यूपी का नया डीजीपी कौन होगा, इस पर एक बार फिर से चर्चा तेज हो गई है। कारण यह कि यूपी समेत 7 राज्यों में कार्यवाहक डीजीपी की नियुक्ति को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जताई है। सुप्रीम कोर्ट ने कार्यवाहक डीजीपी की नियुक्ति को अवमानना का मामला मानते हुए राज्य सरकारों को नोटिस दिया है। 14 नवंबर को इस पर सुनवाई होनी है। उससे पहले क्या यूपी काे नया डीजीपी मिलेगा? अगर नया डीजीपी होगा, तो कौन हो सकता है? या फिर सरकार सुप्रीम कोर्ट में कोई और दलील पेश करेगी? दरअसल, उत्तर प्रदेश के पूर्व डीजीपी प्रकाश सिंह ने पुलिस सुधार के लिए सुप्रीम कोर्ट में एक रिट दाखिल की थी। सुप्रीम कोर्ट ने अलग-अलग आदेश जारी किए। पहला आदेश 2006 में जारी किया गया। जिसमें डीजीपी की नियुक्ति और उन्हें हटाने को लेकर विस्तृत गाइडलाइन थी। इसमें वर्तमान डीजीपी की सेवानिवृत्ति से 3 महीने पहले योग्य लोगों के नाम का पैनल यूपीएससी को भेजा जाएगा। योग्यता, अनुभव और वरिष्ठता के मुताबिक डीजीपी पद पर नियुक्ति के लिए यूपीएससी 3 नामों का पैनल तैयार करेगा। राज्य सरकार पैनल से एक की नियुक्ति करेगी। चाहे रिटायरमेंट की तिथि कुछ भी क्यों न हो, नियुक्ति कम से कम दो साल के लिए होगी। इसी तरह डीजीपी को पद से हटाने काे लेकर भी दिशा-निर्देश दिए गए थे। इस प्रक्रिया के तहत उत्तर प्रदेश में पहले हितेश चंद्र अवस्थी और फिर मुकुल गोयल की नियुक्ति हुई थी। लेकिन, पिछले विधानसभा चुनाव के बाद सरकार ने 11 मई, 2022 को मुकुल गोयल को हटा दिया था। उनकी जगह कार्यवाहक डीजीपी के तौर पर डीजी इंटेलीजेंस को जिम्मेदारी सौंप दी थी। सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट दिशा-निर्देश के बाद वह पहले कार्यवाहक डीजीपी बने। सरकार ने उन्हें परमानेंट डीजीपी बनाने के लिए यूपीएससी को पत्र भी भेजा। लेकिन, यूपीएससी ने सरकार से जवाब मांग लिया कि मुकुल गोयल को किन कारणों से डीजीपी के पद से हटाया गया? सरकार ने इसका कोई जवाब नहीं भेजा। यूपीएससी ने इसके लिए प्रदेश सरकार को रिमाइंडर भी भेजा, लेकिन कोई जवाब नहीं भेजा गया। यूपीएसएसी ने यह भी चेताया था कि अगर सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों के अनुसार डीजीपी को नहीं हटाया गया है, तो यह कोर्ट के आदेश की अवहेलना होगी। यूपी ही नहीं, इन राज्यों में भी हैं कार्यवाहक डीजीपी
यूपी के अलावा 6 अन्य राज्यों में कार्यवाहक डीजीपी काम कर रहे हैं। इनमें आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, पंजाब, उत्तराखंड, उड़ीसा और पश्चिम बंगाल में कार्यवाहक डीजीपी नियुक्त हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इन सभी राज्यों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। सरकारें चाहती हैं अपनी पसंद का डीजीपी
सरकारें कोई भी हों, वे अपनी पसंद का डीजीपी चाहती हैं। क्योंकि, उन्हें अपने हिसाब से नीतियों को लागू करना होता है। ऐसे में अगर सरकार की पसंद का डीजीपी नहीं होगा तो उस पर इसका असर भी पड़ता है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश से पहले सरकार किसी की रही हो, वह अपने पसंद का ही डीजीपी बनाती रही है। मसलन मायावती ने जब बृजलाल को डीजीपी बनाया, उस समय उन्होंने कई अधिकारियों को सुपरसीड किया था। इसी तरह मुलायम सिंह यादव ने बुआ सिंह और यशपाल सिंह जैसे अफसरों को दूसरे सीनियर अफसरों पर तरजीह देते हुए डीजीपी बनाया था। अखिलेश यादव जब यूपी के सीएम बने तो उन्होंने भी अपनी पसंद के अफसरों को ही डीजीपी बनाया। इतना ही नहीं, जब योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने सुलखान सिंह को डीजीपी बनाया। हालांकि, वह उस समय सबसे सीनियर अफसरों में से एक थे। अपराध क्षेत्र को करीब से कवर करने वाले राजेंद्र कुमार कहते हैं, पिछले कुछ साल में सिस्टम की अनदेखी की समस्या नए तरीके से सामने आई है। पहले कार्यवाहक डीजीपी का 2-4 महीने तक का अधिकतम कार्यकाल होता था। यूपी में डीएम रैंक के अफसरों को प्रभारी कमिश्नर तक बना दिया गया। इस प्रथा को मौजूदा दौर में बढ़ावा दिया गया है। कार्यवाहक डीजीपी हमेशा सरकार के पक्ष में ही खड़ा रहता है। सरकार की नीतियों को लागू करने में समय नहीं लगाता। सरकारों को ऐसे ही अफसरों की जरूरत रहती है। कौन हो सकता है डीजीपी का दावेदार
एक सवाल जो सभी के दिमाग में है, वह यह कि अगर सरकार को राहत नहीं मिलती तो प्रदेश का अगला डीजीपी कौन होगा? इसमें सबसे सीनियर तीन अफसरों की बात करें तो पहले नंबर पर सफी अहसन रिजवी हैं। हालांकि, उनके साथ एक तकनीकी दिक्कत भी है। उत्तराखंड के गठन के बाद सफी अहसन को उत्तराखंड कॉडर अलॉट कर दिया गया था। लेकिन, वह आज भी तकनीकी रूप से यूपी कॉडर में ही माने जाते हैं। वह लंबे समय से केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर हैं। ऐसे में सफी अहसन के नाम पर विचार किया जाएगा, इसकी संभावना कम ही लगती है। उनके अलावा सबसे सीनियर अफसरों में 1989 बैच के अफसरों में आशीष गुप्ता, आदित्य मिश्रा और पीवी रामाशास्त्री का नाम शामिल है। एक नजर इन अफसरों पर डालते हैं… क्या होगा प्रशांत कुमार का?
मौजूदा डीजीपी प्रशांत कुमार मौजूदा दौर के मुख्यमंत्री के सबसे भरोसेमंद अफसरों में से एक हैं। कम से कम डीजी रैंक में उनके जैसा भरोसेमंद अफसर नजर नहीं आता। ऐसे में अगर उन्हें डीजीपी के पद से हटाया जाता है, तो उन्हें किसी अहम पद की जिम्मेदारी दी जा सकती है। इसमें डीजी इंटेलिजेंस का पद सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। वहां उन्हें तैनाती दी जा सकती है। पूर्व डीजीपी सुलखान सिंह बताते हैं, सुप्रीम कोर्ट का आदेश सिर्फ डीजीपी के लिए नहीं, पब्लिक फेस करने वाले सभी पुलिस अफसरों के लिए था। इसमें एसओ, एसएचओ से लेकर डीजीपी तक शामिल थे। सुप्रीम कोर्ट चाहता था कि सभी की नियुक्तियां कम से कम 2 साल के लिए हो। उससे पहले अगर किसी अफसर को हटाया जा रहा है तो उसका स्पष्ट कारण हो। डीजीपी की नियुक्ति के लिए संघ लोकसेवा आयोग की भूमिका तय की गई थी। बाकी अफसरों की तैनाती के लिए पुलिस स्थापना बोर्ड की भूमिका तय की गई थी। यानी एसओ, एसपी, रेंज के डीआईजी, आईजी, जोन के एडीजी की तैनाती स्थापना बोर्ड के जरिए ही होनी चाहिए। लेकिन सरकारें कोई भी हों, इसे मानने को तैयार नहीं। इसकी वजह साफ है। सभी का अपना स्वार्थ है। सुप्रीम कोर्ट के फैसला केवल उस स्थिति में लागू नहीं होगा, जब राज्य पुलिस का अपना एक्ट होगा। उत्तर प्रदेश में पुलिस अधिनियम 1860 लागू है। ऐसे में यहां सुप्रीम कोर्ट का दिशा निर्देश ही लागू होगा। यह खबर भी पढ़ें कानपुर में रईस महिलाओं से नजदीकी बढ़ाता जिम ट्रेनर, नशीला शेक पिलाकर यौन उत्पीड़न और ब्लैकमेल करता था कानपुर के चर्चित एकता गुप्ता मर्डर और फिर लाश को DM कंपाउंड में दफनाने के मामले में एक और खुलासा हुआ है। जिम ट्रेनर विमल सोनी की वॉट्सऐप चैट और कॉल डिटेल से सामने आया कि वह ट्रेनिंग के दौरान रईस घराने की महिलाओं से पहले नजदीकी बढ़ाता। फिर प्रोटीन शेक में नशीली चीजें मिलाकर उनका यौन उत्पीड़न और ब्लैकमेल करता। उसके संपर्क में एक-दो नहीं, 10 से ज्यादा महिलाएं थीं। जिनके साथ उसका बेहद नजदीकी रिश्ता था। यहां पढ़ें पूरी खबर यूपी का नया डीजीपी कौन होगा, इस पर एक बार फिर से चर्चा तेज हो गई है। कारण यह कि यूपी समेत 7 राज्यों में कार्यवाहक डीजीपी की नियुक्ति को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जताई है। सुप्रीम कोर्ट ने कार्यवाहक डीजीपी की नियुक्ति को अवमानना का मामला मानते हुए राज्य सरकारों को नोटिस दिया है। 14 नवंबर को इस पर सुनवाई होनी है। उससे पहले क्या यूपी काे नया डीजीपी मिलेगा? अगर नया डीजीपी होगा, तो कौन हो सकता है? या फिर सरकार सुप्रीम कोर्ट में कोई और दलील पेश करेगी? दरअसल, उत्तर प्रदेश के पूर्व डीजीपी प्रकाश सिंह ने पुलिस सुधार के लिए सुप्रीम कोर्ट में एक रिट दाखिल की थी। सुप्रीम कोर्ट ने अलग-अलग आदेश जारी किए। पहला आदेश 2006 में जारी किया गया। जिसमें डीजीपी की नियुक्ति और उन्हें हटाने को लेकर विस्तृत गाइडलाइन थी। इसमें वर्तमान डीजीपी की सेवानिवृत्ति से 3 महीने पहले योग्य लोगों के नाम का पैनल यूपीएससी को भेजा जाएगा। योग्यता, अनुभव और वरिष्ठता के मुताबिक डीजीपी पद पर नियुक्ति के लिए यूपीएससी 3 नामों का पैनल तैयार करेगा। राज्य सरकार पैनल से एक की नियुक्ति करेगी। चाहे रिटायरमेंट की तिथि कुछ भी क्यों न हो, नियुक्ति कम से कम दो साल के लिए होगी। इसी तरह डीजीपी को पद से हटाने काे लेकर भी दिशा-निर्देश दिए गए थे। इस प्रक्रिया के तहत उत्तर प्रदेश में पहले हितेश चंद्र अवस्थी और फिर मुकुल गोयल की नियुक्ति हुई थी। लेकिन, पिछले विधानसभा चुनाव के बाद सरकार ने 11 मई, 2022 को मुकुल गोयल को हटा दिया था। उनकी जगह कार्यवाहक डीजीपी के तौर पर डीजी इंटेलीजेंस को जिम्मेदारी सौंप दी थी। सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट दिशा-निर्देश के बाद वह पहले कार्यवाहक डीजीपी बने। सरकार ने उन्हें परमानेंट डीजीपी बनाने के लिए यूपीएससी को पत्र भी भेजा। लेकिन, यूपीएससी ने सरकार से जवाब मांग लिया कि मुकुल गोयल को किन कारणों से डीजीपी के पद से हटाया गया? सरकार ने इसका कोई जवाब नहीं भेजा। यूपीएससी ने इसके लिए प्रदेश सरकार को रिमाइंडर भी भेजा, लेकिन कोई जवाब नहीं भेजा गया। यूपीएसएसी ने यह भी चेताया था कि अगर सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों के अनुसार डीजीपी को नहीं हटाया गया है, तो यह कोर्ट के आदेश की अवहेलना होगी। यूपी ही नहीं, इन राज्यों में भी हैं कार्यवाहक डीजीपी
यूपी के अलावा 6 अन्य राज्यों में कार्यवाहक डीजीपी काम कर रहे हैं। इनमें आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, पंजाब, उत्तराखंड, उड़ीसा और पश्चिम बंगाल में कार्यवाहक डीजीपी नियुक्त हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इन सभी राज्यों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। सरकारें चाहती हैं अपनी पसंद का डीजीपी
सरकारें कोई भी हों, वे अपनी पसंद का डीजीपी चाहती हैं। क्योंकि, उन्हें अपने हिसाब से नीतियों को लागू करना होता है। ऐसे में अगर सरकार की पसंद का डीजीपी नहीं होगा तो उस पर इसका असर भी पड़ता है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश से पहले सरकार किसी की रही हो, वह अपने पसंद का ही डीजीपी बनाती रही है। मसलन मायावती ने जब बृजलाल को डीजीपी बनाया, उस समय उन्होंने कई अधिकारियों को सुपरसीड किया था। इसी तरह मुलायम सिंह यादव ने बुआ सिंह और यशपाल सिंह जैसे अफसरों को दूसरे सीनियर अफसरों पर तरजीह देते हुए डीजीपी बनाया था। अखिलेश यादव जब यूपी के सीएम बने तो उन्होंने भी अपनी पसंद के अफसरों को ही डीजीपी बनाया। इतना ही नहीं, जब योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने सुलखान सिंह को डीजीपी बनाया। हालांकि, वह उस समय सबसे सीनियर अफसरों में से एक थे। अपराध क्षेत्र को करीब से कवर करने वाले राजेंद्र कुमार कहते हैं, पिछले कुछ साल में सिस्टम की अनदेखी की समस्या नए तरीके से सामने आई है। पहले कार्यवाहक डीजीपी का 2-4 महीने तक का अधिकतम कार्यकाल होता था। यूपी में डीएम रैंक के अफसरों को प्रभारी कमिश्नर तक बना दिया गया। इस प्रथा को मौजूदा दौर में बढ़ावा दिया गया है। कार्यवाहक डीजीपी हमेशा सरकार के पक्ष में ही खड़ा रहता है। सरकार की नीतियों को लागू करने में समय नहीं लगाता। सरकारों को ऐसे ही अफसरों की जरूरत रहती है। कौन हो सकता है डीजीपी का दावेदार
एक सवाल जो सभी के दिमाग में है, वह यह कि अगर सरकार को राहत नहीं मिलती तो प्रदेश का अगला डीजीपी कौन होगा? इसमें सबसे सीनियर तीन अफसरों की बात करें तो पहले नंबर पर सफी अहसन रिजवी हैं। हालांकि, उनके साथ एक तकनीकी दिक्कत भी है। उत्तराखंड के गठन के बाद सफी अहसन को उत्तराखंड कॉडर अलॉट कर दिया गया था। लेकिन, वह आज भी तकनीकी रूप से यूपी कॉडर में ही माने जाते हैं। वह लंबे समय से केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर हैं। ऐसे में सफी अहसन के नाम पर विचार किया जाएगा, इसकी संभावना कम ही लगती है। उनके अलावा सबसे सीनियर अफसरों में 1989 बैच के अफसरों में आशीष गुप्ता, आदित्य मिश्रा और पीवी रामाशास्त्री का नाम शामिल है। एक नजर इन अफसरों पर डालते हैं… क्या होगा प्रशांत कुमार का?
मौजूदा डीजीपी प्रशांत कुमार मौजूदा दौर के मुख्यमंत्री के सबसे भरोसेमंद अफसरों में से एक हैं। कम से कम डीजी रैंक में उनके जैसा भरोसेमंद अफसर नजर नहीं आता। ऐसे में अगर उन्हें डीजीपी के पद से हटाया जाता है, तो उन्हें किसी अहम पद की जिम्मेदारी दी जा सकती है। इसमें डीजी इंटेलिजेंस का पद सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। वहां उन्हें तैनाती दी जा सकती है। पूर्व डीजीपी सुलखान सिंह बताते हैं, सुप्रीम कोर्ट का आदेश सिर्फ डीजीपी के लिए नहीं, पब्लिक फेस करने वाले सभी पुलिस अफसरों के लिए था। इसमें एसओ, एसएचओ से लेकर डीजीपी तक शामिल थे। सुप्रीम कोर्ट चाहता था कि सभी की नियुक्तियां कम से कम 2 साल के लिए हो। उससे पहले अगर किसी अफसर को हटाया जा रहा है तो उसका स्पष्ट कारण हो। डीजीपी की नियुक्ति के लिए संघ लोकसेवा आयोग की भूमिका तय की गई थी। बाकी अफसरों की तैनाती के लिए पुलिस स्थापना बोर्ड की भूमिका तय की गई थी। यानी एसओ, एसपी, रेंज के डीआईजी, आईजी, जोन के एडीजी की तैनाती स्थापना बोर्ड के जरिए ही होनी चाहिए। लेकिन सरकारें कोई भी हों, इसे मानने को तैयार नहीं। इसकी वजह साफ है। सभी का अपना स्वार्थ है। सुप्रीम कोर्ट के फैसला केवल उस स्थिति में लागू नहीं होगा, जब राज्य पुलिस का अपना एक्ट होगा। उत्तर प्रदेश में पुलिस अधिनियम 1860 लागू है। ऐसे में यहां सुप्रीम कोर्ट का दिशा निर्देश ही लागू होगा। यह खबर भी पढ़ें कानपुर में रईस महिलाओं से नजदीकी बढ़ाता जिम ट्रेनर, नशीला शेक पिलाकर यौन उत्पीड़न और ब्लैकमेल करता था कानपुर के चर्चित एकता गुप्ता मर्डर और फिर लाश को DM कंपाउंड में दफनाने के मामले में एक और खुलासा हुआ है। जिम ट्रेनर विमल सोनी की वॉट्सऐप चैट और कॉल डिटेल से सामने आया कि वह ट्रेनिंग के दौरान रईस घराने की महिलाओं से पहले नजदीकी बढ़ाता। फिर प्रोटीन शेक में नशीली चीजें मिलाकर उनका यौन उत्पीड़न और ब्लैकमेल करता। उसके संपर्क में एक-दो नहीं, 10 से ज्यादा महिलाएं थीं। जिनके साथ उसका बेहद नजदीकी रिश्ता था। यहां पढ़ें पूरी खबर उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर