‘पासवान’ परिवार में संपत्ति नहीं सियासत की लड़ाई! 2025 का चुनाव बना घर का क्लेश? | Inside Story

‘पासवान’ परिवार में संपत्ति नहीं सियासत की लड़ाई! 2025 का चुनाव बना घर का क्लेश? | Inside Story

<p style=”text-align: justify;”><strong>Bihar News: </strong><span style=”font-weight: 400;”>बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले एक बार फिर लोक जनशक्ति पार्टी रामविलास के सुप्रीमो चिराग पासवान और उनके चाचा पशुपति कुमार पारस के बीच पारिवारिक विवाद शुरू हो गया है. यह विवाद संपत्ति के बंटवारे का है. चिराग पासवान की ओर से आरोप लगाया गया कि पशुपति पारस और रामचंद्र पासवान की पत्नी ने उनकी बड़ी मां (रामविलास की पहली पत्नी राजकुमारी देवी) को बेघर कर ताला लगा दिया. इसका मामले थाने में भी दर्ज हुआ है. यहां तक तो ठीक है लेकिन जिस तरह से चुनाव से पहले घर में विवाद शुरू हुआ है इसका कनेक्शन चुनाव से जोड़ा जाने लगा है. सवाल उठ रहा है कि 2025 का चुनाव तो कहीं घर का क्लेश नहीं बन रहा है?</span></p>
<p style=”text-align: justify;”><span style=”font-weight: 400;”>बीते मंगलवार (08 अप्रैल, 2025) को जमुई के सांसद और चिराग पासवान के जीजा अरुण भारती ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी. पत्रकारों से बातचीत में उन्होंने कहा कि पशुपति पारस जो हैं वो चिराग पासवान की बड़ी मां को संपत्ति से बेदखल करना चाहते हैं. पूरी संपत्ति का बंटवारा तीन भाई और एक बहन को मिलाकर होगा. इसके साथ ही उन्होंने एक बड़ा ऐलान कर दिया कि रामविलास पासवान पहली बार अलौली विधानसभा से चुनाव जीते थे जो उनकी आखिरी विरासत है. अगर पशुपति पारस ने किसी भी तरह का हस्तक्षेप किया तो अलौली विधानसभा सीट से लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) अपना उम्मीदवार उतारेगी.</span></p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>क्या अलौली सीट ही है विवाद?</strong></p>
<p style=”text-align: justify;”><span style=”font-weight: 400;”>अरुण भारत के इस ऐलान पर गौर करें तो ऐसा लग रहा है कि कहीं न कहीं अलौली विधानसभा सीट को लेकर भी यह लड़ाई है. ऐसी बातें छनकर आ रही हैं कि इस सीट पर दोनों चाचा-भतीजा पारंपरिक विरासत का दावा कर रहे हैं. हमने पशुपति पारस की पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता श्रवण अग्रवाल से संपर्क किया. इस मुद्दे और लड़ाई को समझना चाह. उन्होंने बताया कि यह पारिवारिक नहीं बल्कि चुनावी विवाद है.</span></p>
<p style=”text-align: justify;”><span style=”font-weight: 400;”>श्रवण अग्रवाल ने कहा कि रामविलास पासवान की पहली पत्नी राजकुमारी देवी के नाती (बड़ी बेटी आशा पासवान के बेटे) प्रिंस मृणाल ने चिराग की पार्टी से अलौली विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने की मंशा जाहिर की है. निश्चित तौर पर पशुपति पारस भी उस सीट पर दावा कर रहे हैं. इस सीट से पशुपति कुमार पारस पांच बार विधायक रह चुके हैं. ऐसे में उस सीट पर किसका कब्जा हो इसको लेकर पारिवारिक विवाद को आगे किया जा रहा है. पशुपति पारस को नीचा दिखाने की कोशिश की जा रही है.</span></p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>पहली बार अलौली से ही विधायक बने थे रामविलास</strong></p>
<p style=”text-align: justify;”><span style=”font-weight: 400;”>अलौली विधानसभा सीट रामविलास पासवान की आखिरी विरासत है. वह पहली बार 1969 में इसी सीट से विधायक बने थे. उसके बाद 1977 में हाजीपुर से सांसद बनने के बाद पशुपति पारस को यह सीट दे दी थी. 2010 से यह सीट पासवान परिवार से दूर हो चुकी है. 2010 में जेडीयू के प्रत्याशी ने यहां से जीत दर्ज की थी. 2015 और 2020 में भी इस पर कब्जा रहा. अब 2025 में इस सीट पर देखना होगा कि क्या होता है.</span></p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>यह भी पढ़ें- <a href=”https://www.abplive.com/states/bihar/bjp-senior-leader-shahnawaz-hussain-gives-reaction-on-his-love-story-love-marriage-and-love-jihad-2921334″>खुद मुस्लिम और पत्नी हिंदू, क्या शाहनवाज हुसैन पर भी लगा लव जिहाद का आरोप? BJP नेता ने कह दी बड़ी बात</a></strong></p> <p style=”text-align: justify;”><strong>Bihar News: </strong><span style=”font-weight: 400;”>बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले एक बार फिर लोक जनशक्ति पार्टी रामविलास के सुप्रीमो चिराग पासवान और उनके चाचा पशुपति कुमार पारस के बीच पारिवारिक विवाद शुरू हो गया है. यह विवाद संपत्ति के बंटवारे का है. चिराग पासवान की ओर से आरोप लगाया गया कि पशुपति पारस और रामचंद्र पासवान की पत्नी ने उनकी बड़ी मां (रामविलास की पहली पत्नी राजकुमारी देवी) को बेघर कर ताला लगा दिया. इसका मामले थाने में भी दर्ज हुआ है. यहां तक तो ठीक है लेकिन जिस तरह से चुनाव से पहले घर में विवाद शुरू हुआ है इसका कनेक्शन चुनाव से जोड़ा जाने लगा है. सवाल उठ रहा है कि 2025 का चुनाव तो कहीं घर का क्लेश नहीं बन रहा है?</span></p>
<p style=”text-align: justify;”><span style=”font-weight: 400;”>बीते मंगलवार (08 अप्रैल, 2025) को जमुई के सांसद और चिराग पासवान के जीजा अरुण भारती ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी. पत्रकारों से बातचीत में उन्होंने कहा कि पशुपति पारस जो हैं वो चिराग पासवान की बड़ी मां को संपत्ति से बेदखल करना चाहते हैं. पूरी संपत्ति का बंटवारा तीन भाई और एक बहन को मिलाकर होगा. इसके साथ ही उन्होंने एक बड़ा ऐलान कर दिया कि रामविलास पासवान पहली बार अलौली विधानसभा से चुनाव जीते थे जो उनकी आखिरी विरासत है. अगर पशुपति पारस ने किसी भी तरह का हस्तक्षेप किया तो अलौली विधानसभा सीट से लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) अपना उम्मीदवार उतारेगी.</span></p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>क्या अलौली सीट ही है विवाद?</strong></p>
<p style=”text-align: justify;”><span style=”font-weight: 400;”>अरुण भारत के इस ऐलान पर गौर करें तो ऐसा लग रहा है कि कहीं न कहीं अलौली विधानसभा सीट को लेकर भी यह लड़ाई है. ऐसी बातें छनकर आ रही हैं कि इस सीट पर दोनों चाचा-भतीजा पारंपरिक विरासत का दावा कर रहे हैं. हमने पशुपति पारस की पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता श्रवण अग्रवाल से संपर्क किया. इस मुद्दे और लड़ाई को समझना चाह. उन्होंने बताया कि यह पारिवारिक नहीं बल्कि चुनावी विवाद है.</span></p>
<p style=”text-align: justify;”><span style=”font-weight: 400;”>श्रवण अग्रवाल ने कहा कि रामविलास पासवान की पहली पत्नी राजकुमारी देवी के नाती (बड़ी बेटी आशा पासवान के बेटे) प्रिंस मृणाल ने चिराग की पार्टी से अलौली विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने की मंशा जाहिर की है. निश्चित तौर पर पशुपति पारस भी उस सीट पर दावा कर रहे हैं. इस सीट से पशुपति कुमार पारस पांच बार विधायक रह चुके हैं. ऐसे में उस सीट पर किसका कब्जा हो इसको लेकर पारिवारिक विवाद को आगे किया जा रहा है. पशुपति पारस को नीचा दिखाने की कोशिश की जा रही है.</span></p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>पहली बार अलौली से ही विधायक बने थे रामविलास</strong></p>
<p style=”text-align: justify;”><span style=”font-weight: 400;”>अलौली विधानसभा सीट रामविलास पासवान की आखिरी विरासत है. वह पहली बार 1969 में इसी सीट से विधायक बने थे. उसके बाद 1977 में हाजीपुर से सांसद बनने के बाद पशुपति पारस को यह सीट दे दी थी. 2010 से यह सीट पासवान परिवार से दूर हो चुकी है. 2010 में जेडीयू के प्रत्याशी ने यहां से जीत दर्ज की थी. 2015 और 2020 में भी इस पर कब्जा रहा. अब 2025 में इस सीट पर देखना होगा कि क्या होता है.</span></p>
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