जयशंकर की मौजूदगी का अमन-पसंद लोगों के बीच अच्छा पैग़ाम!:कई सालों बाद पाकिस्तान आए पर भारत-पाकिस्तान के ताल्लुकात को लेकर कोई बात नहीं की

जयशंकर की मौजूदगी का अमन-पसंद लोगों के बीच अच्छा पैग़ाम!:कई सालों बाद पाकिस्तान आए पर भारत-पाकिस्तान के ताल्लुकात को लेकर कोई बात नहीं की

इस्लामाबाद में 15 और 16 अक्टूबर को शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) का शिखर सम्मेलन दक्षिण एशिया और मध्य एशिया में शांति तथा सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिए एक महत्वपूर्ण आयोजन था। शिखर सम्मेलन में भारतीय विदेश मंत्री डॉ. जयशंकर की भागीदारी भी दुनिया भर के कई पर्यवेक्षकों के लिए काफ़ी अहम थी। अधिकांश पाकिस्तानी एससीओ के बारे में ज़्यादा नहीं जानते हैं, जिसकी स्थापना 2001 में शंघाई में हुई थी। शुरुआत में इस संगठन को “शंघाई फाइव’ कहा जाता था, जिसके संस्थापक सदस्य चीन, रूस, कज़ाकिस्तान, किर्गिस्तान और ताजिकिस्तान थे। बाद में उज़्बेकिस्तान भी इसमें शामिल हो गया। 2017 में भारत और पाकिस्तान को इसमें शामिल किया गया। ईरान 2023 में और बेलारूस 2024 में शामिल हुआ। यह भूगोल और आबादी के हिसाब से दुनिया का सबसे बड़ा क्षेत्रीय संगठन है, जो दुनिया के लगभग 80 फ़ीसदी भूभाग और 40 फ़ीसदी आबादी को कवर करता है। एससीओ के भागीदार मुल्कों का दुनिया के 20 फ़ीसदी तेल भंडारों और 44 फ़ीसदी प्राकृतिक गैस पर नियंत्रण है। इसमें कोई शक नहीं है कि एससीओ पर वास्तव में चीन और रूस का दबदबा है, लेकिन 2017 से यह संगठन भारत और पाकिस्तान के बीच रिश्तों को बढ़ावा देने में अहम भूमिका निभा रहा है, क्योंकि सार्क लंबे समय से निष्क्रिय है। पिछले साल पाकिस्तानी विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो जरदारी गोवा में आयोजित हुई मंत्री स्तरीय बैठक में शिरकत करने के लिए भारत गए थे। पाकिस्तान के किसी विदेश मंत्री ने 12 साल के बाद भारत का दौरा किया था। भारत ने पिछले साल दिल्ली में एससीओ के राष्ट्राध्यक्षों की बैठक की मेज़बानी की थी। पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ ने वीडियो लिंक के जरिए उस बैठक में हिस्सा लिया था। अब भारतीय विदेश मंत्री डॉ. जयशंकर कई सालों बाद पाकिस्तान आए। उन्होंने भारत-पाकिस्तान के ताल्लुकात को लेकर कोई बात नहीं की। वे केवल एससीओ शिखर सम्मेलन के लिए यहां आए थे, लेकिन इस्लामाबाद में उनकी मौजूदगी भर से भारत और पाकिस्तान के अमन-पसंद लोगों के बीच एक अच्छा पैग़ाम गया है। दिल्ली में 2023 के एससीओ शिखर सम्मेलन और इस्लामाबाद के इस शिखर सम्मेलन के संयुक्त घोषणा-पत्र में कोई बहुत ज़्यादा फ़र्क़ नहीं है। दोनों घोषणा-पत्रों में आतंकवाद की निंदा की गई और एससीओ को क्षेत्रीय आतंकवाद विरोधी ढांचे के रूप में विकसित किए जाने की ज़रूरत पर ज़ोर दिया गया। इस्लामाबाद शिखर सम्मेलन का दस्तावेज़ बहुत अहम इसलिए भी है, क्योंकि इसमें कहा गया है कि एससीओ भारत और पाकिस्तान के लिए न केवल आतंकवाद के ख़िलाफ़, बल्कि नशीले पदार्थों की तस्करी के ख़िलाफ़ भी सहयोग करने का एक नया मंच बनने जा रहा है। भारत और पाकिस्तान दोनों को तेल और गैस की दरकार है। वे ऊर्जा के क्षेत्र में अपनी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए एससीओ मंच का इस्तेमाल कर सकते हैं। इस्लामाबाद में अपने प्रवास के दौरान डॉ. जयशंकर बहुत चौकस रहे। उन्होंने भारत और पाकिस्तान के बीच द्विपक्षीय मसलों को छुआ तक नहीं। पिछले साल गोवा में भी वे पाकिस्तानी विदेश मंत्री से नहीं मिले थे और इस्लामाबाद के अपने प्रवास के दौरान भी उन्होंने अपने पाकिस्तानी समकक्ष के साथ कोई औपचारिक द्विपक्षीय बैठक नहीं की। ऐसा लगता है कि फिलहाल भारत और पाकिस्तान दोनों ही हुकूमतें जम्मू-कश्मीर पर अपने रुख में कोई लचीलापन नहीं दिखाएंगी। दोनों ही आतंकी घटनाओं के लिए एक-दूसरे पर इल्ज़ाम मढ़ते रहेंगे, लेकिन साथ ही “क्षेत्रीय सहयोग’ के नाम पर अहम मसलों पर चर्चा करने के लिए उन्हें एससीओ की छत्रछाया भी मिल गई है। इस्लामाबाद शिखर सम्मेलन के दौरान अमेरिकी डॉलर और यूरो को दरकिनार करते हुए स्थानीय मुद्राओं में आपसी व्यापार को बढ़ाने पर ख़ासा ज़ोर दिया गया। भले ही भारत और पाकिस्तान एक-दूसरे के साथ व्यापार शुरू न करें, लेकिन अगर ये दोनों देश चीन, रूस और ईरान के साथ स्थानीय मुद्राओं में व्यापार शुरू करते हैं, तो उनकी स्थानीय मुद्राओं को भी परोक्ष रूप से कुछ मज़बूती मिल सकती है। इस्लामाबाद में यह धारणा है कि इस संगठन में चीन के प्रभुत्व की वजह से भारत एससीओ के महत्व को कम करने की कोशिश कर रहा है। भारत ‘ब्रिक्स’ (ब्राजील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका, ईरान, सऊदी अरब, मिस्र, इथियोपिया और यूएई) पर ज़्यादा ध्यान दे रहा है। ब्रिक्स पर रूस का नियंत्रण है। पाकिस्तान अभी ब्रिक्स का सदस्य नहीं है, लेकिन उसने हाल ही में इसकी सदस्यता के लिए आवेदन किया है। रूस सहित इस मंच के दस में से छह सदस्यों ने पाकिस्तान को भरोसा दिया है कि वे ब्रिक्स में उसके शामिल होने का समर्थन करते हैं। रूस इसी माह 22 से 24 अक्टूबर तक कज़ान में अगला ब्रिक्स शिखर सम्मेलन आयोजित करेगा। अगर पाकिस्तान ब्रिक्स का सदस्य बन जाता है तो ईरान और भारत जैसे उसके पड़ोसियों को अमेरिका को नाराज़ किए बिना एक-दूसरे के साथ आर्थिक सहयोग शुरू करने का एक और मंच मिल जाएगा। इस्लामाबाद में एससीओ शिखर सम्मेलन पाकिस्तान के लिए रूस और चीन को यह समझाने का एक बड़ा मौक़ा था कि उन्हें उसे ब्रिक्स में शामिल करना चाहिए। यह एससीओ शिखर सम्मेलन का सबसे बड़ा रहस्य था, जिसे इस्लामाबाद ने कभी सार्वजनिक नहीं किया। ———————– ये कॉलम भी पढ़ें… पाकिस्तानी फ़ौज के गले की हड्‌डी बन गए हैं इमरान!:ख़ान के बारे में सभी अंदाजे ग़लत साबित हुए; ऐसी स्थिति तीसरी बार बनी इस्लामाबाद में 15 और 16 अक्टूबर को शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) का शिखर सम्मेलन दक्षिण एशिया और मध्य एशिया में शांति तथा सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिए एक महत्वपूर्ण आयोजन था। शिखर सम्मेलन में भारतीय विदेश मंत्री डॉ. जयशंकर की भागीदारी भी दुनिया भर के कई पर्यवेक्षकों के लिए काफ़ी अहम थी। अधिकांश पाकिस्तानी एससीओ के बारे में ज़्यादा नहीं जानते हैं, जिसकी स्थापना 2001 में शंघाई में हुई थी। शुरुआत में इस संगठन को “शंघाई फाइव’ कहा जाता था, जिसके संस्थापक सदस्य चीन, रूस, कज़ाकिस्तान, किर्गिस्तान और ताजिकिस्तान थे। बाद में उज़्बेकिस्तान भी इसमें शामिल हो गया। 2017 में भारत और पाकिस्तान को इसमें शामिल किया गया। ईरान 2023 में और बेलारूस 2024 में शामिल हुआ। यह भूगोल और आबादी के हिसाब से दुनिया का सबसे बड़ा क्षेत्रीय संगठन है, जो दुनिया के लगभग 80 फ़ीसदी भूभाग और 40 फ़ीसदी आबादी को कवर करता है। एससीओ के भागीदार मुल्कों का दुनिया के 20 फ़ीसदी तेल भंडारों और 44 फ़ीसदी प्राकृतिक गैस पर नियंत्रण है। इसमें कोई शक नहीं है कि एससीओ पर वास्तव में चीन और रूस का दबदबा है, लेकिन 2017 से यह संगठन भारत और पाकिस्तान के बीच रिश्तों को बढ़ावा देने में अहम भूमिका निभा रहा है, क्योंकि सार्क लंबे समय से निष्क्रिय है। पिछले साल पाकिस्तानी विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो जरदारी गोवा में आयोजित हुई मंत्री स्तरीय बैठक में शिरकत करने के लिए भारत गए थे। पाकिस्तान के किसी विदेश मंत्री ने 12 साल के बाद भारत का दौरा किया था। भारत ने पिछले साल दिल्ली में एससीओ के राष्ट्राध्यक्षों की बैठक की मेज़बानी की थी। पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ ने वीडियो लिंक के जरिए उस बैठक में हिस्सा लिया था। अब भारतीय विदेश मंत्री डॉ. जयशंकर कई सालों बाद पाकिस्तान आए। उन्होंने भारत-पाकिस्तान के ताल्लुकात को लेकर कोई बात नहीं की। वे केवल एससीओ शिखर सम्मेलन के लिए यहां आए थे, लेकिन इस्लामाबाद में उनकी मौजूदगी भर से भारत और पाकिस्तान के अमन-पसंद लोगों के बीच एक अच्छा पैग़ाम गया है। दिल्ली में 2023 के एससीओ शिखर सम्मेलन और इस्लामाबाद के इस शिखर सम्मेलन के संयुक्त घोषणा-पत्र में कोई बहुत ज़्यादा फ़र्क़ नहीं है। दोनों घोषणा-पत्रों में आतंकवाद की निंदा की गई और एससीओ को क्षेत्रीय आतंकवाद विरोधी ढांचे के रूप में विकसित किए जाने की ज़रूरत पर ज़ोर दिया गया। इस्लामाबाद शिखर सम्मेलन का दस्तावेज़ बहुत अहम इसलिए भी है, क्योंकि इसमें कहा गया है कि एससीओ भारत और पाकिस्तान के लिए न केवल आतंकवाद के ख़िलाफ़, बल्कि नशीले पदार्थों की तस्करी के ख़िलाफ़ भी सहयोग करने का एक नया मंच बनने जा रहा है। भारत और पाकिस्तान दोनों को तेल और गैस की दरकार है। वे ऊर्जा के क्षेत्र में अपनी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए एससीओ मंच का इस्तेमाल कर सकते हैं। इस्लामाबाद में अपने प्रवास के दौरान डॉ. जयशंकर बहुत चौकस रहे। उन्होंने भारत और पाकिस्तान के बीच द्विपक्षीय मसलों को छुआ तक नहीं। पिछले साल गोवा में भी वे पाकिस्तानी विदेश मंत्री से नहीं मिले थे और इस्लामाबाद के अपने प्रवास के दौरान भी उन्होंने अपने पाकिस्तानी समकक्ष के साथ कोई औपचारिक द्विपक्षीय बैठक नहीं की। ऐसा लगता है कि फिलहाल भारत और पाकिस्तान दोनों ही हुकूमतें जम्मू-कश्मीर पर अपने रुख में कोई लचीलापन नहीं दिखाएंगी। दोनों ही आतंकी घटनाओं के लिए एक-दूसरे पर इल्ज़ाम मढ़ते रहेंगे, लेकिन साथ ही “क्षेत्रीय सहयोग’ के नाम पर अहम मसलों पर चर्चा करने के लिए उन्हें एससीओ की छत्रछाया भी मिल गई है। इस्लामाबाद शिखर सम्मेलन के दौरान अमेरिकी डॉलर और यूरो को दरकिनार करते हुए स्थानीय मुद्राओं में आपसी व्यापार को बढ़ाने पर ख़ासा ज़ोर दिया गया। भले ही भारत और पाकिस्तान एक-दूसरे के साथ व्यापार शुरू न करें, लेकिन अगर ये दोनों देश चीन, रूस और ईरान के साथ स्थानीय मुद्राओं में व्यापार शुरू करते हैं, तो उनकी स्थानीय मुद्राओं को भी परोक्ष रूप से कुछ मज़बूती मिल सकती है। इस्लामाबाद में यह धारणा है कि इस संगठन में चीन के प्रभुत्व की वजह से भारत एससीओ के महत्व को कम करने की कोशिश कर रहा है। भारत ‘ब्रिक्स’ (ब्राजील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका, ईरान, सऊदी अरब, मिस्र, इथियोपिया और यूएई) पर ज़्यादा ध्यान दे रहा है। ब्रिक्स पर रूस का नियंत्रण है। पाकिस्तान अभी ब्रिक्स का सदस्य नहीं है, लेकिन उसने हाल ही में इसकी सदस्यता के लिए आवेदन किया है। रूस सहित इस मंच के दस में से छह सदस्यों ने पाकिस्तान को भरोसा दिया है कि वे ब्रिक्स में उसके शामिल होने का समर्थन करते हैं। रूस इसी माह 22 से 24 अक्टूबर तक कज़ान में अगला ब्रिक्स शिखर सम्मेलन आयोजित करेगा। अगर पाकिस्तान ब्रिक्स का सदस्य बन जाता है तो ईरान और भारत जैसे उसके पड़ोसियों को अमेरिका को नाराज़ किए बिना एक-दूसरे के साथ आर्थिक सहयोग शुरू करने का एक और मंच मिल जाएगा। इस्लामाबाद में एससीओ शिखर सम्मेलन पाकिस्तान के लिए रूस और चीन को यह समझाने का एक बड़ा मौक़ा था कि उन्हें उसे ब्रिक्स में शामिल करना चाहिए। यह एससीओ शिखर सम्मेलन का सबसे बड़ा रहस्य था, जिसे इस्लामाबाद ने कभी सार्वजनिक नहीं किया। ———————– ये कॉलम भी पढ़ें… पाकिस्तानी फ़ौज के गले की हड्‌डी बन गए हैं इमरान!:ख़ान के बारे में सभी अंदाजे ग़लत साबित हुए; ऐसी स्थिति तीसरी बार बनी   उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर