रूस-यूक्रेन युद्ध में फंसे रहे राकेश यादव की आपबीती:हमारे सामने बम गिरता और लोग मर जाते, डर से मैंने तीन बार सुसाइड की कोशिश की ‘हमारे ऊपर 24 घंटे मौत का साया मंडरा रहा था। बगल की बिल्डिंग में मिसाइल गिरती तो हमें बंकर में भेज दिया जाता था। आस पास कई लोगों की मौत हो चुकी थी। हम कई-कई दिन बंकर में पड़े रहते थे। लगता था कि अब कभी वापस इंडिया नहीं लौट पाऊंगा, अपने मां-पिता और पत्नी-बच्चों से कभी मुलाकात नहीं होगी। घर वालों से फोन पर बात नहीं हो पा रही थी। यही सोचकर मैंने तीन बार सुसाइड का प्रयास किया। लेकिन साथियों ने बचा लिया।’ ये दहशत भरे शब्द हैं आजमगढ़ के राकेश यादव के, जो 9 महीने बाद बाद रूस से सकुशल वापस लौटे हैं। यह कहते- कहते वह काफी भावुक हो जाते हैं और उनकी आंखों में रूस का डर साफ दिखाई देता है। रूस में फंसे रहे राकेश यादव का हाल जानने और वहां के हालात समझने के लिए दैनिक भास्कर एप की टीम उनके घर पहुंची। उनकी जिंदगी वहां कैसे बीती? मौत कितने करीब थी? परिवार वालों के दिल में क्या चल रहा था? पढ़िए सिलसिलेवार रिपोर्ट… हमारी टीम आजमगढ़ जिला मुख्यालय से 35 किमी दूर स्थित गांव रानी की सराय पहुंची। गांव में पहुंचते ही हमने रूस से बचकर आए राकेश के बारे में पूछा तो लोगों ने उनके घर का रास्ता बता दिया। जब हम उनके घर पहुंचे तो राकेश अपने जानवरों को चारा देने जा रहे थे। उन्होंने हम लोगों को देखते ही कहा बताइए हम हीं हैं राकेश यादव, अभी-अभी मौत के मुंह से निकलकर आए हैं। राकेश यादव ने दैनिक भास्कर एप को रूस-यूक्रेन के जंग के मैदान की आंखों देखी बताना शुरू की। इसी बीच हमारे आसपास 20 से 25 गांव वालों की भीड़ जमा हो गई। राकेश ने एक चारपाई पर बैठने का इशारा किया। उन्होंने बताया कि रूस में सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी दिलाने और प्रति माह दो लाख रूपए दिलाने का वादा किया गया था। हम 9 लोगों को मऊ जिले का एक एजेंट विनोद रूस लेकर गया था। इन नौ लोगों में से एक व्यक्ति कन्हैया यादव की वहीं पर मौत हो चुकी है, जबकि सात लोग अब भी मिसिंग हैं। केवल हम और मऊ का बृजेश ही सकुशल वापस आ पाए हैं। मौत सिर पर मंडरा रही थी
इस बीच राकेश काफी भावुक हो जाते हैं। वह कहते हैं कि रूस में हमेशा सिर पर मौत का खतरा मंडरा रहा था। आसपास बम गिरते और एक दो लोगों की मौत हो जाती। हमें लगता था कि अब घर नहीं पहुंच पाएंगे। इसी दहशत में मैंने तीन बार सुसाइड का प्रयास भी किया। लेकिन हमारे साथी धीरेंद्र और योगेन्द्र ने जान बचा ली। हमको इंडिया लाने में मदद करने वालों में सचिवालय में तैनात पंजाब के दो भाई जगदीप और बाल्मीकि सिंह ने काफी मदद की। पढ़िए राकेश कैसे रूस तक पहुंचे राकेश बताते हैं- हम लोगों का पासपोर्ट एजेंट विनोद ने ही बनवाया था। पासपोर्ट मिलने के बाद उसने अपने पास ही रख लिया था। विनोद ने बताया था कि वीजा के लिए चाहिए। जब हमें 14 जनवरी को जाना था तब घर से वाराणसी बस से ले जाया गया, जहां से रात आठ बजे की ट्रेन थी। जिससे हम लोग 15 जनवरी को दिल्ली एयरपोर्ट पहुंचे। वहां बताया गया कि आज फ्लाइट कैंसिल हो गई है। हम लोग रात में वहीं स्टेशन में पड़े रहे। फिर 16 जनवरी को कनेक्टिंग फ्लाइट से बहरीन और फिर सेंट पीटर्सबर्ग ले जाया गया। यहां पहुंचने पर हमें एयरपोर्ट पर ही रोक लिया गया। एक कमरे में सभी को बंदकर मोबाइल ले लिया गया। रात भर हम लोग यहां भूखे-प्यासे बंद रहे। सुबह वहां पर लोकल एजेंट दुष्यंत ने हम लोगों को छुड़ाया और फिर खाने को ब्रेड जैसा कुछ दिया गया। इसके बाद रशियन भाषा में लिखे एक लेटर पर साइन कराने के साथ ही ब्लड सैंपल लिया गया। हमारा बैंक अकाउंट खुलवाया गया। तब हमें हमारा फोन वापस मिला। इसके बाद हम लोगों को कुछ दिन के लिए वहां कारपेंटर, सिक्योरिटी गार्ड, रसोइया और ड्राइवरी का काम दे दिया गया। हमें भी लगा कि काम अच्छा मिल गया है। अब हम अपने घर वालों की अच्छे से मदद कर पाएंगे। लेकिन ये सिलसिला ज्यादा दिन नहीं चल पाया। कैसे राकेश को रूसी सेना में शामिल किया गया राकेश कहते हैं कि जब हम वहां काम कर रहे थे तभी रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध छिड़ गया। लंबी लड़ाई शुरू हो चुकी थी तो हम सभी को सेना में भेजने की तैयारी शुरू कर दी गई। सेंट पीटर्सबर्ग में हम लोगों को पहले आर्मी की एक बिल्डिंग में रखा गया। जहां हम लोग करीब एक सप्ताह तक रहे। यहां पर लोकल एजेंट दुष्यंत के होटल से खाना आता था। हमें समझ नहीं आ रहा था कि यहां छिपाकर क्यों रखा गया है। इसी बीच एक दिन एक सैन्य अफसर आया। उसने बताया कि हम सभी को सैन्य प्रशिक्षण दिया जाएगा। इसके बाद हमारी ट्रेनिंग शुरू कर दी गई। इसके बाद हमें यहीं पर 15 दिन की ट्रेनिंग दी गई। ट्रेनिंग पूरी होने के बाद दो महीने तक हम सभी लोगों को बंकर खोदने के काम में लगा दिया गया। वहां हम लोग बंकर खोदने के साथ ही गाड़ियों पर सामान लोड करने का काम करते थे। जब रूसी सेना को हम लोगों पर भरोसा हो गया तो हम लोगों को युद्ध के मैदान में भेज दिया गया। हम लोगों को बैच में बांट दिया गया। इंडिया से जितने भी लोग गए थे, उन्हें चार-चार के बैच में किया गया और रूसी सैनिकों के साथ भेज दिया गया। अब हम लोग इस स्थिति में आ गए थे कि कोई किसी का हाल तक नहीं जान पाता था। वहां हालात बहुत खराब होने लगे। रात के अंधेरे में बॉर्डर पर भेजा जाता था
राकेश कहते हैं कि हम सभी लोगों को दो महीने तक बंकर बनाने और हथियार चलाने की ट्रेनिंग दी गई। इसके बाद यूक्रेन के खिलाफ लड़ाई के मैदान में उतार दिया गया। रात के अंधेरे में हम लोगों को बॉर्डर पर ले जाया जाता था। यह भी नहीं पता था कि रूस किधर है और यूक्रेन किधर है। जब हम लोग बॉर्डर पर पहुंच जाते तो एक बंकर में बंद कर दिया जाता। वहां पर दिन-रात लड़ाई चलती रहती थी। हमारे अफसर हमें जबरन बाहर निकालते और गोली चलाने को कहते थे। जब उधर से काउंटर फायर शुरू होता तो हम लोग फिर भागकर बंकर के अंदर आ जाते थे। काउंटर फायरिंग और बम के हमले में रूसी सेना के जवान भी मारे जा रहे थे। कई भारतीय और पाकिस्तानी भी वहां पर मारे गए। 250 ग्राम मछली में 6 लोग खाना खाते
राकेश यादव कहते हैं कि भले ही हम लोग बहुत अमीर न हों लेकिन मां-बाप ने कभी भूखा नहीं रखा। लेकिन वहां पर रूसी सेना की ओर से हम लोगों को खाने के नाम पर 250 ग्राम मछली मिलती थी, जिसमें छह लोगों को खाना होता था। ऐसे में एक-एक व्यक्ति के हिस्से में दो चम्मच मछली ही आती थी। माइनस डिग्री के टेम्प्रेचर में हम लोगों को पीने का पानी भी बहुत कम मिलता था। वहां चारों तरफ बर्फ ही बर्फ नजर आती थी। इस तरह रूस से बचकर भारत पहुंचे
नौ महीने रूस में मौत को छूकर वापस इंडिया आ चुके राकेश यादव कहते हैं कि रूस में पंजाब के दो भाई रहते थे। जिनमें से एक का नाम जगदीप भाई और दूसरे का नाम बाल्मीकि सिंह था। इन दोनों लोगों से मैं हमेशा भारत जाने की गुहार लगाता रहता था। जिस बॉर्डर पर हम लोगों को भेजा गया था, वहां कई लोग घायल हुए। इस दौरान हम लोगों को भी फिर से सेंट पीटर्सबर्ग वापस भेजा गया। दो पंजाबी भाई भी हमारे साथ यहां पर आए। उन्होंने हमें बताया कि अब जो भी अफसर आए तो सीधे भारत जाने के लिए कहने लगना। अस्पताल के विजिट के दौरान कई अफसर वहां पर आते थे तो मैं जोर जोर से भारत जाने की बात कहता। उन अफसरों और अन्य अधिकारियों की नजर मेरे ऊपर पड़ी। इसी दौरान भारत और दुनिया भर से ये खबरें भी चलने लगीं कि रूस में रसोइयों, कारपेंटर और अन्य काम करने वालों को भी लड़ाई में उतार दिया गया है। शायद इसी इमेज से बचने के लिए रूस के अफसरों ने मुझे भारत छुड़वा दिया। अक्टूबर 2024 में मैं भारत वापस आ गया। उसके बाद अपने परिवार से मिल पाया। अभी आजमगढ़ से ही 8 लोग मिसिंग हैं
राकेश बताते हैं कि आजमगढ़ से जो 9 लोग रूस गए थे, उनमें से मैं सबसे ज्यादा भाग्यशाली निकला हूं। क्योंकि केवल मैं ही रूस से सकुशल वापस आ पाया हूं। जबकि एक साथी कन्हैया यादव की वहीं पर मौत हो चुकी है। हमारी सरकार से मांग है कि जो लोग फंसे हुए हैं उन्हें भी जल्द वापस लाया जाए। अभी सात लोग रूस में फंसे हुए हैं। जिनके परिवारों से उनका संपर्क करीब आठ महीनों से टूटा हुआ है। ऐसे में उनके घर वालों को रोते-बिलखते बेसब्री से इंतजार करते देखता हूं। इन सातों में रामचन्द्र, राकेश यादव, धीरेंद्र कुमार, योगेन्द्र यादव, अजहरूद्दीन खान, हुमेश्वर प्रसाद और अरविन्द कुमार का परिवार है। हमारे वापस आने की खबर सुनकर वे लोग फोन करते हैं और मिलने आते हैं। रोजगार न होने से गए थे 5000 किमी दूर राकेश कहते हैं कि रोजगार की तलाश में मैं आजमगढ़ से 5000 किलोमीटर दूर रूस पहुंच गया। अब मैंने अपना वही पुराना पुताई का काम फिर से शुरू कर दिया है। जब काम नहीं मिलता तो यहीं घर पर खेती-किसानी करता हूं। गाय-भैंसों की देखभाल करने में परिवार की मदद करता हूं।
मैं अपनी पत्नी सुलेखा, एक बेटा किशन (5 वर्ष) और एक बेटी निशा (12 वर्ष) को छोड़कर गया था। हमारा परिवार छप्पर डालकर रहता है। गरीबी के कारण बच्चों की पढ़ाई प्रभावित हो रही थी। इसलिए पैसे कमाने की चाह में इतनी दूर गया था। लेकिन अब लगता है कि यहीं कुछ कारोबार या नौकरी करूंगा, कम से कम जान तो सुरक्षित है। —————— यह खबर भी पढ़ें… कारपेंटर, रसोइयों को रूस में बनाया सैनिक, आजमगढ़-मऊ से गए 14 युवकों में 3 की मौत, 9 परिवारों को अपनों के लौटने का इंतजार रसोइया और कारपेंटर के वीजा पर रूस गए उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ और मऊ के 14 युवकों को वहां की सेना में भर्ती कराकर यूक्रेन के खिलाफ जंग में उतार दिया। इनमें से 3 युवकों की मौत हो गई। 2 के पैर में गोली लगने के बाद भारत वापसी हुई। 9 परिवारों को अभी भी अपने बच्चों के घर लौटने का इंतजार है। पूरी खबर पढ़ें…