क्रिकेटर और पाकिस्तान के पूर्व वजीर-ए-आजम तथा तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के फाउंडर इमरान खान इस वक्त रावलपिंडी की अडियाला जेल में कैद हैं। बीते रविवार की शाम को जब जेल बंद हो चुकी थी और उस वक्त किसी को अंदर जाने की इजाजत नहीं थी, उसी दौरान इमरान की ही पार्टी का एक लीडर भीतर जाता है। उसके हाथ में फौज का एक पैगाम था, जिसका लब्बोलुआब था- फौज से डील कर लीजिए, जेल के दरवाजे खुल जाएंगे। डील में उनसे सार्वजनिक तौर पर माफी मांगने को कहा गया था। लेकिन खान ने पैगाम लाने वाले से साफ कह दिया, ‘उनसे कहो कि मैं नवाज शरीफ नहीं हूं। वो सत्ता के लिए उनसे सौदेबाजी कर सकते हैं, मैं ऐसा हरगिज नहीं करूंगा। इस्लामाबाद हाईकोर्ट कॉम्प्लेक्स से उन्होंने मुझे जिस तरह से उठाया था, उस पर माफी तो उन्हें मुझसे मांगनी चाहिए।’
पाकिस्तान की शीर्ष अदालत ने खान के खिलाफ आरोप मुल्तवी कर दिए हैं, लेकिन हुकूमत के वेश में फौज उनके खिलाफ नित नए इल्जाम लगा रही है। अब जेल के भीतर ही वे एक नए मुकदमे से रूबरू हो रहे हैं। यह अल-कादिर यूनिवर्सिटी को दी गई जमीन में कथित भ्रष्टाचार को लेकर है। कुछ पत्रकारों को मुकदमे की रिपोर्टिंग करने के लिए जेल में भीतर जाने की इजाजत दी गई थी। खान ने इस मौके का फायदा उठाते हुए पत्रकारों के सामने एक बड़ा बयान दे दिया कि शहबाज शरीफ की हुकूमत दो महीने के भीतर गिर जाएगी। इसके बाद से रह-रहकर यह सवाल उठ रहा है कि आखिर इमरान खान के इतने भरोसे की वजह क्या है कि दो माह के भीतर मौजूदा हुकूमत गिर जाएगी? अब यहां तस्वीर में आती है सुप्रीम कोर्ट। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट की एक पूर्ण पीठ ने पाकिस्तान के चुनाव आयोग को हुक्म सुनाया कि पीटीआई को विधानसभाओं में औरतों और अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षित सीटों से गलत तरीके से महरूम किया गया है और ये सीटें पीटीआई को दी जानी चाहिए। अगर पीटीआई को ये सीटें मिल जाती हैं तो नेशनल असेंबली और पंजाब विधानसभा में नंबर गेम बदल जाएगा। पीटीआई बड़ी आसानी से अविश्वास प्रस्ताव के जरिए पंजाब की मुख्यमंत्री मरियम नवाज शरीफ को हटा सकती है। अगर पंजाब में पीएमएल-एन की सरकार गिरती है तो उसके लिए केंद्र का हुकूमत में बने रहना मुश्किल हो जाएगा, जहां शहबाज शरीफ के पास साधारण बहुमत नहीं है। वे पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) की मदद से वजीर-ए-आजम बने हैं।
लाहौर और इस्लामाबाद में इलेक्शन ट्रिब्यूनल्स ने पहले ही अपनी कार्रवाई शुरू कर दी है और पीएमएल-एन नेशनल असेंबली की कम से कम 15 से 20 सीटें खो सकती है। चुनाव आयोग ने ये सीटें पीएमएल-एन को दीं, जो हकीकत में पीटीआई समर्थित उम्मीदवारों द्वारा जीती गई थीं। लेकिन आरक्षित सीटों को लेकर शहबाज शरीफ हुकूमत सुप्रीम कोर्ट के फैसले को अमलीजामा पहनाने के मूड में नहीं है। सवाल यह है कि वे इस फैसले को अमल में कब तक नहीं ला पाएंगे? पाकिस्तान के मौजूदा चीफ जस्टिस काजी फयाज इसा हैं, जो 25 अक्टूबर 2024 को रिटायर हो जाएंगे। जस्टिस मंसूर अली शाह नए चीफ जस्टिस बनेंगे। यही इमरान खान की उम्मीद हैं, जो पाकिस्तान की असल ताकत यानी फौज की नहीं सुनने वाले हैं। जस्टिस मंसूर अली शाह ने 11 अगस्त रविवार को साफ कर दिया कि ‘सुप्रीम कोर्ट के फैसले को नजर-अंदाज करने का मतलब होगा संविधान को नजर-अंदाज करना।’ दीगर अल्फाज में कहें तो उन्होंने शहबाज शरीफ को इनडायरेक्टली आगाह कर दिया है कि अगर कोर्ट के हुक्म को अमल में नहीं लाया जाता है तो उन्हें इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। इससे पहले साल 2012 में सुप्रीम कोर्ट के हुक्म का पालन नहीं करने पर तब के वजीर-ए-आजम यूसुफ रजा गिलानी को अयोग्य ठहरा दिया गया था। तारीख (इतिहास) फिर से खुद को दोहरा सकती है। अगर सुप्रीम कोर्ट के हुक्म लागू नहीं किए गए तो पाकिस्तान अराजकता की ओर बढ़ सकता है। हाल ही में बांग्लादेश में जो कुछ हमने देखा, पाकिस्तान में उसका दोहराव हो सकता है। पीटीआई ने सितंबर में अडियाला जेल की ओर एक लंबा मार्च निकालने का ऐलान किया है। बेहतर होगा कि मसलों को सड़कों पर नहीं, अदालतों में सुलझाया जाए। क्रिकेटर और पाकिस्तान के पूर्व वजीर-ए-आजम तथा तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के फाउंडर इमरान खान इस वक्त रावलपिंडी की अडियाला जेल में कैद हैं। बीते रविवार की शाम को जब जेल बंद हो चुकी थी और उस वक्त किसी को अंदर जाने की इजाजत नहीं थी, उसी दौरान इमरान की ही पार्टी का एक लीडर भीतर जाता है। उसके हाथ में फौज का एक पैगाम था, जिसका लब्बोलुआब था- फौज से डील कर लीजिए, जेल के दरवाजे खुल जाएंगे। डील में उनसे सार्वजनिक तौर पर माफी मांगने को कहा गया था। लेकिन खान ने पैगाम लाने वाले से साफ कह दिया, ‘उनसे कहो कि मैं नवाज शरीफ नहीं हूं। वो सत्ता के लिए उनसे सौदेबाजी कर सकते हैं, मैं ऐसा हरगिज नहीं करूंगा। इस्लामाबाद हाईकोर्ट कॉम्प्लेक्स से उन्होंने मुझे जिस तरह से उठाया था, उस पर माफी तो उन्हें मुझसे मांगनी चाहिए।’
पाकिस्तान की शीर्ष अदालत ने खान के खिलाफ आरोप मुल्तवी कर दिए हैं, लेकिन हुकूमत के वेश में फौज उनके खिलाफ नित नए इल्जाम लगा रही है। अब जेल के भीतर ही वे एक नए मुकदमे से रूबरू हो रहे हैं। यह अल-कादिर यूनिवर्सिटी को दी गई जमीन में कथित भ्रष्टाचार को लेकर है। कुछ पत्रकारों को मुकदमे की रिपोर्टिंग करने के लिए जेल में भीतर जाने की इजाजत दी गई थी। खान ने इस मौके का फायदा उठाते हुए पत्रकारों के सामने एक बड़ा बयान दे दिया कि शहबाज शरीफ की हुकूमत दो महीने के भीतर गिर जाएगी। इसके बाद से रह-रहकर यह सवाल उठ रहा है कि आखिर इमरान खान के इतने भरोसे की वजह क्या है कि दो माह के भीतर मौजूदा हुकूमत गिर जाएगी? अब यहां तस्वीर में आती है सुप्रीम कोर्ट। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट की एक पूर्ण पीठ ने पाकिस्तान के चुनाव आयोग को हुक्म सुनाया कि पीटीआई को विधानसभाओं में औरतों और अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षित सीटों से गलत तरीके से महरूम किया गया है और ये सीटें पीटीआई को दी जानी चाहिए। अगर पीटीआई को ये सीटें मिल जाती हैं तो नेशनल असेंबली और पंजाब विधानसभा में नंबर गेम बदल जाएगा। पीटीआई बड़ी आसानी से अविश्वास प्रस्ताव के जरिए पंजाब की मुख्यमंत्री मरियम नवाज शरीफ को हटा सकती है। अगर पंजाब में पीएमएल-एन की सरकार गिरती है तो उसके लिए केंद्र का हुकूमत में बने रहना मुश्किल हो जाएगा, जहां शहबाज शरीफ के पास साधारण बहुमत नहीं है। वे पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) की मदद से वजीर-ए-आजम बने हैं।
लाहौर और इस्लामाबाद में इलेक्शन ट्रिब्यूनल्स ने पहले ही अपनी कार्रवाई शुरू कर दी है और पीएमएल-एन नेशनल असेंबली की कम से कम 15 से 20 सीटें खो सकती है। चुनाव आयोग ने ये सीटें पीएमएल-एन को दीं, जो हकीकत में पीटीआई समर्थित उम्मीदवारों द्वारा जीती गई थीं। लेकिन आरक्षित सीटों को लेकर शहबाज शरीफ हुकूमत सुप्रीम कोर्ट के फैसले को अमलीजामा पहनाने के मूड में नहीं है। सवाल यह है कि वे इस फैसले को अमल में कब तक नहीं ला पाएंगे? पाकिस्तान के मौजूदा चीफ जस्टिस काजी फयाज इसा हैं, जो 25 अक्टूबर 2024 को रिटायर हो जाएंगे। जस्टिस मंसूर अली शाह नए चीफ जस्टिस बनेंगे। यही इमरान खान की उम्मीद हैं, जो पाकिस्तान की असल ताकत यानी फौज की नहीं सुनने वाले हैं। जस्टिस मंसूर अली शाह ने 11 अगस्त रविवार को साफ कर दिया कि ‘सुप्रीम कोर्ट के फैसले को नजर-अंदाज करने का मतलब होगा संविधान को नजर-अंदाज करना।’ दीगर अल्फाज में कहें तो उन्होंने शहबाज शरीफ को इनडायरेक्टली आगाह कर दिया है कि अगर कोर्ट के हुक्म को अमल में नहीं लाया जाता है तो उन्हें इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। इससे पहले साल 2012 में सुप्रीम कोर्ट के हुक्म का पालन नहीं करने पर तब के वजीर-ए-आजम यूसुफ रजा गिलानी को अयोग्य ठहरा दिया गया था। तारीख (इतिहास) फिर से खुद को दोहरा सकती है। अगर सुप्रीम कोर्ट के हुक्म लागू नहीं किए गए तो पाकिस्तान अराजकता की ओर बढ़ सकता है। हाल ही में बांग्लादेश में जो कुछ हमने देखा, पाकिस्तान में उसका दोहराव हो सकता है। पीटीआई ने सितंबर में अडियाला जेल की ओर एक लंबा मार्च निकालने का ऐलान किया है। बेहतर होगा कि मसलों को सड़कों पर नहीं, अदालतों में सुलझाया जाए। उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर