है। यहां नदी (जिसे अभी नाला कहा जाता है) की चौड़ाई 40 फीट से भी कम है। इसी के दोनों तरफ मकान बना लिए गए हैं। यहीं बीच से एक नाला भी गुजरता पर जिस पर अतिक्रमण करके कई मकान बने हैं। नाले के बाईं तरफ करीब 1500 मीटर तक 50 मीटर की चौड़ाई में करीब 350 से ज्यादा मकान हैं, जिनका टूटना तय है। जबकि दाईं तरफ भी 1500 मकान बनाए गए हैं। उस पर भी कार्रवाई की जा सकती है। नदी के किनारे कई नए मकान भी बने हैं, जो आधुनिक सुविधाओं से लैस हैं। तीन करोड़ तक की लागत से बने हैं मकान स्थानीय लोगों ने दैनिक भास्कर को बताया- कई मकान ऐसे हैं, जिन्हें बनाने में 50 लाख से लेकर 3 करोड़ रुपए तक का खर्च हुए हैं। कुछ मकान 40 से 50 साल पुराने हैं। यहां रहने वाली एक महिला सरकार से बेहद नाराज दिखीं। नाम न बताने की शर्त पर उन्होंने कहा कि सरकार के लोग हमारी तरह गरीब होते तो मकान टूटने का दर्द समझते? अबरारनगर में हाईकोर्ट के वकील-रिटायर्ड जज भी रहते हैं
स्थानीय निवासी बिलाल बताते हैं कि यहां रहने वालों में हाईकोर्ट के वकील और कई रिटायर्ड जज भी शामिल हैं। इसके अलावा पुलिस और कई PCS अधिकारियों ने भी यहां मकान बना रखा है। बहुत से लोगों के पास जमीन रजिस्ट्री के कागजात हैं। लोगों ने बताया कि LDA की टीम ने यहां आकर महज 3 दिन में घर खाली करने का अल्टीमेटम दिया है। हालांकि, अभी तक किसी को नोटिस भी नहीं मिला है। लोगों को नोटिस का इंतजार है। जिसके बाद कानूनी कार्रवाई पर विचार करेंगे। लोगों का कहना है कि हम चुप नहीं बैठेंगे और हाईकोर्ट-सुप्रीम कोर्ट तक अपनी बात करेंगे। 3 मस्जिद और एक मदरसा टूटेगा
यहां पर भी 3 मस्जिद और एक मदरसा बना है। उसके अलावा करीब 200 से ज्यादा ऐसे मकान हैं, जिसकी जमीन और निर्माण की कीमत जोड़ी जाए तो वह कम से कम 1 करोड़ रुपए से ज्यादा है। LDA की टीम सर्वे करने पहुंची थी 20 जून को यहां LDA की टीम सर्वे करने पहुंची थी। अबरारनगर सहित पंतनगर में 500 से ज्यादा घरों को गिराए जाने की बात सामने आई। जब LDA की टीम पहुंची तो लोगों की भीड़ जमा हो गई और इसकी वजह से LDA अधिकारियों को बिना कुछ किए वापस लौटना पड़ा। वहीं LDA अधिकारियों का दावा है कि पूरे इलाके का सर्वे हो चुका है। कौन सा हिस्सा गिरेगा? इसकी भी प्लानिंग कर ली गई है। पूरे इलाके में ड्रोन शूट पहले ही कराया जा चुका है। जानें कैसी है अबरार नगर की बसावट
अबरार नगर में करीब 800 से ज्यादा मकान हैं। जिन घरों को गिराया जाना है, उनमें 100 से ज्यादा ऐसे मकान हैं, जिसकी लागत और प्रापर्टी की कीमत दो करोड़ रुपए से ज्यादा है। बताया जा रहा है कि यहां भी ज्यादातर मकान कुकरैल नदी की जमीन पर बने हैं। हालांकि कई मकान दो से तीन दशक पुराने हैं। मौजूदा समय यहां जमीन का रेट 5000 हजार रुपए वर्ग फीट से ज्यादा है।