कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल को आतंकियों ने 27 पर्यटकों की गोली मारकर हत्या कर दी थी। हमले में कानपुर के शिवम द्विवेदी भी मारे गए। शिवम की पत्नी ऐशन्या ने पति को शहीद का दर्जा देने की मांग की है। शहीद का दर्जा किसे दिया जा सकता है? सेना और सरकार की ओर से इसके नियम क्या हैं? क्या ऐशन्या की मांग पूरी होगी? इन सभी सवालों के जवाब भास्कर एक्सप्लेनर में पढ़िए… सवाल 1- क्या है शहीद शब्द का अर्थ, यह कहां से आया? जवाब- शहीद शब्द फारसी भाषा से आया है। इसका अर्थ साक्षी (गवाह) या ‘बलिदानी’ है। ‘शहीद’ शब्द ग्रीक शब्द ‘मार्टुर’ से भी जुड़ा है। इसका इस्तेमाल सैन्य सेवा, धार्मिक संघर्ष या सामाजिक आंदोलनों के संदर्भ में किया जाता है। ये शब्द खासकर ईसाई और इस्लामी परंपराओं में इस्तेमाल होता है। जहां लोग धर्म के लिए जान दे देते हैं। लेकिन भारतीय सैनिक धर्म के लिए नहीं, देश के लिए जान देते हैं। इसलिए सेना और कई जानकार मानते हैं कि ये शब्द सेना के बलिदान के लिए सही नहीं है। सवाल 2- क्या शुभम द्विवेदी को शहीद का दर्जा मिल सकता है? जवाब- नहीं, यह संभव नहीं है। सरकार की रूल बुक में शहीद का कोई दर्जा नहीं है। सेना और पैरामिलिट्री फोर्सेज की शब्दावली में भी यह शब्द नहीं है। तृणमूल कांग्रेस के सांसद डॉ. शांतनु सेन ने 3 साल पहले सरकार से पूछा था कि क्या सरकार ने कर्तव्य निभाते हुए सर्वोच्च बलिदान देने वालों के लिए ‘शहीद’ शब्द का इस्तेमाल करना बंद कर दिया है? इसके जवाब में तत्कालीन रक्षा राज्यमंत्री अजय भट्ट ने 28 मार्च, 2022 को राज्यसभा में लिखित जवाब दिया कि भारतीय सेना में ‘शहीद’ शब्द का इस्तेमाल नहीं होता। सवाल 3- क्या सरकार पहले से शहीद शब्द का इस्तेमाल नहीं कर रही? जवाब- हां, सरकार करीब 12 साल से कह रही है कि ‘शहीद’ शब्द की कोई आधिकारिक मान्यता नहीं। 2013 और 2014 में गृह मंत्रालय ने एक RTI के जवाब में भी यही बात कही थी। 22 दिसंबर, 2015 को लोकसभा में तत्कालीन गृह राज्यमंत्री किरेन रिजिजू ने कहा था- भारतीय सशस्त्र सेनाओं (आर्मी, नेवी और एयरफोर्स) में किसी तरह की कैजुअल्टी के लिए आधिकारिक तौर पर शहीद शब्द का इस्तेमाल नहीं किया जाता। केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों मानें, तो पैरामिलिट्री फोर्सेज के जवानों के जान गंवाने पर भी शहीद शब्द का इस्तेमाल नहीं होता। हां, उनके परिजनों को service rules के मुताबिक पेंशन और क्षतिपूर्ति राशि दी जाती है। 2021 में भी गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने यही दोहराया था। सवाल 4- फिर शहीद शब्द क्यों इस्तेमाल होता है? जवाब- ड्यूटी के दौरान प्राण गंवाने वाला सेना के जवान या अफसर को जनप्रतिनिधि शहीद कहते हैं। जवान के परिवार के लिए आर्थिक मदद की घोषणा करते हैं। हालांकि, लिखित तौर पर शहीद का कोई रिकॉर्ड नहीं होता। जैसे- पुलवामा में आतंकी हमले में सीआरपीएफ-76 बटालियन के 40 जवानों की जान चली गई थी। उस समय भी शहीद कहा गया। इन्हें सामान्य ड्यूटी की जगह स्पेशल ड्यूटी मानकर परिवार को ज्यादा मुआवजा दिया गया। इसी तरह पुलिस के जवान की एनकाउंटर में मौत हो जाती है, तो राज्य सरकार और पुलिस विभाग उसे शहीद कहकर संबोधित करता है। एक तरह से यह घोषणा होती है। जवान के परिवार को अलग से आर्थिक सहायता, जमीन, मकान का अलॉटमेंट होता है। बाकी उसे सर्विस रूल्स के मुताबिक सुविधाएं मिलती हैं। जैसे- उसकी पत्नी या माता-पिता को उसकी सैलरी मिलेगी। परिवार के एक सदस्य को आश्रित कोटे से सरकारी नौकरी मिलती है। सवाल 5- शहीद की जगह सेना और सरकार किस शब्द का इस्तेमाल करती है? जवाब- सरकार ने कई बार कहा कि ‘शहीद’ कोई आधिकारिक शब्द नहीं है। फिर भी कई सरकारी बयानों में इसका इस्तेमाल होता रहा है। 2022 में सेना ने एक चिट्ठी जारी की कि अब से ‘शहीद’ शब्द न इस्तेमाल किया जाए। इसकी जगह इन शब्दों का इस्तेमाल किया जाए। सवाल 6- आतंकी हमले में नेवी और एयरफोर्स के दो अफसरों की मौत हुई। उनका क्या होगा? जवाब- पहलगाम आतंकी हमले में नौसेना और वायुसेना के दो अफसरों की मौत हुई है। इनमें विनय नरवाल नौसेना में अधिकारी थे और कोच्चि में लेफ्टिनेंट के पद पर तैनात थे। टेज हैलियांग भारतीय वायुसेना के कार्पोरल पद पर तैनात थे। दोनों अपने परिवार के साथ पहलगाम घूमने गए थे। यानी वे छुट्टी पर थे। इसलिए नियम के अनुसार उनके परिवार को कोई विशेष सुविधा नहीं मिलेगी। सवाल 7- कौन वीरगति के दर्जे में नहीं आता? जवाब- जब सेना और अर्धसैनिक बलों में किसी जवान की मौत होती है या वो लापता होता/होती है, तो इसे अलग-अलग कैटेगरी में नोट किया जाता है। ‘battle casualty’ या ‘operations casualty’ जैसे शब्द इस्तेमाल किए जाते हैं। लापता होने पर missing in action जैसी शब्दावली प्रयोग होती है। सरकार देखती है कि जान कैसे गई? सामान्य ड्यूटी के दौरान जान जाने पर एक तय मुआवजा मिलता है। सक्रिय ड्यूटी या ऑपरेशन के दौरान मौत होने पर ज्यादा मुआवजा मिलता है। ऐसे सैनिक जिनकी मौत किसी बीमारी, सड़क दुर्घटना, करंट लगने से या आत्महत्या अथवा अन्य कारण से हुई हो, वे वीरगति के दर्जे में नहीं आते। सवाल 8- वीरगति प्राप्त होने पर सैनिक के परिवार को क्या सुविधाएं मिलती हैं? जवाब- जिन सेना के जवानों को वीरगति प्राप्त होती है, उनके परिवार को कई सुविधाएं मिलती हैं। शहीद की पत्नी को पूरा वेतन, शहीद के परिवार वालों को रेल और हवाई किराए में 50 फीसदी छूट मिलती है। साथ ही राज्य सरकार की ओर से आर्थिक मदद और सरकारी नौकरी समेत कुछ अतिरिक्त सुविधाएं मिलनी शुरू हो जाती हैं। शहादत के बाद सेना में परिवार वालों को राज्य सरकार की नौकरी में कोटा, एजुकेशन इंस्टीट्यूट में उनके बच्चों के लिए सीटें रिजर्व हैं। इसके अलावा राज्य और केंद्र सरकार अलग से उस समय घोषणा कर सकती हैं। जैसे- कारगिल युद्ध में वीरगति प्राप्त करने वाले सैनिकों को पेट्रोल पंप का लाइसेंस दिया गया था। राज्यों ने अलग से आर्थिक मदद दी थी। मध्य प्रदेश में सरकार एनकाउंटर में मारे गए जवान को 1 करोड़ रुपए अलग से देती है। यूपी में जवान के परिवार को 50 लाख रुपए दिए जाते हैं। साथ ही पत्नी, बेटे-बेटी में से किसी एक को नौकरी दी जाती है। हालांकि पिछले महीने सरकार ने जवान की पत्नी, बेटा-बेटी के अलावा भाई को भी नौकरी की कैटेगरी में शामिल कर लिया है। ———————— ये खबर भी पढ़ें… शुभम की पत्नी बोलीं- मुझे एक-एक आतंकी का सफाया चाहिए:कश्मीर क्या अब तो घर से बाहर निकलने में भी डर लगता है पहलगाम हमले में मारे गए शुभम द्विवेदी की पत्नी ऐशन्या को 8 दिन बाद भी आतंकियों पर एक्शन का इंतजार है। उनकी सरकार से दो ही मांगें हैं। पहली – आतंकियों का सफाया हो। दूसरी – पति को शहीद का दर्जा दिया जाए। दैनिक भास्कर टीम ने जब ऐशन्या से पूछा- क्या दोबारा कभी कश्मीर जाना चाहेंगी? उन्होंने साफ मना कर दिया। पढ़ें पूरी खबर कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल को आतंकियों ने 27 पर्यटकों की गोली मारकर हत्या कर दी थी। हमले में कानपुर के शिवम द्विवेदी भी मारे गए। शिवम की पत्नी ऐशन्या ने पति को शहीद का दर्जा देने की मांग की है। शहीद का दर्जा किसे दिया जा सकता है? सेना और सरकार की ओर से इसके नियम क्या हैं? क्या ऐशन्या की मांग पूरी होगी? इन सभी सवालों के जवाब भास्कर एक्सप्लेनर में पढ़िए… सवाल 1- क्या है शहीद शब्द का अर्थ, यह कहां से आया? जवाब- शहीद शब्द फारसी भाषा से आया है। इसका अर्थ साक्षी (गवाह) या ‘बलिदानी’ है। ‘शहीद’ शब्द ग्रीक शब्द ‘मार्टुर’ से भी जुड़ा है। इसका इस्तेमाल सैन्य सेवा, धार्मिक संघर्ष या सामाजिक आंदोलनों के संदर्भ में किया जाता है। ये शब्द खासकर ईसाई और इस्लामी परंपराओं में इस्तेमाल होता है। जहां लोग धर्म के लिए जान दे देते हैं। लेकिन भारतीय सैनिक धर्म के लिए नहीं, देश के लिए जान देते हैं। इसलिए सेना और कई जानकार मानते हैं कि ये शब्द सेना के बलिदान के लिए सही नहीं है। सवाल 2- क्या शुभम द्विवेदी को शहीद का दर्जा मिल सकता है? जवाब- नहीं, यह संभव नहीं है। सरकार की रूल बुक में शहीद का कोई दर्जा नहीं है। सेना और पैरामिलिट्री फोर्सेज की शब्दावली में भी यह शब्द नहीं है। तृणमूल कांग्रेस के सांसद डॉ. शांतनु सेन ने 3 साल पहले सरकार से पूछा था कि क्या सरकार ने कर्तव्य निभाते हुए सर्वोच्च बलिदान देने वालों के लिए ‘शहीद’ शब्द का इस्तेमाल करना बंद कर दिया है? इसके जवाब में तत्कालीन रक्षा राज्यमंत्री अजय भट्ट ने 28 मार्च, 2022 को राज्यसभा में लिखित जवाब दिया कि भारतीय सेना में ‘शहीद’ शब्द का इस्तेमाल नहीं होता। सवाल 3- क्या सरकार पहले से शहीद शब्द का इस्तेमाल नहीं कर रही? जवाब- हां, सरकार करीब 12 साल से कह रही है कि ‘शहीद’ शब्द की कोई आधिकारिक मान्यता नहीं। 2013 और 2014 में गृह मंत्रालय ने एक RTI के जवाब में भी यही बात कही थी। 22 दिसंबर, 2015 को लोकसभा में तत्कालीन गृह राज्यमंत्री किरेन रिजिजू ने कहा था- भारतीय सशस्त्र सेनाओं (आर्मी, नेवी और एयरफोर्स) में किसी तरह की कैजुअल्टी के लिए आधिकारिक तौर पर शहीद शब्द का इस्तेमाल नहीं किया जाता। केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों मानें, तो पैरामिलिट्री फोर्सेज के जवानों के जान गंवाने पर भी शहीद शब्द का इस्तेमाल नहीं होता। हां, उनके परिजनों को service rules के मुताबिक पेंशन और क्षतिपूर्ति राशि दी जाती है। 2021 में भी गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने यही दोहराया था। सवाल 4- फिर शहीद शब्द क्यों इस्तेमाल होता है? जवाब- ड्यूटी के दौरान प्राण गंवाने वाला सेना के जवान या अफसर को जनप्रतिनिधि शहीद कहते हैं। जवान के परिवार के लिए आर्थिक मदद की घोषणा करते हैं। हालांकि, लिखित तौर पर शहीद का कोई रिकॉर्ड नहीं होता। जैसे- पुलवामा में आतंकी हमले में सीआरपीएफ-76 बटालियन के 40 जवानों की जान चली गई थी। उस समय भी शहीद कहा गया। इन्हें सामान्य ड्यूटी की जगह स्पेशल ड्यूटी मानकर परिवार को ज्यादा मुआवजा दिया गया। इसी तरह पुलिस के जवान की एनकाउंटर में मौत हो जाती है, तो राज्य सरकार और पुलिस विभाग उसे शहीद कहकर संबोधित करता है। एक तरह से यह घोषणा होती है। जवान के परिवार को अलग से आर्थिक सहायता, जमीन, मकान का अलॉटमेंट होता है। बाकी उसे सर्विस रूल्स के मुताबिक सुविधाएं मिलती हैं। जैसे- उसकी पत्नी या माता-पिता को उसकी सैलरी मिलेगी। परिवार के एक सदस्य को आश्रित कोटे से सरकारी नौकरी मिलती है। सवाल 5- शहीद की जगह सेना और सरकार किस शब्द का इस्तेमाल करती है? जवाब- सरकार ने कई बार कहा कि ‘शहीद’ कोई आधिकारिक शब्द नहीं है। फिर भी कई सरकारी बयानों में इसका इस्तेमाल होता रहा है। 2022 में सेना ने एक चिट्ठी जारी की कि अब से ‘शहीद’ शब्द न इस्तेमाल किया जाए। इसकी जगह इन शब्दों का इस्तेमाल किया जाए। सवाल 6- आतंकी हमले में नेवी और एयरफोर्स के दो अफसरों की मौत हुई। उनका क्या होगा? जवाब- पहलगाम आतंकी हमले में नौसेना और वायुसेना के दो अफसरों की मौत हुई है। इनमें विनय नरवाल नौसेना में अधिकारी थे और कोच्चि में लेफ्टिनेंट के पद पर तैनात थे। टेज हैलियांग भारतीय वायुसेना के कार्पोरल पद पर तैनात थे। दोनों अपने परिवार के साथ पहलगाम घूमने गए थे। यानी वे छुट्टी पर थे। इसलिए नियम के अनुसार उनके परिवार को कोई विशेष सुविधा नहीं मिलेगी। सवाल 7- कौन वीरगति के दर्जे में नहीं आता? जवाब- जब सेना और अर्धसैनिक बलों में किसी जवान की मौत होती है या वो लापता होता/होती है, तो इसे अलग-अलग कैटेगरी में नोट किया जाता है। ‘battle casualty’ या ‘operations casualty’ जैसे शब्द इस्तेमाल किए जाते हैं। लापता होने पर missing in action जैसी शब्दावली प्रयोग होती है। सरकार देखती है कि जान कैसे गई? सामान्य ड्यूटी के दौरान जान जाने पर एक तय मुआवजा मिलता है। सक्रिय ड्यूटी या ऑपरेशन के दौरान मौत होने पर ज्यादा मुआवजा मिलता है। ऐसे सैनिक जिनकी मौत किसी बीमारी, सड़क दुर्घटना, करंट लगने से या आत्महत्या अथवा अन्य कारण से हुई हो, वे वीरगति के दर्जे में नहीं आते। सवाल 8- वीरगति प्राप्त होने पर सैनिक के परिवार को क्या सुविधाएं मिलती हैं? जवाब- जिन सेना के जवानों को वीरगति प्राप्त होती है, उनके परिवार को कई सुविधाएं मिलती हैं। शहीद की पत्नी को पूरा वेतन, शहीद के परिवार वालों को रेल और हवाई किराए में 50 फीसदी छूट मिलती है। साथ ही राज्य सरकार की ओर से आर्थिक मदद और सरकारी नौकरी समेत कुछ अतिरिक्त सुविधाएं मिलनी शुरू हो जाती हैं। शहादत के बाद सेना में परिवार वालों को राज्य सरकार की नौकरी में कोटा, एजुकेशन इंस्टीट्यूट में उनके बच्चों के लिए सीटें रिजर्व हैं। इसके अलावा राज्य और केंद्र सरकार अलग से उस समय घोषणा कर सकती हैं। जैसे- कारगिल युद्ध में वीरगति प्राप्त करने वाले सैनिकों को पेट्रोल पंप का लाइसेंस दिया गया था। राज्यों ने अलग से आर्थिक मदद दी थी। मध्य प्रदेश में सरकार एनकाउंटर में मारे गए जवान को 1 करोड़ रुपए अलग से देती है। यूपी में जवान के परिवार को 50 लाख रुपए दिए जाते हैं। साथ ही पत्नी, बेटे-बेटी में से किसी एक को नौकरी दी जाती है। हालांकि पिछले महीने सरकार ने जवान की पत्नी, बेटा-बेटी के अलावा भाई को भी नौकरी की कैटेगरी में शामिल कर लिया है। ———————— ये खबर भी पढ़ें… शुभम की पत्नी बोलीं- मुझे एक-एक आतंकी का सफाया चाहिए:कश्मीर क्या अब तो घर से बाहर निकलने में भी डर लगता है पहलगाम हमले में मारे गए शुभम द्विवेदी की पत्नी ऐशन्या को 8 दिन बाद भी आतंकियों पर एक्शन का इंतजार है। उनकी सरकार से दो ही मांगें हैं। पहली – आतंकियों का सफाया हो। दूसरी – पति को शहीद का दर्जा दिया जाए। दैनिक भास्कर टीम ने जब ऐशन्या से पूछा- क्या दोबारा कभी कश्मीर जाना चाहेंगी? उन्होंने साफ मना कर दिया। पढ़ें पूरी खबर उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर
क्या यूपी के शुभम द्विवेदी को शहीद का दर्जा मिलेगा?:सरकार और सेना की लिखा-पढ़ी में यह शब्द ही नहीं; फिर क्यों उठती है मांग
