जहां 3 चीनी मिलें…वहां गन्ने नहीं, केले की खेती:यूपी में बारिश-आंधी में गिरे केले के पेड़, किसान बोले- मिल गन्ने का भुगतान नहीं करती

जहां 3 चीनी मिलें…वहां गन्ने नहीं, केले की खेती:यूपी में बारिश-आंधी में गिरे केले के पेड़, किसान बोले- मिल गन्ने का भुगतान नहीं करती

‘2012 से केले की खेती कर रहे हैं। पिछले दिनों बेमौसम बारिश और तेज आंधी की वजह से इस साल बहुत नुकसान हो गया। 35 एकड़ केले की फसल लगाई थी, आधे पेड़ जमीन पर गिर गए। करीब 45 लाख का नुकसान हो गया।’ यह दर्द है लखीमपुर खीरी में केले की खेती करने वाले किसान विचित्र सिंह का। यह स्थिति सिर्फ उनकी नहीं, बल्कि जिले के बाकी किसानों को भी इसी तरह से झेलना पड़ा है। किसी का 2 लाख, तो किसी का 10 लाख रुपए का नुकसान हुआ। हालांकि तमाम ऐसे भी लोग हैं, जिनकी खेती थोड़ा पीछे रह गई। इससे वो लोग बहुत नुकसान होने से बच गए। लेकिन, आशंका है कि अगर फिर से बारिश और आंधी आई तो नुकसान होना तय है। दैनिक भास्कर की टीम लखीमपुर खीरी में केला किसानों से मिलने पहुंची। किन परिस्थिति में वे खेती बचा रहे, उसे समझा। गन्ने की खेती से मोह भंग क्यों हुआ, इसे जाना। केले की खेती से कैसे लाखों रुपए कमाए जा सकते हैं, इस बारे में समझने की कोशिश की। पढ़िए मुनाफे की खेती कैसे बन रहा केला? गन्ने की खेती क्यों छोड़ रहे? इस बार कैसे नुकसान हुआ? केले में ज्यादा मुनाफा, इसलिए इसकी खेती शुरू की
यूपी का लखीमपुर खीरी जिला भारत-नेपाल सीमा से जुड़ता है। इसी तरह से बहराइच, श्रावस्ती, सिद्धार्थनगर की भी सीमा नेपाल से लगती है। इन जिलों में पिछले 5 सालों के अंदर किसानों के अंदर एक बड़ा बदलाव आया। उनका मन गन्ने की खेती से उचट गया और केले की खेती करना शुरू कर दिया। हम इसकी वजह तलाशते हुए निघासन तहसील के बांगलहा, साहेतपुरवा, बम्हानपुर जैसे कई गांव पहुंचे। यहां अब भी 50 फीसदी किसान गन्ने की खेती करते हैं, लेकिन बचे हुए 50 फीसदी किसान केले की तरफ शिफ्ट हो गए हैं। हमारी मुलाकात बंगलहा गांव के मेही लाल से हुई। मेही लाल 6 बीघे खेत में केले की खेती करते हैं। हमने अप्रैल-मई महीने में हुई बारिश और आंधी से हुए नुकसान को लेकर बातचीत शुरू की। वह कहते हैं- बारिश और आंधी की वजह से नुकसान तो हुआ है। मेरे 25-30 पेड़ गिर गए। हालांकि, 3 साल पहले जिस तरह से पूरा नुकसान हो गया था, उस तरह से इस बार नहीं हुआ है। उस वक्त तो 6 लाख का नुकसान हो गया था। इस साल अभी तक हमने अपने पेड़ों को बचाकर रखा है। हमारी फसलों में अभी फल नहीं आए हैं, इसलिए पेड़ अभी भारी नहीं हुए हैं। हमने 6 बाय 6 फीट की दूरी पर पेड़ लगाए थे। इसलिए पेड़ मोटे हो गए और गिरे नहीं। मेही लाल से हमने केले की खेती से आमदनी को लेकर बात की। वह कहते हैं- हम एक बीघे में 300 पेड़ लगाते हैं। एक पेड़ में जो फसल तैयार होती है, वह 20 से लेकर 40 किलो तक हो जाती है। 1 हजार से 2 हजार रुपए क्विंटल तक इसका रेट जाता है। अगर अच्छी फसल हो गई, तो कमाई प्रति बीघा 1 लाख रुपए आराम से हो जाती है। जहां तक बात लागत की बात है, तो वह हर बीघे पर 30 हजार तक बैठ जाती है। हर 7 दिन में पानी और 15 दिन में खाद को लेकर हम तैयारी करते रहते हैं। आंधी से 45 लाख का नुकसान हो गया
हमारी मुलाकात निघासन के किसान विचित्र सिंह से हुई। केले की खेती के तजुर्बे को लेकर वह कहते हैं- हम 2012 से इसकी खेती कर रहे हैं। इस बार बहुत तगड़ा तूफान आया और हमें बहुत भयंकर चोट दे गया। 35 एकड़ खेत में केले की खेती लगाई थी, आधे पेड़ जमीन पर गिर गए। करीब 45 लाख रुपए का नुकसान हो गया। हम तो सरकार से यही अपील करते हैं कि हमारे दर्द को समझें और खेतों को देखें। जो कुछ मुआवजा वगैरह हो सकता है, मदद के रूप में दें। विचित्र सिंह 2012 से पहले गन्ने की खेती करते थे। अभी भी कुछ एकड़ में गन्ना लगा रखा है। हमने गन्ने की फसल से मोह भंग को लेकर बात की। वह कहते हैं- गन्ने की फसल में लागत कम लगती है। केले की फसल में हर तीसरे दिन जाना होता है। यह 12 महीने का काम होता है। लेकिन, जहां तक मुनाफे की बात है, वहां केले में प्रति एकड़ तीन लाख रुपए तक का आराम से मुनाफा निकल जाता है। लेकिन, गन्ने में ऐसा नहीं है। 1 लाख रुपए तक का माल निकलेगा और साल भर में इतनी ही आपकी लागत लग जाती है। आंधी के चलते आधी फसल चली गई
अंकुर पांडेय बम्हानपुर में पिछले 3 साल से केले की खेती कर रहे हैं। पहले गन्ने की खेती करते थे। हमने उनसे पूछा कि आखिर गन्ने से मोह भंग क्यों हुआ? अंकुर कहते हैं- पहले गन्ने में 0238 वेराइटी का गन्ना आता था। उसकी पैदावार एक एकड़ में 400 से 500 क्विंटल तक हो जाती थी। मुनाफा अच्छा हो जाता था, लेकिन बाढ़ के चलते वह वेराइटी ही गायब हो गई। इसके बाद 8436 और 15023 जैसी वैराइटी के गन्ने आए, लेकिन इनकी उपज कम रही। प्रति एकड़ 300 से 350 क्विंटल ही गन्ना निकल रहा था। गन्ने की ढुलाई महंगी हो गई, लेबर चार्ज भी महंगा हो गया। इसलिए बहुत सारे किसानों ने गन्ने की खेती छोड़ दी। अंकुर कहते हैं- केले की खेती में मेहनत है, लेकिन मुनाफा अच्छा है। जिसकी फसल अच्छी हो जाती है, उसे एक एकड़ में ही 4-5 लाख रुपए मिल जाते हैं। बाकी इस बार बेमौसम बारिश और आंधी की वजह से बहुत नुकसान हो गया। 25 मई को आई आंधी को देखकर मन में डर भर गया था। बहुत सारे पेड़ जमीन पर गिर गए। हमारी कोई सुनने वाला नहीं है। फसल बीमा के बारे में सुना था, लेकिन उसका फायदा वही ले सकता है, जो लगातार तहसीलों के चक्कर लगाता रहे। हम किसानों से यह नहीं हो पाता। पानी बरसा, इसलिए पानी लगाने की जरूरत नहीं
हमारी मुलाकात साहेतपुरवा के सुरेश कुमार से हुई। सुरेश ने 6 बीघे जमीन पर केले की खेती की है। जिन पेड़ों पर अभी फल नहीं लगे हैं, उनकी स्थिति ठीक है। उन्हें कम नुकसान हुआ है। सुरेश के खेतों में भी अभी पेड़ों में केले नहीं लगे। पसीने से लथपथ सुरेश फसल में खाद का छिड़काव कर रहे थे। रखरखाव को लेकर हमने सवाल किया, तो वह कहते हैं- हर 15 दिन में हम खाद का छिड़काव करते हैं। हर हफ्ते पानी लगाते हैं। लेकिन पिछले दिनों बारिश हो जाने के चलते पानी नहीं लगाना पड़ा। अब आगे आंधी-तूफान न आए तो अच्छा रहेगा। जुलाई-अगस्त में हमारी फसल तैयार हो जाएगी। पास ही खड़े सखाराम बताते हैं- लगातार बारिश और तेज हवा से केले को नुकसान होता है। पेड़ों को सबसे ज्यादा वीटर कीट से बचाना होता है। जहां से केला लगता है, वहीं ये कीट लग जाता है। फिर पूरे केले पर चलने लगता है। इससे केला खराब हो जाता है। हम लोग इसके लिए दवा का छिड़काव करते हैं। जहां तक केले के बाजार की बात है, इसका एक फायदा यह है कि केला कारोबारी खुद पिक-अप लेकर खेत में आते हैं और कटवाकर ले जाते हैं। गन्ने में तो सारी मेहनत खुद ही करनी होती है। गन्ना मिलों पर किसानों का 900 करोड़ बकाया
किसानों का गन्ने की तरफ से मोह भंग होना और फिर केले की फसल पर शिफ्ट होने की एक बड़ी वजह गन्ना मिलों का किसानों को समय पर भुगतान न करना है। लखीमपुर खीरी में 3 बड़ी गन्ना मिलें हैं, इन तीनों मिलों का जोड़ दें, तो किसानों का कुल बकाया करीब 900 करोड़ रुपए का है। ऊपर से गन्ने की फसल का समर्थन मूल्य भी इतना नहीं कि इसकी खेती से पैसा कमाया जा सके। स्थानीय पत्रकार और किसान यूनियन से जुड़े अमित वर्मा कहते हैं- 5 साल पहले तक हमारे इलाके में गन्ने की ही फसल नजर आती थी। लेकिन, पिछले 5 साल में पलिया, निघासन और मोहम्मदी के इलाके में लोगों ने केले की खेती करना शुरू कर दिया। अमित कहते हैं- केले की खेती में मुनाफा है, लेकिन मेहनत भी है। हालांकि, फसल तैयार होने पर इसमें फंसने की संभावना नहीं होती। दूसरी तरफ गन्ने को मिल तक ले जाइए। वहां पर्ची मिलेगी। पैसों के लिए महीनों इंतजार करना पड़ेगा। हमारे लखीमपुर में हजारों किसानों का करोड़ों रुपए आज तक मिल वालों ने भुगतान नहीं किया। सहयोग- शिवा गुप्ता, भास्कर रिपोर्टर, निघासन। ————————– ये खबर भी पढ़ें… यूपी पंचायत चुनाव में इस बार 500 प्रधान ज्यादा बनेंगे, 75 नए ब्लॉक प्रमुख भी होंगे; शासन ने DM और DPRO से मांगी रिपोर्ट पंचायतीराज विभाग और ग्राम्य विकास विभाग ने प्रदेश में पंचायत चुनाव 2026 की तैयारियां शुरू कर दी है। इस बार 500 नए ग्राम प्रधान बनेंगे। साथ ही 75 ब्लॉक प्रमुख भी पहली बार बनेंगे। पंचायतीराज राज विभाग ने जहां पंचायतों के पुनर्गठन की प्रक्रिया को शुरू किया है। वहीं ग्राम्य विकास विभाग नए ब्लॉक के गठन की तैयारी कर रहा है। सभी जिलाधिकारियों और जिला पंचायतराज अधिकारियों से 5 जून तक रिपोर्ट मांगी गई है। पढ़ें पूरी खबर ‘2012 से केले की खेती कर रहे हैं। पिछले दिनों बेमौसम बारिश और तेज आंधी की वजह से इस साल बहुत नुकसान हो गया। 35 एकड़ केले की फसल लगाई थी, आधे पेड़ जमीन पर गिर गए। करीब 45 लाख का नुकसान हो गया।’ यह दर्द है लखीमपुर खीरी में केले की खेती करने वाले किसान विचित्र सिंह का। यह स्थिति सिर्फ उनकी नहीं, बल्कि जिले के बाकी किसानों को भी इसी तरह से झेलना पड़ा है। किसी का 2 लाख, तो किसी का 10 लाख रुपए का नुकसान हुआ। हालांकि तमाम ऐसे भी लोग हैं, जिनकी खेती थोड़ा पीछे रह गई। इससे वो लोग बहुत नुकसान होने से बच गए। लेकिन, आशंका है कि अगर फिर से बारिश और आंधी आई तो नुकसान होना तय है। दैनिक भास्कर की टीम लखीमपुर खीरी में केला किसानों से मिलने पहुंची। किन परिस्थिति में वे खेती बचा रहे, उसे समझा। गन्ने की खेती से मोह भंग क्यों हुआ, इसे जाना। केले की खेती से कैसे लाखों रुपए कमाए जा सकते हैं, इस बारे में समझने की कोशिश की। पढ़िए मुनाफे की खेती कैसे बन रहा केला? गन्ने की खेती क्यों छोड़ रहे? इस बार कैसे नुकसान हुआ? केले में ज्यादा मुनाफा, इसलिए इसकी खेती शुरू की
यूपी का लखीमपुर खीरी जिला भारत-नेपाल सीमा से जुड़ता है। इसी तरह से बहराइच, श्रावस्ती, सिद्धार्थनगर की भी सीमा नेपाल से लगती है। इन जिलों में पिछले 5 सालों के अंदर किसानों के अंदर एक बड़ा बदलाव आया। उनका मन गन्ने की खेती से उचट गया और केले की खेती करना शुरू कर दिया। हम इसकी वजह तलाशते हुए निघासन तहसील के बांगलहा, साहेतपुरवा, बम्हानपुर जैसे कई गांव पहुंचे। यहां अब भी 50 फीसदी किसान गन्ने की खेती करते हैं, लेकिन बचे हुए 50 फीसदी किसान केले की तरफ शिफ्ट हो गए हैं। हमारी मुलाकात बंगलहा गांव के मेही लाल से हुई। मेही लाल 6 बीघे खेत में केले की खेती करते हैं। हमने अप्रैल-मई महीने में हुई बारिश और आंधी से हुए नुकसान को लेकर बातचीत शुरू की। वह कहते हैं- बारिश और आंधी की वजह से नुकसान तो हुआ है। मेरे 25-30 पेड़ गिर गए। हालांकि, 3 साल पहले जिस तरह से पूरा नुकसान हो गया था, उस तरह से इस बार नहीं हुआ है। उस वक्त तो 6 लाख का नुकसान हो गया था। इस साल अभी तक हमने अपने पेड़ों को बचाकर रखा है। हमारी फसलों में अभी फल नहीं आए हैं, इसलिए पेड़ अभी भारी नहीं हुए हैं। हमने 6 बाय 6 फीट की दूरी पर पेड़ लगाए थे। इसलिए पेड़ मोटे हो गए और गिरे नहीं। मेही लाल से हमने केले की खेती से आमदनी को लेकर बात की। वह कहते हैं- हम एक बीघे में 300 पेड़ लगाते हैं। एक पेड़ में जो फसल तैयार होती है, वह 20 से लेकर 40 किलो तक हो जाती है। 1 हजार से 2 हजार रुपए क्विंटल तक इसका रेट जाता है। अगर अच्छी फसल हो गई, तो कमाई प्रति बीघा 1 लाख रुपए आराम से हो जाती है। जहां तक बात लागत की बात है, तो वह हर बीघे पर 30 हजार तक बैठ जाती है। हर 7 दिन में पानी और 15 दिन में खाद को लेकर हम तैयारी करते रहते हैं। आंधी से 45 लाख का नुकसान हो गया
हमारी मुलाकात निघासन के किसान विचित्र सिंह से हुई। केले की खेती के तजुर्बे को लेकर वह कहते हैं- हम 2012 से इसकी खेती कर रहे हैं। इस बार बहुत तगड़ा तूफान आया और हमें बहुत भयंकर चोट दे गया। 35 एकड़ खेत में केले की खेती लगाई थी, आधे पेड़ जमीन पर गिर गए। करीब 45 लाख रुपए का नुकसान हो गया। हम तो सरकार से यही अपील करते हैं कि हमारे दर्द को समझें और खेतों को देखें। जो कुछ मुआवजा वगैरह हो सकता है, मदद के रूप में दें। विचित्र सिंह 2012 से पहले गन्ने की खेती करते थे। अभी भी कुछ एकड़ में गन्ना लगा रखा है। हमने गन्ने की फसल से मोह भंग को लेकर बात की। वह कहते हैं- गन्ने की फसल में लागत कम लगती है। केले की फसल में हर तीसरे दिन जाना होता है। यह 12 महीने का काम होता है। लेकिन, जहां तक मुनाफे की बात है, वहां केले में प्रति एकड़ तीन लाख रुपए तक का आराम से मुनाफा निकल जाता है। लेकिन, गन्ने में ऐसा नहीं है। 1 लाख रुपए तक का माल निकलेगा और साल भर में इतनी ही आपकी लागत लग जाती है। आंधी के चलते आधी फसल चली गई
अंकुर पांडेय बम्हानपुर में पिछले 3 साल से केले की खेती कर रहे हैं। पहले गन्ने की खेती करते थे। हमने उनसे पूछा कि आखिर गन्ने से मोह भंग क्यों हुआ? अंकुर कहते हैं- पहले गन्ने में 0238 वेराइटी का गन्ना आता था। उसकी पैदावार एक एकड़ में 400 से 500 क्विंटल तक हो जाती थी। मुनाफा अच्छा हो जाता था, लेकिन बाढ़ के चलते वह वेराइटी ही गायब हो गई। इसके बाद 8436 और 15023 जैसी वैराइटी के गन्ने आए, लेकिन इनकी उपज कम रही। प्रति एकड़ 300 से 350 क्विंटल ही गन्ना निकल रहा था। गन्ने की ढुलाई महंगी हो गई, लेबर चार्ज भी महंगा हो गया। इसलिए बहुत सारे किसानों ने गन्ने की खेती छोड़ दी। अंकुर कहते हैं- केले की खेती में मेहनत है, लेकिन मुनाफा अच्छा है। जिसकी फसल अच्छी हो जाती है, उसे एक एकड़ में ही 4-5 लाख रुपए मिल जाते हैं। बाकी इस बार बेमौसम बारिश और आंधी की वजह से बहुत नुकसान हो गया। 25 मई को आई आंधी को देखकर मन में डर भर गया था। बहुत सारे पेड़ जमीन पर गिर गए। हमारी कोई सुनने वाला नहीं है। फसल बीमा के बारे में सुना था, लेकिन उसका फायदा वही ले सकता है, जो लगातार तहसीलों के चक्कर लगाता रहे। हम किसानों से यह नहीं हो पाता। पानी बरसा, इसलिए पानी लगाने की जरूरत नहीं
हमारी मुलाकात साहेतपुरवा के सुरेश कुमार से हुई। सुरेश ने 6 बीघे जमीन पर केले की खेती की है। जिन पेड़ों पर अभी फल नहीं लगे हैं, उनकी स्थिति ठीक है। उन्हें कम नुकसान हुआ है। सुरेश के खेतों में भी अभी पेड़ों में केले नहीं लगे। पसीने से लथपथ सुरेश फसल में खाद का छिड़काव कर रहे थे। रखरखाव को लेकर हमने सवाल किया, तो वह कहते हैं- हर 15 दिन में हम खाद का छिड़काव करते हैं। हर हफ्ते पानी लगाते हैं। लेकिन पिछले दिनों बारिश हो जाने के चलते पानी नहीं लगाना पड़ा। अब आगे आंधी-तूफान न आए तो अच्छा रहेगा। जुलाई-अगस्त में हमारी फसल तैयार हो जाएगी। पास ही खड़े सखाराम बताते हैं- लगातार बारिश और तेज हवा से केले को नुकसान होता है। पेड़ों को सबसे ज्यादा वीटर कीट से बचाना होता है। जहां से केला लगता है, वहीं ये कीट लग जाता है। फिर पूरे केले पर चलने लगता है। इससे केला खराब हो जाता है। हम लोग इसके लिए दवा का छिड़काव करते हैं। जहां तक केले के बाजार की बात है, इसका एक फायदा यह है कि केला कारोबारी खुद पिक-अप लेकर खेत में आते हैं और कटवाकर ले जाते हैं। गन्ने में तो सारी मेहनत खुद ही करनी होती है। गन्ना मिलों पर किसानों का 900 करोड़ बकाया
किसानों का गन्ने की तरफ से मोह भंग होना और फिर केले की फसल पर शिफ्ट होने की एक बड़ी वजह गन्ना मिलों का किसानों को समय पर भुगतान न करना है। लखीमपुर खीरी में 3 बड़ी गन्ना मिलें हैं, इन तीनों मिलों का जोड़ दें, तो किसानों का कुल बकाया करीब 900 करोड़ रुपए का है। ऊपर से गन्ने की फसल का समर्थन मूल्य भी इतना नहीं कि इसकी खेती से पैसा कमाया जा सके। स्थानीय पत्रकार और किसान यूनियन से जुड़े अमित वर्मा कहते हैं- 5 साल पहले तक हमारे इलाके में गन्ने की ही फसल नजर आती थी। लेकिन, पिछले 5 साल में पलिया, निघासन और मोहम्मदी के इलाके में लोगों ने केले की खेती करना शुरू कर दिया। अमित कहते हैं- केले की खेती में मुनाफा है, लेकिन मेहनत भी है। हालांकि, फसल तैयार होने पर इसमें फंसने की संभावना नहीं होती। दूसरी तरफ गन्ने को मिल तक ले जाइए। वहां पर्ची मिलेगी। पैसों के लिए महीनों इंतजार करना पड़ेगा। हमारे लखीमपुर में हजारों किसानों का करोड़ों रुपए आज तक मिल वालों ने भुगतान नहीं किया। सहयोग- शिवा गुप्ता, भास्कर रिपोर्टर, निघासन। ————————– ये खबर भी पढ़ें… यूपी पंचायत चुनाव में इस बार 500 प्रधान ज्यादा बनेंगे, 75 नए ब्लॉक प्रमुख भी होंगे; शासन ने DM और DPRO से मांगी रिपोर्ट पंचायतीराज विभाग और ग्राम्य विकास विभाग ने प्रदेश में पंचायत चुनाव 2026 की तैयारियां शुरू कर दी है। इस बार 500 नए ग्राम प्रधान बनेंगे। साथ ही 75 ब्लॉक प्रमुख भी पहली बार बनेंगे। पंचायतीराज राज विभाग ने जहां पंचायतों के पुनर्गठन की प्रक्रिया को शुरू किया है। वहीं ग्राम्य विकास विभाग नए ब्लॉक के गठन की तैयारी कर रहा है। सभी जिलाधिकारियों और जिला पंचायतराज अधिकारियों से 5 जून तक रिपोर्ट मांगी गई है। पढ़ें पूरी खबर   उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर