<p style=”text-align: justify;”><strong>Delhi Crime News:</strong> “वैभव पुलिस अफसर बनना चाहता था…” – यह कहते ही विकास गर्ग की आंखें भर आईं. उनका गला रुंध गया, आवाज़ कांपने लगी. वैभव उनकी आंखों का तारा था, उनके सपनों की उड़ान, उनकी उम्मीदों की रोशनी. लेकिन अब वही रोशनी किसी अंधेरे कोने में खो गई, जहां से कभी वापसी नहीं हो सकती.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>बचपन से था खाकी का जुनून<br /></strong>वैभव कोई आम लड़का नहीं था. वह बड़ा होनहार बच्चा था. जब कभी गलियों में पुलिस की गाड़ी निकलती, उसकी आंखों में चमक आ जाती. वह पिता से कहता – “पापा, एक दिन मैं भी वर्दी पहनूंगा. उसकी यह बात सुनकर घर में सबके होठों पर खुशी की मुस्कार तैर जाती थी, लेकिन आज वही घर गहरे मातम में डूबा है.</p>
<p style=”text-align: justify;”>वैभव के पिता ने कहा कि वह अपने सपने को सच करने के लिए वह हर रोज़ मेहनत करता था. एक्सरसाइज करता, लंबी दौड़ लगाता. उसकी हाइट 6 फीट हो गई थी, एकदम पुलिस अफसर वाली पर्सनालिटी! लेकिन नियति ने ऐसा ज़ख्म दिया कि अब न वैभव रहा, न उसके सपने…</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>”बस 15-20 मिनट में लौट आऊंगा, मां!”<br /></strong>23 मार्च की शाम वैभव घर से निकला. जाते-जाते अपनी मां से कहा, “बस 15-20 मिनट में लौट आऊंगा.” किसे पता था कि यह उसकी आखिरी बात होगी? रात हुई, लेकिन वैभव नहीं लौटा. जब उसका फोन स्विच ऑफ मिला, तो पिता विकास गर्ग को लगा, बैटरी खत्म हो गई होगी. लेकिन जब आधी रात तक भी वह नहीं आया, तो दिल बेचैन हो उठा. वह थाने पहुंचे, पुलिस को बताया. अगले दिन तक इंतजार किया, लेकिन उनका लाल वापस नहीं आया.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>”10 लाख नहीं दिए तो टुकड़े कर देंगे…”<br /></strong>अगले दिन 24 मार्च को वैभव तो नहीं आया लेकिन उसके ही फोन से एक कॉल आयी तो कुछ पलों के लिए वैभव के पिता के चेहरे पर खुशी की पहर लहर दौड़ गयी, लेकिन कॉल पिक करते ही उनकी सारी खुशी काफूर हो गयी. कॉल उठाते ही किसी ने कहा, “तेरा लड़का हमारे पास है. तीन दिन का टाइम है, 10 लाख दे दे, वरना टुकड़े-टुकड़े कर देंगे.” यह सुनते ही उस पिता के पैरों तले ज़मीन खिसक गई. उन्होंने कांपती आवाज़ में पूछा – “कहां आना है पैसे लेकर?” लेकिन फिर फोन कट गया, और दोबारा कोई कॉल नहीं आई.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>झील के पास पड़ा था खून से सना शरीर<br /></strong>पुलिस की जांच चली, सीसीटीवी फुटेज खंगाले गए. 26 मार्च की शाम पुलिस ने विकास गर्ग को फोन किया – “भलस्वा झील के पास आ जाइए…” वहां जाकर जो देखा, उसे देखकर उनका कलेजा फट गया. उनका बेटा, ज़मीन पर खून से लथपथ पड़ा था. गर्दन, पेट, सीने पर अनगिनत चाकू के निशान थे. बिलखते हुए उन्होंने बेटे को सीने से लगाया, लेकिन वह अब कुछ कहने लायक नहीं था. वह खामोश था… हमेशा के लिए.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>दोस्त ही निकले कातिल<br /></strong>यह दर्द उस वक्त और भी गहरा हो गया, जब पता चला कि वैभव की हत्या किसी बाहरी ने नहीं, बल्कि उसी के अपने दोस्तों ने की थी. वे तीन नाबालिग लड़के, जो उसके पड़ोस में रहते थे, जिन्होंने कभी उसके साथ खेला होगा, उन्होंने ही उसे मौत के घाट उतार दिया. सिर्फ पैसे के लिए! </p>
<p style=”text-align: justify;”>ये भी पढ़ें- <strong><a href=”https://www.abplive.com/states/delhi-ncr/businessman-robert-vadra-on-rahul-gandhi-s-allegation-on-om-birla-2913233″>संसद में बोलने ना देने के राहुल गांधी के आरोपों पर रॉबर्ट वाड्रा बोले, ‘देश की जनता भी…'</a></strong></p> <p style=”text-align: justify;”><strong>Delhi Crime News:</strong> “वैभव पुलिस अफसर बनना चाहता था…” – यह कहते ही विकास गर्ग की आंखें भर आईं. उनका गला रुंध गया, आवाज़ कांपने लगी. वैभव उनकी आंखों का तारा था, उनके सपनों की उड़ान, उनकी उम्मीदों की रोशनी. लेकिन अब वही रोशनी किसी अंधेरे कोने में खो गई, जहां से कभी वापसी नहीं हो सकती.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>बचपन से था खाकी का जुनून<br /></strong>वैभव कोई आम लड़का नहीं था. वह बड़ा होनहार बच्चा था. जब कभी गलियों में पुलिस की गाड़ी निकलती, उसकी आंखों में चमक आ जाती. वह पिता से कहता – “पापा, एक दिन मैं भी वर्दी पहनूंगा. उसकी यह बात सुनकर घर में सबके होठों पर खुशी की मुस्कार तैर जाती थी, लेकिन आज वही घर गहरे मातम में डूबा है.</p>
<p style=”text-align: justify;”>वैभव के पिता ने कहा कि वह अपने सपने को सच करने के लिए वह हर रोज़ मेहनत करता था. एक्सरसाइज करता, लंबी दौड़ लगाता. उसकी हाइट 6 फीट हो गई थी, एकदम पुलिस अफसर वाली पर्सनालिटी! लेकिन नियति ने ऐसा ज़ख्म दिया कि अब न वैभव रहा, न उसके सपने…</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>”बस 15-20 मिनट में लौट आऊंगा, मां!”<br /></strong>23 मार्च की शाम वैभव घर से निकला. जाते-जाते अपनी मां से कहा, “बस 15-20 मिनट में लौट आऊंगा.” किसे पता था कि यह उसकी आखिरी बात होगी? रात हुई, लेकिन वैभव नहीं लौटा. जब उसका फोन स्विच ऑफ मिला, तो पिता विकास गर्ग को लगा, बैटरी खत्म हो गई होगी. लेकिन जब आधी रात तक भी वह नहीं आया, तो दिल बेचैन हो उठा. वह थाने पहुंचे, पुलिस को बताया. अगले दिन तक इंतजार किया, लेकिन उनका लाल वापस नहीं आया.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>”10 लाख नहीं दिए तो टुकड़े कर देंगे…”<br /></strong>अगले दिन 24 मार्च को वैभव तो नहीं आया लेकिन उसके ही फोन से एक कॉल आयी तो कुछ पलों के लिए वैभव के पिता के चेहरे पर खुशी की पहर लहर दौड़ गयी, लेकिन कॉल पिक करते ही उनकी सारी खुशी काफूर हो गयी. कॉल उठाते ही किसी ने कहा, “तेरा लड़का हमारे पास है. तीन दिन का टाइम है, 10 लाख दे दे, वरना टुकड़े-टुकड़े कर देंगे.” यह सुनते ही उस पिता के पैरों तले ज़मीन खिसक गई. उन्होंने कांपती आवाज़ में पूछा – “कहां आना है पैसे लेकर?” लेकिन फिर फोन कट गया, और दोबारा कोई कॉल नहीं आई.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>झील के पास पड़ा था खून से सना शरीर<br /></strong>पुलिस की जांच चली, सीसीटीवी फुटेज खंगाले गए. 26 मार्च की शाम पुलिस ने विकास गर्ग को फोन किया – “भलस्वा झील के पास आ जाइए…” वहां जाकर जो देखा, उसे देखकर उनका कलेजा फट गया. उनका बेटा, ज़मीन पर खून से लथपथ पड़ा था. गर्दन, पेट, सीने पर अनगिनत चाकू के निशान थे. बिलखते हुए उन्होंने बेटे को सीने से लगाया, लेकिन वह अब कुछ कहने लायक नहीं था. वह खामोश था… हमेशा के लिए.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>दोस्त ही निकले कातिल<br /></strong>यह दर्द उस वक्त और भी गहरा हो गया, जब पता चला कि वैभव की हत्या किसी बाहरी ने नहीं, बल्कि उसी के अपने दोस्तों ने की थी. वे तीन नाबालिग लड़के, जो उसके पड़ोस में रहते थे, जिन्होंने कभी उसके साथ खेला होगा, उन्होंने ही उसे मौत के घाट उतार दिया. सिर्फ पैसे के लिए! </p>
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