हरियाणा के नितेश कुमार जो चरखी दादरी के नांदा गांव से ताल्लुक रखते हैं। जिन्होंने आज पैरा बैडमिंटन पेरिस पैरालंपिक के पुरुष एकल एसएल 3 वर्ग में स्वर्ण पदक जीतकर देश का नाम रोशन किया है। फाइनल मुकाबले में उन्होंने ग्रेट ब्रिटेन के डेनियल बेथेल को 21-14, 18-21, 23-21 के स्कोर से मात दी। इस जीत ने नितेश की कठिनाइयों और संघर्षों से भरी यात्रा को एक शानदार अंत दिया है। सीएम सैनी ने दी बधाई नितेश कुमार की इस उपलब्धि पर हरियाणा के सीएम नायब सिंह सैनी ने उन्हें बधाई दी है। सीएम सैनी ने सोशल साइट एक्स पर लिखा, “हरियाणा के बाढ़डा के नांधा गांव के लाल नितेश कुमार ने मेंस सिंगल्स SL3 – बैडमिंटन में स्वर्ण पदक जीतकर देश का नाम रोशन किया है। इस स्वर्णिम उपलब्धि के लिए आपको हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं। आप भविष्य में भी ऐसे ही सफलता के नए आयाम छूते रहें। हम सभी को आप पर गर्व है।” हादसे ने छीना पैर, लेकिन नहीं तोड़ी हिम्मत 2009 में जब नितेश केवल 15 साल के थे, विशाखापत्तनम में एक ट्रेन हादसे ने उनकी जिंदगी को हिला कर रख दिया था। इस हादसे में नितेश ने अपना एक पैर खो दिया, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। यह वही समय था जब उन्होंने अपने सपनों को नया आकार देने का फैसला किया। महीनों तक बिस्तर पर रहने के बाद नितेश ने खेल को अपने जीवन का नया मकसद बना लिया और बैडमिंटन को अपनी शक्ति का स्रोत बनाया। IIT मंडी से इंजीनियरिंग, खेल में पाया नया मुकाम नितेश ने अपनी पढ़ाई आईआईटी मंडी से बीटेक में की है, लेकिन उनकी असली पहचान बैडमिंटन में मिली। पढ़ाई के दौरान बैडमिंटन के प्रति उनकी रुचि बढ़ी और उन्होंने इसे ही अपने करियर का हिस्सा बना लिया।वर्तमान में, नितेश करनाल के कर्ण स्टेडियम में कोच के रूप में सेवा दे रहे हैं, जहां वह युवा खिलाड़ियों को प्रशिक्षण दे रहे हैं। नितेश परिजनों का मानना है कि खेल ने ही उसे जीवन में नई दिशा दी। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी दिखाया दम नितेश की खेल उपलब्धियों की सूची लंबी है। उन्होंने 2018 में एशियन गेम्स में कांस्य पदक जीता, 2019 में वर्ल्ड चैंपियनशिप में रजत पदक हासिल किया, और 2022 और 2024 की वर्ल्ड चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीते। पेरिस पैरालंपिक में स्वर्ण पदक उनकी अब तक की सबसे बड़ी उपलब्धि है, जिसने उन्हें एक नए मुकाम पर पहुंचा दिया है। पिता से मिली प्रेरणा, कोच ने दिखाई राह नितेश के पिता, जो पहले नौसेना में थे और अब राजस्थान में एक निजी कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत हैं, हमेशा से नितेश के प्रेरणा स्रोत रहे हैं। नितेश का सपना था कि वह भी अपने पिता की तरह वर्दी पहनें, लेकिन हादसे के बाद उन्होंने खेल को अपने जीवन का हिस्सा बना लिया। उनके कोच और परिवार ने उन्हें हमेशा आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया। गांव में जश्न का माहौल नितेश की इस ऐतिहासिक जीत के बाद उनके गांव नांदा में जश्न का माहौल है। गांव के लोग उनके परिवार के साथ मिलकर उनकी इस बड़ी उपलब्धि का जश्न मना रहे हैं। नितेश की यह जीत न केवल उनके परिवार के लिए, बल्कि पूरे देश के लिए गर्व का विषय है। हरियाणा के नितेश कुमार जो चरखी दादरी के नांदा गांव से ताल्लुक रखते हैं। जिन्होंने आज पैरा बैडमिंटन पेरिस पैरालंपिक के पुरुष एकल एसएल 3 वर्ग में स्वर्ण पदक जीतकर देश का नाम रोशन किया है। फाइनल मुकाबले में उन्होंने ग्रेट ब्रिटेन के डेनियल बेथेल को 21-14, 18-21, 23-21 के स्कोर से मात दी। इस जीत ने नितेश की कठिनाइयों और संघर्षों से भरी यात्रा को एक शानदार अंत दिया है। सीएम सैनी ने दी बधाई नितेश कुमार की इस उपलब्धि पर हरियाणा के सीएम नायब सिंह सैनी ने उन्हें बधाई दी है। सीएम सैनी ने सोशल साइट एक्स पर लिखा, “हरियाणा के बाढ़डा के नांधा गांव के लाल नितेश कुमार ने मेंस सिंगल्स SL3 – बैडमिंटन में स्वर्ण पदक जीतकर देश का नाम रोशन किया है। इस स्वर्णिम उपलब्धि के लिए आपको हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं। आप भविष्य में भी ऐसे ही सफलता के नए आयाम छूते रहें। हम सभी को आप पर गर्व है।” हादसे ने छीना पैर, लेकिन नहीं तोड़ी हिम्मत 2009 में जब नितेश केवल 15 साल के थे, विशाखापत्तनम में एक ट्रेन हादसे ने उनकी जिंदगी को हिला कर रख दिया था। इस हादसे में नितेश ने अपना एक पैर खो दिया, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। यह वही समय था जब उन्होंने अपने सपनों को नया आकार देने का फैसला किया। महीनों तक बिस्तर पर रहने के बाद नितेश ने खेल को अपने जीवन का नया मकसद बना लिया और बैडमिंटन को अपनी शक्ति का स्रोत बनाया। IIT मंडी से इंजीनियरिंग, खेल में पाया नया मुकाम नितेश ने अपनी पढ़ाई आईआईटी मंडी से बीटेक में की है, लेकिन उनकी असली पहचान बैडमिंटन में मिली। पढ़ाई के दौरान बैडमिंटन के प्रति उनकी रुचि बढ़ी और उन्होंने इसे ही अपने करियर का हिस्सा बना लिया।वर्तमान में, नितेश करनाल के कर्ण स्टेडियम में कोच के रूप में सेवा दे रहे हैं, जहां वह युवा खिलाड़ियों को प्रशिक्षण दे रहे हैं। नितेश परिजनों का मानना है कि खेल ने ही उसे जीवन में नई दिशा दी। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी दिखाया दम नितेश की खेल उपलब्धियों की सूची लंबी है। उन्होंने 2018 में एशियन गेम्स में कांस्य पदक जीता, 2019 में वर्ल्ड चैंपियनशिप में रजत पदक हासिल किया, और 2022 और 2024 की वर्ल्ड चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीते। पेरिस पैरालंपिक में स्वर्ण पदक उनकी अब तक की सबसे बड़ी उपलब्धि है, जिसने उन्हें एक नए मुकाम पर पहुंचा दिया है। पिता से मिली प्रेरणा, कोच ने दिखाई राह नितेश के पिता, जो पहले नौसेना में थे और अब राजस्थान में एक निजी कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत हैं, हमेशा से नितेश के प्रेरणा स्रोत रहे हैं। नितेश का सपना था कि वह भी अपने पिता की तरह वर्दी पहनें, लेकिन हादसे के बाद उन्होंने खेल को अपने जीवन का हिस्सा बना लिया। उनके कोच और परिवार ने उन्हें हमेशा आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया। गांव में जश्न का माहौल नितेश की इस ऐतिहासिक जीत के बाद उनके गांव नांदा में जश्न का माहौल है। गांव के लोग उनके परिवार के साथ मिलकर उनकी इस बड़ी उपलब्धि का जश्न मना रहे हैं। नितेश की यह जीत न केवल उनके परिवार के लिए, बल्कि पूरे देश के लिए गर्व का विषय है। हरियाणा | दैनिक भास्कर
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हरियाणा चुनाव के बीच कांग्रेस दोफाड़:भूपेंद्र-दीपेंद्र हुड्डा प्रचार में डटे लेकिन सैलजा समर्थक 5 उम्मीदवारों से दूरी; सिरसा सांसद नाराज होकर घर बैठीं हरियाणा विधानसभा चुनाव से पहले राज्य में कांग्रेस दोफाड़ हो गई है। टिकट बंटवारे के बाद से ही चुनाव प्रचार के दौरान सांसद कुमारी सैलजा कहीं दिखाई नहीं दे रहीं। वहीं, पूर्व CM भूपेंद्र हुड्डा उन पार्टी उम्मीदवारों को सपोर्ट नहीं कर रहे, जिन्हें सैलजा की पैरवी से टिकट मिला है। ऐसे में प्रदेश की 5 सीटों पर पार्टी कमजोर हो चली है। सैलजा की अनुपस्थिति में ये 5 सीटों के उम्मीदवार अपना चुनाव प्रचार खुद ही कर रहे हैं। इनकी टक्कर भाजपा के बड़े चेहरों से है, इसलिए इन उम्मीदवारों की जीत की डगर काफी मुश्किल है। कांग्रेस कैंडिडेट के सामने बेटी उतारकर मुश्किल बढ़ाई
अंबाला सिटी से हुड्डा गुट के कांग्रेस उम्मीदवार निर्मल सिंह ने अपनी ही बेटी चित्रा सरवारा को अंबाला कैंट विधानसभा से निर्दलीय चुनावी मैदान में उतार दिया है। इससे कांग्रेस कैंडिडेट परविंदर परी की मुसीबत बढ़ गई है। इस सीट पर उनका मुकाबला पहले से ही कड़ा था, क्योंकि यहां से भाजपा ने पूर्व गृह मंत्री अनिल विज को टिकट दिया है। वहीं, हिसार में कांग्रेस कैंडिडेट राम निवास राड़ा को हुड्डा समर्थकों का खुलकर समर्थन नहीं मिल रहा है। इसके अलावा फतेहाबाद विधानसभा में हुड्डा के नजदीकी नेताओं ने बलवान सिंह दौतलपुरिया के प्रचार से दूरी बना ली है। अंबाला में सैलजा का खुद का जनाधार
हालांकि, पंचकूला में पूर्व डिप्टी CM चंद्रमोहन बिश्नोई और जगाधरी विधानसभा से पूर्व डिप्टी स्पीकर अकरम खान मजबूती से चुनाव लड़ रहे हैं, लेकिन भाजपा से यहां उन्हें सीधी टक्कर मिल रही है। चुनाव प्रचार में दोनों को कुमारी सैलजा की कमी खल रही है। कांग्रेस की वरिष्ठ नेता और मौजूदा सांसद कुमारी सैलजा अंबाला से सांसद रह चुकी हैं। यहां उनका अपना जनाधार भी है। इन सभी पांचों सीटों पर कांग्रेस को 2019 में हार का सामना करना पड़ा था। खास बात यह है कि इन सीटों पर भाजपा के विधायक ही चुनाव लड़ हैं। इनमें से विधानसभा स्पीकर सहित 3 कैबिनेट मंत्री हैं। सैलजा समर्थकों की सीटें इस तरह फंसीं फतेहाबाद : यहां कांग्रेस ने बलवान सिंह दौलतपुरिया को मैदान में उतारा है। बलवान सिंह 2014 में यहां से इनेलो की टिकट पर विधायक बने थे। 2019 में उन्होंने चुनाव नहीं लड़ा। अब उन्हें टिकट मिला है तो कांग्रेस नेताओं और हुड्डा समर्थकों प्रह्लाद सिंह गिल्लाखेड़ा, डॉ. वीरेंद्र सिवाच सहित कई ने प्रचार से दूरी बना ली है। हुड्डा के ये समर्थक अपने लिए टिकट की दावेदारी जता रहे थे, लेकिन पार्टी हाईकमान ने बलवान सिंह को टिकट दे दिया। अब वह अकेले मैदान में डटे हुए हैं। यहां बलवान की टक्कर भाजपा नेता कुलदीप बिश्नोई के भाई भाजपा कैंडिडेट दुड़ाराम बिश्नोई और इनेलो की सुनैना चौटाला से है। पंचकूला : पूर्व CM भजनलाल के बड़े बेटे पूर्व डिप्टी CM चंद्रमोहन बिश्नोई कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। पिछली बार वह भाजपा के ज्ञानचंद गुप्ता से हार गए थे। इस बार भी ज्ञानचंद से ही उनका मुकाबला है। पंचकूला से 2019 में BJP के ज्ञान चंद गुप्ता ने करीब 6 हजार वोटों से चंद्र मोहन को हराया था। वहीं, 2014 में भी ज्ञान चंद गुप्ता ने यहां से जीत हासिल की थी। हिसार : कांग्रेस की टिकट पर राम निवास राड़ा यहां से दूसरी बार चुनावी मैदान में हैं। राड़ा 2019 चुनाव में बुरी तरह हारे थे। भाजपा के डॉ. कमल गुप्ता ने राड़ा को हराया था। कमल गुप्ता इसके बाद कैबिनेट मंत्री बने। इस बार मुकाबला और कड़ा है। यहां निर्दलीय उम्मीदवार सावित्री जिंदल भी मैदान में हैं, जो 2 बार विधायक रह चुकी हैं। वहीं, कमल गुप्ता भी 2 बार के विधायक हैं। हुड्डा खेमे के अधिकतर लोग टिकट न मिलने से नाराज हैं। जगाधरी : सैजला गुट के अकरम खान यहां लगातार सक्रिय हैं, लेकिन 2 बार से हार रहे हैं। इस बार भी उनकी टक्कर भाजपा कैंडिडेट कंवरपाल गुर्जर से हैं। कंवरपाल कैबिनेट में 10 साल मंत्री रहे हैं। अकरम खान को यहां टिकट कटने वालों का साथ नहीं मिल रहा। यहां दलित वोटर निर्णायक माने जाते हैं, लेकिन सैलजा के मैदान में न आने से पेंच फंसा हुआ है। इसलिए, हुड्डा से ही अकरम खान को आस है। अंबाला कैंट : सैलजा गुट के परविंदर परी को भाजपा कैंडिडेट अनिल विज के साथ कांग्रेस की ही बागी हुड्डा गुट की नेता चित्रा सरवारा से मुकाबला करना पड़ रहा है। 2 मजबूत कैंडिडेटों के सामने परविंदर परी अकेले पड़ गए हैं। वहीं, चित्रा के पिता निर्मल सिंह हुड्डा गुट से हैं और अंबाला सिटी से चुनाव लड़ रहे हैं। ऐसे में हुड्डा गुट परविंदर के प्रचार से दूरी बनाए हुए हैं। परविंदर को अब कुमारी सैलजा से ही आस है। कांग्रेस ने सैलजा को ऐसी सीटें दीं जहां 2 साल से कांग्रेस नहीं
कांग्रेस हाईकमान की ओर से हुड्डा गुट ने सैलजा समर्थकों को 5 वहीं सीटें दी हैं, जहां भाजपा पहले से मजबूत है और लगातार 2 बार से चुनाव जीत रही है। फतेहाबाद, हिसार, पंचकूला, जगाधरी और अंबाला कैंट सीट कांग्रेस के लिए नाक का सवाल है, लेकिन यहां गुटबाजी के कारण भाजपा को फिर से उम्मीद नजर आ रही है। वहीं, टिकट वितरण में तवज्जो न मिलने और हुड्डा समर्थकों द्वारा टारगेट करने से कुमारी सैलजा प्रचार से दूर हैं। वह 15 सितंबर से लगातार चुनाव कैंपेन से दूरी बनाए हुए हैं।
हरियाणा में BJP और कांग्रेस की हार-जीत क्यों:भाजपा का चेहरे बदलने का दांव फेल, कांग्रेस में गुटबाजी समेत 4 बड़ी वजहें
हरियाणा में BJP और कांग्रेस की हार-जीत क्यों:भाजपा का चेहरे बदलने का दांव फेल, कांग्रेस में गुटबाजी समेत 4 बड़ी वजहें हरियाणा की 10 लोकसभा सीटों में से इस बार BJP और कांग्रेस ने 5-5 सीटें जीतीं। 2014 के बाद, राज्य में BJP का ये सबसे कमजोर प्रदर्शन रहा। पार्टी ने 2014 की मोदी लहर में प्रदेश की 10 में से 7 और 2019 में सभी 10 सीटें जीती। लगातार दूसरी बार क्लीन स्वीप का दावा करके मैदान में उतरी पार्टी 5 सीटें गवां बैठी। हरियाणा में उसके इस प्रदर्शन के लिए केंद्र से ज्यादा राज्य सरकार की नीतियों को जिम्मेदार कहा जाए तो गलत नहीं होगा। दूसरी ओर, कांग्रेस की बात करें तो उसने पिछले 10 बरसों में अपना सबसे अच्छा प्रदर्शन किया। 2014 में पार्टी सिर्फ रोहतक सीट जीत पाई थी और 2019 में वह भी गवां दी। इस बार वापसी करते हुए पार्टी ने 5 सीटों पर कब्जा जमाया। दोनों पार्टियों की हार और जीत के अलग-अलग कारण रहे। आइए सिलसिलेवार ढंग से इन वजहों को समझते हैं। सबसे पहले बात BJP की… आइये अब दोनों पार्टियों के हार-जीत की वजहों को समझते हैं… 7 कारण जिनकी वजह से भाजपा 5 सीटें हारी… 4. बेरोजगारी की मार: बढ़ती बेरोजगारी इस चुनाव में भाजपा कैंडिडेट्स पर भारी पड़ी। बेरोजगारी दर में हरियाणा देशभर के राज्यों में टॉप पर पहुंच गया। 21 जुलाई 2023 को खुद मोदी सरकार ने संसद में स्वीकार किया कि हरियाणा में बीते 8 बरसों में बेरोजगारी दर 3 गुना बढ़ चुकी है। तत्कालीन श्रम एवं रोजगार राज्यमंत्री रामेश्वर तेली ने संसद में बताया कि हरियाणा में वर्ष 2013-14 (प्रदेश में तब कांग्रेस की सरकार थी) में बेरोजगारी दर 2.9% थी जो 2021-22 में बढ़कर 9% पर पहुंच गई। इसी टाइम पीरियड में राष्ट्रीय स्तर पर बेरोजगारी दर 4.1% थी। इसके अलावा पिछले साढ़े 9 बरसों में राज्य की मनोहर सरकार ने जो भर्तियां निकालीं, उनमें से ज्यादातर कोर्ट-कचहरी के कारण सिरे नहीं चढ़ पाई। कांग्रेस नेता इसे सही तरह भुनाने में कामयाब रहे। 5. पोर्टल राज से परेशानी : हरियाणा में BJP के साढ़े 9 साल के शासनकाल में सरकारी स्कीम्स को ऑनलाइन करने और करप्शन रोकने के नाम पर धड़ाधड़ पोर्टल शुरू किए गए। CM रहते हुए मनोहर लाल खट्टर का इस पर खास जोर रहा। आज राज्य में लगभग हर सरकारी योजना से जुड़ा अलग पोर्टल है। 13 सितंबर 2023 को तो खट्टर ने एक साथ 6 स्कीम शुरू करते हुए उनके पोर्टल शुरू कर दिए थे। इनमें CM आवास योजना व पोर्टल, नो-लिटिगेशन पोर्टल, प्रो-ओबीसी प्रमाण पत्र पोर्टल, ई-रवन्ना पोर्टल व ई-भूमि का पोर्टल शामिल था। खेतीबाड़ी करने वालों को बीज लेने से लेकर फसल बेचने और खराब फसलों के मुआवजे के लिए भी पोर्टल पर अप्लाई करना अनिवार्य बना दिया गया। इससे करप्शन तो कम हुआ लेकिन इंटरनेट कनेक्टिवटी और दूसरे इश्यूज के कारण बहुत सारे लोग परेशान भी होने लगे। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व CM भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने यह मुद्दा लगातार उठाया। उन्होंने तो यहां तक कह दिया कि हरियाणा में सरकार की जगह पोर्टल-राज चल रहा है। राज्य की भाजपा सरकार ने परिवार पहचान पत्र (PPP) की त्रुटियों को सुधारने समेत कई दिक्कतों को दूर भी किया लेकिन यह नाकाफी साबित हुआ। 6. अग्निवीर का मुद्दा: हरियाणा से हर साल बड़ी संख्या में नौजवान सेना में जाते हैं। राज्य के रेवाड़ी, महेंद्रगढ़, झज्जर, रोहतक, भिवानी, सोनीपत से बड़ी संख्या में लोग सेना में जाते हैं। दक्षिणी हरियाणा खासकर अहीरवाल में सेना की वर्दी पहनने को लेकर खास तरह का दीवानापन दिखता है। मोदी सरकार ने जब सेना में भर्ती से जुड़ी अग्निवीर स्कीम लॉन्च की, उस समय अकेले अहीरवाल में लगभग 50 हजार युवा आर्मी भर्ती की तैयारी कर रहे थे। जाहिर है कि ये युवा और इनके परिवारवाले अग्निवीर स्कीम के खिलाफ थे। इस नाराजगी को भाजपा ने गंभीरता से नहीं लिया जबकि कांग्रेस ने इसे अच्छी तरह भुनाया। 7. विधायकों-मंत्रियों का वर्किंग स्टाइल: हरियाणा में BJP विधायकों और मंत्रियों के वर्किंग स्टाइल को लेकर भी लोगों में नाराजगी रही। यही वजह रही कि पार्टी ने जब मनोहर लाल को हटाकर नायब सिंह सैनी को CM बनाया तो ज्यादातर मंत्री भी बदल डाले। हालांकि इससे कोई खास फायदा पार्टी को होता हुआ नजर नहीं आया। 5 कारण जिनके चलते भाजपा 5 सीटें जीतने में कामयाब रही 1. करनाल में बड़े चेहरे पर दांव: करनाल लोकसभा सीट पर BJP ने अपने सीटिंग सांसद संजय भाटिया का टिकट काटते हुए पूर्व सीएम मनोहर लाल खट्टर को उतारने का फैसला किया। जातीय समीकरणों के साथ-साथ दूसरे सभी फैक्टर के लिहाज से यह दांव सही बैठा। भाजपा ने जो 5 सीटें जीतीं, विनिंग मार्जिन के लिहाज से करनाल उनमें पहले स्थान पर रही। 2. जाट-अहीर का कंबिनेशन भिवानी-महेंद्रगढ़ में काम आया: इस संसदीय सीट पर पार्टी ने अपने सांसद धर्मबीर सिंह को तीसरी बार टिकट दिया। धर्मबीर जाट बिरादरी से आते हैं। इस संसदीय हलके में आने वाली भिवानी जिले की 3 सीटों- लोहारू, भिवानी व तोशाम में जाटों का दबदबा है। यहां भिवानी-तोशाम में धर्मबीर को लीड मिली। इस लोकसभा हलके में महेंद्रगढ़ जिले की 4 विधानसभा सीटें भी हैं। इनमें से 3 सीटों- अटेली, नारनौल व नांगल चौधरी में BJP के विधायक हैं। महेंद्रगढ़ सीट कांग्रेस के पास है और पार्टी ने यहीं के विधायक राव दान सिंह को लोकसभा उम्मीदवार बनाया। चुनाव नतीजों में महेंद्रगढ़ जिले की इन चारों विधानसभा सीटों पर BJP आगे रही। यानि राव दान सिंह अपने गृहक्षेत्र में ही पिछड़ गए। दरअसल इस संसदीय सीट पर जाट-अहीर के कंबिनेशन ने भाजपा को जीत दिलाई। कांग्रेस की गुटबाजी का फायदा भी उसे मिला। कांग्रेस ने यहां पूर्व सीएम बंसीलाल की पोती श्रुति चौधरी की जगह अहीर कार्ड खेलते हुए राव दान सिंह को टिकट दिया लेकिन वह काम नहीं आया। 3. फरीदाबाद में प्रयोग से परहेज: फरीदाबाद में भाजपा नेतृत्व ने किसी तरह के प्रयोग से परहेज करते हुए अपने 2 बार के सांसद कृष्णपाल गुर्जर को ही तीसरी बार मौका दिया। गुर्जर 2019 के चुनाव में इसी सीट पर 6 लाख से अधिक वोटों से जीते थे। कांग्रेस ने भी यहां गुर्जर बिरादरी से आने वाले अपने पूर्व विधायक महेंद्र प्रताप को टिकट दिया लेकिन कृष्णपाल गुर्जर उन पर भारी पड़े। 4. अहीरवाल में राव का दबदबा: गुरुग्राम सीट से लगातार चौथा चुनाव जीतकर राव इंद्रजीत सिंह ने साबित कर दिया कि अहीरवाल में फिलहाल उनका मुकाबला करने लायक कोई लीडर नहीं है। कांग्रेस ने उनके सामने सेलिब्रिटी कार्ड खेलते हुए राजबब्बर को उतारा। उसके इस प्रयोग के चलते राव इंद्रजीत का विनिंग मार्जिन तो कम हुआ लेकिन नतीजा नहीं बदला। गुरुग्राम, बादशाहपुर और रेवाड़ी शहर जैसे भाजपा के दबदबे वाले शहरी इलाकों में कम वोटिंग के बावजूद राव इंद्रजीत 85 हजार से ज्यादा वोटों से जीत गए। हालांकि पिछली बार उनकी जीत का अंतर 3 लाख 86 हजार 256 वोट था। 5. कुरुक्षेत्र में जिंदल के काम आया अपना रसूख: विनिंग मार्जिन के लिहाज से भाजपा को हरियाणा में सबसे छोटी जीत कुरुक्षेत्र सीट पर मिली। किसान आंदोलन का केंद्र रहे इस इलाके में भाजपा की लगातार तीसरी जीत में सबसे बड़ा रोल नवीन जिंदल के पर्सनल रसूख ने निभाया। वर्ष 2004 और 2009 में कुरुक्षेत्र से कांग्रेस का सांसद रहते हुए नवीन जिंदल ने इलाके में जो काम करवाए थे, वह उनके पक्ष में गए। इनेलो नेता अभय चौटाला के यहां से चुनाव लड़ने का फायदा भी जिंदल को मिला। अभय ने यहां किसान वोटबैंक में सेंधमारी करते हुए 75 हजार से ज्यादा वोट लिए। इसका सीधा नुकसान आम आदमी पार्टी (AAP) के उम्मीदवार सुशील गुप्ता को उठाना पड़ा। अब बात कांग्रेस की… 4 कारण जिनकी वजह से पार्टी 5 सीटें जीती… 1. लोगों की नाराजगी को अपने पक्ष में भुनाया: कांग्रेस के नेता BJP से नाराज लोगों के गुस्से को अपने पक्ष में भुनाने में कामयाब रहे। लोगों के मूड को भांपते हुए पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा से लेकर सैलजा और रणदीप सुरजेवाला तक, सारे कांग्रेसी नेताओं ने भाजपा सरकार को उसकी नीतियों के लिए सीधे निशाने पर रखा। जनता से जुड़े मुद्दे उठाने के कारण आम पब्लिक ने भी उनसे कनेक्ट महसूस किया। भाजपा सरकार की नीतियों को कोसने के साथ-साथ हुड्डा अपनी हर सभा में यह भी बताते रहे कि अगर राज्य में कांग्रेस की सरकार बनी तो वह हर वर्ग के लिए क्या-क्या करेंगे। उनका ये फार्मूला काम कर गया। 2. जाटों-किसानों की एकमुश्त वोटिंग: जाटों और जटसिखों के दबदबे वाली हिसार, सिरसा, सोनीपत, अंबाला और रोहतक सीट पर कांग्रेस की जीत से साफ हो गया कि यहां इस बिरादरी ने कांग्रेस के पक्ष में एकमुश्त वोटिंग की। वह जाटों का प्रतिनिधित्व करने का दम भरने वाले सियासी दलों के झांसे में नहीं आए। अगर सिरसा सीट पर इनेलो कैंडिडेट संदीप लोट को छोड़ दें तो बाकी चारों सीटों पर तीसरे नंबर पर रहने वाले कैंडिडेट को 25 हजार वोट भी नहीं मिले। इससे साफ है कि जाटों-किसानों का वोट बिखरा नहीं। 3. सैलजा-हुड्डा फैमिली की पर्सनल पकड़: सिरसा सीट पर कांग्रेस की सैलजा 2 लाख 68 हजार 497 वोटों से जीतीं। यहां उनके परिवार का व्यक्तिगत रसूख है और इसका फायदा उन्हें मिला। यहां सैलजा को टिकट देने का फैसला भी ग्राउंड से उठी डिमांड के बाद ही लिया गया था। इसी तरह रोहतक सीट पर कांग्रेस के दीपेंद्र हुड्डा ने लगभग साढ़े 3 लाख वोटों से जीत दर्ज की। विनिंग मार्जिन के लिहाज से कांग्रेस को मिली पांचों सीटों में रोहतक पहले नंबर पर रही। दीपेंद्र की ये जीत कांग्रेस से ज्यादा, रोहतक बेल्ट में हुड्डा फैमिली की अपनी पकड़ का नतीजा है। 2019 के आम चुनाव में ओवर कॉन्फिडेंस के कारण मात खा जाने वाले दीपेंद्र ने इस बार कोई चूक नहीं की। 4. अंबाला की जीत कांग्रेस की एकजुटता के नाम : पूरे हरियाणा में चुनाव के दौरान अगर कांग्रेस कहीं एकजुट नजर आई तो वह अंबाला लोकसभा हलका रहा। यहां के नए सांसद वरुण चौधरी मुलाना को टिकट बेशक हुड्डा कैंप की पैरवी से मिला लेकिन सैलजा गुट में भी वरुण की अच्छी पैठ है। पूर्व मंत्री निर्मल चौधरी की चुनाव से कुछ समय पहले कांग्रेस में हुई वापसी का फायदा भी वरुण को मिला। 4 कारण जिनके चलते कांग्रेस 5 सीटों पर हार गई 1. करनाल में कमजोर कैंडिडेट: कांग्रेस ने करनाल लोकसभा सीट पर अपने यूथ विंग के नेता दिव्यांशु बुद्धिराजा को टिकट दिया। दिव्यांशु के नाम का ऐलान होते ही क्लियर हो गया था कि कांग्रेस ने इस सीट पर BJP के मनोहर लाल खट्टर को एक तरह से वॉकओवर दे दिया है। करनाल के कांग्रेसी नेताओं के तमाम तरह के असहयोग के बावजूद दिव्यांशु 4 लाख 79 हजार से ज्यादा वोट लेने में कामयाब रहे। अगर कांग्रेस इस सीट पर किसी बड़े चेहरे को उतारती और करनाल के नेता उसका साथ देते तो भाजपा को यहां परेशानी हो सकती थी। 2. गुटबाजी भारी पड़ी: हरियाणा में कांग्रेसी नेताओं की धड़ेबंदी जगजाहिर है और पार्टी ने इसका नुकसान कम से कम 2 सीटें गवांकर चुकाया। भिवानी-महेंद्रगढ़ सीट पर पूर्व मंत्री किरण चौधरी और गुरुग्राम में पूर्व कैबिनेट मंत्री कैप्टन अजय यादव ने टिकट कटने के बाद अपनी नाराजगी खुलकर जताई। किरण चौधरी ने तो हुड्डा कैंप पर उनकी सियासी हत्या की साजिश रचने जैसे आरोप तक लगा डाले। इस सीट पर कांग्रेस उम्मीदवार राव दान सिंह की हार का अंतर 41 हजार 510 वोट रहा। भिवानी जिले की तीन में से दो सीटों पर भाजपा को लीड मिली। इनमें किरण चौधरी की तोशाम सीट शामिल रही। अगर पार्टी के नेता एकजुटता दिखाते तो यहां रिजल्ट कांग्रेस के पक्ष में भी आ सकता था। गुरुग्राम सीट पर भी यही कहानी रही। यहां कांग्रेस कैंडिडेट राजबब्बर 75 हजार वोट से हारे। लालू यादव के समधी कैप्टन अजय यादव इस सीट पर लंबे अर्से से एक्टिव थे लेकिन पार्टी ने ऐन मौके पर उनकी जगह राजबब्बर को टिकट थमा दिया। इससे कैप्टन नाराज हो गए। राजबब्बर की इलेक्शन कैंपेनिंग के दौरान अजय यादव बहुत कम मौकों पर नजर आए। फरीदबाद सीट पर भी टिकट न मिलने के कारण पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा के समधी करण दलाल की नाराजगी देखने को मिली। 3. चौधर की लड़ाई: लोकसभा चुनाव में कांग्रेसी नेताओं के बीच चलने वाली चौधर की लड़ाई भी जमकर देखने को मिली। पूर्व केंद्रीय मंत्री बीरेंद्र सिंह शुरू से आखिर तक बांगर बेल्ट में हिसार के उम्मीदवार जयप्रकाश जेपी को नीचा दिखाने की कोशिश करते नजर आए। हालांकि चुनाव नतीजों में जेपी को सबसे बड़ी लीड बीरेंद्र सिंह के गढ़ उचाना से ही मिली। जयप्रकाश जेपी के हुड्डा कैंप से जुड़े होने के कारण सैलजा, किरण चौधरी और रणदीप सुरजेवाला की तिकड़ी ने हिसार में एक सभा तक नहीं की। सैलजा सिरसा तक सिमटी रही तो रणदीप सिरसा के अलावा कुरुक्षेत्र एरिया में एक्टिव रहे। 4. गठबंधन की कीमत चुकाई: कांग्रेस ने I.N.D.I.A. अलायंस के तहत कुरुक्षेत्र सीट आम आदमी पार्टी (AAP) को दी। इसलिए यहां कांग्रेस का चुनाव चिन्ह गायब रहा। आम आदमी पार्टी से उसकी हरियाणा इकाई के प्रदेशाध्यक्ष सुशील गुप्ता कुरुक्षेत्र के करण में उतरे तो पार्टी की पूरी लीडरशिप यहां डट गई। कांग्रेस से भूपेंद्र हुड्डा और रणदीप सुरजेवाला ने सुशील गुप्ता के लिए प्रचार किया लेकिन राज्य की दूसरी किसी सीट पर AAP नेताओं ने कांग्रेस उम्मीदवारों के लिए ऐसा जोर नहीं लगाया। ऐसे में कहा नहीं जा सकता कि AAP ने बाकी 9 सीटों पर अपना कितना वोटबैंक कांग्रेस के पक्ष में शिफ्ट कराया? हां, कुरुक्षेत्र में सुशील गुप्ता को कांग्रेसी कैडर के वोट जरूर मिले।
हरियाणा में गैंगस्टर नंदू ने 2 करोड़ रंगदारी मांगी:पूर्व नगर परिषद अध्यक्ष को वॉट्सऐप कॉल कर धमकाया; इनेलो नेता जैसे कत्ल करने की धमकी
हरियाणा में गैंगस्टर नंदू ने 2 करोड़ रंगदारी मांगी:पूर्व नगर परिषद अध्यक्ष को वॉट्सऐप कॉल कर धमकाया; इनेलो नेता जैसे कत्ल करने की धमकी हरियाणा में इंडियन नेशनल लोकदल (INLD) के प्रदेशाध्यक्ष रहे नफे सिंह राठी हत्याकांड की जिम्मेदारी लेने वाले गैंगस्टर कपिल सांगवान उर्फ नंदू ने बहादुरगढ़ नगर परिषद के पूर्व अध्यक्ष अशोक गुप्ता के पास वॉट्सऐप कॉल कर 2 करोड़ रुपए की रंगदारी मांगी हैं। रंगदारी नहीं देने पर नफे सिंह राठी जैसा हाल करने की धमकी दी है। गुप्ता फिलहाल दिल्ली में रहते हैं। ऐसे में उन्होंने दिल्ली पश्चिम विहार थाना में FIR दर्ज करा दी है। बता दें कि मूलरूप से झज्जर जिले के बहादुरगढ़ की अनाज मंडी निवासी अशोक गुप्ता गणपति धाम के भी प्रधान है। फिलहाल वे परिवार के साथ नई दिल्ली के मुल्तान नगर में रहते है। अशोक गुप्ता ने दिल्ली के पश्चिम विहार थाना में दर्ज कराई शिकायत के मुताबिक, मंगलवार शाम करीब 6 बजे उनके मोबाइल नंबर पर एक व्हाट्सएप कॉल आई। कॉल रिसीव की तो कॉल करने वाले ने खुद को गैंगस्टर नंदू बताया और 2 करोड़ रुपए देने की मांग की। रंगदारी न देने पर इनेलो के प्रदेश अध्यक्ष रहे नफे सिंह राठी जैसा हाल करने की धमकी दी गई। इससे वह घबरा गए। उन्होंने तुरंत इसकी शिकायत पश्चिम विहार थाना पुलिस को की। पुलिस ने तुरंत FIR दर्ज करते हुए मामले की जांच शुरू कर दी है। पुलिस ने आईपीसी की धारा 383 और 506 के तहत केस दर्ज किया है। दिल्ली पुलिस का कहना है कि अभी अशोक गुप्ता की तरफ से किसी तरह की सिक्योरिटी की मांग नहीं की गई है। अगर गुप्ता मांग करेंगे तो उन्हें सिक्योरिटी मुहैया करा दी जाएगी। INLD और BJP नेता की हत्या में आ चुका नाम
दरअसल, इसी साल 25 फरवरी की शाम बहादुरगढ़ में ही बराही फाटक के पास पूर्व MLA नफे सिंह राठी की ताबड़तोड़ गोलियां मारकर हत्या कर दी गई थी। इस दौरान उनके समर्थक जयकिशन दलाल की भी गोलियां लगने से मौत हुई थी। इस हत्याकांड की जिम्मेदारी ब्रिटेन में बैठे कपिल सांगवान उर्फ नंदू गैंगस्टर ने सोशल मीडिया पर पोस्ट वायरल करके ली थी। इतना ही नहीं पिछले साल दिल्ली में हुए बीजेपी नेता सुरेंद्र मटियाला हत्याकांड में भी गैंगस्टर नंदू का ही नाम सामने आया था। गैंगस्टर नंदू का एक भाई ज्योति बाबा फिलहाल दिल्ली की जेल में बंद है। नंदू काफी समय पहले कोर्ट से जमानत मिलने के बाद विदेश भाग गया था। नंदू दिल्ली के नजफगढ़ एरिया का रहने वाला है। उस पर काफी संगीन मामले दर्ज है। नफे सिंह राठी हत्याकांड में उसका नाम सामने आने के बाद पुलिस ने हत्याकांड को अंजाम देने वाले दो शूटर आशीष और सौरव को गोवा के एक होटल से गिरफ्तार किया था। जबकि दो शूटर अभी भी फरार है।