पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने वर्ष 2012 में सुप्रीम कोर्ट की ओर से रोक लगाए जाने के बावजूद एक कालेज को सशर्त मान्यता जारी करने के लिए राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (एनसीटीई) पर 10 लाख रुपए का जुर्माना लगाया है। हाईकोर्ट ने पाया कि सायन एजुकेशनल एंड वेलफेयर सोसायटी फाजिल्का द्वारा संचालित बीएड कालेज को पाठ्यक्रम पूरा करने की अनुमति दी गई थी, लेकिन कालेज ने एनसीटीई द्वारा सशर्त मान्यता देने की शर्तों को पूरा नहीं किया। 10 लाख रुपए का जुर्माना भी लगाया हाईकोर्ट ने कहा कि एनसीटीई और याची कालेज के संयुक्त कृत्य से छात्रों का करियर खतरे में पड़ गया है, जो मिलीभगत से काम करते प्रतीत होते हैं। पीठ ने कहा याची कॉलेज एनसीटीई के साथ मिलीभगत कर रहा था, इसलिए याची कॉलेज पर भी 10 लाख रुपए का जुर्माना भी लगाया जाता है, जिसे पीजीआई गरीब मरीज कोष में जमा किया जाएगा। न्याय के हित में, कोर्ट ने निर्देश दिया कि छात्रों के प्रवेश को नियमित किया जाए और विश्वविद्यालय द्वारा उचित डिग्री जारी की जाए। पक्षपात या भेदभाव से दूर रहने के लिए बाध्य है हाईकोर्ट पीठ ने कहा एनसीटीई एक कानून की उपज है, जो मनमानी, पक्षपात या भेदभाव से दूर रहने के लिए बाध्य है। वर्तमान मामले में, एनसीटीई ने यह प्रदर्शित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है कि वह याचिकाकर्ता कालेज के साथ मिलीभगत कर रही है। कोर्ट ने कहा कि पंजाब विश्वविद्यालय ने उक्त कालेज को कभी कोई संबद्धता नहीं दी। पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने वर्ष 2012 में सुप्रीम कोर्ट की ओर से रोक लगाए जाने के बावजूद एक कालेज को सशर्त मान्यता जारी करने के लिए राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (एनसीटीई) पर 10 लाख रुपए का जुर्माना लगाया है। हाईकोर्ट ने पाया कि सायन एजुकेशनल एंड वेलफेयर सोसायटी फाजिल्का द्वारा संचालित बीएड कालेज को पाठ्यक्रम पूरा करने की अनुमति दी गई थी, लेकिन कालेज ने एनसीटीई द्वारा सशर्त मान्यता देने की शर्तों को पूरा नहीं किया। 10 लाख रुपए का जुर्माना भी लगाया हाईकोर्ट ने कहा कि एनसीटीई और याची कालेज के संयुक्त कृत्य से छात्रों का करियर खतरे में पड़ गया है, जो मिलीभगत से काम करते प्रतीत होते हैं। पीठ ने कहा याची कॉलेज एनसीटीई के साथ मिलीभगत कर रहा था, इसलिए याची कॉलेज पर भी 10 लाख रुपए का जुर्माना भी लगाया जाता है, जिसे पीजीआई गरीब मरीज कोष में जमा किया जाएगा। न्याय के हित में, कोर्ट ने निर्देश दिया कि छात्रों के प्रवेश को नियमित किया जाए और विश्वविद्यालय द्वारा उचित डिग्री जारी की जाए। पक्षपात या भेदभाव से दूर रहने के लिए बाध्य है हाईकोर्ट पीठ ने कहा एनसीटीई एक कानून की उपज है, जो मनमानी, पक्षपात या भेदभाव से दूर रहने के लिए बाध्य है। वर्तमान मामले में, एनसीटीई ने यह प्रदर्शित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है कि वह याचिकाकर्ता कालेज के साथ मिलीभगत कर रही है। कोर्ट ने कहा कि पंजाब विश्वविद्यालय ने उक्त कालेज को कभी कोई संबद्धता नहीं दी। पंजाब | दैनिक भास्कर
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