अयोध्या की सरयू नदी…इससे जुड़ी कई कहानियां। ये वही नदी है, जिसमें भगवान श्रीराम ने जल समाधि ली। मान्यता है कि इससे क्रोधित भगवान शिव ने श्राप दिया कि सरयू….तुम्हारा जल मंदिर में अर्पित नहीं किया जाएगा। इस नदी के 4 नाम हैं। नेपाल पहुंचने पर इन्हें कर्णाली नदी कहते हैं। कई जिलों में इसे घाघरा नदी और अयोध्या पहुंचने पर सरयू कहा जाता है। ग्रंथों में भगवान के नेत्र से नदी का उद्गम होने की वजह से इन्हें नेत्रजा भी कहते हैं। बुधवार को राम की नगरी अयोध्या में इसी सरयू की जयंती मनाई जा रही है। नदी के घाट पर प्रवचन हो रहे हैं। यहीं पर 5 जून को संतों की मौजूदगी में CM योगी ने महाआरती की थी। इस नदी का उद्गम मानसरोवर से कैसे हुआ? इसे कहीं घाघरा, तो कहीं सरयू क्यों कहा जाता है? इस नदी को सबसे पवित्र क्यों मानते हैं? इसको लेकर अयोध्या के जानकारों से बात की गई। पढ़िए पूरी रिपोर्ट… यूपी में यह नदी कहां-कहां गुजरती है, पहले ये जानिए तिब्बत से निकलती है धारा, नेपाल से होकर यूपी फिर बिहार जाती है
इस पौराणिक नदी की शुरुआत दक्षिणी तिब्बत के ऊंचे पर्वत शिखर में मापचाचुंगो हिमनद से होता है। नदी की धारा नेपाल से यूपी, बिहार होते हुए छपरा में गंगा नदी में मिलती है। लखीमपुर खीरी, सीतापुर, बहराइच से होकर नदी की धारा निकलती है। इन जिलों में इसे घाघरा कहा जाता है। बहराइच से निकलकर करनैलगंज (गोंडा), अयोध्या और फिर आजमगढ़ तक इसे सरयू नदी कहा जाता है। मऊ, गोरखपुर, देवरिया, बलिया होते हुए बलिया के दोआबा क्षेत्र के सिताब दियारा क्षेत्र में गंगा नदी में मिलती है। यहां इस नदी को एक बार फिर लोग घाघरा के नाम से ही जानते हैं। इस नदी की कुल लंबाई 1080 Km है। यूपी और बिहार में यह नदी 970 Km लंबी है। गोंडा में संगम भी, यहां दिखती हैं दो धाराएं
गोंडा के करनैलगंज में घाघरा और सरयू दोनों नदियां अलग-अलग दिखती हैं। परसपुर इलाके में पसका के त्रिमुहानी घाट पर सरयू और घाघरा का संगम होता है, जिसे संगम स्थल के नाम से जाना जाता है। अयोध्या में सरयू नदी टांडा, राजेसुल्तानपुर, दोहरीघाट होते हुए आगे बढ़ती है। आजमगढ़ के बाद सरयू नदी का कोई अस्तित्व नहीं होता। बलिया नदी को घाघरा के नाम से ही लोग जानते हैं। यह छपरा (बिहार) में गंगा से जाकर मिल जाती है। सरयू और घाघरा नाम पर अयोध्या के हरि गोपाल मंदिर के जगतगुरु राम दिनेशाचार्य से सवाल-जवाब सवाल- इसे कहीं घाघरा तो कहीं सरयू नदी क्यों कहा जाता है?
जगतगुरु- मां सरयू मानसरोवर से निकली हैं। इस नदी की धारा कई जगह पर जमीन के नीचे गुप्त रूप से बहती है। इस नदी के नाम को लेकर लोगों में भ्रम की स्थिति रहती है कि इसका नाम सरयू है या घाघरा है। बता दूं, सरयू का ही उपनाम घाघरा है। क्योंकि, सतयुग में इनकी धार इतनी तेज थी कि इसकी आवाज घरघराती थी। इससे नदी का नाम घाघरा पड़ा। सवाल- इस नदी का महत्व क्या है?
जगतगुरु- इस नदी का एक नाम नेत्रजा है। कहा जाता है कि भगवान की जो करुणा हुई, उनकी आंख से निकले आंसू को ब्रह्माजी ने अपने कमंडल में रखा। फिर मानसरोवर से इसको प्रवाहित किया। ये धारा नेपाल, यूपी होकर बिहार के छपरा में गंगा नदी से मिलती है। ये अकेली नदी है, जिसे भगवान की लीलाएं देखने का सौभाग्य मिला है। सवाल- इस नदी को सबसे पवित्र नदी क्यों कहा जाता है?
जगतगुरु- ये एकमात्र नदी हैं, जो अविवाहित है। इसलिए इन्हें सबसे ज्यादा पवित्र माना जाता है। ऐसा मानते हैं कि सरयूजी गंगा से भी ज्यादा पवित्र हैं, क्योंकि गंगा भगवान के नाखून से पैदा हुई थीं। जबकि सरयू नदी आंख से उत्पन्न हुई। गंगाजी इनकी छोटी बहन हैं। रामायण सर्किट में सरयू के आसपास का एरिया डेवलप होगा
प्रदेश सरकार की ओर से घाघरा का नाम सरयू किए जाने के बाद अब इस नदी का दायरा बिहार तक हो सकता है। यह नदी करीब 1 हजार किमी लंबी हो जाएगी। दरअसल, योगी सरकार ने रामायण काल में सरयू के महत्व को देखते हुए घाघरा का नाम सरयू किए जाने का फैसला लिया है। इससे अब सरयू नदी का विस्तार होने के साथ ही विकास की उम्मीद भी बढ़ी है। माना जा रहा है, रामायण सर्किट के विकास में सरयू तटों का विकास भी होगा। अयोध्या के 12 से ज्यादा गांव और नदी के तटवर्ती क्षेत्र 84 कोसी परिक्रमा में शामिल हैं। ऐसे में क्षेत्र का पौराणिक महत्व भी बढ़ेगा। 5 महीने पहले योगी कैबिनेट ने घाघरा का नाम सरयू करने का प्रस्ताव पास किया था
13 जनवरी, 2025 को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में कैबिनेट बैठक हुई। प्रस्ताव रखा गया कि घाघरा नदी को सरयू का नाम दिया जाए। इसके बाद गोंडा के पसका सूंकर क्षेत्र के ग्राम चंदापुर किटौली से रेवलगंज (बिहार) तक राजस्व अभिलेखों में घाघरा नदी का नाम बदल कर सरयू नदी करने का आदेश जारी किया गया। घाघरा नदी नेपाल के बाद यूपी और बिहार से होकर गुजरती है। छपरा (बिहार) में यह नदी गंगा में मिलती है। इस नदी को राष्ट्रीय संपदा कहा गया। संविधान की संघ सूची के क्रमांक-56 पर नदी का उल्लेख है। इसलिए घाघरा के नाम बदलाव के इस प्रस्ताव को केंद्र सरकार को भेजा गया है। मंजूरी मिलने के बाद ही घाघरा, सरयू नदी कहलाएगी। चूंकि योगी आदित्यनाथ के फोकस में अयोध्या, राम मंदिर और सरयू नदी रहे हैं, इसलिए नदी के नाम को सरयू किए जाने के फैसले को इससे जोड़कर देखा जा रहा है। सरयू में कौन-सी नदियां मिलती हैं – सहायक नदियां- कुवाना, राप्ती और छोटी गंडक नदियां, सभी उत्तर की ओर पहाड़ों से सरयू में मिलती हैं। लखीमपुर खीरी की धौरहरा तहसील में नेपाल से आने वाली गेरूआ और करनाली नदियां मिलती हैं। नदी को पानी कहां से मिलता है –
दक्षिण एशियाई मानसून और हिमालय में इसके स्रोत क्षेत्र में हिमनदों के पिघलने से पानी मिलता है। गर्मियों के मानसून (जून से सितंबर) के दौरान भारी बारिश होती है। ग्लेशियर उसी अवधि में नदी को सबसे अधिक पानी देता है। ————————– यह खबर भी पढ़ें : कबीरपंथी 5 वक्त की करते हैं ‘बंदगी’, प्रसाद में मिलता है धागा, काशी में कबीरचौरा के कुआं की मिट्टी-पानी की करते हैं पूजा आज हम लहरतारा में मौजूद हैं, ये वही जगह है जहां 1398 ई. में कबीरदास का प्राकट्य हुआ था। यहां 20 देशों से 3 लाख लोग पहुंच रहे हैं। पहले जो प्राकट्य स्थल था, आज वहां संत कबीरदास का स्मारक बनाया जा चुका है। अंदर कबीर की मूर्ति और सामने ज्योति जल रही है। पढ़िए पूरी खबर… अयोध्या की सरयू नदी…इससे जुड़ी कई कहानियां। ये वही नदी है, जिसमें भगवान श्रीराम ने जल समाधि ली। मान्यता है कि इससे क्रोधित भगवान शिव ने श्राप दिया कि सरयू….तुम्हारा जल मंदिर में अर्पित नहीं किया जाएगा। इस नदी के 4 नाम हैं। नेपाल पहुंचने पर इन्हें कर्णाली नदी कहते हैं। कई जिलों में इसे घाघरा नदी और अयोध्या पहुंचने पर सरयू कहा जाता है। ग्रंथों में भगवान के नेत्र से नदी का उद्गम होने की वजह से इन्हें नेत्रजा भी कहते हैं। बुधवार को राम की नगरी अयोध्या में इसी सरयू की जयंती मनाई जा रही है। नदी के घाट पर प्रवचन हो रहे हैं। यहीं पर 5 जून को संतों की मौजूदगी में CM योगी ने महाआरती की थी। इस नदी का उद्गम मानसरोवर से कैसे हुआ? इसे कहीं घाघरा, तो कहीं सरयू क्यों कहा जाता है? इस नदी को सबसे पवित्र क्यों मानते हैं? इसको लेकर अयोध्या के जानकारों से बात की गई। पढ़िए पूरी रिपोर्ट… यूपी में यह नदी कहां-कहां गुजरती है, पहले ये जानिए तिब्बत से निकलती है धारा, नेपाल से होकर यूपी फिर बिहार जाती है
इस पौराणिक नदी की शुरुआत दक्षिणी तिब्बत के ऊंचे पर्वत शिखर में मापचाचुंगो हिमनद से होता है। नदी की धारा नेपाल से यूपी, बिहार होते हुए छपरा में गंगा नदी में मिलती है। लखीमपुर खीरी, सीतापुर, बहराइच से होकर नदी की धारा निकलती है। इन जिलों में इसे घाघरा कहा जाता है। बहराइच से निकलकर करनैलगंज (गोंडा), अयोध्या और फिर आजमगढ़ तक इसे सरयू नदी कहा जाता है। मऊ, गोरखपुर, देवरिया, बलिया होते हुए बलिया के दोआबा क्षेत्र के सिताब दियारा क्षेत्र में गंगा नदी में मिलती है। यहां इस नदी को एक बार फिर लोग घाघरा के नाम से ही जानते हैं। इस नदी की कुल लंबाई 1080 Km है। यूपी और बिहार में यह नदी 970 Km लंबी है। गोंडा में संगम भी, यहां दिखती हैं दो धाराएं
गोंडा के करनैलगंज में घाघरा और सरयू दोनों नदियां अलग-अलग दिखती हैं। परसपुर इलाके में पसका के त्रिमुहानी घाट पर सरयू और घाघरा का संगम होता है, जिसे संगम स्थल के नाम से जाना जाता है। अयोध्या में सरयू नदी टांडा, राजेसुल्तानपुर, दोहरीघाट होते हुए आगे बढ़ती है। आजमगढ़ के बाद सरयू नदी का कोई अस्तित्व नहीं होता। बलिया नदी को घाघरा के नाम से ही लोग जानते हैं। यह छपरा (बिहार) में गंगा से जाकर मिल जाती है। सरयू और घाघरा नाम पर अयोध्या के हरि गोपाल मंदिर के जगतगुरु राम दिनेशाचार्य से सवाल-जवाब सवाल- इसे कहीं घाघरा तो कहीं सरयू नदी क्यों कहा जाता है?
जगतगुरु- मां सरयू मानसरोवर से निकली हैं। इस नदी की धारा कई जगह पर जमीन के नीचे गुप्त रूप से बहती है। इस नदी के नाम को लेकर लोगों में भ्रम की स्थिति रहती है कि इसका नाम सरयू है या घाघरा है। बता दूं, सरयू का ही उपनाम घाघरा है। क्योंकि, सतयुग में इनकी धार इतनी तेज थी कि इसकी आवाज घरघराती थी। इससे नदी का नाम घाघरा पड़ा। सवाल- इस नदी का महत्व क्या है?
जगतगुरु- इस नदी का एक नाम नेत्रजा है। कहा जाता है कि भगवान की जो करुणा हुई, उनकी आंख से निकले आंसू को ब्रह्माजी ने अपने कमंडल में रखा। फिर मानसरोवर से इसको प्रवाहित किया। ये धारा नेपाल, यूपी होकर बिहार के छपरा में गंगा नदी से मिलती है। ये अकेली नदी है, जिसे भगवान की लीलाएं देखने का सौभाग्य मिला है। सवाल- इस नदी को सबसे पवित्र नदी क्यों कहा जाता है?
जगतगुरु- ये एकमात्र नदी हैं, जो अविवाहित है। इसलिए इन्हें सबसे ज्यादा पवित्र माना जाता है। ऐसा मानते हैं कि सरयूजी गंगा से भी ज्यादा पवित्र हैं, क्योंकि गंगा भगवान के नाखून से पैदा हुई थीं। जबकि सरयू नदी आंख से उत्पन्न हुई। गंगाजी इनकी छोटी बहन हैं। रामायण सर्किट में सरयू के आसपास का एरिया डेवलप होगा
प्रदेश सरकार की ओर से घाघरा का नाम सरयू किए जाने के बाद अब इस नदी का दायरा बिहार तक हो सकता है। यह नदी करीब 1 हजार किमी लंबी हो जाएगी। दरअसल, योगी सरकार ने रामायण काल में सरयू के महत्व को देखते हुए घाघरा का नाम सरयू किए जाने का फैसला लिया है। इससे अब सरयू नदी का विस्तार होने के साथ ही विकास की उम्मीद भी बढ़ी है। माना जा रहा है, रामायण सर्किट के विकास में सरयू तटों का विकास भी होगा। अयोध्या के 12 से ज्यादा गांव और नदी के तटवर्ती क्षेत्र 84 कोसी परिक्रमा में शामिल हैं। ऐसे में क्षेत्र का पौराणिक महत्व भी बढ़ेगा। 5 महीने पहले योगी कैबिनेट ने घाघरा का नाम सरयू करने का प्रस्ताव पास किया था
13 जनवरी, 2025 को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में कैबिनेट बैठक हुई। प्रस्ताव रखा गया कि घाघरा नदी को सरयू का नाम दिया जाए। इसके बाद गोंडा के पसका सूंकर क्षेत्र के ग्राम चंदापुर किटौली से रेवलगंज (बिहार) तक राजस्व अभिलेखों में घाघरा नदी का नाम बदल कर सरयू नदी करने का आदेश जारी किया गया। घाघरा नदी नेपाल के बाद यूपी और बिहार से होकर गुजरती है। छपरा (बिहार) में यह नदी गंगा में मिलती है। इस नदी को राष्ट्रीय संपदा कहा गया। संविधान की संघ सूची के क्रमांक-56 पर नदी का उल्लेख है। इसलिए घाघरा के नाम बदलाव के इस प्रस्ताव को केंद्र सरकार को भेजा गया है। मंजूरी मिलने के बाद ही घाघरा, सरयू नदी कहलाएगी। चूंकि योगी आदित्यनाथ के फोकस में अयोध्या, राम मंदिर और सरयू नदी रहे हैं, इसलिए नदी के नाम को सरयू किए जाने के फैसले को इससे जोड़कर देखा जा रहा है। सरयू में कौन-सी नदियां मिलती हैं – सहायक नदियां- कुवाना, राप्ती और छोटी गंडक नदियां, सभी उत्तर की ओर पहाड़ों से सरयू में मिलती हैं। लखीमपुर खीरी की धौरहरा तहसील में नेपाल से आने वाली गेरूआ और करनाली नदियां मिलती हैं। नदी को पानी कहां से मिलता है –
दक्षिण एशियाई मानसून और हिमालय में इसके स्रोत क्षेत्र में हिमनदों के पिघलने से पानी मिलता है। गर्मियों के मानसून (जून से सितंबर) के दौरान भारी बारिश होती है। ग्लेशियर उसी अवधि में नदी को सबसे अधिक पानी देता है। ————————– यह खबर भी पढ़ें : कबीरपंथी 5 वक्त की करते हैं ‘बंदगी’, प्रसाद में मिलता है धागा, काशी में कबीरचौरा के कुआं की मिट्टी-पानी की करते हैं पूजा आज हम लहरतारा में मौजूद हैं, ये वही जगह है जहां 1398 ई. में कबीरदास का प्राकट्य हुआ था। यहां 20 देशों से 3 लाख लोग पहुंच रहे हैं। पहले जो प्राकट्य स्थल था, आज वहां संत कबीरदास का स्मारक बनाया जा चुका है। अंदर कबीर की मूर्ति और सामने ज्योति जल रही है। पढ़िए पूरी खबर… उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर
घाघरा कैसे सरयू हुई…अयोध्या के संत ने बताए 4 नाम:मानसरोवर से निकली, मंदिरों में नहीं चढ़ता इस नदी का जल
