काशी के ललित बोले-मैं रहूं न रहूं, हॉकी जिंदा रहेगी:बाबा का नाम ला सब होई…पेनाल्टी शूटआउट के समय यही बात याद रही

काशी के ललित बोले-मैं रहूं न रहूं, हॉकी जिंदा रहेगी:बाबा का नाम ला सब होई…पेनाल्टी शूटआउट के समय यही बात याद रही

‘जब बहुत अकेला फील करता था तो बनारस को याद करता था। यहां सब गुरु हैं, कोई चेला नहीं है। इसके अलावा जब भी कोई दिक्कत महसूस हुई तो यही दिल में आता ‘छोड़ा मर्दवा जौन होई देखा जाई। बाबा विश्वनाथ जी के कृपा हौ न, बाबा का नाम ला सब होई। ‘मैं रहूं या न रहूं हॉकी रहेगी’ और आने वाले दिनों में ये पदक का रंग पीला हो जाएगा।’ ये शब्द हैं काशी के ओलंपियन ललित उपाध्याय के, जो पेरिस से रविवार को वाराणसी लौटे। दैनिक भास्कर ने उनसे खास बातचीत की। इस दौरान उन्होंने ओलिंपियन मोहम्मद शाहिद को भी याद किया। कहा- उन तक मैं नहीं पहुंच सकता, लेकिन उन लोगों को देखकर ही हॉकी सीखी है। इस दौरान उन्होंने कई सवालों का जवाब दिया। पढ़िए हूबहू बातचीत… सवाल : पेरिस में पदक जीतने के बाद घर आने पर भव्य स्वागत हुआ, कैसा लगा?
जवाब : घर आने के बाद पूरे बनारस और प्रदेश ने जो प्यार दिया, उसके लिए हमेशा ऋणी रहूंगा। बनारस हमेशा हॉकी के लिए जाना जाता था और जाना जाएगा। बाबा विश्वनाथ का भक्त हूं। जाते समय मन्नत मांगी थी, मेडल जीतकर आऊंगा तो बाबा को समर्पित करूंगा। इसलिए एयरपोर्ट से सीधे बाबा विश्वनाथ के धाम पहुंचा। बाबा को मेडल समर्पित किया है। सवाल : पेरिस खेल गांव का माहौल कैसा था? स्ट्रैटजी कैसे तैयार होती थी?
जवाब : ओलिंपिक हो या कोई भी बड़ी प्रतियोगिता, आप यह सोच कर नहीं जाते कि हमें कौन-सा पूल मिलेगा। आप हॉकी खेल रहे और बढ़िया खेल रहे, इसलिए आपको वहां जाने का मौका मिला है। आपको बस अपने गेम पर ट्रस्ट करना होता है। वही हमने भी किया। अगर पेरिस ओलिंपिक की बात करें तो हमने अपनी स्ट्रैटजी बनाई थी। यह तय किया था, चाहे गोल 2-0 हो या 0-2 हम गेम चेंज नहीं करेंगे। सवाल : इस बार भी गोल्ड नहीं आ सका, क्या कमी रह गई?
जवाब : 4 साल पहले आप सब का सवाल यह था कि ओलिंपिक में पदक कब आएगा? तब आप लोगों ने यह नहीं पूछा कि गोल्ड कब लाएंगे? 40 साल बाद भारत की हॉकी टीम ने ओलिंपिक में पदक का सूखा कम किया, तो किसी ने नहीं पूछा कि कैसे किया? हम लोग पहले कहानियां सुनते थे कि हॉकी में 8 गोल्ड आए थे। तो सबका दौर आता है और अब इंडियन हॉकी का दौर है। प्रधानमंत्री जी और सीएम यूपी का धन्यवाद, जो खिलाड़ियों के हित के बारे में सोच रहे हैं। सब कुछ मुहैया हो रहा है। सवाल : पेरिस में थे तो बनारस की कौन-सी बात को रोज मिस कर रहे थे?
जवाब : सिर्फ पेरिस ही नहीं, कहीं भी जब अकेला फील करता हूं, तो बनारस को याद करता हूं। यहां सब गुरु हैं, कोई चेला नहीं है। इसके अलावा सबसे बड़ी बात यह है कि जब भी कोई टेंशन होती है तो एक ही शब्द याद आता है- छोड़ा बाबा विश्वनाथ जी के कृपा हौ न बाबा का नाम ला सब होई। इसलिए आते साथ हमेशा मंदिर जाता हूं। बाबा में बहुत श्रद्धा है। मेरा सब कुछ यहीं से शुरू और खत्म होता है। हम जब बाहर कहीं जाते हैं, तो सीना गर्व से चौड़ा होता है। क्योंकि बनारस अकेली जगह है जहां भारत रत्न, पद्मविभूषण, पद्मश्री, अर्जुन अवार्डी और ओलंपियन है। ऐसा कई प्रदेश में नहीं है। सवाल : अब हॉकी करमपुर गाजीपुर में शिफ्ट कर रही है?
जवाब : हॉकी करमपुर नहीं केरल चली जाए। मेन तो ये है कि हॉकी इंडिया के लिए पदक ला रही है। बनारस नर्सरी थी हॉकी की, और है। लोगों को नजरिया बदलने की जरूरत है। हॉकी करमपुर में ऊपर आ रही है। हम भी वहां मदद करते हैं, क्योंकि वहां से हमने भी खेला है। हम बनारस में भी कर रहे हैं और आगे भी करेंगे। बस लोगों को अपनी सोच बदलनी होगी। ये खबर भी पढ़ें:- ‘ईश्वर चाहेगा तो अगली बार कलर चेंज हो जाएगा’,ओलिंपिक से लौटे ललित का वाराणसी में ढोल-नगाड़ों से स्वागत पेरिस ओलिंपिक में ब्रॉन्ज मेडल जीतने वाली भारतीय हॉकी टीम के सदस्य रहे ललित उपाध्याय रविवार को वाराणसी पहुंचे। ललित का एयरपोर्ट पर गर्मजोशी के साथ स्वागत किया गया। इसके बाद उनका काफिला वाराणसी एयरपोर्ट से बाबा विश्वनाथ के धाम के लिए निकला तो सैकड़ों गाड़ियों का काफिला ललित के साथ शहर की तरफ बढ़ चला। रास्ते में घर के पास मां दिखी तो गाड़ी रुकवाई मां गाड़ी के पास आई तो उसे अपना मेडल पहना दिया। मां ने मेडल को माथे लगाया और भावुक हो गईं। पढ़ें पूरी खबर ‘जब बहुत अकेला फील करता था तो बनारस को याद करता था। यहां सब गुरु हैं, कोई चेला नहीं है। इसके अलावा जब भी कोई दिक्कत महसूस हुई तो यही दिल में आता ‘छोड़ा मर्दवा जौन होई देखा जाई। बाबा विश्वनाथ जी के कृपा हौ न, बाबा का नाम ला सब होई। ‘मैं रहूं या न रहूं हॉकी रहेगी’ और आने वाले दिनों में ये पदक का रंग पीला हो जाएगा।’ ये शब्द हैं काशी के ओलंपियन ललित उपाध्याय के, जो पेरिस से रविवार को वाराणसी लौटे। दैनिक भास्कर ने उनसे खास बातचीत की। इस दौरान उन्होंने ओलिंपियन मोहम्मद शाहिद को भी याद किया। कहा- उन तक मैं नहीं पहुंच सकता, लेकिन उन लोगों को देखकर ही हॉकी सीखी है। इस दौरान उन्होंने कई सवालों का जवाब दिया। पढ़िए हूबहू बातचीत… सवाल : पेरिस में पदक जीतने के बाद घर आने पर भव्य स्वागत हुआ, कैसा लगा?
जवाब : घर आने के बाद पूरे बनारस और प्रदेश ने जो प्यार दिया, उसके लिए हमेशा ऋणी रहूंगा। बनारस हमेशा हॉकी के लिए जाना जाता था और जाना जाएगा। बाबा विश्वनाथ का भक्त हूं। जाते समय मन्नत मांगी थी, मेडल जीतकर आऊंगा तो बाबा को समर्पित करूंगा। इसलिए एयरपोर्ट से सीधे बाबा विश्वनाथ के धाम पहुंचा। बाबा को मेडल समर्पित किया है। सवाल : पेरिस खेल गांव का माहौल कैसा था? स्ट्रैटजी कैसे तैयार होती थी?
जवाब : ओलिंपिक हो या कोई भी बड़ी प्रतियोगिता, आप यह सोच कर नहीं जाते कि हमें कौन-सा पूल मिलेगा। आप हॉकी खेल रहे और बढ़िया खेल रहे, इसलिए आपको वहां जाने का मौका मिला है। आपको बस अपने गेम पर ट्रस्ट करना होता है। वही हमने भी किया। अगर पेरिस ओलिंपिक की बात करें तो हमने अपनी स्ट्रैटजी बनाई थी। यह तय किया था, चाहे गोल 2-0 हो या 0-2 हम गेम चेंज नहीं करेंगे। सवाल : इस बार भी गोल्ड नहीं आ सका, क्या कमी रह गई?
जवाब : 4 साल पहले आप सब का सवाल यह था कि ओलिंपिक में पदक कब आएगा? तब आप लोगों ने यह नहीं पूछा कि गोल्ड कब लाएंगे? 40 साल बाद भारत की हॉकी टीम ने ओलिंपिक में पदक का सूखा कम किया, तो किसी ने नहीं पूछा कि कैसे किया? हम लोग पहले कहानियां सुनते थे कि हॉकी में 8 गोल्ड आए थे। तो सबका दौर आता है और अब इंडियन हॉकी का दौर है। प्रधानमंत्री जी और सीएम यूपी का धन्यवाद, जो खिलाड़ियों के हित के बारे में सोच रहे हैं। सब कुछ मुहैया हो रहा है। सवाल : पेरिस में थे तो बनारस की कौन-सी बात को रोज मिस कर रहे थे?
जवाब : सिर्फ पेरिस ही नहीं, कहीं भी जब अकेला फील करता हूं, तो बनारस को याद करता हूं। यहां सब गुरु हैं, कोई चेला नहीं है। इसके अलावा सबसे बड़ी बात यह है कि जब भी कोई टेंशन होती है तो एक ही शब्द याद आता है- छोड़ा बाबा विश्वनाथ जी के कृपा हौ न बाबा का नाम ला सब होई। इसलिए आते साथ हमेशा मंदिर जाता हूं। बाबा में बहुत श्रद्धा है। मेरा सब कुछ यहीं से शुरू और खत्म होता है। हम जब बाहर कहीं जाते हैं, तो सीना गर्व से चौड़ा होता है। क्योंकि बनारस अकेली जगह है जहां भारत रत्न, पद्मविभूषण, पद्मश्री, अर्जुन अवार्डी और ओलंपियन है। ऐसा कई प्रदेश में नहीं है। सवाल : अब हॉकी करमपुर गाजीपुर में शिफ्ट कर रही है?
जवाब : हॉकी करमपुर नहीं केरल चली जाए। मेन तो ये है कि हॉकी इंडिया के लिए पदक ला रही है। बनारस नर्सरी थी हॉकी की, और है। लोगों को नजरिया बदलने की जरूरत है। हॉकी करमपुर में ऊपर आ रही है। हम भी वहां मदद करते हैं, क्योंकि वहां से हमने भी खेला है। हम बनारस में भी कर रहे हैं और आगे भी करेंगे। बस लोगों को अपनी सोच बदलनी होगी। ये खबर भी पढ़ें:- ‘ईश्वर चाहेगा तो अगली बार कलर चेंज हो जाएगा’,ओलिंपिक से लौटे ललित का वाराणसी में ढोल-नगाड़ों से स्वागत पेरिस ओलिंपिक में ब्रॉन्ज मेडल जीतने वाली भारतीय हॉकी टीम के सदस्य रहे ललित उपाध्याय रविवार को वाराणसी पहुंचे। ललित का एयरपोर्ट पर गर्मजोशी के साथ स्वागत किया गया। इसके बाद उनका काफिला वाराणसी एयरपोर्ट से बाबा विश्वनाथ के धाम के लिए निकला तो सैकड़ों गाड़ियों का काफिला ललित के साथ शहर की तरफ बढ़ चला। रास्ते में घर के पास मां दिखी तो गाड़ी रुकवाई मां गाड़ी के पास आई तो उसे अपना मेडल पहना दिया। मां ने मेडल को माथे लगाया और भावुक हो गईं। पढ़ें पूरी खबर   उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर