बनवारी लाल के हाथ-पैर फिर गला काटा:15 साल बाद फिर खुलेगी संभल दंगों की फाइल; मुलायम सरकार ने वापस लिए थे केस

बनवारी लाल के हाथ-पैर फिर गला काटा:15 साल बाद फिर खुलेगी संभल दंगों की फाइल; मुलायम सरकार ने वापस लिए थे केस

संभल में 1978 में दंगे हुए। इसमें 184 हिंदुओं की हत्या कर दी गई थी। जांच हुई और केस कोर्ट पहुंचा। लेकिन, साल 2010 में 4 प्रमुख गवाहों के मुकरने और 48 आरोपियों के बरी होने के साथ फाइल बंद हो गई। अब योगी सरकार करीब 15 साल बाद संभल दंगे की फाइल फिर खोलने जा रही है। कानून के जानकारों का कहना है कि सरकार के पास 1993-94 में तत्कालीन मुलायम सरकार की ओर से वापस लिए गए 15 मुकदमों की फाइल वापस खोलने का रास्ता खुला है। वहीं, बनवारी लाल गोयल की निर्मम हत्या के मुकदमे में इलाहाबाद हाईकोर्ट में विलंब से अपील का मजबूत विकल्प भी है। संभल का 47 साल पुराना यह केस क्यों फिर से चर्चा में आया? इस केस के कानूनी पक्ष और राजनीतिक मायने क्या हैं? पढ़िए इस रिपोर्ट में… पहले जानिए क्यों चर्चा में आया 47 साल पुराना केस?
1978 के दंगे में संभल में वैश्य परिवार के बनवारी लाल गोयल की निर्मम हत्या कर दी गई थी। वह परिवार के रोकने के बावजूद दंगे वाले इलाके में चले गए थे। उन्होंने परिवार से कहा कि सभी मेरे भाई और दोस्त हैं। उपद्रवियों ने उन्हें पकड़ लिया और हाथ-पैर काट दिए। बनवारी लाल ने कहा कि मुझे काटो मत, गोली मार दो। फिर भी उनका गला काटकर हत्या कर दी गई। इस मामले में कुल 16 मुकदमे दर्ज किए गए थे। लेकिन, समाजवादी पार्टी की तत्कालीन सरकार के मुखिया मुलायम सिंह यादव ने 1993-94 में 15 मुकदमे वापस ले लिए। जबकि बनवारी लाल की हत्या के मुकदमे में ट्रायल लंबा चला। हाल ही में विधान परिषद में भाजपा के MLC श्रीचंद्र शर्मा की ओर से उठाए गए मुद्दे के बाद यह मामला फिर खुलता नजर आ रहा है। संभल प्रशासन और पुलिस अब इस पड़ताल में जुटा है कि मुकदमे किस आधार पर वापस लिए गए? इनकी गहन पड़ताल के बाद प्रशासन और पुलिस अपनी रिपोर्ट शासन को देंगे। शासन उस रिपोर्ट को देखने के बाद मुकदमे फिर से चलाने का निर्णय भी ले सकता है। हालांकि, अभी इस पर गृह विभाग का कोई भी अधिकारी खुलकर कुछ कहने को तैयार नहीं है। सीएम योगी ने विधानसभा में किया था जिक्र
16 दिसंबर को उत्तर प्रदेश विधानसभा के शीतकालीन सत्र के दौरान सीएम योगी ने 1978 के संभल दंगे का मुद्दा उठाया था। योगी ने नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (NCRB) की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा था कि 1978 के दंगों में 184 हिंदुओं को जिंदा जला दिया गया था। 1947 से अब तक संभल में हुए दंगों में 209 हिंदुओं की हत्या हुई। अब जानिए कानून के जानकार क्या कहते हैं?
राज्य सरकार के अपर महाधिवक्ता कहते हैं- अगर सेशन कोर्ट के फैसले पर हाईकोर्ट में कोई अपील दायर नहीं हुई, तो सरकार के पास पीड़ित पक्ष की ओर से विलंब से अपील दायर करने का रास्ता खुला है। सरकार तमाम प्रमाण और साक्ष्य जुटाकर हाईकोर्ट में अपील कर सकती है। उस दौरान जिन लोगों की संपत्तियों पर कब्जा किया गया था। राजस्व रिकॉर्ड के अनुसार उन संपत्तियों को भी कब्जे से मुक्त कराकर संबंधित पक्ष को वापस लौटाया जा सकता है। जो मुकदमे वापस लिए गए थे, उन्हें फिर से खोलने का रास्ता भी सरकार के लिए मजबूत विकल्प हो सकता है। वहीं, मुलायम सरकार के केस वापस लेने पर सेवानिवृत्त हाईकोर्ट जज जस्टिस आदित्य मित्तल कहते हैं- जो मुकदमे वापस किए गए थे, वह कोर्ट की परमिशन से ही वापस लिए गए होंगे। उसमें देखना होगा कि अब किस आधार पर मुकदमे वापस चलाए जा सकते हैं। उसके लिए फिर से कोर्ट की परमिशन लेनी होगी। जिस केस में अपील दायर नहीं हुई, उसमें अब अपील दायर होना मुश्किल है, क्योंकि समय बहुत ज्यादा हो गया है। मुश्किल ये: फाइलें तलाशना कठिन
1978 के संभल दंगे में 16 मुकदमे दर्ज किए गए थे। इनमें से 14 मुकदमे सरकार ने वापस ले लिए, एक मुकदमे में आरोपी बरी हो गए। लेकिन, बीते तीन दशक में उन मुकदमों की फाइलें गुम हो गई हैं। गृह विभाग के पत्र के बाद मामले की जांच में जुटे संभल प्रशासन और पुलिस के लिए उन फाइलों को तलाशने में मुश्किल हो रही है। फाइलें हाथ लगते ही सत्ता के संरक्षण और मजबूत गवाहों के अभाव में खुलेआम घूम रहे आरोपियों के खिलाफ शिकंजा कसना आसान होगा। वहीं, संभल के एक पुलिस अधिकारी ने बताया कि 1978 के दंगे के ज्यादातर आरोपी अब बुजुर्ग हो गए हैं। अगर सरकार ने मामले की फाइलें वापस खोलीं, तो उनका बुढ़ापा जेल में बीतेगा। राजनीतिक पहलू : सरकार को मिल सकता है फायदा
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि 1978 के संभल के मुद्दे पर विधानसभा में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के तेवर थे। 2027 के विधानसभा चुनाव से पहले हिंदू वोट बैंक के ध्रुवीकरण के लिए सरकार इस मामले को फिर मजबूती से उठाएगी। राजनीतिक विश्लेषक रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं- हिंदू-मुस्लिम के विवाद में संभल दंगे का मुद्दा फिर जिंदा करना भाजपा को फायदमेमंद नजर आ रहा है। मुस्लिम समुदाय सरकार के एजेंडे पर है। इसका राजनीतिक फायदा उठाने के लिए सरकार इस मुकदमे की फाइल वापस खोल सकती है। लेकिन, इससे पहले सरकार को कोर्ट से परमिशन लेनी होगी। 2027 चुनाव में मुद्दा बनेगा संभल
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक वीरेंद्र नाथ भट्‌ट मानते हैं- 1978 के संभल दंगे अब विधानसभा चुनाव 2027 में भी मुद्दा बनेंगे। लेकिन इसमें भाजपा, आरएसएस या विहिप का कोई आंदोलन नहीं होगा। सरकार, शासन, प्रशासन और पुलिस विधिक प्रक्रिया के तहत ही पूरे प्रॉसेस को आगे बढ़ाएंगे। यह मुद्दा अब केवल यूपी तक सीमित नहीं रहेगा, यूपी से बाहर भी मुद्दा बनेगा। योगी सरकार यह भी बताने का प्रयास करेगी कि बीते चार दशक में तत्कालीन सरकारों ने तुष्टीकरण के लिए मुस्लिमों के अपराधों पर किस तरह आंख बंद कर रखी थी। योगी सरकार ने उसी आड़ में पनपे माफिया अतीक अहमद, मुख्तार अंसारी के साम्राज्य का खात्मा किया है। वहीं, आजम खान को भी जेल भेजने जैसा असंभव काम संभव कर दिखाया है। पूरा मामला जानिए…दंगों में 184 लोगों की गई थी जान
दैनिक भास्कर ने 1978 में हुए दंगों की पड़ताल की थी। इस दौरान हमें पुलिस-प्रशासन की एक इंटरनल रिपोर्ट मिली थी। इसके मुताबिक, 29 मार्च, 1978 को संभल में सबसे बड़ा दंगा भड़का था। उस साल 25 मार्च को होली थी। होली जलाने पर दोनों समुदायों में तनाव था। उसी समय अफवाह उड़ी कि एक दुकानदार ने दूसरे समुदाय के शख्स को मार दिया है। इसके बाद दंगे शुरू हो गए। तब कई लोगों ने SDM रमेश चंद्र माथुर के ऑफिस में छिपकर जान बचाई थी। दंगे के बीच कारोबारी बनवारी लाल ने दुकानदारों को अपने साले मुरारी लाल की कोठी में छिपा दिया था। दंगाइयों ने कोठी का गेट ट्रैक्टर से तोड़ दिया और 24 लोगों की हत्या कर दी थी। उस वक्त 30 से ज्यादा दिन तक कर्फ्यू लगा था। संभल के आसपास के हर गांव में लोग मारे गए थे। दंगों में कुल 184 लोगों की जान गई थी। ये थे मुख्य आरोपी : बनवारी लाल गोयल की हत्या के केस में इरफान, वाजिद, जाहिद, हाथौड़िया का शाहिद, कामिल, अच्छन और मंजर मुख्य आरोपी थे। गवाह जो मुकर गए : बनवारी लाल गोयल की हत्या के मामले में बाबूलाल शर्मा, ब्रजानंद वार्ष्णेय, सतीश गर्ग और हरिद्वारी रसोइया मुख्य गवाह थे। लेकिन सभी गवाह होस्टाइल (मुकर) हो गए थे। —————- यह खबर भी पढ़ें… संभल दंगे की फाइल खुलेगी, 184 की जान गई थी; सरकार ने 7 दिन में मांगी पुरानी जांच रिपोर्ट संभल में 1978 में हुए दंगों की फाइल फिर से खुलेगी। शासन ने दंगे की जांच रिपोर्ट मांगी है। DM राजेंद्र पेंसिया ने कहा- भाजपा MLC चंद शर्मा ने विधान परिषद में संभल दंगे का मामला उठाया था। शासन से सूचना मांगी गई थी। संभल से दंगे से जुड़ी जानकारी शासन को दी जाएगी। पढ़ें पूरी खबर… संभल में 1978 में दंगे हुए। इसमें 184 हिंदुओं की हत्या कर दी गई थी। जांच हुई और केस कोर्ट पहुंचा। लेकिन, साल 2010 में 4 प्रमुख गवाहों के मुकरने और 48 आरोपियों के बरी होने के साथ फाइल बंद हो गई। अब योगी सरकार करीब 15 साल बाद संभल दंगे की फाइल फिर खोलने जा रही है। कानून के जानकारों का कहना है कि सरकार के पास 1993-94 में तत्कालीन मुलायम सरकार की ओर से वापस लिए गए 15 मुकदमों की फाइल वापस खोलने का रास्ता खुला है। वहीं, बनवारी लाल गोयल की निर्मम हत्या के मुकदमे में इलाहाबाद हाईकोर्ट में विलंब से अपील का मजबूत विकल्प भी है। संभल का 47 साल पुराना यह केस क्यों फिर से चर्चा में आया? इस केस के कानूनी पक्ष और राजनीतिक मायने क्या हैं? पढ़िए इस रिपोर्ट में… पहले जानिए क्यों चर्चा में आया 47 साल पुराना केस?
1978 के दंगे में संभल में वैश्य परिवार के बनवारी लाल गोयल की निर्मम हत्या कर दी गई थी। वह परिवार के रोकने के बावजूद दंगे वाले इलाके में चले गए थे। उन्होंने परिवार से कहा कि सभी मेरे भाई और दोस्त हैं। उपद्रवियों ने उन्हें पकड़ लिया और हाथ-पैर काट दिए। बनवारी लाल ने कहा कि मुझे काटो मत, गोली मार दो। फिर भी उनका गला काटकर हत्या कर दी गई। इस मामले में कुल 16 मुकदमे दर्ज किए गए थे। लेकिन, समाजवादी पार्टी की तत्कालीन सरकार के मुखिया मुलायम सिंह यादव ने 1993-94 में 15 मुकदमे वापस ले लिए। जबकि बनवारी लाल की हत्या के मुकदमे में ट्रायल लंबा चला। हाल ही में विधान परिषद में भाजपा के MLC श्रीचंद्र शर्मा की ओर से उठाए गए मुद्दे के बाद यह मामला फिर खुलता नजर आ रहा है। संभल प्रशासन और पुलिस अब इस पड़ताल में जुटा है कि मुकदमे किस आधार पर वापस लिए गए? इनकी गहन पड़ताल के बाद प्रशासन और पुलिस अपनी रिपोर्ट शासन को देंगे। शासन उस रिपोर्ट को देखने के बाद मुकदमे फिर से चलाने का निर्णय भी ले सकता है। हालांकि, अभी इस पर गृह विभाग का कोई भी अधिकारी खुलकर कुछ कहने को तैयार नहीं है। सीएम योगी ने विधानसभा में किया था जिक्र
16 दिसंबर को उत्तर प्रदेश विधानसभा के शीतकालीन सत्र के दौरान सीएम योगी ने 1978 के संभल दंगे का मुद्दा उठाया था। योगी ने नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (NCRB) की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा था कि 1978 के दंगों में 184 हिंदुओं को जिंदा जला दिया गया था। 1947 से अब तक संभल में हुए दंगों में 209 हिंदुओं की हत्या हुई। अब जानिए कानून के जानकार क्या कहते हैं?
राज्य सरकार के अपर महाधिवक्ता कहते हैं- अगर सेशन कोर्ट के फैसले पर हाईकोर्ट में कोई अपील दायर नहीं हुई, तो सरकार के पास पीड़ित पक्ष की ओर से विलंब से अपील दायर करने का रास्ता खुला है। सरकार तमाम प्रमाण और साक्ष्य जुटाकर हाईकोर्ट में अपील कर सकती है। उस दौरान जिन लोगों की संपत्तियों पर कब्जा किया गया था। राजस्व रिकॉर्ड के अनुसार उन संपत्तियों को भी कब्जे से मुक्त कराकर संबंधित पक्ष को वापस लौटाया जा सकता है। जो मुकदमे वापस लिए गए थे, उन्हें फिर से खोलने का रास्ता भी सरकार के लिए मजबूत विकल्प हो सकता है। वहीं, मुलायम सरकार के केस वापस लेने पर सेवानिवृत्त हाईकोर्ट जज जस्टिस आदित्य मित्तल कहते हैं- जो मुकदमे वापस किए गए थे, वह कोर्ट की परमिशन से ही वापस लिए गए होंगे। उसमें देखना होगा कि अब किस आधार पर मुकदमे वापस चलाए जा सकते हैं। उसके लिए फिर से कोर्ट की परमिशन लेनी होगी। जिस केस में अपील दायर नहीं हुई, उसमें अब अपील दायर होना मुश्किल है, क्योंकि समय बहुत ज्यादा हो गया है। मुश्किल ये: फाइलें तलाशना कठिन
1978 के संभल दंगे में 16 मुकदमे दर्ज किए गए थे। इनमें से 14 मुकदमे सरकार ने वापस ले लिए, एक मुकदमे में आरोपी बरी हो गए। लेकिन, बीते तीन दशक में उन मुकदमों की फाइलें गुम हो गई हैं। गृह विभाग के पत्र के बाद मामले की जांच में जुटे संभल प्रशासन और पुलिस के लिए उन फाइलों को तलाशने में मुश्किल हो रही है। फाइलें हाथ लगते ही सत्ता के संरक्षण और मजबूत गवाहों के अभाव में खुलेआम घूम रहे आरोपियों के खिलाफ शिकंजा कसना आसान होगा। वहीं, संभल के एक पुलिस अधिकारी ने बताया कि 1978 के दंगे के ज्यादातर आरोपी अब बुजुर्ग हो गए हैं। अगर सरकार ने मामले की फाइलें वापस खोलीं, तो उनका बुढ़ापा जेल में बीतेगा। राजनीतिक पहलू : सरकार को मिल सकता है फायदा
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि 1978 के संभल के मुद्दे पर विधानसभा में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के तेवर थे। 2027 के विधानसभा चुनाव से पहले हिंदू वोट बैंक के ध्रुवीकरण के लिए सरकार इस मामले को फिर मजबूती से उठाएगी। राजनीतिक विश्लेषक रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं- हिंदू-मुस्लिम के विवाद में संभल दंगे का मुद्दा फिर जिंदा करना भाजपा को फायदमेमंद नजर आ रहा है। मुस्लिम समुदाय सरकार के एजेंडे पर है। इसका राजनीतिक फायदा उठाने के लिए सरकार इस मुकदमे की फाइल वापस खोल सकती है। लेकिन, इससे पहले सरकार को कोर्ट से परमिशन लेनी होगी। 2027 चुनाव में मुद्दा बनेगा संभल
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक वीरेंद्र नाथ भट्‌ट मानते हैं- 1978 के संभल दंगे अब विधानसभा चुनाव 2027 में भी मुद्दा बनेंगे। लेकिन इसमें भाजपा, आरएसएस या विहिप का कोई आंदोलन नहीं होगा। सरकार, शासन, प्रशासन और पुलिस विधिक प्रक्रिया के तहत ही पूरे प्रॉसेस को आगे बढ़ाएंगे। यह मुद्दा अब केवल यूपी तक सीमित नहीं रहेगा, यूपी से बाहर भी मुद्दा बनेगा। योगी सरकार यह भी बताने का प्रयास करेगी कि बीते चार दशक में तत्कालीन सरकारों ने तुष्टीकरण के लिए मुस्लिमों के अपराधों पर किस तरह आंख बंद कर रखी थी। योगी सरकार ने उसी आड़ में पनपे माफिया अतीक अहमद, मुख्तार अंसारी के साम्राज्य का खात्मा किया है। वहीं, आजम खान को भी जेल भेजने जैसा असंभव काम संभव कर दिखाया है। पूरा मामला जानिए…दंगों में 184 लोगों की गई थी जान
दैनिक भास्कर ने 1978 में हुए दंगों की पड़ताल की थी। इस दौरान हमें पुलिस-प्रशासन की एक इंटरनल रिपोर्ट मिली थी। इसके मुताबिक, 29 मार्च, 1978 को संभल में सबसे बड़ा दंगा भड़का था। उस साल 25 मार्च को होली थी। होली जलाने पर दोनों समुदायों में तनाव था। उसी समय अफवाह उड़ी कि एक दुकानदार ने दूसरे समुदाय के शख्स को मार दिया है। इसके बाद दंगे शुरू हो गए। तब कई लोगों ने SDM रमेश चंद्र माथुर के ऑफिस में छिपकर जान बचाई थी। दंगे के बीच कारोबारी बनवारी लाल ने दुकानदारों को अपने साले मुरारी लाल की कोठी में छिपा दिया था। दंगाइयों ने कोठी का गेट ट्रैक्टर से तोड़ दिया और 24 लोगों की हत्या कर दी थी। उस वक्त 30 से ज्यादा दिन तक कर्फ्यू लगा था। संभल के आसपास के हर गांव में लोग मारे गए थे। दंगों में कुल 184 लोगों की जान गई थी। ये थे मुख्य आरोपी : बनवारी लाल गोयल की हत्या के केस में इरफान, वाजिद, जाहिद, हाथौड़िया का शाहिद, कामिल, अच्छन और मंजर मुख्य आरोपी थे। गवाह जो मुकर गए : बनवारी लाल गोयल की हत्या के मामले में बाबूलाल शर्मा, ब्रजानंद वार्ष्णेय, सतीश गर्ग और हरिद्वारी रसोइया मुख्य गवाह थे। लेकिन सभी गवाह होस्टाइल (मुकर) हो गए थे। —————- यह खबर भी पढ़ें… संभल दंगे की फाइल खुलेगी, 184 की जान गई थी; सरकार ने 7 दिन में मांगी पुरानी जांच रिपोर्ट संभल में 1978 में हुए दंगों की फाइल फिर से खुलेगी। शासन ने दंगे की जांच रिपोर्ट मांगी है। DM राजेंद्र पेंसिया ने कहा- भाजपा MLC चंद शर्मा ने विधान परिषद में संभल दंगे का मामला उठाया था। शासन से सूचना मांगी गई थी। संभल से दंगे से जुड़ी जानकारी शासन को दी जाएगी। पढ़ें पूरी खबर…   उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर