बुंदेलखंड यूनिवर्सिटी की गोल्डन गर्ल निमरा खान की कहानी:दिन में बिजनेस संभालती, रात में पढ़ती थी, बोली- स्वर्ण पदक मिलेगा, ये कल्पना नहीं की थी

बुंदेलखंड यूनिवर्सिटी की गोल्डन गर्ल निमरा खान की कहानी:दिन में बिजनेस संभालती, रात में पढ़ती थी, बोली- स्वर्ण पदक मिलेगा, ये कल्पना नहीं की थी

“मैं पढ़ाई के साथ एक स्टार्टअप रन कर रही हूं। इसलिए दिन में बिजनेस संभालती और रात में पढ़ती थी। मेरा फिक्स शेड्यूल था कि मुझे कब क्या करना है। यही वजह रही कि आज मैं यूनिवर्सिटी टॉपर बनी और कुलाधिपति स्वर्ण पदक मिला। हालांकि मैंने कभी कल्पना नहीं की थी कि मुझे स्वर्ण पदक मिलेगा। आज मिला तो खुशी को शब्दों में बयां नहीं कर सकती।” ये कहना है कि एमएससी कृषि (अर्थशास्त्र) की छात्रा निमरा खान का। जिसे बुंदेलखंड यूनिवर्सिटी टॉप करने पर राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने 29वें दीक्षांत समारोह में कुलाधिपति स्वर्ण पदक से सम्मानित किया। निमरा खान को कुल 4 कुलाधिपति पदक मिले। दैनिक भास्कर ने निमरा खान से बातचीत कर इस सफलता का राज जाना। उन्होंने हर सवाल का बेबाकी से जबाब दिया। 93.80 प्रतिशत अंक हासिल किए निमरा खान दतिया गेट के पास रहती हैं। पिता वसीम अरसद डॉक्टर हैं, उनका ओरछा गेट के पास क्लीनिक है। निमरा ने बुंदेलखंड यूनिवर्सिटी (बीयू) कैंपस से एमएससी कृषि (अर्थशास्त्र) की पढ़ाई पूरी की। इसमें उनके 93.80 प्रतिशत अंक आए। ये अंक बीयू की सभी परीक्षाओं में सबसे ज्यादा थे। यूनिवर्सिटी टॉपर होने की वजह से निमरा खान को स्वर्ण पदक मिला है। हर साल ये पदक टॉपर को ही मिलता है। इसके अलावा 16 स्टूडेंट्स को रजत और 19 स्टूडेंट्स को कांस्य पदक दिए गए। निमरा खान को स्वर्ण पदक के अलावा दो कुलाधिपति रजत पदक और एक विन्यासीकृत पदक भी प्रदान किया गया। उसका बड़ा भाई रमीज अरसद बिजनेसमैन हैं। जबकि मां हाउसवाइफ हैं। अपने खुद के नोट्स बनाए निमरा खान बताती हैं कि “बेशकली मैं सेल्फ स्टडी ज्यादा करती थी। मल्टीपल सोर्स का यूज करके मैंने अपने नोट्स बनाए। कई तरह की बुक यूज की, गूगल, बेवसाइट और जो-जो अपॉर्चुनिटी मिली, मैंने सबकाे यूज किया। इससे अच्छे नोट्स बने और फिर पढ़ाई की। मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी कि मुझे स्वर्ण पदक मिलेगा। बस मुझे पढ़ने का शौक था तो मेहनत कर पढ़ाई की। कभी रिजल्ट पर फोकस नहीं किया। यही वजह से कि मेरी मेहनत रंग लाई। इस सफलता का श्रेष्य मेरे माता-पिता और गुरुजन को देती हूं।” दिन में बिजनेस संभालना पढ़ता था निमरा खान ने आगे बताया कि पढ़ाई के साथ मैं एक स्टार्टअप रन कर रही हूं। दिन में बिजनेस संभालती थी और फिर रात में पढ़ती थी। पढ़ने से पहले एक टॉपिक का चयन कर लेती थी। फिर बुक, यूट्यूब का यूज करके और प्रोफेसर की मदद लेकर यानी कई जगह से उस टॉपिक का मटेरियल कलेक्ट करके नोट्स बना लेती थी। मेरा फोकस एग्रीकल्चर मार्केटिंग एवं एग्रीकल्चर प्रोडक्शन का है। मेरी फील्ड भी एग्रीकल्चर इकोनॉमी है, इसलिए इसी पर फोकस किया है। आगे इसी पर पीएचडी करेंगे। इसी पर अध्ययन करुंगी। बाकी मेरी जो रिसर्च होगी, उस मैं अपने स्टार्टअप में मोनिटाइज करुंगी। टाइमिंग से नहीं पढ़ती थी कभी निमरा खान का कहना है कि मैं कभी टाइमिंग से नहीं पढ़ती थी। जैस कोई टॉपिक लिया है तो उसे खत्म करती थी। चाहे एक घंटे में हो जाए या फिर 4 घंटे लगे। उसे खत्म करती थी। मुझे कभी कोई कठिनाई नहीं आई, क्योंकि मैं खुद चीज मैनेज करके चलती हूं। मेरा शेड्यूल रहता है कि मुझे कब क्या करना है और कितने पीरियड में करना है। हर किसी को शेड्यूल के हिसाब से काम करना चाहिए। यही एक तरीका है, जिससे हर काम को किया जा सकता है। आप अपनी मर्जी काे इंजॉय कीजिए। लगातार आप काम करते रहिए। आप रिजल्ट पर फोकस मत करिए, बल्कि लगातार मेहनत करिए। आपको फेलियर मिलेगा, आप उठेंगे और गिरेंगे भी। मगर अंत में सब सीख जाएंगे। “मैं पढ़ाई के साथ एक स्टार्टअप रन कर रही हूं। इसलिए दिन में बिजनेस संभालती और रात में पढ़ती थी। मेरा फिक्स शेड्यूल था कि मुझे कब क्या करना है। यही वजह रही कि आज मैं यूनिवर्सिटी टॉपर बनी और कुलाधिपति स्वर्ण पदक मिला। हालांकि मैंने कभी कल्पना नहीं की थी कि मुझे स्वर्ण पदक मिलेगा। आज मिला तो खुशी को शब्दों में बयां नहीं कर सकती।” ये कहना है कि एमएससी कृषि (अर्थशास्त्र) की छात्रा निमरा खान का। जिसे बुंदेलखंड यूनिवर्सिटी टॉप करने पर राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने 29वें दीक्षांत समारोह में कुलाधिपति स्वर्ण पदक से सम्मानित किया। निमरा खान को कुल 4 कुलाधिपति पदक मिले। दैनिक भास्कर ने निमरा खान से बातचीत कर इस सफलता का राज जाना। उन्होंने हर सवाल का बेबाकी से जबाब दिया। 93.80 प्रतिशत अंक हासिल किए निमरा खान दतिया गेट के पास रहती हैं। पिता वसीम अरसद डॉक्टर हैं, उनका ओरछा गेट के पास क्लीनिक है। निमरा ने बुंदेलखंड यूनिवर्सिटी (बीयू) कैंपस से एमएससी कृषि (अर्थशास्त्र) की पढ़ाई पूरी की। इसमें उनके 93.80 प्रतिशत अंक आए। ये अंक बीयू की सभी परीक्षाओं में सबसे ज्यादा थे। यूनिवर्सिटी टॉपर होने की वजह से निमरा खान को स्वर्ण पदक मिला है। हर साल ये पदक टॉपर को ही मिलता है। इसके अलावा 16 स्टूडेंट्स को रजत और 19 स्टूडेंट्स को कांस्य पदक दिए गए। निमरा खान को स्वर्ण पदक के अलावा दो कुलाधिपति रजत पदक और एक विन्यासीकृत पदक भी प्रदान किया गया। उसका बड़ा भाई रमीज अरसद बिजनेसमैन हैं। जबकि मां हाउसवाइफ हैं। अपने खुद के नोट्स बनाए निमरा खान बताती हैं कि “बेशकली मैं सेल्फ स्टडी ज्यादा करती थी। मल्टीपल सोर्स का यूज करके मैंने अपने नोट्स बनाए। कई तरह की बुक यूज की, गूगल, बेवसाइट और जो-जो अपॉर्चुनिटी मिली, मैंने सबकाे यूज किया। इससे अच्छे नोट्स बने और फिर पढ़ाई की। मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी कि मुझे स्वर्ण पदक मिलेगा। बस मुझे पढ़ने का शौक था तो मेहनत कर पढ़ाई की। कभी रिजल्ट पर फोकस नहीं किया। यही वजह से कि मेरी मेहनत रंग लाई। इस सफलता का श्रेष्य मेरे माता-पिता और गुरुजन को देती हूं।” दिन में बिजनेस संभालना पढ़ता था निमरा खान ने आगे बताया कि पढ़ाई के साथ मैं एक स्टार्टअप रन कर रही हूं। दिन में बिजनेस संभालती थी और फिर रात में पढ़ती थी। पढ़ने से पहले एक टॉपिक का चयन कर लेती थी। फिर बुक, यूट्यूब का यूज करके और प्रोफेसर की मदद लेकर यानी कई जगह से उस टॉपिक का मटेरियल कलेक्ट करके नोट्स बना लेती थी। मेरा फोकस एग्रीकल्चर मार्केटिंग एवं एग्रीकल्चर प्रोडक्शन का है। मेरी फील्ड भी एग्रीकल्चर इकोनॉमी है, इसलिए इसी पर फोकस किया है। आगे इसी पर पीएचडी करेंगे। इसी पर अध्ययन करुंगी। बाकी मेरी जो रिसर्च होगी, उस मैं अपने स्टार्टअप में मोनिटाइज करुंगी। टाइमिंग से नहीं पढ़ती थी कभी निमरा खान का कहना है कि मैं कभी टाइमिंग से नहीं पढ़ती थी। जैस कोई टॉपिक लिया है तो उसे खत्म करती थी। चाहे एक घंटे में हो जाए या फिर 4 घंटे लगे। उसे खत्म करती थी। मुझे कभी कोई कठिनाई नहीं आई, क्योंकि मैं खुद चीज मैनेज करके चलती हूं। मेरा शेड्यूल रहता है कि मुझे कब क्या करना है और कितने पीरियड में करना है। हर किसी को शेड्यूल के हिसाब से काम करना चाहिए। यही एक तरीका है, जिससे हर काम को किया जा सकता है। आप अपनी मर्जी काे इंजॉय कीजिए। लगातार आप काम करते रहिए। आप रिजल्ट पर फोकस मत करिए, बल्कि लगातार मेहनत करिए। आपको फेलियर मिलेगा, आप उठेंगे और गिरेंगे भी। मगर अंत में सब सीख जाएंगे।   उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर