हिमाचल प्रदेश के पांवटा साहिब में गिरिपार के कुछ गांव में दीपावली पर्व को धूमधाम से मनाया गया। लगभग एक सप्ताह तक चलने वाले इस पर्व पर लोग खाने-पीने और नाच गाने में व्यस्त रहेंगे। गांव गांव में पारंपरिक लोक नृत्य होंगे। आज इसकी शुरुआत मशाले जलाकर हुई। ये बनाए गए मुख्य व्यंजन इस पर्व पर परोसे जाने वाले मुख्य व्यंजन मुड़ा व शाकुली बनाई जाती है। पांरपरिक मुड़ा जो कि गेहूं को उबालकर सूखाने के बाद कढ़ाई में भूनकर तैयार किया जाता है। इस मूड़े के साथ अखरोट की गिरी, खील, बताशे और मुरमुरे आदि मिलाए जाते हैं। इसके अलावा शाम को पारंपरिक व्यंजन भी बनाए गए। जबकि बेडोली आदि व्यंजन बनाए जाते हैं। क्या होता है पहले दिन दीवाली के अगले दिन सुबह उठकर अंधेरे में लोग घास व लकड़ी की मशाल जलाकर एक जगह में एकत्रित हो जाते हैं। अंधेरे में ही माला नृत्य, गीत व संगीत का कार्यक्रम शुरू हो जाता है। कुछ घंटों तक टीले व धार पर लोकनृत्य व वीरगाथाएं गाकर लोग वापस अपने गांव के सांझा आंगन में आ जाते हैं। इसके बाद दिनभर लोकनृत्य का कार्यक्रम होता है। एक महीने बाद मनाई जाएगी बूढ़ी दीवाली इस दीपावली के ठीक एक महीने बाद बूढ़ी दीवाली का त्योहार सिरमौर जिले के गिरिपार के घणद्वार, मस्त भौज, जेल-भौज, आंज-भौज, कमरउ, शिलाई, रोनहाट व संगड़ाह क्षेत्र के अलावा उतराखंड के जौनसार बाबर क्ष्रेत्र में भी मनाया जाएगा। हिमाचल प्रदेश के पांवटा साहिब में गिरिपार के कुछ गांव में दीपावली पर्व को धूमधाम से मनाया गया। लगभग एक सप्ताह तक चलने वाले इस पर्व पर लोग खाने-पीने और नाच गाने में व्यस्त रहेंगे। गांव गांव में पारंपरिक लोक नृत्य होंगे। आज इसकी शुरुआत मशाले जलाकर हुई। ये बनाए गए मुख्य व्यंजन इस पर्व पर परोसे जाने वाले मुख्य व्यंजन मुड़ा व शाकुली बनाई जाती है। पांरपरिक मुड़ा जो कि गेहूं को उबालकर सूखाने के बाद कढ़ाई में भूनकर तैयार किया जाता है। इस मूड़े के साथ अखरोट की गिरी, खील, बताशे और मुरमुरे आदि मिलाए जाते हैं। इसके अलावा शाम को पारंपरिक व्यंजन भी बनाए गए। जबकि बेडोली आदि व्यंजन बनाए जाते हैं। क्या होता है पहले दिन दीवाली के अगले दिन सुबह उठकर अंधेरे में लोग घास व लकड़ी की मशाल जलाकर एक जगह में एकत्रित हो जाते हैं। अंधेरे में ही माला नृत्य, गीत व संगीत का कार्यक्रम शुरू हो जाता है। कुछ घंटों तक टीले व धार पर लोकनृत्य व वीरगाथाएं गाकर लोग वापस अपने गांव के सांझा आंगन में आ जाते हैं। इसके बाद दिनभर लोकनृत्य का कार्यक्रम होता है। एक महीने बाद मनाई जाएगी बूढ़ी दीवाली इस दीपावली के ठीक एक महीने बाद बूढ़ी दीवाली का त्योहार सिरमौर जिले के गिरिपार के घणद्वार, मस्त भौज, जेल-भौज, आंज-भौज, कमरउ, शिलाई, रोनहाट व संगड़ाह क्षेत्र के अलावा उतराखंड के जौनसार बाबर क्ष्रेत्र में भी मनाया जाएगा। हिमाचल | दैनिक भास्कर
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रत्न टाटा के शिमला कनेक्शन को लेकर भ्रम:बिजनेस टायकून की BCS में पढ़ाई के प्रमाण नहीं; स्कूल बोर्ड में रत्न नहीं आरडी टाटा नाम बिजनेस टायकून रत्न टाटा अब इस दुनिया में नहीं रहे। दावा किया जा रहा है कि रत्न टाटा का शिमला से कनेक्शन रहा है और उन्होंने BCS (बिशप कॉटन स्कूल) स्कूल शिमला से पढ़ाई की है। मगर पुख्ता तौर पर स्कूल प्रबंधन भी इस पर कुछ जानकारी नहीं दे पा रहा। स्कूल मैनेजमेंट के अनुसार, 1950 के दशक में रत्न टाटा के परिवार के सदस्य यहां आते थे और यह बात सामने आती रही है। मगर स्कूल मैनेजमेंट के अनुसार, रत्न टाटा चचेरे भाई आरडी टाटा ने BCS स्कूल से पढ़ाई की है। मशहूर लेखक रस्किन बांड के संस्मरणों में भी आरडी टाटा का जिक्र है। वह भी टाटा थे! इससे भ्रम पैदा होता है कि BCS में रत्न टाटा या फिर आरडी टाटा ने पढ़ाई की। स्कूल के बोर्ड पर आरडी टाटा का नाम आरडी टाटा का नाम BCS स्कूल के हाउस बोर्ड लिस्ट पर भी है। इस बोर्ड के हिसाब से रत्न टाटा नहीं बल्कि आरडी टाटा 1952 में BCS स्कूल में पढ़े। इस वजह से रत्न टाटा की शिमला में पढ़ाई को लेकर कन्फ्यूजन है। स्कूल प्रबंधन के पास रत्न टाटा की शिमला में पढ़ाई को लेकर पुख्ता प्रमाण नहीं है। हालांकि सोशल मीडिया में कहा जा रहा है कि आठवीं की शिक्षा के रत्न टाटा ने शिमला के BCS से शिक्षा प्राप्त की। बॉयोग्राफी में भी BCS स्कूल का जिक्र यही नहीं रत्न टाटा की बॉयोग्राफी में भी BCS स्कूल का जिक्र है, लेकिन यह स्पष्ट नहीं कि कब और कौन सी क्लास में वह शिमला के BCS स्कूल में पढ़े। BCS स्कूल के वीकिपीडिया में भी रत्न टाटा Notable alumni बताया गया है।
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