लोकसभा चुनाव में शिरोमणि अकाली दल (SAD) की हार के बाद असंतोष पैदा हो गया है। एक तरफ पार्टी में वरिष्ठ नेतृत्व है, जिसमें वो बड़े नेता और परिवार शामिल हैं, जिनके बिना अकाली दल अधूरा है। वहीं दूसरी तरफ पार्टी कार्यसमिति और जिला पदाधिकारी हैं, जिन्होंने लोकसभा चुनाव 2024 में हार के बाद भी सुखबीर सिंह बादल के प्रति संतोष जताया है। अकाली दल के विद्रोही समूह ने एक संयुक्त संवाददाता प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि एक धार्मिक और राजनीतिक व्यक्तित्व को अपनी परंपराओं के अनुरूप शिरोमणि अकाली दल का नेतृत्व करना चाहिए। सुखबीर बादल को इस्तीफा देना चाहिए। प्रो. प्रेम सिंह चंदूमाजरा ने यह भी कहा कि उनमें से कोई भी अकाली दल का अध्यक्ष नहीं बनना चाहता। जो भी पार्टी अध्यक्ष बनेगा उसे पार्टी का मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार नहीं होना चाहिए। पार्टी अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल के खिलाफ बगावत का झंडा बुलंद हो गया है। बागी गुट ने अकाली दल बचाओ लहर शुरू कर दी है। कल जालंधर में बैठक कर सुखबीर बादल को अध्यक्ष पद से हटाने का प्रस्ताव लिया गया। बुधवार को जालंधर में हुई पांच घंटे की बैठक के बाद सुखबीर सिंह बादल से पार्टी प्रधान पद से हटने की मांग की गई। बैठक में शामिल नेताओं में सिकंदर मलूका, सुरजीत रखड़ा, बीबी जागीर कौर, प्रेम सिंह चंदूमाजरा, किरणजोत कौर, मनजीत सिंह, सुरिंदर भुल्लेवाल, गुरप्रताप वडाला, चरणजीत बराड़, हरिंदर पाल टोहरा और गगनजीत बरनाला शामिल थे। 2022 में भी पैदा हुए थे यही हालात 2017 विधानसभा, 2019 लोकसभा और 2022 विधानसभा चुनावों में हार के बाद पार्टी ने हार की समीक्षा करने के लिए कमेटी का गठन किया था। ये कमेटी इकबाल सिंह झूंदा की अध्यक्षता में बनी। 2022 की हार के बाद विरोध शुरू हुआ और अकाली दल अध्यक्ष सुखबीर बादल को बदलने की आवाज उठने लगी। इसी बीच 2022 में झूंदा रिपोर्ट बनकर तैयार थी। लेकिन इस पर अमल नहीं किया गया। ये कह कर रिपोर्ट को दबा दिया गया कि झूंदा रिपोर्ट में कहीं भी पार्टी प्रधान बदलने की बात नहीं की गई है। जबकि उसमें ये जरूर लिखा गया था कि पार्टी अध्यक्ष 10 साल के बाद रिपीट नहीं होना चाहिए। लेकिन, सुखबीर बादल के दोबारा प्रधान चुने जाने के बाद ये रिपोर्ट अकाली दल के दफ्तर में दब गई। अब जब 2024 लोकसभा चुनावों में पार्टी की हार हुई है तो इस रिपोर्ट का जिन्न फिर बाहर आया है। जाने क्या लिखा था झूंदा रिपोर्ट में झूंदा रिपोर्ट पर जब अमल नहीं हुआ तो इसे सार्वजनिक नहीं किया गया था। झूंदा ने सार्वजनिक तौर पर बयान जारी किया था कि 117 विधानसभा हलकों में से 100 में जाकर उन्होंने इस रिपोर्ट को तैयार किया है। इस रिपोर्ट में कुछ जानकारियां 2022 में सांझी की थी। तब अकाली नेताओं ने कहा था कि झूंदा रिपोर्ट में 42 सुझाव दिए गए हैं। पार्टी प्रधान को बदले जाने का रिपोर्ट में कहीं जिक्र नहीं है। लेकिन, भविष्य में पार्टी प्रधान के चुने जाने की तय सीमा जरूर तय की गई है। ये भी बात उठाई गई कि अकाली दल अपने मूल सिद्धांतों से भटका है और राज्य सत्ता में रहने के मकसद से कई कमियां आई हैं। 3 दशक से बादल परिवार का कब्जा शिरोमणि अकाली दल पर पिछले 3 दशक से बादल परिवार का कब्जा है। 1995 में सरदार प्रकाश सिंह बादल अकाली दल के प्रमुख बने थे। इस पद पर वे 2008 तक बने रहे। 2008 के बाद शिअद की कमान उनके बेटे सुखबीर सिंह बादल के हाथ में आ गई। अकेला पड़ता अकाली दल किसी जमाने में पंजाब ही नहीं भारतीय राजनीति में अकाली दल की तूती बोलती थी, लेकिन धीरे-धीरे इसका प्रभुत्व समाप्त होता चला गया। आलम ये है कि अब इसके पास लोकसभा की केवल एक सीट है। विधानसभा में भी इसका प्रभाव लगातार खत्म हो रहा है। शिरोमणि अकाली दल बचाओ आंदोलन की होगी शुरुआत जालंधर में हुई बैठक के बाद बागी नेताओं ने ऐलान किया कि 1 जुलाई से शिरोमणि अकाली दल बचाओ आंदोलन की शुरुआत की जाएगी। बागी नेताओं ने मांग की कि पार्टी के प्रधान सुखबीर सिंह बादल को पार्टी के कार्यकर्ताओं की भावनाओं को समझते हुए त्याग की भावना दिखानी चाहिए और किसी ऐसे नेता के हाथ में पार्टी की कमान सौंपनी चाहिए जो अकाली दल को मजबूत कर सके और धर्म और राजनीति के बीच संतुलन भी कायम कर सके। अकाली दल के बागी नेताओं की बैठक में पार्टी का प्रधान पद संत समाज से जुड़े किसी बड़े चेहरे को देने पर भी विचार किया गया है। जाने कब बना अकाली दल 14 दिसंबर, 1920 को एक SAD का गठन किया गया था। इसके पीछे उद्देश्य यह बताया गया था कि गुरुद्वारों को ब्रिटिश सरकार द्वारा नियुक्त महंतों (पुजारियों) के नियंत्रण से मुक्त कराया जाएगा। SAD के गठन से एक महीना पहले 15 नवंबर को शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति (SGPC) का गठन हुआ था। ननकाना साहिब में मत्था टेकते समय एक डिप्टी कमिश्नर की बेटी के साथ छेड़छाड़ की घटना हुई थी और इस वजह से लोगों में गुस्सा था। तब यह मांग उठी थी कि गुरुद्वारों को महंतों से मुक्त कराया जाना चाहिए। SAD ने इसके खिलाफ संघर्ष छेड़ा और यह चार साल तक चला। इस दौरान महंतों और ब्रिटिश प्रशासन के हमलों में 4,000 लोगों की मौत हुई थी। आखिरकार सिख गुरुद्वारा एक्ट 1925 बनाया गया और सभी गुरुद्वारे एसजीपीसी के नियंत्रण में आ गए। अकाली दल ने देश की आजादी से पहले कांग्रेस के साथ भी गठबंधन किया था। SAD के नेता मास्टर तारा सिंह की वजह से ही बंटवारे के दौरान पंजाब के आधे हिस्से को पाकिस्तान में जाने से रोका गया था। बहुमत सुखबीर बादल के साथ एक तरफ विद्रोह तेज हो रहा है, लेकिन दूसरी तरफ सुखबीर अभी भी मजबूती के साथ खड़े हैं। अकाली दल कोर कमेटी व जिला इकाइयों ने प्रस्तावों में पार्टी अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल के स्पष्टवादी, दूरदर्शी और दृढ़ नेतृत्व की पार्टी की ओर से पूरे दिल से सराहना की है और उसमें विश्वास जताया गया। पार्टी के मौजूदा 35 जिला जत्थेदारों में से 33 और मौजूदा 105 हलका प्रभारियों में से 96 ने सुखबीर सिंह बादल के नेतृत्व की सराहना की। इन 33 जिला अध्यक्षों में से 28 ने वास्तव में बैठक में भाग लिया, जबकि जो पांच उपस्थित नहीं हो सके, उन्होंने कुछ पारिवारिक कारणों से उपस्थित होने में असमर्थता व्यक्त करते हुए लिखित रूप में अध्यक्ष के लिए अपने समर्थन की पार्टी को सूचित किया था। लोकसभा चुनाव में शिरोमणि अकाली दल (SAD) की हार के बाद असंतोष पैदा हो गया है। एक तरफ पार्टी में वरिष्ठ नेतृत्व है, जिसमें वो बड़े नेता और परिवार शामिल हैं, जिनके बिना अकाली दल अधूरा है। वहीं दूसरी तरफ पार्टी कार्यसमिति और जिला पदाधिकारी हैं, जिन्होंने लोकसभा चुनाव 2024 में हार के बाद भी सुखबीर सिंह बादल के प्रति संतोष जताया है। अकाली दल के विद्रोही समूह ने एक संयुक्त संवाददाता प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि एक धार्मिक और राजनीतिक व्यक्तित्व को अपनी परंपराओं के अनुरूप शिरोमणि अकाली दल का नेतृत्व करना चाहिए। सुखबीर बादल को इस्तीफा देना चाहिए। प्रो. प्रेम सिंह चंदूमाजरा ने यह भी कहा कि उनमें से कोई भी अकाली दल का अध्यक्ष नहीं बनना चाहता। जो भी पार्टी अध्यक्ष बनेगा उसे पार्टी का मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार नहीं होना चाहिए। पार्टी अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल के खिलाफ बगावत का झंडा बुलंद हो गया है। बागी गुट ने अकाली दल बचाओ लहर शुरू कर दी है। कल जालंधर में बैठक कर सुखबीर बादल को अध्यक्ष पद से हटाने का प्रस्ताव लिया गया। बुधवार को जालंधर में हुई पांच घंटे की बैठक के बाद सुखबीर सिंह बादल से पार्टी प्रधान पद से हटने की मांग की गई। बैठक में शामिल नेताओं में सिकंदर मलूका, सुरजीत रखड़ा, बीबी जागीर कौर, प्रेम सिंह चंदूमाजरा, किरणजोत कौर, मनजीत सिंह, सुरिंदर भुल्लेवाल, गुरप्रताप वडाला, चरणजीत बराड़, हरिंदर पाल टोहरा और गगनजीत बरनाला शामिल थे। 2022 में भी पैदा हुए थे यही हालात 2017 विधानसभा, 2019 लोकसभा और 2022 विधानसभा चुनावों में हार के बाद पार्टी ने हार की समीक्षा करने के लिए कमेटी का गठन किया था। ये कमेटी इकबाल सिंह झूंदा की अध्यक्षता में बनी। 2022 की हार के बाद विरोध शुरू हुआ और अकाली दल अध्यक्ष सुखबीर बादल को बदलने की आवाज उठने लगी। इसी बीच 2022 में झूंदा रिपोर्ट बनकर तैयार थी। लेकिन इस पर अमल नहीं किया गया। ये कह कर रिपोर्ट को दबा दिया गया कि झूंदा रिपोर्ट में कहीं भी पार्टी प्रधान बदलने की बात नहीं की गई है। जबकि उसमें ये जरूर लिखा गया था कि पार्टी अध्यक्ष 10 साल के बाद रिपीट नहीं होना चाहिए। लेकिन, सुखबीर बादल के दोबारा प्रधान चुने जाने के बाद ये रिपोर्ट अकाली दल के दफ्तर में दब गई। अब जब 2024 लोकसभा चुनावों में पार्टी की हार हुई है तो इस रिपोर्ट का जिन्न फिर बाहर आया है। जाने क्या लिखा था झूंदा रिपोर्ट में झूंदा रिपोर्ट पर जब अमल नहीं हुआ तो इसे सार्वजनिक नहीं किया गया था। झूंदा ने सार्वजनिक तौर पर बयान जारी किया था कि 117 विधानसभा हलकों में से 100 में जाकर उन्होंने इस रिपोर्ट को तैयार किया है। इस रिपोर्ट में कुछ जानकारियां 2022 में सांझी की थी। तब अकाली नेताओं ने कहा था कि झूंदा रिपोर्ट में 42 सुझाव दिए गए हैं। पार्टी प्रधान को बदले जाने का रिपोर्ट में कहीं जिक्र नहीं है। लेकिन, भविष्य में पार्टी प्रधान के चुने जाने की तय सीमा जरूर तय की गई है। ये भी बात उठाई गई कि अकाली दल अपने मूल सिद्धांतों से भटका है और राज्य सत्ता में रहने के मकसद से कई कमियां आई हैं। 3 दशक से बादल परिवार का कब्जा शिरोमणि अकाली दल पर पिछले 3 दशक से बादल परिवार का कब्जा है। 1995 में सरदार प्रकाश सिंह बादल अकाली दल के प्रमुख बने थे। इस पद पर वे 2008 तक बने रहे। 2008 के बाद शिअद की कमान उनके बेटे सुखबीर सिंह बादल के हाथ में आ गई। अकेला पड़ता अकाली दल किसी जमाने में पंजाब ही नहीं भारतीय राजनीति में अकाली दल की तूती बोलती थी, लेकिन धीरे-धीरे इसका प्रभुत्व समाप्त होता चला गया। आलम ये है कि अब इसके पास लोकसभा की केवल एक सीट है। विधानसभा में भी इसका प्रभाव लगातार खत्म हो रहा है। शिरोमणि अकाली दल बचाओ आंदोलन की होगी शुरुआत जालंधर में हुई बैठक के बाद बागी नेताओं ने ऐलान किया कि 1 जुलाई से शिरोमणि अकाली दल बचाओ आंदोलन की शुरुआत की जाएगी। बागी नेताओं ने मांग की कि पार्टी के प्रधान सुखबीर सिंह बादल को पार्टी के कार्यकर्ताओं की भावनाओं को समझते हुए त्याग की भावना दिखानी चाहिए और किसी ऐसे नेता के हाथ में पार्टी की कमान सौंपनी चाहिए जो अकाली दल को मजबूत कर सके और धर्म और राजनीति के बीच संतुलन भी कायम कर सके। अकाली दल के बागी नेताओं की बैठक में पार्टी का प्रधान पद संत समाज से जुड़े किसी बड़े चेहरे को देने पर भी विचार किया गया है। जाने कब बना अकाली दल 14 दिसंबर, 1920 को एक SAD का गठन किया गया था। इसके पीछे उद्देश्य यह बताया गया था कि गुरुद्वारों को ब्रिटिश सरकार द्वारा नियुक्त महंतों (पुजारियों) के नियंत्रण से मुक्त कराया जाएगा। SAD के गठन से एक महीना पहले 15 नवंबर को शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति (SGPC) का गठन हुआ था। ननकाना साहिब में मत्था टेकते समय एक डिप्टी कमिश्नर की बेटी के साथ छेड़छाड़ की घटना हुई थी और इस वजह से लोगों में गुस्सा था। तब यह मांग उठी थी कि गुरुद्वारों को महंतों से मुक्त कराया जाना चाहिए। SAD ने इसके खिलाफ संघर्ष छेड़ा और यह चार साल तक चला। इस दौरान महंतों और ब्रिटिश प्रशासन के हमलों में 4,000 लोगों की मौत हुई थी। आखिरकार सिख गुरुद्वारा एक्ट 1925 बनाया गया और सभी गुरुद्वारे एसजीपीसी के नियंत्रण में आ गए। अकाली दल ने देश की आजादी से पहले कांग्रेस के साथ भी गठबंधन किया था। SAD के नेता मास्टर तारा सिंह की वजह से ही बंटवारे के दौरान पंजाब के आधे हिस्से को पाकिस्तान में जाने से रोका गया था। बहुमत सुखबीर बादल के साथ एक तरफ विद्रोह तेज हो रहा है, लेकिन दूसरी तरफ सुखबीर अभी भी मजबूती के साथ खड़े हैं। अकाली दल कोर कमेटी व जिला इकाइयों ने प्रस्तावों में पार्टी अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल के स्पष्टवादी, दूरदर्शी और दृढ़ नेतृत्व की पार्टी की ओर से पूरे दिल से सराहना की है और उसमें विश्वास जताया गया। पार्टी के मौजूदा 35 जिला जत्थेदारों में से 33 और मौजूदा 105 हलका प्रभारियों में से 96 ने सुखबीर सिंह बादल के नेतृत्व की सराहना की। इन 33 जिला अध्यक्षों में से 28 ने वास्तव में बैठक में भाग लिया, जबकि जो पांच उपस्थित नहीं हो सके, उन्होंने कुछ पारिवारिक कारणों से उपस्थित होने में असमर्थता व्यक्त करते हुए लिखित रूप में अध्यक्ष के लिए अपने समर्थन की पार्टी को सूचित किया था। पंजाब | दैनिक भास्कर
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