यूपी में उप चुनाव की तारीखों का एलान भले न हुआ हो, लेकिन राजनीतिक सरगर्मी तेज है। प्रदेश की 10 विधानसभा सीटों पर किस पार्टी से कौन लड़ेगा, कौन जीतेगा?, इसे लेकर कयासबाजी की जा रही है। राज्य में 2007 से अब तक लोकसभा और विधानसभा की 80 सीटों पर उपचुनाव हुए। सत्ताधारी दल को 80 में से 51 सीटों पर जीत मिली है। नतीजों पर नजर डालें तो मुकाबले में बसपा भारी पड़ी है। उसका सक्सेस रेट 64% है। सपा का सक्सेस रेट 19% है, जबकि भाजपा को नुकसान उठाना पड़ा है। राज्य में शासन की बात की जाए तो 2007 से 2012 तक मायावती काबिज रहीं, 2012 से 2017 तक अखिलेश यादव की सरकार रही। 2017 से योगी आदित्यनाथ की सरकार है। सबसे पहले बात मायावती के शासनकाल की 2007 के विधानसभा चुनाव में बसपा को रिकॉर्ड 206 सीट हासिल हुई थीं। मायावती सरकार में प्रदेश में विधानसभा की 22 सीटों पर उप चुनाव हुए। वजह- कुछ सदस्यों का निधन हो गया, जबकि कुछ ने इस्तीफा दे दिया। इन चुनावों में बसपा का दबदबा रहा। बसपा को 22 में से 17 सीट मिलीं। समाजवादी पार्टी को सिर्फ 2 और एक-एक सीट रालोद, कांग्रेस और निर्दलीय उम्मीदवार को मिली। भाजपा एक भी उप चुनाव नहीं जीत सकी। जिन 22 सीटों पर उपचुनाव हुए वहां विधानसभा चुनाव का नतीजा कुछ और ही था। 2007 के चुनाव में इन 22 सीटों में से 8 सीट सपा को, तीन सीट कांग्रेस और तीन सीट बसपा को मिली थीं। बीजेपी के हिस्से में चार सीट आई थीं। बसपा की सीटें बढ़ीं, सपा-भाजपा को नुकसान मायावती के शासन में हुए उपचुनाव में आंकड़े पूरी तरह से बसपा के पक्ष में रहे। सत्ताधारी दल बसपा 3 से बढ़कर 17 तक पहुंच गई। सपा 8 से दो पर आ गई। भाजपा ने चारों सीट गंवा दीं। लखनऊ पश्चिमी सीट जो भाजपा के लालजी टंडन के इस्तीफे से खाली हुई थी, उस पर कांग्रेस ने कब्जा कर लिया। जेडीयू, पीपीडी को भी एक-एक सीट का नुकसान हुआ। आरएलडी सिर्फ मोरना की सीट बचा पाने में कामयाब हुई थी। यानी उप चुनाव में बसपा की जीत का प्रतिशत 75 प्रतिशत से अधिक रहा था। हालांकि 2012 में जब विधानसभा चुनाव हुए तो बसपा 79 सीटों पर सिमट गई और समाजवादी पार्टी ने पूर्ण बहुमत की सरकार बना ली। अब बात सपा शासनकाल की : सपा ने जीती थीं 26 में 16 सीट 2012 से 2017 तक उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार थी। इस दौरान प्रदेश में विधानसभा की 26 सीटों पर उपचुनाव हुए। इन उपचुनावों में सपा ने 16 सीटें जीतीं। सपा की जीत का प्रतिशत लगभग 60 रहा। 6 सीटें भाजपा के खाते में गईं और दो कांग्रेस के खाते में। जबकि एक-एक सीट पर तृणमूल कांग्रेस और अपना दल ने कब्जा किया था। बहुजन समाज पार्टी ने 2012 में हुई करारी हार के बाद उपचुनाव से किनारा कर लिया था। 2012 में जब विधानसभा का चुनाव हुआ था, उस समय उपचुनाव वाली सीटों में से भाजपा के पास 12 और सपा के पास 11 सीटें थीं। एक-एक सीट अपना दल, कांग्रेस और आरएलडी के पास थी। चरखारी में 5 साल में 4 बार हुए चुनाव बुंंदेलखंड की चरखारी सीट पर 2012 से लेकर 2017 के बीच कुल चार चुनाव हुए। इसमें दो चुनाव और दो उप चुनाव। यहां से 2012 में उमा भारती भाजपा के टिकट पर चुनाव जीती थीं। 2014 में वह लोकसभा सदस्य निर्वाचित हो गईं। सीट खाली हुई, उपचुनाव हुआ तो समाजवादी पार्टी के कप्तान सिंह ने जीत हासिल की। लेकिन अपराध के एक मामले में उन्हें सजा हो गई, जिसके बाद उनकी सदस्यता चली गई। 11 अप्रैल 2015 को यहां दोबारा उपचुनाव हुआ तो समाजवादी पार्टी की उर्मिला देवी राजपूत ने जीत हासिल की। 2017 में जब विधानसभा चुनाव हुआ तो यहां से भाजपा को जीत मिली। इन उपचुनाव के नतीजों की रही चर्चा 2014 में केंद्र में प्रचंड बहुमत के साथ मोदी सरकार आई। यह लहर 2017 तक कायम रही। भाजपा को इसका फायदा 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में भी मिला। राज्य में भाजपा ने रिकॉर्ड जीत दर्ज की। उसे 300 से ज्यादा सीट हासिल हुईं। 2014 में गोरखपुर से जीत दर्ज कर सांसद बनने वाले योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बने। फूलपुर से सांसद बने केशव प्रसाद उप मुख्यमंत्री बनाए गए। योगी सरकार की पहली परीक्षा 2017 के अंत में हुए लोकसभा उपचुनाव में हुई। इस उपचुनाव में सपा ने भाजपा से गोरखपुर और फूलपुर दोनों सीट छीन ली। 2018 में कैराना के सांसद बने हुकुम सिंह के निधन से सीट खाली हुई। उपचुनाव हुआ तो सपा-आरएलडी प्रत्याशी तबस्सुम हसन ने यहां से भाजपा को मात दे दी। यानी भाजपा के शासनकाल में शुरुआती तीन लोकसभा की जिन तीन सीटों पर चुनाव हुए वह तीनों सीटें भाजपा हार गई। योगी के पहले कार्यकाल में भाजपा ने जीतीं 23 में 17 सीटें, लेकिन 2 सीटों का नुकसान योगी सरकार के पहले कार्यकाल यानी 2017 से 2022 तक कुल 37 सीटें खाली हुईं। लेकिन चुनाव 23 पर ही हुए। वजह, बाकी सीटें उस वक्त खाली हुईं जब सदन का कार्यकाल 6 महीने से कम बचा था। जिन 23 सीटों पर उपचुनाव हुए उसमें भाजपा और उसके सहयोगी अपना दल ने 18 सीटों पर जीत हासिल की। 17 सीट भाजपा और एक सीट अपना दल ने जीती। सपा के हिस्से 5 सीट आईं। जबकि विधानसभा चुनाव में इन 23 में से भाजपा के पास 19 सीटें थीं। भाजपा की सहयोगी अपना दल के पास एक सीट थी। इसके अलावा दो सीट सपा के पास और एक सीट बसपा के पास थी। सपा ने इस दौरान न सिर्फ अपनी दोनों रामपुर और मल्हानी को बचाया बल्कि भाजपा से दो और बसपा से एक सीट छीन ली थी। योगी 2.0 में अब तक 10 सीटों पर उपचुनाव योगी सरकार के पार्ट 2 कार्यकाल में अब तक 10 सीटों पर उपचुनाव हुआ है। इन 10 सीटों में से चार सीट पर भाजपा और दो सीट पर अपना दल ने जीत दर्ज की है। इसके अलावा 3 सीट सपा ने और एक सीट आरएलडी ने जीती है। एक सीट सपा की सहयोगी के रूप में चुनाव लड़ी आरएलडी के हाथ आई थी। आरएलडी अब भाजपा के साथ है। अब इन 10 सीटों पर सरकार की परीक्षा प्रदेश में मौजूदा समय में 10 सीटें करहल, मिल्कीपुर, कटेहरी, फूलपुर, मझवां, सीसामऊ, कुंदरकी, गाजियाबाद, मीरापुर और खैर खाली हैं। सीसामऊ से विधायक रहे इरफान सोलंकी को अपराध के एक मामले में दो साल से अधिक की सजा हुई है, जिसके कारण उनकी सदस्यता रद्द हो गई है। बाकी 9 सीटों पर मौजूदा विधायक अब सांसद बन गए हैं। प्रतिष्ठित सीटें जिनपर सत्तापक्ष को मिली हार कई ऐसी सीटें भी रहीं जिन्हें सत्ताधारियों ने अपनी प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया, उसके बाद भी हार का सामना करना पड़ा। भदोही सीट : बसपा के शासन काल में फरवरी 2009 में भदोही सीट पर ऐसा ही हुआ। यहां बसपा की अर्चना सरोज के निधन से खाली हुई सीट पर बसपा ने अपना पूरा जोर लगा दिया। इसके बाद भी उसे हार मिली। सपा ने ये सीट जीत ली। मांट सीट : 2012 में सपा की सरकार बनी, अखिलेश यादव मुख्यमंत्री बने। मांट से जयंत चौधरी के इस्तीफे से खाली हुई सीट पर उपचुनाव हुआ। इस चुनाव में अखिलेश यादव ने पूरी ताकत लगाई लेकिन वह संजय लाठर को जीत तक नहीं पहुंचा सके। इस चुनाव में सपा तीसरे नंबर पर रही। गोरखपुर और फूलपुर सीट: 2017 में भाजपा की सरकार बनी। योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री और केशव प्रसाद उप मुख्यमंत्री बने। यह दोनों सांसद थे, इसलिए लोकसभा सीट पर उपचुनाव हुआ। यह उपचुनाव भाजपा बुरी तरह से हार गई। घोसी सीट : योगी आदित्यनाथ 2022 में दोबारा मुख्यमंत्री बने तो मऊ की घोसी सीट से विधायक चुने गए दारा सिंह चौहान सपा छोड़ भाजपा में शामिल हो गए। उन्होंने विधानसभा की सीट से इस्तीफा दे दिया। लेकिन जब उपचुनाव हुआ तो दारा सिंह चुनाव हार गए। राजनीतिक विश्लेषक योगेश मिश्रा का कहना है कि उपचुनाव में कई ऐसे मुद्दे होते हैं जो उस समय के हिसाब से काम करते हैं। जरूरी नहीं कि चुनाव में सत्ताधारी दल जीते। हर सीट के समीकरण होते हैं और अलग-अलग मुद्दे होते हैं। मायावती के शासनकाल में उपचुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी अजय राय ने वाराणसी के कोलासला सीट से जीत दर्ज की थी। इसी तरह सपा के शासनकाल में तमाम कोशिशों के बावजूद संजय लाठर चुनाव हार गए थे। मौजूदा मुख्यमंत्री अपनी खुद की सीट गोरखपुर संसदीय सीट उपचुनाव में हार गए थे। ऐसे में यह कहना गलत है कि सत्ताधारी दल की ही जीत होती है। हां, उसके जीतने की संभावना इसलिए ज्यादा होती है, क्योंकि वहां की जनता सरकार के साथ मिलकर चलना चाहती है, ताकि वहां का विकास हो सके। ये भी पढ़ें: अखिलेश को करारा जवाब देना चाहते हैं योगी विधानसभा चुनाव 2027 से पहले 10 सीटों पर होने वाले उपचुनाव सभी पार्टियों के लिए सेमीफाइनल हैं। सीएम योगी ने पूरी ताकत झोंक रखी है। खुद कटेहरी और मिल्कीपुर सीट का जिम्मा संभाल रहे हैं। उपचुनाव में भी भाजपा के ‘केंद्र’ में राष्ट्रवाद और अयोध्या मुद्दा है। पढ़े पूरी खबर यूपी में उप चुनाव की तारीखों का एलान भले न हुआ हो, लेकिन राजनीतिक सरगर्मी तेज है। प्रदेश की 10 विधानसभा सीटों पर किस पार्टी से कौन लड़ेगा, कौन जीतेगा?, इसे लेकर कयासबाजी की जा रही है। राज्य में 2007 से अब तक लोकसभा और विधानसभा की 80 सीटों पर उपचुनाव हुए। सत्ताधारी दल को 80 में से 51 सीटों पर जीत मिली है। नतीजों पर नजर डालें तो मुकाबले में बसपा भारी पड़ी है। उसका सक्सेस रेट 64% है। सपा का सक्सेस रेट 19% है, जबकि भाजपा को नुकसान उठाना पड़ा है। राज्य में शासन की बात की जाए तो 2007 से 2012 तक मायावती काबिज रहीं, 2012 से 2017 तक अखिलेश यादव की सरकार रही। 2017 से योगी आदित्यनाथ की सरकार है। सबसे पहले बात मायावती के शासनकाल की 2007 के विधानसभा चुनाव में बसपा को रिकॉर्ड 206 सीट हासिल हुई थीं। मायावती सरकार में प्रदेश में विधानसभा की 22 सीटों पर उप चुनाव हुए। वजह- कुछ सदस्यों का निधन हो गया, जबकि कुछ ने इस्तीफा दे दिया। इन चुनावों में बसपा का दबदबा रहा। बसपा को 22 में से 17 सीट मिलीं। समाजवादी पार्टी को सिर्फ 2 और एक-एक सीट रालोद, कांग्रेस और निर्दलीय उम्मीदवार को मिली। भाजपा एक भी उप चुनाव नहीं जीत सकी। जिन 22 सीटों पर उपचुनाव हुए वहां विधानसभा चुनाव का नतीजा कुछ और ही था। 2007 के चुनाव में इन 22 सीटों में से 8 सीट सपा को, तीन सीट कांग्रेस और तीन सीट बसपा को मिली थीं। बीजेपी के हिस्से में चार सीट आई थीं। बसपा की सीटें बढ़ीं, सपा-भाजपा को नुकसान मायावती के शासन में हुए उपचुनाव में आंकड़े पूरी तरह से बसपा के पक्ष में रहे। सत्ताधारी दल बसपा 3 से बढ़कर 17 तक पहुंच गई। सपा 8 से दो पर आ गई। भाजपा ने चारों सीट गंवा दीं। लखनऊ पश्चिमी सीट जो भाजपा के लालजी टंडन के इस्तीफे से खाली हुई थी, उस पर कांग्रेस ने कब्जा कर लिया। जेडीयू, पीपीडी को भी एक-एक सीट का नुकसान हुआ। आरएलडी सिर्फ मोरना की सीट बचा पाने में कामयाब हुई थी। यानी उप चुनाव में बसपा की जीत का प्रतिशत 75 प्रतिशत से अधिक रहा था। हालांकि 2012 में जब विधानसभा चुनाव हुए तो बसपा 79 सीटों पर सिमट गई और समाजवादी पार्टी ने पूर्ण बहुमत की सरकार बना ली। अब बात सपा शासनकाल की : सपा ने जीती थीं 26 में 16 सीट 2012 से 2017 तक उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार थी। इस दौरान प्रदेश में विधानसभा की 26 सीटों पर उपचुनाव हुए। इन उपचुनावों में सपा ने 16 सीटें जीतीं। सपा की जीत का प्रतिशत लगभग 60 रहा। 6 सीटें भाजपा के खाते में गईं और दो कांग्रेस के खाते में। जबकि एक-एक सीट पर तृणमूल कांग्रेस और अपना दल ने कब्जा किया था। बहुजन समाज पार्टी ने 2012 में हुई करारी हार के बाद उपचुनाव से किनारा कर लिया था। 2012 में जब विधानसभा का चुनाव हुआ था, उस समय उपचुनाव वाली सीटों में से भाजपा के पास 12 और सपा के पास 11 सीटें थीं। एक-एक सीट अपना दल, कांग्रेस और आरएलडी के पास थी। चरखारी में 5 साल में 4 बार हुए चुनाव बुंंदेलखंड की चरखारी सीट पर 2012 से लेकर 2017 के बीच कुल चार चुनाव हुए। इसमें दो चुनाव और दो उप चुनाव। यहां से 2012 में उमा भारती भाजपा के टिकट पर चुनाव जीती थीं। 2014 में वह लोकसभा सदस्य निर्वाचित हो गईं। सीट खाली हुई, उपचुनाव हुआ तो समाजवादी पार्टी के कप्तान सिंह ने जीत हासिल की। लेकिन अपराध के एक मामले में उन्हें सजा हो गई, जिसके बाद उनकी सदस्यता चली 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2 सीटों का नुकसान योगी सरकार के पहले कार्यकाल यानी 2017 से 2022 तक कुल 37 सीटें खाली हुईं। लेकिन चुनाव 23 पर ही हुए। वजह, बाकी सीटें उस वक्त खाली हुईं जब सदन का कार्यकाल 6 महीने से कम बचा था। जिन 23 सीटों पर उपचुनाव हुए उसमें भाजपा और उसके सहयोगी अपना दल ने 18 सीटों पर जीत हासिल की। 17 सीट भाजपा और एक सीट अपना दल ने जीती। सपा के हिस्से 5 सीट आईं। जबकि विधानसभा चुनाव में इन 23 में से भाजपा के पास 19 सीटें थीं। भाजपा की सहयोगी अपना दल के पास एक सीट थी। इसके अलावा दो सीट सपा के पास और एक सीट बसपा के पास थी। सपा ने इस दौरान न सिर्फ अपनी दोनों रामपुर और मल्हानी को बचाया बल्कि भाजपा से दो और बसपा से एक सीट छीन ली थी। योगी 2.0 में अब तक 10 सीटों पर उपचुनाव योगी सरकार के पार्ट 2 कार्यकाल में अब तक 10 सीटों पर उपचुनाव हुआ है। इन 10 सीटों में से चार सीट पर भाजपा और दो सीट पर अपना दल ने जीत दर्ज की है। इसके अलावा 3 सीट सपा ने और एक सीट आरएलडी ने जीती है। एक सीट सपा की सहयोगी के रूप में चुनाव लड़ी आरएलडी के हाथ आई थी। आरएलडी अब भाजपा के साथ है। अब इन 10 सीटों पर सरकार की परीक्षा प्रदेश में मौजूदा समय में 10 सीटें करहल, मिल्कीपुर, कटेहरी, फूलपुर, मझवां, सीसामऊ, कुंदरकी, गाजियाबाद, मीरापुर और खैर खाली हैं। सीसामऊ से विधायक रहे इरफान सोलंकी को अपराध के एक मामले में दो साल से अधिक की सजा हुई है, जिसके कारण उनकी सदस्यता रद्द हो गई है। बाकी 9 सीटों पर मौजूदा विधायक अब सांसद बन गए हैं। प्रतिष्ठित सीटें जिनपर सत्तापक्ष को मिली हार कई ऐसी सीटें भी रहीं जिन्हें सत्ताधारियों ने अपनी प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया, उसके बाद भी हार का सामना करना पड़ा। भदोही सीट : बसपा के शासन काल में फरवरी 2009 में भदोही सीट पर ऐसा ही हुआ। यहां बसपा की अर्चना सरोज के निधन से खाली हुई सीट पर बसपा ने अपना पूरा जोर लगा दिया। इसके बाद भी उसे हार मिली। सपा ने ये सीट जीत ली। मांट सीट : 2012 में सपा की सरकार बनी, अखिलेश यादव मुख्यमंत्री बने। मांट से जयंत चौधरी के इस्तीफे से खाली हुई सीट पर उपचुनाव हुआ। इस चुनाव में अखिलेश यादव ने पूरी ताकत लगाई लेकिन वह संजय लाठर को जीत तक नहीं पहुंचा सके। इस चुनाव में सपा तीसरे नंबर पर रही। गोरखपुर और फूलपुर सीट: 2017 में भाजपा की सरकार बनी। योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री और केशव प्रसाद उप मुख्यमंत्री बने। यह दोनों सांसद थे, इसलिए लोकसभा सीट पर उपचुनाव हुआ। यह उपचुनाव भाजपा बुरी तरह से हार गई। घोसी सीट : योगी आदित्यनाथ 2022 में दोबारा मुख्यमंत्री बने तो मऊ की घोसी सीट से विधायक चुने गए दारा सिंह चौहान सपा छोड़ भाजपा में शामिल हो गए। उन्होंने विधानसभा की सीट से इस्तीफा दे दिया। लेकिन जब उपचुनाव हुआ तो दारा सिंह चुनाव हार गए। राजनीतिक विश्लेषक योगेश मिश्रा का कहना है कि उपचुनाव में कई ऐसे मुद्दे होते हैं जो उस समय के हिसाब से काम करते हैं। जरूरी नहीं कि चुनाव में सत्ताधारी दल जीते। हर सीट के समीकरण होते हैं और अलग-अलग मुद्दे होते हैं। मायावती के शासनकाल में उपचुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी अजय राय ने वाराणसी के कोलासला सीट से जीत दर्ज की थी। इसी तरह सपा के शासनकाल में तमाम कोशिशों के बावजूद संजय लाठर चुनाव हार गए थे। मौजूदा मुख्यमंत्री अपनी खुद की सीट गोरखपुर संसदीय सीट उपचुनाव में हार गए थे। ऐसे में यह कहना गलत है कि सत्ताधारी दल की ही जीत होती है। हां, उसके जीतने की संभावना इसलिए ज्यादा होती है, क्योंकि वहां की जनता सरकार के साथ मिलकर चलना चाहती है, ताकि वहां का विकास हो सके। ये भी पढ़ें: अखिलेश को करारा जवाब देना चाहते हैं योगी विधानसभा चुनाव 2027 से पहले 10 सीटों पर होने वाले उपचुनाव सभी पार्टियों के लिए सेमीफाइनल हैं। सीएम योगी ने पूरी ताकत झोंक रखी है। खुद कटेहरी और मिल्कीपुर सीट का जिम्मा संभाल रहे हैं। उपचुनाव में भी भाजपा के ‘केंद्र’ में राष्ट्रवाद और अयोध्या मुद्दा है। पढ़े पूरी खबर उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर
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लुधियाना में फूड मंत्रालय की तरफ से कारोबारियों की एक बैठक आयोजित की गई। बैठक में केंद्रीय फूड एवं रेल राज्य मंत्री रवनीत बिट्टू पहुंचे। उन्होंने पंजाब में फूड टेस्टिंग लैब खोलने का ऐलान किया। रवनीत बिट्टू ने कहा कि फूड मंत्रालय की ओर से मिलनी वाली योजनाओं को अब घर-घर तक पहुंचाया जा रहा है, जिसके लिए उन्होंने अफसरों को हिदायतें भी दी हैं। उन्होंने बताया कि दिल्ली के प्रगति मैदान में 19 सितंबर से तीन दिवसीय वर्ल्ड फूड इंडिया- 2024 मेगा फूड इवेंट का आयोजन किया जाएगा। बिट्टू ने पंजाब के सभी कारोबारियों से इस इवेंट में पहुंचने की अपील की। बिट्टू ने कहा कि पंजाब के विकास के एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए उनका काम जारी रहेगा। उन्होंने कहा कि दुनिया भर में खाद्यान्नों का बहुत नुकसान होता है। प्रसंस्करण ही खाद्य सुरक्षा और समृद्धि की दिशा में आगे बढ़ने का एकमात्र रास्ता है। जरूरत इस बात की है कि पंजाब के हर घर में खाद्य प्रसंस्करण को कैसे पहुंचाया जाए ताकि लोगों को उनके उत्पादों पर अधिक लाभ मिले और उत्पादों की लाइफ भी बढ़े। (पूरी खबर पढ़ें) पंजाब में रिटायर्ड JE ने मालगाड़ी के सामने लेटकर सुसाइड किया पंजाब के जालंधर में मालगाड़ी के आगे लेट कर रिटायर्ड जेई जोगिंदरपाल ने सुसाइड कर लिया। पारिवारिक सूत्रों के अनुसार, जोगिंदरपाल फाइनेंसरों से परेशान था। इसे लेकर थाना GRP की पुलिस ने सोमवार को कांग्रेस नेता नीलकंठ जज, मनजिंदर सिक्का, आशु, सतपाल, मनीष शर्मा, रमन कुमार और सोहन लाल के खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने का केस दर्ज कर लिया है। फिलहाल आरोपियों की गिरफ्तारी बाकी है। (पूरी खबर पढ़ें) हरियाणा में 4 ट्रेनों के कोच बढ़ाए हरियाणा में रेवाड़ी के रास्ते चलने वाली 4 जोड़ी ट्रेनों में रेलवे की तरफ अस्थाई तौर पर कोच बढ़ाए गए हैं। उत्तर पश्चिम रेलवे के मुख्य जनसंपर्क अधिकारी कैप्टन शशि किरण के अनुसार, इन चारों ट्रेनों में पिछले कुछ समय में यात्रियों की संख्या में काफी इजाफा हुआ है, जिसके चलते इनमें डिब्बों की अस्थाई बढ़ोतरी का फैसला लिया गया है। (पूरी खबर पढ़ें)
पानीपत की लड़की की करनाल में हत्या की कोशिश:9 महीने पहले की थी लवमैरिज, पति के दूसरी महिला से अवैध संबंध
पानीपत की लड़की की करनाल में हत्या की कोशिश:9 महीने पहले की थी लवमैरिज, पति के दूसरी महिला से अवैध संबंध हरियाणा के पानीपत शहर की रहने वाली एक महिला ने 8 माह पहले करनाल के असंध के रहने वाले एक युवक के साथ लव मैरिज की थी। लेकिन, शादी के 10 दिन बाद से ही पति ने दहेज के लिए उसे प्रताड़ित करना शुरू कर दिया। दो बार उसकी हत्या करने की कोशिश की गई। यहां तक कि पति के किसी दूसरी महिला के साथ भी अवैध संबंध है। जिसका विरोध करने पर भी उसे मारा-पीटा गया। महिला किसी तरह अपने घर लौटी और मामले की शिकायत पुलिस को दी गई। पुलिस ने शिकायत के आधार पर विभिन्न धाराओं में केस दर्ज कर लिया है। जेठ जबरन धुलवाता था अंडर गॉरमेंट्स चांदनी बाग थाना पुलिस को दी शिकायत में एक महिला ने बताया कि वह साईं कॉलोनी की रहने वाली है। उसने फरवरी 2024 में रमन निवासी असंध, करनाल के साथ लव मैरिज की थी। शादी के 10 दिन बाद ही पति ने उसकी गला घोंट कर हत्या करने का प्रयास किया। महिला ने बताया कि होली के बाद वह दोनों गुजरात चले गए। जहां जाने के बाद पता लगा कि उसके पति के एक महिला के साथ अवैध संबंध है। विरोध करने पर गुजरात में भी उसके साथ खूब मारपीट की गई। कुछ समय बाद वे वापस लौट आए। यहां आने के बाद पति ने दहेज के लिए मारपीट करनी शुरू कर दी। महिला का आरोप है कि जेठ जबरन अपने अंडर गॉरमेंट्स धुलवाता था। करवाचौथ के अगले दिन ससुराल वालों ने साजिश के तहत जूस में नशीला पदार्थ पिलाकर उसके साथ खूब मारपीट की। 24 अक्टूबर को फिर उसे खूब मारा पीटा गया। उसने अपने भाई को वहां बुलाया, तो आरोपियों ने भाई को निर्वस्त्र कर कमरे में बंद कर दिया।
दिल्ली मेट्रो के एरोसिटी-तुगलकाबाद कॉरिडोर के निर्माण की बाधा होगी दूर, लोगों को ऐसे मिलेगा फायदा
दिल्ली मेट्रो के एरोसिटी-तुगलकाबाद कॉरिडोर के निर्माण की बाधा होगी दूर, लोगों को ऐसे मिलेगा फायदा <p style=”text-align: justify;”><strong>Delhi News:</strong> दिल्ली के उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना ने दक्षिण दिल्ली के खानपुर गांव में 1688 वर्ग मीटर की भूमि के अधिग्रहण को मंजूरी दे दी है. इसके बाद दिल्ली मेट्रो के फेज-5 के एरोसिटी-तुगलकाबाद कॉरिडोर की सबसे बड़ी बाधा दूर हो गई है. यह मामला वर्ष 2020 से लंबित था. </p>
<p style=”text-align: justify;”>एक अन्य महत्वपूर्ण कदम में, उपराज्यपाल ने शिक्षा विभाग की 1600 वर्ग मीटर भूमि को एक वर्ष के लिए डीएमआरसी को हस्तांतरित करने की भी मंजूरी दे दी है. इसके लिए डीएमआरसी किराए के रूप में 13,37,135 रुपये देगा. इस फैसले से दिल्ली मेट्रो के आर.के. आश्रम-मजलिस पार्क और इंद्रप्रस्थ-इंद्रलोक कॉरिडोर पर इंटरचेंज स्टेशन के निर्माण में सुविधा होगी.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>यहां होगा जमीन का इस्तेमाल</strong><br />खाली पड़ी इस जमीन का उपयोग ईदगाह रोड पर बनने वाले भूमिगत नबी करीम मेट्रो स्टेशन से जुड़ी निर्माण गतिविधियों के लिए किया जाएगा. यह भूमिगत स्टेशन उसी जमीन के टुकड़े के नीचे बनेगा जिसको शिक्षा विभाग से लेकर डीएमआरसी को हस्तांतरित किया गया है. एक बार निर्माण कार्य पूरा होने के बाद जमीन के इस टुकड़े को वापस शिक्षा विभाग को सौंप दिया जाएगा. </p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>जाम से मिलेगी निजात</strong><br />गौरतलब है कि खानपुर में जमीन अधिग्रहण का मामला करीब 4 सालों से अधिक समय से लंबित था, जबकि डीएमआरसी ने इसके लिए 7 जुलाई 2020 को अनुरोध किया था. एक बार जमीन के अधिग्रहण के बाद अब एरोसिटी-तुगलकाबाद मेट्रो कॉरिडोर के महत्वपूर्ण सेक्शन को एक साल की समयाविधि में पूरा कर लिया जाएगा. इससे दक्षिण-पूर्वी दिल्ली के घनी आबादी वाले कॉलोनियों से एयरपोर्ट और मेट्रो की दूसरी लाइनों से जुड़ी जगहों पर आना-जाना आसान हो जाएगा. इसके साथ ही इस कदम से मेहरौली-बदरपुर रोड पर लगने वाले भयंकर जाम से भी लोगों को निजात मिलेगी. </p>
<p style=”text-align: justify;”>इसी तरह, ईदगाह रोड पर नबी करीम मेट्रो इंटरचेंज स्टेशन विकसित होने के बाद , दिल्ली मेट्रो के आर.के. आश्रम-मजलिस पार्क और इंद्रप्रस्थ-इंद्रलोक कॉरिडोर पर सफर करने वाले यात्रियों की बिना रोक-टोक की यात्रा में भी मदद मिलेगी.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>ये भी पढ़ें</strong></p>
<p style=”text-align: justify;”><strong><a title=”दिल्ली के द्वारका में चल रहे फर्जी कॉल सेंटर से हो रहा था ये गोरखधंधा, ऐसे कसा शातिर ठगों पर शिकंजा” href=”https://www.abplive.com/states/delhi-ncr/delhi-news-two-accused-arrested-for-cheating-in-name-of-insurance-company-in-dwarka-ann-2804388″ target=”_blank” rel=”noopener”>दिल्ली के द्वारका में चल रहे फर्जी कॉल सेंटर से हो रहा था ये गोरखधंधा, ऐसे कसा शातिर ठगों पर शिकंजा</a></strong></p>