देश में जल्द बनेगा बोइंग एयरक्राफ्ट:सुपर कंप्यूटर के जनक डॉ. विजय पांडुरंग बोले- ‘क्वांटम कंप्यूटर से अमेरिका-चीन से आगे होगा भारत’

देश में जल्द बनेगा बोइंग एयरक्राफ्ट:सुपर कंप्यूटर के जनक डॉ. विजय पांडुरंग बोले- ‘क्वांटम कंप्यूटर से अमेरिका-चीन से आगे होगा भारत’

सुपर कंप्यूटर से कई हजार गुना तेज क्वांटम कंप्यूटर पर काम हो रहा है। इसके प्रोटोटाइप तैयार किए जा चुके हैं। महज कुछ सालों के भीतर क्वांटम मिशन तैयार कर लिया जाएगा। क्वांटम कंप्यूटर बनने के बाद भारत खुद का एयरक्राफ्ट बनाकर उसका सिमुलेशन करने में कामयाब होगा। इससे दुनिया की टॉप एयरक्राफ्ट निर्माता अमेरिकन कंपनी बोइंग पर से निर्भरता कम होगी। देश खुद की एयरक्राफ्ट वर्किंग टेक्नोलॉजी को डेवलप कर पाएगा। इसके अलावा डिफेंस, मेडिकल, फार्मा, मैथेमैटिकल और स्पेस समेत कई क्षेत्रों में कामयाबी मिलेगी। भारत, दुनिया भर में अपनी तकनीकी का लोहा मनवा सकेगा। ये कहना है भारत के सुपर कंप्यूटर के जनक डॉ. विजय पांडुरंग का। लखनऊ यूनिवर्सिटी के 67वें दीक्षांत समारोह में शामिल होने पहुंचे विजय पांडुरंग से दैनिक भास्कर ने खास बातचीत की। उन्होंने दावा किया कि क्वांटम कंप्यूटर से भारत की डिजिटल क्रांति का डंका दुनिया में बजेगा। अब पढ़िए डॉ. विजय पांडुरंग से सवाल-जवाब… सवाल: लखनऊ कितने दिनों बाद आना हुआ और यहां आने के बाद कैसा लग रहा है? जवाब: इससे पहले भारतीय विज्ञान सम्मेलन के आयोजन के दौरान यहां आना हुआ था। कार्यक्रम का आयोजन योगी जी अगुवाई में हुआ था। नए लखनऊ को देखकर बेहद प्रभावित हूं। यूपी की इमेज में बड़ा बदलाव आया है। राज्य की कानून-व्यवस्था बदली है। कई अच्छे रिसर्च संस्थान भी यहां तैयार हो रहे हैं। यहां आकर अच्छा लग रहा है। सवाल: सुपर कंप्यूटर बनाने के दौरान कई चैलेंज आए होंगे, उनसे कैसे पार पाया? जवाब: कुछ भी नया बनाने में कई चैलेंज का सामना करना पड़ता है। सुपर कंप्यूटर बनाने के दौरान सभी टास्क एक चैलेंज जैसे थे। उस समय देश के पास कुछ भी टेक्नोलॉजी उपलब्ध नहीं थी और अमेरिका भारत को कुछ भी देने का तैयार नहीं था। लेकिन खुद के प्रयासों से, अपने ब्रेन का प्रयोग करके हम सुपर कंप्यूटर डेवलप करने में कामयाब हुए। भारत में वैदिक काल के दौर से ही हम शोध करते आए हैं। उन्हीं से प्रेरणा लेकर हम सुपर कंप्यूटर बनाने में कामयाब रहे। सवाल: फिलहाल जिस नई टेक्नोलॉजी पर काम कर रहे उसके बारे में बताए? जवाब: क्वांटम टेक्नोलॉजी नई शोध है। ये बेहद नई सोच है। भारत सरकार ने नेशनल क्वांटम मिशन की पहल की है। अगले 5 साल में इसे पूरा करने का लक्ष्य है। इसका एक प्रारूप बनाकर कई एक्सपर्ट साथ मिलकर इस पर काम कर रहे हैं। नई एजुकेशन पॉलिसी भी इसी पर फोकस करती हैं। नई यूनिवर्सिटी में कैसे रिसर्च वर्क को बढ़ावा दिया जाए, इस दिशा में कई अहम कदम उठाए गए हैं। तमाम नए संस्थान भी इसी मकसद पर काम करने के लिए स्थापित किए गए हैं। सवाल: सुपर कंप्यूटर बनाने का सफर कैसा रहा? जवाब: भारत कृषि प्रधान देश है। कृषि ही भारत की अर्थव्यवस्था का आधार थी, लेकिन करीब 35 साल पहले तक किसान को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता था। इसके पीछे की वजह मौसम की सटीक जानकारी न होना थी। कब बरसात होगी, कब नहीं होगी, यह जानकारी किसानों को नहीं मिल पाती थी। इस कारण पूरे देश को बहुत नुकसान झेलना पड़ता था। देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी, सुपर कंप्यूटर की तकनीक लेने अमेरिका गए। जहां, अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन समेत वहां के कई शीर्ष नेताओं, वैज्ञानिकों और सेना के अधिकारियों के साथ बैठक हुई। अमेरिका ने भारत को झटका दे दिया और कहा कि हम पुरानी तकनीक देंगे, लेकिन भारत में हमारी टीम इसकी निगरानी करेगी। अमेरिका से वापस लौटकर राजीव गांधी ने हमसे बात की और सुपर कंप्यूटर बनाने की जिम्मेदारी भी सौंप दी। वहीं से यह सफर शुरू हुआ और हमने सफलता भी पाई। सवाल: कितने समय में सुपर कंप्यूटर बनाया गया? जवाब: तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने बैठक में उनसे पूछा था कि क्या हम सुपर कंप्यूटर नहीं बना सकते। हमने कहा कि सुपर कंप्यूटर की फोटो देखी है, लेकिन हम उनके कंप्यूटर की कॉपी नहीं कर सकते। हम खुद की टेक्नोलॉजी पर आधारित सुपर कंप्यूटर जरूर बना सकते हैं। इसके लिए 3 साल की समय सीमा तय हुई। भारत में सुपर कंप्यूटर को बनाने में 100 लोगों की टीम ने काम किया था। करीब 37 करोड़ की लागत से 3 साल में इसे तैयार कर दिया गया। सवाल: देश में प्रतिभा पलायन की समस्या पर क्या कहना चाहेंगे? जवाब: जो भी युवा अमेरिका जाना चाहते हैं, वे जरूर जाएं, लेकिन वहां से अच्छी चीजें सीखकर अपने देश लौट आएं। भारत में वापस आकर वो देश को नया विस्तार देने के साथ भविष्य को बेहतर बनाने में जुटें। इससे ब्रेन ड्रेन अपने आप ब्रेन गेन में बदल जाएगा। AI से पड़ने वाले प्रभाव पर पूछे गए सवाल के जवाब में उन्होंने बताया कि पूरी दुनिया इसके अच्छे और बुरे परिणाम को लेकर मंथन कर रही है। AI की सीमा को तय करना जरूरी है। सुपर कंप्यूटर के जनक का अब तक का सफरनामा
फादर ऑफ इंडियन सुपर कंप्यूटर की उपाधि डॉ.विजय पांडुरंग भातकर को दी गई है। उन्हें अब तक पद्मश्री, पद्म भूषण और महाराष्ट्र भूषण से नवाजा जा चुका है। वे नालंदा विश्वविद्यालय के कुलाधिपति भी रह चुके हैं। वे 2012 से 2017 तक IIT दिल्ली के बोर्ड ऑफ गवर्नर्स के अध्यक्ष रहे। मौजूदा समय वे विज्ञान भारती के अध्यक्ष है। महाराष्ट्र के अकोला जिले के मुराम्बा, तालुका मुर्तिजापुर में इनका जन्म हुआ। नागपुर विश्वविद्यालय से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में BE की डिग्री हासिल कर वडोदरा के एमएस यूनिवर्सिटी ऑफ बड़ौदा से ME की डिग्री पूरी की। इन्होंने IIT दिल्ली से पीएचडी की उपाधि हासिल की। 12 से अधिक पुस्तकों और 80 तकनीकी और शोध पत्रों का लेखन, संपादन किया है। डीवाई पाटिल विश्वविद्यालय से मानद डॉक्टरेट की उपाधि मिली। 2014 में इन्हें गुजरात प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय से मानद पीएचडी और नागपुर विश्वविद्यालय से डीलिट की उपाधि से सम्मानित किया गया। यह भी पढ़ें लखनऊ विश्वविद्यालय का 67वां कॉन्वोकेशन आज:1 लाख 6 हजार से ज्यादा स्टूडेंट्स को मिलेगी उपाधि, 198 मेडल से नवाजे जाएंगे मेधावी 103 साल पुराने लखनऊ विश्वविद्यालय का 67वां दीक्षांत समारोह आज होगा। सुबह 11 बजे से ऐतिहासिक कला प्रांगण में होने वाले इस समारोह की अध्यक्षता राज्यपाल आनंदी बेन पटेल करेंगी। समारोह में कंप्यूटर वैज्ञानिक और शिक्षाविद विजय पांडुरंग भातकर मुख्य अतिथि के रूप में शिरकत करेंगे। पढ़ें पूरी खबर… सुपर कंप्यूटर से कई हजार गुना तेज क्वांटम कंप्यूटर पर काम हो रहा है। इसके प्रोटोटाइप तैयार किए जा चुके हैं। महज कुछ सालों के भीतर क्वांटम मिशन तैयार कर लिया जाएगा। क्वांटम कंप्यूटर बनने के बाद भारत खुद का एयरक्राफ्ट बनाकर उसका सिमुलेशन करने में कामयाब होगा। इससे दुनिया की टॉप एयरक्राफ्ट निर्माता अमेरिकन कंपनी बोइंग पर से निर्भरता कम होगी। देश खुद की एयरक्राफ्ट वर्किंग टेक्नोलॉजी को डेवलप कर पाएगा। इसके अलावा डिफेंस, मेडिकल, फार्मा, मैथेमैटिकल और स्पेस समेत कई क्षेत्रों में कामयाबी मिलेगी। भारत, दुनिया भर में अपनी तकनीकी का लोहा मनवा सकेगा। ये कहना है भारत के सुपर कंप्यूटर के जनक डॉ. विजय पांडुरंग का। लखनऊ यूनिवर्सिटी के 67वें दीक्षांत समारोह में शामिल होने पहुंचे विजय पांडुरंग से दैनिक भास्कर ने खास बातचीत की। उन्होंने दावा किया कि क्वांटम कंप्यूटर से भारत की डिजिटल क्रांति का डंका दुनिया में बजेगा। अब पढ़िए डॉ. विजय पांडुरंग से सवाल-जवाब… सवाल: लखनऊ कितने दिनों बाद आना हुआ और यहां आने के बाद कैसा लग रहा है? जवाब: इससे पहले भारतीय विज्ञान सम्मेलन के आयोजन के दौरान यहां आना हुआ था। कार्यक्रम का आयोजन योगी जी अगुवाई में हुआ था। नए लखनऊ को देखकर बेहद प्रभावित हूं। यूपी की इमेज में बड़ा बदलाव आया है। राज्य की कानून-व्यवस्था बदली है। कई अच्छे रिसर्च संस्थान भी यहां तैयार हो रहे हैं। यहां आकर अच्छा लग रहा है। सवाल: सुपर कंप्यूटर बनाने के दौरान कई चैलेंज आए होंगे, उनसे कैसे पार पाया? जवाब: कुछ भी नया बनाने में कई चैलेंज का सामना करना पड़ता है। सुपर कंप्यूटर बनाने के दौरान सभी टास्क एक चैलेंज जैसे थे। उस समय देश के पास कुछ भी टेक्नोलॉजी उपलब्ध नहीं थी और अमेरिका भारत को कुछ भी देने का तैयार नहीं था। लेकिन खुद के प्रयासों से, अपने ब्रेन का प्रयोग करके हम सुपर कंप्यूटर डेवलप करने में कामयाब हुए। भारत में वैदिक काल के दौर से ही हम शोध करते आए हैं। उन्हीं से प्रेरणा लेकर हम सुपर कंप्यूटर बनाने में कामयाब रहे। सवाल: फिलहाल जिस नई टेक्नोलॉजी पर काम कर रहे उसके बारे में बताए? जवाब: क्वांटम टेक्नोलॉजी नई शोध है। ये बेहद नई सोच है। भारत सरकार ने नेशनल क्वांटम मिशन की पहल की है। अगले 5 साल में इसे पूरा करने का लक्ष्य है। इसका एक प्रारूप बनाकर कई एक्सपर्ट साथ मिलकर इस पर काम कर रहे हैं। नई एजुकेशन पॉलिसी भी इसी पर फोकस करती हैं। नई यूनिवर्सिटी में कैसे रिसर्च वर्क को बढ़ावा दिया जाए, इस दिशा में कई अहम कदम उठाए गए हैं। तमाम नए संस्थान भी इसी मकसद पर काम करने के लिए स्थापित किए गए हैं। सवाल: सुपर कंप्यूटर बनाने का सफर कैसा रहा? जवाब: भारत कृषि प्रधान देश है। कृषि ही भारत की अर्थव्यवस्था का आधार थी, लेकिन करीब 35 साल पहले तक किसान को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता था। इसके पीछे की वजह मौसम की सटीक जानकारी न होना थी। कब बरसात होगी, कब नहीं होगी, यह जानकारी किसानों को नहीं मिल पाती थी। इस कारण पूरे देश को बहुत नुकसान झेलना पड़ता था। देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी, सुपर कंप्यूटर की तकनीक लेने अमेरिका गए। जहां, अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन समेत वहां के कई शीर्ष नेताओं, वैज्ञानिकों और सेना के अधिकारियों के साथ बैठक हुई। अमेरिका ने भारत को झटका दे दिया और कहा कि हम पुरानी तकनीक देंगे, लेकिन भारत में हमारी टीम इसकी निगरानी करेगी। अमेरिका से वापस लौटकर राजीव गांधी ने हमसे बात की और सुपर कंप्यूटर बनाने की जिम्मेदारी भी सौंप दी। वहीं से यह सफर शुरू हुआ और हमने सफलता भी पाई। सवाल: कितने समय में सुपर कंप्यूटर बनाया गया? जवाब: तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने बैठक में उनसे पूछा था कि क्या हम सुपर कंप्यूटर नहीं बना सकते। हमने कहा कि सुपर कंप्यूटर की फोटो देखी है, लेकिन हम उनके कंप्यूटर की कॉपी नहीं कर सकते। हम खुद की टेक्नोलॉजी पर आधारित सुपर कंप्यूटर जरूर बना सकते हैं। इसके लिए 3 साल की समय सीमा तय हुई। भारत में सुपर कंप्यूटर को बनाने में 100 लोगों की टीम ने काम किया था। करीब 37 करोड़ की लागत से 3 साल में इसे तैयार कर दिया गया। सवाल: देश में प्रतिभा पलायन की समस्या पर क्या कहना चाहेंगे? जवाब: जो भी युवा अमेरिका जाना चाहते हैं, वे जरूर जाएं, लेकिन वहां से अच्छी चीजें सीखकर अपने देश लौट आएं। भारत में वापस आकर वो देश को नया विस्तार देने के साथ भविष्य को बेहतर बनाने में जुटें। इससे ब्रेन ड्रेन अपने आप ब्रेन गेन में बदल जाएगा। AI से पड़ने वाले प्रभाव पर पूछे गए सवाल के जवाब में उन्होंने बताया कि पूरी दुनिया इसके अच्छे और बुरे परिणाम को लेकर मंथन कर रही है। AI की सीमा को तय करना जरूरी है। सुपर कंप्यूटर के जनक का अब तक का सफरनामा
फादर ऑफ इंडियन सुपर कंप्यूटर की उपाधि डॉ.विजय पांडुरंग भातकर को दी गई है। उन्हें अब तक पद्मश्री, पद्म भूषण और महाराष्ट्र भूषण से नवाजा जा चुका है। वे नालंदा विश्वविद्यालय के कुलाधिपति भी रह चुके हैं। वे 2012 से 2017 तक IIT दिल्ली के बोर्ड ऑफ गवर्नर्स के अध्यक्ष रहे। मौजूदा समय वे विज्ञान भारती के अध्यक्ष है। महाराष्ट्र के अकोला जिले के मुराम्बा, तालुका मुर्तिजापुर में इनका जन्म हुआ। नागपुर विश्वविद्यालय से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में BE की डिग्री हासिल कर वडोदरा के एमएस यूनिवर्सिटी ऑफ बड़ौदा से ME की डिग्री पूरी की। इन्होंने IIT दिल्ली से पीएचडी की उपाधि हासिल की। 12 से अधिक पुस्तकों और 80 तकनीकी और शोध पत्रों का लेखन, संपादन किया है। डीवाई पाटिल विश्वविद्यालय से मानद डॉक्टरेट की उपाधि मिली। 2014 में इन्हें गुजरात प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय से मानद पीएचडी और नागपुर विश्वविद्यालय से डीलिट की उपाधि से सम्मानित किया गया। यह भी पढ़ें लखनऊ विश्वविद्यालय का 67वां कॉन्वोकेशन आज:1 लाख 6 हजार से ज्यादा स्टूडेंट्स को मिलेगी उपाधि, 198 मेडल से नवाजे जाएंगे मेधावी 103 साल पुराने लखनऊ विश्वविद्यालय का 67वां दीक्षांत समारोह आज होगा। सुबह 11 बजे से ऐतिहासिक कला प्रांगण में होने वाले इस समारोह की अध्यक्षता राज्यपाल आनंदी बेन पटेल करेंगी। समारोह में कंप्यूटर वैज्ञानिक और शिक्षाविद विजय पांडुरंग भातकर मुख्य अतिथि के रूप में शिरकत करेंगे। पढ़ें पूरी खबर…   उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर