<p style=”text-align: justify;”><strong>Himachal Pradesh News:</strong> गलत तरीके से आर्थिक रूप से कमजोर होने का प्रमाण पत्र बनाकर हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर की नौकरी हासिल करने वाले शिक्षक को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा है. सुप्रीम कोर्ट ने तुरंत प्रभाव से सेवाएं रद्द करने के आदेश जारी कर दिए हैं.</p>
<p style=”text-align: justify;”>सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीश न्यायमूर्ति अभय एस. ओझा और न्यायमूर्ति ऑगस्टाइन जॉर्ज की डबल बेंच ने याचिकाकर्ता की अपील को तुरंत प्रभाव से खारिज कर दिया. इससे पहले हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट भी इसी प्रकार के आदेश जारी कर चुका है. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. </p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>हिमाचल हाई कोर्ट ने दिया था फैसला</strong></p>
<p style=”text-align: justify;”>यह नौकरी हासिल करने के लिए आवेदन के साथ हलफनामा दाखिल करना था. हलफनामे के पैराग्राफ-7 में याचिकाकर्ता ने झूठा बयान दिया कि उसके परिवार का कोई भी सदस्य नियमित या अनुबंध कर्मचारी नहीं है, जबकि वह खुद एक अनुबंध कर्मचारी था. हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय की ओर से साल 2023 के सितंबर महीने में असिस्टेंट प्रोफेसर की नियुक्ति रद्द करने का फैसला दिया गया था. इसके बाद हाई कोर्ट के इस फैसले के विरुद्ध याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. अब याचिकाकर्ता को सुप्रीम कोर्ट से भी झटका लगा है.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>फर्जी प्रमाण पत्र के आधार पर हासिल की थी नौकरी</strong></p>
<p style=”text-align: justify;”>इससे पहले हिमाचल हाई कोर्ट में याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया था कि प्रतिवादी ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग का फर्जी प्रमाण पत्र जमा करवाया. अदालत को बताया गया था कि विश्वविद्यालय प्रशासन ने 30 दिसंबर 2019 को सहायक प्रोफेसर (लोक प्रशासन) के पद को भरने के लिए विज्ञापन जारी किया था. यह नियुक्ति विश्वविद्यालय के लीगल सेंटर में की जानी थी. याचिकाकर्ता और प्रतिवादी के अलावा कई अन्य अभ्यर्थियों ने इसके लिए आवेदन किया था. 8 अप्रैल 2021 को इसके लिए साक्षात्कार लिए गए और प्रतिवादी का चयन किया गया. 9 अप्रैल 2021 को उसे सहायक प्रोफेसर के पद पर नियुक्ति दी गई.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>EWS सर्टिफिकेट बनाने का अधिकार नहीं था</strong></p>
<p style=”text-align: justify;”>अदालत के समक्ष दलील दी गई कि प्रतिवादी आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग का प्रमाण पत्र प्राप्त करने के लिए हकदार नहीं था. 4 अक्तूबर, 2017 को उसकी नियुक्ति सहकारिता विभाग में इंस्पेक्टर के रूप में हुई थी. हालांकि यह नियुक्ति अनुबंध आधार पर थी, लेकिन राज्य सरकार की ओर से 11 जून 2019 को जारी दिशा-निर्देशों के तहत किसी भी सरकारी या गैर सरकारी संस्थान में नियमित या कॉन्टैक्ट पर नियुक्त व्यक्ति आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के प्रमाण पत्र के लिए पात्र नहीं है.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>ये भी पढ़ें: <a title=”हिमाचल में AIDS की रोकथाम के लिए CM सुक्खू ने दिया ‘3-G’ फॉर्मूला, युवाओं से भी मांगा सहयोग” href=”https://www.abplive.com/states/himachal-pradesh/world-aids-day-2024-cm-sukhvinder-singh-sukhu-in-awareness-program-on-world-aids-day-ann-2834241″ target=”_self”>हिमाचल में AIDS की रोकथाम के लिए CM सुक्खू ने दिया ‘3-G’ फॉर्मूला, युवाओं से भी मांगा सहयोग</a></strong></p> <p style=”text-align: justify;”><strong>Himachal Pradesh News:</strong> गलत तरीके से आर्थिक रूप से कमजोर होने का प्रमाण पत्र बनाकर हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर की नौकरी हासिल करने वाले शिक्षक को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा है. सुप्रीम कोर्ट ने तुरंत प्रभाव से सेवाएं रद्द करने के आदेश जारी कर दिए हैं.</p>
<p style=”text-align: justify;”>सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीश न्यायमूर्ति अभय एस. ओझा और न्यायमूर्ति ऑगस्टाइन जॉर्ज की डबल बेंच ने याचिकाकर्ता की अपील को तुरंत प्रभाव से खारिज कर दिया. इससे पहले हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट भी इसी प्रकार के आदेश जारी कर चुका है. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. </p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>हिमाचल हाई कोर्ट ने दिया था फैसला</strong></p>
<p style=”text-align: justify;”>यह नौकरी हासिल करने के लिए आवेदन के साथ हलफनामा दाखिल करना था. हलफनामे के पैराग्राफ-7 में याचिकाकर्ता ने झूठा बयान दिया कि उसके परिवार का कोई भी सदस्य नियमित या अनुबंध कर्मचारी नहीं है, जबकि वह खुद एक अनुबंध कर्मचारी था. हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय की ओर से साल 2023 के सितंबर महीने में असिस्टेंट प्रोफेसर की नियुक्ति रद्द करने का फैसला दिया गया था. इसके बाद हाई कोर्ट के इस फैसले के विरुद्ध याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. अब याचिकाकर्ता को सुप्रीम कोर्ट से भी झटका लगा है.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>फर्जी प्रमाण पत्र के आधार पर हासिल की थी नौकरी</strong></p>
<p style=”text-align: justify;”>इससे पहले हिमाचल हाई कोर्ट में याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया था कि प्रतिवादी ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग का फर्जी प्रमाण पत्र जमा करवाया. अदालत को बताया गया था कि विश्वविद्यालय प्रशासन ने 30 दिसंबर 2019 को सहायक प्रोफेसर (लोक प्रशासन) के पद को भरने के लिए विज्ञापन जारी किया था. यह नियुक्ति विश्वविद्यालय के लीगल सेंटर में की जानी थी. याचिकाकर्ता और प्रतिवादी के अलावा कई अन्य अभ्यर्थियों ने इसके लिए आवेदन किया था. 8 अप्रैल 2021 को इसके लिए साक्षात्कार लिए गए और प्रतिवादी का चयन किया गया. 9 अप्रैल 2021 को उसे सहायक प्रोफेसर के पद पर नियुक्ति दी गई.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>EWS सर्टिफिकेट बनाने का अधिकार नहीं था</strong></p>
<p style=”text-align: justify;”>अदालत के समक्ष दलील दी गई कि प्रतिवादी आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग का प्रमाण पत्र प्राप्त करने के लिए हकदार नहीं था. 4 अक्तूबर, 2017 को उसकी नियुक्ति सहकारिता विभाग में इंस्पेक्टर के रूप में हुई थी. हालांकि यह नियुक्ति अनुबंध आधार पर थी, लेकिन राज्य सरकार की ओर से 11 जून 2019 को जारी दिशा-निर्देशों के तहत किसी भी सरकारी या गैर सरकारी संस्थान में नियमित या कॉन्टैक्ट पर नियुक्त व्यक्ति आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के प्रमाण पत्र के लिए पात्र नहीं है.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>ये भी पढ़ें: <a title=”हिमाचल में AIDS की रोकथाम के लिए CM सुक्खू ने दिया ‘3-G’ फॉर्मूला, युवाओं से भी मांगा सहयोग” href=”https://www.abplive.com/states/himachal-pradesh/world-aids-day-2024-cm-sukhvinder-singh-sukhu-in-awareness-program-on-world-aids-day-ann-2834241″ target=”_self”>हिमाचल में AIDS की रोकथाम के लिए CM सुक्खू ने दिया ‘3-G’ फॉर्मूला, युवाओं से भी मांगा सहयोग</a></strong></p> हिमाचल प्रदेश Lovely Anand: पति और बेटे के बयान पर लवली आनंद ने लगाया पैवंद, कहा- ‘उनकी बातों को दूसरी तरह से पेश किया गया’