इस साल लोकसभा चुनाव 2024 के लिए पंजाब से 328 उम्मीदवार मैदान में उतरे, लेकिन उनमें से 289 अपनी जमानत भी नहीं बचा पाए। अगर निर्दलीय और छोटी पार्टियों के उम्मीदवारों को छोड़कर 4 मुख्य पार्टियों की बात करें तो इनमें अकाली दल के उम्मीदवारों की संख्या सबसे ज्यादा है, जबकि पुराने समय में उनकी सहयोगी रही बीजेपी दूसरे नंबर पर है। चुनाव आयोग की तरफ से जारी आंकड़ों के मुताबिक, उम्मीदवारों की सूची में अकाली दल के 10, भाजपा के चार और कांग्रेस का एक उम्मीदवार शामिल है। जबकि प्रदेश की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनी आम आदमी पार्टी के सभी उम्मीदवार अपनी जमानत बचा पाने में सफल रहे हैं। फरीदकोट से कांग्रेस उम्मीदवार अमरजीत कौर साहोके (15.87 प्रतिशत वोट) फरीदकोट से मामूली अंतर से जमानत गंवा बैठीं, जहां वह तीसरे स्थान पर रहीं। घटता अकाली दल का वोट बैंक अकाली दल का 2019 के लोकसभा चुनावों में 27.45 प्रतिशत वोट शेयर था, जो 2024 में 13.42 प्रतिशत पहुंच गया है। जबकि पुराने समय में अकाली दल के साथ चुनावी मैदान में उतरने वाली भाजपा उससे आगे न कल गई है। 2019 में भाजपा का वोट शेयर 9.63 प्रतिशत था, जो अब बढ़ कर अब 18.56% हो गया है। जबकि भाजपा ने तब भी अकाली के साथ गठबंधन में केवल तीन सीटों पर चुनाव लड़ा था। हरसिमरत के अलावा 2 अन्य की बची जमानत हरसिमरत कौर बादल ने बठिंडा में जीत हासिल की है। हरसिमरत के अलावा नरदेव सिंह बॉबी मान, जिन्होंने फिरोजपुर से चुनाव लड़ा और अनिल जोशी, जिन्होंने अमृतसर से चुनाव लड़ा, दोनों जमानत बचाने में कामयाबद रहे। नरदेव मान नोटा वोटों को छोड़कर, कुल वैध वोटों में से 22.66 प्रतिशत वोट पाने में कामयाब रहे। वहीं, जोशी को अमृतसर में 18.06 प्रतिशत वोट मिले। झूंदा को पड़े मात्र 6.19% वोट अकाली दल जो खुद को एक क्षेत्रीय पार्टी कहती है, जिसने 2007-17 तक लगातार दो बार राज्य पर शासन किया, की किस्मत बद से बदतर होती जा रही है। 2022 में चुनाव हारने के बाद समीक्षा करने के लिए बनी कमेटी को लीड करने वाले यही इकबाल सिंह झूंदा ने अकाली दल को प्रधान बदलने का सुझाव दिया था, जो अब सिर्फ 6.19% वोट ही पा सके हैं। केपी को जालंधर में पड़े मा 6.89% वोट जमानत गंवाने वाले अकाली दल के उम्मीदवारों में मोहिंदर सिंह कापी (6.89 प्रतिशत वोट) हैं, जो कांग्रेस छोड़कर अकाली दल में शामिल हो गए और जालंधर से चुनाव लड़े। पार्टी प्रवक्ता और गुरदासपुर से उम्मीदवार दलजीत सिंह चीमा (7.95 प्रतिशत वोट), खडूर साहिब के उम्मीदवार विरसा सिंह वल्टोहा (8.27 प्रतिशत वोट), लुधियाना के उम्मीदवार रणजीत सिंह ढिल्लों (8.55 प्रतिशत वोट), होशियारपुर के उम्मीदवार सोहन सिंह ठंडल (9.73 प्रतिशत वोट), आनंदपुर साहिब के उम्मीदवार और पूर्व सांसद प्रेम सिंह चंदूमाजरा (11.01 प्रतिशत), फतेहगढ़ साहिब के उम्मीदवार बिक्रमजीत सिंह खालसा (13.13 प्रतिशत वोट), पटियाला से उम्मीदवार एन के शर्मा (13.44 प्रतिशत वोट) और फरीदकोट के उम्मीदवार राजविंदर सिंह धर्मकोट (13.68 प्रतिशत वोट) ही हासिल कर पाए हैं। भाजपा के 4 उम्मीदवारों ने गंवाई जामनत अपनी जमानत गंवाने वाले भाजपा उम्मीदवार मंजीत सिंह मन्ना (8.27 प्रतिशत वोट) हैं, जो खडूर साहिब में पांचवें स्थान पर रहे। बठिंडा में चौथे स्थान पर रहीं परमपाल कौर सिद्धू 9.66 प्रतिशत वोट ही हासिल कर सकीं। संगरूर में चौथे स्थान पर रहे अरविंद खन्ना को 12.75 प्रतिशत वोट और फतेहगढ़ साहिब में गेज्जा राम 13.21 प्रतिशत वोट पड़े हैं। जानें कैसे होती है जमानत रद्द जमानत राशि प्राप्त करने के लिए, मैदान में खड़े उम्मीदवार को नोटा को छोड़कर, कुल वैध वोटों के छठे हिस्से से अधिक यानी 16.67 प्रतिशत से अधिक वोट प्राप्त करने की आवश्यकता होती है। न्यूनतम आवश्यक वोटों के अभाव में सुरक्षा जमा जब्त करने की धारा के पीछे का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि केवल गंभीर उम्मीदवार ही मैदान में उतरें। इसके लिए सामान्य लोकसभा सीटों के लिए 25,000 रुपए की सुरक्षा जमा राशि की आवश्यकता होती है, जबकि SC आरक्षित सीट के लिए यह राशि 12,500 रुपये है। इस साल लोकसभा चुनाव 2024 के लिए पंजाब से 328 उम्मीदवार मैदान में उतरे, लेकिन उनमें से 289 अपनी जमानत भी नहीं बचा पाए। अगर निर्दलीय और छोटी पार्टियों के उम्मीदवारों को छोड़कर 4 मुख्य पार्टियों की बात करें तो इनमें अकाली दल के उम्मीदवारों की संख्या सबसे ज्यादा है, जबकि पुराने समय में उनकी सहयोगी रही बीजेपी दूसरे नंबर पर है। चुनाव आयोग की तरफ से जारी आंकड़ों के मुताबिक, उम्मीदवारों की सूची में अकाली दल के 10, भाजपा के चार और कांग्रेस का एक उम्मीदवार शामिल है। जबकि प्रदेश की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनी आम आदमी पार्टी के सभी उम्मीदवार अपनी जमानत बचा पाने में सफल रहे हैं। फरीदकोट से कांग्रेस उम्मीदवार अमरजीत कौर साहोके (15.87 प्रतिशत वोट) फरीदकोट से मामूली अंतर से जमानत गंवा बैठीं, जहां वह तीसरे स्थान पर रहीं। घटता अकाली दल का वोट बैंक अकाली दल का 2019 के लोकसभा चुनावों में 27.45 प्रतिशत वोट शेयर था, जो 2024 में 13.42 प्रतिशत पहुंच गया है। जबकि पुराने समय में अकाली दल के साथ चुनावी मैदान में उतरने वाली भाजपा उससे आगे न कल गई है। 2019 में भाजपा का वोट शेयर 9.63 प्रतिशत था, जो अब बढ़ कर अब 18.56% हो गया है। जबकि भाजपा ने तब भी अकाली के साथ गठबंधन में केवल तीन सीटों पर चुनाव लड़ा था। हरसिमरत के अलावा 2 अन्य की बची जमानत हरसिमरत कौर बादल ने बठिंडा में जीत हासिल की है। हरसिमरत के अलावा नरदेव सिंह बॉबी मान, जिन्होंने फिरोजपुर से चुनाव लड़ा और अनिल जोशी, जिन्होंने अमृतसर से चुनाव लड़ा, दोनों जमानत बचाने में कामयाबद रहे। नरदेव मान नोटा वोटों को छोड़कर, कुल वैध वोटों में से 22.66 प्रतिशत वोट पाने में कामयाब रहे। वहीं, जोशी को अमृतसर में 18.06 प्रतिशत वोट मिले। झूंदा को पड़े मात्र 6.19% वोट अकाली दल जो खुद को एक क्षेत्रीय पार्टी कहती है, जिसने 2007-17 तक लगातार दो बार राज्य पर शासन किया, की किस्मत बद से बदतर होती जा रही है। 2022 में चुनाव हारने के बाद समीक्षा करने के लिए बनी कमेटी को लीड करने वाले यही इकबाल सिंह झूंदा ने अकाली दल को प्रधान बदलने का सुझाव दिया था, जो अब सिर्फ 6.19% वोट ही पा सके हैं। केपी को जालंधर में पड़े मा 6.89% वोट जमानत गंवाने वाले अकाली दल के उम्मीदवारों में मोहिंदर सिंह कापी (6.89 प्रतिशत वोट) हैं, जो कांग्रेस छोड़कर अकाली दल में शामिल हो गए और जालंधर से चुनाव लड़े। पार्टी प्रवक्ता और गुरदासपुर से उम्मीदवार दलजीत सिंह चीमा (7.95 प्रतिशत वोट), खडूर साहिब के उम्मीदवार विरसा सिंह वल्टोहा (8.27 प्रतिशत वोट), लुधियाना के उम्मीदवार रणजीत सिंह ढिल्लों (8.55 प्रतिशत वोट), होशियारपुर के उम्मीदवार सोहन सिंह ठंडल (9.73 प्रतिशत वोट), आनंदपुर साहिब के उम्मीदवार और पूर्व सांसद प्रेम सिंह चंदूमाजरा (11.01 प्रतिशत), फतेहगढ़ साहिब के उम्मीदवार बिक्रमजीत सिंह खालसा (13.13 प्रतिशत वोट), पटियाला से उम्मीदवार एन के शर्मा (13.44 प्रतिशत वोट) और फरीदकोट के उम्मीदवार राजविंदर सिंह धर्मकोट (13.68 प्रतिशत वोट) ही हासिल कर पाए हैं। भाजपा के 4 उम्मीदवारों ने गंवाई जामनत अपनी जमानत गंवाने वाले भाजपा उम्मीदवार मंजीत सिंह मन्ना (8.27 प्रतिशत वोट) हैं, जो खडूर साहिब में पांचवें स्थान पर रहे। बठिंडा में चौथे स्थान पर रहीं परमपाल कौर सिद्धू 9.66 प्रतिशत वोट ही हासिल कर सकीं। संगरूर में चौथे स्थान पर रहे अरविंद खन्ना को 12.75 प्रतिशत वोट और फतेहगढ़ साहिब में गेज्जा राम 13.21 प्रतिशत वोट पड़े हैं। जानें कैसे होती है जमानत रद्द जमानत राशि प्राप्त करने के लिए, मैदान में खड़े उम्मीदवार को नोटा को छोड़कर, कुल वैध वोटों के छठे हिस्से से अधिक यानी 16.67 प्रतिशत से अधिक वोट प्राप्त करने की आवश्यकता होती है। न्यूनतम आवश्यक वोटों के अभाव में सुरक्षा जमा जब्त करने की धारा के पीछे का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि केवल गंभीर उम्मीदवार ही मैदान में उतरें। इसके लिए सामान्य लोकसभा सीटों के लिए 25,000 रुपए की सुरक्षा जमा राशि की आवश्यकता होती है, जबकि SC आरक्षित सीट के लिए यह राशि 12,500 रुपये है। पंजाब | दैनिक भास्कर
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सुखबीर बादल की अध्यक्षता में SAD की बैठक:चंडीगढ़ में जिला प्रधान बोले- अकाली दल को कमजोर करने के पीछे भाजपा और एजेंसियां
सुखबीर बादल की अध्यक्षता में SAD की बैठक:चंडीगढ़ में जिला प्रधान बोले- अकाली दल को कमजोर करने के पीछे भाजपा और एजेंसियां लोकसभा चुनाव में हार के बाद शिरोमणि अकाली दल (शिअद) के जिला प्रधानों की चंडीगढ़ में बैठक बुलाई गई। इस बैठक की अध्यक्षता पार्टी प्रधान सुखबीर सिंह बादल ने की। बैठक में जहां पार्टी के कमजोर होने की समीक्षा की गई, वहीं भाजपा के साथ गठबंधन न करने के सुखबीर बादल के फैसले की सराहना भी की गई। अकाली दल की इस बैठक में पार्टी के जिला प्रधानों ने आरोप लगाया कि सरकार पंथ और पंजाब को नेतृत्वविहीन करने की साजिश रच रही है। प्रधानों ने कहा कि शिरोमणि अकाली दल को कमजोर या तोड़ने की कोशिशों के पीछे भाजपा और एजेंसियां हैं। भाजपा ने अकाली दल के समानांतर पार्टी बनाकर अकाली दल को अंदर से कमजोर करने की कोशिश की है। भाजपा पर आरोप लगाया गया कि उन्होंने अकाली दल को तोड़ समानांतर पार्टी बनाने की कोशिश की, लेकिन लोगों उसे नकार दिया। राजनीति से ऊपर हैं सिद्धांत पार्टी अध्यक्षों ने सुखबीर बादल के फैसले की सरहाना भी की। उन्होंने कहा कि सुखबीर बादल ने राजनीति से ऊपर सिद्धांत को रखा। भाजपा के साथ गठबंधन करने से इनकार करना बेहद सैद्धांतिक है। जिला अध्यक्षों ने सुखबीर सिंह बादल के दृढ़ और सैद्धांतिक नेतृत्व की सराहना की। निराश ना होने की सलाह दी लोकसभा चुनावों में पार्टी की हार से नेताओं को सुखबीर बादल ने निराश ना होने की सलाह दी। सुखबीर बादल ने कहा कि निराश नेताओं को महाराष्ट्र से सीख लेनी चाहिए। बीजेपी ने क्षेत्रीय पार्टी तोड़ी लेकिन लोगों ने डमी रचना को खारिज कर दिया।
अकाल तख्त साहिब पर 5 जत्थेदारों की बैठक:बागी शिअद गुट की माफी पर होगा विचार, अध्यक्ष सुखबीर की बढ़ सकती हैं मुश्किलें
अकाल तख्त साहिब पर 5 जत्थेदारों की बैठक:बागी शिअद गुट की माफी पर होगा विचार, अध्यक्ष सुखबीर की बढ़ सकती हैं मुश्किलें शिरोमणि अकाली दल (SAD) के अध्यक्ष सुखबीर बादल की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। SAD बागी गुट की तरफ से श्री अकाल तख्त साहिब पर 1 जुलाई को दिए गए माफीनामे पर जत्थेदार ज्ञानी रघबीर सिंह की तरफ से सभी तख्तों के जत्थेदारों की सोमवार को बैठक बुला ली है। इस बैठक में सभी जत्थेदार मिल कर SAD बागी गुट की तरफ से दिए गए माफीनामे पर विचार करेंगे। अकाली दल के लिए भविष्य के लिए ये बैठक अहम होने जा रही है। हाशिए पर खड़े अकाली दल को लेकर सिर्फ बागी गुट ही नहीं, विरोधी पार्टियां भी चिंतित हैं। वहीं, बागी गुट खुल कर झूंदा कमेटी की सिफारिशों को लागू करने की मांग कर रहा है। इसके अलावा अकाली दल के अध्यक्ष पद से सुखबीर बादल को हटाने की मांग भी प्रबल होती जा रही है। हालांकि इस पर अभी तक अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर बादल की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन उनकी तरफ से पदाधिकारियों की बैठकों को बुला कर अपना शक्ति प्रदर्शन जाहिर कर दिया गया है। माफीनामे के शब्द बढ़ा सकते हैं सुखबीर बादल की दिक्कतें श्री अकाल तख्त साहिब पर बागी गुट की तरफ से दिए गए माफी नामे में लिखी गई बातें अकाली दल सुखबीर बादल की मुश्किलों को बढ़ा सकते हैं। इस माफी नामे में बागी गुट ने साफ तौर पर सुखबीर बादल का साथ देने के लिए माफियां मांगी हैं, लेकिन इसके साथ ही बादल परिवार पर वे आरोप लगाए हैं, जिन्हें लेकर सिख समुदाय में लंबे समय से गुस्सा चला आ रहा है। जानें क्या लिखा है माफीनामे में बागी गुट के अकाल तख्त को सौंपे माफीनामे में कबूली 4 गलतियां… 1. वापस ली गई थी डेरा सच्चा सौदा के खिलाफ शिकायत 2007 में सलाबतपुरा में सच्चा सौदा डेरा के प्रमुख गुरुमीत राम रहीम ने दसवें गुरू श्री गुरू गोबिंद सिंह जी की परंपरा का अनुकरण करते हुए उन्हीं कपड़ों को पहनकर अमृत छकाने का स्वांग रचाया था। उस वक्त इसके खिलाफ पुलिस केस भी दर्ज किया गया था, लेकिन बाद में SAD सरकार ने सजा देने की जगह इस मामले को ही वापस ले लिया। 2. डेरा मुखी को सुखबीर बादल ने दिलवाई थी माफी श्री अकाल तख्त साहिब ने कार्रवाई करते हुए डेरा मुखी को सिख पंथ से निष्कासित कर दिया था। शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने अपने प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए डेरा मुखी को माफी दिलवा दी थी। इसके बाद शिरोमणि अकाली दल और शिरोमणि कमेटी के नेतृत्व को सिख पंथ के गुस्से और नाराजगी को ध्यान में रखते हुए इस फैसले से पीछे हटना पड़ा। 3. बेअदबी की घटनाओं की सही जांच नहीं हुई 1 जून 2015 को कुछ तत्वों ने बुर्ज जवाहर सिंह वाला (फरीदकोट) के गुरुद्वारा साहिब से श्री गुरु ग्रंथ साहिब की बीड़ चुराई। फिर 12 अक्टूबर 2015 को बरगाड़ी (फरीदकोट) के गुरुद्वारा साहिब से श्री गुरु ग्रंथ साहिब के 110 अंग चुरा लिए व बाहर फेंक दिए। इससे सिख पंथ में भारी आक्रोश फैल गया। शिरोमणि अकाली दल सरकार और तत्कालीन गृह मंत्री सुखबीर सिंह बादल ने इस मामले की समय रहते जांच नहीं की। दोषियों को सजा दिलाने में सफल नहीं हुए। इससे पंजाब में हालात बिगड़ गए और कोटकपूरा और बहबल कलां में दुखद घटनाएं हुईं। 4. झूठे केसों में मारे गए सिखों को नहीं दे पाए इंसाफ SAD सरकार ने सुमेध सैनी को पंजाब का DGP नियुक्त किया गया। राज्य में फर्जी पुलिस मुठभेड़ों को अंजाम देकर सिख युवाओं की हत्या करने के लिए उन्हें जाना जाता था। पुलिसकर्मी इजहार आलम, जिन्होंने आलम सेना का गठन किया, उनकी पत्नी को टिकट दिया और उन्हें मुख्य संसदीय सचिव बनाया। बताना चाहते हैं कि 2012 में बनी SAD सरकार और पिछली अकाली सरकारों ने भी राज्य में झूठे पुलिस मुठभेड़ों की निष्पक्ष जांच करने और पीड़ितों को राहत देने के लिए एक आयोग बनाकर लोगों से किए वादे विफल रहे। चंदूमाजरा की अध्यक्षता में चल रहा विरोधी गुट सुखबीर बादल के खिलाफ अकाली दल के बागी गुट की अगुआई प्रेम सिंह चंदूमाजरा कर रहे हैं। उनके साथ सिकंदर मलूका, सुरजीत रखड़ा, बीबी जागीर कौर, प्रेम सिंह चंदूमाजरा, किरणजोत कौर, मनजीत सिंह, सुरिंदर भुल्लेवाल, गुरप्रताप वडाला, चरणजीत बराड़, हरिंदर पाल टोहरा और गगनजीत बरनाला भी हैं। अकाली दल में फूट की वजह, 2 बार लगातार सरकार, फिर 2 बार हार अकाली दल में फूट की वजह सत्ता से बाहर होना है। 2008 तक अकाली दल प्रकाश सिंह बादल के हाथों में था, जबकि 2012 के चुनाव भी प्रकाश सिंह बादल की अगुआई में हुए। 2002 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने 62 सीटों के साथ सरकार बनाई थी, जबकि अकाली दल ने 34 सीटें हासिल की। 2007 में अकाली दल फिर सत्ता में आई और 67 पर जीत हासिल की। इस दौरान कांग्रेस 44 सीटों पर सिमट गई। 2012 के चुनावों में पहली बार अकाली दल ने खुद को रिपीट किया। प्रकाश सिंह बादल दूसरी बार मुख्यमंत्री बने और अकाली दल ने 68 और कांग्रेस ने 44 सीटें हासिल की। इसके बाद 2017 में अकाली दल को सुखबीर बादल ने अपने हाथों में लिया। उन्होंने चुनाव की अगुआई की। मगर अकाली दल 18 सीटों पर सिमट गया और कांग्रेस ने 77 सीटें जीतकर सरकार बना ली। इस चुनाव में अकाली दल तीसरे नंबर पर रहा क्योंकि 20 सीटें आम आदमी पार्टी जीत गई। 2022 में अकाली दल की स्थिति और दयनीय हो गई। आप 92, कांग्रेस 18 और अकाली दल मात्र 3 सीटों पर सिमट गई। लोकसभा में लगातार 2 बार 4 सीट जीती, अब एक सीट आई 2004 लोकसभा चुनाव में पंजाब में कांग्रेस ने 8, बीजेपी एक और शिरोमणि अकाली दल ने एक 4 सीट जीती थीं। जबकि साल 2014 में कांग्रेस 3, भाजपा 2, शिरोमणि अकाली दल 4, AAP 4 सीटों पर विजेता बनी थी। इसी तरह साल 2019 के चुनाव में कांग्रेस ने 8, शिरोमणि अकाली दल 2, भाजपा 2 और AAP को एक सीट मिली। इसी तरह साल 2024 के चुनाव में कांग्रेस 7, आप 3, शिरोमणि अकाली दल एक, दो आजाद उम्मीदवार जीते। झूंदा कमेटी की रिपोर्ट लागू करने की मांग हो रही ये गुट लगातार झूंदा कमेटी, जिसे 2022 में भी लागू करने की मांग उठी थी, पर विचार करने का दबाव बना रहे हैं। हालांकि इसमें पार्टी प्रधान बदलने का प्रस्ताव नहीं है, लेकिन ये लिखा गया है कि पार्टी अध्यक्ष 10 साल के बाद रिपीट नहीं होगा। झूंदा रिपोर्ट पर जब अमल नहीं हुआ तो इसे सार्वजनिक नहीं किया गया था। झूंदा ने सार्वजनिक तौर पर बयान जारी किया था कि 117 विधानसभा हलकों में से 100 में जाकर उन्होंने इस रिपोर्ट को तैयार किया है। इस रिपोर्ट में कुछ जानकारियां 2022 में सांझी की थी। तब अकाली नेताओं ने कहा था कि झूंदा रिपोर्ट में 42 सुझाव दिए गए हैं। पार्टी प्रधान को बदले जाने का रिपोर्ट में कहीं जिक्र नहीं है। लेकिन, भविष्य में पार्टी प्रधान के चुने जाने की तय सीमा जरूर तय की गई है। ये भी बात उठाई गई कि अकाली दल अपने मूल सिद्धांतों से भटका है और राज्य सत्ता में रहने के मकसद से कई कमियां आई हैं। 3 दशक से बादल परिवार का कब्जा शिरोमणि अकाली दल पर पिछले 3 दशक से बादल परिवार का कब्जा है। 1995 में सरदार प्रकाश सिंह बादल अकाली दल के प्रमुख बने थे। इस पद पर वे 2008 तक बने रहे। 2008 के बाद शिअद की कमान उनके बेटे सुखबीर सिंह बादल के हाथ में आ गई। किसी जमाने में पंजाब ही नहीं भारतीय राजनीति में अकाली दल की तूती बोलती थी, लेकिन धीरे-धीरे इसका प्रभुत्व समाप्त होता चला गया। आलम ये है कि अब इसके पास लोकसभा की केवल एक सीट है। विधानसभा में भी इसका प्रभाव लगातार खत्म हो रहा है।