धुआं ही धुआं था..एक बार में 4-4 बच्चे बाहर निकाले:नहीं पता था कौन जिंदा, कौन मर गया; बच्चों को बचाने वाले 3 हीरो

धुआं ही धुआं था..एक बार में 4-4 बच्चे बाहर निकाले:नहीं पता था कौन जिंदा, कौन मर गया; बच्चों को बचाने वाले 3 हीरो

मैंने अंदर जाकर देखा। वहां धुआं ही धुआं था। मैंने 15 से 20 बच्चे बाहर निकाले, सभी आग की चपेट में आ गए थे। इनकी बॉडी पूरी तरह जल चुकी थी। यह बताते हुए पुष्पेंद्र यादव का गला भर आता है। वह झांसी के महारानी लक्ष्मीबाई सरकारी मेडिकल कॉलेज में स्पेशल न्यू बॉर्न केयर यूनिट (SNCU) में आग लगने की सूचना के बाद वहां पहुंचे। करीब 30 मिनट तक वार्ड में रहे। बच्चों को निकालते रहे। पुष्पेंद्र की ही तरह ललित यादव और कृपाल सिंह रेस्क्यू के चश्मदीद हैं। अपनी जान की परवाह न करते हुए इन तीन किरदारों ने नवजातों को बचाया। दम घुट रहा था, आंखों से आंसू आ रहे थे, लेकिन ये तीनों पीछे नहीं हटे। रेस्क्यू में पुलिस वाले, फायर ब्रिगेड कर्मी और कुछ अन्य लोग भी शामिल थे। दैनिक भास्कर से बातचीत में बच्चों को बाहर निकालने वाले इन तीन किरदारों ने क्या कुछ कहा, वार्ड का दृश्य क्या था, चलिए जानते हैं…. ‘अंदर वाले कमरे के सभी बच्चे जल गए थे’
वार्ड के बाहर खड़े शख्स से हमने बात की। उसने बताया- मेरा नाम पुष्पेंद्र यादव है। यहां मेरा कोई मरीज नहीं है। मैं जहां प्राइवेट जॉब करता हूं, वहां के स्टाफ ने मुझे बताया कि अस्पताल में आग लग गई है। मैं यहीं पास में रहता हूं। मैं तुरंत अस्पताल पहुंचा, तो देखा बहुत भयंकर आग लगी थी। कोई अंदर नहीं जा रहा था। पुष्पेंद्र बताते हैं- इतना धुआं था कि सांस भी नहीं ले पा रहे थे। मैं हिम्मत करके अंदर गया। फिर पुलिस वाले गए, डॉक्टर भी गए। जब हम अंदर गए, तो कुछ बच्चे जल चुके थे। आखिरी कमरे में जो बच्चे थे, वो मर चुके थे। पीछे के कमरे के बच्चे सेफ थे। इतना धुआं था कि हम लोग सांस भी नहीं ले पा रहे थे। कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। सांस लेकर अंदर जाते, फिर बाहर आ जाते
पुष्पेंद्र बताते हैं- सांस रोक कर जितनी देर अंदर रह सकते थे, उतनी देर ही रहते। फिर बाहर भाग आते। सांस खींचते और फिर अंदर जाते। इसी दौरान हमने खिड़की तोड़ी, फिर अंदर गए। इतना धुआं था कि आंख से आंसू निकल रहे थे। मैंने अंदर देखा 15-20 बच्चे थे। इनमें हलचल हो रही थी या नहीं, नहीं जानता, लेकिन इनकी खाल जली हुई थी। यह लापरवाही है। आग कैसे लगी, अस्पताल वालों को यह सच बता देना चाहिए। पूरा चैंबर जल चुका था। स्टाफ चाहता तो बच्चे बच सकते थे, 4-4 बच्चों को लेकर निकला
पुष्पेंद्र यादव बताते हैं- स्टाफ चाहता, तो आधे बच्चे बच सकते थे। पूरा स्टाफ खुद अपनी जान बचा कर भाग गया। बच्चों के लिए कोई केयर नहीं थी। परिजनों और हम लोगों ने बच्चों को बचाया। मैं आखिरी तक रहा। मैंने 15 से 20 बच्चों को बचाया। हम हाथों में एक साथ 4-4, 5-5 बच्चे लेकर बाहर निकले। घटना के 15 मिनट पहले फीडिंग के लिए अनाउंसमेंट हुआ था
पुष्पेंद्र यादव के बाद हमारी मुलाकात कृपाल सिंह से हुई। उन्होंने बताया- यहां मेरा पोता भर्ती था। आग लगने की कोई जानकारी नहीं थी। पहले दूध पिलाने के लिए अनाउंसमेंट हुआ। कहा गया कि अपने-अपने बच्चों को दूध पिलाने के लिए आ जाओ। 6 से 7 नाम बोले थे। हम अंदर गए, तो एक नर्स दौड़ कर बाहर आई। वो वहीं से बाहर निकली थी, जहां आग लगी थी। चिल्लाने लगी- आग लग गई है। कृपाल सिंह बताते हैं- यह सुनते ही मैं अंदर गया। वहां देखा एक चेयर में आग लगी है। हमने उसे बाहर निकला। फिर हम बच्चों को बचाने में जुट गए। उन्हें बचाना हमने प्राथमिकता समझा। बच्चों को निकाला। बच्चे बच जाएं, चाहे किसी के भी बच्चे हों। यही दिमाग में चल रहा था। हमें यह भी नहीं पता था कि हमारा बच्चा कहां रखा है? किस पलंग में लेटा है? हमने तो सब बच्चों को बाहर निकालना शुरू किया। उसमें ये नहीं देखा कि कौन-सा बच्चा किसका है? 6 बच्चों को पीछे की खिड़की से जाली तोड़कर बाहर निकाला। सायरन सुनकर अस्पताल पहुंचे, रेस्क्यू में जुट गए
अस्पताल के बाहर ललित यादव मिले। हाथ साफ करके लौटे थे। बोले- अस्पताल में मेरा कोई भर्ती नहीं था। जब फायर और एम्बुलेंस का सायरन सुना, तो मैं उसके पीछे तेजी से दौड़कर गया। मैं यहीं मेडिकल कॉलेज के बाहर ही था। जब मैं वहां पहुंचा, तो एनआईसीयू के बाहर भयंकर धुआं था। कुछ लेडीज हाथों में बच्चों को लिए हुए थीं। एक-दो लेडीज के हाथ से बच्चे ले लिए। वहां नर्स और स्टाफ को दे दिए। ललित यादव बताते हैं- यहां सुरक्षा के कोई इंतजाम नहीं थे। हर जगह तो ताला लगा था। मेडिकल स्टाफ ने भी खिड़की और दरवाजा तोड़कर हालात को कंट्रोल किया। मेडिकल कॉलेज में यह हादसा हो गया। यहां क्या सेफ्टी है, कुछ नहीं है, सब जीरो है। आग बुझाने के यहां क्या इंतजाम थे? इस सवाल के जवाब में ललित ने कहा- एक चार-पांच लीटर का सिलेंडर था। जो थोड़ा-बहुत चल रहा था। फायर ब्रिगेड आई, तब तक आग कंट्रोल हो चुकी थी। आपने कितने बच्चों को बचाया, इसके जवाब में ललित ने कहा- हमने एक ही बच्चे को बचाया है। यह बयान भास्कर रिपोर्टर के कैमरे में दर्ज हुए। कई चेहरे ऐसे थे, जो बच्चों को बाहर निकालते समय रो रहे थे। उनके मुंह से सिर्फ एक ही बात निकल रही थी- हे भगवान…आराम से भाई। देखना कहीं कोई छूटे नहीं।​​​​ ——————– यह खबर भी पढ़ें डॉक्टर 3-3 अधजले नवजात को उठाकर भागे: शरीर झुलसकर काला पड़ा, बच्चों का चेहरा देखते ही मां बेहोश हुई घटना की खबर मिलते ही दैनिक भास्कर रिपोर्टर मौके पर पहुंचा। यहां तस्वीरें विचलित कर देने वाली थी। पढ़िए भास्कर रिपोर्टर की आंखों देखी… मैंने अंदर जाकर देखा। वहां धुआं ही धुआं था। मैंने 15 से 20 बच्चे बाहर निकाले, सभी आग की चपेट में आ गए थे। इनकी बॉडी पूरी तरह जल चुकी थी। यह बताते हुए पुष्पेंद्र यादव का गला भर आता है। वह झांसी के महारानी लक्ष्मीबाई सरकारी मेडिकल कॉलेज में स्पेशल न्यू बॉर्न केयर यूनिट (SNCU) में आग लगने की सूचना के बाद वहां पहुंचे। करीब 30 मिनट तक वार्ड में रहे। बच्चों को निकालते रहे। पुष्पेंद्र की ही तरह ललित यादव और कृपाल सिंह रेस्क्यू के चश्मदीद हैं। अपनी जान की परवाह न करते हुए इन तीन किरदारों ने नवजातों को बचाया। दम घुट रहा था, आंखों से आंसू आ रहे थे, लेकिन ये तीनों पीछे नहीं हटे। रेस्क्यू में पुलिस वाले, फायर ब्रिगेड कर्मी और कुछ अन्य लोग भी शामिल थे। दैनिक भास्कर से बातचीत में बच्चों को बाहर निकालने वाले इन तीन किरदारों ने क्या कुछ कहा, वार्ड का दृश्य क्या था, चलिए जानते हैं…. ‘अंदर वाले कमरे के सभी बच्चे जल गए थे’
वार्ड के बाहर खड़े शख्स से हमने बात की। उसने बताया- मेरा नाम पुष्पेंद्र यादव है। यहां मेरा कोई मरीज नहीं है। मैं जहां प्राइवेट जॉब करता हूं, वहां के स्टाफ ने मुझे बताया कि अस्पताल में आग लग गई है। मैं यहीं पास में रहता हूं। मैं तुरंत अस्पताल पहुंचा, तो देखा बहुत भयंकर आग लगी थी। कोई अंदर नहीं जा रहा था। पुष्पेंद्र बताते हैं- इतना धुआं था कि सांस भी नहीं ले पा रहे थे। मैं हिम्मत करके अंदर गया। फिर पुलिस वाले गए, डॉक्टर भी गए। जब हम अंदर गए, तो कुछ बच्चे जल चुके थे। आखिरी कमरे में जो बच्चे थे, वो मर चुके थे। पीछे के कमरे के बच्चे सेफ थे। इतना धुआं था कि हम लोग सांस भी नहीं ले पा रहे थे। कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। सांस लेकर अंदर जाते, फिर बाहर आ जाते
पुष्पेंद्र बताते हैं- सांस रोक कर जितनी देर अंदर रह सकते थे, उतनी देर ही रहते। फिर बाहर भाग आते। सांस खींचते और फिर अंदर जाते। इसी दौरान हमने खिड़की तोड़ी, फिर अंदर गए। इतना धुआं था कि आंख से आंसू निकल रहे थे। मैंने अंदर देखा 15-20 बच्चे थे। इनमें हलचल हो रही थी या नहीं, नहीं जानता, लेकिन इनकी खाल जली हुई थी। यह लापरवाही है। आग कैसे लगी, अस्पताल वालों को यह सच बता देना चाहिए। पूरा चैंबर जल चुका था। स्टाफ चाहता तो बच्चे बच सकते थे, 4-4 बच्चों को लेकर निकला
पुष्पेंद्र यादव बताते हैं- स्टाफ चाहता, तो आधे बच्चे बच सकते थे। पूरा स्टाफ खुद अपनी जान बचा कर भाग गया। बच्चों के लिए कोई केयर नहीं थी। परिजनों और हम लोगों ने बच्चों को बचाया। मैं आखिरी तक रहा। मैंने 15 से 20 बच्चों को बचाया। हम हाथों में एक साथ 4-4, 5-5 बच्चे लेकर बाहर निकले। घटना के 15 मिनट पहले फीडिंग के लिए अनाउंसमेंट हुआ था
पुष्पेंद्र यादव के बाद हमारी मुलाकात कृपाल सिंह से हुई। उन्होंने बताया- यहां मेरा पोता भर्ती था। आग लगने की कोई जानकारी नहीं थी। पहले दूध पिलाने के लिए अनाउंसमेंट हुआ। कहा गया कि अपने-अपने बच्चों को दूध पिलाने के लिए आ जाओ। 6 से 7 नाम बोले थे। हम अंदर गए, तो एक नर्स दौड़ कर बाहर आई। वो वहीं से बाहर निकली थी, जहां आग लगी थी। चिल्लाने लगी- आग लग गई है। कृपाल सिंह बताते हैं- यह सुनते ही मैं अंदर गया। वहां देखा एक चेयर में आग लगी है। हमने उसे बाहर निकला। फिर हम बच्चों को बचाने में जुट गए। उन्हें बचाना हमने प्राथमिकता समझा। बच्चों को निकाला। बच्चे बच जाएं, चाहे किसी के भी बच्चे हों। यही दिमाग में चल रहा था। हमें यह भी नहीं पता था कि हमारा बच्चा कहां रखा है? किस पलंग में लेटा है? हमने तो सब बच्चों को बाहर निकालना शुरू किया। उसमें ये नहीं देखा कि कौन-सा बच्चा किसका है? 6 बच्चों को पीछे की खिड़की से जाली तोड़कर बाहर निकाला। सायरन सुनकर अस्पताल पहुंचे, रेस्क्यू में जुट गए
अस्पताल के बाहर ललित यादव मिले। हाथ साफ करके लौटे थे। बोले- अस्पताल में मेरा कोई भर्ती नहीं था। जब फायर और एम्बुलेंस का सायरन सुना, तो मैं उसके पीछे तेजी से दौड़कर गया। मैं यहीं मेडिकल कॉलेज के बाहर ही था। जब मैं वहां पहुंचा, तो एनआईसीयू के बाहर भयंकर धुआं था। कुछ लेडीज हाथों में बच्चों को लिए हुए थीं। एक-दो लेडीज के हाथ से बच्चे ले लिए। वहां नर्स और स्टाफ को दे दिए। ललित यादव बताते हैं- यहां सुरक्षा के कोई इंतजाम नहीं थे। हर जगह तो ताला लगा था। मेडिकल स्टाफ ने भी खिड़की और दरवाजा तोड़कर हालात को कंट्रोल किया। मेडिकल कॉलेज में यह हादसा हो गया। यहां क्या सेफ्टी है, कुछ नहीं है, सब जीरो है। आग बुझाने के यहां क्या इंतजाम थे? इस सवाल के जवाब में ललित ने कहा- एक चार-पांच लीटर का सिलेंडर था। जो थोड़ा-बहुत चल रहा था। फायर ब्रिगेड आई, तब तक आग कंट्रोल हो चुकी थी। आपने कितने बच्चों को बचाया, इसके जवाब में ललित ने कहा- हमने एक ही बच्चे को बचाया है। यह बयान भास्कर रिपोर्टर के कैमरे में दर्ज हुए। कई चेहरे ऐसे थे, जो बच्चों को बाहर निकालते समय रो रहे थे। उनके मुंह से सिर्फ एक ही बात निकल रही थी- हे भगवान…आराम से भाई। देखना कहीं कोई छूटे नहीं।​​​​ ——————– यह खबर भी पढ़ें डॉक्टर 3-3 अधजले नवजात को उठाकर भागे: शरीर झुलसकर काला पड़ा, बच्चों का चेहरा देखते ही मां बेहोश हुई घटना की खबर मिलते ही दैनिक भास्कर रिपोर्टर मौके पर पहुंचा। यहां तस्वीरें विचलित कर देने वाली थी। पढ़िए भास्कर रिपोर्टर की आंखों देखी…   उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर