पेरिस ओलिंपिक में पाकिस्तान के अरशद नदीम ने जेवलिन थ्रो में गोल्ड मेडल जीत कर इतिहास रच दिया है। अरशद के लिए अभी तक का सफर आसान नहीं रहा है। उन्होंने यहां तक पहुंचने के लिए कड़ी मेहनत की है। इसके साथ-साथ गरीबी से भी जूझे हैं। पाकिस्तान की एक रिपोर्ट के मुताबिक अरशद के पिता मजदूर हैं और उन्होंने गांव के लोगों से चंदा मांगकर अरशद की ट्रेनिंग करवाई है। पेरिस ओलिंपिक में अरशद की सीधी टक्कर भारत के नीरज चोपड़ा से थी। नीरज सिल्वर लेकर आए हैं। पाकिस्तान के अरशद ने ओलिंपिक में नायाब रिकॉर्ड बनाया। उन्होंने 92.97 मीटर दूर भाला फेंका। इससे पहले नॉर्ने के एथलीट थोरकिल्डसेन एंड्रियास ने 2008 में बीजिंग ओलिंपिक में 90.57 मीटर का रिकॉर्ड बनाया था। अब नदीम ने इस रिकॉर्ड को तोड़कर इतिहास रच दिया। ये पाकिस्तान के इतिहास में पहली बार रहा जब ओलिंपिक में किसी एथलीट ने व्यक्तिगत स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीता। कौन हैं अरशद नदीम, जिन्होंने जीता पेरिस ओलिंपिक में गोल्ड मेडल
दरअसल, 27 साल के जेवलिन थ्रोअर अरशद नदीम पाकिस्तानी खिलाड़ी हैं, जिन्होंने जेवलिन थ्रो इवेंट के फाइनल में गोल्ड मेडल अपने नाम किया। अरशद के गोल्ड मेडल जीतने के बाद उनकी हर जगह तारीफ तो हो रही है, लेकिन उनके जिंदगी के असली संघर्ष की कहानी के बारे में लोगों को कुछ खास नहीं पता। अरशद नदीम के पिता मुहम्मद अशरफ मजदूर हैं। उनके पास इतने पैसे नहीं थे कि वह घर का खर्चा और नदीम की ट्रेनिंग दोनों का खर्च उठा सकें। नदीम को पेरिस ओलिंपिक में भेजने के लिए उनके पूरे गांव ने मिलकर उनकी ट्रेनिंग के लिए पैसे इक्ठ्ठा किए। पुराने डैमेज भाले से किया अभ्यास उनके पिता ने मीडिया से बातचीत करते हुए बताया था कि लोगों को इसका अंदाजा भी नहीं कि अरशद यहां तक कैसे पहुंचा। कैसे उनके गांव वालों ने उनके करियर की शुरुआत में चंदा जुटाकर उन्हें अलग-अलग जगह ट्रेनिंग और ट्रेवल करने में मदद की। उन्होंने ये भी बताया कि आर्थिक तंगी के चलते अरशद को एक पुराने भाले से प्रैक्टिस करनी पड़ी। ये भाला खराब भी हो चुका था और उन्हें कई साल से इंटरनेशनल लेवल का नया भाला नहीं खरीद सके और पुराने डैमेज हो चुके भाले से ही अभ्यास करते रहे। अरशद नदीक का ऐसा रहा करियर
पाकिस्तान के अरशद नदीम ने टोक्यो 2020 ओलंपिक्स में पुरुषों के जैवलिन थ्रो इवेंट में 86.62 मीटर दूर भाला फेंककर के साथ पांचवां स्थान हासिल किया। इससे पहले नदीम का करियर बेस्ट थ्रो 90.18 मीटर था, जिसने उन्हें 90 मीटर का आंकड़ा पार करने वाले वह पहले एशियाई बने। साल 2015 में नदीम ने भाला फेंक इवेंट में हिस्सा लेना शुरू किया था और बेहद ही कम समय में उन्होंने अपनी छाप छोड़ दी। साल 2016 में उन्होंने गुवाहाटी में भारत में साउथ एशियन गेम्स में 78.33 मीटर की राष्ट्रीय रिकॉर्ड थ्रो के साथ कांस्य पदक जीता। इसके बाद नदीम ने 2019 की वर्ल्ड एथलेटिक्स चैम्पियनशिप, दोहा, कतर में अपनी काबिलियत का लोहा मानवाया। एक स्कूल के बच्चे से लेकर आज ओलिंपिक चैंपियन बनने तक कि नदीम की कहानी ये साबित करती है कि मेहनत और समपर्ण से कोई कुछ भी हासिल कर सकता है।
इवेंट में जाने के भी नहीं होते थे पैसे
नदीम के पिता मुहम्मद अशरफ ने पाकिस्तानी मीडिया से बातचीत में बताया कि लोगों ने नदीम की ट्रेनिंग के लिए पैसे इकट्ठे किए। समुदाय का यह सहयोग नदीम के लिए बहुत महत्वपूर्ण था, क्योंकि शुरुआती दिनों में उसके पास यात्रा और दूसरे शहरों में प्रशिक्षण के लिए जरूरी पैसे नहीं थे। हालात ऐसे की ब्रॉन्ज की भी नहीं थी आस पाकिस्तान के पंजाब के खानेवाल गांव में पले-बढ़े नदीम के परिवार को एक समय पर भारी आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ा। उनके पिता मजदूरी करते थे, जो अपने सात बच्चों के बड़े परिवार का भरण-पोषण करने के लिए संघर्ष करते थे। उनके बड़े भाई शाहिद अजीम के अनुसार, वे साल में केवल एक बार ईद-उल-अज़हा के दौरान ही मीट खरीद पाते थे। नदीम ने पाकिस्तान को दिलाया तीसरा ओलिंपिक मेडल
नदीम ने 27 वर्ष की आयु में गुरुवार को पाकिस्तान के लिए पहला स्वर्ण पदक हासिल किया। यह उपलब्धि देश का तीसरा ओलिंपिक पदक है, इससे पहले उसने रोम 1960 में कुश्ती में और सियोल 1988 में मुक्केबाजी में पदक जीता था।
सात एथलीट में सिर्फ नदीम को मिली सफलता
पाकिस्तान ने पेरिस ओलिंपिक में सात एथलीट भेजे थे, लेकिन केवल नदीम ही अपने इवेंट में फाइनल के लिए क्वालिफाई कर पाए। फाइनल के लिए उनके क्वालिफाई करने पर उनके गांव में जश्न मनाया गया, जहां उनके परिवार और साथी ग्रामीणों ने गर्व और खुशी व्यक्त की। अरशद नदीम की कहानी सिर्फ पदक जीतने की नहीं है। यह दृढ़ता और सामुदायिक समर्थन की कहानी है। उनकी सफलता ने पाकिस्तान में एथलेटिक्स की ओर ध्यान आकर्षित किया है, जो कि मुख्य रूप से क्रिकेट पर केंद्रित देश है। किस हालात और विपरीत परिस्थिति में नदीम ने यह मुकाम हासिल किया। पेरिस ओलिंपिक में पाकिस्तान के अरशद नदीम ने जेवलिन थ्रो में गोल्ड मेडल जीत कर इतिहास रच दिया है। अरशद के लिए अभी तक का सफर आसान नहीं रहा है। उन्होंने यहां तक पहुंचने के लिए कड़ी मेहनत की है। इसके साथ-साथ गरीबी से भी जूझे हैं। पाकिस्तान की एक रिपोर्ट के मुताबिक अरशद के पिता मजदूर हैं और उन्होंने गांव के लोगों से चंदा मांगकर अरशद की ट्रेनिंग करवाई है। पेरिस ओलिंपिक में अरशद की सीधी टक्कर भारत के नीरज चोपड़ा से थी। नीरज सिल्वर लेकर आए हैं। पाकिस्तान के अरशद ने ओलिंपिक में नायाब रिकॉर्ड बनाया। उन्होंने 92.97 मीटर दूर भाला फेंका। इससे पहले नॉर्ने के एथलीट थोरकिल्डसेन एंड्रियास ने 2008 में बीजिंग ओलिंपिक में 90.57 मीटर का रिकॉर्ड बनाया था। अब नदीम ने इस रिकॉर्ड को तोड़कर इतिहास रच दिया। ये पाकिस्तान के इतिहास में पहली बार रहा जब ओलिंपिक में किसी एथलीट ने व्यक्तिगत स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीता। कौन हैं अरशद नदीम, जिन्होंने जीता पेरिस ओलिंपिक में गोल्ड मेडल
दरअसल, 27 साल के जेवलिन थ्रोअर अरशद नदीम पाकिस्तानी खिलाड़ी हैं, जिन्होंने जेवलिन थ्रो इवेंट के फाइनल में गोल्ड मेडल अपने नाम किया। अरशद के गोल्ड मेडल जीतने के बाद उनकी हर जगह तारीफ तो हो रही है, लेकिन उनके जिंदगी के असली संघर्ष की कहानी के बारे में लोगों को कुछ खास नहीं पता। अरशद नदीम के पिता मुहम्मद अशरफ मजदूर हैं। उनके पास इतने पैसे नहीं थे कि वह घर का खर्चा और नदीम की ट्रेनिंग दोनों का खर्च उठा सकें। नदीम को पेरिस ओलिंपिक में भेजने के लिए उनके पूरे गांव ने मिलकर उनकी ट्रेनिंग के लिए पैसे इक्ठ्ठा किए। पुराने डैमेज भाले से किया अभ्यास उनके पिता ने मीडिया से बातचीत करते हुए बताया था कि लोगों को इसका अंदाजा भी नहीं कि अरशद यहां तक कैसे पहुंचा। कैसे उनके गांव वालों ने उनके करियर की शुरुआत में चंदा जुटाकर उन्हें अलग-अलग जगह ट्रेनिंग और ट्रेवल करने में मदद की। उन्होंने ये भी बताया कि आर्थिक तंगी के चलते अरशद को एक पुराने भाले से प्रैक्टिस करनी पड़ी। ये भाला खराब भी हो चुका था और उन्हें कई साल से इंटरनेशनल लेवल का नया भाला नहीं खरीद सके और पुराने डैमेज हो चुके भाले से ही अभ्यास करते रहे। अरशद नदीक का ऐसा रहा करियर
पाकिस्तान के अरशद नदीम ने टोक्यो 2020 ओलंपिक्स में पुरुषों के जैवलिन थ्रो इवेंट में 86.62 मीटर दूर भाला फेंककर के साथ पांचवां स्थान हासिल किया। इससे पहले नदीम का करियर बेस्ट थ्रो 90.18 मीटर था, जिसने उन्हें 90 मीटर का आंकड़ा पार करने वाले वह पहले एशियाई बने। साल 2015 में नदीम ने भाला फेंक इवेंट में हिस्सा लेना शुरू किया था और बेहद ही कम समय में उन्होंने अपनी छाप छोड़ दी। साल 2016 में उन्होंने गुवाहाटी में भारत में साउथ एशियन गेम्स में 78.33 मीटर की राष्ट्रीय रिकॉर्ड थ्रो के साथ कांस्य पदक जीता। इसके बाद नदीम ने 2019 की वर्ल्ड एथलेटिक्स चैम्पियनशिप, दोहा, कतर में अपनी काबिलियत का लोहा मानवाया। एक स्कूल के बच्चे से लेकर आज ओलिंपिक चैंपियन बनने तक कि नदीम की कहानी ये साबित करती है कि मेहनत और समपर्ण से कोई कुछ भी हासिल कर सकता है।
इवेंट में जाने के भी नहीं होते थे पैसे
नदीम के पिता मुहम्मद अशरफ ने पाकिस्तानी मीडिया से बातचीत में बताया कि लोगों ने नदीम की ट्रेनिंग के लिए पैसे इकट्ठे किए। समुदाय का यह सहयोग नदीम के लिए बहुत महत्वपूर्ण था, क्योंकि शुरुआती दिनों में उसके पास यात्रा और दूसरे शहरों में प्रशिक्षण के लिए जरूरी पैसे नहीं थे। हालात ऐसे की ब्रॉन्ज की भी नहीं थी आस पाकिस्तान के पंजाब के खानेवाल गांव में पले-बढ़े नदीम के परिवार को एक समय पर भारी आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ा। उनके पिता मजदूरी करते थे, जो अपने सात बच्चों के बड़े परिवार का भरण-पोषण करने के लिए संघर्ष करते थे। उनके बड़े भाई शाहिद अजीम के अनुसार, वे साल में केवल एक बार ईद-उल-अज़हा के दौरान ही मीट खरीद पाते थे। नदीम ने पाकिस्तान को दिलाया तीसरा ओलिंपिक मेडल
नदीम ने 27 वर्ष की आयु में गुरुवार को पाकिस्तान के लिए पहला स्वर्ण पदक हासिल किया। यह उपलब्धि देश का तीसरा ओलिंपिक पदक है, इससे पहले उसने रोम 1960 में कुश्ती में और सियोल 1988 में मुक्केबाजी में पदक जीता था।
सात एथलीट में सिर्फ नदीम को मिली सफलता
पाकिस्तान ने पेरिस ओलिंपिक में सात एथलीट भेजे थे, लेकिन केवल नदीम ही अपने इवेंट में फाइनल के लिए क्वालिफाई कर पाए। फाइनल के लिए उनके क्वालिफाई करने पर उनके गांव में जश्न मनाया गया, जहां उनके परिवार और साथी ग्रामीणों ने गर्व और खुशी व्यक्त की। अरशद नदीम की कहानी सिर्फ पदक जीतने की नहीं है। यह दृढ़ता और सामुदायिक समर्थन की कहानी है। उनकी सफलता ने पाकिस्तान में एथलेटिक्स की ओर ध्यान आकर्षित किया है, जो कि मुख्य रूप से क्रिकेट पर केंद्रित देश है। किस हालात और विपरीत परिस्थिति में नदीम ने यह मुकाम हासिल किया। हरियाणा | दैनिक भास्कर