…तब शादी के खूंटे से ऐसे बांध दिए जाते थे:घर वालों से कहा- पैरों पर खड़ा हो जाऊं तो शादी करूंगा, ताना मिला- लंगड़ा है क्या

…तब शादी के खूंटे से ऐसे बांध दिए जाते थे:घर वालों से कहा- पैरों पर खड़ा हो जाऊं तो शादी करूंगा, ताना मिला- लंगड़ा है क्या

‘मेरे घर वालों से मैंने कहा पैरों पर खड़ा हो जाऊं तो शादी करूंगा। तो वो बोले कि तू लंगड़ा है, जो तुझे पैरों पर खड़ा होना है।’ एक दिन सुबह के 5 बजे ही मेरी आंख खुल गई। पता चला सुबह-सुबह काकीनाडा वाले ताऊजी आए हुए थे। मैंने देखा, मेरा बापू और ताऊजी माथे पर हाथ रखकर बैठे थे। ताऊ ने बड़े ही दुखी स्वर में पिताजी से कहा, ‘बालकिशन, कब तक हम औरों के ब्याह में जाते रहेंगे? बेटे का ब्याह जल्दी कर भाई। कलकत्ते से, सूरजगढ़ से हर हफ्ते चिट्ठी आ रही है कि तुम्हारे बेटे की शादी हो तो हम भी अपने छोरों की शादी की सोचें। इसी गम में अपने पिताजी भी चले गए कि पोते की बहू का मुंह देख लें!’ …मैं दरवाजे के पीछे खड़ा-खड़ा ताऊजी का उलाहना सुन रहा था। ताऊजी और बापू जी की बातें सुनकर मैं समझ गया था कि ये लोग मेरा ब्याह कराकर ही दम लेंगे। ताऊजी की बातें सुनने के बाद मेरे बापू ने उनसे कहा, ‘छोरा कहता है कि वो अपने पैरों पर खड़ा हो जाए तब ब्याह करेगा। ब्याह से उसकी पढ़ाई का हर्जा होगा। क्योंकि उससा मानना है कि शादी के बाद पूरा ध्यान पत्नी में लगा रहेगा तो वह आखिर अपनी पढ़ाई कब करेगा।’ ताऊजी बोले, ‘बालकिशन, यो के लंगड़ा है, जो पैरों पे खड़ा ना हो सके। और वो छोरी कोई उछल-कूद करने वाली है, जो इसकी किताब फाड़ देगी?’ वैसे मेरे दादाजी की मौत, दिल का दौरा पड़ने से हुई थी, लेकिन ताऊजी उनकी मौत का कारण भी मेरे ब्याह न होने को ही बता रहे थे! ताकि जब मेरी शादी के लिए कोई रिश्ता आए तो मैं ना-नुकुर न करूं। मैं घर का सबसे बड़ा पोता था, इसलिए काकाओं-बाबाओं को अपने बच्चों के ब्याह से ज्यादा मेरे ब्याह की चिंता होती थी। बहरहाल, मेरे बापू जी तरह-तरह की तरकीबों से मुझे शादी करने के तैयार कर रहे थे और साम-दाम, दंड-भेद सभी तरीके आजमा रहे थे। जब मुझे पक्का विश्वास हो गया कि अब मेरा बापू मेरा ब्याह किए बिना चैन नहीं लेगा, तब मैंने भी ब्याह की मानसिक तैयारी शुरू कर दी। खारी बावली में जिस मकान में हमारा परिवार रहता था, वहां मेरे लिए ब्याह के बाद अलग रहने के लायक कोई कमरा नहीं था। इसलिए मैंने अपने दोस्तों से सलाह लेकर विवाह के लिए हां भरने की शर्तें कागज पर लिखनी शुरू कर दीं। 1. विवाह होने से पहले ड्राइंग रूम में लकड़ी की दीवार खींची जाए।
2. कम से कम पचास रुपए महीने का जेब खर्च मुझे मिले, जिसका हिसाब मुझसे न पूछा जाए।
3. महीने में कम से कम दो बार अपनी पत्नी को फिल्म दिखाने ले जाऊं, तो उसके लिए मुझे किसी की मंजूरी नहीं लेनी पड़े। इसी तरह के आठ-दस बिंदुओं का मासूम सा प्रस्ताव पत्र तैयार तो हो गया, लेकिन किसी की हिम्मत नहीं थी कि बापू को ये कागज दे कौन! अंततः यह कागज मां को दिया गया, क्योंकि मां के सामने बापू की घिग्घी बंध जाती थी। पत्नी से डरकर रहना हमारा खानदानी रिवाज है। मैंने भी शादी के बाद इस रिवाज को पूरे कायदे से निभाया और अब जब कभी मेरे बेटे की अपनी बीवी के सामने घिग्घी बंधती है, तो मुझे बहुत सुकून मिलता है कि खानदान की परंपरा को निभाने में मेरे बच्चे भी कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं! यह भी पढ़ें:- राहुल गांधी की शादी हो गई होती तो…:क्या वो यात्रा कर पाते? हर समय पत्नी पूछती, कहां जा रहे, क्यों जा रहे हो ‘मेरे घर वालों से मैंने कहा पैरों पर खड़ा हो जाऊं तो शादी करूंगा। तो वो बोले कि तू लंगड़ा है, जो तुझे पैरों पर खड़ा होना है।’ एक दिन सुबह के 5 बजे ही मेरी आंख खुल गई। पता चला सुबह-सुबह काकीनाडा वाले ताऊजी आए हुए थे। मैंने देखा, मेरा बापू और ताऊजी माथे पर हाथ रखकर बैठे थे। ताऊ ने बड़े ही दुखी स्वर में पिताजी से कहा, ‘बालकिशन, कब तक हम औरों के ब्याह में जाते रहेंगे? बेटे का ब्याह जल्दी कर भाई। कलकत्ते से, सूरजगढ़ से हर हफ्ते चिट्ठी आ रही है कि तुम्हारे बेटे की शादी हो तो हम भी अपने छोरों की शादी की सोचें। इसी गम में अपने पिताजी भी चले गए कि पोते की बहू का मुंह देख लें!’ …मैं दरवाजे के पीछे खड़ा-खड़ा ताऊजी का उलाहना सुन रहा था। ताऊजी और बापू जी की बातें सुनकर मैं समझ गया था कि ये लोग मेरा ब्याह कराकर ही दम लेंगे। ताऊजी की बातें सुनने के बाद मेरे बापू ने उनसे कहा, ‘छोरा कहता है कि वो अपने पैरों पर खड़ा हो जाए तब ब्याह करेगा। ब्याह से उसकी पढ़ाई का हर्जा होगा। क्योंकि उससा मानना है कि शादी के बाद पूरा ध्यान पत्नी में लगा रहेगा तो वह आखिर अपनी पढ़ाई कब करेगा।’ ताऊजी बोले, ‘बालकिशन, यो के लंगड़ा है, जो पैरों पे खड़ा ना हो सके। और वो छोरी कोई उछल-कूद करने वाली है, जो इसकी किताब फाड़ देगी?’ वैसे मेरे दादाजी की मौत, दिल का दौरा पड़ने से हुई थी, लेकिन ताऊजी उनकी मौत का कारण भी मेरे ब्याह न होने को ही बता रहे थे! ताकि जब मेरी शादी के लिए कोई रिश्ता आए तो मैं ना-नुकुर न करूं। मैं घर का सबसे बड़ा पोता था, इसलिए काकाओं-बाबाओं को अपने बच्चों के ब्याह से ज्यादा मेरे ब्याह की चिंता होती थी। बहरहाल, मेरे बापू जी तरह-तरह की तरकीबों से मुझे शादी करने के तैयार कर रहे थे और साम-दाम, दंड-भेद सभी तरीके आजमा रहे थे। जब मुझे पक्का विश्वास हो गया कि अब मेरा बापू मेरा ब्याह किए बिना चैन नहीं लेगा, तब मैंने भी ब्याह की मानसिक तैयारी शुरू कर दी। खारी बावली में जिस मकान में हमारा परिवार रहता था, वहां मेरे लिए ब्याह के बाद अलग रहने के लायक कोई कमरा नहीं था। इसलिए मैंने अपने दोस्तों से सलाह लेकर विवाह के लिए हां भरने की शर्तें कागज पर लिखनी शुरू कर दीं। 1. विवाह होने से पहले ड्राइंग रूम में लकड़ी की दीवार खींची जाए।
2. कम से कम पचास रुपए महीने का जेब खर्च मुझे मिले, जिसका हिसाब मुझसे न पूछा जाए।
3. महीने में कम से कम दो बार अपनी पत्नी को फिल्म दिखाने ले जाऊं, तो उसके लिए मुझे किसी की मंजूरी नहीं लेनी पड़े। इसी तरह के आठ-दस बिंदुओं का मासूम सा प्रस्ताव पत्र तैयार तो हो गया, लेकिन किसी की हिम्मत नहीं थी कि बापू को ये कागज दे कौन! अंततः यह कागज मां को दिया गया, क्योंकि मां के सामने बापू की घिग्घी बंध जाती थी। पत्नी से डरकर रहना हमारा खानदानी रिवाज है। मैंने भी शादी के बाद इस रिवाज को पूरे कायदे से निभाया और अब जब कभी मेरे बेटे की अपनी बीवी के सामने घिग्घी बंधती है, तो मुझे बहुत सुकून मिलता है कि खानदान की परंपरा को निभाने में मेरे बच्चे भी कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं! यह भी पढ़ें:- राहुल गांधी की शादी हो गई होती तो…:क्या वो यात्रा कर पाते? हर समय पत्नी पूछती, कहां जा रहे, क्यों जा रहे हो   उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर