पश्चिमी यूपी के बागपत की धरती पर एक बार फिर महाभारत कालीन सभ्यता मिली है। तिलवाड़ा गांव के आला टीले पर खुदाई में जो मृदभांड (मिट्टी के बर्तन) निकले हैं, उनकी बनावट सिनौली साइट जैसी है। सिनौली साइट से तिलवाड़ा की दूरी सिर्फ 10 किलोमीटर है, जहां 106 मानव कंकाल और मिट्टी के बर्तन मिले थे। ये बर्तन करीब 4 हजार साल पुराने थे। ऐसे में आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (ASI) मान रहा है कि तिलवाड़ा साइट पर मिले बर्तन भी लगभग उतने ही साल पुराने हैं। तिलवाड़ा गांव में एक महीने की खुदाई में ASI को बड़ी संख्या में बर्तन मिले हैं। एक बड़ा बर्तन मिला है, जो शवादान केंद्र (इंसानों को दफनाने की जगह) पर प्रयुक्त होता है। कुछ जानवरों की हड्डियां भी निकली हैं। ये पूरा एरिया महाभारत कालीन है, इसलिए ASI को यहां खुदाई से बड़ी उम्मीदें हैं। ये खुदाई अगले दो महीने तक चलेगी। दैनिक भास्कर ने गांव तिलवाड़ा पहुंचकर खुदाई देखी। ASI से इस इलाके की महत्ता समझी। पढ़िए पूरी रिपोर्ट… यमुना किनारे गांव के 3 बीघा खेत में चल रही ASI की खुदाई
दिल्ली से 82 किलोमीटर दूर तिलवाड़ा गांव है। यहां से कुछ ही दूरी पर यमुना नदी का किनारा है, जिसके दूसरे छोर पर हरियाणा का पानीपत शुरू हो जाता है। इस गांव में श्मशान घाट के पीछे करीब तीन बीघा में गन्ने का खेत है, जो बाकी खेतों से करीब पांच-छह फुट ऊंचाई पर है। बीते कुछ साल से लोगों को खेत में काम करने के दौरान पुरानी धरोहरें मिलीं। उन्होंने ये धरोहरें ASI को सौंपी। ASI की उत्तरी क्षेत्र की निदेशक डॉ. अरविन मंजुल ने यहां खुदाई की अनुमति मांगी थी। साल-2023 के शुरुआत में ही इजाजत मिल गई। अब ASI मेरठ सर्किल की करीब आठ सदस्यीय टीम यहां 11 दिसंबर, 2024 से खुदाई कर रही है। टीम में कुछ रिसर्च स्कॉलर भी हैं। वे तकरीबन 15 मजदूरों के साथ बीते एक महीने से तीन बीघा खेत में खुदाई कर पुरानी धरोहरों को ढूंढ रहे हैं। ASI टीम ने पूरी तरह से तिलवाड़ा गांव में ही डेरा डाल रखा है। उन्होंने रहने के लिए अस्पताल का कुछ भवन और एक घर किराए पर ले रखा है। इसके अलावा उत्खनन साइट पर ही दो वाटरप्रूफ तंबू लगा रखे हैं। सीनियर अफसर बीच-बीच में इस साइट का दौरा करते रहते हैं। हम गन्ने के खेत में 150 मीटर अंदर चलकर उत्खनन साइट पर पहुंचे। पूरा एरिया बांस-बल्लियों से कवर किया है, ताकि कोई बाहरी व्यक्ति वहां न पहुंच सके। हमारे पहुंचते ही ASI टीम ने मोबाइल जेब से बाहर नहीं निकालने के लिए कहा। उन्हें ऊपर से साफ निर्देश थे कि उत्खनन साइट के फोटो-वीडियो खुदाई पूरी होने तक लीक न होने पाएं। इसी शर्त पर उन्होंने हमें उत्खनन साइट के अंदर आने की अनुमति दी। वहां मौजूद ASI के एक व्यक्ति ने नाम न छापने की शर्त की पर उत्खनन से जुड़ी जानकारियां दीं। अंतिम संस्कार में प्रयोग होने वाला मिट्टी का बर्तन मिला
ASI अधिकारी ने बताया- हमने इस साइट पर दो ट्रेंच (गहरा कटाव) बनाए हैं। इनकी लंबाई-चौड़ाई करीब 10 बाय 10 फीट के आसपास होगी। बीते एक हफ्ते से इन दोनों ट्रेंच में मृदभांड (मिट्टी के बर्तन) निकलने शुरू हुए हैं। ये बर्तन अलग-अलग आकार के हैं। ज्यादातर गोलाकार हैं। इस टीले के एक छोर पर हमें एक बड़ा बर्तन मिला है, जो शवाधान (शवों के अंतिम संस्कार) में प्रयोग होता था। बनावट के आधार पर पता चलता है कि ये मृदभांड ठीक वैसे हैं, जैसे सिनौली साइट पर मिले थे। सिनौली साइट यहां से करीब 10 किलोमीटर दूर है। वहां साल 2005-06 से 2017-18 तक खुदाई चली थी। वहां जो बर्तन मिले थे, वो जांच में करीब 4 हजार साल पुराने निकले थे। महाभारत काल भी लगभग इतना ही पुराना है। ऐसा भी अनुमान है कि ये खुदाई वाली जगह, शवाधान (शवदाह गृह) हो सकती है। ऐसे में मानव कंकाल मिलने की भी संभावनाएं हैं। जानवरों की हड्डियां भी मिलीं
ASI अधिकारी ने बताया- इस ट्रेंच के पास से ही हमें कुछ हड्डियां मिली हैं। शुरुआत में लगा कि ये मानव हड्डियां हो सकती हैं, लेकिन जांच में ये जानवरों की पाई गई हैं। ऐसा लगता है जैसे जानवरों की मृत्यु पर उनके शवों को जमीन में दबा दिया जाता है। ठीक उसी तरह यहां जानवरों के शव दबाए गए होंगे। फिर भी हमने उन हड्डियों को अपनी जांच में शामिल किया है। पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि हड्डियां कितनी पुरानी हैं। ट्रेंच की दीवारों में हड्डियों के टुकड़े फंसे हुए हैं। इन्हें बेहद सुरक्षित तरीके से बाहर निकाला जा रहा है। कार्बन डेटिंग संभव नहीं, बनावट के आधार से पता लगाएंगे उम्र
तीन बीघा खेत में अभी खुदाई के लिए सिर्फ दो ट्रेंच बनाई गई हैं। अब तीसरी ट्रेंच भी बनाने का काम शुरू हो गया है। कहा जा रहा है कि इसी तरह ट्रेंच की संख्या बढ़ाई जाएगी, जब तक ये पूरा एरिया कवर नहीं हो जाता। ASI अधिकारी ने बताया- किसी भी साइट पर सामान्यत: उत्खनन का काम तीन महीने तक चलता है। इसलिए तिलवाड़ा साइट पर ये काम अभी दो महीने और चलेगा। अगर खुदाई में बहुत महत्वपूर्ण चीज मिली तो ये काम इससे ज्यादा भी चल सकता है। खुदाई में जो भी बर्तन मिल रहे हैं, उन्हें अलग-अलग तारीखवार प्लास्टिक के बर्तनों में रखा जा रहा है। जिसके बाद उन्हें पॉलीपैक करके जांच के लिए भेजा जाएगा। चूंकि मृदभांड पर कार्बन नहीं होता, इसलिए इनकी कार्बन डेटिंग संभव नहीं है। ऐसे में बनावट के आधार पर ही मृदभांडों की उम्र पता लगाई जाएगी। 2005 में निकले थे 106 मानव कंकाल तिलवाड़ा साइट से 10 किलोमीटर दूर ही सिनौली साइट है। यहां के किसान प्रभाष शर्मा के खेत से कुछ पुरानी वस्तुएं मिलीं। उन्होंने जब प्रशासन को जानकारी दी तो साल-2005 में पहली बार यहां ASI ने खुदाई शुरू की। ASI को जमीन के अंदर से करीब 106 मानव कंकाल मिले। कार्बन डेटिंग से पता चला कंकाल करीब तीन हजार साल से भी ज्यादा पुराने थे। ऐसा माना गया कि यहां सैनिकों की टुकड़ी का डेरा रहा होगा। इसके बाद साल-2017 और 2018 में खुदाई के दौरान एक शाही कब्रगाह मिली। खाट के आकार वाले तीन ताबूत मिले। कब्रगाह में शवों के साथ दफनाए गए तीन पुराने रथ भी मिले। तलवार, ढाल जैसी चीजें भी पाई गईं। इस खुदाई में जो रथ, तांबे की तलवार, मुकुट मिले, वो 2300-1950 ईसा पूर्व (करीब 4000 साल पहले) के बताए गए थे। ASI ने इस गांव में 40 किसानों की 28 हेक्टेयर जमीन को राष्ट्रीय स्मारक घोषित किया है। ग्रामीण बोले- हमें पौराणिक चीजें मिलने की उम्मीद
तिलवाड़ा गांव के किसान वीरेंद्र सिंह बताते हैं- सिनौली गांव में पहले खुदाई हुई। वहां ऐतिहासिक चीजें निकलीं। अब हमारे गांव के टीले पर खुदाई शुरू हुई है। पुरातत्व विभाग वाले यहां आए हुए हैं। हमें उम्मीद है कि यहां से पौराणिक और ऐतिहासिक चीजें मिलेंगी। हस्तिनापुर से कुरुक्षेत्र के रास्ते में पड़ता है ये गांव
इसी गांव के किसान सुनील खोखर बताते हैं- ये विस्थापित गांव है। हरियाणा से लोग पहले मोखा गांव, फिर बदरखा और फिर तिलवाड़ा में आकर बसे। यमुना नदी के किनारे बहुत पुरानी बस्तियां रही हैं। उन्हीं में से एक तिलवाड़ा भी है। हमने पूर्वजों से सुना है कि जब बारिश के पानी से मिट्टी बह जाती थी तो खेतों से पुराने चिक्के चरवाहों को मिलते थे। मैंने खुद देखा है कि हमारे गांव के कुम्हार के पास दो सिक्के थे। वो मिट्टी खोदने के लिए खेतों में जाता था, तब उसको सिक्के मिले थे। कुम्हार दोनों सिक्कों को अपनी टोपी में टांगकर रखता था। पांडवों ने कौरवों से जो गांव मांगे, उसमें बागपत भी था
शहजाद राय शोध संस्थान के निदेशक अमित राय जैन बताते हैं- बागपत को उन 5 गांवों में एक माना जाता है, जिसे पांडवों ने युद्ध से पहले कौरवों से मांगा था। यहां हिंडन और कृष्णा नदी के बीच बरनावा गांव में बड़े टीले पर गुफा है। ये वो गुफा है, जिसके बारे में दावा किया जाता है कि आग लगने के बाद पांडव यहीं से जान बचाकर निकले थे। ये पूरा इलाका महाभारत कालीन है। ——————– ये खबर भी पढ़ें… संभल में अभी भी 33 तीर्थ की तलाश:जगह-जगह खुदाई, मैप लगे; एक तीर्थ संवारने के लिए सवा करोड़ मिले स्कंद पुराण के संभल महात्म्य में 68 तीर्थ और 19 कूप (कुआं) का जिक्र है। इनमें से अब तक 35 तीर्थ और 19 कूप मिल चुके हैं। इन तीर्थ और कूपों को पुराने स्वरूप में लौटाने की तैयारी चल रही है। जिन जगहों पर तीर्थ और कूप मिले हैं, उनके आसपास खुदाई हुई। कुओं और तीर्थों को पुराने स्वरूप में लौटाने की तैयारी है। पढ़ें पूरी खबर… पश्चिमी यूपी के बागपत की धरती पर एक बार फिर महाभारत कालीन सभ्यता मिली है। तिलवाड़ा गांव के आला टीले पर खुदाई में जो मृदभांड (मिट्टी के बर्तन) निकले हैं, उनकी बनावट सिनौली साइट जैसी है। सिनौली साइट से तिलवाड़ा की दूरी सिर्फ 10 किलोमीटर है, जहां 106 मानव कंकाल और मिट्टी के बर्तन मिले थे। ये बर्तन करीब 4 हजार साल पुराने थे। ऐसे में आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (ASI) मान रहा है कि तिलवाड़ा साइट पर मिले बर्तन भी लगभग उतने ही साल पुराने हैं। तिलवाड़ा गांव में एक महीने की खुदाई में ASI को बड़ी संख्या में बर्तन मिले हैं। एक बड़ा बर्तन मिला है, जो शवादान केंद्र (इंसानों को दफनाने की जगह) पर प्रयुक्त होता है। कुछ जानवरों की हड्डियां भी निकली हैं। ये पूरा एरिया महाभारत कालीन है, इसलिए ASI को यहां खुदाई से बड़ी उम्मीदें हैं। ये खुदाई अगले दो महीने तक चलेगी। दैनिक भास्कर ने गांव तिलवाड़ा पहुंचकर खुदाई देखी। ASI से इस इलाके की महत्ता समझी। पढ़िए पूरी रिपोर्ट… यमुना किनारे गांव के 3 बीघा खेत में चल रही ASI की खुदाई
दिल्ली से 82 किलोमीटर दूर तिलवाड़ा गांव है। यहां से कुछ ही दूरी पर यमुना नदी का किनारा है, जिसके दूसरे छोर पर हरियाणा का पानीपत शुरू हो जाता है। इस गांव में श्मशान घाट के पीछे करीब तीन बीघा में गन्ने का खेत है, जो बाकी खेतों से करीब पांच-छह फुट ऊंचाई पर है। बीते कुछ साल से लोगों को खेत में काम करने के दौरान पुरानी धरोहरें मिलीं। उन्होंने ये धरोहरें ASI को सौंपी। ASI की उत्तरी क्षेत्र की निदेशक डॉ. अरविन मंजुल ने यहां खुदाई की अनुमति मांगी थी। साल-2023 के शुरुआत में ही इजाजत मिल गई। अब ASI मेरठ सर्किल की करीब आठ सदस्यीय टीम यहां 11 दिसंबर, 2024 से खुदाई कर रही है। टीम में कुछ रिसर्च स्कॉलर भी हैं। वे तकरीबन 15 मजदूरों के साथ बीते एक महीने से तीन बीघा खेत में खुदाई कर पुरानी धरोहरों को ढूंढ रहे हैं। ASI टीम ने पूरी तरह से तिलवाड़ा गांव में ही डेरा डाल रखा है। उन्होंने रहने के लिए अस्पताल का कुछ भवन और एक घर किराए पर ले रखा है। इसके अलावा उत्खनन साइट पर ही दो वाटरप्रूफ तंबू लगा रखे हैं। सीनियर अफसर बीच-बीच में इस साइट का दौरा करते रहते हैं। हम गन्ने के खेत में 150 मीटर अंदर चलकर उत्खनन साइट पर पहुंचे। पूरा एरिया बांस-बल्लियों से कवर किया है, ताकि कोई बाहरी व्यक्ति वहां न पहुंच सके। हमारे पहुंचते ही ASI टीम ने मोबाइल जेब से बाहर नहीं निकालने के लिए कहा। उन्हें ऊपर से साफ निर्देश थे कि उत्खनन साइट के फोटो-वीडियो खुदाई पूरी होने तक लीक न होने पाएं। इसी शर्त पर उन्होंने हमें उत्खनन साइट के अंदर आने की अनुमति दी। वहां मौजूद ASI के एक व्यक्ति ने नाम न छापने की शर्त की पर उत्खनन से जुड़ी जानकारियां दीं। अंतिम संस्कार में प्रयोग होने वाला मिट्टी का बर्तन मिला
ASI अधिकारी ने बताया- हमने इस साइट पर दो ट्रेंच (गहरा कटाव) बनाए हैं। इनकी लंबाई-चौड़ाई करीब 10 बाय 10 फीट के आसपास होगी। बीते एक हफ्ते से इन दोनों ट्रेंच में मृदभांड (मिट्टी के बर्तन) निकलने शुरू हुए हैं। ये बर्तन अलग-अलग आकार के हैं। ज्यादातर गोलाकार हैं। इस टीले के एक छोर पर हमें एक बड़ा बर्तन मिला है, जो शवाधान (शवों के अंतिम संस्कार) में प्रयोग होता था। बनावट के आधार पर पता चलता है कि ये मृदभांड ठीक वैसे हैं, जैसे सिनौली साइट पर मिले थे। सिनौली साइट यहां से करीब 10 किलोमीटर दूर है। वहां साल 2005-06 से 2017-18 तक खुदाई चली थी। वहां जो बर्तन मिले थे, वो जांच में करीब 4 हजार साल पुराने निकले थे। महाभारत काल भी लगभग इतना ही पुराना है। ऐसा भी अनुमान है कि ये खुदाई वाली जगह, शवाधान (शवदाह गृह) हो सकती है। ऐसे में मानव कंकाल मिलने की भी संभावनाएं हैं। जानवरों की हड्डियां भी मिलीं
ASI अधिकारी ने बताया- इस ट्रेंच के पास से ही हमें कुछ हड्डियां मिली हैं। शुरुआत में लगा कि ये मानव हड्डियां हो सकती हैं, लेकिन जांच में ये जानवरों की पाई गई हैं। ऐसा लगता है जैसे जानवरों की मृत्यु पर उनके शवों को जमीन में दबा दिया जाता है। ठीक उसी तरह यहां जानवरों के शव दबाए गए होंगे। फिर भी हमने उन हड्डियों को अपनी जांच में शामिल किया है। पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि हड्डियां कितनी पुरानी हैं। ट्रेंच की दीवारों में हड्डियों के टुकड़े फंसे हुए हैं। इन्हें बेहद सुरक्षित तरीके से बाहर निकाला जा रहा है। कार्बन डेटिंग संभव नहीं, बनावट के आधार से पता लगाएंगे उम्र
तीन बीघा खेत में अभी खुदाई के लिए सिर्फ दो ट्रेंच बनाई गई हैं। अब तीसरी ट्रेंच भी बनाने का काम शुरू हो गया है। कहा जा रहा है कि इसी तरह ट्रेंच की संख्या बढ़ाई जाएगी, जब तक ये पूरा एरिया कवर नहीं हो जाता। ASI अधिकारी ने बताया- किसी भी साइट पर सामान्यत: उत्खनन का काम तीन महीने तक चलता है। इसलिए तिलवाड़ा साइट पर ये काम अभी दो महीने और चलेगा। अगर खुदाई में बहुत महत्वपूर्ण चीज मिली तो ये काम इससे ज्यादा भी चल सकता है। खुदाई में जो भी बर्तन मिल रहे हैं, उन्हें अलग-अलग तारीखवार प्लास्टिक के बर्तनों में रखा जा रहा है। जिसके बाद उन्हें पॉलीपैक करके जांच के लिए भेजा जाएगा। चूंकि मृदभांड पर कार्बन नहीं होता, इसलिए इनकी कार्बन डेटिंग संभव नहीं है। ऐसे में बनावट के आधार पर ही मृदभांडों की उम्र पता लगाई जाएगी। 2005 में निकले थे 106 मानव कंकाल तिलवाड़ा साइट से 10 किलोमीटर दूर ही सिनौली साइट है। यहां के किसान प्रभाष शर्मा के खेत से कुछ पुरानी वस्तुएं मिलीं। उन्होंने जब प्रशासन को जानकारी दी तो साल-2005 में पहली बार यहां ASI ने खुदाई शुरू की। ASI को जमीन के अंदर से करीब 106 मानव कंकाल मिले। कार्बन डेटिंग से पता चला कंकाल करीब तीन हजार साल से भी ज्यादा पुराने थे। ऐसा माना गया कि यहां सैनिकों की टुकड़ी का डेरा रहा होगा। इसके बाद साल-2017 और 2018 में खुदाई के दौरान एक शाही कब्रगाह मिली। खाट के आकार वाले तीन ताबूत मिले। कब्रगाह में शवों के साथ दफनाए गए तीन पुराने रथ भी मिले। तलवार, ढाल जैसी चीजें भी पाई गईं। इस खुदाई में जो रथ, तांबे की तलवार, मुकुट मिले, वो 2300-1950 ईसा पूर्व (करीब 4000 साल पहले) के बताए गए थे। ASI ने इस गांव में 40 किसानों की 28 हेक्टेयर जमीन को राष्ट्रीय स्मारक घोषित किया है। ग्रामीण बोले- हमें पौराणिक चीजें मिलने की उम्मीद
तिलवाड़ा गांव के किसान वीरेंद्र सिंह बताते हैं- सिनौली गांव में पहले खुदाई हुई। वहां ऐतिहासिक चीजें निकलीं। अब हमारे गांव के टीले पर खुदाई शुरू हुई है। पुरातत्व विभाग वाले यहां आए हुए हैं। हमें उम्मीद है कि यहां से पौराणिक और ऐतिहासिक चीजें मिलेंगी। हस्तिनापुर से कुरुक्षेत्र के रास्ते में पड़ता है ये गांव
इसी गांव के किसान सुनील खोखर बताते हैं- ये विस्थापित गांव है। हरियाणा से लोग पहले मोखा गांव, फिर बदरखा और फिर तिलवाड़ा में आकर बसे। यमुना नदी के किनारे बहुत पुरानी बस्तियां रही हैं। उन्हीं में से एक तिलवाड़ा भी है। हमने पूर्वजों से सुना है कि जब बारिश के पानी से मिट्टी बह जाती थी तो खेतों से पुराने चिक्के चरवाहों को मिलते थे। मैंने खुद देखा है कि हमारे गांव के कुम्हार के पास दो सिक्के थे। वो मिट्टी खोदने के लिए खेतों में जाता था, तब उसको सिक्के मिले थे। कुम्हार दोनों सिक्कों को अपनी टोपी में टांगकर रखता था। पांडवों ने कौरवों से जो गांव मांगे, उसमें बागपत भी था
शहजाद राय शोध संस्थान के निदेशक अमित राय जैन बताते हैं- बागपत को उन 5 गांवों में एक माना जाता है, जिसे पांडवों ने युद्ध से पहले कौरवों से मांगा था। यहां हिंडन और कृष्णा नदी के बीच बरनावा गांव में बड़े टीले पर गुफा है। ये वो गुफा है, जिसके बारे में दावा किया जाता है कि आग लगने के बाद पांडव यहीं से जान बचाकर निकले थे। ये पूरा इलाका महाभारत कालीन है। ——————– ये खबर भी पढ़ें… संभल में अभी भी 33 तीर्थ की तलाश:जगह-जगह खुदाई, मैप लगे; एक तीर्थ संवारने के लिए सवा करोड़ मिले स्कंद पुराण के संभल महात्म्य में 68 तीर्थ और 19 कूप (कुआं) का जिक्र है। इनमें से अब तक 35 तीर्थ और 19 कूप मिल चुके हैं। इन तीर्थ और कूपों को पुराने स्वरूप में लौटाने की तैयारी चल रही है। जिन जगहों पर तीर्थ और कूप मिले हैं, उनके आसपास खुदाई हुई। कुओं और तीर्थों को पुराने स्वरूप में लौटाने की तैयारी है। पढ़ें पूरी खबर… उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर