घाटों पर स्नान करती महिलाओं के वीडियो बनाने के मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने नाराजगी जताई है। कोर्ट ने गाजियाबाद के गंगनहर घाट पर नहाती महिलाओं के वीडियो बनाने वाले आरोपी के मामले में प्रमुख सचिव से जवाब मांगा है। कोर्ट ने कहा- यूं हलफनामे से काम नहीं चलेगा। प्रमुख सचिव के अधिकारी जांच कर रिपोर्ट दाखिल करें। हाईकोर्ट ने गाजियाबाद के गंगानगर घाट पर नहाती महिलाओ का वीडियो बनाने के आरोपी महंत मुकेश गिरी के मामले में पुलिस द्वारा कोर्ट में सबूत छिपाकर हलफनामा दाखिल करने पर नाराजगी जताई है। कोर्ट ने मुख्य सचिव को निर्देश दिया है कि वह प्रमुख सचिव स्तर के अधिकारी से जांच कराएं। 12 सितंबर तक जांच रिपोर्ट सीलबंद लिफाफे में दाखिल करें। यह आदेश जस्टिस विक्रम डी चौहान ने मुकेश गिरी की अग्रिम जमानत अर्जी याचिका पर दिया। ठोस सबूत छिपाए गए, न्यूज रिपोर्ट पेश की
कोर्ट ने मुरादनगर पुलिस से महंत के खिलाफ जुटाए गए सबूत सहित जवाबी हलफनामे दाखिल करने का आदेश दिया। विवेचक दरोगा रामपाल सिंह ने बतौर सबूत न्यूज रिपोर्ट और महिला आयोग के पत्र दाखिल किया है। कोर्ट ने कहा- ठोस सबूत छिपा लिए गए। कोर्ट ने दरोगा की भूमिका को लेकर पुलिस उपायुक्त गाजियाबाद से हलफनामा मांगा है। कोर्ट ने पूछा कि महिला आयोग का पत्र और न्यूज रिपोर्ट किस तरह से आरोपी के खिलाफ सबूत माने जाएंगे। पुलिस उपायुक्त कोर्ट के सवालों का जवाब नहीं दे सके
पुलिस उपायुक्त की ओर से कोर्ट को बताया गया कि भ्रामक हलफनामा दाखिल करने वाले दरोगा के खिलाफ विभागीय कार्रवाई शुरू कर दी गई है। हालांकि, पुलिस उपायुक्त ने भी कोर्ट के पूछे सवालों के सटीक जवाब नहीं दे सके। इस पर कोर्ट ने मुख्य सचिव को प्रमुख सचिव स्तर के अधिकारी से इस पूरी घटना की जांच कराने का आदेश दिया। कोई बोला- अधिकारी पीड़ित को न्याय दिलाने में रुचि नहीं ले रहे
कोर्ट ने पुलिस विभाग, अभियोजन कार्यालय और शासकीय अधिवक्ता कार्यालय की कार्यशैली पर भी सवाल उठाए हैं। कहा कि अभियोजन निदेशक का कार्यालय डाकघर की तरह काम नहीं कर सकता। मौजूदा मामले में प्रथम दृष्टया लग रहा है कि अधिकारी पीड़ित को न्याय देने में रुचि नहीं ले रहे। ऐसी लापरवाही के लिए जिम्मेदार कौन?
कोर्ट ने कहा- क्या पुलिस विभाग सारे सबूत निदेशक अभियोजन और शासकीय अधिवक्ता कार्यालय को भेजा था। यदि नहीं, तो इन दोनों कार्यालयों में से किसी ने सबूत मांगे थे क्या? जवाबी हलफनामा क्या सरकारी खजाने के खर्च से टाइप कराया गया या किसी बाहरी टाइपिस्ट से कराया गया। किसने ड्राफ्ट तैयार किया? क्या निदेशक अभियोजन कार्यालय, शासकीय अधिवक्ता कार्यालय ने जवाब तैयार करने से पहले तथ्यों की जांच की? कोर्ट में सही तथ्य पेश न करने की ऐसी लापरवाही के लिए जिम्मेदार कौन है? ऐसे ही कई सवालों की जांच कर रिपोर्ट पेश करनी है। घाटों पर स्नान करती महिलाओं के वीडियो बनाने के मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने नाराजगी जताई है। कोर्ट ने गाजियाबाद के गंगनहर घाट पर नहाती महिलाओं के वीडियो बनाने वाले आरोपी के मामले में प्रमुख सचिव से जवाब मांगा है। कोर्ट ने कहा- यूं हलफनामे से काम नहीं चलेगा। प्रमुख सचिव के अधिकारी जांच कर रिपोर्ट दाखिल करें। हाईकोर्ट ने गाजियाबाद के गंगानगर घाट पर नहाती महिलाओ का वीडियो बनाने के आरोपी महंत मुकेश गिरी के मामले में पुलिस द्वारा कोर्ट में सबूत छिपाकर हलफनामा दाखिल करने पर नाराजगी जताई है। कोर्ट ने मुख्य सचिव को निर्देश दिया है कि वह प्रमुख सचिव स्तर के अधिकारी से जांच कराएं। 12 सितंबर तक जांच रिपोर्ट सीलबंद लिफाफे में दाखिल करें। यह आदेश जस्टिस विक्रम डी चौहान ने मुकेश गिरी की अग्रिम जमानत अर्जी याचिका पर दिया। ठोस सबूत छिपाए गए, न्यूज रिपोर्ट पेश की
कोर्ट ने मुरादनगर पुलिस से महंत के खिलाफ जुटाए गए सबूत सहित जवाबी हलफनामे दाखिल करने का आदेश दिया। विवेचक दरोगा रामपाल सिंह ने बतौर सबूत न्यूज रिपोर्ट और महिला आयोग के पत्र दाखिल किया है। कोर्ट ने कहा- ठोस सबूत छिपा लिए गए। कोर्ट ने दरोगा की भूमिका को लेकर पुलिस उपायुक्त गाजियाबाद से हलफनामा मांगा है। कोर्ट ने पूछा कि महिला आयोग का पत्र और न्यूज रिपोर्ट किस तरह से आरोपी के खिलाफ सबूत माने जाएंगे। पुलिस उपायुक्त कोर्ट के सवालों का जवाब नहीं दे सके
पुलिस उपायुक्त की ओर से कोर्ट को बताया गया कि भ्रामक हलफनामा दाखिल करने वाले दरोगा के खिलाफ विभागीय कार्रवाई शुरू कर दी गई है। हालांकि, पुलिस उपायुक्त ने भी कोर्ट के पूछे सवालों के सटीक जवाब नहीं दे सके। इस पर कोर्ट ने मुख्य सचिव को प्रमुख सचिव स्तर के अधिकारी से इस पूरी घटना की जांच कराने का आदेश दिया। कोई बोला- अधिकारी पीड़ित को न्याय दिलाने में रुचि नहीं ले रहे
कोर्ट ने पुलिस विभाग, अभियोजन कार्यालय और शासकीय अधिवक्ता कार्यालय की कार्यशैली पर भी सवाल उठाए हैं। कहा कि अभियोजन निदेशक का कार्यालय डाकघर की तरह काम नहीं कर सकता। मौजूदा मामले में प्रथम दृष्टया लग रहा है कि अधिकारी पीड़ित को न्याय देने में रुचि नहीं ले रहे। ऐसी लापरवाही के लिए जिम्मेदार कौन?
कोर्ट ने कहा- क्या पुलिस विभाग सारे सबूत निदेशक अभियोजन और शासकीय अधिवक्ता कार्यालय को भेजा था। यदि नहीं, तो इन दोनों कार्यालयों में से किसी ने सबूत मांगे थे क्या? जवाबी हलफनामा क्या सरकारी खजाने के खर्च से टाइप कराया गया या किसी बाहरी टाइपिस्ट से कराया गया। किसने ड्राफ्ट तैयार किया? क्या निदेशक अभियोजन कार्यालय, शासकीय अधिवक्ता कार्यालय ने जवाब तैयार करने से पहले तथ्यों की जांच की? कोर्ट में सही तथ्य पेश न करने की ऐसी लापरवाही के लिए जिम्मेदार कौन है? ऐसे ही कई सवालों की जांच कर रिपोर्ट पेश करनी है। उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर