डकैत कुसुमा नाइन की मौत पर उसके गांव में जश्न:औरैया में परिवार बोले- घी के दीए जलाएंगे, 14 लोगों को मार डाला था

डकैत कुसुमा नाइन की मौत पर उसके गांव में जश्न:औरैया में परिवार बोले- घी के दीए जलाएंगे, 14 लोगों को मार डाला था

इटावा जेल में हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा काट रही औरैया की कुख्यात डकैत कुसुमा नाइन की रविवार को लखनऊ में इलाज के दौरान मौत हो गई। उस पर हत्या समेत करीब 24 केस दर्ज थे। देश में जितनी भी दस्यु सुंदरियां हुई हैं, उनमें कुसमा सबसे खूंखार मानी जाती थी। कुसुमा नाइन की मौत के बाद उसे गांव अस्ता में जश्न का माहौल है। गांव वाले कह रहे कि अब हम घी के दीपक जलाएंगे। अब उन 14 लोगों की आत्मा को शांति मिलेगी, जिनका कुसुमा ने नरसंहार किया था। चंबल के बीहड़ों में आतंक का दूसरा नाम रही कुसुमा नाइन ने 12 लोगों को गोलियों से भून दिया था। साथ ही दो लोगों को जिंदा जला दिया था। उसके डकैतों ने दो लोगों की आंखें निकाल ली थीं। गांव वालों का कहना है कि हमें देर से ही सही, इंसाफ तो मिल गया। कुसुमा नाइन कौन थी, लोगों में उसकी दहशत किस कदर थी, उसने कैसे चंबल के बीहड़ों में अपना वर्चस्व बनाया। यह सब जानने के लिए दैनिक भास्कर की टीम अस्ता गांव पहुंची। पीड़ित परिवारों से बात की। पढ़िए पूरी रिपोर्ट… पहले कुसुमा नाइन कौन थी, कैसे बीहड़ों की दहशत बनी? कुसुमा नाइन का बचपन रईसी में बीता
1964 में जालौन जिले के टिकरी गांव में जन्मी कुसुमा नाइन का बचपन रईसी में बीता। पिता गांव के प्रधान और सरकारी राशन दुकान के मालिक थे। लेकिन कुसुमा को पड़ोसी माधव मल्लाह से प्यार हो गया। घरवालों ने विरोध किया, लेकिन वह भागकर उसके साथ दिल्ली चली गई। पुलिस ने उसे पकड़ लिया और पिता ने उसकी शादी दूसरी जगह कर दी। लेकिन, तब तक माधव मल्लाह डाकू बन चुका था। वह गैंग के साथ आया और कुसुमा को उसके पति से छीनकर बीहड़ों में ले गया। यहीं से उसकी जिंदगी की दिशा और दशा दोनों बदल गई। डकैत कुसुमा नाइन की पूरी कहानी बताएंगे, लेकिन पहले उसके गांव वालों ने जो कुछ कहा…पढ़िए अस्ता गांव में जो हुआ, उसे यहां के लोग कभी भूल नहीं सकते। नरसंहार में जान गंवाने वालों में भगवानदीन, धनीराम, महादेव, लक्ष्मीनारायण, लालाराम, छोटेलाल, शंकर, रामशंकर, बांकेलाल, रामेश्वरदयाल, दर्शनलाल और शंभूदयाल शामिल थे। शिवकुमारी और उनका पांच साल का बेटा मुनेश घर में लगी आग में जिंदा जल गए थे। नरसंहार के बाद सरकार ने गांव में ‘शहीद चबूतरा’ बना दिया। लेकिन जो परिवार उजड़े, वे कभी अपनी जिंदगी पहले जैसी नहीं जी सके। दैनिक भास्कर से डकैत कुसुमा नाइन के सताए लोगों ने खुलकर बात की…. अब उनकी बात, जिनकी कुसुमा नाइन ने आंखें निकाल ली थीं संतोष बोले- 15 डकैतों ने गवाह के घर को घेर लिया
अस्ता गांव के संतोष ने बताया- दस्यु फक्कड़ बाबा उर्फ राम आसरे के भांजे रमाकांत, मोहन और पप्पू ने गांव के कामता प्रसाद की हत्या कर दी थी। इस मामले का मैं चश्मदीद था। गवाही से भांजों को सजा होने के डर से फक्कड़ बाबा ने मुझे सबक सिखाने का ऐलान किया था। 15 ​दिसंबर, 1996 की रात करीब 10 बजे कुसुमा नाइन की अगुवाई में करीब 15 डकैतों ने मेरे घर को घेर लिया। डकैत मुझे और मेरे घर पर सो रहे मित्र राजबहादुर समेत गांव के 6 लोगों को बंधक बनाकर गांव से 4 किलोमीटर दूर बीहड़ में ले गए। वहां डकैतों ने मेरे साथ बेरहमी से मारपीट की। इसके बाद धारदार ह​थियार से मेरी और राजबहादुर की आंखें फोड़ दीं। मेरे 4 साथी हम दोनों को किसी तरह गांव लेकर गए। इस घटना की रिपोर्ट राजबहादुर के भाई महलवान सिंह ने अयाना थाना में दर्ज कराई थी। डकैतों के विरोध में आंखें गंवाने वाले दोनों दोस्तों का कहना है कि डकैतों ने बीहड़ पर जमकर कहर बरपाया।​ जिससे आज तक बीहड़ उबर नहीं सका है। इस घटना के बाद से अस्ता गांव विकास की पटरी से ऐसा उतरा कि आज तक वापस न चढ़ सका। गांव के युवाओं को रोजगार तलाशने के लिए अपना आ​शियाना छोड़ना पड़ रहा है। अब पढ़िए डकैत कुसुमा नाइन की पूरी कहानी डकैतों की बंदूक थामी, फूलन देवी की गुलामी से तंग आई
कुसुमा नाइन जब बीहड़ में पहुंची, तो फूलन देवी ने उसे गुलाम बना लिया। उससे पानी भरवाती, खाना बनवाती और बुरी तरह प्रताड़ित करती थी। माधव मल्लाह भी फूलन के साथ हो गया। कुसुमा के अंदर बदले की आग धधकने लगी। फूलन के कहने पर विक्रम मल्लाह ने उसे लालाराम गैंग में भेज दिया, ताकि वह उसे मार सके। लेकिन कुसुमा लालाराम की गैंग से जुड़ गई और विक्रम मल्लाह की हत्या करवा दी। इस एनकाउंटर में माधव मल्लाह भी मारा गया। अब कुसुमा लालाराम की सबसे भरोसेमंद सदस्य बन चुकी थी। खूंखार डकैत बनी, बेरहमी की सारी हदें पार कीं
कुसुमा नाइन की क्रूरता के किस्से चंबल में दहशत की तरह फैले थे। जो भी उसके गिरोह की गिरफ्त में आता, उसे जिंदा नरक भोगना पड़ता। कभी वह अपहरण किए गए लोगों के नाखून उखाड़ देती, तो कभी जलती लकड़ी से उनके शरीर को दाग देती। 1995 में उसने रिटायर्ड ADG हरदेव आदर्श शर्मा का अपहरण किया और फिरौती मांगी। जब पैसे नहीं मिले, तो उसे गोली मारकर नहर में फेंक दिया। इस वारदात के बाद उस पर 35 हजार का इनाम रखा गया, लेकिन पुलिस उसे पकड़ नहीं पाई। फक्कड़ बाबा से प्रभावित होकर सरेंडर किया
कुख्यात डकैत पुतली बाई के बाद कुसुमा नाइन चंबल की सबसे बड़ी महिला डकैत बन चुकी थी। लेकिन फक्कड़ बाबा नाम के डकैत ने उसके अंदर छिपे साध्वी को जगा दिया। साल 2004 में कुसुमा नाइन और फक्कड़ बाबा ने अपनी पूरी गैंग के साथ सरेंडर करने का फैसला किया। कुसुमा ने शर्त रखी कि वह यूपी के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के सामने ही सरेंडर करेगी, लेकिन मुलायम व्यस्त थे और नहीं आ सके। इसके बावजूद, कुसुमा नाइन ने हथियार डाल दिए और जेल चली गई। वहां उसने 20 साल की सजा भी काटी। इटावा जेल में बंद थी। टीबी होने पर उसे सैफई मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया गया। हालत बिगड़ी तो लखनऊ केजी एमयू रेफर किया गया। यहां रविवार सुबह उसकी मौत हो गई। कुसुमा ने बेहमई कांड का लिया था बदला
26 मई, 1984 को कुख्यात डकैत लालाराम, श्रीराम और कुसुमा नाइन ने अस्ता गांव में जो खून की होली खेली थी। उसकी चीखें आज भी लोगों के जेहन में गूंजती हैं। उन्होंने 12 लोगों को एक लाइन में खड़ा कर गोलियों से छलनी कर दिया था। पूरे गांव को आग के हवाले कर दिया, जिसमें एक मां और उसके मासूम बेटे की जलकर मौत हो गई थी। गांव की गलियों में सिर्फ चीखें ही सुनाई दे रही थीं। इस नरसंहार के पीछे फूलन देवी का कुख्यात बेहमई कांड था, जिसमें 1981 में 20 ठाकुरों को एक लाइन में खड़ा कर गोली मार दी गई थी। अस्ता गांव में ठाकुरों की संख्या अधिक थी, इसलिए कुसुमा नाइन और उसकी गैंग ने यहां हमला बोला। ————————- ये खबर भी पढ़ेंः- रामपुर में जिस दुल्हन को दूल्हे ने थप्पड़ मारा…उसका दर्द:भरे स्टेज पर बेइज्जत किया, अब नाक रगड़ेगा तो भी उससे शादी नहीं करूंगी ‘6 महीने पहले हमारी शादी तय हुई थी। तब से हम दोनों फोन पर बात करते थे। उसने मुझे बताया था- मेरे ट्रक चलते हैं। बड़ा बिजनेस मैन हूं। अब वह नाक रगड़ेगा तो भी उससे शादी नहीं करूंगी। उसने बोलेरो के लिए स्टेज पर मुझे थप्पड़ मारा। मेरी बेइज्जती की…। पढ़ें पूरी खबर… इटावा जेल में हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा काट रही औरैया की कुख्यात डकैत कुसुमा नाइन की रविवार को लखनऊ में इलाज के दौरान मौत हो गई। उस पर हत्या समेत करीब 24 केस दर्ज थे। देश में जितनी भी दस्यु सुंदरियां हुई हैं, उनमें कुसमा सबसे खूंखार मानी जाती थी। कुसुमा नाइन की मौत के बाद उसे गांव अस्ता में जश्न का माहौल है। गांव वाले कह रहे कि अब हम घी के दीपक जलाएंगे। अब उन 14 लोगों की आत्मा को शांति मिलेगी, जिनका कुसुमा ने नरसंहार किया था। चंबल के बीहड़ों में आतंक का दूसरा नाम रही कुसुमा नाइन ने 12 लोगों को गोलियों से भून दिया था। साथ ही दो लोगों को जिंदा जला दिया था। उसके डकैतों ने दो लोगों की आंखें निकाल ली थीं। गांव वालों का कहना है कि हमें देर से ही सही, इंसाफ तो मिल गया। कुसुमा नाइन कौन थी, लोगों में उसकी दहशत किस कदर थी, उसने कैसे चंबल के बीहड़ों में अपना वर्चस्व बनाया। यह सब जानने के लिए दैनिक भास्कर की टीम अस्ता गांव पहुंची। पीड़ित परिवारों से बात की। पढ़िए पूरी रिपोर्ट… पहले कुसुमा नाइन कौन थी, कैसे बीहड़ों की दहशत बनी? कुसुमा नाइन का बचपन रईसी में बीता
1964 में जालौन जिले के टिकरी गांव में जन्मी कुसुमा नाइन का बचपन रईसी में बीता। पिता गांव के प्रधान और सरकारी राशन दुकान के मालिक थे। लेकिन कुसुमा को पड़ोसी माधव मल्लाह से प्यार हो गया। घरवालों ने विरोध किया, लेकिन वह भागकर उसके साथ दिल्ली चली गई। पुलिस ने उसे पकड़ लिया और पिता ने उसकी शादी दूसरी जगह कर दी। लेकिन, तब तक माधव मल्लाह डाकू बन चुका था। वह गैंग के साथ आया और कुसुमा को उसके पति से छीनकर बीहड़ों में ले गया। यहीं से उसकी जिंदगी की दिशा और दशा दोनों बदल गई। डकैत कुसुमा नाइन की पूरी कहानी बताएंगे, लेकिन पहले उसके गांव वालों ने जो कुछ कहा…पढ़िए अस्ता गांव में जो हुआ, उसे यहां के लोग कभी भूल नहीं सकते। नरसंहार में जान गंवाने वालों में भगवानदीन, धनीराम, महादेव, लक्ष्मीनारायण, लालाराम, छोटेलाल, शंकर, रामशंकर, बांकेलाल, रामेश्वरदयाल, दर्शनलाल और शंभूदयाल शामिल थे। शिवकुमारी और उनका पांच साल का बेटा मुनेश घर में लगी आग में जिंदा जल गए थे। नरसंहार के बाद सरकार ने गांव में ‘शहीद चबूतरा’ बना दिया। लेकिन जो परिवार उजड़े, वे कभी अपनी जिंदगी पहले जैसी नहीं जी सके। दैनिक भास्कर से डकैत कुसुमा नाइन के सताए लोगों ने खुलकर बात की…. अब उनकी बात, जिनकी कुसुमा नाइन ने आंखें निकाल ली थीं संतोष बोले- 15 डकैतों ने गवाह के घर को घेर लिया
अस्ता गांव के संतोष ने बताया- दस्यु फक्कड़ बाबा उर्फ राम आसरे के भांजे रमाकांत, मोहन और पप्पू ने गांव के कामता प्रसाद की हत्या कर दी थी। इस मामले का मैं चश्मदीद था। गवाही से भांजों को सजा होने के डर से फक्कड़ बाबा ने मुझे सबक सिखाने का ऐलान किया था। 15 ​दिसंबर, 1996 की रात करीब 10 बजे कुसुमा नाइन की अगुवाई में करीब 15 डकैतों ने मेरे घर को घेर लिया। डकैत मुझे और मेरे घर पर सो रहे मित्र राजबहादुर समेत गांव के 6 लोगों को बंधक बनाकर गांव से 4 किलोमीटर दूर बीहड़ में ले गए। वहां डकैतों ने मेरे साथ बेरहमी से मारपीट की। इसके बाद धारदार ह​थियार से मेरी और राजबहादुर की आंखें फोड़ दीं। मेरे 4 साथी हम दोनों को किसी तरह गांव लेकर गए। इस घटना की रिपोर्ट राजबहादुर के भाई महलवान सिंह ने अयाना थाना में दर्ज कराई थी। डकैतों के विरोध में आंखें गंवाने वाले दोनों दोस्तों का कहना है कि डकैतों ने बीहड़ पर जमकर कहर बरपाया।​ जिससे आज तक बीहड़ उबर नहीं सका है। इस घटना के बाद से अस्ता गांव विकास की पटरी से ऐसा उतरा कि आज तक वापस न चढ़ सका। गांव के युवाओं को रोजगार तलाशने के लिए अपना आ​शियाना छोड़ना पड़ रहा है। अब पढ़िए डकैत कुसुमा नाइन की पूरी कहानी डकैतों की बंदूक थामी, फूलन देवी की गुलामी से तंग आई
कुसुमा नाइन जब बीहड़ में पहुंची, तो फूलन देवी ने उसे गुलाम बना लिया। उससे पानी भरवाती, खाना बनवाती और बुरी तरह प्रताड़ित करती थी। माधव मल्लाह भी फूलन के साथ हो गया। कुसुमा के अंदर बदले की आग धधकने लगी। फूलन के कहने पर विक्रम मल्लाह ने उसे लालाराम गैंग में भेज दिया, ताकि वह उसे मार सके। लेकिन कुसुमा लालाराम की गैंग से जुड़ गई और विक्रम मल्लाह की हत्या करवा दी। इस एनकाउंटर में माधव मल्लाह भी मारा गया। अब कुसुमा लालाराम की सबसे भरोसेमंद सदस्य बन चुकी थी। खूंखार डकैत बनी, बेरहमी की सारी हदें पार कीं
कुसुमा नाइन की क्रूरता के किस्से चंबल में दहशत की तरह फैले थे। जो भी उसके गिरोह की गिरफ्त में आता, उसे जिंदा नरक भोगना पड़ता। कभी वह अपहरण किए गए लोगों के नाखून उखाड़ देती, तो कभी जलती लकड़ी से उनके शरीर को दाग देती। 1995 में उसने रिटायर्ड ADG हरदेव आदर्श शर्मा का अपहरण किया और फिरौती मांगी। जब पैसे नहीं मिले, तो उसे गोली मारकर नहर में फेंक दिया। इस वारदात के बाद उस पर 35 हजार का इनाम रखा गया, लेकिन पुलिस उसे पकड़ नहीं पाई। फक्कड़ बाबा से प्रभावित होकर सरेंडर किया
कुख्यात डकैत पुतली बाई के बाद कुसुमा नाइन चंबल की सबसे बड़ी महिला डकैत बन चुकी थी। लेकिन फक्कड़ बाबा नाम के डकैत ने उसके अंदर छिपे साध्वी को जगा दिया। साल 2004 में कुसुमा नाइन और फक्कड़ बाबा ने अपनी पूरी गैंग के साथ सरेंडर करने का फैसला किया। कुसुमा ने शर्त रखी कि वह यूपी के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के सामने ही सरेंडर करेगी, लेकिन मुलायम व्यस्त थे और नहीं आ सके। इसके बावजूद, कुसुमा नाइन ने हथियार डाल दिए और जेल चली गई। वहां उसने 20 साल की सजा भी काटी। इटावा जेल में बंद थी। टीबी होने पर उसे सैफई मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया गया। हालत बिगड़ी तो लखनऊ केजी एमयू रेफर किया गया। यहां रविवार सुबह उसकी मौत हो गई। कुसुमा ने बेहमई कांड का लिया था बदला
26 मई, 1984 को कुख्यात डकैत लालाराम, श्रीराम और कुसुमा नाइन ने अस्ता गांव में जो खून की होली खेली थी। उसकी चीखें आज भी लोगों के जेहन में गूंजती हैं। उन्होंने 12 लोगों को एक लाइन में खड़ा कर गोलियों से छलनी कर दिया था। पूरे गांव को आग के हवाले कर दिया, जिसमें एक मां और उसके मासूम बेटे की जलकर मौत हो गई थी। गांव की गलियों में सिर्फ चीखें ही सुनाई दे रही थीं। इस नरसंहार के पीछे फूलन देवी का कुख्यात बेहमई कांड था, जिसमें 1981 में 20 ठाकुरों को एक लाइन में खड़ा कर गोली मार दी गई थी। अस्ता गांव में ठाकुरों की संख्या अधिक थी, इसलिए कुसुमा नाइन और उसकी गैंग ने यहां हमला बोला। ————————- ये खबर भी पढ़ेंः- रामपुर में जिस दुल्हन को दूल्हे ने थप्पड़ मारा…उसका दर्द:भरे स्टेज पर बेइज्जत किया, अब नाक रगड़ेगा तो भी उससे शादी नहीं करूंगी ‘6 महीने पहले हमारी शादी तय हुई थी। तब से हम दोनों फोन पर बात करते थे। उसने मुझे बताया था- मेरे ट्रक चलते हैं। बड़ा बिजनेस मैन हूं। अब वह नाक रगड़ेगा तो भी उससे शादी नहीं करूंगी। उसने बोलेरो के लिए स्टेज पर मुझे थप्पड़ मारा। मेरी बेइज्जती की…। पढ़ें पूरी खबर…   उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर