देश के 51 शक्तिपीठों से एक मां त्रिपुरमालिनी (श्री देवी तालाब मंदिर) का सालाना मेला आज यानी 11 अप्रैल (शुक्रवार) को मनाया जा रहा है। मेले की विधिवत घोषणा वीरवार देर शाम मंदिर कमेटी की तरफ से सरी रसमें पूरी कर दी गईं थी। संकीर्तन मंडलियों ने मां के भजनों से भक्तों को कृतार्थ किया। यूं तो एक दिन पूर्व ही भक्त मां के दरबार में पहुंचने शुरू हो गए थे। पर मेले वाले दिन देश और विदेशों से भक्त सपरिवार टोलियों के रूप में लाल ध्वज मां के दरबार में चढ़ाने पहुंच रहेंगे। आज सुबह मंदिर 3.30 बजे खोल दिया गया था। मंदिर खुलने से पहले लंबी लंबी लाइनें लगी हुईं थी और भक्त हाथों में झंडा लेकर मां के दर्शन करने के लिए पहुंच रहे थे। इस बार मंदिर में काफी पुख्ता इंतजाम किए गए हैं, कोई लाइन न तोड़े इसलिए, बड़े बड़े बैरिकेड लगाकर रास्ता बनाया गया, जिससे लाइन में आ रहे भक्तों को कोई परेशानी न हो। साथ ही पुलिस द्वारा भी मंदिर की सुरक्षा को लेकर सुरक्षा बढ़ा दी गई है। महारानी मां श्री त्रिपुरमालिनी का दरबार भव्य फूलों से सजाया गया। अब पढ़ें मां त्रिपुरमालिनी मंदिर का इतिहास….. पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब अर्धांगिनी सती माता अपने पिता राजा दक्ष के यज्ञ में अपने पति भगवान शिव को न बुलाए जाने का अपमान सहन नहीं कर पाई और उसी यज्ञ कुंड में कूद गईं। भगवान शिव को जब यह पता चला तो उन्होंने अपने गण वीरभद्र को भेजकर यज्ञ स्थल को उजाड़ दिया व राजा दक्ष का सिर काट दिया। बाद में भगवान शिव सती माता की जली हुई देह लेकर विलाप करते हुए ब्रह्मांड में घूमते रहे। जहां-जहां माता के अंग और आभूषण गिरे वहां-वहां शक्तिपीठ निर्मित हो गए। उसके अनुसार श्री देवी तलाब मंदिर में माता का बायां वक्ष (स्तन) गिरा था। जिसके चलते इस शक्ति पीठ का नाम मां त्रिपुरमालिनी पड़ा। मान्यता है कि मां त्रिपुरमालिनी के दरबार में जो भी वक्त सवा महीने तक लगातार आता है, उसकी मनोकामना पूरी हो जाती है। यहां हर शुक्रवार को मां की भव्य चौकी लगाई जाती है। देश के 51 शक्तिपीठों से एक मां त्रिपुरमालिनी (श्री देवी तालाब मंदिर) का सालाना मेला आज यानी 11 अप्रैल (शुक्रवार) को मनाया जा रहा है। मेले की विधिवत घोषणा वीरवार देर शाम मंदिर कमेटी की तरफ से सरी रसमें पूरी कर दी गईं थी। संकीर्तन मंडलियों ने मां के भजनों से भक्तों को कृतार्थ किया। यूं तो एक दिन पूर्व ही भक्त मां के दरबार में पहुंचने शुरू हो गए थे। पर मेले वाले दिन देश और विदेशों से भक्त सपरिवार टोलियों के रूप में लाल ध्वज मां के दरबार में चढ़ाने पहुंच रहेंगे। आज सुबह मंदिर 3.30 बजे खोल दिया गया था। मंदिर खुलने से पहले लंबी लंबी लाइनें लगी हुईं थी और भक्त हाथों में झंडा लेकर मां के दर्शन करने के लिए पहुंच रहे थे। इस बार मंदिर में काफी पुख्ता इंतजाम किए गए हैं, कोई लाइन न तोड़े इसलिए, बड़े बड़े बैरिकेड लगाकर रास्ता बनाया गया, जिससे लाइन में आ रहे भक्तों को कोई परेशानी न हो। साथ ही पुलिस द्वारा भी मंदिर की सुरक्षा को लेकर सुरक्षा बढ़ा दी गई है। महारानी मां श्री त्रिपुरमालिनी का दरबार भव्य फूलों से सजाया गया। अब पढ़ें मां त्रिपुरमालिनी मंदिर का इतिहास….. पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब अर्धांगिनी सती माता अपने पिता राजा दक्ष के यज्ञ में अपने पति भगवान शिव को न बुलाए जाने का अपमान सहन नहीं कर पाई और उसी यज्ञ कुंड में कूद गईं। भगवान शिव को जब यह पता चला तो उन्होंने अपने गण वीरभद्र को भेजकर यज्ञ स्थल को उजाड़ दिया व राजा दक्ष का सिर काट दिया। बाद में भगवान शिव सती माता की जली हुई देह लेकर विलाप करते हुए ब्रह्मांड में घूमते रहे। जहां-जहां माता के अंग और आभूषण गिरे वहां-वहां शक्तिपीठ निर्मित हो गए। उसके अनुसार श्री देवी तलाब मंदिर में माता का बायां वक्ष (स्तन) गिरा था। जिसके चलते इस शक्ति पीठ का नाम मां त्रिपुरमालिनी पड़ा। मान्यता है कि मां त्रिपुरमालिनी के दरबार में जो भी वक्त सवा महीने तक लगातार आता है, उसकी मनोकामना पूरी हो जाती है। यहां हर शुक्रवार को मां की भव्य चौकी लगाई जाती है। पंजाब | दैनिक भास्कर
