यूपी में उप चुनाव की तारीखों का एलान भले न हुआ हो, लेकिन राजनीतिक सरगर्मी तेज है। प्रदेश की 10 विधानसभा सीटों पर किस पार्टी से कौन लड़ेगा, कौन जीतेगा?, इसे लेकर कयासबाजी की जा रही है। राज्य में 2007 से अब तक लोकसभा और विधानसभा की 80 सीटों पर उपचुनाव हुए। सत्ताधारी दल को 80 में से 51 सीटों पर जीत मिली है। नतीजों पर नजर डालें तो मुकाबले में बसपा भारी पड़ी है। उसका सक्सेस रेट 64% है। सपा का सक्सेस रेट 19% है, जबकि भाजपा को नुकसान उठाना पड़ा है। राज्य में शासन की बात की जाए तो 2007 से 2012 तक मायावती काबिज रहीं, 2012 से 2017 तक अखिलेश यादव की सरकार रही। 2017 से योगी आदित्यनाथ की सरकार है। सबसे पहले बात मायावती के शासनकाल की 2007 के विधानसभा चुनाव में बसपा को रिकॉर्ड 206 सीट हासिल हुई थीं। मायावती सरकार में प्रदेश में विधानसभा की 22 सीटों पर उप चुनाव हुए। वजह- कुछ सदस्यों का निधन हो गया, जबकि कुछ ने इस्तीफा दे दिया। इन चुनावों में बसपा का दबदबा रहा। बसपा को 22 में से 17 सीट मिलीं। समाजवादी पार्टी को सिर्फ 2 और एक-एक सीट रालोद, कांग्रेस और निर्दलीय उम्मीदवार को मिली। भाजपा एक भी उप चुनाव नहीं जीत सकी। जिन 22 सीटों पर उपचुनाव हुए वहां विधानसभा चुनाव का नतीजा कुछ और ही था। 2007 के चुनाव में इन 22 सीटों में से 8 सीट सपा को, तीन सीट कांग्रेस और तीन सीट बसपा को मिली थीं। बीजेपी के हिस्से में चार सीट आई थीं। बसपा की सीटें बढ़ीं, सपा-भाजपा को नुकसान मायावती के शासन में हुए उपचुनाव में आंकड़े पूरी तरह से बसपा के पक्ष में रहे। सत्ताधारी दल बसपा 3 से बढ़कर 17 तक पहुंच गई। सपा 8 से दो पर आ गई। भाजपा ने चारों सीट गंवा दीं। लखनऊ पश्चिमी सीट जो भाजपा के लालजी टंडन के इस्तीफे से खाली हुई थी, उस पर कांग्रेस ने कब्जा कर लिया। जेडीयू, पीपीडी को भी एक-एक सीट का नुकसान हुआ। आरएलडी सिर्फ मोरना की सीट बचा पाने में कामयाब हुई थी। यानी उप चुनाव में बसपा की जीत का प्रतिशत 75 प्रतिशत से अधिक रहा था। हालांकि 2012 में जब विधानसभा चुनाव हुए तो बसपा 79 सीटों पर सिमट गई और समाजवादी पार्टी ने पूर्ण बहुमत की सरकार बना ली। अब बात सपा शासनकाल की : सपा ने जीती थीं 26 में 16 सीट 2012 से 2017 तक उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार थी। इस दौरान प्रदेश में विधानसभा की 26 सीटों पर उपचुनाव हुए। इन उपचुनावों में सपा ने 16 सीटें जीतीं। सपा की जीत का प्रतिशत लगभग 60 रहा। 6 सीटें भाजपा के खाते में गईं और दो कांग्रेस के खाते में। जबकि एक-एक सीट पर तृणमूल कांग्रेस और अपना दल ने कब्जा किया था। बहुजन समाज पार्टी ने 2012 में हुई करारी हार के बाद उपचुनाव से किनारा कर लिया था। 2012 में जब विधानसभा का चुनाव हुआ था, उस समय उपचुनाव वाली सीटों में से भाजपा के पास 12 और सपा के पास 11 सीटें थीं। एक-एक सीट अपना दल, कांग्रेस और आरएलडी के पास थी। चरखारी में 5 साल में 4 बार हुए चुनाव बुंंदेलखंड की चरखारी सीट पर 2012 से लेकर 2017 के बीच कुल चार चुनाव हुए। इसमें दो चुनाव और दो उप चुनाव। यहां से 2012 में उमा भारती भाजपा के टिकट पर चुनाव जीती थीं। 2014 में वह लोकसभा सदस्य निर्वाचित हो गईं। सीट खाली हुई, उपचुनाव हुआ तो समाजवादी पार्टी के कप्तान सिंह ने जीत हासिल की। लेकिन अपराध के एक मामले में उन्हें सजा हो गई, जिसके बाद उनकी सदस्यता चली गई। 11 अप्रैल 2015 को यहां दोबारा उपचुनाव हुआ तो समाजवादी पार्टी की उर्मिला देवी राजपूत ने जीत हासिल की। 2017 में जब विधानसभा चुनाव हुआ तो यहां से भाजपा को जीत मिली। इन उपचुनाव के नतीजों की रही चर्चा 2014 में केंद्र में प्रचंड बहुमत के साथ मोदी सरकार आई। यह लहर 2017 तक कायम रही। भाजपा को इसका फायदा 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में भी मिला। राज्य में भाजपा ने रिकॉर्ड जीत दर्ज की। उसे 300 से ज्यादा सीट हासिल हुईं। 2014 में गोरखपुर से जीत दर्ज कर सांसद बनने वाले योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बने। फूलपुर से सांसद बने केशव प्रसाद उप मुख्यमंत्री बनाए गए। योगी सरकार की पहली परीक्षा 2017 के अंत में हुए लोकसभा उपचुनाव में हुई। इस उपचुनाव में सपा ने भाजपा से गोरखपुर और फूलपुर दोनों सीट छीन ली। 2018 में कैराना के सांसद बने हुकुम सिंह के निधन से सीट खाली हुई। उपचुनाव हुआ तो सपा-आरएलडी प्रत्याशी तबस्सुम हसन ने यहां से भाजपा को मात दे दी। यानी भाजपा के शासनकाल में शुरुआती तीन लोकसभा की जिन तीन सीटों पर चुनाव हुए वह तीनों सीटें भाजपा हार गई। योगी के पहले कार्यकाल में भाजपा ने जीतीं 23 में 17 सीटें, लेकिन 2 सीटों का नुकसान योगी सरकार के पहले कार्यकाल यानी 2017 से 2022 तक कुल 37 सीटें खाली हुईं। लेकिन चुनाव 23 पर ही हुए। वजह, बाकी सीटें उस वक्त खाली हुईं जब सदन का कार्यकाल 6 महीने से कम बचा था। जिन 23 सीटों पर उपचुनाव हुए उसमें भाजपा और उसके सहयोगी अपना दल ने 18 सीटों पर जीत हासिल की। 17 सीट भाजपा और एक सीट अपना दल ने जीती। सपा के हिस्से 5 सीट आईं। जबकि विधानसभा चुनाव में इन 23 में से भाजपा के पास 19 सीटें थीं। भाजपा की सहयोगी अपना दल के पास एक सीट थी। इसके अलावा दो सीट सपा के पास और एक सीट बसपा के पास थी। सपा ने इस दौरान न सिर्फ अपनी दोनों रामपुर और मल्हानी को बचाया बल्कि भाजपा से दो और बसपा से एक सीट छीन ली थी। योगी 2.0 में अब तक 10 सीटों पर उपचुनाव योगी सरकार के पार्ट 2 कार्यकाल में अब तक 10 सीटों पर उपचुनाव हुआ है। इन 10 सीटों में से चार सीट पर भाजपा और दो सीट पर अपना दल ने जीत दर्ज की है। इसके अलावा 3 सीट सपा ने और एक सीट आरएलडी ने जीती है। एक सीट सपा की सहयोगी के रूप में चुनाव लड़ी आरएलडी के हाथ आई थी। आरएलडी अब भाजपा के साथ है। अब इन 10 सीटों पर सरकार की परीक्षा प्रदेश में मौजूदा समय में 10 सीटें करहल, मिल्कीपुर, कटेहरी, फूलपुर, मझवां, सीसामऊ, कुंदरकी, गाजियाबाद, मीरापुर और खैर खाली हैं। सीसामऊ से विधायक रहे इरफान सोलंकी को अपराध के एक मामले में दो साल से अधिक की सजा हुई है, जिसके कारण उनकी सदस्यता रद्द हो गई है। बाकी 9 सीटों पर मौजूदा विधायक अब सांसद बन गए हैं। प्रतिष्ठित सीटें जिनपर सत्तापक्ष को मिली हार कई ऐसी सीटें भी रहीं जिन्हें सत्ताधारियों ने अपनी प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया, उसके बाद भी हार का सामना करना पड़ा। भदोही सीट : बसपा के शासन काल में फरवरी 2009 में भदोही सीट पर ऐसा ही हुआ। यहां बसपा की अर्चना सरोज के निधन से खाली हुई सीट पर बसपा ने अपना पूरा जोर लगा दिया। इसके बाद भी उसे हार मिली। सपा ने ये सीट जीत ली। मांट सीट : 2012 में सपा की सरकार बनी, अखिलेश यादव मुख्यमंत्री बने। मांट से जयंत चौधरी के इस्तीफे से खाली हुई सीट पर उपचुनाव हुआ। इस चुनाव में अखिलेश यादव ने पूरी ताकत लगाई लेकिन वह संजय लाठर को जीत तक नहीं पहुंचा सके। इस चुनाव में सपा तीसरे नंबर पर रही। गोरखपुर और फूलपुर सीट: 2017 में भाजपा की सरकार बनी। योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री और केशव प्रसाद उप मुख्यमंत्री बने। यह दोनों सांसद थे, इसलिए लोकसभा सीट पर उपचुनाव हुआ। यह उपचुनाव भाजपा बुरी तरह से हार गई। घोसी सीट : योगी आदित्यनाथ 2022 में दोबारा मुख्यमंत्री बने तो मऊ की घोसी सीट से विधायक चुने गए दारा सिंह चौहान सपा छोड़ भाजपा में शामिल हो गए। उन्होंने विधानसभा की सीट से इस्तीफा दे दिया। लेकिन जब उपचुनाव हुआ तो दारा सिंह चुनाव हार गए। राजनीतिक विश्लेषक योगेश मिश्रा का कहना है कि उपचुनाव में कई ऐसे मुद्दे होते हैं जो उस समय के हिसाब से काम करते हैं। जरूरी नहीं कि चुनाव में सत्ताधारी दल जीते। हर सीट के समीकरण होते हैं और अलग-अलग मुद्दे होते हैं। मायावती के शासनकाल में उपचुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी अजय राय ने वाराणसी के कोलासला सीट से जीत दर्ज की थी। इसी तरह सपा के शासनकाल में तमाम कोशिशों के बावजूद संजय लाठर चुनाव हार गए थे। मौजूदा मुख्यमंत्री अपनी खुद की सीट गोरखपुर संसदीय सीट उपचुनाव में हार गए थे। ऐसे में यह कहना गलत है कि सत्ताधारी दल की ही जीत होती है। हां, उसके जीतने की संभावना इसलिए ज्यादा होती है, क्योंकि वहां की जनता सरकार के साथ मिलकर चलना चाहती है, ताकि वहां का विकास हो सके। ये भी पढ़ें: अखिलेश को करारा जवाब देना चाहते हैं योगी विधानसभा चुनाव 2027 से पहले 10 सीटों पर होने वाले उपचुनाव सभी पार्टियों के लिए सेमीफाइनल हैं। सीएम योगी ने पूरी ताकत झोंक रखी है। खुद कटेहरी और मिल्कीपुर सीट का जिम्मा संभाल रहे हैं। उपचुनाव में भी भाजपा के ‘केंद्र’ में राष्ट्रवाद और अयोध्या मुद्दा है। पढ़े पूरी खबर यूपी में उप चुनाव की तारीखों का एलान भले न हुआ हो, लेकिन राजनीतिक सरगर्मी तेज है। प्रदेश की 10 विधानसभा सीटों पर किस पार्टी से कौन लड़ेगा, कौन जीतेगा?, इसे लेकर कयासबाजी की जा रही है। राज्य में 2007 से अब तक लोकसभा और विधानसभा की 80 सीटों पर उपचुनाव हुए। सत्ताधारी दल को 80 में से 51 सीटों पर जीत मिली है। नतीजों पर नजर डालें तो मुकाबले में बसपा भारी पड़ी है। उसका सक्सेस रेट 64% है। सपा का सक्सेस रेट 19% है, जबकि भाजपा को नुकसान उठाना पड़ा है। राज्य में शासन की बात की जाए तो 2007 से 2012 तक मायावती काबिज रहीं, 2012 से 2017 तक अखिलेश यादव की सरकार रही। 2017 से योगी आदित्यनाथ की सरकार है। सबसे पहले बात मायावती के शासनकाल की 2007 के विधानसभा चुनाव में बसपा को रिकॉर्ड 206 सीट हासिल हुई थीं। मायावती सरकार में प्रदेश में विधानसभा की 22 सीटों पर उप चुनाव हुए। वजह- कुछ सदस्यों का निधन हो गया, जबकि कुछ ने इस्तीफा दे दिया। इन चुनावों में बसपा का दबदबा रहा। बसपा को 22 में से 17 सीट मिलीं। समाजवादी पार्टी को सिर्फ 2 और एक-एक सीट रालोद, कांग्रेस और निर्दलीय उम्मीदवार को मिली। भाजपा एक भी उप चुनाव नहीं जीत सकी। जिन 22 सीटों पर उपचुनाव हुए वहां विधानसभा चुनाव का नतीजा कुछ और ही था। 2007 के चुनाव में इन 22 सीटों में से 8 सीट सपा को, तीन सीट कांग्रेस और तीन सीट बसपा को मिली थीं। बीजेपी के हिस्से में चार सीट आई थीं। बसपा की सीटें बढ़ीं, सपा-भाजपा को नुकसान मायावती के शासन में हुए उपचुनाव में आंकड़े पूरी तरह से बसपा के पक्ष में रहे। सत्ताधारी दल बसपा 3 से बढ़कर 17 तक पहुंच गई। सपा 8 से दो पर आ गई। भाजपा ने चारों सीट गंवा दीं। लखनऊ पश्चिमी सीट जो भाजपा के लालजी टंडन के इस्तीफे से खाली हुई थी, उस पर कांग्रेस ने कब्जा कर लिया। जेडीयू, पीपीडी को भी एक-एक सीट का नुकसान हुआ। आरएलडी सिर्फ मोरना की सीट बचा पाने में कामयाब हुई थी। यानी उप चुनाव में बसपा की जीत का प्रतिशत 75 प्रतिशत से अधिक रहा था। हालांकि 2012 में जब विधानसभा चुनाव हुए तो बसपा 79 सीटों पर सिमट गई और समाजवादी पार्टी ने पूर्ण बहुमत की सरकार बना ली। अब बात सपा शासनकाल की : सपा ने जीती थीं 26 में 16 सीट 2012 से 2017 तक उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार थी। इस दौरान प्रदेश में विधानसभा की 26 सीटों पर उपचुनाव हुए। इन उपचुनावों में सपा ने 16 सीटें जीतीं। सपा की जीत का प्रतिशत लगभग 60 रहा। 6 सीटें भाजपा के खाते में गईं और दो कांग्रेस के खाते में। जबकि एक-एक सीट पर तृणमूल कांग्रेस और अपना दल ने कब्जा किया था। बहुजन समाज पार्टी ने 2012 में हुई करारी हार के बाद उपचुनाव से किनारा कर लिया था। 2012 में जब विधानसभा का चुनाव हुआ था, उस समय उपचुनाव वाली सीटों में से भाजपा के पास 12 और सपा के पास 11 सीटें थीं। एक-एक सीट अपना दल, कांग्रेस और आरएलडी के पास थी। चरखारी में 5 साल में 4 बार हुए चुनाव बुंंदेलखंड की चरखारी सीट पर 2012 से लेकर 2017 के बीच कुल चार चुनाव हुए। इसमें दो चुनाव और दो उप चुनाव। यहां से 2012 में उमा भारती भाजपा के टिकट पर चुनाव जीती थीं। 2014 में वह लोकसभा सदस्य निर्वाचित हो गईं। सीट खाली हुई, उपचुनाव हुआ तो समाजवादी पार्टी के कप्तान सिंह ने जीत हासिल की। लेकिन अपराध के एक मामले में उन्हें सजा हो गई, जिसके बाद उनकी सदस्यता चली गई। 11 अप्रैल 2015 को यहां दोबारा उपचुनाव हुआ तो समाजवादी पार्टी की उर्मिला देवी राजपूत ने जीत हासिल की। 2017 में जब विधानसभा चुनाव हुआ तो यहां से भाजपा को जीत मिली। इन उपचुनाव के नतीजों की रही चर्चा 2014 में केंद्र में प्रचंड बहुमत के साथ मोदी सरकार आई। यह लहर 2017 तक कायम रही। भाजपा को इसका फायदा 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में भी मिला। राज्य में भाजपा ने रिकॉर्ड जीत दर्ज की। उसे 300 से ज्यादा सीट हासिल हुईं। 2014 में गोरखपुर से जीत दर्ज कर सांसद बनने वाले योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बने। फूलपुर से सांसद बने केशव प्रसाद उप मुख्यमंत्री बनाए गए। योगी सरकार की पहली परीक्षा 2017 के अंत में हुए लोकसभा उपचुनाव में हुई। इस उपचुनाव में सपा ने भाजपा से गोरखपुर और फूलपुर दोनों सीट छीन ली। 2018 में कैराना के सांसद बने हुकुम सिंह के निधन से सीट खाली हुई। उपचुनाव हुआ तो सपा-आरएलडी प्रत्याशी तबस्सुम हसन ने यहां से भाजपा को मात दे दी। यानी भाजपा के शासनकाल में शुरुआती तीन लोकसभा की जिन तीन सीटों पर चुनाव हुए वह तीनों सीटें भाजपा हार गई। योगी के पहले कार्यकाल में भाजपा ने जीतीं 23 में 17 सीटें, लेकिन 2 सीटों का नुकसान योगी सरकार के पहले कार्यकाल यानी 2017 से 2022 तक कुल 37 सीटें खाली हुईं। लेकिन चुनाव 23 पर ही हुए। वजह, बाकी सीटें उस वक्त खाली हुईं जब सदन का कार्यकाल 6 महीने से कम बचा था। जिन 23 सीटों पर उपचुनाव हुए उसमें भाजपा और उसके सहयोगी अपना दल ने 18 सीटों पर जीत हासिल की। 17 सीट भाजपा और एक सीट अपना दल ने जीती। सपा के हिस्से 5 सीट आईं। जबकि विधानसभा चुनाव में इन 23 में से भाजपा के पास 19 सीटें थीं। भाजपा की सहयोगी अपना दल के पास एक सीट थी। इसके अलावा दो सीट सपा के पास और एक सीट बसपा के पास थी। सपा ने इस दौरान न सिर्फ अपनी दोनों रामपुर और मल्हानी को बचाया बल्कि भाजपा से दो और बसपा से एक सीट छीन ली थी। योगी 2.0 में अब तक 10 सीटों पर उपचुनाव योगी सरकार के पार्ट 2 कार्यकाल में अब तक 10 सीटों पर उपचुनाव हुआ है। इन 10 सीटों में से चार सीट पर भाजपा और दो सीट पर अपना दल ने जीत दर्ज की है। इसके अलावा 3 सीट सपा ने और एक सीट आरएलडी ने जीती है। एक सीट सपा की सहयोगी के रूप में चुनाव लड़ी आरएलडी के हाथ आई थी। आरएलडी अब भाजपा के साथ है। अब इन 10 सीटों पर सरकार की परीक्षा प्रदेश में मौजूदा समय में 10 सीटें करहल, मिल्कीपुर, कटेहरी, फूलपुर, मझवां, सीसामऊ, कुंदरकी, गाजियाबाद, मीरापुर और खैर खाली हैं। सीसामऊ से विधायक रहे इरफान सोलंकी को अपराध के एक मामले में दो साल से अधिक की सजा हुई है, जिसके कारण उनकी सदस्यता रद्द हो गई है। बाकी 9 सीटों पर मौजूदा विधायक अब सांसद बन गए हैं। प्रतिष्ठित सीटें जिनपर सत्तापक्ष को मिली हार कई ऐसी सीटें भी रहीं जिन्हें सत्ताधारियों ने अपनी प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया, उसके बाद भी हार का सामना करना पड़ा। भदोही सीट : बसपा के शासन काल में फरवरी 2009 में भदोही सीट पर ऐसा ही हुआ। यहां बसपा की अर्चना सरोज के निधन से खाली हुई सीट पर बसपा ने अपना पूरा जोर लगा दिया। इसके बाद भी उसे हार मिली। सपा ने ये सीट जीत ली। मांट सीट : 2012 में सपा की सरकार बनी, अखिलेश यादव मुख्यमंत्री बने। मांट से जयंत चौधरी के इस्तीफे से खाली हुई सीट पर उपचुनाव हुआ। इस चुनाव में अखिलेश यादव ने पूरी ताकत लगाई लेकिन वह संजय लाठर को जीत तक नहीं पहुंचा सके। इस चुनाव में सपा तीसरे नंबर पर रही। गोरखपुर और फूलपुर सीट: 2017 में भाजपा की सरकार बनी। योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री और केशव प्रसाद उप मुख्यमंत्री बने। यह दोनों सांसद थे, इसलिए लोकसभा सीट पर उपचुनाव हुआ। यह उपचुनाव भाजपा बुरी तरह से हार गई। घोसी सीट : योगी आदित्यनाथ 2022 में दोबारा मुख्यमंत्री बने तो मऊ की घोसी सीट से विधायक चुने गए दारा सिंह चौहान सपा छोड़ भाजपा में शामिल हो गए। उन्होंने विधानसभा की सीट से इस्तीफा दे दिया। लेकिन जब उपचुनाव हुआ तो दारा सिंह चुनाव हार गए। राजनीतिक विश्लेषक योगेश मिश्रा का कहना है कि उपचुनाव में कई ऐसे मुद्दे होते हैं जो उस समय के हिसाब से काम करते हैं। जरूरी नहीं कि चुनाव में सत्ताधारी दल जीते। हर सीट के समीकरण होते हैं और अलग-अलग मुद्दे होते हैं। मायावती के शासनकाल में उपचुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी अजय राय ने वाराणसी के कोलासला सीट से जीत दर्ज की थी। इसी तरह सपा के शासनकाल में तमाम कोशिशों के बावजूद संजय लाठर चुनाव हार गए थे। मौजूदा मुख्यमंत्री अपनी खुद की सीट गोरखपुर संसदीय सीट उपचुनाव में हार गए थे। ऐसे में यह कहना गलत है कि सत्ताधारी दल की ही जीत होती है। हां, उसके जीतने की संभावना इसलिए ज्यादा होती है, क्योंकि वहां की जनता सरकार के साथ मिलकर चलना चाहती है, ताकि वहां का विकास हो सके। ये भी पढ़ें: अखिलेश को करारा जवाब देना चाहते हैं योगी विधानसभा चुनाव 2027 से पहले 10 सीटों पर होने वाले उपचुनाव सभी पार्टियों के लिए सेमीफाइनल हैं। सीएम योगी ने पूरी ताकत झोंक रखी है। खुद कटेहरी और मिल्कीपुर सीट का जिम्मा संभाल रहे हैं। उपचुनाव में भी भाजपा के ‘केंद्र’ में राष्ट्रवाद और अयोध्या मुद्दा है। पढ़े पूरी खबर उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर
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चुनाव के बाद भी चलेगा ‘दो लड़कों का याराना’ या टूट जाएगी दोस्ती! 1 जून की बैठक को लेकर कयास तेज <p style=”text-align: justify;”><strong>INDIA Alliance Meeting:</strong> लोकसभा चुनाव से पहले जहां इंडिया गठबंधन में कई तरह की बयानबाजी का दौर देखने को मिल रहा था, चुनाव आते-आते वो खत्म हुआ और सभी दल एकसाथ मिलकर मजबूती से चुनाव लड़ते दिखे, जिसके बाद दूसरे चरण के बाद से ही चुनाव की तस्वीर बदलने लगी. अब जब चुनाव अपने आखिरी चरण की ओर बढ़ गया है तो सभी के मन में एक सवाल घूम रहा है कि क्या चुनाव के बाद भी ये सभी दल एकजुट होकर रह पाएंगे या चुनाव होते ही बिखरने लगेंगे. </p>
<p style=”text-align: justify;”>दरअसल एक जून को जब आखिरी चरण की वोटिंग होगी उसी दिन कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने इंडिया गठबंधन के सभी घटक दलों की बैठक बुलाई है. माना जा रहा है कि इस बैठक में आगे की रणनीति तैयार होगी. जिसमें आपसी समन्वय बिठाने पर चर्चा हो सकती है. लेकिन सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या ये दोस्ती चुनाव के बाद भी रहेगी या नहीं. </p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>एक जून को इंडिया गठबंधन की बैठक</strong><br />इंडिया गठबंधन को लेकर इस तरह के सवाल शुरू से ही उठ रहे हैं और ये जायज भी हैं. साल 2017 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी ने मिलकर चुनाव लड़ा था लेकिन, नतीजे वैसे नहीं रहे जिसकी उम्मीद थी. जिसके बाद दोनों दलों ने अलग-अलग राह पकड़ ली. इसी तरह साल 2019 में बरसों की दुश्मनी भूलकर बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी ने गठबंधन किया, लेकिन नतीजों के बाद ये गठबंधन भी टूटकर बिखर गया. दोनों के बीच आज तल्खी कम नहीं हो पाई है. </p>
<p style=”text-align: justify;”>यही वजह है कि अब सपा और कांग्रेस गठबंधन को लेकर भी क़यास लग रहे हैं. लेकिन सूत्रों की माने तो कांग्रेस चाहती है कि जिन दलों के साथ चुनाव लड़ा गया है उनके साथ आगे भी तालमेल बना रहे. एक जून को होने वाली बैठक को भी इसी से जोड़कर देखा जा रहा है. ताकि बीजेपी के खिलाफ आगे की लड़ाई के लिए भी तैयारी की जा सके. </p>
<p style=”text-align: justify;”>राजनीतिक जानकारों की मानें तो यूपी में सपा-कांग्रेस गठबंधन काफी हद तक <a title=”लोकसभा चुनाव” href=”https://www.abplive.com/topic/lok-sabha-election-2024″ data-type=”interlinkingkeywords”>लोकसभा चुनाव</a> के नतीजों पर निर्भर करता है. अगर चुनाव के नतीजे बेहतर आते हैं तो ये याराना आगे भी जारी रह सकता है. इसकी एक वजह ये भी है कि कांग्रेस और सपा का वोट बैंक भी आपस में टकराता नहीं है. हालांकि बीजेपी बार-बार दावा करती है कि चुनाव के बाद इंडिया गठबंधन टूट कर बिखर जाएगा. </p>
<p style=”text-align: justify;”><strong><a href=”https://www.abplive.com/states/up-uk/lok-sabha-election-2024-phase-7-voting-on-13-seat-nda-vs-inda-alliance-varanasi-gorakhpur-deoria-2701358″>सातवें चरण में इन सीटों पर सीधी टक्कर, गैर यादव OBC जातियों का जोर, NDA-इंडिया ने साधा समीकरण</a></strong></p>
Uttarakhand: देहरादून में पुलिस ने 300 किलो मिलावटी मावा पकड़ा, एक आरोपी को किया गिरफ्तार
Uttarakhand: देहरादून में पुलिस ने 300 किलो मिलावटी मावा पकड़ा, एक आरोपी को किया गिरफ्तार <p style=”text-align: justify;”><strong>Dehradun News:</strong> दीपावली और धनतेरस के अवसर पर देहरादून पुलिस को एक बड़ी सफलता मिली है. पुलिस ने 300 किलो ग्राम मिलावटी (सिंथेटिक) मावा बरामद किया है और एक अभियुक्त को गिरफ्तार किया है. यह कार्रवाई शहर में खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए की गई है, जहां मिलावटखोर त्योहारों के समय में खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता से समझौता करते हैं. </p>
<p style=”text-align: justify;”>वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक देहरादून ने त्योहारों के मद्देनजर बाहरी राज्यों से आने वाले मिलावटी खाद्य पदार्थों की जांच के लिए कड़े निर्देश जारी किए थे. इसके तहत सभी थाना क्षेत्रों में सघन चेकिंग की जा रही है. इसी क्रम में कोतवाली नगर पुलिस ने रात के समय चेकिंग अभियान चलाया. </p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>मिलावटी मावे को किया नष्ट</strong><br />पुलिस ने सिंघल मंडी तिराहे पर एक सिल्वर रंग की इंडिगो कार (UK07AE2197) को रोका और उसकी तलाशी ली. वाहन की डिग्गी से लगभग 300 किलो ग्राम मिलावटी मावा बरामद हुआ. इस दौरान फूड सेफ्टी ऑफिसर को मौके पर बुलाया गया, जिन्होंने मावे का निरीक्षण किया और उसे प्रथम दृष्टया सिंथेटिक बताया. इसके बाद, मावे के नमूने लेकर शेष सामग्री को नष्ट किया गया.</p>
<p style=”text-align: justify;”>गिरफ्तार अभियुक्त अमित, जो उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर का निवासी है, ने पूछताछ में बताया कि वह इस मावे को रामपुरी, मुजफ्फरनगर से लाकर देहरादून में अधिक दाम पर बेचना चाहता था. दीपावली के अवसर पर विभिन्न प्रतिष्ठित दुकानों और डेयरी केंद्रों पर इसकी सप्लाई की योजना थी. पुलिस ने अभियुक्त के खिलाफ धारा 274 और 275 भारतीय न्याय संहिता 2023 के अंतर्गत मामला दर्ज किया है. इस कार्रवाई में बरामद सामान में 300 किलो ग्राम मिलावटी मावा, घटना में प्रयुक्त इंडिगो कार, और एक मोबाइल फोन शामिल हैं.</p>
<p style=”text-align: justify;”>यह मामला खाद्य सुरक्षा और सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए एक चेतावनी है. दीपावली जैसे त्योहारों पर मिलावटखोरी के प्रयासों को विफल करने के लिए पुलिस का यह प्रयास महत्वपूर्ण है. जनता को सलाह दी गई है कि वे ऐसे मिलावटखोरों से सतर्क रहें और किसी भी संदिग्ध खाद्य पदार्थ की जानकारी पुलिस को दें. पुलिस का यह अभियान इस बात का प्रतीक है कि वह जनमानस की सेहत के प्रति संजीदा है और मिलावटखोरी के खिलाफ कड़ी कार्रवाई जारी रखेगी.</p>
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