Delhi Riots: कड़कड़डूमा कोर्ट ने शाहनवाज को हत्या के आरोप से किया बरी, कहा- पर्याप्त सबूत नहीं <p style=”text-align: justify;”><strong>Delhi News:</strong> दिल्ली दंगों से जुड़े हत्या के एक मामले में कड़कड़डूमा कोर्ट ने आरोपी को बरी कर दिया है. अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश पुलस्त्य प्रामचल ने मामले की सुनवाई की. गोकलपुरी पुलिस की तरफ से दर्ज किए गए मुकदमे में मोहम्मद शाहनवाज उर्फ शानू आरोपी थे. 26 फरवरी 2020 को ईस्ट दिल्ली के चमन पार्क इलाके में एक गोदाम से दिलबर नेगी का अधजला शव बरामद हुआ था. पुलिस के मुताबिक शाहनवाज ने गोदाम में पेट्रोल बम फेंककर आग लगाई थी, जिससे हुई चोटों के कारण नेगी की मौत हो गई थी. </p>
<p style=”text-align: justify;”>कड़कड़डूमा कोर्ट ने 24 फरवरी के आदेश में कहा कि अभियोजन पक्ष के एक प्रमुख चश्मदीद गवाह ने घटना देखने से इनकार कर दिया, जबकि एक अन्य गवाह की गवाही अस्थिरता थी. साथ ही शाहनवाज की पहचान को लेकर निश्चित नहीं था. हालाकि एक अन्य चश्मदीद गवाह ने स्वीकार करने से इनकार कर दिया कि उसने आरोपी को रात 9 बजे गोदाम में प्रवेश करते हुए देखा था या दंगाइयों को उस समय आग लगाते हुए देखा था. उसने यह भी खंडन किया कि उसने दंगाइयों को रोकने की कोशिश की थी, लेकिन वे नहीं माने.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>दिल्ली दंगों से जुड़ा हत्या का मामला</strong></p>
<p style=”text-align: justify;”>अदालत ने कहा कि गोदाम के मालिक और उसके परिवार के सदस्यों ने पीड़ित का शव मिलने के तुरंत बाद पुलिस को आरोपी का नाम नहीं बताया था. कोर्ट ने सवाल उठाते हुए कहा दिल्ली पुलिस ने मामले की एफआईआर 28 फरवरी 2020 को दर्ज की थी. यदि अभियोजन पक्ष के गवाह गोदाम मालिक को आरोपी का नाम 24 फरवरी 2020 (घटना के दिन) से ही पता था, तो उन्होंने एफआईआर दर्ज होने से पहले पुलिस को यह नाम क्यों नहीं बताया.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>कड़कड़डूमा कोर्ट ने सुनाया आदेश</strong></p>
<p style=”text-align: justify;”>गवाहों द्वारा शाहनवाज की पहचान एक दंगाई भीड़ के सदस्य के रूप में किए जाने को अदालत ने अविश्वसनीय बताया. कोर्ट ने कहा कि मुझे लगता है कि अभियोजन पक्ष यह साबित करने में विफल रहा कि आरोपी शाहनवाज रात 9 बजे अन्य दंगाइयों के साथ गोदाम में घुसा और उसके बाद उन दंगाइयों ने उसमें आग लगा दी. अदालत ने माना कि आरोपी के खिलाफ आरोप संदेह से परे सिद्ध नहीं हो पाए हैं, इसलिए संदेह का लाभ देते हुए बरी किया जाता है. </p>
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