<p style=”text-align: justify;”><strong>Delhi High Court:</strong> दिल्ली के दिल कस्तूरबा गांधी मार्ग पर बने अंसल भवन के एक फ्लैट में जीवन बसाने का सपना देखा गया था, लेकिन यह सपना एक लंबी कानूनी लड़ाई और राज्य की कथित ‘अन्यायपूर्ण’ कार्रवाई के चलते सालों तक अधूरा ही रह गया. अब, 23 साल बाद, दिल्ली हाईकोर्ट ने वह आवाज बुलंद की है. कोर्ट ने कहा है कि जो नागरिकों के अधिकारों का रक्षक होता है, उसे भक्षक की भूमिका नहीं निभानी चाहिए. संविधान की मर्यादा का पालन हर स्थिति में अनिवार्य है. </p>
<p style=”text-align: justify;”>दिल्ली हाई कोर्ट जस्टिस पुरुषेन्द्र कुमार कौरव की अदालत ने एक ऐतिहासिक फैसले में कहा कि भले ही संपत्ति का अधिकार अब मौलिक अधिकार न रहा हो, फिर भी यह संविधान के अनुच्छेद 300A के तहत एक मजबूत कानूनी अधिकार बना हुआ है, और उसे बिना उचित कानून व प्रक्रिया के छीना नहीं जा सकता.</p>
<div dir=”auto” style=”text-align: justify;”><strong>आपातकाल में शुरू हुई कहानी</strong></div>
<p style=”text-align: justify;”>यह मामला 1977 के आपातकाल से जुड़ा है. आरोप है कि उस समय एक निरोध आदेश के आधार पर इस फ्लैट को अवैध रूप से जब्त कर लिया गया था, जबकि बाद में वह आदेश ही रद्द कर दिया गया. इसके बावजूद, 1998 में केंद्र सरकार ने संपत्ति को SAFEMA कानून के तहत जब्त कर लिया और वादियों को उनका हक नहीं मिल सका.</p>
<p style=”text-align: justify;”>वादियों ने कोर्ट में दावा किया कि उन्हें न केवल संपत्ति से वंचित किया गया, बल्कि मानसिक, आर्थिक और कानूनी रूप से भी सालों तक प्रताड़ित होना पड़ा. उन्होंने मेज़न प्रोफिट (यानी अवैध कब्जे के दौरान मिलने वाला किराया), बाजार मूल्य के नुकसान और ब्याज की मांग की.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>मिला न्याय, देर से लेकिन पूरे सम्मान के साथ</strong></p>
<p style=”text-align: justify;”>कोर्ट ने इस मामले में राज्य की भूमिका पर तीखी टिप्पणी करते हुए कहा जब राज्य ही अधिकारों का हनन करता है, तो न्याय की नींव हिलने लगती है. कार्यपालिका को संविधान की सीमाओं में रहकर काम करना चाहिए अन्यथा यह संवैधानिक अपराध है और लोकतंत्र में सरकार की सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी होती है कि वह लोगों के हक की रक्षा करे, न कि उन्हें कुचले.</p>
<p style=”text-align: justify;”>अदालत ने 1999 से 2020 तक की अवधि को अवैध कब्जा मानते हुए सरकार को 1.76 करोड़ रुपये का हर्जाना देने का आदेश दिया है. यह फैसला सिर्फ एक कानूनी जीत नहीं, बल्कि उन असंख्य नागरिकों के लिए आशा की किरण है जो राज्य के अन्याय के खिलाफ खड़े होते हैं.</p> <p style=”text-align: justify;”><strong>Delhi High Court:</strong> दिल्ली के दिल कस्तूरबा गांधी मार्ग पर बने अंसल भवन के एक फ्लैट में जीवन बसाने का सपना देखा गया था, लेकिन यह सपना एक लंबी कानूनी लड़ाई और राज्य की कथित ‘अन्यायपूर्ण’ कार्रवाई के चलते सालों तक अधूरा ही रह गया. अब, 23 साल बाद, दिल्ली हाईकोर्ट ने वह आवाज बुलंद की है. कोर्ट ने कहा है कि जो नागरिकों के अधिकारों का रक्षक होता है, उसे भक्षक की भूमिका नहीं निभानी चाहिए. संविधान की मर्यादा का पालन हर स्थिति में अनिवार्य है. </p>
<p style=”text-align: justify;”>दिल्ली हाई कोर्ट जस्टिस पुरुषेन्द्र कुमार कौरव की अदालत ने एक ऐतिहासिक फैसले में कहा कि भले ही संपत्ति का अधिकार अब मौलिक अधिकार न रहा हो, फिर भी यह संविधान के अनुच्छेद 300A के तहत एक मजबूत कानूनी अधिकार बना हुआ है, और उसे बिना उचित कानून व प्रक्रिया के छीना नहीं जा सकता.</p>
<div dir=”auto” style=”text-align: justify;”><strong>आपातकाल में शुरू हुई कहानी</strong></div>
<p style=”text-align: justify;”>यह मामला 1977 के आपातकाल से जुड़ा है. आरोप है कि उस समय एक निरोध आदेश के आधार पर इस फ्लैट को अवैध रूप से जब्त कर लिया गया था, जबकि बाद में वह आदेश ही रद्द कर दिया गया. इसके बावजूद, 1998 में केंद्र सरकार ने संपत्ति को SAFEMA कानून के तहत जब्त कर लिया और वादियों को उनका हक नहीं मिल सका.</p>
<p style=”text-align: justify;”>वादियों ने कोर्ट में दावा किया कि उन्हें न केवल संपत्ति से वंचित किया गया, बल्कि मानसिक, आर्थिक और कानूनी रूप से भी सालों तक प्रताड़ित होना पड़ा. उन्होंने मेज़न प्रोफिट (यानी अवैध कब्जे के दौरान मिलने वाला किराया), बाजार मूल्य के नुकसान और ब्याज की मांग की.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>मिला न्याय, देर से लेकिन पूरे सम्मान के साथ</strong></p>
<p style=”text-align: justify;”>कोर्ट ने इस मामले में राज्य की भूमिका पर तीखी टिप्पणी करते हुए कहा जब राज्य ही अधिकारों का हनन करता है, तो न्याय की नींव हिलने लगती है. कार्यपालिका को संविधान की सीमाओं में रहकर काम करना चाहिए अन्यथा यह संवैधानिक अपराध है और लोकतंत्र में सरकार की सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी होती है कि वह लोगों के हक की रक्षा करे, न कि उन्हें कुचले.</p>
<p style=”text-align: justify;”>अदालत ने 1999 से 2020 तक की अवधि को अवैध कब्जा मानते हुए सरकार को 1.76 करोड़ रुपये का हर्जाना देने का आदेश दिया है. यह फैसला सिर्फ एक कानूनी जीत नहीं, बल्कि उन असंख्य नागरिकों के लिए आशा की किरण है जो राज्य के अन्याय के खिलाफ खड़े होते हैं.</p> दिल्ली NCR सरकारी स्कूल की जमीन पर बना अवैध मदरसा ध्वस्त, SDM के निर्देश पर चला बुलडोजर
दिल्ली हाई कोर्ट का बड़ा फैसला, सरकार को देना होगा 1.76 करोड़ रुपये का हर्जाना
