2 जुलाई को हाथरस में सत्संग के बाद भगदड़ में 123 लोगों की मौत हो गई। इसके बाद एक नाम निकलकर आया- भोले बाबा उर्फ हरि नारायण उर्फ सूरजपाल। भोले बाबा की चर्चा पूरे देश में है। बाबा के सत्संग में भक्तों की भीड़ जुटती है। कुंडली खंगाली जाने लगी। पता चला पहले यूपी पुलिस में था। छेड़छाड़ का आरोप लगा। बर्खास्त कर दिया गया। फिर जैसे-तैसे सर्विस में लौटा। कुछ समय बाद अपनी इच्छा से रिटायरमेंट ले लिया और बन गया भोले बाबा। ये तो सिर्फ एक बाबा की कहानी हुई। उत्तर प्रदेश ऐसे छोटे-बड़े बाबाओं का गढ़ है। हर जिले, पंचायत और ब्लॉक स्तर पर झाड़-फूंक और चमत्कार करने वाले बाबा हैं। यूपी के 4 विवादित बाबाओं की कहानी जानिए संडे बिग स्टोरी में… शुरुआती जिंदगी: ढोलक-हारमोनियम बजाकर इलाज का दावा करता
स्वामी परमानंद हमेशा से परमानंद महाराज नहीं था। पहले उसका नाम रामशंकर था। बचपन से ही पढ़ाई-लिखाई में मन नहीं लगा। कुछ समय बाद हर्रई गांव में अपने घर के ही एक कमरे में उसने एक मूर्ति स्थापित की। उस मूर्ति के सामने दिनभर बैठा रहता। ढोलक और हारमोनियम बजाता रहता। कुछ दिनों बाद वहीं तंत्र-मंत्र भी शुरू कर दिया। उस एक कमरे में ही झाड़-फूंक करने लगा। ढोलक-हारमोनियम पर गाने बजाने को नाम दिया संगीत थेरेपी। दावा करने लगा कि संगीत थेरेपी से हर बीमारी का इलाज कर सकता है। इस तरह धीरे-धीरे अपने आसपास लोगों को इकट्ठा करने लगा। लोगों से गांव-गांव में प्रचार करवाने लगा कि वो बाबा की संगीत थेरेपी से ठीक हो गए हैं। इससे उसके यहां लोगों की भीड़ बढ़ने लगी। दूर-दूर से लोग उसके एक कमरे में आने लगे। यहीं एक कमरे को उसने विस्तार दिया और आगे चलकर यह आश्रम में बदल गया। उस जगह को हर्रई धाम के नाम से जाना जाने लगा। समय बीतने के साथ रामशंकर खुद को स्वामी परमानंद के रूप में बदलने लगा। उसके दूसरे और भी नाम पड़ गए। इनमें शक्ति बाबा उर्फ कल्याणी गुरु जैसे नाम मशहूर होने लगे। साधुओं की तरह गेरुआ वस्त्र पहनने लगा। लंबी सफेद दाढ़ी रखने के साथ गले में मोटी-मोटी कंठी-मालाएं पहनने लगा। हाथ की सभी अंगुलियों में रंग-बिरंगी अंगूठियां पहनने लगा। बदली वेशभूषा के साथ परमानंद के भक्तों की संख्या भी बढ़ने लगी। दावा करता- मेरे आशीर्वाद से बेटा पैदा होगा
बाबा ने महिलाओं को टारगेट करना शुरू किया। दावा करने लगा कि उसके आशीर्वाद से महिलाओं को बेटा ही पैदा होगा। उसके एजेंट लोगों को जाकर बताते, बाबा के आशीर्वाद से बेटा पैदा होता है। इससे उसके आश्रम में नए-नए भक्त आने लगे। वो महिलाओं को नर्क में जाने और मुक्ति न मिलने का डर दिखाने लगा। यह सब उसने अपने आश्रम में बोर्ड तक पर लिखवा दिया। अपने आश्रम में वो 4 दिन दरबार लगाता। दिन होते शनिवार से मंगलवार। जैसे-जैसे भीड़ बढ़ती गई बाबा अपना रुतबा और ऐशो-आराम बढ़ाता गया। आश्रम में एक AC कमरे में गद्दी लगाकर बैठने लगा। वहां महिलाएं आतीं, तो उन्हें आशीर्वाद देता। हुआ यह कि स्वाभाविक रूप से बाबा के पास आने वाली कुल महिलाओं में से कुछ महिलाओं के बेटे पैदा हो गए। ये महिलाएं वापस आश्रम में आकर बताने लगीं कि उन्हें बाबा के आशीर्वाद से बेटा हुआ है। यहीं से बाबा की वसूली का खेल शुरू हुआ। जिन महिलाओं के बेटे पैदा होते, उन्हें डाली चढ़ाने के लिए कहा जाता। इसमें पैसे से लेकर हर तरह का सामान हो सकता था। इस डाली के नाम पर आश्रम में जमकर वसूली शुरू हो गई। साल बीतते रहे और बाबा की पहुंच दूर-दूर तक होने लगी। आम भक्तों के साथ आश्रम में खास लोगों की भी हाजिरी लगने लगी। इसमें पुलिस, प्रशासन से लेकर राजनीतिक पार्टियों के नेता शामिल थे। रेप की अश्लील वीडियो बनाता, महिलाओं को ब्लैकमेल करता
बाबा का सारा खेल सामने आया कुछ वीडियो से। पता चला संगीत थेरेपी के नाम पर आश्रम में निसंतान महिलाओं का यौन शोषण चल रहा है। बाबा को वीडियो में महिलाओं के साथ आपत्तिजनक हालत में पाया गया। वीडियो सामने आने के बाद महिलाओं ने बाबा पर रेप और जान से मारने की कोशिश की धाराओं में केस दर्ज कराया। तब क्राइम ब्रांच की जांच में सामने आया कि ढोंगी बाबा औरतों को बच्चों का लालच देकर जाल में फंसाता। रेप के दौरान उनका अश्लील वीडियो बना लेता। फिर महिलाओं को वीडियो के नाम पर ब्लैकमेल करता और बार-बार रेप करता। 12 मई, 2016 को वीडियो सामने आने के बाद बाबा आश्रम से फरार हो गया। 23 मई को क्राइम ब्रांच ने चित्रकूट से उसे गिरफ्तार किया। फरार रहने के दौरान उसने दो बार हाईकोर्ट से गिरफ्तारी पर स्टे ऑर्डर की याचिका लगाई। बाद में लोअर कोर्ट में सभी गवाह मुकर गए और बाबा को जमानत मिल गई। 2016 के आखिर से ही बाबा जमानत पर था। कुछ ही समय बाद अन्य मामलों में बाबा को जेल जाना पड़ा। साल 2022 में कोर्ट से जमानत मिली। इस साल 5 अप्रैल को हार्टअटैक से बाबा की मौत हो गई। शुरुआती जिंदगी: गार्ड की नौकरी की, मसाज पार्लर में मैनेजर रहा
श्रीश्री 1008 इच्छाधारी संत श्री भीमानंद सरस्वती महाराज उर्फ भीमानंद महाराज उर्फ राजीव रंजन उर्फ शिवमूरत द्विवेदी…ये सिर्फ एक व्यक्ति के नाम हैं। गरीब परिवार से आने वाला शिवमूरत द्विवेदी दिल्ली के एक होटल में सिक्योरिटी गार्ड था। वहां गेट पर खड़ा-खड़ा रोज अमीरों का आना-जाना देखता। यह देख उसके मन में भी अमीर बनने की महत्वाकांक्षा जागने लगी। वह हर रोज जो देख रहा था ,वह उसके दिमाग पर चढ़ने लगा। उसे भी अमीर इंसान बनना था। पर सवाल था कैसे? तब इसका जवाब उसे भी नहीं पता था। बस ये जानता था कि इसके लिए वह कितना भी नीचे गिर सकता है। कहीं पहुंचने के लिए कहीं से निकलना पड़ता है। इसी ख्वाहिश में उसने होटल में गार्ड की नौकरी छोड़ दी। वहां से आ गया आगरा। गुजर-बसर के लिए यहां भी उसने एक होटल में फिर गार्ड की नौकरी पकड़ ली, लेकिन मन नहीं लगा। वह फिर दिल्ली चला गया। उसने नौकरी बदली और लाजपतनगर में एक मसाज पार्लर में मैनेजर बन गया। किस्मत ने साधु-संतों से मिलाया, तो ठग बनने का आइडिया आया
मसाज पार्लर में काम करने के दौरान कुछ साधु-संतों से मुलाकात हुई। काम के बाद उनकी मंडली में उठना-बैठना शुरू किया। ये लोग साईं बाबा के भक्त थे। यहीं से उसके मन में ख्याल आया कि भगवा चोला ओढ़कर वो भी बाबा बन सकता है। लेकिन शिवमूरत को जल्दी थी। इसलिए नौकरी के साथ चोरी-डकैती जैसे अपराधों में शामिल होने लगा। 1998 में ऐसे ही डकैती के एक केस में दिल्ली पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया। कुछ महीने बाद जमानत मिली तो दिल्ली से निकल लिया। भागकर आया दिल्ली से सटे नोएडा में। कारनामें: नोएडा में शिवमूरत द्विवेदी से ‘इच्छाधारी बाबा’ बना
नोएडा में उसने एक आश्रम बनाया और दावा करता कि नौकरी दिला सकता है। शादी करा सकता है। अपना दुख-दर्द लेकर लोग आश्रम पहुंचने लगे। वह हर रोज दरबार लगाता। इन लोगों में बाबा के पास कॉलेज जाने वाली लड़कियां, मॉडल और एयर होस्टेस भी हुआ करती थीं। बाबा की गंदी नजर उन पर पड़ी और इन जरूरतमंद लड़कियों को पैसे का लालच देकर सेक्स रैकेट चलाने लगा। इसमें पैसे भी ज्यादा मिलने लगे। दिन में वह बाबा रहता और रात में सेक्स रैकेट का सरगना। उसने नोएडा में बैठकर पूरे दिल्ली-एनसीआर में अपना धंधा बढ़ा लिया। जांच में सामने आया कि 600 से अधिक लड़कियां उसके साथ काम कर रही थीं। एक लड़की की शिकायत ने बाबा के धंधे की पोल खोल दी
2010 में दिल्ली में कॉमनवेल्थ गेम्स होने वाले थे। बाबा खुश था कि उसके विदेशी ग्राहकों की संख्या बढ़ेगी। कमाई कई गुना बढ़ जाएगी। इसके लिए वो लड़कियों पर दबाव बढ़ाने लगा। इससे तंग आकर एक लड़की ने दिल्ली पुलिस में जाकर शिकायत कर दी। तब दिल्ली पुलिस की क्राइस ब्रांच ने बाबा को पकड़ने का जाल बिछाया। इसमें ढोंगी बाबा गिरफ्तार हुआ। साथ में कई कॉल गर्ल्स भी गिरफ्तार हुईं। जांच में बाबा के पास से एक डायरी मिली। इसमें ग्राहकों के नाम और नंबर लिखे मिले। उसके नाम पर करोड़ों रुपए की संपत्ति मिली। दिल्ली के खानपुर इलाके में उसने अपने एक मकान को मंदिर बना दिया था। 13 बैंक खातों में 90 लाख से भी ज्यादा रुपए मिले। पास में 3 लग्जरी कारें मिलीं। शुरुआती जिंदगी: इमरजेंसी में जेल गया, लोकसभा और विधानसभा चुनाव लड़ा
1980 के दशक की बात है। जयगुरुदेव नाम के धार्मिक गुरु को लोग जानने लगे थे। वो मथुरा में रहते थे। तब सुभाष चंद्र बोस के जिंदा होने को लेकर खूब कहानियां चलती थीं। जयगुरुदेव इतने रहस्यमयी रूप से रहते थे कि लोगों में ये बात फैल गई कि वो सुभाष चंद्र बोस हैं। रामवृक्ष यादव इन्हीं जयगुरुदेव का भक्त था। वह मूलरूप से गाजीपुर जिले का रहने वाला था। 1972-73 के बीच वो बाबा जयगुरुदेव से जुड़ा। 1975 में इमरजेंसी लगी। इसमें रामवृक्ष भी जेल गया। इसके लिए उसे बाद में लोकतंत्र सेनानी पेंशन मिलती थी। छूटने के थोड़े समय बाद ही वो मथुरा आकर जयगुरुदेव के साथ रहने लगा। 1980 में जब जयगुरुदेव ने अहमदाबाद में दूरदर्शी पार्टी बनाई, तो ये उसमें शामिल हो गया। उस पार्टी से इसने गाजीपुर से लोकसभा और विधानसभा चुनाव लड़ा। कारनामें: जयगुरुदेव की 12 हजार करोड़ की संपत्ति पर थी नजर
मथुरा में जयगुरुदेव के नाम पर 12 हजार करोड़ रुपए की संपत्ति थी। 2012 में जयगुरुदेव के निधन के बाद उस पर कब्जे के लिए रामवृक्ष यादव का बाबा के ड्राइवर पंकज यादव से विवाद हो गया। पंकज यादव को यह संपत्ति विरासत में मिली थी। रामवृक्ष यादव का जयगुरुदेव से भी निधन से पहले विवाद हो गया था। इसलिए उन्होंने उसे विरासत में उसे हिस्सेदार नहीं बनाया। नतीजा यह हुआ कि जिद में रामवृक्ष यादव ने आश्रम के पास जवाहर बाग नाम के पार्क पर कब्जा कर लिया। नया देश बनाने के लिए लोगों का ब्रेनवॉश कर साथ जोड़ता
2012 में जयगुरुदेव से अलग होने के बाद उसने एक नया संगठन बनाया। नाम रखा स्वाधीन भारत विधिक सत्याग्रह। संगठन का लक्ष्य था, नया देश और नई सरकार बनाना। वह इसके लिए दिल्ली गया। आंदोलन की तैयारियां की। हालांकि, दिल्ली में उसे प्रशासन से आंदोलन की अनुमति नहीं मिली। तब 2014 में उसने मथुरा के जवाहर बाग को अपना अड्डा बना लिया। वहां लोगों का नया देश और नई सरकार बनाने की बातों से ब्रेनवॉश करता। नई सरकार बनने पर वह उसमें लोगों को मंत्रिमंडल देने का लालच देता। बाग के अंदर उसने समर्थकों की मदद से हथियार इकट्ठा कर लिए थे। लोगों को अपने साथ जोड़ने के लिए उन्हें पैसे का लालच देता। उन्हें रोक कर अपनी फौज में भर्ती कर लेता। बंगाल का रहने वाला चंदन बोस नाम का व्यक्ति उसका सहयोगी था। बदायूं का राकेश बाबू गुप्ता संगठन के पैसों का हिसाब रखता था। आखिर क्या थे रामवृक्ष यादव के इरादे?
रामवृक्ष और उसके समर्थकों की मांग थी कि राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री जैसे पद खत्म कर दिए जाएं। भारतीय मुद्रा रुपए की जगह पर आजाद हिंद बैंक की मुद्रा चलाई जाए। वह खुद को सुभाष चंद्र बोस से प्रभावित मानता था। उसका कहना था, 1 रुपए में 40 लीटर पेट्रोल और 60 लीटर डीजल दिया जाए। भारतीय रिजर्व बैंक और यहां की सरकार डॉलर की गुलाम है। वो चाहता था कि सरकार को समाप्त कर दिया जाए। 2016 में जब जवाहर बाग को पुलिस प्रशासन खाली कराने गई, तब उसने समर्थकों के साथ हमला बोल दिया। पुलिस बल पर जानलेवा हमला किया गया। इसमें एसपी सिटी मुकुल द्विवेदी और इंस्पेक्टर संतोष यादव शहीद हो गए थे। इस घटना में कुल 29 लोगों की मौत हुई थी। शुरुआती जिंदगी: गांव में प्रवचन करते-करते विदेशों तक पहुंचे
मनगढ़ में पैदा हुए रामकृपाल त्रिपाठी ने 7वीं कक्षा तक की पढ़ाई पूरी की। आगे पढ़ाई के लिए मध्यप्रदेश के महू चले गए। इस बीच घरवालों ने उनकी शादी कर दी। पत्नी का नाम था पद्मा। वापस आकर मनगढ़ में ही पत्नी के साथ रहने लगे। गृहस्थ में रहने के दौरान 5 बच्चे हुए। तीन बेटियां और दो बेटे। धीरे-धीरे उनका झुकाव राधा कृष्ण की भक्ति में लगने लगा। वहीं गांव में प्रवचन देने लगे। भक्ति-योग पर बातें किया करते। कुछ साल में प्रवचन की चर्चा दूर-दूर तक फैलने लगी। उत्तर भारत के हिंदी भाषी क्षेत्रों के अलावा विदेशों में नाम फैलने लगा। 1957 में मकर सक्रांति के मौके पर वाराणसी की काशी विद्युत परिषद ने ‘जगतगुरु’ की उपाधि दी। वो अपने प्रवचनों में चारों वेदों, उपनिषद, पुराणों, गीता और वेदांत सूत्रों का अध्ययन पाठ करते। मंत्रों की व्याख्या करते। इन सब बातों से भक्त प्रभावित रहते। उनका ज्ञान भक्तों के बीच चर्चा का विषय बनता। वृंदावन में 54 एकड़ में प्रेम मंदिर का निर्माण से प्रसिद्धि मिली
वृंदावन में प्रेम मंदिर के निर्माण के बाद बाबा की ख्याति बढ़ी। मंदिर बनाने में कुल 11 साल का समय लगा। यह कुल 54 एकड़ में बना है। मंदिर की लंबाई 125 फीट और चौड़ाई 115 फीट है। मंदिर का शिलान्यास यानी बनाने की शुरुआत 14 फरवरी, 2001 से हुई। 2012 में यह पूरी तरह बनकर तैयार हुआ। कहा जाता है, इसकी लागत 100 करोड़ रुपए थी। मंदिर बनाने में इटैलियन करारा संगमरमर पत्थर का इस्तेमाल किया गया। मंदिर को बनाने में उत्तर प्रदेश से लेकर राजस्थान तक के एक हजार कारीगरों ने काम किया। मंदिर के अलावा वृंदावन में दो अस्पताल भी बनवाए। प्रेम मंदिर के अलावा उत्तर भारत में कुछ छोटे मंदिर बनवाने का श्रेय भी कृपालु महाराज को दिया जाता है। करीब 10 हजार करोड़ रुपए की संपत्ति के मालिक थे
जिंदा रहते ही कृपालु महाराज ने अपना बड़ा साम्राज्य खड़ा कर लिया था। उन्होंने तीन ट्रस्ट बनाए। इसमें प्रतापगढ़ का मनगढ़ ट्रस्ट, वृंदावन ट्रस्ट और बरसाना ट्रस्ट था। इन ट्रस्ट से ही वो स्कूल, हॉस्पिटल, अनाथालय और गोशालाओं का संचालन करते थे। 2013 में मनगढ़ ट्रस्ट में ही बाथरूम में फिसलकर गिर जाने से कृपालु महाराज की मृत्यु हो गई। इसके बाद उनकी तीनों बेटियों ने पूरा साम्राज्य संभाल लिया। कारनामें: बरसाना के रंगीली महल में पुरुषों का प्रवेश वर्जित था
कृपालु महाराज की जीवनचर्या उनकी मौत तक रहस्य बनी रही। उनके आश्रमों में उन तक भक्तों की सीधी पहुंच नहीं थी। कहा जाता है, बरसाना में उनका रंगीली महल था। यहां पुरुष भक्तों को प्रवेश नहीं दिया जाता था। केवल खूबसूरत महिलाओं को प्रवेश की इजाजत थी। कहा यह भी जाता है कि जितने दिन यहां बाबा प्रवास करते थे, उनकी शिष्याएं खुद को रानी का स्वरूप मानने लगती थीं। अमेरिका से लेकर त्रिनिनाद और महाराष्ट्र की शिष्याओं ने रेप का केस दर्ज कराया
कृपालु महाराज पर सबसे पहला रेप का आरोप 2007 में लगा। त्रिनिदाद की एक महिला ने आरोप लगाया कि महाराज ने उसके साथ एक व्यापारी के घर पर रेप किया। ये घटना तब घटी थी, जब कृपालु महाराज वर्ल्ड टूर पर थे। महिला का कहना था, बाबा उसी व्यापारी के घर ठहरे हुए थे। इससे पहले साल 1991 में एक व्यक्ति ने महाराष्ट्र के नागपुर में अपनी नाबालिग लड़कियों के अपहरण का मामला दर्ज कराया। आरोप लगाया कि उसकी बेटियों का अपहरण कर महाराज ने रेप किया है। पुलिस ने शुरुआती जांच के बाद कृपालु महाराज के खिलाफ अपहरण और रेप के 4 मामले दर्ज किए। दरअसल, पुलिस की जांच में सामने आया कि शिकायत से पहले भी महाराज ने दो लड़कियों का रेप किया, लेकिन मामला दर्ज नहीं हुआ। ये मामले 1885 से 1991 के बीच के थे। मामले में पुलिस ने मनगढ़ आश्रम पर छापा मारा। वहां दोनों नाबालिग लड़कियां बरामद हुईं। साथ ही महाराष्ट्र की एक और नाबालिग लड़की पुलिस को वहां मिली। पूछताछ में लड़कियों ने बताया कि उनके साथ जबरदस्ती की गई। इसमें महाराज के साथ उनके सहयोगी प्रिया शरण महाराज भी शामिल थे। इस मामले में कृपालु महाराज को पुलिस ने काफी खोजबीन के बाद गिरफ्तार किया। बाद में कोर्ट ने सबूतों के आभाव में बरी कर दिया। 2 जुलाई को हाथरस में सत्संग के बाद भगदड़ में 123 लोगों की मौत हो गई। इसके बाद एक नाम निकलकर आया- भोले बाबा उर्फ हरि नारायण उर्फ सूरजपाल। भोले बाबा की चर्चा पूरे देश में है। बाबा के सत्संग में भक्तों की भीड़ जुटती है। कुंडली खंगाली जाने लगी। पता चला पहले यूपी पुलिस में था। छेड़छाड़ का आरोप लगा। बर्खास्त कर दिया गया। फिर जैसे-तैसे सर्विस में लौटा। कुछ समय बाद अपनी इच्छा से रिटायरमेंट ले लिया और बन गया भोले बाबा। ये तो सिर्फ एक बाबा की कहानी हुई। उत्तर प्रदेश ऐसे छोटे-बड़े बाबाओं का गढ़ है। हर जिले, पंचायत और ब्लॉक स्तर पर झाड़-फूंक और चमत्कार करने वाले बाबा हैं। यूपी के 4 विवादित बाबाओं की कहानी जानिए संडे बिग स्टोरी में… शुरुआती जिंदगी: ढोलक-हारमोनियम बजाकर इलाज का दावा करता
स्वामी परमानंद हमेशा से परमानंद महाराज नहीं था। पहले उसका नाम रामशंकर था। बचपन से ही पढ़ाई-लिखाई में मन नहीं लगा। कुछ समय बाद हर्रई गांव में अपने घर के ही एक कमरे में उसने एक मूर्ति स्थापित की। उस मूर्ति के सामने दिनभर बैठा रहता। ढोलक और हारमोनियम बजाता रहता। कुछ दिनों बाद वहीं तंत्र-मंत्र भी शुरू कर दिया। उस एक कमरे में ही झाड़-फूंक करने लगा। ढोलक-हारमोनियम पर गाने बजाने को नाम दिया संगीत थेरेपी। दावा करने लगा कि संगीत थेरेपी से हर बीमारी का इलाज कर सकता है। इस तरह धीरे-धीरे अपने आसपास लोगों को इकट्ठा करने लगा। लोगों से गांव-गांव में प्रचार करवाने लगा कि वो बाबा की संगीत थेरेपी से ठीक हो गए हैं। इससे उसके यहां लोगों की भीड़ बढ़ने लगी। दूर-दूर से लोग उसके एक कमरे में आने लगे। यहीं एक कमरे को उसने विस्तार दिया और आगे चलकर यह आश्रम में बदल गया। उस जगह को हर्रई धाम के नाम से जाना जाने लगा। समय बीतने के साथ रामशंकर खुद को स्वामी परमानंद के रूप में बदलने लगा। उसके दूसरे और भी नाम पड़ गए। इनमें शक्ति बाबा उर्फ कल्याणी गुरु जैसे नाम मशहूर होने लगे। साधुओं की तरह गेरुआ वस्त्र पहनने लगा। लंबी सफेद दाढ़ी रखने के साथ गले में मोटी-मोटी कंठी-मालाएं पहनने लगा। हाथ की सभी अंगुलियों में रंग-बिरंगी अंगूठियां पहनने लगा। बदली वेशभूषा के साथ परमानंद के भक्तों की संख्या भी बढ़ने लगी। दावा करता- मेरे आशीर्वाद से बेटा पैदा होगा
बाबा ने महिलाओं को टारगेट करना शुरू किया। दावा करने लगा कि उसके आशीर्वाद से महिलाओं को बेटा ही पैदा होगा। उसके एजेंट लोगों को जाकर बताते, बाबा के आशीर्वाद से बेटा पैदा होता है। इससे उसके आश्रम में नए-नए भक्त आने लगे। वो महिलाओं को नर्क में जाने और मुक्ति न मिलने का डर दिखाने लगा। यह सब उसने अपने आश्रम में बोर्ड तक पर लिखवा दिया। अपने आश्रम में वो 4 दिन दरबार लगाता। दिन होते शनिवार से मंगलवार। जैसे-जैसे भीड़ बढ़ती गई बाबा अपना रुतबा और ऐशो-आराम बढ़ाता गया। आश्रम में एक AC कमरे में गद्दी लगाकर बैठने लगा। वहां महिलाएं आतीं, तो उन्हें आशीर्वाद देता। हुआ यह कि स्वाभाविक रूप से बाबा के पास आने वाली कुल महिलाओं में से कुछ महिलाओं के बेटे पैदा हो गए। ये महिलाएं वापस आश्रम में आकर बताने लगीं कि उन्हें बाबा के आशीर्वाद से बेटा हुआ है। यहीं से बाबा की वसूली का खेल शुरू हुआ। जिन महिलाओं के बेटे पैदा होते, उन्हें डाली चढ़ाने के लिए कहा जाता। इसमें पैसे से लेकर हर तरह का सामान हो सकता था। इस डाली के नाम पर आश्रम में जमकर वसूली शुरू हो गई। साल बीतते रहे और बाबा की पहुंच दूर-दूर तक होने लगी। आम भक्तों के साथ आश्रम में खास लोगों की भी हाजिरी लगने लगी। इसमें पुलिस, प्रशासन से लेकर राजनीतिक पार्टियों के नेता शामिल थे। रेप की अश्लील वीडियो बनाता, महिलाओं को ब्लैकमेल करता
बाबा का सारा खेल सामने आया कुछ वीडियो से। पता चला संगीत थेरेपी के नाम पर आश्रम में निसंतान महिलाओं का यौन शोषण चल रहा है। बाबा को वीडियो में महिलाओं के साथ आपत्तिजनक हालत में पाया गया। वीडियो सामने आने के बाद महिलाओं ने बाबा पर रेप और जान से मारने की कोशिश की धाराओं में केस दर्ज कराया। तब क्राइम ब्रांच की जांच में सामने आया कि ढोंगी बाबा औरतों को बच्चों का लालच देकर जाल में फंसाता। रेप के दौरान उनका अश्लील वीडियो बना लेता। फिर महिलाओं को वीडियो के नाम पर ब्लैकमेल करता और बार-बार रेप करता। 12 मई, 2016 को वीडियो सामने आने के बाद बाबा आश्रम से फरार हो गया। 23 मई को क्राइम ब्रांच ने चित्रकूट से उसे गिरफ्तार किया। फरार रहने के दौरान उसने दो बार हाईकोर्ट से गिरफ्तारी पर स्टे ऑर्डर की याचिका लगाई। बाद में लोअर कोर्ट में सभी गवाह मुकर गए और बाबा को जमानत मिल गई। 2016 के आखिर से ही बाबा जमानत पर था। कुछ ही समय बाद अन्य मामलों में बाबा को जेल जाना पड़ा। साल 2022 में कोर्ट से जमानत मिली। इस साल 5 अप्रैल को हार्टअटैक से बाबा की मौत हो गई। शुरुआती जिंदगी: गार्ड की नौकरी की, मसाज पार्लर में मैनेजर रहा
श्रीश्री 1008 इच्छाधारी संत श्री भीमानंद सरस्वती महाराज उर्फ भीमानंद महाराज उर्फ राजीव रंजन उर्फ शिवमूरत द्विवेदी…ये सिर्फ एक व्यक्ति के नाम हैं। गरीब परिवार से आने वाला शिवमूरत द्विवेदी दिल्ली के एक होटल में सिक्योरिटी गार्ड था। वहां गेट पर खड़ा-खड़ा रोज अमीरों का आना-जाना देखता। यह देख उसके मन में भी अमीर बनने की महत्वाकांक्षा जागने लगी। वह हर रोज जो देख रहा था ,वह उसके दिमाग पर चढ़ने लगा। उसे भी अमीर इंसान बनना था। पर सवाल था कैसे? तब इसका जवाब उसे भी नहीं पता था। बस ये जानता था कि इसके लिए वह कितना भी नीचे गिर सकता है। कहीं पहुंचने के लिए कहीं से निकलना पड़ता है। इसी ख्वाहिश में उसने होटल में गार्ड की नौकरी छोड़ दी। वहां से आ गया आगरा। गुजर-बसर के लिए यहां भी उसने एक होटल में फिर गार्ड की नौकरी पकड़ ली, लेकिन मन नहीं लगा। वह फिर दिल्ली चला गया। उसने नौकरी बदली और लाजपतनगर में एक मसाज पार्लर में मैनेजर बन गया। किस्मत ने साधु-संतों से मिलाया, तो ठग बनने का आइडिया आया
मसाज पार्लर में काम करने के दौरान कुछ साधु-संतों से मुलाकात हुई। काम के बाद उनकी मंडली में उठना-बैठना शुरू किया। ये लोग साईं बाबा के भक्त थे। यहीं से उसके मन में ख्याल आया कि भगवा चोला ओढ़कर वो भी बाबा बन सकता है। लेकिन शिवमूरत को जल्दी थी। इसलिए नौकरी के साथ चोरी-डकैती जैसे अपराधों में शामिल होने लगा। 1998 में ऐसे ही डकैती के एक केस में दिल्ली पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया। कुछ महीने बाद जमानत मिली तो दिल्ली से निकल लिया। भागकर आया दिल्ली से सटे नोएडा में। कारनामें: नोएडा में शिवमूरत द्विवेदी से ‘इच्छाधारी बाबा’ बना
नोएडा में उसने एक आश्रम बनाया और दावा करता कि नौकरी दिला सकता है। शादी करा सकता है। अपना दुख-दर्द लेकर लोग आश्रम पहुंचने लगे। वह हर रोज दरबार लगाता। इन लोगों में बाबा के पास कॉलेज जाने वाली लड़कियां, मॉडल और एयर होस्टेस भी हुआ करती थीं। बाबा की गंदी नजर उन पर पड़ी और इन जरूरतमंद लड़कियों को पैसे का लालच देकर सेक्स रैकेट चलाने लगा। इसमें पैसे भी ज्यादा मिलने लगे। दिन में वह बाबा रहता और रात में सेक्स रैकेट का सरगना। उसने नोएडा में बैठकर पूरे दिल्ली-एनसीआर में अपना धंधा बढ़ा लिया। जांच में सामने आया कि 600 से अधिक लड़कियां उसके साथ काम कर रही थीं। एक लड़की की शिकायत ने बाबा के धंधे की पोल खोल दी
2010 में दिल्ली में कॉमनवेल्थ गेम्स होने वाले थे। बाबा खुश था कि उसके विदेशी ग्राहकों की संख्या बढ़ेगी। कमाई कई गुना बढ़ जाएगी। इसके लिए वो लड़कियों पर दबाव बढ़ाने लगा। इससे तंग आकर एक लड़की ने दिल्ली पुलिस में जाकर शिकायत कर दी। तब दिल्ली पुलिस की क्राइस ब्रांच ने बाबा को पकड़ने का जाल बिछाया। इसमें ढोंगी बाबा गिरफ्तार हुआ। साथ में कई कॉल गर्ल्स भी गिरफ्तार हुईं। जांच में बाबा के पास से एक डायरी मिली। इसमें ग्राहकों के नाम और नंबर लिखे मिले। उसके नाम पर करोड़ों रुपए की संपत्ति मिली। दिल्ली के खानपुर इलाके में उसने अपने एक मकान को मंदिर बना दिया था। 13 बैंक खातों में 90 लाख से भी ज्यादा रुपए मिले। पास में 3 लग्जरी कारें मिलीं। शुरुआती जिंदगी: इमरजेंसी में जेल गया, लोकसभा और विधानसभा चुनाव लड़ा
1980 के दशक की बात है। जयगुरुदेव नाम के धार्मिक गुरु को लोग जानने लगे थे। वो मथुरा में रहते थे। तब सुभाष चंद्र बोस के जिंदा होने को लेकर खूब कहानियां चलती थीं। जयगुरुदेव इतने रहस्यमयी रूप से रहते थे कि लोगों में ये बात फैल गई कि वो सुभाष चंद्र बोस हैं। रामवृक्ष यादव इन्हीं जयगुरुदेव का भक्त था। वह मूलरूप से गाजीपुर जिले का रहने वाला था। 1972-73 के बीच वो बाबा जयगुरुदेव से जुड़ा। 1975 में इमरजेंसी लगी। इसमें रामवृक्ष भी जेल गया। इसके लिए उसे बाद में लोकतंत्र सेनानी पेंशन मिलती थी। छूटने के थोड़े समय बाद ही वो मथुरा आकर जयगुरुदेव के साथ रहने लगा। 1980 में जब जयगुरुदेव ने अहमदाबाद में दूरदर्शी पार्टी बनाई, तो ये उसमें शामिल हो गया। उस पार्टी से इसने गाजीपुर से लोकसभा और विधानसभा चुनाव लड़ा। कारनामें: जयगुरुदेव की 12 हजार करोड़ की संपत्ति पर थी नजर
मथुरा में जयगुरुदेव के नाम पर 12 हजार करोड़ रुपए की संपत्ति थी। 2012 में जयगुरुदेव के निधन के बाद उस पर कब्जे के लिए रामवृक्ष यादव का बाबा के ड्राइवर पंकज यादव से विवाद हो गया। पंकज यादव को यह संपत्ति विरासत में मिली थी। रामवृक्ष यादव का जयगुरुदेव से भी निधन से पहले विवाद हो गया था। इसलिए उन्होंने उसे विरासत में उसे हिस्सेदार नहीं बनाया। नतीजा यह हुआ कि जिद में रामवृक्ष यादव ने आश्रम के पास जवाहर बाग नाम के पार्क पर कब्जा कर लिया। नया देश बनाने के लिए लोगों का ब्रेनवॉश कर साथ जोड़ता
2012 में जयगुरुदेव से अलग होने के बाद उसने एक नया संगठन बनाया। नाम रखा स्वाधीन भारत विधिक सत्याग्रह। संगठन का लक्ष्य था, नया देश और नई सरकार बनाना। वह इसके लिए दिल्ली गया। आंदोलन की तैयारियां की। हालांकि, दिल्ली में उसे प्रशासन से आंदोलन की अनुमति नहीं मिली। तब 2014 में उसने मथुरा के जवाहर बाग को अपना अड्डा बना लिया। वहां लोगों का नया देश और नई सरकार बनाने की बातों से ब्रेनवॉश करता। नई सरकार बनने पर वह उसमें लोगों को मंत्रिमंडल देने का लालच देता। बाग के अंदर उसने समर्थकों की मदद से हथियार इकट्ठा कर लिए थे। लोगों को अपने साथ जोड़ने के लिए उन्हें पैसे का लालच देता। उन्हें रोक कर अपनी फौज में भर्ती कर लेता। बंगाल का रहने वाला चंदन बोस नाम का व्यक्ति उसका सहयोगी था। बदायूं का राकेश बाबू गुप्ता संगठन के पैसों का हिसाब रखता था। आखिर क्या थे रामवृक्ष यादव के इरादे?
रामवृक्ष और उसके समर्थकों की मांग थी कि राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री जैसे पद खत्म कर दिए जाएं। भारतीय मुद्रा रुपए की जगह पर आजाद हिंद बैंक की मुद्रा चलाई जाए। वह खुद को सुभाष चंद्र बोस से प्रभावित मानता था। उसका कहना था, 1 रुपए में 40 लीटर पेट्रोल और 60 लीटर डीजल दिया जाए। भारतीय रिजर्व बैंक और यहां की सरकार डॉलर की गुलाम है। वो चाहता था कि सरकार को समाप्त कर दिया जाए। 2016 में जब जवाहर बाग को पुलिस प्रशासन खाली कराने गई, तब उसने समर्थकों के साथ हमला बोल दिया। पुलिस बल पर जानलेवा हमला किया गया। इसमें एसपी सिटी मुकुल द्विवेदी और इंस्पेक्टर संतोष यादव शहीद हो गए थे। इस घटना में कुल 29 लोगों की मौत हुई थी। शुरुआती जिंदगी: गांव में प्रवचन करते-करते विदेशों तक पहुंचे
मनगढ़ में पैदा हुए रामकृपाल त्रिपाठी ने 7वीं कक्षा तक की पढ़ाई पूरी की। आगे पढ़ाई के लिए मध्यप्रदेश के महू चले गए। इस बीच घरवालों ने उनकी शादी कर दी। पत्नी का नाम था पद्मा। वापस आकर मनगढ़ में ही पत्नी के साथ रहने लगे। गृहस्थ में रहने के दौरान 5 बच्चे हुए। तीन बेटियां और दो बेटे। धीरे-धीरे उनका झुकाव राधा कृष्ण की भक्ति में लगने लगा। वहीं गांव में प्रवचन देने लगे। भक्ति-योग पर बातें किया करते। कुछ साल में प्रवचन की चर्चा दूर-दूर तक फैलने लगी। उत्तर भारत के हिंदी भाषी क्षेत्रों के अलावा विदेशों में नाम फैलने लगा। 1957 में मकर सक्रांति के मौके पर वाराणसी की काशी विद्युत परिषद ने ‘जगतगुरु’ की उपाधि दी। वो अपने प्रवचनों में चारों वेदों, उपनिषद, पुराणों, गीता और वेदांत सूत्रों का अध्ययन पाठ करते। मंत्रों की व्याख्या करते। इन सब बातों से भक्त प्रभावित रहते। उनका ज्ञान भक्तों के बीच चर्चा का विषय बनता। वृंदावन में 54 एकड़ में प्रेम मंदिर का निर्माण से प्रसिद्धि मिली
वृंदावन में प्रेम मंदिर के निर्माण के बाद बाबा की ख्याति बढ़ी। मंदिर बनाने में कुल 11 साल का समय लगा। यह कुल 54 एकड़ में बना है। मंदिर की लंबाई 125 फीट और चौड़ाई 115 फीट है। मंदिर का शिलान्यास यानी बनाने की शुरुआत 14 फरवरी, 2001 से हुई। 2012 में यह पूरी तरह बनकर तैयार हुआ। कहा जाता है, इसकी लागत 100 करोड़ रुपए थी। मंदिर बनाने में इटैलियन करारा संगमरमर पत्थर का इस्तेमाल किया गया। मंदिर को बनाने में उत्तर प्रदेश से लेकर राजस्थान तक के एक हजार कारीगरों ने काम किया। मंदिर के अलावा वृंदावन में दो अस्पताल भी बनवाए। प्रेम मंदिर के अलावा उत्तर भारत में कुछ छोटे मंदिर बनवाने का श्रेय भी कृपालु महाराज को दिया जाता है। करीब 10 हजार करोड़ रुपए की संपत्ति के मालिक थे
जिंदा रहते ही कृपालु महाराज ने अपना बड़ा साम्राज्य खड़ा कर लिया था। उन्होंने तीन ट्रस्ट बनाए। इसमें प्रतापगढ़ का मनगढ़ ट्रस्ट, वृंदावन ट्रस्ट और बरसाना ट्रस्ट था। इन ट्रस्ट से ही वो स्कूल, हॉस्पिटल, अनाथालय और गोशालाओं का संचालन करते थे। 2013 में मनगढ़ ट्रस्ट में ही बाथरूम में फिसलकर गिर जाने से कृपालु महाराज की मृत्यु हो गई। इसके बाद उनकी तीनों बेटियों ने पूरा साम्राज्य संभाल लिया। कारनामें: बरसाना के रंगीली महल में पुरुषों का प्रवेश वर्जित था
कृपालु महाराज की जीवनचर्या उनकी मौत तक रहस्य बनी रही। उनके आश्रमों में उन तक भक्तों की सीधी पहुंच नहीं थी। कहा जाता है, बरसाना में उनका रंगीली महल था। यहां पुरुष भक्तों को प्रवेश नहीं दिया जाता था। केवल खूबसूरत महिलाओं को प्रवेश की इजाजत थी। कहा यह भी जाता है कि जितने दिन यहां बाबा प्रवास करते थे, उनकी शिष्याएं खुद को रानी का स्वरूप मानने लगती थीं। अमेरिका से लेकर त्रिनिनाद और महाराष्ट्र की शिष्याओं ने रेप का केस दर्ज कराया
कृपालु महाराज पर सबसे पहला रेप का आरोप 2007 में लगा। त्रिनिदाद की एक महिला ने आरोप लगाया कि महाराज ने उसके साथ एक व्यापारी के घर पर रेप किया। ये घटना तब घटी थी, जब कृपालु महाराज वर्ल्ड टूर पर थे। महिला का कहना था, बाबा उसी व्यापारी के घर ठहरे हुए थे। इससे पहले साल 1991 में एक व्यक्ति ने महाराष्ट्र के नागपुर में अपनी नाबालिग लड़कियों के अपहरण का मामला दर्ज कराया। आरोप लगाया कि उसकी बेटियों का अपहरण कर महाराज ने रेप किया है। पुलिस ने शुरुआती जांच के बाद कृपालु महाराज के खिलाफ अपहरण और रेप के 4 मामले दर्ज किए। दरअसल, पुलिस की जांच में सामने आया कि शिकायत से पहले भी महाराज ने दो लड़कियों का रेप किया, लेकिन मामला दर्ज नहीं हुआ। ये मामले 1885 से 1991 के बीच के थे। मामले में पुलिस ने मनगढ़ आश्रम पर छापा मारा। वहां दोनों नाबालिग लड़कियां बरामद हुईं। साथ ही महाराष्ट्र की एक और नाबालिग लड़की पुलिस को वहां मिली। पूछताछ में लड़कियों ने बताया कि उनके साथ जबरदस्ती की गई। इसमें महाराज के साथ उनके सहयोगी प्रिया शरण महाराज भी शामिल थे। इस मामले में कृपालु महाराज को पुलिस ने काफी खोजबीन के बाद गिरफ्तार किया। बाद में कोर्ट ने सबूतों के आभाव में बरी कर दिया। उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर